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किसी भी राष्ट्र का भविष्य उसकी युवा पीढ़ी के कंधों पर टिका होता है। इतिहास गवाह है कि जब-जब किसी देश ने प्रगति की ऊँचाइयों को छुआ है, उसके पीछे युवाओं की ऊर्जा, सोच और साहस रहा है। आज भारत विश्व का सबसे युवा देश है — हमारी आबादी का लगभग 65% हिस्सा 35 वर्ष से कम आयु का है। यह आँकड़ा गर्व का विषय है, लेकिन साथ ही एक बड़ी ज़िम्मेदारी और चुनौती भी। प्रश्न केवल यह नहीं है कि हमारे पास युवा हैं, बल्कि यह है कि हम उन्हें किस दिशा में ले जा रहे हैं?

आज की युवा पीढ़ी एक ऐसे दौर में जी रही है जहाँ अवसर पहले से कहीं अधिक हैं, लेकिन भ्रम, दबाव और प्रतिस्पर्धा भी उतनी ही तीव्र है। तकनीक ने दुनिया को हमारी हथेलियों में ला दिया है, पर उसी ने हमें भटकाने के रास्ते भी खोल दिए हैं। ऐसे समय में यह समझना बेहद ज़रूरी है कि देश की युवा पीढ़ी की स्थिति क्या है, उसकी समस्याएँ क्या हैं, उसकी ताकत क्या है और उससे राष्ट्र को क्या अपेक्षाएँ हैं।

युवा शक्ति: देश की सबसे बड़ी पूँजी

आज का युवा केवल छात्र नहीं है, वह वैज्ञानिक है, खिलाड़ी है, स्टार्ट-अप संस्थापक है, सैनिक है, कलाकार है और सामाजिक कार्यकर्ता भी। भारत के युवा आज अंतरिक्ष में पहुँच रहे हैं, ओलंपिक में पदक जीत रहे हैं, टेक्नोलॉजी में नए कीर्तिमान रच रहे हैं और वैश्विक मंच पर अपनी पहचान बना रहे हैं।

डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने ठीक ही कहा था — “युवा शक्ति किसी भी राष्ट्र की असली ताकत होती है।”

भारत में आज लाखों युवा स्टार्ट-अप शुरू कर रहे हैं, आत्मनिर्भर भारत की रीढ़ बन रहे हैं और बेरोज़गारी को चुनौती दे रहे हैं। डिजिटल इंडिया, मेक इन इंडिया, स्टार्ट-अप इंडिया जैसी योजनाओं में युवाओं की भूमिका निर्णायक रही है।

खेल के क्षेत्र में नीरज चोपड़ा, पी.वी. सिंधु, शुभमन गिल जैसे युवा देश का नाम रोशन कर रहे हैं। विज्ञान व तकनीक में हमारे युवा दुनिया के सबसे बड़े आईटी कंपनियों का नेतृत्व कर रहे हैं। यह सब इस बात का प्रमाण है कि भारतीय युवा में अपार प्रतिभा है।

शिक्षा: संभावना और संकट दोनों

युवा पीढ़ी की नींव शिक्षा पर टिकी होती है। आज शिक्षा के अवसर पहले से कहीं अधिक हैं — ऑनलाइन कोर्स, डिजिटल क्लासरूम, विदेशी विश्वविद्यालयों से जुड़ाव। लेकिन इसके साथ बड़ी समस्याएँ भी खड़ी हैं।

आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का अभाव है। बहुत से युवा केवल डिग्री के पीछे भाग रहे हैं, ज्ञान और कौशल के पीछे नहीं। रटंत शिक्षा प्रणाली ने युवाओं को सोचने वाला नहीं, नंबर लाने वाली मशीन बना दिया है।

इसके परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में पढ़े-लिखे बेरोज़गार युवा खड़े हैं, जिनके पास डिग्री तो है लेकिन व्यावहारिक कौशल नहीं। यह स्थिति न केवल युवाओं को हताश कर रही है, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था पर भी बोझ बन रही है।

आज की सच्चाई यह है कि हमें डिग्री नहीं, कौशल आधारित शिक्षा की आवश्यकता है। यदि शिक्षा को रोजगार से जोड़ा नहीं गया, तो युवा शक्ति एक दिन युवा बोझ में बदल सकती है।

