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प्रेम जीवन का सार राखे।
जीवन का मूल वेद भाषे॥
प्रेम की भाषा है नियारी।
सबको एक समान निहारी ॥क॥

मूल तत्त्व जीवन का प्रेमा।
रस रस में बहे भूल नेमा॥
प्रेम भावनात्मक यात्रा है।
सुन्दर धार्मिक भाव भक्ति है ॥ख॥

प्रेम की गङ्ग धार  बहे जब।
रोम रोम में हर्षाई तब॥
प्रेम में सुख शान्ति बहती है।
परमानन्द सबको मिलत है॥ग॥

प्रेम जीवन दर्शन कहावे।
नर नारी सबके मन भावे॥
प्रेम में जब पड़त है कोई।
प्रेम का बोल बोलत सोई ॥घ॥

डगमग डगमग चाल नेह में।
चलत फिरत बावला प्रेम में॥
प्रेम में लोग सुध बुध खोई।
प्रेमहि देखत सब में सोई॥ङ॥

प्रेम वाणी बहुत मीठी है।
प्रेम गुड़ के समान गुणी है॥
प्रेम की नदी बहुत बड़ी है।
प्रेम रस चखा जो डूबत है॥च॥

जो  प्रेम  की  मदिरा चखत है।
जहँ  देखी  तहँ ईश दिखत है॥
प्रेम  में  जब  पड़त  नर  नारी।
मुक्ति देत जीवन से तारी ॥छ॥

प्रेम प्रभाव बहुत बड़ा है।
सबको निज वश में रखता है॥
प्रेम पुष्प रस के समान है।
निज ओर आकर्षित करत है॥ज॥

प्रेम से ईश ईशी आवें।
प्रेम से लोग आदर पावें॥
प्रेम से लक्ष्मी बुद्धि आवें।
प्रेम से शक्ति साहस पावें॥झ॥

प्रेम से ही सुख शान्ति आवे।
प्रेम से सर्व समृद्धि पावे॥
प्रेमहि सबकी गाथा गावे।
मुक्ति भक्ति ईश्वर को पावे॥ञ॥

ज्ञान के अभिमान का नाशक।
सब पर करता आपन शासन॥
प्रेम में गोपीं पागल हुईं।
प्रेमहि मीरा बावली भईं॥ट॥

प्रेम में उद्धव‌ पागल हुए।
प्रेम में भक्त बावला भ‌ए॥
प्रेम ने सब जग को नचाया।
प्रेम से ऋषभ गाथा गाया॥ठ॥


भावार्थ- 

वेदों ने कहा है कि जीवन का मूल प्रेम है, जो संपूर्ण जीवन का सार रखते हैं । प्रेम की भाषा बहुत अद्भुत है, जो सबको एक समान से दिखता है।॥क॥

प्रेम तो जीवन का मूल तत्त्व है, जो सभी नियमों को भूलकर रस-रस में बहता है। प्रेम तो भावनात्मक यात्रा, सुन्दर धार्मिक भाव और भक्ति रस है। ॥ख॥

जब रोम रोम में प्रेम की गङ्गधार बहती है, तब सभी लोग प्रसन्नचित्त हो जाते हैं। प्रेम में तो सुख-शान्ति बहती है और सबको परमानन्द प्राप्त होता है। ॥ग॥

प्रेम ही तो जीवन का दर्शन कहलाता है, जो सभी नर नारियों के मन को भा जाता है। जब कोई भी प्रेम में पड़ता है तो वह प्रेम का ही बोली बोलने लगता है। ॥घ॥

प्रेम में लोगों की चाल डगमग डगमग हो जाती है और वह चलते-फिरते बावला हो जाते हैं। प्रेम में सब लोग सुध-बुध खोकर सभी में प्रेम को ही देखते हैं। ॥ङ॥

प्रेम की वाणी तो बहुत मीठी है। प्रेम तो गुड़ के समान गुणी है। प्रेम की नदी बहुत बड़ी है। उस नदी में जो डूब जाता है, वही प्रेम रस को चख लेता है । ॥च॥

जो भी प्रेम की मदिरा चखता है और चख कर, वह जहाँ भी देखता है उसे वहीँ पर ईश्वर दिखाई देता है। प्रेम में जब नर-नारी पड़ते हैं, तब उसे मुक्ति देकर जीवन से तार देता है। ॥छ॥

प्रेम का प्रभाव बहुत बड़ा है, जो सबको अपने वश में रखता है। प्रेम तो पुष्प रस के समान है, जो सबको अपनी ओर आकर्षित करता है। ॥ज॥

प्रेम से ही भगवान् (त्रैदेव) और भवानी (त्रिदेवी) आते हैं और सभी लोग आदर-सम्मान पाते हैं। प्रेम से ही सम्पत्ति (श्री लक्ष्मी), बुद्धि (सरस्वती) आती हैं और शक्ति-साहस (पार्वती) को प्राप्त करते हैं। ॥झ॥

प्रेम से ही सुख-शान्ति आती है । प्रेम से ही सभी लोग सर्व समृद्धि प्राप्त करते हैं। प्रेम से ही ईश्वर की कथा कह कर मुक्ति, भक्ति और ईश्वर को प्राप्त करते हैं। ॥ङ॥

प्रेम तो ज्ञान के घमण्ड का नाशक है, जो सब पर अपना शासन करता है। प्रेम में ही तो सभी गोपियाँ और मीरा पागल हुई थीं। ॥ट॥

प्रेम में ही तो उद्धव पागल हुए थे। प्रेम में सभी भक्त पागल हो गए थे। प्रेम ने ही तो संपूर्ण जगत् को नचाया है और प्रेम से ही ऋषभदास यह कथा कहता है। ॥ठ॥

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