एक बार श्री रमेश, जो कि एक शिक्षक थे, अपने पुत्र और पुत्री सुयश और प्रगति के साथ अपने निवास स्थान से, जहाँ पर वे अपने रोज़गार अर्थात अपनी शिक्षक की नौकरी के कारण रह रहे थे, अपने गृह नगर शाजापुर, जो कि मध्य प्रदेश का एक ज़िला है, रेल से जा रहे थे। चूँकि पास ही का सफर था तो उन्होंने जनरल बोगी में ही सफर करने का सोचा। जैसा कि जनरल बोगी में सभी लोग आपस में बात कर लेते हैं। रमेश जी के सामने वाली सीट पर एक लड़का खिड़की के पास शांत, अकेला बैठा था और उसी सीट पर तीन-चार लड़के 20 से 25 वर्ष के मध्य के, जो उनके पुत्र और पुत्री के हमउम्र ही थे, उनसे थोड़ी ही देर में उन लड़कों की अच्छी दोस्ती, हँसी-मज़ाक होने लगा। पर जो लड़का खिड़की के पास बैठा था, उससे रमेश जी के बेटे ने पूछा, "कहाँ जा रहे हो?" तो वह कुछ नहीं बोला, और उनके बेटे के एक-दो बार पूछने पर उठकर चला गया। जब वह जा रहा था तो अचानक रमेश जी के बेटे ने चिढ़कर कहा कि, "ऐसी शक्ल बना रखी है जैसे कि कोई मर गया हो। कैसा लड़का है, खड़ूस, बदतमीज़।" रमेश जी थोड़ी देर में थोड़ा उठकर अपनी सीट से गेट तक गए तो वह लड़का गेट पर खड़ा था और गहरी चिंता में दिख रहा था। तो रमेश जी को थोड़ी चिंता हुई कि कहीं यह गिर न जाए, तो वह उसके पास जाकर बोले, "क्या कर रहे हो, तुम गिर भी सकते हो।" अचानक वह लड़का बोला, "हाँ, आपके बेटे ने तो मुझे बोला ही, अब आप भी बोल लो। किसी को क्या? सामने वाला मरे या जिए, आप सबको क्या? आप तो बस अपने हँसी-मज़ाक में ही लगे हो।" रमेश जी को यह सुनकर लगा कि शायद इसके साथ कोई समस्या है, तो उन्होंने उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा कि, "क्या हुआ बेटा?" तो वह लड़का अचानक ही रमेश जी के गले लग गया और फूट-फूट कर रोने लगा, जिससे रमेश जी भी घबरा गए और उन्होंने उसे थोड़ा शांत कराया और उससे पूछा कि क्यों वह इतना परेशान है? तो रोते-रोते उसने बोलना शुरु किया कि, "मेरा भी अभी दो-तीन दिन पहले तक आपके जैसा ही हँसता-खेलता परिवार था। परसों मेरी एक नौकरी के लिये परीक्षा थी। मैं और मेरे पिताजी हम दोनों साथ में भोपाल आए, पर जैसे ही रेलवे स्टेशन पर उतरे, मेरे पिताजी को अचानक से सीने में दर्द होने लगा। मेरे लिये यह शहर नया था और पहली बार मैं भोपाल आया था, तो मैं अपने पिताजी को ऐसी हालात में देखकर घबरा गया। पर किसी तरह मैं एक घंटे में अपने पिताजी को अस्पताल लेकर पहुंचा तो वहाँ उनकी मृत्यु हो गयी। अब आप ही बताइए, किसी के साथ ऐसा होगा तो उसका क्या हाल होगा? कहाँ मैं खुश था कि परीक्षा दूँगा, मुझे पूरा भरोसा था कि इस परीक्षा में मेरा सिलेक्शन होना तो लगभग तय है, मैं तो दो साल से इसकी तैयारी में लगा हुआ हूँ। लेकिन एक ही दिन में मेरी दुनिया बदल गई। परीक्षा देना तो दूर, मेरा तो घर ही बरबाद हो गया। कैसे मैं अपने पिताजी को घर लेकर गया, मैं ही जानता हूँ। मेरे पिता के अचानक चले जाने से मेरी माँ की भी तबीयत खराब हो गयी, उनको भी अस्पताल में एडमिट करना पड़ा। आज भोपाल में जहाँ पिताजी को एडमिट करवाया था, वहाँ कुछ काम के लिये जाना पड़ा, वहीं से अपने घर जा रहा था। आपके परिवार को देखकर मुझे अपने पिताजी के साथ बिताया समय याद आ रहा था। आप ही बताइए, ऐसी परिस्थिति में कोई कैसे हँसी-मज़ाक कर सकता है? और जब मेरे से यह सब देखा नहीं जा रहा था तो मैं उठकर आ गया, पर मैंने आपके बेटे की बात सुन ली थी, जो उसने कहा कि 'ऐसे बैठा है जैसे कि कोई मर गया हो।' तब मेरा मन किया कि चीखकर कहूँ कि 'हाँ, मेरे पिता मर गये हैं!' आपके बेटे के शब्द मुझे तीर की तरह लगे। उसने तो बिना सोचे-समझे बोल दिया कि जैसे कोई मर गया, लेकिन आज उसके पिता उसके साथ हैं तो वह हँस-खेल रहा है, लेकिन मेरी परिस्थिति के बारे में उसे क्या पता?"
