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कमजोर वित्तीय स्थिति इंसान को अनचाहा काम करने के लिए विवश कर देती है। अनेक मन्नतों के बाद निहारिका ने एक गरीब परिवार में जन्म लिया। जहाँ उसके माता - पिता ने उसकी छोटी - सी - छोटी खुशी के लिए अपना स्वास्थ्य की ओर भी ध्यान नहीं दिया। निहारिका के पिता जी दिहाड़ी करके जो कमाते थे, वह पैसा मुश्किल से उनकी ज़रूरतें पूरी कर पाता। जैसे - तैसे निहारिका का बचपन गुजरा। दिन गुजरते गए और शाम डलती गई लेकिन उनकी गरीबी ज्यों की त्यों थी। गरीबी में ही रहकर और गरीब अवस्था को देख- देख कर निहारिका बड़ी हुई। वह घर की आर्थिक स्थिति से बहुत अच्छे - से वाकिफ थी। निहारिका के अतिरिक्त उसका न कोई छोटा भाई और न ही कोई बहन नहीं थी। वह अकेली मात्र अपने अभिभावकों की संतान थी।अपने पिता को अनथक मेहनत करते हुए उस ने देखा। उसके माता - पिता बड़ी मुश्किल से उसे पढ़ा - लिखा रहे थे। वह भी उसी में उतना संतुष्ट रहती, जितना उसे मिल जाता। अन्य सांसारिक वस्तुयों की उसे कोई अभिलाषा नहीं थी।

महाविद्यालय में पढ़ते हुए कई उच्च घरों के विद्यार्थी उसकी गरीबी वाली अवस्था को देखकर उसका नित्य उपहास उड़ाते रहते लेकिन यह गरीबी उसकी किस्मत की विवशता थी। वह एक दिन इस निर्धन परिस्थिति को बदलने का संकल्प लेती है। अपनी तरफ से भरपूर कोशिश करती है। लेकिन उसके भाग्य में कुछ ओर ही लिखा था। उसकी शादी की चर्चा होने लगी. उसके गरीब माता - पिता उसके लिए अच्छा - सा वर ढूंढकर खुद चिंतामुक्त होना चाहते थे। वे अक्सर यही सोचते रहते कि बेटी की शादी के बाद उनका बुढ़ापा जैसे - तैसे गुजर ही जाएगा। वे अपने मन का बोझ हल्का करना चाहते थे ताकि समय रहते निहारिका की अच्छे - से घर में शादी हो जाए। उसके रिश्ते के लिए माता - पिता अपने परिचितों से कहते रहते। स्नातक शिक्षा ग्रहण करने के बाद उसकी आगे पढ़ने की इच्छा अधर में ही लटक जाती है। उसकी शिक्षा के प्रति अपूर्ण इच्छा उसकी गरीबी की देन है या किस्मत की, यह बात अब तक उसकी समझ से परे थी। वह चुपचाप गृह कार्य सीखने में मग्न हो जाती है। अपनी किताबों को सुनहरी कागजों में समेटकर अपने कमरे के एक कोने में रख देती है। इन्हीं किताबों की तरह उसकी इच्छा भी सुनहरी कागजों के रूप में बंदी रही। अपने माँ - बाप की बेबसी के आगे वह मजबूर रही इसलिए शादी के बंधन में बंधने के लिए इंकार न कर सकी।

एक दिन कुछ जन निहारिका के लिए रिश्ता लेकर आए। उन्हें लड़के के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई। वे जन लड़के एवं उसके पारिवारिक सदस्यों के प्रति तारीफ़ की बरसात किए जा रहे थे। निहारिका के भोले - भाले माँ - बाप कुछ क्षण के लिए पिघल जाते हैं। उन्हें आभास होता है कि उनकी इकलौती बेटी उनके घर खुश रहेगी। लड़के वाले मध्य परिवार से संबंधित थे और वह लड़का सरकारी नौकरी करता था लेकिन निहारिका को यह रिश्ता ना - पसंद रहा क्योंकि लड़के के पास सरकारी नौकरी होने के बावजूद, अच्छा - खासा कमाने के बावजूद वे उसके गरीब परिवार के समक्ष उच्च घरेलू मांगें रख रहे थे। वह ऐसे लालची एवं दहेज लोभी लोगों के साथ बंधन में नहीं बंधना चाहती थी, इसलिए उस ने यह रिश्ता ठुकरा दिया। परन्तु उसके माँ - बाप को अपनी इकलौती संतान लड़की के भविष्य की चिंता खाई जा रही थी। निहारिका के पास सीमित साधन होने के कारण उसके सपने कटी पतंग से रहित उस डोर समान ही रह गए। वह तीक्ष्ण बुद्धि एवं प्रतिभा संपन्न लड़की थी। नैतिक गुणों की मालकिन निहारिका बस अपनी गरीबी को ही कोसती रहती लेकिन उसके मन में समाज कल्याण की भावना कूट - कूट कर भरी थी। अपने इसी सोच के कारण वह सबसे अलग थी। वह साधन सम्पन्न लोगों से बिलकुल विपरीत थी. ऐसी संतान पाकर उसके माँ - बाप खुद को धन्य समझते थे। निहारिका पढ़ाई खत्म होने के बाद घर के घरेलू कार्य में अपनी माँ का हाथ बंटाने में लग गई। गृह कार्य से मुक्त होकर अकेली अपने आँगन में चिंतन मग्न रहती। निहारिका जिस बस्ती में रहती थी, वहां अनगिनत बीमारियां का दौर शुरू हो गया। इन गंभीर बीमारियों से बस्ती वाले बेहद चिंतत रहते क्योंकि वे आर्थिक पक्ष से इतने मज़बूत नहीं थे कि अपना किसी अच्छे - से अस्पताल में उपचार करवा सकें। बड़े - बड़े तथा महंगे अस्पतालों में महंगा इलाज उनकी क्षमता से बाहर था। बस्ती वालों के पास परहेज करने के अतिरिक्त बीमारी से बचने का अन्य कोई उपाय नहीं था। उनसे जितना हो सके, गंभीर बीमारियों के आघात से दूर रहने की कोशिश करते रहते । बस्ती में बरसात के दिनों में यह समस्या ओर भी गंभीर रूप धारण कर लेती है जिसके कारण वहां रहने वालों को किसी सुरक्षित स्थान की तलाश करनी पड़ती थी।

