रात का समय है। एक बहुत छोटे और टूटे हुए घर में, रवि आँखों में आँसू लिए शीशे के सामने खड़ा है। उसके हाथ में एक ब्लेड है। रवि अपनी कलाई आगे करता है और उस पर ब्लेड रखकर, खुद को शीशे में देखते हुए, अपनी नस काटने के लिए हिम्मत जुटाने की कोशिश करता है। रवि के हाथ काँप रहे हैं, पर फिर भी वह रुका नहीं। उसने आँखें बंद कीं और ब्लेड चला दिया।
रवि के हाथ से टप-टप खून टपकने लगा। देखते ही देखते काफ़ी खून निकल गया और रवि बेहोश होकर ज़मीन पर गिर पड़ा।
दृश्य परिवर्तन
रवि की आँख खुली। वह खटिया पर लेटा था, हाथ में पट्टी बंधी थी। पास में उसका बूढ़ा पिता बैठा था।
रवि अपने पिता पर खीझते हुए कहता है, "क्यों बचा लिया मुझे? मरने क्यों नहीं देते? जो हिम्मत जुटानी थी, मैं जुटा चुका था। जो दर्द सहना था, मैं सह चुका था। अब तो बस कुछ देर का इंतज़ार था और मुझे इस दर्द भरी ज़िंदगी से छुटकारा मिल जाता। पर तुमने मुझे मरने नहीं दिया, पर क्यों? जवाब दो!"
पिता मायूसी भरी हँसी के साथ कहते हैं, "क्यों बचा लिया... अब इसका क्या जवाब दूँ... जब तू बाप बनेगा ना, तब इसका जवाब तुझे स्वयं मिल जाएगा।"
रवि गुस्से में कहता है, "मैं नहीं बनूँगा कभी बाप! क्योंकि मैं अपने बच्चों को ऐसी ज़िंदगी नहीं देना चाहता जो तुमने मुझे दी है। कभी जीवन में दिन में दो वक़्त भर पेट खाना नहीं खाया, अच्छे कपड़े छोड़ो कभी साबुत कपड़े नहीं पहने। हर रोज़ मज़दूरी करो और खाओ। जिस दिन काम ना मिले, भूखे सो जाओ। आपने ऐसा जीवन काट लिया पर मैं ऐसे भूखे रह-रह कर ज़िंदगी नहीं गुज़ार सकता।"
पिता, "देख बेटा, जीवन देना और समाप्त करना दोनों भगवान के हाथ में है। इसमें हम इंसान कुछ नहीं कर सकते।"
रवि, "कौन भगवान? कैसा भगवान?... मैं किसी भगवान को नहीं मानता... भगवान जैसा कुछ नहीं होता... और अगर होता भी है तो अमीरों का होता होगा, हमारा कोई नहीं है।"
पिता, "नहीं बेटा, ऐसा नहीं है। भगवान सबका है और सब भगवान के।"
रवि, "अगर ऐसा है तो वो इतना भेदभाव क्यों करता है? किसी का रेत भी देखने का मन होता है तो वो घूमने दुबई चला जाता है और किसी को दो वक़्त की रोटी भी नसीब नहीं होती।"
पिता, "अगर वो हर किसी को ही अमीर बना देगा तो फिर मज़दूरी कौन करेगा? छोटे-मोटे काम कौन करेगा? सृष्टि के संतुलन के लिए अमीर के साथ-साथ गरीबों का होना भी आवश्यक है।"
रवि, "पर हम ही क्यों? हमने क्या बिगाड़ा था उस भगवान का और उन अमीरों ने ऐसा क्या किया था जो हमसे सबकुछ छीन कर उनको दे दिया है?"
पिता, "नहीं बेटा, भगवान ने सबको कुछ न कुछ दिया है। बल्कि हमको तो इतनी बड़ी दौलत दी है जिसके लिए हर एक अमीर तरसता है।"
रवि भ्रमित होते हुए पूछता है, "ऐसा क्या दिया है भगवान ने हमें?"
पिता, "हमारा स्वास्थ्य। अगर तुम ध्यान दोगे तो तुम्हें पता लगेगा कि ज़्यादातर बीमारियाँ अमीर लोगों को ही होती हैं। किसी को कैंसर हो रहा है, किसी की किडनी फ़ेल हो रही है, किसी को हार्ट अटैक आ रहा है, और शुगर तथा ब्लड प्रेशर तो लगभग हर अमीर आदमी को है। तुमने किसी ग़रीब आदमी को शुगर देखी है?"
