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हमारे पड़ोसियों के सूने-से घर की दूसरी मंजिल पर दो पक्षी जोड़ों ने एक बड़े - से गमले में लगे पौधे के शिखर पर छोटा - सा घोंसला बनाया। घोंसले को बड़ी ही शिद्दत से इन दो पक्षियों ने तिनका- तिनका एकत्र करके एक मजबूत घोंसला बनाया। इन पक्षियों ने घर की रौनक बढ़ा दी और साथ में आस-पास के पड़ोसियों के बच्चे इन्हें देखकर खुशी के मारे उछल- कूद करते रहते। पड़ोसी की आंटी जी ने इनके घोंसले के आस - पास खाने - पीने की व्यवस्था कर दी ताकि इन्हें भोजन - जल के लिए भूख - प्यास से भीषण गर्मी की मार ना सहनी पड़े। इन मासूम पक्षियों ने पेड़ों पर घोंसला बनाने की वजह घर की छत ही क्यों चुनी? इन पक्षियों से पहले भी एक ओर जोड़ा पड़ोसी के घर की खुली छत के नीचे घोंसला बनाने आए थे और उन्होंने भी वहीं पर अपने बच्चों को जन्म दिया था। उनकी चहचहाटत की आवाज़ आस - पास के ओर पड़ोसियों तक को भी सुनाई देती थी. ये नन्हें पक्षी घर की रौनक थे. इनका मीठा सुर सुनकर बच्चे भी बहुत खुश होते। लेकिन वे इंसानों से डरते बहुत हैं। इन्हें डर रहता है कि कहीं हम इनके नन्हें बच्चों को कोई नुकसान तो नहीं पहुँचा रहें। इस भीड़ भरी दुनिया में कुछ इंसानियत से भरे लोग मिलेंगे जो आज भी अपनी मानवता को बनाये हुए हैं। अगर इनके घोंसले के नजदीक चले जायो तो वे भयभीत हो जाते हैं। सहम - से जाते हैं क्योंकि पक्षियों के अधिकतर घर इनके शत्रु मानव ने ही तबाह कर दिए। अनगिनत वृक्ष पर बनाए घोंसले किसी ने अग्नि के सुपुर्द कर दिए तो किसी ने इन्हें अपने मनोरंजन के लिए वस्तु समझकर अपना शिकार बना लिया। पक्षियों को पंख तो लगे हैं लेकिन इंसान इन्हें न जमीन पर रहने देता है और न ही खुले आसमान में उड़ने देता है। यह धरती किसी इंसान ने नहीं बनाई। इस पूरे संसार का रचयिता केवल परमात्मा है। पक्षी जमीन पर रहे तो उसे इंसान से खतरे के साथ - साथ बलवान स्थल जीवों से भी खतरा रहता है। अंबर की उड़ान भरे तो यह बाज ही आसमान का अधिकतर घेरा घेर लेता है, जैसे कि यही आसमान का राजा है। उकाब के आस - पास तो कोई भी पक्षी डर के मारे नजदीक नहीं उड़ता। बाज न केवल तीखी नजर वाला पक्षी है बल्कि यह एक बलवान उकाब पक्षी भी है। बाज की तीखी नजरों से बचना नन्हें पक्षियों के लिए ज़्यादातर असम्भव प्रतीत होता है। वह झट से अपने शिकार को झपट लेता है। इसलिए पक्षी बाज के क्षेत्र से दूर उड़ान भरते हैं। इंसान को घूमने की आजादी है और बलवान जीवों को जीने का अधिकार है तो फिर छोटे- छोटे जीवों को स्वतंत्रता का हक क्यों नहीं है? इन्हें डर- डर कर रहना पड़ता है।
ये नन्हें पक्षी जाएं तो जाएं कहां? अगर इन्हें किसी का भय न होता तो वे भी आजाद बाज की तरह आसमान में मस्त पवन का मजा लेते। परंतु, आकाश पर बाज का पहरा रहता है। इंसानों द्वारा लगाई गई आग के बढ़ते तापमान में पक्षियों का सांस तक लेना मुश्किल हो जाता है। ज्वालामुखी जैसे चुभने वाले इस गर्म तापमान के कारण बहुत- से पक्षी बेहोश होकर जमीन की सतह पर गिर कर मर जाते हैं। मनुष्य द्वारा लगाई आग में बहुत- ही खतरनाक