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आज हृदय में नृत्य कुछ तस्वीरों का,
आँखों के सामने उभर कर आती यादें,
कुछ कड़वे-कुछ मीठे सपनों की बातें,
मन के आंगन में बन रहा विहंगम दृश्य।।
कल की ही तो कुछ बातें बीती रातों का,
अनायास ही यादों के पेटी से निकल पड़े,
मन को ऐसे सपनों ने जो उलझा रखा था,
अचानक ही उभड़ आया बनकर दृश्य।।
भावनाओं के लहर का बनता हुआ बहाव,
कुछ बीते हुए पलकों पर बनता हुआ दबाव,
सहजता से परे कहीं कुछ हूक उठने लगा,
निराधार तो नहीं बन रहा विहंगम दृश्य।।
यादों की तश्तरी से निकल कर कुछ तस्वीर,
नाचती हुई भावना को उकेरने के लिए तत्पर,
मन नितांत फिर विह्वल होने लगा बस ऐसे,
सजने लगा फिर जीवंत सा विहंगम दृश्य।।
हृदय में होता हुआ नृत्य कुछ तस्वीरों का,
स्वतः यादों के सिरहाने करवटें लेने लगा,
सजाने लगा कुछ यादों का कारवां बस ऐसे,
कोमलता को भी समेटे हुए विहंगम दृश्य।।
हृदय में होता हुआ मनोहारी नृत्य तस्वीरों का,
भावनाओं का लहर उठाने के लिए उत्कल बन,
मन के झरोखे से मचलने लगा यादों का कारवां,
बनकर तीव्र बहाव धारणाओं का विहंगम दृश्य।।

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