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करोलबाग पुलिस स्टेशन, रात का वक्त होने के बाबजूद भी वहां इस वक्त काफी गहमा-गहमी थी। थाने के कंपाउण्ड को मीडिया बाले हाईजेक कर चुके थे और सभी कोशिश कर रहे थे कि किसी तरह मामले की पूरी जानकारी मिल जाए। अपराधी की एक-आध फोटों मिल जाए और फिर बस टी-आर-पी का खेल चालु हो। वो न्यूज में मिर्च-मसाला मिक्स कर सके और कैस भुना सके।
परंतु ईंस्पेक्टर श्रुति माधव के कारण यह मुमकिन ना था। श्रुति माधव, लंबाई लिये गोरा रंग,भरापूरा शरीर और आकर्षक व्यक्तित्व, उम्र यही कोई तीस के करीब। श्रुति माधव जरूरत से ज्यादा चलाक और तेज-तर्रार आँफिसर था। जिसके कारण मीडिया बालों को लगता था, उसकी मनोकामना कभी ना पूरी हो पाएगी। श्रुति माधव मीडिया के प्रभाव और प्रकार को अच्छी तरह जानता था, इसलिए उसने अच्छा होम-वर्क कर रखा था।
इधर पुलिस स्टेशन के अंदर लाँकअप में आरव और वैभव को थर्ड डीग्री देकर टार्चर किया जा रहा था। मारते-मारते पुलिस की टीम थक चुकी थी, परंतु दोनों ने अपना गुनाह नहीं कबूल किया था। पुलिस की मार खाने से दोनों के शरीर पर सुजन आ गयी थी। होंठों से सिर्फ कराह ही निकल रहा था, पर वे दोनों अपने बयान पर अडिग थे कि” उन्हें इस बारे में कोई जानकारी नहीं।
उसकी हठधर्मिता देख कर सब-इन्सपेक्टर सदानंद सहाय आपे से बाहर हुआ जा रहा था। अगर उसका बस चलता तो वो उन दोनों के हलक में हाथ डाल कर सच्चाई उगलवा लेता। पर वो सोचने पर विवस था कि” दोनों ना जाने किस मिट्टी के बने थे। इतने टार्चर करने पर तो बड़े से बड़ा अपराधी भी पनाह मांगने लगता है और पुलिस के सामने टूट जाता है।
पर क्या बात है कि दोनों लङके उसकी बातों को अनसुना कर रहे है? या तो वो अपराधी नहीं है, या उनके दिल के अंदर पुलिस का खौफ नहीं है। नहीं-नहीं, वे दोनों अपराधी ना हो, ऐसा स्पष्ट कारण दिखता ही नहीं। वे मौके वारदात पर क्राईम करते पाए गए है। तो भला, हां वो कानून का मजाक उड़ाने की हिमाकत कर रहे है और ऐसा उसके रहते संभव ही नहीं हो सकता।
सदानंद सहाय मन ही मन इन बातों को सोच कर और भी आक्रोशीत हो गया और गुस्से में उठ कर एक बार फिर से उन दोनों पर पील पड़ा। हालात बद से बदतर होता जा रहा था। दोनों के कराहने की आवाज भी धीमी होती जा रही थी। तभी वहां पर इंसपेक्टर श्रूति माधव ने कदम रखा और वहां के हालात देख कर ही वो पूरा माजरा समझ गया। उसने सदानंद का हाथ पकड़ लिया और सिपाही को इशारों-इशारों में कुछ समझाया। इसके बाद वो सदानंद की ओर मुखातिब होकर बोला। इस वक्त उसके आवाज से प्रतीत हो रहा था, वो सदानंद से रूष्ट है। आँफिसर!आपका व्यवहार आश्चर्य जनक है, इस तरह से तो आप दोनों को मारने पर अमादा हो गये थे।
हां सर!.... बास्तव में ऐसा ही कर देता, अगर मेरे हाथ कानून से बंधे ना होते। आखिरकार ये अपराधी है, ऐसे भयावह अपराधी, जिन्होंने मानवता को शर्मशार किया है। सदानंद सहाय बिफर कर बोला।
कंट्रोल योर सेल्फ आँफिसर!.... आप कब से निर्णय करने लगे, कौन अपराधी है और कौन नहीं? यह काम तो अदालत का है। हम तो वर्दीधारी कानून के रक्षक है, जिसका काम है अपराधी को पकड़ कर अदालत के सामने प्रस्तुत करना। श्रूति माधव का स्वर गंभीर हो चला था।