गैसों का संचय होता है जो न केवल बेज़ुबानों के लिए घातक हैं बल्कि आम इंसान को भी इन भयानक गैसों का प्रकोप झेलना पड़ता है। अपने तुच्छ स्वार्थ को पूर्ण करने के लिए पक्षियों के घोंसले तोड़ता है। जब इनके घर तबाह करने पर भी इंसान को संतुष्टि नहीं हुई तो वह खुले आसमान में मस्ती में उड़ रहें पक्षियों को धुएं के रूप में जहरीली गैसों का उपहार भेंट के रूप में देता रहता है। अगर इंसान को इस धरती पर रहने की पूरी आजादी है तो छोटे जीव- जंतुयों को भी इस दुनिया के घने जंगलों में रहने का अधिकार है। अनगिनत परमात्मा द्वारा रचित पशु- पक्षी, हाथी- शेर, हीरण- चीता , हर प्रकार की जितनी भी रचना परमात्मा ने की है , इन जीवों ने तो कभी इंसानों की नगर बस्ती पर हमला नहीं किया, तो फिर इंसान क्यों इनके पीछे पड़ा है? इंसान ही बार- बार प्रकृति के जीवों पर आक्रमण करता रहता है, जिसके फलस्वरूप ये सब इंसान से डरते हैं। सामाजिक और इंसानियत की दृष्टि से इस पृथ्वी पर जीने का उचित अधिकार सभी को है लेकिन इंसान को खुद के लिए और आस- पास वातावरण के लिए और नन्हें जीवों के प्रति स्वयं को बदलना होगा। लेकिन कुछ तुच्छ लोगों की मानसिकता बिगड़ चुकी है। पक्षियों का घर अग्नि के सुपुर्द करके एक मामूली इंसान खुद को निडर कहकर संबोधित करता रहता है जबकि असलियत कुछ ओर ही होती है। जितना हक इंसानों को है खुलकर जीने का, उतना ही हक इन जीव- जंतुयों को भी है। आज के समय में बहुत कम लोगों में इंसानियत जिन्दा बची है। वे जब शीतल मंद हवा में एक समूह के रूप में उड़ते हैं, तब वह दृश्य देखने लयक होता है. ये पक्षी जब शीतल मंद हवा में एक समूह के रूप में उड़ते हैं, तब वे हर किसी का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित कर लेते हैं। अगर भगवान ने इंसान को भी पंख लगाए होते तो वह सबसे पहले उन पक्षियों के पंख ही नोचता क्योंकि मानव को अपने से बढ़कर किसी ओर की उड़ान पसंद ही नहीं। बड़ी अजीब बात है, इंसान इन्हें देखकर हैरान भी होता है और इनकी प्राण भी छीन लेना चाहता है। आज के समय में बहुत ही कम लोगों में इंसानियत जिन्दा बची है। इन नन्हें पक्षियों को भावनात्मक प्यार की ज़रूरत होती है लेकिन इन्हें अपने जाल में फंसाने के लिए मानव झूठे प्यार का इनके प्रति ढोंग करता रहता है। ये पक्षी इनके प्यार के झूठे झांसे में फंसकर तबाह हो जाते हैं। इनका चीर - फाड़ किया जाता है जबकि अनगिनत पक्षी प्रकृति की रौनक होते हैं। तुच्छ विचारों के प्रधान कुछ लोग अपने अहंकार की ऊँगली हमेशा टेढी ही रखते हैं। अपनी झूठी शान दिखाने के लिए कुछ लोग इनका इस्तेमाल करते हैं। वे इनके घोंसलों पर हमला करते हैं। इनके बच्चों तक को इंसान बख्शता नहीं। इन्हें पक्षियों पर बिलकुल दया नहीं आती। वे अपना छोटा - सा घोंसला तिनका - तिनका जोड़कर एक मजबूत घर बनाते हैं और इंसान इनके घर को पलभर में नाश कर देता है। पक्षियों के झुंड तक को मौत के घाट उतार दिया जाता है। चाहे सर्दी हो या ग्रीष्मकालीन मौसम हो , वे अपने बच्चों के लिए हर तरह का मौसम सहन कर लेते हैं। घोंसले की आकृति मानव के बनाए घोंसले से कई गुना अधिक सुंदर दिखती है।
