प्राय: देखा गया है कि दो पुरुष अच्छे मित्र या दोस्त हो सकते हैं किंतु महिलाओं की मित्रता कम ही देखने को मिलती हैं।
अक्सर यह कहा जाता है कि महिला-महिला अच्छी मित्र नहीं हो सकती हैं। हमारे पुराणों में भी हमने कृष्ण-सुदामा, राम-सुग्रीव, कर्ण-दुर्योधन की मित्रता देखी है। यहां तक कि पुरुष और महिला की भी मित्रता जैसे कृष्ण-द्रोपती और आज के समय में भी फिल्मों में कई फिल्में बनी हैं जिनका आधार मित्रता हैं, जैसे शोले में जय-वीरु की मित्रता। परंतु आज तक हमने इस प्रकार महिला मित्रों की मित्रता के उदाहरण न ही हमारे धर्मग्रंथों अथवा फिल्मों में देखे हैं। बल्कि महिलाओं की आपस में जलन के उदाहरण कैकयी, मंथरा और फिल्मों में भी कई फिल्में महिलाओं की महिलआ से जलन और दुश्मनी पर बनी हैं पर मित्रता पर नहीं । यह भी कहा गया है कि ‘’महिला ही महिला की दुश्मन होती है।‘’ यहां तक कि वर्तमान में मैंने अपने आस-पास भी देखा है कि पुरुषों की मित्रता तो लंबे समय तक रहती हैं किंतु महिलाओ की मित्रता यदि स्कूल, कालेज में होती भी है तो शायद ही वे अपने जीवन के अंतिम पड़ाव तक उनकी मित्रता नहीं रह पाती किंतु पुरुष मित्र तो अपने जीवन के अंतिम पड़ाव तक मित्रता निभा पाते हैं।
इसके पीछे महिलाओं का तर्क भी रहता है कि महिलाएं विवाह होने के बाद ससुराल जाकर अपने परिवार के सदस्यों से ही दूर हो जाती हैं तो मित्रों से संपर्क रखना तो बहुत दूर की बात है। क्या वास्तव में यही एक कारण है कि महिलाएं अच्छी मित्र नहीं हो पाती ?
परंतु यही एक कारण नहीं है कि महिलायें कभी भी अच्छी मित्र नहीं रह पाती। कई बार दफ्तरों में भी देखा गया है कि पुरुष कर्मचारियों के मध्य तो घनिष्ठ मित्रता हो जाती है कि एक-दूसरे के सुख-दुख में साथ देने परंतु महिला कर्मचारी में इस प्रकार की मित्रता देखने को नहीं मिलती। हमारे भारतीय समाज में जबकि ऐसे कई रिश्ते हैं जिसमें कि महिलायें अच्छी मित्र बन सकती हैं, जैसे ननद-भाभी का रिश्ता किंतु हो इसका उल्टा ही गया ननद-भाभी अच्छी मित्र तो नहीं बन पाती लेकिन उनमें शत्रुता जरूर देखने को मिलती हैं। इसके लिये तो एक कहावत भी प्रचलित है कि ‘’ननद काठ की है तो भी बुरी है’’ अर्थात ननद यदि जीवित भी नहीं है काठ की भी बनी है तो भी वह बुरी है।
स्वत: ही मन में प्रश्न उठता है कि ऐसा क्यों ? क्या केवल परिस्थितियों के ही कारण महिलायें ताउम्र मित्र नहीं रह पाती या फिर इसके पीछे कोई और कारण भी है। केवल परिस्थितियां ही हैं जो महिलाओं को अच्छी मित्र बनने से रोकता है। क्या यह सत्य है ? पर कहा गया है कि ‘’जिसे रिश्ते निभाना होता है, वह किसी भी परिस्थिति में निभा लेता है, जिसे नहीं निभाना होता, उसके लिये बस एक बहाना ही काफी है। ‘’
एक अन्य प्रश्न यह भी उठता है कि महिलायें सच्ची मित्र क्यों नहीं बन पाती? महिलाओं के मध्य मित्रता तो देखी गयी है परंतु सच्ची मित्रता जैसी पुरुषों के मध्य। कहीं न कहीं इसके पीछे महिलाओं का महिलाओं के प्रति आपसी रवैया भी तो जिम्मेदार नहीं है ?