निहारिका का परिवार भी इन्हीं बस्ती वालों में से एक दुखी परिवार था। अपनी आर्थिक स्थिति ढीली होने के बावजूद वह पढ़ - लिखकर इतना काबिल हो गई थी कि उस ने बस्ती वालों को मौसम के बदलाव के कारण आने वाली घातक बीमारियों से निजात दिलवाने का प्रण ले लिया था। सबसे पहले उस ने अपनी जान - पहचान के कुछ जनों से इस समस्या से संबंधित जानकारी विस्तार से एकत्रित की ताकि बेहतरीन तरीके से विश्लेषण करके इस भयंकर परिस्थिति का मुकाबला किया जा सके और गरीब बस्ती वाले परिवर्तित मौसम में भी सुकून की जिंदगी व्यतीत कर सकें। अन्य विभिन्न स्रोतों से जानकारी प्राप्त करके निहारिका इस समस्या की जड़ तक जाने के लिए मग्न हो के शोध करने में जुट गई। वह पूरी बस्ती में अकेली ही इस काम को अंजाम देने में अपने राह पर आगे बढ़ती जा रही थी। अपनी अज्ञानता के कारण और खुद को अधिक चतुर समझने के कारण ऐसे कुछ लोग निहारिका पर कटाक्ष कसते रहते। लेकिन वह उनके हीनता एवं कटु शब्दों से डगमगाई नहीं बल्कि अपने द्वारा लिए हुए प्रण को साबित करने के लिए तथा बस्ती वालों को बेहतर स्वस्थ सुविधा मुहैया करवाने के लिए अपने प्रयासों में अधिक - से - अधिक गतिशीलता लाने लगी। अपने गृह कार्यों को निपटाकर वह तुरंत रोजाना अपने शोध कार्य में जुट जाती थी।

जैसे - जैसे दिन गुजरते गए , निहारिका को अपने द्वारा किए गए शोध कार्य में गंभीर समस्या से निजात पाने के लिए एक आशा की किरण नजर आने लगी। वह अकेली ही डटी रही. दूसरों के चंद कटु कटाक्ष से वह घबराई नहीं। पर इन बीमारियों से छुटकारा दिलाने के लिए निहारिका को अपने साथ कुछ सहयोगियों की आवश्यकता पड़ गई क्योंकि यह समस्या अब केवल बस्ती वालों के लिए ही अभिशाप नहीं थी बल्कि अब इस राक्षस रूपी समस्या ने अपने घेरे में आस - पास के क्षेत्रों, विभिन्न शहरों से लेकर गाँव तक को कैद कर लिया था। निहारिका ने मौसम बदलाव के कारण विभिन्न उत्पन्न होने वाली बीमारियों से छुटकारा दिलाने का स्वयं से वचन किया था और अब वह पीछे मुड़कर अपनी मेहनत पर ऐसे ही कमजोर बनकर पानी नहीं फेरने देना चाहती थी इसलिए उस ने पहले घर - घर जाकर अभियान चलाया। कुछ दिनों के बाद उसके साथ एक ऐसा समूह एकत्रित हो गया जो सामाजिक कार्यों एवं समाज कल्याण में सच्चे हृदय से अपनी नैतिक भूमिका निभाने में काबिल रहा। निहारिका बड़ी ही सूझ - बुझ से अपनी योजना को एक नया रूप देने के लिए जी - जान से जुट गई। उसके अच्छे विचारों के कारण एवं उसकी इस नई पहल में उसका साथ देने के लिए कुछ सूझबुझ वाली लड़कियां उसके समूह का हिस्सा बनने को तैयार हो गईं। अब निहारिका का हौसला अधिक बढ़ने लगा। उसकी बढ़ती हिम्मत को देखते हुए शहरों और गाँव के लोग उसका हौसला बढ़ाने लग गए। अपने काम के प्रति उसकी उत्सुकता उसे निरुत्साहित करने वालों के विपरीत उसे निडर हो के अपने नैतिक रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित कर रही थी। पहले बस्ती वाले उसे निरुत्साहित करने का कोई मौका नहीं छोड़ते थे लेकिन अब वही लोग उसे अपनी बस्ती की शान कहने लगें। अपनी बेटी के लिए इतना सम्मान देखकर उसके माँ - बाप की आँखों में अलग ही चमक रहती। इतनी हुनर वाली लड़की, गुणों से भरपूर संतान पाकर उसके अभिभावकों के चेहरे पर हमेशा मुस्कान रहती थी लेकिन उसके विवाह की भी चिंता उन्हें सताती रहती। निहारिका अपने काम में इतना मग्न रहती थी कि अब उस ने शादी के बारे में सोचना बिलकुल बंद कर दिया।

