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गुड़िया उसकी, कर उसका
क्यों बचपन से यह भेद भरा ?
 कोमल पंखों को क्यों काटा
क्यों उड़ने से पहले डरा ?
रोना कमज़ोरी उसकी क्यों,
वह हरदम क्यों शक्ति से भरा ?
आंसू तो बहते दोनों के,
फिर क्यों एक को जग ने कसा ?
खेल भी बंटते लिंगों में,
क्यों खींची है दीवार कड़ी ?
ऊंची उड़ान वो भी कर सकते,
क्यों बेड़ियों में उसकी हर घड़ी ?
पढ़ने जाए तो सवाल उठे,
वो बेधड़क बढ़ता रहे घर।
ज्ञान तो दोनों का अधिकार है,
क्यों एक को मिलती बस घुटी सदी?
सपने उसके छोटे क्यों है,
वह तो आकाश भी छूना चाहे।
पंखों में हौसला उसके भी है,
क्यों हर उड़ान पर दुनिया तमाशे ?
मौके भी देखें जात- धर्म,
क्यों हर राह पर वो पीछे ठहराए ?
काबिलियत तो दोनों में है,
क्यों एक को बस अंधेरा दिखाएं ?
तनख्याह में इतना फर्क क्यों,
काम तो दोनों करते हैं ।
मेहनत का माल तो एक होना,
क्यों बातें ये झूठे भरम नए ?
घर का बोझ उसी पर ज्यादा,
वो बाहर का बस मेहमान रहे ।
जिंदगी तो उसकी भी अपनी है,
क्यों हर कदम पर बंधन सहे ?
कब तक रहेगा यह भेदभाव,
कब टूटेगी यह बंधन की डोर ?
इंसान है, हम बराबर के,
क्यों हर पल यह बेबसी का शोर ?
बदलना होगा यह नजरिया,
तभी बनेगी दुनिया नई ।
लड़का हो या लड़की, दोनों
है इंसान बस यही सच्चाई ।

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