अब सुन भी ले, अरे ओ मेघा'
रिमझिम बरसो जरा पटल पर'
जो पड़ी है धूल' असह्य वेदनाओं की'
जो परत बना है, द्वंद्व के भावनाओं की'
तुम रिमझिम फुहार' बनकर बरस जाना'
बिखरे हुए जाले, कहीं दूर बहा ले जाना।।
असीम संभावनाओं को तलाशूं फिर'
अंगड़ाइयां ले फिर से उठ खड़ा होऊँ'
संघर्ष के लय पर अब फिर अड़ा होऊँ'
अब कोशिशों से खुद को तराशूं फिर'
मेरे फलक पर आज' तुम सहज आना'
बिखरे हुए जाले' कहीं दूर बहा ले जाना।।
मन सहज ही उर्मित बनूं, नवीन होकर'
तेरी भीनी-भीनी बुंदों के लगते चोट से'
तुम्हें सहज निरखता रहूं, मन के ओट से'
तुम से प्रीति निभाऊँ, मानव प्रवीण होकर'
गिरते बुंदों के बीच' जरा मधुर मुस्कराना'
बिखरे हुए जाले' कहीं दूर बहा ले जाना।।
अरी ओ मेघा' लिये आना रंग श्यामला'
छाना अटरियां' बरसने को घटाटोप होकर'
मोटी-मोटी बुंदों से ले जा, मन के मैल धोकर'
मन मुस्करा भी दूं, फिर चेतनावंत होकर'
दो पल तू मेघा' चैन से इधर भी बिताना'
बिखरे हुए जाले' कहीं दूर बहा ले जाना।।
अब तो मुक्त बन जाऊँ, मलिनताओं से'
तू बरसो अरी बदरा' घनन-घनन शोर से'
मन पुलकित हो लौटूं, चिंतन के छोर से'
मुक्त होने की भावना, कठिन बीते दौर से'
बरस कर मुझ पे, नूतनता फिर से जगाना'
बिखरे हुए जाले' कहीं दूर बहा ले जाना।।