यहां गंभीर बीमारियां लोगों पर गहरा नकारात्मक प्रभाव डाल रही थीं, वहीं दूसरी तरफ ये बीमारियां पशुयों पर भी हमला कर रही थीं। सड़कों पर दौड़ते विभिन्न तरह के वाहन, धुआं उगलतीं डीजल एवं पेट्रोल चलित गाड़ियां, पेड़ों की कटाई के कारण नन्हें पंछीयों के चकनाचूर होते घोंसले, बुजुर्गों की श्रवण शक्ति को प्रभावित करतीं चीख - पुकार चलित गाड़ियां , जगह - जगह कूड़े - कर्कट के ढेर के कारण मनुष्य, पशुयों और नन्हें प्यारे पंछीयों पर गहरा घातक असर हो रहा है। यह प्रदूषण भी अनेक बीमारियों का एक हिस्सा है, जो दिन - प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं, जिसे जानते हुए भी इंसान नजरअंदाज कर रहा है। यह गंभीर मुद्दा अब बड़ा विशाल रूप धारण करता जा रहा था। निहारिका और उसकी टीम ने लोगों को इस बड़ी समस्या से निजात दिलाने के लिए कमर कस ली। ज़रा - सी भी ढील भारी तबाही को नन्योता देने के बराबर है। अपने एक - एक सेकंड को कीमती समझते हुए निहारिका ने सामाजिक कल्याण के लिए काम करने वाली एनजीओ से संपर्क किया। वह गैर - सरकारी संगठन ऐसे कार्यों में अपनी अहम भूमिका अदा करता रहा है। इसलिए निहारिका ने उनसे गंभीर मुद्दों के बारे में बातचीत करके जल्द - जल्द खतरनाक बीमारियों का निपटारा करना चाहती थी।

कूड़े - कर्कट वाले ढेर को पशु ऐसे ही निगल जाते हैं। कुछ लोग ऐसे पशुयों को आवारा छोड़ देते हैं जिनके कारण न केवल इन्हें नुकसान होता है बल्कि आस - पास रहने वाले हर व्यक्ति को भी दिक्क़त होती है। प्लास्टिक के कारण पर्यावरण, वन्य जीवों और लोगों के लिए सबसे बड़ा खतरा है। वन्य जीव नदियों का पानी पीते हैं जिसमें तरह - तरह की गंदगी के ढेर मौजूद होते हैं और ये ढेर उनके लिए हानिकारक सिद्ध होते हैं। ये मुख्य रूप से प्रदूषण के स्तर को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार हैं। लोग खाद्य और पेय पदार्थों का सेवन करके प्लास्टिक रूपी चीज़ों को सड़क के किनारे फेंक देते हैं, जो अनगिनत बीमारियों को निमंत्रण देते हैं। प्रशासन द्वारा एक बार उपयोग होने वाले प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाए हुए कई साल गुजर गए लेकिन अभी भी यह पर्यावरण के लिए घातक समस्या बनी हुई है। पाबंदी के बावजूद सरकारें सिंगल यूज़ प्लास्टिक पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने में कामयाबी हासिल नहीं कर पाईं। निहारिका अब प्लास्टिक से प्रभावित पर्यावरण के हित के लिए ठोस कदम उठाने का बीड़ा उठाती है। निहारिका का कहना था कि किसी भी तरह का प्लास्टिक जिसे रिसाइकिल में परिवर्तित नहीं किया जा सकता,उस पर पूरी तरह से प्रतिबंध लागू होना चाहिए। प्लास्टिक के रिसाइकिल के आधार पर ही नीति निर्धारित करनी चाहिए। उस ने गैर - सरकारी संगठन के सामने अपना परामर्श रखा कि प्रशासन को प्लास्टिक के उत्पादन को रोकने के लिए बड़ी गहनता से सोच - विचार करना चाहिए। यह केवल सोचने विचारने तक ही सीमित न होकर असल में इस योजना पर तुरंत भ्रष्ट रहित करवाई करके लोगों को उनके आस - पास के प्रदूषित वातावरण से निजात दिलवाकर स्वच्छ पर्यावरण प्रदान करना चाहिए ताकि वर्तमान युवा पीढ़ी एवं आने वाली पीढ़ी को किसी भी प्रकार की गंभीर बीमारी का शिकार न होने पड़े। प्लास्टिक की खपत पर लगाम लगानी चाहिए। इसकी खपत की वजह से खामियाजा बच्चों, युवाओं और बड़ों को भुगतना पड़ता है जो उनके स्वास्थ्य को बीमारी तथा रोग के रूप में प्रभावित कर रहा है।नि

