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गौरतलब है कि अमेरिका को निर्यात होने वाले अधिकांश भारतीय सामानों पर अमेरिका ने 50 फीसदी टैरिफ लगा दिया है. स्पष्ट है, इससे भारतीय सामान अमेरिका के बाज़ारों में महंगे हो जाएंगे और उनकी मांग कम हो जाएगी. इसका सीधा असर भारत से अमेरिका को होने वाले निर्यात पर पड़ेगा. यहाँ यह उल्लेखनीय है कि भारत-अमेरिका का व्यापार पिछले कुछ वर्षों में तेजी से बढ़ा है. डोनाल्ड ट्रम्प का अमेरिका का राष्ट्रपति बनने से पहले भारत का अमेरिका को निर्यात रिकॉर्ड स्तर पर यानि 91.2 अरब डॉलर तक पहुँच गया था. भारत से अमेरिका को निर्यात किए जाने वाले वस्तुओं में मुख्यतौर पर टेक्सटाइल और कपड़े, रत्न और आभूषण, झींगा मछली, चमड़ा और इससे जुड़े उत्पाद, पशु उत्पाद, दवाइयां, रसायन, इलेक्ट्रिकल और मैकेनिकल आदि सामान हैं. भारत के कुल निर्यात में अमेरिका की हिस्सेदारी लगभग 20 फीसदी है जो भारत की अर्थव्यवस्था का केवल 2 फीसदी है. इनमें से 60 अरब डॉलर का यानि 66 फीसदी निर्यात परिधान, आभूषण, झींगा मछली, कालीन और फर्नीचर का है जिसपर पहले 3 फीसदी से कम टैरिफ था. अब इन सामानों पर 50 फीसदी अतिरिक्त टैरिफ लगेगा. इसके अलावा 4 फीसदी यानि 3.2 अरब डॉलर के वे सामान हैं जिसपर अतिरिक्त 25 फीसदी टैरिफ लगेगा. इसमें मुख्य रूप से ऑटो पार्ट्स आते हैं. बाकी बचे 30 फीसदी यानि 37 अरब डॉलर के सामान पर कोई अतिरिक्त टैरिफ नहीं लगाया गया है. इसमें स्मार्ट फ़ोन, दवाइयां और पेट्रोलियम उत्पाद शामिल हैं. ये वे उत्पाद हैं जिनसे या तो अमेरिका का हित जुड़ा है या फिर वहां के नागरिकों के जीवन और स्वास्थ्य के लिए अति-आवश्यक है.

अनुमान है कि ट्रम्प के भारी-भरकम टैरिफ से भारत में सबसे अधिक 50 फीसदी टैरिफ वाले सामान के निर्माण से संबंधित उद्योगों को नुकसान पहुँच सकता है. भारत में ऐसे उद्योगों से बड़ी कंपनियों से लेकर मझोले और छोटे कारोबारी भी जुड़े हुए हैं. नई लागू टैरिफ से जब अमेरिका में भारतीय परिधान, आभूषण, कालीन, फर्नीचर, झींगा आदि महंगे होंगे तो स्वाभाविक है कि वहां उसकी मांग घटेगी और फिर भारत से अमेरिकी व्यापारी आयात को घटा देंगे. इसका सीधा असर भारत में कंपनियों के उत्पादन पर पड़ेगा और कंपनियां अपने घाटे को कम करने के लिए कर्मचारियों की छटनी शुरू कर देगी. अगर ऐसा होता है तो उन उद्योगों से जुड़े कारीगर और कर्मचारी बड़ी संख्या में बेरोजगार हो जाएंगे. इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि इस सबका असर भारत की विकास दर पर भी पड़ेगा.

