14 अगस्त 1947... हिंदुस्तानी की आजादी के बाद जब भारत को दो धड़ों में बांटा जा रहा था। तभी एक आवाज भारत के मुस्लिम आवाम के लिए दिल्ली की जामा मस्जिद की सीढ़ियों से सुनाई दी। यह वाक्य था कि... ‘’हे मुसलमानों कहां जा रहे हों.. ये हिंदुस्तान तुम्हारा है’’… जामा मस्जिद की सीढ़ियों से निकली यह आवाज किसी और के नहीं बल्कि भारत के पहले शिक्षा मंत्री भारत रत्न मौलाना अबुल कलाम आजाद साहब की थी, जिन्होंने भारत को एकजुट रखने क लिए सरदार पटेल जैसे नेताओं के साथ मिलकर मरते दम तक काम किए, लेकिन अविभाजित हिंदुस्तान के लिए दुर्भाग्य की बात ये था कि यहां की जमीन पर उस वक्त कुछ विश्वासघात करने वाले लोग भी थे। जो अपने स्वार्थी मंसूबों को पूरा करने के लिए धर्म के नाम पर भारत को बांटने का काम किए।
‘’हिंदू और मुसलमान एक साथ नहीं रह सकते…’’
टू नेशन थ्योरी अर्थात भारत को बांटने वाले सिद्धांत को मुकाम तक पहुंचाने में केवल पढ़े लिखे भारत के मुसलमान ही नहीं बल्कि पढ़े लिखे कुछ हिंदूवादी लोग भी थे। जिनके माध्यम से भारत को बांटने की बीज 1857 से ही पड़ने शुरु हो गए थे। असल में आजादी के नाम पर स्वतंत्रता सेनानियों ने 1857 की क्रांति की चिंगारी जलाई, यह चिंगारी इस कदर भड़की कि अविभाजित हिंदुस्तान के पढ़े-लिखे और ज्यादा काले कोट के प्रोफेशन से जुड़े लोगों को यह समझ में आ गया था कि एक और भयंकर विद्रोही आग का कण भारत को अंग्रेजों के चंगुल से जरूर आजाद करा देगी। हालांकि हिंदुस्तान गुलामी की जंजीर से बाहर निकलने की ओर बढ़ तो रहा था, लेकिन अविभाजित भारत में विभाजन की बात उठनी शुरू हो गई थी।
1857 के दरमियान इसकी आवाज आनी शुरू हुई बंगाल से, जहां राज नारायण बसु नाम के हिंदुवादी नेता ने आर्य देश की स्थापना का लक्ष्य रखा। इसके लिए उन्होंने भारत धर्म महामंडल बनाया और हिंदुओं को इस धरातल पर सर्वश्रेष्ठ बताया। हालांकि यह बात कुछ लोगों को पसंद नहीं आई और उन्होंने 80 दशक में इसके खिलाफ बोलना शुरू कर दिया। इन लोगों में सर सैयद अहमद खान भी शामिल थे। जिन्होंने 1970-80 के दशक में इस मुद्दे पर अपनी बात रखते हुए कहा कि हिंदू और मुसलमान एक साथ मिलकर एक राष्ट्र नहीं बना सकते। 1888 में मेरठ के एक कार्यक्रम में भाषण देते हुए सैयद साहब का यह बयान था कि, अगर अंग्रेज भारत छोड़ दे तो भारत में हिंदू-मुसलमान एक साथ नहीं रह सकते। इस दौरान सर सैयद ने भले ही दो राष्ट्र की बात नहीं की, लेकिन ऐसा माना जाता है कि उनके ये वाक्य टू नेशन थ्योरी में बीज जरूर डाल दिए थे। आपको बता दे कि सर सैयद खान कोई और नहीं बल्कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की नींव रखने वाले भारत के मशहूर शिक्षाविद् औऱ दार्शनिक थे।
सावरकर ने कैसे रखी थी टू नेशन थ्योरी की नींव ?
ऐसा नहीं है कि टू नेशन थ्योरी की बात करने वालों में केवल मुस्लिम समुदाय के लोग ही शामिल थे। बल्कि इसमें हिंदू बुद्धजीवी भी थे, जिसमें पहला नाम वीर सावरकर का आता है। दरअसल, 1923 में विनायक दामोदर सावरकर ने अपने एक आर्टिकल ‘हिंदुत्व’ में टू नेशन थ्योरी की बात कही, इसके बाद कलम से लिखी जाने वाली यह सैद्धांतिक बातें धीरे-धीरे जमीन पर उतरने लगी। फिर आया 1930 का दौर जब अलग देश, उसके अलग इलाके, उसका अलग नाम और उसकी अलग भाषा पर बहस होने लगी थी। इसे मुस्लिम नेताओं ने भी पकड़ लिया और टू नेशन थ्योरी की पड़ रही नींव एक बार फिर से मजबूत होने लगी, इसी बीच प्रसिद्ध कवि और दार्शनिक मुह्हमद इकबाल ने भारत के मुसलमानों के लिए एक अलग देश की बात कही। इलाहाबाद के ऑल इंडिया मुस्लिम लीग के अधिवेशन में अल्लामा इकबाल ने देश के 07 करोड़ मुसलमानों को अलग देश कहा।
जिन्नाह और रहमत अली की सोच कैसे पड़ा इकबाल पर भारी ?