निहारिका ने सबसे पहले अपनी टीम और एन. जी. ओ. की सहायता से इस पहल की ओर कदम बढ़ाया। लोग समुन्द्र तटों पर भी शीतल पेय बोतलों को और इनके ढकनों को फेंक देते हैं। इन प्लास्टिक बोतलों की बिक्री अधिक होती है। निहारिका और उसकी टीम द्वारा गुटखा, तम्बाकू और पान मसाला के भंडारण, पैकिंग, बिक्री के लिए इस्तेमाल की जाने वाली प्लास्टिक सामग्री का उपयोग करने वाले पाउच पर प्रतिबंध लगाने के लिए सर्वव्यापी अभियान चलाया । उस ने अनेक वासियों के लिए संजीवनी के रूप में काम किया और हर तरफ से सब उसका मनोबल बढ़ा रहे थे। निहारिका की सामूहिक टीम ने पता लगाया कि केंद्र तथा राज्य सरकारें द्वारा लागू प्लास्टिक यूज़ को लेकर कानून बहुत छोटा- सा है। प्लास्टिक कैरी बैग पर प्रतिबंध लगा हुआ है लेकिन इस बात का पालन लोगों द्वारा न - मात्र किया जाता है। उस ने अपने टीम के सदस्यों से मिलकर घर - घर जाकर और सोशल मीडिया के माध्यम से प्लास्टिक सामग्री का उपयोग सीमित करने के लिए जोर दिया क्योंकि इसे प्रतिबंधित करने से न लोगों के स्वास्थ्य को कोई नुकसान पहुंचेगा और न ही पशुयों को। अभी भी सरकार को प्लास्टिक रणनीति पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है ताकि आने वाले समय में इसका कोई विपरीत असर भयानक रूप न धारण कर ले। अब निहारिका की पहचान समाज में सामाजिक कल्याण कार्यकर्ता के रूप में होने लगी। वह अन्य लोगों के लिए एक प्रेरणा बनकर उभरी जिसकी चर्चा स्थानीय मंच से लेकर ऑनलाइन मंचों पर होने लगी। अनेक नैतिक मंचों द्वारा उसे आमंत्रित करके सम्मान दिया गया जिसकी प्रसन्नता को प्रगट करने के लिए शब्दों के भंडार भी कम पड़ जाए। अब हर कोई निहारिका को उसके द्वारा समाज कल्याण के पक्ष में किए गए कार्यों के लिए पहचानने लगा। निहारिका ने अपने लक्ष्य को पाने के लिए गंभीरता से प्रयास किए।अपनी जिंदगी के बदलते इस रूप को देखकर वह स्वयं अपनी इस खुशी को अपने अभिभावकों से सांझा करती थी। निहारिका ने अपने आस - पास के वातावरण को निहारने का उचित एवं नेक कार्य किया। उसके जज्बे को देखकर अन्य लोग अपनों बच्चों को भी उसकी तरह हौसलें बुलंद रखने के लिए उस का ही उदाहरण प्रस्तुत करते थे।

निहारिका के लिए अब रिश्तों की कमी नहीं थी। उसकी प्रसिद्धि को देखकर उसे बड़े - बड़े घरों से लड़कों के रिश्ते आने लगें। उसके माँ - बाप बूढ़े होते जा रहे थे। वे जल्द - से - जल्द निहारिका की अच्छे - से घर में शादी करके स्वयं चिंतामुक्त होना चाहते थे। जाने - माने लोगों से लेकर गरीब से गरीब इंसान भी उन्हें मिलने आता रहता और उनके घर में चहल - पहल लगी रहती। निहारिका के गुणों की गूंज सोशल मीडिया के माध्यम से हर गली, हर मोहल्ले, हर गाँव, हर शहर में चहक रही थी। उसके लिए अनगिनत रिश्तों की लाइन लगने लगी। पहले जो लोग उसकी गरीबी देखकर मुँह मोड़ लेते थे और निहारिका को कॉलेज के दिनों में उसके सहपाठियों द्वारा गंवार शब्दों से संबोधन किया जाता था, अब वही लोग उसकी प्रशंसा किए बिना थकते नहीं। बदलते समय, गरीब और बेरोजगार की अचानक बदलती तकदीर देखकर लोग उसे सम्मान की नजरों से निहारने लगें। गरीब तथा बेरोजगार इंसान की कदर तब तक नहीं की जाती जब तक वह दूसरों पर निर्भर रहता है और कुछ लोग गरीबी जैसा अभिशाप झेल रहे होते हैं। बढ़ती बेरोजगारी और बढ़ती लाचार गरीबी , यह भाग्य की देन है जिसे हर इंसान अनेक दुख पाकर सहन करता है। निहारिका के माता - पिता को इस बात का आभास था कि उनकी बेटी को यह पहचान उसकी समाज कल्याण के प्रति श्रद्धा एवं लग्न से किए गए कार्यों की बदौलत मिली है जिसकी वह हकदार थी। वह महत्वपूर्ण कौशल, अनुभव और उच्च विचारों से लिप्त थी।