रवि, "ग़रीब को शुगर इसलिए नहीं होती क्योंकि उसको जीवन में मीठे के नाम पर प्रसाद ही खाने को मिलता है वो भी कभी-कभी... शुगर क्या खाक होगी। और रही बात कैंसर और किडनी फ़ेल की तो सैकड़ों ग़रीब भी इनके शिकार हो रहे हैं। लेकिन क्योंकि ग़रीबों के पास पैसा तो है नहीं जो बड़े-बड़े डॉक्टरों का इलाज कराएँ। इसलिए उनकी महँगी जाँचें नहीं हो पातीं, इसलिए पता ही नहीं लगता कि क्या बीमारी हुई है। सीधे समाचार आते हैं, 'अरे वो ईंट ढोने वाले रवि का देहांत हो गया'।"
पिता, "शुभ-शुभ बोल बेटा।"
रवि, "मरने की बात कर रहा हूँ इससे ज़्यादा शुभ क्या बोलूँ और?"
पिता, "मुझसे तू नाराज़ है कोई बात नहीं पर भगवान से तो खफ़ा मत हो।"
रवि, "क्यों खफ़ा न होऊँ भगवान से... भगवान ने मुझे दिया ही क्या है?"
पिता, "बेटा, भगवान के दिए हुए उपहार गिनने बैठेगा तो पूरी रात गुज़र जाएगी पर उसके दिए हुए उपहार ख़त्म नहीं होंगे।"
रवि, "ऐसे कौनसे उपहार दिए हैं भगवान ने?"
पिता, "ये आँखें, ये नाक, ये कान, ये दो हाथ, पैर, हवा, पानी... सबकुछ ही तो भगवान का दिया उपहार है। और सबसे बढ़कर तुम्हारी ये जवानी। ये एक ऐसा उपहार है जो बड़े से बड़ा अमीर करोड़ों रुपए ख़र्च करने के बाद भी नहीं ख़रीद सकता। और ये उपहार भगवान सबको बराबर देता है चाहे अमीर हो या ग़रीब, सबको जीवन में एक बार ये उपहार ज़रूर मिलता है। तुम्हारे पास अभी ये उपहार है, भगवान का शुक्र अदा करो और इस उपहार का आनंद लो।"
रवि, "क्या ख़ाक उपहार है, क्या करूँ ऐसी जवानी का मैं? जिसमें न खाने के लिए खाना है और ना ही पहनने के लिए कपड़े? ये जवानी भी भगवान हम ग़रीबों को अमीरों की सेवा करने के लिए ही देता है ताकि उनकी सेवा में कोई कमी ना आने पाए।"
पिता, "जब ये जवानी चली जाएगी ना तब अफ़सोस करेगा तू। तब मैं तो नहीं रहूँगा पर मेरी ये बात ज़रूर याद आएगी तुझे... ज़िंदगी और ज़िंदगी में भी ख़ासकर जवानी... इसकी क़ीमत का अंदाज़ा तब ही होता है जब ये छिन जाती है।"
रवि, "इस ग़रीबी की जवानी से अमीरी का बुढ़ापा कहीं बेहतर है।"
दृश्य परिवर्तन
रवि सुबह सोकर उठता है। उसका हाथ अभी भी थोड़ा-थोड़ा दुख रहा है। रवि आँखें मलता हुआ घर से बाहर निकलता है और देखता है कि उसकी छोटी सी बस्ती में बहुत ही भीड़ लगी हुई है। बड़ी-बड़ी गाड़ियाँ, अमीर-अमीर लोग छोटी-छोटी कुटियों के बाहर लाइन लगाकर खड़े हैं। जहाँ तक रवि की नज़र जा सकती है, वहाँ तक लाइन लगी दिख रही है।
रवि बहुत ही हैरान और परेशान होता है कि आख़िर माजरा क्या है। लाइन में लगे एक मोटे आदमी के पास जाकर रवि पूछता है, "क्या बात है साहब, लाइन में क्यों लगे हो?"