परन्तु कहा जाता है कि समस्या में ही समाधान छिपा होता है. फिर संकट से ही सबक भी मिलता है. टैरिफ संकट से भारत को भी सबक मिला है और वह यह कि किसी पर भी आँख मूंदकर भरोसा नहीं करना चाहिए. पिछले कुछ वर्षों के दौरान भारतीय नीति निर्माताओं ने भारत के प्रति अमेरिका के पुराने रवैये को पीछे छोड़ते हुए राजनीतिक और आर्थिक संबंधों को मज़बूत करने की दिशा में कदम आगे बढाए थे. परिणामस्वरूप दोनों देशों के संबंधों में गर्माहट आने लगी थी. कुछ वैश्विक मुद्दों पर मतभेदों के बावजूद व्यापार और रक्षा के क्षेत्र में दोनों देश कदमताल करने लगे थे. परन्तु इन संबंधों में अमेरिका का हित छिपा हुआ था. पहला तो यह कि भारत रूस से अपने रिश्ते को न्यूनतम स्तर पर ले जाए. दूसरा, चीन की आर्थिक और सैन्य शक्ति पर अंकुश लगाने के लिए भारत अमेरिका के हर कदम का समर्थन करे, चाहे वह जायज हो या नाजायज. परन्तु भारत किसी के झांसे में आए बिना अपनी स्वतंत्र विदेश नीति पर अडिग रहा. इसी बीच यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध शुरू हो गया और अमेरिका सहित पश्चिमी देशों ने यूक्रेन का पक्ष लेते हुए रूस पर व्यापारिक प्रतिबन्ध लगा दिए. तब रूस ने भारत और चीन जैसे अपने मित्र देशों को सस्ते तेल बेचने का प्रस्ताव दिया और भारत ने इस प्रस्ताव को सहर्ष स्वीकार कर लिया. इस प्रस्ताव को स्वीकार करने के लिए यूरोप के देशों की सहमति भी भारत के साथ थी. वजह था वैश्विक तेल बाज़ार में संतुलन. आज रूस का वही तेल भारत से रिफ़ाइन्ड होकर यूरोप के बाज़ार में जा रहा है. अगर ऐसा नहीं होता तो यूरोप में उर्जा संकट खड़ा हो जाता और विश्व बाज़ार में तेल की कीमत आसमान छूने लगती. और आज जब भारत दुनिया की अर्थव्यवस्था में संतुलन बनाए हुए है तब अमेरिका रूस से तेल खरीदने पर भारी-भरकम टैरिफ भारत पर लगा रहा है.

अमेरिका ने एक रणनीति के तहत भारत से आयातित उन वस्तुओं पर अतिरिक्त भारी-भरकम टैरिफ लगाया है जिसके उत्पादन में भारी संख्या में लोगों को रोज़गार मिला हुआ है. परिधान, आभूषण, कालीन, ये सब वो उद्योग हैं जहाँ श्रम बल सबसे अधिक है. अमेरिका जानता है कि इन उद्योगों की बर्बादी से भारत में बेरोजगारों की एक बड़ी फौज़ खड़ी हो जाएगी और देश में अराजकता का माहौल पैदा हो जाएगा. परन्तु शायद वह यह अनुमान लगाने में नाकामयाब रहा कि भारत के पास इस प्रकार के संकट से निपटने का आपातकालीन उपाय भी है और भारत सरकार ने उन उपायों पर अमल भी करना शुरू कर दिया है. उत्पादकों और निर्यातकों को फौरी राहत देने के उद्देश्य से भारत ने वस्तु और सेवा कर यानि जीएसटी में कटौती का प्रावधान किया है. इससे वस्तु का उत्पादन लागत कम हो सकेगा और निर्यात न हो सकने की स्थिति में घरेलू बाज़ार में एक्सपोर्ट क्वालिटी का सामान कम कीमत पर उपलब्ध हो सकेगा. वैसे अगर टेक्सटाइल व परिधान क्षेत्र की बात करें तो भारत में इसका अनुमानित कारोबार 179 अरब डॉलर का है. इसमें से घरेलू बाज़ार में खपत 142 अरब डॉलर का है और बाकी बचे 37 अरब डॉलर का निर्यात किया जाता है. ऐसे में संभव है कि एक्सपोर्ट क्वालिटी का सामान होने पर भारतीय उपभोक्ता स्वयं उस 37 अरब डॉलर के सामान का खरीददार बन जाए. अगर ऐसा होता है तो अमेरिका को निर्यात करने वाले निर्यातकों के नुकसान की भरपाई आसानी से हो सकती है. भारत जैसे विशाल बाज़ार में ऐसा होना कोई असम्भव भी नहीं है. वैसे भी भारत की अर्थव्यस्था अन्य देशों से भिन्न है. हमारी अर्थव्यवस्था की मजबूती में घरेलू खपत का बड़ा योगदान है न कि निर्यात का. सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 61.4 फीसदी घरेलू खपत से आता है.