गिने - चुने रिश्तों के बारे में निहारिका को अवगत कराया गया। अच्छे घर तथा अच्छे लड़के का चयन की जिम्मेदारी उस ने अपने माँ - बाप को सौंप दी। उसके मुख से ऐसे शब्दों को सुनकर उसके अभिभावकों का हृदय प्रफुल्लित हो गया। उनके नसीब में ऐसी संतान उनके पूर्व जन्म के कर्मों की देन थी। बहुत - से रिश्ते देखने के बाद आखिरकार उन्हें अनुज नाम का लड़का बेहद पसंद आया जो रहन - सहन में सादगी से भरपूर था। उसकी बोलचाल सुनने वाले के हृदय को जीत लेती थी। अनुज के इस नेक व्यवहार से निहारिका भी बहुत अचंभित रहती और ऐसा खूबसूरत रिश्ता पाकर खुद का सौभाग्य मान बैठी थी। अनुज को निहारिका अति पसंद थी। दोनों की तरफ संकेत मिलने पर दोनों के परिवारजनों ने इस सुनहरे रिश्ते की बात को आगे बढ़ाने की सोची। तय दिन निश्चित करके दोनों का उत्साहपूर्वक विवाह कर दिया गया। अब निहारिका के अभिभावक चिंतामुक्त हो गए थे। निहारिका भी बहुत खुश थी। उसकी खुशी उसके चेहरे की मुस्कान बयां कर रही थी। अनुज भी प्रसिद्धी प्राप्त ऐसी हमसफर पाकर धन्य हो गया क्योंकि वह सोच - समझ के पक्ष से गुणों से भरपूर सुशील लड़की थी। ऐसी लड़की को जिंदगीभर की हमसफर बनाने की हर युवा इच्छा रखता है।

निहारिका और अनुज का जीवन खुशहाल व्यतीत हो रहा था। दोनों के घरवाले भी उन दोनों की वैवाहिक जिंदगी से बहुत प्रसन्न थे। शादी कुछ समय पश्चात निहारिका गर्भवती हो गई। इस नाजुक समय के दौरान अनुज उसका बहुत ध्यान रखता। उनकी झोली में फिर से नई खुशियाँ आने वाली थीं। उनके जीवन में एक नया मेहमान और घर से एक नया सदस्य जुड़ने वाला था। निहारिका ने शादी के बाद भी समाज के लिए भलाई कार्य नहीं छोड़े। गर्भवती अवस्था में भी वह कार्य करने में मग्न रही। उसकी लग्न को देखकर हर कोई उसकी प्रशंसा करता रहता और हर तरफ उसकी वाहवाही होती रहती। उसे हर जगह एक बेटी तथा एक बहु के रूप में उसके द्वारा पूर्व समय में विवाह से पहले किए गए और शादी के पश्चात भी किए जा रहे नेक कामों के लिए जाना जाता था। अनुज उसे कुछ समय के लिए सामाजिक कार्यों से छुट्टी लेने की इच्छा व्यक्त करता है, जिसे निहारिका खुशी - खुशी स्वीकृत करते हुए अपने कार्यों से कुछ माह के लिए अवकाश ले लेती है। फिर निहारिका और अनुज की जिंदगी में वह सुनहरी दिन आ जाता है जब वह एक बेटी को जन्म देती है। बेटी के जन्म लेने पर घर में खुशियों की गूंज फिर से गूंजने लगी। उस ने अपनी नन्ही बेटी का नाम तन्वी रखा। बच्ची की देखभाल के लिए निहारिका ने कुछ ओर माह छुट्टी के लिए आवेदन कर दिया जिसे सरकारी संस्था द्वारा स्वीकार कर लिया गया। उन्होंने अपनी पहली संतान बेटी का जन्मदिन सादगी से गरीब बच्चों सहित मनाया।अधिककर समय तन्वी के साथ गुजारने के कारण उसे वक़्त का पता नहीं चला। तन्वी को संभालते - संभालते निहारिका फिर से माँ बन गई और दूसरी बेटी को जन्म दिया। निहारिका और अनुज , यहां तक उन के परिवार वालों को भी बेटियों के जन्म लेने पर ज़रा - सा भी ऐतराज नहीं था बल्कि वे बहुत खुश थे। उन्होंने अपनी दोनों बेटियों को प्यार की छत्रछाया में रखा। उन्हें कभी किसी चीज की कमी नहीं आने दी। उनकी खुशहाल जिंदगी अच्छे - से गुजर रही थी लेकिन अचानक उनकी जिंदगी में भूचाल आ जाता है क्योंकि उन दिनों अचानक तन्वी के पिता जी की तबियत बिगड़नी शुरू हो गई। शुरू - शुरू में तन्वी के पिता जी ने अपने अस्वास्थ्य को नजरअंदाज किया। लेकिन ज़्यादा तबियत बिगड़ती देख उन्हें अस्पताल में दाखिल किया गया। उनकी खुशियों पर दर्द - दुखों का पहाड़ टूट पड़ा जब उन्हें अनुज की कैंसर जैसी भयानक बीमारी के बारे में डॉक्टर द्वारा परिचित करवाया गया। अनुज की छोटी - सी लापरवाही ने उसे कैंसर जैसे घातक रोग ने घेर लिया जिसका इलाज बहुत महंगा होता है। उनके पास पैसों की कोई कमी नहीं थी क्योंकि निहारिका और अनुज सरकारी कर्मचारी रहते हुए बदलते वक़्त के साथ आर्थिक पक्ष से बेहद मज़बूत हो गए इसलिए उन्होंने इस रोग का इलाज करवाने में ज़रा - सी भी ढील नहीं की। लेकिन जैसे ही अनुज की बीमारी संबंधित रिश्तेदारों और परिचितों को बताया गया तब सब उनसे धीरे - धीरे करके मुँह फेरने लगें। क्योंकि उन्हें इस बात का भय था कि कहीं निहारिका उन से पैसों की मांग न कर दे। सभी जान - पहचान वाले उनसे किनारे करने लगें जिसका धक्का सबसे ज़्यादा निहारिका को लगा। जब लोगों के समक्ष निहारिका की दौलत - शोहरत की किलकारी गूंजती रही तब तक सब उसे वाहवाही का ख़िताब दे रहे थे। लेकिन जैसे ही निहारिका पर संकट आया, सभी किसी न किसी बहाने उससे किनारे करने लगें। अनुज के माता - पिता कुछ करने में समर्थ नहीं थे। वे बुजुर्गों वाली अवस्था में अपने आखरी पड़ावों की सांसों को व्यतीत कर रहे थे। इस उम्र में अनुज को कैंसर रोग ने ऐसा झपटा मारा कि दिन - प्रतिदिन, हर शाम, हर रात बहुत मुश्किल से गुजर रही थी।