सौङी सर!.... मैं भावना के प्रवाह में शायद बह गया था। सदानंद शर्मिंदा होकर बोला।
सुन कर श्रूति माधव के चेहरे पर मुस्कान छा गई। फिर वो गंभीर होकर बोला, चलिए तो फिर,एस पी साहब आए है। वो आपसे भी मिलना चाहते है। उसके बाद ही वे इस केस के विभिन्न पहलूओं पर बात करेंगे। इतना सुनना था कि” सदानंद लाँकअप से निकल पड़ा और पीछे-पीछे श्रूति माधव भी निकले और गैलरी में चलते हुए इंसपेक्टर के आँफिस में पहुंचे। जहां पहले से ही शीटी एस.पी. राजन मिश्र मौजूद थे और श्रूति माधव की शीट के बगल बाली शीट पर बैठ कर फाईलों में उलझे हुये थे। आकर्षक व्यक्तित्व एवं भरावदार शरीर, गोरा रंग एवं घुंघराले बाल। पच्चास के उम्र में भी वे काफी यंग प्रतीत हो रहे थे।
दोनों ने जब वहां कदम रखा, तो एस.पी साहब ने नजर उठा कर दोनों को देखा। फिर दोनों को इशारा किया बैठ जाने के लिए। सदानंद सहाय ने उन्हें जोरदार सैल्यूट दिया और सामने बाली शीट पर बैठ गया, जबकि श्रूति माधव अपनी शीट पर आकर बैठ गया। फिर तीनो महत्वपुर्ण मुद्दे पर बात करने लगे। इस वक्त रात के बारह बज चुके थे और श्रूति माधव की उनिंदी आँखें बतला रही थी, वो बहुत थक चुका है और वो अब आराम करना चाहता है।
लेकिन हाय रे नौकरी, ना जिया जाए हालात ऐसी। उसका जी तो कर रहा था, उठे,बेधङक होकर उठे और बोल दे कि” आगे की कार्यवाही कल होगी श्रीमान। मैं भी तो आखिर इंसान हूं, कोई मसीन नहीं। लेकिन वो बोल नहीं सकता था, आखिर उसका बाँस उसके सामने था और ऐसी स्थिति में वो ऐसी हिमाकत नहीं कर सकता था। इसलिए वह एस. पी. साहब के चेहरे पर नजरें गड़ाए चुपचाप उनकी बातें सुन रहा था, तल्लीन होकर।
तभी एस पी साहब उठे और मुस्करा कर बोले। आँफिसर!.... क्या बात है? काफी थके-थके से लग रहे हो।
ज-ज-जी नहीं सर।…. श्रूति माधव हकला कर बोला और अपने शीट से उछल कर खड़ा हो गया। उसके उठते ही सदानंद सहाय की भी तंद्रा टुटी, वो भी झटके से शीट से खड़ा हो गया। ऐसे में एस पी साहब दोनों की हरकत को देख कर मुस्करा उठे, फिर धीमे से बोले। देखो आँफिसर!.... आप लोग जरूरी दिशा- निर्देश तो समझ ही गये होंगे, लेकिन मैं अपराधी को देखना चाहता हूं।
श्योर सर!... क्यों नही-क्यों नहीं, अभी आपको लिए चलते है। सदानंद खुद को संभालता हुआ बोला, वो इस वक्त हड़बड़ा सा गया था। जबकि श्रूति माधव ने चुप रहने में ही अपनी भलाई समझी। फिर तो तीनो ही लंबी राहदारी पार कर के लाँकअप में पहुंचे, जहां आरव और वैभव को रखा गया था। बस, ज्यों ही एस.पी. साहब की नजर दोनों पर पड़ी, उन्हें चार सौ चालीस वाट का झटका लगा। उनके तो हौसले पस्त हो गए। इतनी ठंढी के बावजूद भी वो पूरे पसीने से भीग चुके थे। उन्हें तो विश्वास ही नहीं हो रहा था कि” वो जो देख रहे है, वो सत्य है। वो खुद को संभालने की नाकाम कोशिश कर रहे थे, लेकिन उन्हें लग रहा था, उनके पैर के नीचे से किसी ने जमीन खिसका दी है।
श्रूति माधव और सदानंद उनकी ये हालत देख कर आवाक हो गए थे। उन्हें तो समझ ही नहीं आ रहा था कि” सर को क्या हुआ है। उनमें इतनी हिम्मत भी नहीं थी, ऐसे हालात में अपने सिनियर से कोई सबाल करें। तभी एस.पी.साहब के मुख से अचानक ही निकल गया। ऐसा नहीं हो सकता!.... सुन कर श्रूति माधव ने प्रश्न किया। क्या नहीं हो सकता सर?...