आपको जानकर हैरानी होगी कि भारत को दो हिस्सों में बांटने की बात करने वाले इकबाल कोई और नहीं बल्कि ये वही कवि है.. जिन्होंने सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां लिखा... हालांकि इकबाल की सोच पहले कट्टरपंथी विचारधारा की नहीं थी, बल्कि वह इतने बड़े विद्वान थे, उनकी विद्वता के कारण लोग उन्हें अल्लामा यानी विद्वान कहने लगे थे।
दरअसल, 1877 में अविभाजित भारत के पंजाब में पैदा होने वाले इकबाल के द्वारा 1904 में ताराना ए हिंदी यानी सारे जहां से अच्छा लिखा गया था। लेकिन एक कश्मीरी पंडित के परिवार में पैदा हुए इकबाल के सुर कुछ सालों बाद बदलने लगे और ‘ताराना ए हिंदी’ के जरिए मुस्लिमों के दिल में हिंदुस्तान की जगह देने वाले इकबाल ने ‘ताराना ए मिल्खी’ लिखा। जिसके जरिए मुस्लिम हैं हम और पाकिस्तान वतन हमारा की बात करने लगे। असल में इसके पीछे इकबाल की सोच नहीं बल्कि पाकिस्तान के संस्थापक मुहम्मद अली जिन्नाह और चौधरी रहमत अली की कटटरपंथी सोच थी। जिन्होंने 1932 तक इकबाल को मुस्लिम लीग के अध्यक्ष बना दिए थे।
सबसे पहले किसने किया PAKSTAN शब्द का इस्तेमाल ?
चौधरी रहमत अली नापाक सोच का इंसान था, जिसने पहली बार पाकिस्तान नहीं PAKSTAN शब्द का इस्तेमाल किया था। यह समय 1933 का था, जब पाकिस्तान में खुद को राष्ट्रवादी समाजिक कार्यकर्ता बताने वाले और भारत के मुसलमानों के लिए अलग देश की मांग करने वाले चौधरी रहमत अली ने लंदन में एक दस्तावेज भेजा था। यह दस्तावेज लंदन में तीसरी राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस के डेलिगेट्स तक पहुंचाया गया। जिसमें रहमत ने ‘पाकस्तान’ शब्द का इस्तेमाल किया था। इस शब्द में P से PAKISTAN, A से AFGHANIA, K से KASHMIR, S से SINDH और TAN से BaluchisTAN था, बाद में इसमें I जोड़ा गया। लंदन भेजे गए डॉक्यूमेंट के कुछ महीनों बाद यानी 28 जनवरी 1933 को रहमत अली ने NOW or NEVER : ARE WE TO LIVE or PERISH Forever हेडिंग से एक बुकलेट छापी। रहमत के द्वारा इसे पाकिस्तान डिक्लेरेशन का नाम दिया गया। ये पहली बार था , जब भारत के बंटवारे के संदर्भ में पाकिस्तान का नाम लिया गया था। इसमें रहमत के द्वारा धर्म, समाज और इतिहास की बिनाह पर पाकिस्तान बनाने और इसमें शामिल होने वाले इलाके बताए गए थे। इस दौरान पाकिस्तान के अलावा दो और मुस्लिम देश बंगिस्तान यानी पूर्वी बंगाल औऱ उस्मानिस्तान यानी निजाम की रियासत हैदराबाद भी नक्शे में थे। हालांकि रहमत अली की इस दलील को सारे मुस्लिम संगठनों ने नहीं माना, लेकिन कौन जानता था कि, इसके बाद जो तारीख आएगी वह सच में हिंदुस्तान के बंटवारे की स्क्रिप्ट लेकर आएगी।
एक प्रस्ताव, अनेकों मौतें और बंट गया हिंदुस्तान
दरअसल सर सैयद अहमद और कुछ हिंदुवादी नेताओं के विचारों से शुरू हुआ टू नेशन थ्योरी की सोच जिन्ना तक जा पहुंची थी। पाकिस्तान की मांग करने वाले मुहम्मद अली जिन्नाह ने 23 मार्च 1940 को लाहौर अधिवेशन में अलग देश की मांग का दस्तावेज सबके सामने लाए। इस प्रस्ताव को बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री एक के फज़लूल हक ने रखा। इस दौरान जिन्ना ने कहा कि हिंदू धर्म और इस्लाम दो अलग सामाजिक व्यवस्थाएं हैं, इन्हें साथ रखकर ही एक भारतीय देश की गलत सोच ही हमारी परेशानी की वजह है। इसे सुधारा नहीं गया तो भारत बर्बादी की तरफ जाएगा।
बड़ी-बड़ी बाते करने वाला जिन्नाह यहीं नहीं रुका बल्कि 16 अगस्त 1946 को उसने डायरेक्ट एक्शन एक्शन डे की घोषणा कर दी। इस एनाउंसमेंट के बाद नतीजा यह हुआ कि कोलकाता में दंगे हुए, जिसमें करीब 2000 लोग मारे गए। ऐसे दंगे केवल एक जगह नहीं बल्कि इसकी आग में भारत के कई इलाके जल रहे थे, आखिरकार 03 जून 1947 का वो समय आता है। जब कांग्रेस और मुस्लिम लीग भारत के अंतिम वायसराय लॉर्ड माउंटबेंटन से हिंदुस्तान को दो हिस्सों में बांटने का प्लैन मंजूर कर लेते हैं और उसी दिन जिन्ना ऑल इंडिया रेडियो पर पाकिस्तान बनाने की घोषणा कर भारत के मुस्लिम आवाम को संबोधित करते हुए कहता है कि हमें वो नहीं मिला जो हम चाहते थे। लेकिन जो मिला है उसे हम स्वीकार करते हैं, अंतत: 18 जुलाई 1947 को ब्रिटिश संसद में इंडियन इंडिपेंडेंस एक्ट के तहत आजाद हिंदुस्तान का बंटवारा हो जाता है।