वे अपने पंखों के फैलाव के सहारे जितनी ऊँचाई पर उड़ान भर सकते हैं, उतनी ऊँची तो मनुष्य की सोच का एक प्रतिशत भी नहीं होता। सुबह की शुरुआत यदि चिड़ियों की गूंज से हो तो उनका मधुर स्वर मन को बहुत प्रफुल्लित करता है। ये जोड़े पक्षी अपने बच्चों के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहते हैं। कई बार किसी बलवान जीव के समक्ष अपने बच्चों की जान बचाने की खातिर खुद का ही बलिदान दे देते हैं। अपने बच्चों के खाने का प्रबंध करने के लिए वे पक्षी कदापि थकते नहीं। पक्षी बहुत कर्मठ होते हैं। वे अपने पंखों की अपार शक्ति से इधर- उधर असीम आकाश का भ्रमण कर सकते हैं। वे अपने बच्चों को पालने के लिए बदलते मौसम की परवाह नहीं करते। इनकी दिनचर्या कभी खाने- पीने की तलाश करने में इधर- उधर भटकते हुए गुजर जाती है। पक्षी पहले अंडे देते हैं। मादा पक्षी को उन अंडों को गरमाहट देने के लिए कई- कई दिन उन पर बैठना पड़ता है। इस प्रक्रिया में कई- कई दिन गुजर जाते हैं। फिर एक दिन जब वे अंडों से बाहर निकलकर बाहर की दुनिया देखते हैं, तब उन्हें अपने माँ- बाप के सिवा कोई नहीं दिखता। अगर इनके बच्चों के नजदीक कोई इंसान चला जाए तो वे सहम जाते हैं। इंसानों का अत्याचार उन्हें भय से बाहर निकलने नहीं देता। मादा पक्षी तब तक बच्चों के पास रहती है, जब तक बच्चों की नाजुक चमड़ी पर फर न आ जाएं। उन्हें जल्दी-से- जल्दी उड़ाने के लिए पक्षी बच्चों के लिए बार- बार खाना लाकर उन्हें खिलाते हैं ताकि उनके बच्चे जल्दी-से इंसान की दुनिया से दूर उड़ जाएं। जब तक उनके बच्चों की नाजुक चमड़ी पर फर और पर नहीं आ जाते तब तक पक्षी जोड़े अपने बच्चों के लिए कीट- पतंगों का शिकार करके उनका पेट भरते हैं। जैसे ही दिन गुजरते जाते हैं, वैसे ही गुजरते वक़्त के साथ उनके बच्चों के पर तथा फर भी निकल आते हैं और फिर वे पीछे मुड़कर नहीं देखते। एक लम्बी उड़ान भर कर सभी पक्षी अपनी मंजिल की ओर समूह के रूप ने उड़ जाते हैं। घने जंगलों में भी पक्षी रह नहीं सकते क्योंकि वहाँ अजगर जैसे खतरनाक सांपों का हर वक़्त पहरा रहता है जो कभी भी नन्हें पक्षियों की आँख झपकते ही इन्हें अपना भोजन बना सकते हैं। इंसान इन्हें अपना मनोरंजन बना सकता है। मानव भी इन्हें अपना शिकार बना सकता है। पक्षी कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं। गर्मी का कहर का मौसम हो तो गर्मी के तेज वेग के प्रभाव से पक्षी बेहोश हो जाते हैं। सर्दी का मौसम हो तो ठंड से सिकुड़कर बैठे रहते हैं। गर्मी के मौसम में इंसान खुद की सुविधा के लिए वातानूकुलित यंत्रों का प्रयोग करता है और शीत ऋतु में हीटर की सुविधा उपलब्ध करवाकर पहले से रखी होती है। पक्षियों को भी कुदरत की मार सहन करनी पड़ती है, लेकिन उनके पास इंसानों जैसी सुविधा नसीब नहीं होती। प्रकृति का दोषी तो इंसान ही होता है लेकिन कुदरत की बर्बादी का पाप इन बेकसूर जीव- जंतुयों को भी भोगना पड़ता है। गर्मी के मौसम में कई बार पक्षियों को पानी ढूंढने मीलों दूर सफर भी करना पड़ता है। इंसान ने पेड़ों की हत्या कर दी, खुद की सुविधा के लिए। इन्हीं पेड़ों पर पक्षियों को राहत मिलती है। यह इंसान पक्षियों का हत्यारा नहीं है बल्कि मानव तो वो जाति है जो हजारों पक्षियों को मौत के खाट उतार दे। पेड़ों को काटने से और खेतों में आग लगाने से स्वार्थी इंसान की आग कभी नहीं बुझती।