लाइन में लगा आदमी अपनी बारी का बेसब्री से इंतज़ार करते हुए कहता है, "अबे जा यहाँ से... तेरी फ़ालतू बातों के चक्कर में मेरा नंबर निकल जाएगा।"
रवि हैरानी में आगे बढ़ते हुए कहता है, "ऐसे कौनसे हीरे-जवाहरात बाँट रहे हैं ये फ़टीचर कुटिया वाले जो इतने बड़े-बड़े सेठ नंबर आने के लिए तरस रहे हैं।"
रवि आगे जाकर भीड़ को काबू करने के लिए लगी पुलिस के एक हवलदार से पूछता है, "साहब, ऐसा क्या बँट रहा कुटियों में जो लाइन ख़त्म ही होने में नहीं आ रही?"
हवलदार, "अबे कौनसी दुनिया में रहता है, तुझे ये नहीं पता चला अब तक... कल रात नासा ने एक बड़ी खोज की है। अब से अमीर लोग पैसे देकर ग़रीब आदमी से जवानी ख़रीद सकते हैं।"
रवि हैरान होते हुए पूछता है, "जवानी ख़रीद सकते हैं मतलब?"
हवलदार, "अरे, जैसे अभी तक किडनी, दिल और आँखें ख़रीदते थे लोग, अब जवानी भी ख़रीद सकेंगे... ये सब अमीर बुड्ढे यहाँ दोबारा जवानी जीने के लालच में आए हैं। सब इन ग़रीब कुटिया वालों को पैसे देकर उनसे उनकी जवानी ख़रीदने के लिए लाइन में लगे हैं।"
रवि, "अच्छा.. मतलब मैं भी अगर अपनी जवानी दे दूँ तो ये लोग मेरे को भी पैसे देंगे क्या?"
हवलदार, "पैसे देंगे... पैसों से नहला देंगे।"
रवि ख़ुश होते हुए लाइन में लगे एक बुड्ढे अमीर आदमी के पास जाता है। बुड्ढा आदमी फ़ोन पर बात कर रहा है।
बुड्ढा आदमी फ़ोन पर, "मेरी जान तुम बस तैयार होकर बैठो। मेरा नंबर बस कुछ ही देर में आने वाला है, फिर मैं जवानी लेकर सीधा तुमसे मिलने आऊँगा।"
रवि, "ए साब, जवानी चाहिए क्या?"
बुड्ढा आदमी चिढ़ते हुए जवाब देता है, "और क्यों खड़ा हूँ सुबह से लाइन में!"
रवि, "लाइन में क्यों खड़े हो.. मैं देता हूँ ना अपनी जवानी।"
बुड्ढा आदमी ख़ुश होते हुए कहता है, "तू देगा जवानी तो यहाँ क्यों खड़ा है?"
बुड्ढा आदमी रवि के हाथों में नोटों से भरा बैग देकर कहता है, "ये लो पैसे... मेरा तुम्हारा सौदा डन।"
इतनी देर में दूसरा बुड्ढा पहले से बड़ा बैग देते हुए कहता है, "इससे सौदा मत करो मैं इससे ज़्यादा पैसा देता हूँ।" लाइन में खड़े दूसरे लोग भी रवि को देख लेते हैं। सब बैग लेकर रवि की ओर चिल्लाते हुए भागते हैं, "मुझे दो जवानी! मुझे दो जवानी!"
दृश्य परिवर्तन
रात का समय है।
रवि बहुत ही ख़ुश होते हुए दो बड़े बैग लेकर घर में घुसता है। नोटों से भरे बैग फेंकते हुए रवि अपने बूढ़े पिता से कहता है, "देखा तुमने! जो तुम्हारा भगवान नहीं कर सका वो इंसान ने कर दिखाया। अब से लोग जितनी चाहे जवानी जी सकेंगे। अब से तुम्हारा 'एक बार जवानी वाला फ़ॉर्मूला' ख़त्म... अब अमीर भी ख़ुश और हम ग़रीब भी ख़ुश... अरे मैं तो भूल गया, अब तो हम भी अमीर हैं!"
