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आश नहीं मन वैकुंठ को जाऊँ,
चाह नहीं जग-वैभव का सुख पाऊँ,
कृपा हो तेरी, लाडली तेरो दास कहाऊँ,
चरण-चाकरी करुं और बरसाने बस जाऊँ।
जौ जनम मिले, मिल जाए बरसाने में,
खग-मृग बनूं या बन जाऊँ लता-पता,
इतना कृपा करो लाडली तेरा बन जाऊँ,
सेवा श्री चरणन की, छवि को दर्शन पाऊँ।।
आशा नहीं हे राधा स्वर्ग-अपवर्ग मिले,
किंचित भी चाह नहीं मोक्ष की मेरे मन में,
मैं बस दास बनूं तेरो, तेरो नाम को गाऊँ,
राधा-राधा जपूं नित, नाम सुधा में गोते खाऊँ।।
चाह तो बस इतनी, बास मिले बरसाने में,
चाह हृदय में बनी रहे नाम सुधा रस पाने में,
हे लाडली करो कृपा, व्रज गलियन में रमा करूं,
तज निजता को गलियन में मांग मधुकरी खाऊँ।।
हे राधा वृषभानु लली, कृपा कटाक्ष किए रखना,
मैं जो हूं दास श्री चरण की, नित स्नेह बढ़ाऊँ,
मद मिटे सकल मेरे मन के, बस तेरा बन जाऊँ,
हे किरत सुता करुणा करना, पल को तुम्हें नहीं भुलाऊँ।।