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हमनें सुना जब "मय" का अफसाना
ऐसा लगा गम के मारों का इसी ने है साथ निभाना
सुना है रोते हुओं को यह ही हँसाए
टूटे दिलों का साथ *मय* ही निभाए
पीते ही सारे गम यह भुलाए
सारा जहां हसीन नज़र भाए
यह जान पहली बार हम जब मयखाने आए
घबराए हुए एक शखस से हम टकराए
उसकी ओर हमनें जब नज़र उठाई
हालत देख उसकी हमारी आँखे भर आई
उसके लखखड़ाते कदमों को देख हम बौखलाए
ऐसा लगा ज़नाब दिल पर गहरी चोट हैं खाए
सोच लिया हमनें इसको अपना साकी बनाएँगे
मिल बैठ दोनों जाम से जाम टकराएँगे
कुछ उसकी सुनेंगे, कुछ अपनी सुनाएँगे
जाम से जाम टकरा अपने ग़म भुलायेंगे
साकी ने हमारे अचानक दो-चार गाली सुनाई
रोका तो मारने को शराब की टूटी बोतल उठाई
साकी पर तो "मय" ने नशा था चढ़ाया
ग़म में नहीं साकी नशे से था लड़खड़ाया
अब हम साकी के लड़खड़ाते क्रदमों की कहानी समझ पाए
"मय" की शेतानी देख हम बड़े घबराए
पीने वाले हर शख्स को शराब सितमगर बनाए
घर में परेशान माँ उसे नज़र ही ना आए
घर में बीबी-बच्चे चाहे भूखे सो जाएँ
*मय" का तलबगार यह देख ही ना पाए
यह जो सहारा होती तो पीने वाला इसे पीकर कभी ना लड़खड़ाता
नाली में गिर गली के कुत्तों से अपना मुँह ना चटवाता
समझ गए हम गम के मारों का मधुशाला में जाना
"मय"को गम भुलाने का सहारा बनाना और लड़खड़ाना
मय की कहानी जान हमारी आत्मा बड़ी छटपटाई
"मय" तो जहर है, क्यों यह *मधुशाला*में जाती है पिलाई
इसे पीने वाला हर शखस अपनी जिंदगी जहनुम बनाए
फिर क्यों "मयखाना" मधुशाला कहलाए
विनती है मधुशाला के नाम पर लोगों को ना भरमाएँ
जहर बेच रहे "मय खाने" को मधुशाला कहकर ना बुलाएँ
हमने सोच लिया अब हम कभी मधुशाला नहीं जायेंगे
गमों को अपनों संग बैठ बात-चीत कर प्यार से उड़ाएँगे
खुद को इस *मय* की लत से बचाएँगे
अपनी मेहनत से कमाई दौलत को *मधुशाला* में ना उड़ाएँगे