यह कहकर रवि ज़ोर से हँसता है।
पिता, "इंसान को ऐसा नहीं करना चाहिए। जब-जब इंसान ने प्रकृति के साथ छेड़छाड़ करने की कोशिश की है, उसका परिणाम अच्छा नहीं हुआ है।"
रवि, "और इससे अच्छा क्या होगा? एक बार बाहर निकल कर बस्ती का चक्कर तो लगाकर आओ... देखो बस्ती में कैसे जश्न का माहौल है... बड़े-बड़े नेता, अभिनेता बस्ती वालों से जवानी की भीख मांगने खड़े हैं। इतना महत्व तो इन ग़रीब बस्ती वालों की अर्थियों को भी नहीं मिलता जितना ये जीते जी देख रहे हैं। इससे बेहतर बदलाव तो हो ही नहीं सकता। प्रकृति हम ग़रीबों के साथ अब तक अन्याय कर रही थी पर अब और ऐसा नहीं होगा।"
दृश्य परिवर्तन
रवि ने नया घर ख़रीद लिया है। अपने नए घर में रवि और पिता बहस कर रहे हैं। रवि की उम्र 10 साल बढ़ चुकी है। रवि के बाल हल्के-हल्के सफ़ेद होने लगे हैं, हल्का सा पेट भी बाहर आ गया है।
पिता रवि को समझाते हुए कहता है, "रवि बेटा, पागल मत बन। तू पहले ही अपनी जवानी के 10 साल बेच चुका है। अब और साल बेचने पर क्यों तुला है?"
रवि, "पिताजी, तब मुझे जवानी के असली भाव का अंदाज़ा नहीं था। मैंने 1 करोड़ में 10 साल बेच दिए पर अब पिताजी, एक-एक साल का 1-1 करोड़ मिल रहा है।"
पिता, "पर बेटा, अगर तू 10 और साल बेच देगा तो पैसे का करेगा क्या? तेरे पास तो जीने के लिए जवानी बचेगी ही नहीं।"
रवि, "पिताजी, मैं 10 साल बेचने के बाद भी अभी केवल 35 का ही हूँ। 10 और बेच दूँगा तब भी मैं 45 का ही होऊँगा। पैसा ही पैसा होगा पिताजी, बाक़ी ज़िंदगी आराम से जिएँगे।"
दृश्य परिवर्तन
रवि ने अपनी जवानी के 10 और साल बेच दिए हैं। उसके बाल और ज़्यादा सफ़ेद और चेहरा और ज़्यादा उम्रदराज़ लगने लगा है। रवि ने और भी बड़ा घर ख़रीद लिया है। रवि एक ख़ूबसूरत लड़की के साथ घर में घुसता है और अपने कमरे की ओर जाता है। पिता रवि को रोकते हुए कहते हैं, "मुझे तुमसे कुछ बात करनी है।"
रवि लड़की को इशारा करते हुए बोलता है, "तुम कमरे में चलो, मैं आता हूँ।"
पिता, "रवि बेटा ये सब क्या है? तू कैसा हो गया है... इन लड़कियों के चक्कर में बड़े-बड़े लोग बर्बाद हो गए हैं, फिर तू चीज़ ही क्या है... मेरी बात मान, एक सुंदर सी लड़की देख कर बेटा शादी कर ले और अपनी गृहस्थी बसा।"
रवि, "पिताजी, सुंदर सी लड़की देख कर शादी ग़रीब करते हैं। मैं हर रोज़ एक सुंदर सी लड़की घर ला सकता हूँ तो क्यों एक ही लड़की को जीवन भर झेलता रहूँ?"