रमेश जी ने उसे चुप कराया और सीट पर शांति से बैठने को कहा और उसे अपने साथ सीट पर लेकर आ गए। थोड़ी देर में ही रमेश जी का स्टेशन आ गया और वह अपने परिवार के साथ उतर गए।
रमेश जी जब अपने घर पहुंचे तो अपने माता-पिता से मिले और उन्हें आज अपने माता-पिता के साथ होने पर एक अजीब से संतोष का एहसास हुआ। पर उस लड़के की बात उनके दिमाग में घूम रही थी: 'शब्द या तीर'। उन्हें लगा कि सही है, हम कई बार बस बिना सोचे-समझे कुछ भी किसी को भी बोल देते हैं कि "यह ऐसा। पागल है क्या, अंधा है क्या, इसे क्या पता, अमीर बाप की औलाद?" न जाने ऐसे कितने शब्द! पर यह भी नहीं सोचते कि उन शब्दों का सामने वाले इंसान पर क्या असर होगा? रमेश जी बस यही विचार करते हुए, उन्हें लगा कि उनके बच्चे अभी युवास्था में हैं। वह तो बिना सोचे-समझे जिसे जानते भी नहीं हैं, उसके मन को ठेस पहुंचा देते हैं। यही सोचकर उन्होंने अपने दोनों बच्चों को बुलाया और प्यार से समझाने के बारे में सोचा। उन्होंने उस लड़के की बात अपने बच्चों को बताई और अपने बेटे से पूछा, "यदि तुम इस परिस्थिति में होते और कोई तुम्हें ऐसा कहता तो?" उनके लड़के ने तुरंत गुस्से में बोला, "मैं उसका मुँह तोड़ देता।" रमेश जी ने अपने बेटे से प्यार से कहा कि, "तुम्हें किसी ने ऐसा कहा, यह सोचकर उस परिस्थिति को सोचकर ही तुम्हें इतना गुस्सा आ गया। पर उस लड़के ने तो तुम्हें कुछ भी नहीं कहा। उसे भी ऐसा ही लगा होगा। बेटा, यह सोचो, जिसे तुम जानते भी नहीं, बिना जाने-समझे तुम्हारे कुछ शब्दों से उसे कितना आहत हुआ! अभी तुम्हारे जीवन की शुरुआत है, तुम न जाने कितने लोगों से मिलोगे, जिनमें से कुछ को तो तुम जानते होंगे और कुछ को नहीं, पर तुम्हारे बोले शब्द किसी को तीर की तरह लग सकते हैं। हम सभी ने महाभारत में द्रोपती का वह प्रसंग तो सुना ही होगा, जिसमें वह दुर्योधन से कह देती है, 'अंधे का पुत्र अंधा'। पर यह बात दुर्योधन के मन पर कैसे आघात कर गई, इसका परिणाम भी देखा। बेटा, हमारे शब्द किसी के लिये अच्छा नहीं कर सकें तो बुरा भी न करें। हमें अपने शब्दों को तीर नहीं बनाना है जो बिना घाव के ही किसी इंसान के मन को घायल कर देते हैं। भले ही शब्दों ने शारीरिक चोट नहीं पहुंचाई पर मन पर तो चोट पहुंचा ही दी। हमेशा याद रखो, हमें शब्दों का ऐसा इस्तेमाल करना चाहिए कि वह शब्द मरहम लगे, जिससे चोट ठीक हो सके, न कि तीर जो गहरा घाव दे।"
यह कहानी जो सीख देती है कि शब्दों का इस्तेमाल सोच-समझकर करें।