अनुज बिस्तर से चिपका रह गया। वह न ढंग से भोजन खा पाता था और न ही सुकून से आराम कर पाता था। अपने पति को इस पीड़ा में देखकर निहारिका का हृदय बहुत दुखी हो जाता और आँखों से पानी बरसात के मौसम की तरह टपकता रहता। यह दृश्य तन्वी और उसकी छोटी बहन तारा अपनी आँखों से देखती रहती और निहारिका उन्हें हमेशा झूठा दिलासा देती रहती कि तुम्हारे पिता जी जल्द ही स्वस्थ हो जायेंगे। तन्वी और तारा, रोज अपनी माँ को रोते हुए देखती रहतीं। वे अपनी माँ की तक़लीफ़ को महसूस करती थीं लेकिन वे दोनों बेटियां अपनी माँ को हौंसला देने में असमर्थ थीं क्योंकि तन्वी और तारा अभी बालपन अवस्था में थीं। निहारिका की दिनचर्या अनुज, बच्चों और सास - ससुर को संभालने में गुजरती रही। वह हर दिन एक उम्मीद रखती कि कभी तो अनुज पुन : अवस्था में आएंगे और पहले की तरह उनकी जिंदगी खुशियों से रंगीन होगी। परंतु इस रोग ने उनके परिवार की मुस्कान छीन ली, जिसका पूर्व आभास किसी को भी नहीं था। निहारिका में यह सब झेलने की सहनशीलता बहुत थी। वह शुरू से ही निडर रही जिसकी बदौलत उसे जाने - माने लोगों के बीच नई पहचान मिली थी और उसे हर कोई इंसान बखूबी जानता था लेकिन यह विपदा आते ही रिश्तेदारों और जानकारों के असली चेहरे सामने आ गए जब सभी निहारिका से दूर होने लगें। यह नजरअंदाजगी निहारिका को कमजोर नहीं कर पाई। अकेले ही संभालने वाली निहारिका जैसी सहनशीलता हर इंसान में नहीं होती। उसकी जगह कोई ओर महिला होती तो शायद अनुज की बीमारी सुनकर उसे सदा के लिए रोता हुआ छोड़कर चली जाती लेकिन निहारिका ने शादी के बंधन में बंधते वक़्त जो वचन दिया था उसे वह बहुत अच्छे एवं सलीके से निभा रही थी। एक तरफ अनुज का इलाज चल रहा था और दूसरी तरफ तन्वी और तारा का स्कूल में एडमिशन करवाकर उनकी शिक्षा सहित वह घर की ओर भी कई जिम्मेदारियों में अपनी भागीदारी खूब अच्छे - से निभा रही थी। अपनी जिम्मेदारियों को निभाते समय निहारिका ने ज़रा - सी भी झिक - झिक नहीं की। अनुज ऐसी जीवनसंगनी पाकर खुद को बहुत भाग्यशाली समझता था। मुश्किल की इस घड़ी में उस ने उसका साथ नहीं छोड़ा। जैसे - तैसे करके निहारिका ने अनुज का साथ निभाया और उसके घर को भी संभाला।