यही कि”-यही कि” यह दोनों अपराधी है और इन्होने कोई अपराध किया है। एस पी साहब अपने सूख चुके हलक को जीभ से गीला करके बा-मुस्किल बोले।
सुन कर दोनों ही चौंके। फिर तो श्रूति माधव से रहा नहीं गया और वो गंभीर होकर बोला। सर आप किस बिना पर ऐसा बोल रहे है?.... जबकि दोनों को मौके-ए-वारदात पर रंगे हाथों पकड़ा गया है। श्रूति माधव एक ही सांस में बोल गया, फिर रुका सांस लेने के लिए,फिर बोला। कहीं ऐसा तो नहीं कि आप इन्हें जानते हो?...
हां मैं जानता हूं इन्हें। एस.पी. साहब बोल कर रूके, फिर खुद को संभाला और आगे बोल पड़े। यह लङका जो है न, आरव है, मेरी शाली का छोटा लड़का और दूसरा लड़का उसका दोस्त है। एस.पी.साहब दोनों की ओर इशारा कर के बोले। सुन कर श्रूति माधव को झटका लगा। फिर भी वो अपने आश्चर्य को दबा कर बोला। तो फिर सर?
तो फिर क्या?....मैं सच बोलता हूं, ये दोनों अपराधी नहीं हो सकते। इन्हें जरूर फंसाया गया है। एस.पी.साहब बोलते- बोलते काफी हद तक नार्मल हो चुके थे।
लेकिन सर!....सदानंद सहाय ने बीच में बोलने की कोशिश की।
यू शटअप्!..... लेकिन-बेकिन कुछ नहीं। मैं ने बोला ना मामला टेढा लग रहा है। एक काम करो, दोनों को मेडिकल ट्रीटमेंट दिलवाओ। मैं कल आकर देखता हूं कि” मामला क्या है। इतना बोल कर एस.पी साहब वहां से निकल गए। ऐसे में दोनों एस.पी.साहब को जाते हुए देखते रहे, परंतु उनका आदेश मानने के अलावा उनके पास और कोई चारा भी तो नही था।
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रात का आलम गहरा होने लगा था और जैसा कि” आम है गांव में, पूरा का पूरा गांव नींद के आगोश में समा चुका था। परंतु ठाकुर साहब के घर में शांति नहीं थी। ठाकुर उदय प्रताप डायनिंग हाँल में सोफे पर बैठे हुए किसी विचार में खोए थे। उनका चेहरा देख कर स्पष्ट प्रतीत हो रहा था, वो किसी बिषय पर गंभीरता से मनन कर रहे थे। दीवाल पर टंगी घड़ी टीक-टीक कर आगे बढती जा रही थी और उसी हिसाब से ठाकुर साहब के विचार का घोड़ा भी भागा जा रहा था।
हां, वे इस तरह से वैचारिक भँवर जाल के तूफान में फंसे हुए थे कि” उन्हें पता ही नहीं चला, ठकुराइन कब चाय की प्याली लेकर आ गई और ट्रे टेबुल पर रख कर उनके सामने बैठ गई। इधर ठकुराइन समझ गई, ठाकुर साहब किसी उलझन की डोर में उलझे है और जब तक वो दखल नहीं देगी, वो विचारों के झंझावात से बाहर नहीं निकल पाएंगे। तब ठकुराइन ने दीवाल घड़ी की तरफ देखा,रात के एक बजने को थे।
अजी सुनते हो जी, आप कहां खो गये?... ठकुराइन धीरे से बोली, जिसकी तीव्र प्रतिक्रिया हुई। ठाकुर साहब चौंक उठे, फिर उन्होंने ठकुराइन के चेहरे पर नजर टिका दी और गंभीर होकर बोले। कुछ नहीं ठकुराइन, मैं तो बस यूं ही आरव के बारे में विचार कर रहा था। देखो ना कैसा शरारती लड़का है। अंजान सा शहर है, ऐसे में वो वहां है और हमें कोई इत्तला भी नहीं की। बस दिल में एक अंजान सा खौफ है।