अगर इंसान थोड़ी- सी इंसानियत दिखाए तो बहुत- से पक्षियों का पतन रोका जा सकता है। इनके के लिए मानव कम से कम पानी की व्यवस्था कर सकता है। इनके खाने के लिए अगर खाना रख देंगे तो इंसान के घर का राशन खत्म नहीं हो जाएगा। वह खुद दिन में नाश्ता करता है, दोपहर के समय लंच, शाम के वक़्त जलपन का सेवन करता रहता है, अगर इंसान इनके लिए दो वक़्त का रोजाना खाना परोस देगा तो क्या घर का अन्न समाप्त हो जाएगा? सुबह की चाय की चुस्कीयों के साथ पक्षियों की चहचहाहट सबके कानों में गूंजती है, सुनकर सुकून मिलता है। अगर वह इन पक्षियों को इनके घोंसले में इन्हें चैन की नींद सोने दे तो क्या इंसान की कई रातों की नींद उड़ जाएगी? इंसान को डॉक्टर द्वारा पानी अधिक पीने की सलाह दी जाती है ताकि मानव निर्जलीकरण का शिकार ना हो जाए। इंसान दिनभर में कई लीटर पानी पीता है, अगर वह इन मासूम पक्षियों के लिए एक कटोरी में जल भरकर रख देगा तो क्या उसके घर सूखा पड़ जाएगा? इंसान मज़बूत ईंट के बनाए सुंदर- से घर में रहता है, अगर पक्षी अपने तिनके से बनाए मज़बूत घोंसले में रहता तो क्या मानव के घर की छत ढह जाएगी? आखिर भला, कुछ इंसानों को इन मासूम पक्षियों से कैसी दुश्मनी? वे तो इंसानों को परेशान नहीं करते। उन्हें आराम से सुख चैन की नींद लेने देते हैं। न ही पक्षी, इंसानों के मुँह से कभी निवाला छीनता है। वे इंसान के हिस्से का कुछ भी नहीं मांगते, बल्कि वे खुद सुकून से अपने छोटे- से घोंसले में सुकून की जिंदगी गुजारना चाहते हैं। पक्षियों का शोषण करने से किसी का भला नहीं होगा। उसके नाजुक पंखों को नोचने में मानव को बहुत मजा आता है। वह अपने मनोरंजन के लिए खुले आसमान में उड़ते परिंदों को बंदूक की गोली से निशाना बना लेता है। लेकिन वे तो कभी इंसानों का शोषण नहीं करते। बल्कि वे तो अपने इर्द - गिर्द मधुर स्वरों से एक खुशहाल ताजगी जैसा माहौल बना देते हैं। उनकी आवाज़ को बंदूक की गोली से दफन कर दिया जाता है। कुछ लोग पक्षियों को पिंजरे में कैद करके इन्हें कठपुतली की तरह नचाते हैं। उन्हें परेशान करते हैं। पिंजरा इंसान ने बनाया, जबकि वह खुद के स्वार्थ को पूरा करने के लिए कभी मन रूपी पिंजरे को कैद नहीं कर पाया। पक्षियों को आजादी से उड़ने के लिए पंख परमात्मा ने पंख दिए। लेकिन मानव इनका इतना शोषण करता है कि इन्हें कैदी भी बना दिया जाता है और इनकी मधुर ध्वनि भी हमेशा के लिए दफन कर देते हैं और तो और इनके पंखों को नोच- नोचकर इन्हें बुरी तरह प्रताड़ित किया जाता है। जब इंसान खुद एक बंद कमरे में एक दिन नहीं रह सकता है, फिर इन मासूम पक्षियों को कैदी बनाने का हक इंसान को बिलकुल नहीं है और न ही होगा कभी भविष्य में। इन नन्हें पक्षियों की स्वतंत्रता पर पाबंदी लगाने का अधिकार इंसानों को बिलकुल नहीं है। बड़े- बड़े