कुछ दिनों के बाद अनुज की तबियत पहले से ज़्यादा बदतर होने लगी। जितना पैसा उनके पास था, सब अनुज पर ही खर्च हो गया। धीरे - धीरे उनकी आर्थिक स्थिति कमजोर होती जा रही थी। निहारिका के लिए अब यह मोड़ भी किसी गंभीर चिंता से कम नहीं था।उस ने परिजनों एवं जान - पहचान वालों से मदद भी मांगी लेकिन सभी निहारिका को मना करते गए। वह अंदर ही अंदर टूटती जा रही थी। निहारिका के माता - पिता उसे सहानुभूति देने के सिवा कुछ नहीं कर सकते थे। वे अपनी आँखों के सामने निहारिका को टूटते - बिखरते हुए देखे जा रहे थे। वे चाहते हुए भी अपनी बेटी की सहायता करने में नाकाम रहे। निहारिका ने मुश्किल वक़्त में जिस इंसान को भी मदद की ज़रूरत होती थी, वह बिना कुछ सोचे - समझे मदद कर देती थी किन्तु जब उसके ऊपर दुखों का संकट आया तब उसकी कामयाबी की तारीफ़ करने वाले ही उसे विभिन्न तरीकों से उसकी आर्थिक स्थिति को मजाक का पात्र करार देकर उसकी पीठ पीछे तरह - तरह के कटाक्ष फेंककर अपने बेईमान मन को कुछ समय के लिए मनोरंजन प्रदान कर रहे थे। वे लोग सामने से निहारिका को झूठा दिलासा दे रहे थे। पर उन्होंने उसके हालातों का भरपूर उपहास उड़ाया। इस मुश्किल घड़ी में उसकी आर्थिक मदद करने वाला कोई न था। निहारिका ने समाज कल्याण के लिए अनेक नेकी कार्य किए परंतु वक़्त के साथ उसके भाग्य ने ऐसी पलटी मारी कि हर परिचित उससे दूरियाँ बढ़ाने लगा। जैसे - जैसे दिन बीतते जा रहे थे , निहारिका की मुश्किलें बढ़ती ही जा रही थीं क्योंकि अनुज की बीमारी अपनी आखरी पड़ाव पर कदम पसार चुकी थी यहां पर आकर इंसान की जान बचना बेहद मुश्किल हो जाता है। अनुज को ऐसे तड़पते देख उसके माता - पिता की आँखों से आंसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे। वे भगवान से अपने बेटे के स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना करने के अतिरिक्त कुछ नहीं कर सकते थे।

फिर एक दिन निहारिका, अभिभावकों तथा बच्चों को गहरा धक्का लगता है जब उन्हें डॉक्टर द्वारा अनुज के देहांत के बारे में अवगत करवाया जाता है। पूरा परिवार पूरी तरह से टूट चुका था। निहारिका के लिए दुख की यह कठिन घड़ी पहले से ही बिजली की तरह उस पर बरस पड़ी थी। उनकी आँखों से आंसूयों की धारा थमने का नाम नहीं ले रही थी। शोकसभा पर निहारिका को झूठा दिलासा देने वालों की लम्बी कतारें लगने लगीं जिन्होंने उसकी आर्थिक पक्ष से कोई सहायता नहीं की। वह अपने पति अनुज को बचाने के लिए आर्थिक मदद की गुहार लगाती रह गई और दूसरी तरफ मौत उनके द्वार पर दस्तक देकर उससे अनुज को सदा के लिए छीनकर ले गई। वह रोती - बिलखती रह गई। अनुज जिंदगी और मौत के दरमियान अपनी जिंदगी की जंग लड़ रहा था। उसकी मौत निहारिका और अभिभावकों के लिए दुखदायी क्षण और उसकी मौत बाकी सभी के लिए सिर्फ शोकसभा में आमंत्रण दे रही थी. अनुज की दर्दनाक मौत का सदमा उसके बूढ़े माता - पिता सहन न कर पाए और वे भी दोनों इस दुनिया से एक - एक करके निहारिका को अकेला छोड़ गए। कुछ दिन गुजर जाने के बाद निहारिका को ज्ञात हुआ कि उसे अपनी दोनों बेटियों के सुनहरे भविष्य को संवारने के लिए जीना होगा। निहारिका ने फिर से जिंदगी को एक नया मोड़ देने के लिए छोटी - सी जॉब प्राप्त कर ली। पहले जहाँ वह सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में काम कर रही थी, वहां से उसे आर्थिक पक्ष से कमजोर औरत का नाम करार देकर बिना किसी कारण विभाग से बर्खास्त कर दिया गया। यह दुनिया उसी इंसान से हाथ मिलाती है, उसी को तवज्जो देती है, उसे ही सम्मान देती है जिसकी आर्थिक पकड़ मज़बूत हो। निर्धन से हर कोई किनारा करता है जैसा निहारिका के साथ हीन भावना वाला व्यवहार किया गया। ऐसे लोग ख्याति प्राप्त इंसान को सलाम नहीं करते बल्कि उसकी दौलत का अंदाजा लगाकर उसे सम्मान देते हैं, भले ही अंदरूनी पक्ष के आधार पर वह दुष्ट इंसान हो। नकारात्मक इंसान को वह सम्मान दिया जाता है, जिसका हकदार निहारिका जैसी बुद्धिमान को देना चाहिए। लेकिन वे सभी उसके नेक कामों के लिए नहीं बल्कि निहारिका की ऊँची पहुँच और उसकी शानो - शौकत को देखकर ही उससे लगाव रखते थे। जिनका असली मनरूपी मैला पर्दा उसी दौरान खुल गया था, जब मुश्किल समय में निहारिका ने बेईमान लोगों से मदद की गुहार लगाई थी। अब लोगों के बदलते व्यवहार को देखते हुए निहारिका ने पिछला सब कुछ भुलाकर वर्तमान में आगे बढ़ने का फैसला किया, जिसका समर्थन उसके अभिभावकों ने किया।

