सन 57 से स्वर्ण अक्षरों में नाम जड़ी थी वो
नन्हें को पीठ में बंध घोड़े पे चड़ी थी वो
अंग्रेजो को चने चबवाने ने एक छोटे प्रांत से
सर पे कफ़न बंद के झाँसी से खड़ी थी वो
था अंग्रेजो का सपना सोने की मुर्गी को अपना करना
जिसके लिए काटनी सबसे अत्यंत मुश्किल एक कड़ी थी वो
भारत को बचाने के लिए अपना सब कुछ लगा के
जान हतेली पे रख कर अंग्रेजो से लड़ी थी वो
अपना सब कुछ न्यौछावर करके हमारी मातृभूमि रक्षा के लिए
आखिरी साँस तक लड़ी गर्व से एक मड़ी थी वों