जानवर जैसे कि शेर, चीता, हाथी, मगरमच्छ और सर्प जैसे खतरनाक जीवों के पिंजरा बनाना उचित है क्योंकि ये बहुत भयंकर और जहरीले जीव होते हैं। इसके विपरीत पक्षियों के विषय में यह कैदखाना बनाना अनुचित प्रतीत होता है। भयंकर जीवों से इंसान डरता है लेकिन पक्षियों से उसे डरने की कोई आवश्यकता नहीं क्योंकि पक्षी न तो जहरीले होते हैं और न ही खतरनाक जो इंसान को नुकसान पहुंचा सके। पक्षी तो मात्र अपनी सुरीली आवाज़ के मालिक होते हैं। इनके नाजुक पंख होते हैं, जिन्हें इंसान अपने हाथों से बड़ी ही निर्दयता से दबोच लेता है। यह इंसान की कायरता है क्योंकि वे उन पक्षियों का शोषण करता है जो इंसान का कुछ नहीं बिगाड़ सकते। पक्षी न तो इंसान को डस सकते हैं और न ही अपनी चोंच से बड़े- बड़े जानवरों की तरह उनको दबोच सकते हैं। फिर भी इंसान को इनका शोषण करने में बड़ा मजा आता है। परंतु यह तो मानव की निडरता नहीं है। यह तो इंसान की कमजोरी है, जो अपनी बलवानहीन शक्ति को इन नाजुक पक्षियों पर अत्याचार करने में बर्बाद कर रहा है। यह तो मात्र कायरता है, निडरता नहीं। अगर कैदी बनना ही तो इंसान को खुद की अविकसित सोच को कैदी बनाना चाहिए जो उसकी सोच का दायरा विकसित नहीं होने दे रही।
मानव की संकीर्ण मानसिकता पक्षियों को न अंबर में उड़ने देती है और न ही इन्हें अपने घोंसले में रहने देती है। इंसान अपनी सोच के अनुसार या तो पक्षियों को कैदी बना लेता है, या तो इन्हें मनोरंजन की चीज समझने लगता है। इंसान जिन जंगली जानवरों से डरता है, वह उन्हें सामने से देखते ही भूकंप की तरह सिर से पाँव तक कांपने लगता है। इंसान की भुजाएं भी पक्षियों के पंखों की तरह उड़ान नहीं भर सकती। परमात्मा ने इंसान को पंखों की बजाए दो भुजाएं दी हैं जिनका इस्तेमाल वह नन्ही चिड़ियों को पीड़ा पहुंचाने के लिए करता है। मानव खुद तो अपनी सोच के दायरे से बाहर नहीं निकलता और वह पक्षियों को भी उसी दायरे की सीमा के भीतर रखना चाहता है। ये जीव- जंतु कहने को इंसानों को बेज़ुबान लगते हैं लेकिन दरअसल, इन्हें एक- दूसरे की भाषा समझ में आती है और वे अपनी भाषा में आपस में बातें करते हैं। वे भावनात्मक होते हैं। परंतु बड़े ही खेद की बात है कि मनुष्य में मानवता और दया नाम की भावना शून्य हो चुकी है। इंसान पक्षियों की भावनाओं की हत्या करता है। उनके प्रति अपनी क्रूरता व्यक्त करता है। इंसान का मासूम पक्षियों के प्रति यह निर्मम आचरण मानव की सोच की गिरावट का संकेत है। पूर्व समय के पन्ने पलटकर देख लो, कहीं भी पक्षी द्वारा इंसान को ज़रा- सी हानि पंहुचाने की एक भी लाइन लिखी नहीं मिलेगी। लेकिन इंसान द्वारा पक्षियों पर अत्याचारों की लम्बी- लम्बी कथाएं सुनने को ज़रूर मिल जाएंगी। बेवजह, वह पक्षियों का शत्रु बन बैठा। जंगलों को अग्नि के हवाले करके, अनगिनत पशु- पक्षियों के घरों को तोड़कर और उनकी सदा के लिए नींद छीनकर, खुद घर में आराम करता है आज का मानव। इस ने ही मासूम जीवों का जीना हराम कर दिया है। न तो पक्षी पेड़ों पर घोंसले बनाकर रह सकते हैं और न ही वे अंबर में धुएं की लपटों के बीच खुली सांस ले