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अंग-अंग मधु मालती के ज्यों डोल रहे'
चंचल चितवन की मार, रस घोल रहे'
कारे-कारे तेरे नैना सांवली, बोल रहे'
तू सांवली प्रिया मेरे' गुलाल से रंग डारो'
अंग-अंग भिगाये दो' पिचकारी भर मारो।।

अरी चंचला' तू सुंदरी पनघट को जली जात'
अल्हड़ सी चले चाल, पैजनिया खनखनात'
आयो फाग' मधुर लय प्रीति के गीत गात'
तू भामिनी सुलोचना, पीत रंग मेरे अंग डारो'
अंग-अंग भिगाये दो' पिचकारी भर मारो।।

अरी ओ सुलोचना' तेरे चाल है कमाल के'
हाथों के कंगना करें शोर' दिल बाग-बाग'
नैनन से नैना मिलाये सुंदरी' संग खेले फाग'
मन भीगूँ रे प्रीति रंग, भामिनी लिये उमंग डारो'
अंग-अंग भिगाये दो' पिचकारी भर मारो।।

तू चतुर नार' पनघट की डगर चली जाये री'
आयो फाग' लिए प्रीति के रंग' मधुर मुसकाये री'
लगा के हिया में आग, प्रेम नहीं बरसाये री'
आओ री खेले होली, रंग लिए प्रेम तरंग डारो'
अंग-अंग भिगाये दो' पिचकारी भर मारो।।

हम और तुम' बन के रसिक खेले फाग सजनी'
गाये मधुर स्वर गीत, लिये प्रीति के राग सजनी'
अल्हड़ बन खेले रंग, हिया में लिए अनुराग सजनी
तू सुनयना री, रंग-गुलाल प्रेम के संग डारो'
अंग-अंग भिगाये दो' पिचकारी भर मारो।।

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