एक लड़की की आवाज़ उठी, पूछती है वह खुद से और सबसे- क्या मैं सच में आज़ाद हूँ? क्या है मेरी इस तलाश में राह? धुंधली सी राह में, खोजती हूँ अपनी ज़िन्दगी की दिशा। सोचती हूँ अक्सर, उस विचार में खोई हुई, क्या मैं सच में आज़ाद हूँ, या बस एक ख्वाब बनी हुई?
अब आज़ादी को ७५ साल हो गए,
और २७ साल बाद सौ वर्ष भी पूरे हो जाएँगे।
हर साल सब धूमधाम से स्वतंत्रता दिवस मनाते हैं,
फिर मेरी स्वतंत्रता पर इतनी पाबंदी क्यों है?
क्यों जब सपनों की उड़ान भरना चाहूँ,
पिंजरे में अपनों के हाथों ही कैद कर दी जाती हूँ?
क्यों हर मोड़ पर मैं ही खुशियों का बलिदान देती हूँ,
और खुद आँसुओं से दोस्ती कर बैठती हूँ?
हाँ, संविधान ने तो मुझे आज़ादी दे दी है,
समानता का हक भी दिया है।
पर समाज ने तो मुझे कैदी ही माना है।
मेरे सपनों के परिंदे भी फँसे हैं कैद में,
मेरी सोच भी किसी सीमा में बंधी हुई है।
समाज की नज़रों में मेरे विचार भी आज़ाद नहीं हैं,
तो अब क्या कहेंगे, क्या मैं आज़ाद हूँ?
क्या मैं सच में महफ़ूज़ हूँ?
कॉलेज से आते समय, पल भर भी देरी हो जाए
तो सब क्यों सहम जाते हैं?
रात को अगर अकेली चलूँ, क्या मैं सुरक्षित हूँ?
भीड़ में भी मेरी सुरक्षा यकीनी है?
क्या यह दरिया, यह सड़क, मेरे लिए सुरक्षित जगह हैं?
क्या मेरी हर चुप्पी में वास्तविक स्वाधीनता है,
या बस रोमांचक कहानियों का वादा?
अगर मैं आज़ाद हूँ,
तो क्यों दूसरों के मायनों में जीना पड़ता है मुझे?
हर काम से पहले, हर मामले में,
सबकी इजाज़त क्यों चाहिए मुझे?
मेरे शिक्षा के हक पर, मेरी सोच के विश्वास पर
हर बार सवाल क्यों उठते हैं?
एक लड़की होने से क्यों मुझे रोका जाता है,
मेरी बात क्यों नहीं सुनी जाती है?
शिक्षा के ख्वाबों को क्यों दबाया जाता है?
समझौतों की दुनिया में मुझे ही हर कदम झुकना पड़ता है।
"तुम वहाँ नहीं जा सकती", "तुम ये नहीं कर सकती"
यहाँ तक कि मेरे शब्दों पर भी पाबंदी है।
मानो लड़की होना कोई गुनाह हो।
जब भी चलती हूँ, संघर्ष की धड़कन मिलती है।
कहने को तो सबसे सुंदर हूँ,
पर फिर भी श्रापित हूँ।
गलत मेरे साथ होता है,
फिर भी मैं ही गलत बन जाती हूँ।
कानून की नज़रों में बेगुनाह होती हूँ,
फिर भी लोग मुझे ही कसूरवार ठहराते हैं।
क्यों मेरे किरदार पर हमेशा उँगली उठती है?
क्यों मेरा पहनावा सबको खटकता है?
क्यों बेगुनाह होकर भी मेरी ज़िंदगी गुनहगार से भी बदतर होती है?
गुज़रते वक्त में, जब बदलती हैं राहें,
मैं फिर भी खुद को ढूँढती हूँ—स्वतंत्रता की तलाश में।