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आवारगी को अपने मशहूर कर दिया
मैंने ज़िंदगी से रिश्तों को दूर कर दिया।
अब लौटने से वापस झिझक रहा है दिल,
सबको भुलाने पर इतना मजबूर कर दिया।
फिसल भी अगर जाऊं तो जा पहुंचूं मैं कहाँ,
जहन्नुम में भी खुद को मशहूर कर दिया।
पहरेदार मुझको बेरंग ना फिरा दे,
कारनामा वहाँ भी मैंने खूब कर दिया।
अब जो भी मिले मुझसे कहते हैं बस यही,
इस ज़िंदगी का मैंने क्या हाल कर दिया।
जब राह दिख रही थी, मैं मुड़कर खड़ा था,
अब रास्ते ने ही मुझको मोहताज कर दिया।
जाने कहाँ, कब, कोई मुझको याद दिला दे,
वादों को मैंने कितना चूर-चूर कर दिया।
अब सादगी से मुझको लगने लगा है डर,
दौलत ने मुझको इतना मगरूर कर दिया।

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