पिता, "बेटा ये सब वक़्ती चकाचौंध है। जैसे तेरा पैसा और ये बचे-खुचे ढलती हुई जवानी के साल भी गुज़र जाएँगे तो ये रोज़-रोज़ बदलने वाली लड़कियाँ भी तेरा साथ छोड़ जाएँगी। ज़िंदगी के उस मुश्किल वक़्त में अगर कोई तेरा साथ देगा तो वो तेरी पत्नी ही होगी।"
रवि, "पिताजी, आप किस युग में जी रहे हो? गए वो ज़माने जब लोग बूढ़े हुआ करते थे। मेरा उठना-बैठना अब बड़े-बड़े लोगों के साथ रहता है। मेरे एक अमीर दोस्त ने मुझे अमीर बनने का राज़ बताया है... शेयर बाज़ार का नाम सुना है? मैं उसमें पैसा लगाऊँगा... और जल्द ही मेरा पैसा 10 गुना, 100 गुना हो जाएगा। फिर मैं बेचे हुए जवानी के साल वापस ख़रीद लूँगा और तब मेरे पास पैसा और जवानी दोनों होंगे।"
पिता, "पर शेयर बाज़ार में लगाने के लिए तेरे पास पैसे हैं कब? तूने सारे पैसे तो ये इतना बड़ा घर और ये बड़ी गाड़ी ख़रीदने में ख़र्च दिए।"
रवि, "मैं अपनी जवानी के 10 और साल बेचूँगा।"
पिता, "पागल हो गया है क्या तू... और 10 साल बेचेगा तो ये याद रखना तू अपनी जवानी नहीं बल्कि ज़िंदगी ही बेच रहा है।"
रवि, "अरे पिताजी आप घबराते बहुत जल्दी हो। मैंने बताया ना मैं पैसे शेयर बाज़ार में लगाऊँगा और 10 गुना करके जवानी वापस ख़रीद लूँगा... चलो अब काफ़ी रात हो गई है जाकर सो जाओ।"
दृश्य परिवर्तन
रवि जो कि और बूढ़ा हो चुका है, खाँसते हुए उठता है और अपने पिता से पूछता है, "पिताजी, आपने मेरी बी.पी. और शुगर की दवाइयाँ देखीं क्या?"
पिता बिना कोई जवाब दिए रवि को देखकर मुस्कुराते हैं।
रवि, "क्यों मन ही मन मुस्कुरा रहे हो पिताजी?"
पिताजी, "बस सोच रहा हूँ कि कल तक शुगर और बी.पी. को अमीरों की बीमारी कहने वाला आज कैसे ख़ुद शुगर और बी.पी. की दवाइयाँ ढूँढ रहा है।"
रवि, "हाँ तो सही है न पिताजी। मैं सही तो कहता था, अब हम अमीर हो गए हैं इसलिए ये तोहफ़े में ये भी मिली हैं।"
पिता, "क्या तुझे इस बात का अहसास है कि अब तू मुझसे उम्र में 2 साल बड़ा हो चुका है?"
रवि कहता है, "मुझे सब अहसास है और अपने बेटे से छोटा होने की ख़ुशी आपके पास ज़्यादा दिन नहीं रहेगी... मैंने बाज़ार में पैसा लगा दिया है। अब जैसे ही पैसा बढ़ जाएगा मैं वापस अपने जवानी के बेचे हुए सारे साल ख़रीद लूँगा।"
इतने में पिता को खून की उलटी होती है जिसे देखकर रवि घबरा जाता है।
दृश्य परिवर्तन
पिता हॉस्पिटल में बेड पर लेटे हैं, रवि बगल में खड़ा है। पिता की आँख खुलती है। रवि मुस्कुराते हुए कहता है, "आप तो कहते थे कि ये कैंसर-वैनसर ग़रीबों को नहीं होता, भगवान अमीरों को ही ये बीमारियाँ देता है।"
पिता मुस्कुराते हुए जवाब देते हैं, "तू अकेला ही अमीर थोड़े हुआ है। तेरी दौलत का लाभ उठा रहा हूँ तो बीमारियों का बोझ भी झेलना ही पड़ेगा।"
दृश्य परिवर्तन
रवि डॉक्टर से बात कर रहा है।
डॉक्टर, "देखिए, आपके पिता के पास काफ़ी कम समय बचा है। हम कीमो कर सकते हैं पर आपके पिता की हेल्थ कीमो झेलने लायक है नहीं। अगर आप कहीं से थोड़े जवानी के साल ले आएँ तो आपके पिता की बॉडी कीमो झेलने लायक हो जाएगी।"
दृश्य परिवर्तन
रवि अपने दोस्त से फ़ोन पर बात कर रहा है।
"मैंने कहा ना सारे शेयर बेच दे, मुझे पैसे की सख़्त ज़रूरत है... पर इतने से दिन में पैसा आधा कैसे हो सकता है? तू तो कह रहा था पैसा 10 गुना हो जाएगा और अब तू कह रहा है कि पैसा आधा रह गया है... कोई बात नहीं जितना बचा है वो पैसा मुझे चाहिए जल्द से जल्द।"
