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ईश्वर से सुख -समृद्धि मॉंगने के वास्ते लोग मंदिर जाते हैं
उसी के दिए रूपये उसी को चढ़ा कितना इतराते हैं
अपनी इस हरकत को दान कहते हैं और घमंड दिखलाते हैं
दान क्या है वास्तव में यह समझ ही नहीं पाते हैं...
दान करते वक़्त अपनी फोटो खिंचवाते हैं
अपनी अमीरी के रुबाब से गरीब को नीचा दिखलाते हैं
ऐसा कर गरीब के चीथड़े उड़ा उसे नंगा कर जाते हैं
दान क्या है वास्तव में यह समझ ही नहीं पाते हैं..
मदद कर गरीब की अहसान पर अहसान जताते है
*हम हैं तो तुम हो* यह सुना उसका दिल दुखाते हैं
उतरन को अपनी देकर उसको दान बताते हैं
दान क्या है वास्तव में यह समझ ही नहीं पाते हैं...
गरीब के बच्चों को निरक्षर रख मज़दूरी करवा निरक्षता बढ़ाते हैं
*पढ़ाई कर क्या कर लोगे*यह कह उनका होंसला मिटाते हैं
दिवाली पर मिठाई-पैसा देने को यह दान बताते हैं
दान क्या है वास्तव में यह समझ ही नहीं पाते हैं...
वृद्ध आश्रमों में कुछ रूपये दे बहुत इतराते हैं
जब माँ-बाप वृद्ध होते हैं तो इन्हीं आश्रमों में छोड़ जाते हैं
ना जाने कैसा दान करते हैं और कैसा पुण्य कमाते हैं
दान क्या है वास्तव में यह समझ ही नहीं पाते हैं...
राजा हरिश्चन्द्र की तरह दान देकर नज़रें ना झुका पाते हैं
हम जैसा महादानी कोई नहीं चीख-चीख कर बताते हैं
बिन पैसे शिक्षा बाँट नहीं किसी को साक्षर बनाते हैं
दान क्या है वास्तव में यह समझ ही नहीं पाते हैं...
मरने वाले के अंगों को दान कर मोटा पैसा बनाते हैं
जन्मदिन अनाथालय में मना अनाथों के दिल पर छूरी चलाते हैं
वह अनाथ हैं यह अहसास दिला खुद को दरियादिल बताते हैं
दान क्या है वास्तव में यह समझ ही नहीं पाते हैं...
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