अभी-अभी तो चकित हुआ हूं,
सुख का जो आभासी हैं प्रतिबिंब,
इच्छाओं के विपरीत होती हुई बातें,
जो अनुकूल नहीं वही स्याह रातें।।
मन में तीव्र आवेग का आना-जाना,
कुछ विशेष इच्छाएँ कुछ श्रेष्ठ हैं पाना,
मन आंदोलित बना हुआ इसी नाते,
हैं प्रतिकूल सही में वही स्याह रातें।।
फिर संशय के कांटों से बिंधता मन,
चिंता के आवेगों का वह आलिंगन,
कुछ तो विशेष भ्रम से उपजी हुई बातें,
कुछ भी अनुकूल नहीं वही स्याह रातें।।
अहो! कठिन घात होता हुआ सा प्रतीत,
आभासी सुख की भ्रम भरा हुआ गीत,
कहने को आतुर हुआ हूं इसी नाते,
प्रतिकूल वेग में लिपटी वही स्याह रातें।।
फिर चिंतन भी तो होने बाले कल का,
इच्छाओं के मंथन से उपजे हुए प्रतिफल का,
कड़वे पन के अनुभव से लिपटी हुई बातें,
कहता हूं अनुकूल नहीं वही स्याह रातें।।
कुछ हलचल हैं विचित्र जो चकित हुआ हूं,
विस्मित हूं समय केंद्र पर लगते बल से,
हैं यही यथार्थ कहता हूं इसके ही नाते,
प्रतिकूल वेग को संभाले वही स्याह रातें।।