उस की बड़ी बेटी तन्वी घर के हालातों को समझने के काबिल हो चुकी थी। वह हर परीक्षा के दिनों में स्कूल में प्रथम आती रही। अपनी माँ की वित्तीय सहायता करने के लिए उस ने 10वीं कक्षा में उत्तीर्ण करने के बाद गली - मोहल्ले के बच्चों को ट्यूशन देना चालू कर दिया। निहारिका को अपनी बेटी के रूप में एक मज़बूत आर्थिक सहायक नजर आया और उसकी उम्मीदें फिर से जगने लगीं। निहारिका ने अनुज और सास - ससुर के गुजर जाने के बाद अनेक छोटे - मोटे काम करने शुरू कर दिए थे ताकि अपनी बेटियों को बेहतर शिक्षा दे सके। वह सदा तन्वी और तारा को पढ़ने के लिए प्रेरित करती रही और खुद काम करने में कोई कसर नहीं छोड़ती थी। कोई भी काम छोटा ही भले हो लेकिन निहारिका पूरी लगन से अपने द्वारा किए गए काम को बेहतर अंजाम देती रही। कुछ समय के बाद निहारिका की तबियत खराब हो गई। स्वास्थ्य का संतुलन बिगड़ने के कारण उसे अपने कार्यों को छोड़ना पड़ा क्योंकि वह अधिक काम करने के कारण दुर्बल होती जा रही थी और अपने स्वास्थ्य को नजरअंदाज करती रही। वह एक साल तक घर पर ही रही और कोई भी काम करने में असमर्थ थी। तन्वी और तारा,घर का काम दोनों मिलकर कर लेती थीं। वह अपनी माँ का छोटी - सी उम्र में सदा सहारा बनकर रहीं। एक साल बीत जाने के बाद निहारिका ने घर से ही भोजन सेंटर चलाने की शुरुआत की। उसे अनेक स्वादिष्ट व्यंजन बनाने का शौक था। उसके द्वारा बनाए पकवान की हर इंसान तारीफ करता था। उसके द्वारा बनाए गए पकवानों की बढ़ती बिक्री ने निहारिका को हर तरह से उसे प्रोत्साहित किया। बढ़ती आमदनी से वह अपनी दोनों बेटियों को उच्च विश्वविद्यालय में शिक्षा दिलवाने में कामयाब रही। जहाँ तारा एक डॉक्टर के रूप में अस्वस्थ लोगों का बेहतर इलाज एवं गरीबों का मुफ्त में उपचार कर रही थी, वहीं पर तन्वी सरकारी बैंक में उच्च पद पर अपनी सेवाएं प्रदान कर रही थी। तारा और तन्वी को इस मुकाम पर देखकर निहारिका की खुशी उसकी आँखों में झलक रही थी। उसकी दोनों बेटियों ने अपनी माँ के लिए एक मंदिर जैसा घर बनाया, जहाँ वे तीनों खुशी से मिल-जुलकर रह रही थीं। तारा और तन्वी को आत्मनिर्भर बनने के बाद अच्छे - खासे बड़े घरों से रिश्ते आने शुरू हो गए। निहारिका को गुजरे वक़्त के दौरान इन बड़ों लोगों के व्यवहार की अच्छी परख हो गई थी। वह अपनी तारा के लिए ऐसे वर की इच्छा रखती थी जो उसकी बेटी से उसकी दौलत से नहीं बल्कि मन में बिना किसी लालच को पाले हुए तारा को जिंदगीभर खुश रख सके। उसकी दोनों बेटियां बहुत समझदार थीं इसलिए निहारिका ने अपनी बेटी को बेहतर हमसफ़र चुनने का मौका दिया। निहारिका ने अब तक अपनी बेटियों के हर फैसले पर साथ दिया। तारा ने अपने लिए उस शख्स को चुना जो उसे उसके रुतबे से नहीं बल्कि दिल से उसे चाहे और दुख - तक़लीफ़ से दूर खुशियों की कभी कमी न रहे। निहारिका ने अपनी तारा की शादी बेहद सादगी से की। अमीरों से लेकर गरीबों तक को दावत दी गई। इस शादी की प्रशंसा दूर - दूर तक की गई। निहारिका इतने दुख सहने के बाद अपनी बेटियों को हर सुख दे पाई, जितना उससे हो पाया। तन्वी और तारा, अपनी माँ से प्रेरणा लेकर समाज के लिए भलाई कार्य भी करती गईं। यहां पहले वह समाज कल्याण में भूमिका निभा रही थी , अब वह लोगों को अनेक तरह के स्वादिष्ट व्यंजन परोसकर उनकी भूख को शांत करती है। निहारिका और उसकी दोनों बेटियों को, उनके द्वारा किए गए भलाई कार्यों के लिए बड़े - बड़े प्रतिष्ठित मंचो पर सम्मानित किया गया।

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