सकते हैं। जमीनी सतह से लेकर वृक्ष की ऊँचाईयों तक, और इन ऊँचाईयों से लेकर आसमान में उड़ते बादलों तक भी, इंसान ने हर जीव का जीना मुश्किल कर रखा है। इन्हें उजाड़कर मानव कभी स्थायी खुशी हासिल नहीं कर सकता। पक्षियों पर जुल्म करके इंसान को कुछ पलों के लिए आनंद आता है। इस संसार में मानव और हर छोटे - बड़े जीव- जंतु परमात्मा ने ही भेजे हैं। फिर इस धरती पर अकेले इंसान को ही क्यों आजादी से रहने का अधिकार है? इन्हें नष्ट करके मन में इनके प्रति इतनी जलन क्यों उगल रहा है? खुद चैन से सो कर इनका सुकून क्यों छीन रहे है? इन मासूम जीवों के प्रति शोषण की गति कब थमेगी? क्या वे कभी भविष्य में मानव के शोषण से खुद को मुक्त कर पाएंगे? इन जीवों ने कभी भी मानव के आवास पर हमला नहीं किया। फिर इंसान क्यों इनके ही क्षेत्र में इन्हें सुकून से रहने नहीं दे रहा? इसकी क्रूरता की तलवार पक्षियों के पंखों पर गहरे ज़ख्म करती है। इस क्रूरता ने मासूम पक्षियों के भीतर भय उत्पन्न कर दिया है क्योंकि इंसानों ने ही अनगिनत जीवों को घर से बेघर कर दिया है।
इंसान अपनी इच्छायों की आग में जल रहा है। खुद को शांत करने की वजह वह जीवों का सुख - चैन छीन रहा है। इनका आशियाना तबाह करके इंसान ने पेड़ों को काटकर बड़ी- बड़ी इमारतों का निर्माण कर लिया। करोड़ों रूपये खर्च करके बाग-बगीचे बना लिए। इनके पास अन्न, वस्त्र, पीने के लिए जल और रहने के लिए सुंदर- सुंदर घर हैं परंतु पक्षियों के पास मात्र एक घोंसला होता है, इंसान उसके छोटे-से घर पर भी अपनी तलवार चला देता है। वे इन पक्षियों को घोंसले में रहने नहीं देते। इन्हें पीड़ित करके क्या मिलेगा? सामने से मानव का खौफ देखकर इन्हें अपनी मौत नजर आती है। कुछ पक्षी कैदी बनकर कैदखाने की आग में जल रहे हैं। कुछ पक्षी किसी शिकारी की बंदूक का शिकार हो रहे हैं। और कुछ पक्षी अग्नि के साए में जहरीली गैसों के बीच अपनी अंतिम सांसे ले रहे हैं। पंख होने के बावजूद वे बेबस रहते हैं। वे शोषण का हद से ज़्यादा शिकार हो चुके हैं। वे क्रूर इंसान की ईर्ष्या, द्वेष, हिंसा जैसे तीरों से घायल हैं। उनका सारा शरीर घावों से त्राहि-त्राहि कर रहा है। चारों तरफ इंसान की हिंसक हलचल से भयंकर कोलाहल मचा हुआ है। भय का खौफ हर तरफ है। अगर इंसान को इस पृथ्वी पर रहने का अधिकार है तो इन जीवों के दर्द पर मरहम लगाना इंसान का कर्तव्य है। इन घायल पक्षियों की पीड़ा को कम करके इन्हें फिर से उड़ने के योग्य बनाया जा सकता है। शीघ्रता से इन्हें चिकित्सा सुविधा देकर बचाया जा सकता है। जितनी इंसान की यह जिंदगी मूल्यवान है, उतनी ही इन मासूम जीवों की भी जिंदगी कीमती होती है। परंतु मानव में शोषण करने की प्रवृति किसी भी प्रकार से समाप्त नहीं हो रही। जैसे - जैसे जीवन की राह पर विकास के नाम पर वह आगे बढ़ता जा रहा है, वैसे- वैसे उसकी जीवों के प्रति शोषण की प्रवृति नियंत्रण से बाहर होती जा रही है। आसमान की व्यापक चादर भगवान ने सभी इंसानों और हर छोटे- बड़े जीवों के लिए एक समान ओढ़ी है लेकिन इंसान इनसे भेदभाव की भावना रखता है। ये मासूम इंसान द्वारा