दृश्य परिवर्तन
रवि पैसों का बैग लेकर उसी बुड्ढे के घर जाता है जिसको रवि ने अपनी जवानी बेची थी। बुड्ढा अब जवान हो चुका है।
रवि, "ये लो लाला 5 करोड़ हैं। तुमने मुझे 10 साल के लिए 10 करोड़ दिए थे, मैं 5 करोड़ लाया हूँ गिन लो और मुझे मेरी जवानी के 5 साल वापस कर दो।"
लाला, "चल बे... दिमाग़ ख़राब हो गया तेरा... 50 करोड़ लेकर आएगा तब भी तुझे एक साल भी नहीं दूँगा।"
रवि, "मैंने तुझे 21 करोड़ में अपनी जवानी के 30 साल बेच दिए और तू कह रहा है कि 50 करोड़ में 1 साल नहीं देगा।"
लाला, "तू बेवक़ूफ़ है, मैं नहीं।"
अंदर से किसी लड़की की आवाज़ आती है, "जल्दी आओ डार्लिंग।"
लाला, "हाँ हाँ बस अभी आया बेबी।"
रवि हताश और निराश होकर वहीं खड़ा रहता है और लाला रवि के मुँह पर ही दरवाज़ा बंद कर देता है।
दृश्य परिवर्तन
रवि काफ़ी उदास हुए अपने पिता के बेड के पास बैठा है। पिता बेहोशी की हालत में हैं। डॉक्टर आता है और रवि को बोलता है, "जल्द ही अगर जवानी का इंतज़ाम नहीं किया तो आपके पिता को बचाना मुश्किल हो जाएगा।"
रवि एक-एक करके अपने सब अमीर दोस्तों को फ़ोन कर लेता है पर कोई भी रवि की मदद करने को तैयार नहीं होता।
दृश्य परिवर्तन
रवि अपने पिता की चिता को आग दे रहा है। कई लोग रवि को सहानुभूति देते हैं।
दृश्य परिवर्तन
रवि अपने घर में सोफे पर बैठा टी.वी देख रहा है। टी.वी में समाचार में एंकर बोलती है, "इस वक़्त की सबसे बड़ी ख़बर सामने आ रही है। जवानी फिर से हासिल करने के चक्कर में दुनिया की इकोनॉमी की जो धज्जियाँ उड़ी हैं, वो किसी से छुपा नहीं है। दुनिया से मज़दूर गायब ही हो गए हैं। हर कोई जवानी बेचकर रईस हो चुका है। बाज़ार में इतना ज़्यादा पैसा आ चुका है कि रुपया या डॉलर या फिर पाउंड सब लगातार गिरते ही जा रहे हैं। जब से ये नई टेक्नोलॉजी आई, मृत्यु दर बहुत कम हो गई है और क्योंकि सब फिर से जवान हो गए हैं इसलिए बच्चे और ज़्यादा पैदा होने लगे हैं। पृथ्वी का संतुलन बिगड़ने लगा है, रिसोर्सेज़ कम पड़ने लगे हैं। यही कारण है कि पूरे भारत में बिसलेरी की एक बोतल औसतन 1 लाख रुपए की बिक रही है। यही सब देखते हुए पूरे विश्व की सरकारों ने मिलकर एक बहुत बड़ा फ़ैसला लिया है। अगले 20 साल तक पूरी दुनिया में बच्चे पैदा करना बैन हो चुका है। अगर आपको लगता है कि ये कठोर डिसीज़न है तो आप ग़लत हैं क्योंकि कठोर निर्णय तो ये है कि पूरे विश्व के प्रत्येक परिवार के किसी एक सदस्य को जीवन त्याग करना होगा... तभी जाकर पृथ्वी पर फिर से संतुलन बन पाएगा। एक्सपर्ट्स का मानना है वरना वो दिन दूर नहीं जब पूरी दुनिया ही ख़त्म हो जाएगी... सरकारों का कहना है कि उनको जनता के दर्द का अहसास है इसलिए उन्होंने ऐसे इंजेक्शन तैयार किए हैं जिनसे आपको बिल्कुल दर्द नहीं होगा और आप बेहोश होकर मौत के आगोश में कब चले जाओगे आपको पता भी नहीं लगेगा... इस जीवन त्याग से पूरे विश्व में कोई भी परिवार अछूता नहीं रहेगा, हर परिवार को कम से कम किसी एक का बलिदान करना आवश्यक है और जिस परिवार में केवल एक ही व्यक्ति है तो उस व्यक्ति को अपना जीवन त्याग करना पड़ेगा। हालाँकि, सारे विश्व की सरकारों ने मिलकर ये भी तय किया है कि दुनिया के सभी पॉलिटिशियन इस जीवन त्याग योजना में भाग नहीं लेंगे।"