भारतीय उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति बढ़ने की वजह से न केवल टेक्सटाइल व परिधान बल्कि रत्न-आभूषण, कालीन, हस्तशिल्प की वस्तुएं आदि की मांग भी घरेलू बाज़ार में बढ़ सकती है. मांग बढ़ाने में सरकार का ‘स्वदेशी अपनाओ’ अभियान काफी हद तक कारगर सिद्ध हो सकता है. दुनिया जानती है कि जब देशहित की बात आती है तब भारतीय एकजुट हो जाते हैं और यही एकजुटता हमारे लिए आपदा में अवसर पैदा करता है. अमेरिकन टैरिफ से आई आपदा का मुक़ाबला करने में केवल घरेलू उपभोक्ता ही देश की अर्थव्यवस्था को नहीं संभालेंगे बल्कि अन्य कई ऐसे रास्ते खुलेंगे जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था के सामने अवसर ही अवसर होंगे. हमारा देश खुद ही एक बहुत बड़ा बाज़ार है. चीन के बाद दुनिया की फैक्ट्री बनने की ओर भारत अग्रसर है. अनुसन्धान और विकास में हम दुनिया में पहले नंबर पर हैं. विकास दर में कोई देश हमारे आसपास भी नहीं है. ऐसे में कोई भी देश हमारे साथ व्यापारिक संबंध बनाने को आतुर होगा. यही अवसर है कि हम किसी एक या कुछ देशों के साथ व्यापार में निर्भर न रहें बल्कि अपने दायरे को बढ़ाएं और ‘मेक इन इंडिया’ को वैश्विक स्तर पर स्थापित करें.

वैसे भी भारत में त्यौहार सीजन शुरू हो चुका है और अगले दो महीने तक कई त्यौहार आएंगे. इस दौरान भारतीय लोग दिल खोलकर खरीददारी में खर्च करते हैं. ऐसे में सम्भावना है कि एक्सपोर्ट सरप्लस का बहुत सारा माल घरेलू बाज़ार में ही खप जाए. ऐसा होने पर निर्यात पर निर्भर रहने वाले व्यापारियों को बड़ी राहत मिलेगी. फिर दो महीने का समय सरकार और उद्योग संगठनों को भी मिल जाएगा कि वो कोई वैकल्पिक रास्ता निकाल सकें. सरकार और उद्योग संगठनों की ओर से इस दिशा में प्रयास भी शुरू हो चुके हैं. नए बाज़ार की तलाश की जा रही है. फ्री ट्रेड के लिए ब्रिटेन से समझौता हो चुका है. अन्य यूरोपीय और एशियाई देशों के साथ व्यापार बढ़ाने की दिशा में बातचीत जारी है. अपने निर्यातकों के हितों की रक्षा के लिए केंद्र की वर्तमान सरकार युधस्तर पर विकल्पों की तलाश कर रही है. आपातस्थिति में सरकार हितधारकों को वित्तीय सहायता भी मुहैया करा सकती है.

स्पष्ट है कि अमेरिकन टैरिफ से पैदा हुई आपदा वर्तमान समय में भारत के लिए एक चुनौती जरूर है, परन्तु इससे भारत सरकार को लंबी अवधि की रणनीति को और भी अधिक धारदार बनाने का अवसर भी मिला है. आत्मनिर्भरता, स्वदेशी अपनाने की मुहिम, जीएसटी में सुधार और वैश्विक स्तर पर नए बाज़ार की तलाश से बनने वाले नए समीकरणों के सहारे भारत न केवल इस टैरिफ आपदा को झेलने में कामयाब होगा बल्कि भविष्य के लिए एक नया रोड मैप बनाने में भी देश सक्षम हो सकेगा.

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