उत्पन्न की गईं अनगिनत मुसीबतों का सामना करते हैं। आसमान की बांहों में पंख फैलाकर उड़ना अब अनगिनत पक्षियों के लिए मात्र कल्पना बनकर रह गई। उस ने अपनी क्रूरता की प्रवृति की वजह से स्वार्थ की भावना को वरियता देते हुए बेकसूर पक्षियों को अपने अत्याचारों से जला दिया। वे मानव के इस दुर्गुण का शिकार होकर फिर कभी उड़ने में सक्षम न हो सके। भोगवाद में लिप्त रहने वाले बेजुबानों का दर्द कदापि समझ नहीं सकते। वह खुद के सुख में इतना विलीन हो चुका है कि उसे पक्षियों की वेदना का रतीभर भी परवाह नहीं करता। वह केवल खुद की परवाह करता है। स्वार्थ भावना वाला व्यक्ति कभी किसी का दर्द नहीं समझ सकता। वह केवल उपहास उड़ा सकता है। खुद की उन्नति के राहों पर चलते- चलते वह विनाश के गर्त में गिरता जा रहा है। इस बात का अहसास तब होगा, जब भगवान उससे बेज़ुबानों के नाश का हिसाब चुकता करेगा। जिस दिन मनुष्य पश्चाताप की अग्नि में स्वयं जल उठेगा, तब वह भौतिकवादी वस्तुयों से दूरी बना लेगा, जिनकी चाहत के लिए न जाने मानव ने कितने बेज़ुबान जीवों की क़ीमती जिंदगीयां छीन लीं।
इन बेज़ुबान जीवों को सिर्फ प्यार की भाषा ही समझ में आती है। जिस दिन इंसान विकास के नाम पर तरक्की को जीवन का उद्देश्य नहीं अपितु साधन समझने लगेगा, उस दिन वह अनगिनत पक्षियों की भावनाओं को और उनकी असीमित पीड़ा को, वह भली- भांति समझने लगेगा। फिर पक्षियों के उड़ान भरते ही इस जीत के लिए इंसानियत का शंख बजेगा। किसी पाप को करने के बाद मनुष्य का रोना, आंसू बहाना, दुख व्यक्त करना आदि उसके मानवतावादी होने की बहुत बड़ी आशा का प्रतीक है। जिससे यह ज्ञात होता है कि उससे अभी इंसानियत पूरी तरह से दूर नहीं है बल्कि अभी भी उसके हृदय के किसी कोने में दया की खुराक पड़ी है। वह पछताता हुआ अपनी क्रूरता को त्याग कर शालीनतापूर्वक व्यवहार अपनाता है। भलाई के पथ पर मानव को आगे बढ़ते रहना चाहिए। अंबर पर राज करने वाले पक्षी बेझिझक और बेखौफ होकर सदा उड़ते रहें। बेज़ुबानों की पीड़ा समझ आने के बाद पेड़ों की कटाई पर रोक लग जाएगी, अनगिनत पक्षियों के घोंसले तबाह होने से बच जायेंगे, वे अग्नि से निकलने वाली जहरीली गैसों से अप्रभावित रहेंगे और वे खुलकर प्रकृति में सांस ले सकेंगे। वह दृश्य बड़ा- ही मनमोहक होगा, जब हर छोटे- बड़े जीव भी इंसानों की तरह बेखौफ होकर अपनी - अपनी मूल्यांवान जिंदगी को जीने का आनंद उठा पाएंगे। अगर इंसान अपनी सोच बदल ले तो ये जीव प्रकृति का आनंद उठा पाएंगे। आसमान पर जो जहरीली गैसों की अफरा- तफरी मची रहती है और खेतों में पराली जलाने पर रोक लगने पर पक्षी खुलकर सांस ले सकेंगे। पक्षियों के साथ - साथ अनगिनत जीवों का दम नहीं घुटेगा। तीव्र गर्मी असहनीय होने के कारण बहुत - से पक्षी बेहोश हो जाते हैं। यदि इस धरती का मानव अपनी इंसानियत को जागृत कर ले तो इस धरती से लेकर आसमान तक हर जीव शोषण से मुक्त रहेगा। बेशक, जीवन में आगे बढ़ने के लिए इंसान विकास करे लेकिन आगे बढ़ने की होड़ में इन जीवों पर जुल्म मत करें। इस धरती पर रहने वाले हर शख्स के और हर जीव के प्राण क़ीमती होते हैं।