सुन कर सुनीता देवी का भी दिल धक्क से रह गया। अहले शाम से वो भी परेशान थी, एक अंजान सी आशंका उनके हृदय को वेधती जा रही थी। बात चाहे जो भी हो, जरूर ना, आरव किसी मुसीबत में फंस चुका होगा। अन्यथा वो नहीं आया कोई बात नहीं, काँल करके सूचना तो दे ही देता। वो अब तो नादान नहीं रहा, पूरी तरह जबान हो चुका है और दुनिया के रीति-रिवाज को अच्छी तरह समझता है। ऐसा भी नहीं है कि” उसे जानकारी नहीं है। वो शिक्षित है, उन सारे नियमों को जानता है। फिर वो ऐसी भूल कैसे कर सकता है। नहीं-नहीं जरूर तो कोई बात है। इतना सोचते ही वो, उनका पूरा अस्तित्व ही कंपीत हो उठा। फिर किसी तरह वो खुद को समझाती हुई प्रगट में ऐसे बोली, मानो आरव को लेकर वो बिल्कुल ही निश्चिंत हो।
अजी आप ऐसा क्यों सोचते हो, ऐसा कुछ भी नहीं होगा। अपना आरव है ना, जहां भी होगा श-कुशल होगा और कल सुबह होते ही वापस आ जाएगा। आप तो यूं ही खा-म-खा परेशान हो रहे है। आखिर वो बच्चा नहीं रहा, जबान हो चुका है वो।
बस इसी बात का तो भय है ठकुराइन। ठाकुर साहब ने धीमे से बोला और चाय की प्याली उठा ली और धीरे-धीरे पीने लगे। उन्हें चाय की चुस्की लेते देख कर ठकुराइन ने भी प्याली उठा ली और चाय पीने लगी। लेकिन एक ऐसी बेचैनी थी, जो दोनों के हृदय को खाए जा रही थी। एक अजीब सी आशंका, एक अंजान सा भय उन्हें व्यग्र कर रहा था। कुछ तो था ऐसा कि” दोनों ही का दिल बेतहाशा सा धड़कता जा रहा था। लेकिन अजीब विडंबना थी, दोनों एक दूसरे को अपनी पीड़ा बतला भी तो नहीं सकते थे, क्योंकि इससे दूसरे का मनोबल टूट सकता था। दूसरी ओर छिपाना भी दुष्कर हो रहा था। ऐसे में दोनों की परिस्थिति जुदा नहीं थी, बेबस और लाचार।
आखिरकार दोनों ने ही चाय की अंतिम घूँट ली और प्याली को तिपाई पर रख दिया और एक दूसरे को बड़े गौर से देखा। मानो कोई बात बतलाना चाहते हो। पर हिम्मत साथ ना दे सका, लाचारी आँखों से छलक पड़ने को आतुर था। समय अपने निश्चित रफ्तार से बढती जा रही थी और उसी रफ्तार से रात का आलम गहराता जा रहा था। तभी टेबुल पर रखी फोन की घंटी बजी……., ट्रीन -ट्रीन। दोनों ही फोन की तरफ झपटे, मानो उसी रींग का उन्हें इंतजार था। आखिरकार ठाकुर साहब ने रिसीवर को उठाया और बातें करने लगे।
फिर तो, उधर से ना जाने ऐसा क्या कहा जा रहा था, ठाकुर साहब के चेहरे का रंग और हावभाव पल-पल बदलता जा रहा था। उनके चेहरे पर हो रहे इन अप्रत्याशित परिवर्तन को देख कर ठकुराइन घबड़ा गयी। वो ये तो नहीं समझ पा रही थी कि” आखिरकार उधर से क्या कहा जा रहा था और अभी फोन लाइन पर कौन था। परंतु ठाकुर साहब के हावभाव बतला रहे थे, उधर फोन काँल पर जो भी था, पहचान बाला ही था और शायद वो आरव के विषय में ही बतला रहा था।