बेरोज़गारी: युवाओं की सबसे बड़ी पीड़ा

देश का युवा जब सपने लेकर पढ़ाई करता है और अंत में उसे बेरोज़गारी मिलती है, तो उसका आत्मविश्वास टूटता है। आज लाखों युवा प्रतियोगी परीक्षाओं की भीड़ में फँसे हुए हैं। एक-एक सीट के लिए हजारों दावेदार खड़े हैं। वर्षों की तैयारी के बाद असफलता मिलना युवाओं को मानसिक रूप से तोड़ देता है।

इसका परिणाम कई बार अवसाद, आत्मग्लानि और ग़लत रास्तों की ओर झुकाव के रूप में सामने आता है। कुछ युवा अपराध की ओर बढ़ते हैं, कुछ नशे की गिरफ्त में चले जाते हैं और कुछ पूरी तरह टूट जाते हैं।

बेरोज़गारी केवल आर्थिक समस्या नहीं है, यह मानसिक, सामाजिक और नैतिक संकट भी है। यदि युवाओं को समय पर रोजगार और दिशा नहीं मिली, तो यह देश की सामाजिक व्यवस्था के लिए ख़तरनाक हो सकता है।

तकनीक और सोशल मीडिया: वरदान या अभिशाप?

आज का युवा डिजिटल युग की देन है। मोबाइल फोन, इंटरनेट और सोशल मीडिया उसकी जीवनशैली का हिस्सा बन चुके हैं। यह तकनीक जहाँ एक ओर जानकारी, शिक्षा और अवसरों के नए द्वार खोलती है, वहीं दूसरी ओर भ्रम, दिखावा और लत भी पैदा करती है।

कई युवा आज वास्तविक जीवन से अधिक इंस्टाग्राम और रील्स की दुनिया में उलझे हुए हैं। दिखावे की संस्कृति, झूठी दौलत और फर्जी सफलता का भ्रम उन्हें वास्तविक मेहनत से दूर कर रहा है।

सोशल मीडिया पर तुलना (comparison), बॉडी-इमेज दबाव और लाइक्स की भूख युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य को बुरी तरह प्रभावित कर रही है। आज चिंता, तनाव और अवसाद युवाओं में तेजी से बढ़ रहे हैं।

तकनीक को उपयोग करने वाला युवा शक्तिशाली बनता है, लेकिन उसकी गुलामी करने वाला युवा कमजोर। यही अंतर आज तय किया जाना चाहिए।

नैतिक मूल्यों का संकट

आज की युवा पीढ़ी पर अक्सर आरोप लगाया जाता है कि वह अनुशासनहीन हो गई है, संस्कार भूलती जा रही है और केवल भौतिक सुखों के पीछे भाग रही है। यह आरोप पूरी तरह गलत नहीं, लेकिन पूरा सच भी नहीं है।

वास्तविकता यह है कि आज का युवा संस्कारहीन नहीं, बल्कि दिशाहीन हो रहा है। उसे सही-गलत का ज्ञान है, लेकिन सही रास्ता दिखाने वाले कम होते जा रहे हैं। परिवार, विद्यालय और समाज तीनों की भूमिका यहाँ कमजोर हुई है।

ईमानदारी, धैर्य, कर्तव्यबोध, त्याग जैसे मूल्य आज प्रतिस्पर्धा और जल्द सफलता की दौड़ में पीछे छूटते जा रहे हैं। यदि यह स्थिति लंबे समय तक बनी रही, तो देश की आत्मा को गहरी चोट पहुँच सकती है।

नशा और अपराध: एक खतरनाक सच्चाई

युवाओं में नशे की बढ़ती प्रवृत्ति आज एक गंभीर राष्ट्रीय समस्या बन चुकी है। शराब, ड्रग्स, सिगरेट और अन्य नशे युवा ऊर्जा को भीतर से खोखला कर रहे हैं। कई युवा दोस्ती, फैशन या तनाव के कारण इस जाल में फँस जाते हैं और फिर उससे निकल पाना मुश्किल हो जाता है।

नशे के साथ-साथ साइबर अपराध, धोखाधड़ी, हिंसा जैसी प्रवृत्तियाँ भी बढ़ रही हैं। इसका एक बड़ा कारण बेरोज़गारी, पारिवारिक तनाव और गलत संगत है।

यह केवल कानून-व्यवस्था की समस्या नहीं है, यह सामाजिक और मानसिक स्वास्थ्य का संकट है, जिसे केवल पुलिस नहीं, बल्कि परिवार, शिक्षक और समाज मिलकर ही हल कर सकते हैं।

युवा और राजनीति: उदासीनता या जागरूकता?