दृश्य परिवर्तन
पूरे शहर में अफ़रा-तफ़री का माहौल बन चुका है। कोई भी परिवार अपने किसी भी सदस्य का बलिदान करने को तैयार नहीं है। जगह-जगह पुलिस और पब्लिक के बीच टकराव देखने को मिल रहे हैं, जिसमें पुलिस और पब्लिक दोनों साइड से लोगों की जानें जा रही हैं। एक्सपर्ट्स का मानना हैं कि जनसंख्या कम करने का ये तरीक़ा भी बुरा नहीं है।
रवि अपने घर पर टेंशन में इधर से उधर टहल रहा है क्योंकि उसने सुना है कि गवर्नमेंट ऑफिशियल्स आज जीवन त्याग लेने उसके एरिया में आ रहे हैं और क्योंकि रवि के परिवार में दूसरा कोई नहीं है इसलिए रवि का मरना निश्चित है।
क्या करूँ, क्या न करूँ, रवि इस जद्दोजहद में इधर से उधर टहल ही रहा होता है कि इतने में बाहर से लोगों के चिल्लाने की आवाज़ आती है। रवि बाहर निकल कर देखता है कि सरकारी लोग आ चुके हैं और हर घर में घुस-घुस कर लोगों के मौत के इंजेक्शन लगाए जा रहे हैं। साथ में अनाउंसमेंट भी हो रहा है, "आप लोग घबराइए मत, विश्वास कीजिए सरकार जो कुछ कर रही है आपके फ़ायदे के लिए ही कर रही है। अगर अभी आपने एक-एक सदस्य का त्याग नहीं किया तो आगे जाकर पूरा परिवार ही ख़त्म हो जाएगा।"
रवि चिल्लाते हुए कहता है, "तो सरकार अपने परिवार वालों का जीवन त्याग क्यों नहीं करती?" गवर्नमेंट ऑफिशियल्स का रवि पर ध्यान जाता है। उनमें से सीनियर रवि के इंजेक्शन लगाने को इशारा करता है। कुछ पुलिस वाले रवि की ओर बढ़ते हैं। रवि उन्हें अपनी ओर आता देखकर डर से भागना शुरू करता है। पुलिस वाले रवि के पीछे-पीछे भागते हैं। 25 साल का वो ग़रीब रवि शायद इन पुलिस वालों को चकमा देकर भाग सकता था पर 55 साल के बूढ़े रवि को अहसास हो गया है कि वो ज़्यादा देर तक पुलिस वालों की पकड़ से दूर नहीं रहेगा। इसलिए छिपने के लिए भागते-भागते वो अपनी पुरानी बस्ती में पहुँच जाता है और अपनी पुरानी छोटी सी टूटी हुई कुटिया में जाकर छिप जाता है। रवि की साँस बहुत फूली हुई है। वो पूरी तरह से हाँफ गया है। रवि एक कोने में बैठकर साँस लेता है और वहाँ बैठकर उसको वही खाट दिखती है जिस पर लेट कर वो अपने पिता और भगवान से अपनी ग़रीबी की शिकायत कर रहा था। रवि को अपने पिता की कही हुई बात याद आती है:
"ज़िंदगी और ख़ासकर जवानी ऐसी चीज़ है जिसकी अहमियत तब समझ आती है जब वो हमसे छिन जाती है।"
रवि की आँखों से टप-टप आँसू गिरने लगते हैं। रवि रोते और पछताते हुए कहता है, "मुझे माफ़ कर दे भगवान। मुझसे बहुत बड़ी ग़लती हो गई। पैसे के लालच में इतना अंधा हो गया था कि जो बहुमूल्य जीवन, जवानी और मेरे पिता तूने मुझे दिए थे, मुझे कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। मुझे माफ़ कर दे भगवान, मुझे माफ़ कर दे।"
रवि रो-रो कर भगवान से माफ़ी माँग ही रहा होता है कि इतने में पुलिस वाले घर में घुस आते हैं। रवि भागने की कोशिश करता है पर फूली हुई साँस रवि को और भागने की इजाज़त नहीं देती और पुलिस वाले रवि को दबोच लेते हैं।
रवि को पकड़कर पुलिसवाला कहता है, "जल्दी इंजेक्शन लगा वरना बुड्ढा फिर भाग जाएगा। साला, उमर 55 की लगती है पर जज़्बा इसमें 25 साल के लड़के का लगता है।"
दूसरा पुलिसवाला अपना बैग टटोलते हुए कहता है, "इंजेक्शन तो रास्ते में कहीं गिर गए... अब क्या करें?"
