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सुहानी एक समझदार और आत्मनिर्भर लड़की थी। उसने अपनी मर्जी से जय नाम के लड़के से लव मैरिज की थी। उसके पिता अब इस दुनिया में नहीं थे, लेकिन उसकी माँ ने बेटी की खुशी के लिए ससुराल वालों की दहेज की मांग तक पूरी की — क्योंकि बेटी की मुस्कान ही उसके लिए सब कुछ थी।
शादी के दिन सुहानी के मन में सपनों का एक नया संसार था। उसने सोचा था कि अब उसके जीवन में प्यार, सम्मान और एक नए परिवार की खुशियाँ होंगी। लेकिन ये उम्मीदें ज्यादा दिन टिक नहीं पाईं।
शादी हो गई, लेकिन पहली ही रात जय घर नहीं लौटा। सुहानी उसके इंतजार में आँखें बंद कर सो गई। अगली सुबह जब जय लौटा, तो उसने न कुछ सफाई दी, न ही कोई बात करने दी। उसने जबरन अपने अधिकार जताने शुरू कर दिए — बिना सुहानी की भावनाओं को समझे, बिना उसकी सहमति के।
धीरे-धीरे यह उसकी ज़िंदगी की हकीकत बन गई। हर दिन वही सिलसिला — सुबह घर के काम, और रात को बार-बार की जबरदस्ती। जय सिर्फ अपनी शारीरिक ज़रूरत पूरी करने के लिए सुहानी का इस्तेमाल करता। सुहानी का दर्द आँसुओं के रूप में बहता, लेकिन बिना आवाज़ के। उस घर में कोई पूछने वाला नहीं, न कोई सुनने वाला। किसी को न उसकी परवाह थी, न उसकी तकलीफ़।
तीन महीने बाद वह मायके आई और अचानक उसकी तबीयत बिगड़ गई। डॉक्टर के पास जाने पर पता चला कि वह गर्भवती है। यह सुनकर वह थोड़ी मुस्कुराई — शायद यह बच्चा उसकी अधूरी दुनिया में एक नई उम्मीद जगा दे। पर जब यह खबर लेकर जय के पास पहुँची, तो उसने बेरुखी से नज़र फेर ली।
"अभी बच्चे की क्या ज़रूरत? अबॉर्शन करवा दो," उसने सख्ती से कहा।
सुहानी ने साफ इंकार कर दिया। उसकी आँखों में आँसू थे, पर इरादा मज़बूत था। लेकिन जय की स्वार्थी सोच यहाँ भी नहीं रुकी। उसने सुहानी की पीठ पीछे उसके खाने में ऐसी दवाई मिला दी जिससे बच्चा पेट में ही दम तोड़ देता। यह जानकर सुहानी अंदर से पूरी तरह टूट गई। उसका भरोसा, उसका मातृत्व — सब कुछ कुचल दिया गया।
अब उसके पास सहने की ताकत खत्म हो चुकी थी। उसने हिम्मत जुटाई, पढ़ाई पूरी की और वकील बन गई। अब वह टूटी हुई लड़की नहीं, बल्कि इंसाफ की लड़ाई लड़ने के लिए तैयार एक मज़बूत औरत थी|
कोर्टरूम में माहौल गंभीर था। चारों ओर वकील, दर्शक और जज बैठे थे। सबकी नज़रें सुहानी पर थीं। जय बेपरवाह होकर खड़ा था, मानो सब उसके लिए एक खेल हो। लेकिन आज सुहानी वो चुप रहने वाली औरत नहीं, बल्कि न्याय की मांग करती आवाज़ थी।
उसने ठोस सबूत पेश किए — मेडिकल रिपोर्ट, दवाइयों के लैब टेस्ट और गवाह। उसकी आवाज़ काँप रही थी, लेकिन हर शब्द आग की तरह जल रहा था।
"माननीय न्यायाधीश, शादी का मतलब सिर्फ शारीरिक ज़रूरत पूरी करना नहीं होता। यह रिश्ता बराबरी, इज़्ज़त और भरोसे पर टिका होता है। मेरे पति ने मुझे पत्नी नहीं, एक वस्तु समझा। उसने मेरे आँसुओं की कोई कीमत नहीं समझी, यहाँ तक कि मेरे बच्चे को भी बेरहमी से छीन लिया।"