किसी लोकतंत्र की आत्मा उसके युवा मतदाता होते हैं, लेकिन दुर्भाग्य से आज का बड़ा हिस्सा राजनीति से दूर भागता है। उसे लगता है कि राजनीति गंदी है, बेईमान है और उसमें कुछ भी नहीं बदला जा सकता।

यह सोच खतरनाक है। यदि युवा राजनीति से दूर रहेंगे, तो सत्ता गलत लोगों के हाथों में जाएगी। हालाँकि अब धीरे-धीरे बदलाव भी दिख रहा है। कुछ जागरूक युवा सामाजिक आंदोलनों, चुनावों और नीति-निर्माण में हिस्सा ले रहे हैं।

देश को ऐसे युवाओं की आवश्यकता है जो केवल सोशल मीडिया पर बहस न करें, बल्कि जमीनी स्तर पर बदलाव की जिम्मेदारी उठाएँ।

महिलाओं की युवा पीढ़ी: बदलाव की नई धारा

आज की युवा लड़कियाँ पहले से कहीं अधिक सशक्त, शिक्षित और आत्मनिर्भर हो रही हैं। वे हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं — शिक्षा, सेना, विज्ञान, खेल, प्रशासन। यह भारत के लिए बहुत शुभ संकेत है।

लेकिन इसके बावजूद उन्हें आज भी असमानता, उत्पीड़न और सामाजिक बंदिशों से जूझना पड़ता है। कई जगह आज भी बेटियों की पढ़ाई को बोझ समझा जाता है।

देश तभी सशक्त बनेगा जब उसकी आधी आबादी — उसकी युवा बेटियाँ — पूरी तरह सुरक्षित, शिक्षित और आत्मनिर्भर होंगी।

युवा पीढ़ी से देश की अपेक्षाएँ

देश युवाओं से केवल नौकरी करना नहीं चाहता, बल्कि नेतृत्व, चरित्र और निर्माण चाहता है। देश चाहता है कि उसका युवा—

ईमानदार बने
आत्मनिर्भर बने
सामाजिक जिम्मेदारी निभाए
अंधविश्वास से दूर रहे
तर्कशील और वैज्ञानिक सोच रखे
संविधान और देश के मूल्यों का सम्मान करे

युवा को यह समझना होगा कि राष्ट्र केवल नेताओं से नहीं बनता, बल्कि हर जिम्मेदार नागरिक से बनता है।

समाधान और मार्गदर्शन

देश की युवा पीढ़ी को सही दिशा देने के लिए कुछ ठोस कदम बेहद ज़रूरी हैं:

  1. शिक्षा प्रणाली में सुधार – पाठ्यक्रम को कौशल और रोजगार से जोड़ा जाए।
  2. मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान – विद्यालय और कॉलेजों में काउंसलिंग व्यवस्था मजबूत की जाए।
  3. रोजगार के अवसर बढ़ाना – उद्योगों और स्टार्ट-अप को बढ़ावा दिया जाए।
  4. नशा-मुक्ति अभियान – युवाओं को जागरूक करने के लिए सख्त और निरंतर अभियान चलाए जाएँ।
  5. युवाओं की भागीदारी – उन्हें नीति-निर्माण और समाज सेवा से जोड़ा जाए।
  6. डिजिटल अनुशासन – सोशल मीडिया के जिम्मेदार उपयोग की शिक्षा दी जाए।

निष्कर्ष

देश की युवा पीढ़ी आज एक चौराहे पर खड़ी है। एक रास्ता उसे ऊँचाइयों पर ले जा सकता है, तो दूसरा उसे अंधेरे में धकेल सकता है। यह निर्णय केवल सरकार या समाज नहीं करेगा, यह निर्णय स्वयं युवा करेगा।

यदि युवा जागरूक, अनुशासित, परिश्रमी और नैतिक बना, तो भारत को विश्वगुरु बनने से कोई नहीं रोक सकता। लेकिन यदि वही युवा भ्रम, आलस्य, नशे और नकारात्मकता में डूब गया, तो यह सुनहरा अवसर हाथ से निकल जाएगा

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