प्राय: साधारण रूप से सभी का यह मानना है कि महिलाओं में महिलाओं के प्रति जलन की भावना अधिक होती है इस कारण से भी वह कभी भी अच्छी मित्र, दोस्त नहीं बन पाती। जबकि हमारी हिन्दी भाषा में तो महिलाओं की मित्रता को इतना सुंदर नाम सखी दिया गया है।
पुरुषों की मित्रता में देखा गया है कि कभी भी एक पुरुष मित्र अपने मित्र से कभी भी कहीं भी चलने को कहता है तो वह चलने के लिये सदैव तैयार रहता है। अधिकांश पुरुष मित्र एक-दूसरे के सहयोगी ही नजर आते हैं। यहां तक कि रात में भी यदि किसी दोस्त को कहो कि यार यहां चलना है, किसी से झगड़ा हो गया है आ जा तो वह दोस्त यदि सच्चा है, बचपन से साथ है तो लड़ाई-झगड़े में भी आ जायेगा किंतु महिलायें अथवा युवतियों के लिये यह संभव नहीं है। युवतियां या महिलाएं किसी भी लड़ाई-झगड़े में पड़ने से डरती है। यह उनका केवल स्वार्थी होना नहीं दर्शाता अपितु उन पर परिवार तथा समाज का दबाव भी होता है कि कहीं वे उस मामले में फंस गयी तो सब उन पर दोषारोपण करेंगे कि क्यों गई, क्या जरुरत थी आदि। इसका एक उदाहरण और भी देखा गया कि है कि यदि कोई लड़का अपने दोस्त से कभी उनकी गाड़ी मांगता है तो लड़के फौरन हॉं भाई ले जा, परंतु यदि किसी लड़की के पास स्वयं की भी गाड़ी है तो वह कभी भी अपनी करीबी महिला मित्र को नहीं देती है। यह सब उदाहरण से लोगों में यह धारणा बन गयी है कि महिलायें, लड़कियां अच्छी मित्र नहीं होती हैं।
यह एक आम धारणा है कि महिलाओं में जलन की भावना अधिक होने से भी उन में आपस में घनिष्ठ मित्रता होना संभव नहीं हो पाता। तो क्या केवल महिलाओं में ही जलन और ईर्ष्या होती है ? पुरुषों में नहीं । ऐसा नहीं है कि पुरुषों में जलन की भावना नहीं होती । पुरुषों में भी जलन की भावना होती है परंतु जब बात दोस्ती की आती है तो वह अपने दोस्तों को अहमियत देते हैं। एक स्टेंडअप कमेडियन जो कि जाकिर भाई के नाम से प्रसिद्ध हैं, उनका कहना है कि दोस्तों के चलेबिलिटी होती है। मतलब कि दोस्तों ने बोला चल यार और दोस्त तैयार बिना पूछे बिना जाने कि कहां जाना है, परंतु यदि यही बात कोई स्त्री अपनी सहेली से कहे तो वह दस बार इस बारे में विचार करेगी कि जाना चाहिये या नहीं ? हमेशा हम पुरुषों को विवाह से पूर्व एवं विवाह होने के पश्चात् भी घूमत-फिरते, हंसी-मजाक करते देख लेते हैं परंतु विवाहित महिलायें चाहे आज महिलायें पुरुष से बराबरी से काम कर रही है, परंतु जब इस प्रकार कि मित्रता का प्रश्न आता है तो महिलायें केवल अपने परिवार के साथ ही समय बिताना पसंद करेंगी न कि अपनी महिला मित्रों के साथ। महिलायें हमेशा परिवार को अधिक महत्व देती हैं किंतु मित्रता शायद उनकी प्राथामिकता में नही रहती।
अब समय आ गया है कि महिलायें इस मिथ को तोड़ कर एक-दूसरे के प्रति ईर्ष्या, जलन और प्रतिस्पर्धा की भावना से आगे बढ़कर सहयोगी बने और एक मित्रता की पुरुषों की तरह मिसाल कायम करें। जैसे पुरुष वर्ग अपनी मित्रता की मिसाल देते हैं, और उनके पास उदाहरण हैं, वैसे महिलाओं के पास भी इस प्रकार के उदाहरण हो। केवल दोस्त नहीं सखी, सहेली भी अच्छी हो सकती हैं।