कोर्टरूम में सन्नाटा छा गया। दर्शकों की आँखें नम हो गईं। जय की झुकी नज़रों और सुहानी के मज़बूत शब्दों ने फैसला आसान कर दिया।
जज ने गम्भीर आवाज़ में कहा —
"इस अदालत का फैसला केवल एक औरत के लिए नहीं, बल्कि हर औरत के लिए है। शादी कोई अनुबंध नहीं, बल्कि विश्वास और समानता का पवित्र बंधन है। किसी भी औरत की सहमति के बिना किया गया कोई भी व्यवहार अपराध है। और याद रखो — औरत इंसान है, खिलौना नहीं। उसका मौन उसकी सहमति नहीं होता।"
इसके साथ ही जज ने जय को सज़ा सुनाई|
सुहानी ने इंसाफ जीत लिया।
वह फिर से जीना सीख रही थी। दिल में बहुत कुछ टूटा था, लेकिन आँखों में फिर से चमक लौट रही थी। तभी उसकी माँ ने उससे दोबारा शादी की बात की।
माँ ने बड़ी उम्मीद से कहा, "बेटी, ज़िंदगी लंबी है। कोई अच्छा साथी मिल जाए तो सहारा भी होगा और तेरा दर्द भी कम हो जाएगा।"
सुहानी ने माँ की ओर देखा। उसकी आँखों में दृढ़ता और आत्मविश्वास साफ झलक रहा था। उसने धीरे से कहा —
"माँ, औरत की ज़िंदगी सिर्फ मर्द के सहारे पर नहीं टिकती। एक औरत बिन मर्द के पूरी ज़िंदगी जी सकती है — काम कर सकती है, बच्चों को पाल सकती है, अपने सपनों को पूरा कर सकती है। लेकिन माँ, एक मर्द बिना औरत के अधूरा है। उसका घर, उसकी दुनिया, उसका वजूद भी औरत के बिना अधूरा होता है।"
उसने गहरी साँस लेकर कहा —
"माँ, अब मुझे किसी जय की ज़रूरत नहीं। अब मुझे सिर्फ एक रिश्ते पर भरोसा है — आपके और मेरे रिश्ते पर। माँ, मैं बस माँ बनना चाहती हूँ। अपनी गोद में उस मासूम को पालना चाहती हूँ जो मेरे जीवन की रोशनी बने।"
इतना सुनते ही माँ की आँखें भर आईं। वह सुहानी को गले से लगाकर फूट-फूटकर रो पड़ीं — वो आँसू दुख के नहीं, गर्व और सुकून के थे।
उन्होंने उसकी पीठ थपथपाते हुए कहा, "जिस बेटी को मैंने गोद में खिलाया था, आज वो औरों की ज़िंदगी संवारने लायक बन गई है। मैं तेरे हर फैसले में तेरे साथ हूँ। माँ बनना ही सबसे बड़ा सौभाग्य है |
माँ की बात सुनकर सुहानी ने बच्चों को गोद लेने का फैसला लिया। अनाथालय की ओर जाते समय उसका दिल अजीब-सी खुशी से भरा था। वहाँ बच्चों की मासूम मुस्कानें, उनकी चमकती आँखें उसे नई दुनिया दिखा रही थीं।
एक छोटे बच्चे की मासूम आँखों ने जब उसे देखा, तो सुहानी का दिल भर आया। उसने उसे गोद में उठाकर कसकर गले लगाया। वह बच्चा उसकी दुनिया की नई रोशनी बन गया।
उसने ठान लिया कि वह उसे ऐसा इंसान बनाएगी, जो दूसरों की तकलीफ़ समझे, और कभी किसी औरत की आँखों में आँसू न आने दे।
अब सुहानी की ज़िंदगी का सफर नया था — बिना किसी जय के, पर अपने आत्मविश्वास, माँ के स्नेह और अपने बच्चे की मुस्कान के सहारे।