पहला पुलिसवाला रवि को पकड़े हुए कहता है, "करना क्या है? देख आस-पास कुछ छुरी-चाकू पड़ा होगा। गर्दन काट चाचा की वरना फिर से भाग जाएगा।"
दूसरा पुलिसवाला आस-पास कुछ धारदार ढूँढना शुरू करता है। उसे एक पुराना ब्लेड दिखता है जिस पर खून के धब्बे लगे हैं। वो ब्लेड लेकर रवि के पास आते हुए दूसरे पुलिसवाले से कहता है, "ये ब्लेड मिला है, इससे हो जाएगा काम?"
दूसरा पुलिसवाला रवि का हाथ खींचकर आगे करते हुए कहता है, "बिल्कुल होगा... नस काट चचा की।"
रवि ब्लेड देखकर समझ जाता है कि ये तो वही ब्लेड है जिससे ग़रीबी के दौर में रवि ने अपनी नस काटी थी। रवि अब छटपटाना बंद करके हाथ आगे कर देता है। उसको समझ आ जाता है कि भगवान ने उसकी बंद अक़्ल के दरवाज़े खोलने के लिए उसको ऐसा सबक़ सिखाया है।
पुलिसवाला रवि की नस काटता है और टप-टप करके खून ज़मीन पर गिरने लगता है।
पुलिस वाले घर से बाहर निकलने लगते हैं तभी एक पुलिस वाला कहता है, "कहीं बुड्ढा बच ना जाए। एक काम कर, एक ब्लेड ज़रा गले पर भी मार दे।"
पुलिसवाला ब्लेड उठाकर रवि के गले पर मारता है। रवि के गले से चीख़ के साथ खून की बौछार भी निकलती है।
दृश्य परिवर्तन
रवि के पिता रवि को झकझोर कर उठाते हुए कहते हैं, "क्या हुआ रवि, क्यों चिल्ला रहा है?"
रवि घबरा कर उठता है और अपने पिता को जीवित देखकर ख़ुशी से पिता को गले लगा लेता है। उत्सुकता में गले लगाते हुए रवि को हाथ में दर्द का अहसास होता है। वो देखता है कि उसके हाथ में पट्टी बंधी है। वो उठकर शीशे के सामने जाकर ख़ुद को शीशे में देखता है। शीशे में उसको जवान 25 साल का रवि दिखाई देता है, जिसे देखकर रवि की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहता है। रवि ख़ुशी से उछलता हुआ कहता है, "अरे वाह पिताजी! मैं तो जवान हो गया!" रवि इधर से उधर भागता है, ख़ूब दौड़ता है और कहता है, "देखो मेरी साँस भी नहीं फूल रही!"
रवि पिता को गले से लगाते हुए कहता है, "मैं बहुत ख़ुश हूँ! अब से मैं ख़ूब मन लगाकर मेहनत से काम करूँगा। खाने को मिलता है या नहीं वो भगवान जाने पर मैं हर हालत में ख़ुश ही रहूँगा.. अच्छा पिताजी आप रुको ज़रा, मैं बाहर जाकर ज़रा दौड़ कर आता हूँ।"
यह कहकर रवि भागा-भागा बाहर चला जाता है।
पिता की कुछ समझ में नहीं आता कि रात तो रवि ज़िंदगी से इतना निराश लग रहा था और अब अचानक से इतना ख़ुश कैसे हो गया। पिता बिना ज़्यादा दिमाग़ लगाए ऊपर देखते हुए मुस्कुरा कर कहते हैं, "भगवान की लीला भगवान ही जाने।"
समाप्त।