ठकुराइन का हृदय धक से रह गया, आखिर वो मां थी ना आरव की और वो शाम से ही आशंकित थी, उनका बेटा किसी मुसीबत में फंस गया है। जरूर फोन काँल पर जो भी हो, आरव के विषय में ही बातें कर रहा था। ठकुराइन इस दौरान इतनी आतंकित हो गयी कि” मौसम में इतनी ठंढी होने के बावजूद उसके माथे पर पसीना छलक पड़ा। तभी ठाकुर साहब ने रिसीवर को स्टैण्ड पर रखा और धड़ाम से कटे पेड़ की तरह सोफा पर ढेर हो गए।
उन्हें समझ ही नहीं आ रहा था कि” वो क्या करें। वो बताएँ तो कैसे बताएँ और क्या बतलाएँ कि” आरव पुलिस के चंगुंल में फंस गया है, लेकिन ठकुराइन को बतलाना तो जरूर पड़ेगा। आखिर वो मां है उसकी और उसे मालूम होना चाहिए, उनका लाडला आखिर कितनी बड़ी मुसीबत में फंस चुका है। आखिरकार ठाकुर साहब ने अपने हृदय को मजबूत किया और सिलसिलेवार सारी घटना ठकुराइन को बतलाने लगे। जब सुनीता देवी ने सुना कि आरव मर्डर के चार्ज में फंस कर पुलिस स्टेशन में कैद है, दहाड़े मार-मार कर रोने लगी। ऐसे में ठाकुर साहब विवश से ठकुराइन को देख रहे थे, उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि उन्हें दिलासा कैसे दे।
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सुबह-सुबह सारा शहर चहचहा रहा था। सुबह की प्रथम किरण ने धरती को छूआ था, उसके साथ ही पूरा पटना शहर मानो अँगड़ाई लेकर गहरी नींद से जगा हो। पूरा शहर फिर से नवीनता लेकर दौड़ने लगा था। शहर ही तो है, सुबह होते ही अपने नए रंग-रूप में आ जाता है….शहर ही तो है। इधर, इस वक्त पुलिस स्टेशन में सन्नाटा व्याप्त था। सारे पुलिस बाले अपने कार्य से इतने थके हुए थे कि” सो रहे थे। लेकिन ऑफिस के अंदर का नजारा कुछ और था। वहां एस.पी. साहब श्रुति माधव के चेयर पर बैठे गहरे विचार में डूबे हुए थे। जबकि श्रुति माधव की नजर उनके चेहरे पर ही टिकी हुई थी। उसे समझ ही नहीं आ रहा था, आखिर एस पी साहब को हुआ क्या था? हां, इतना तो वो समझ चुका था, उन दोनों लड़कों से उनका रिश्ता जो हैं, सारी परेशानी की वजह वही हैं। लेकिन इस समय आखिर एस.पी. साहब के चेहरे पर ये खामोशी का मतलब क्या है? उसको ये समझ नहीं आ रहा था। आखिर एस.पी. साहब के दिल और दिमाग में क्या चल रहा है?
इधर उलझा हुआ श्रुति माधव और तभी एस.पी. साहब उठे। उनका ओजस्वी चेहरा आज मलीन सा था, लगता था जैसे वो कई हफ्ते से बीमार रहें हो और आज ही बेड से उठे हो। उन्हें इस हालात में देख कर श्रुति माधव की रूह कांप गई। वो ये तो अच्छी तरह से जानता था, उसका बाँस बहुत ही ईमानदार है। उन्होंने आज तक हालात से समझौता नहीं किया था। लेकिन आज कुछ तो ऐसा तो था कि” उनके दिल में गहरा तक चुभा था। जो कि जख्म तो गहरा दे रहा था, लेकिन खून का रिसाव पता नहीं चल रहा था। उसकी सोच और एस.पी. साहब फ्रीजर के पास पहुंचे और उसमें से पानी की बोतल निकाल कर एक ही सांस में खाली कर गए और थके कदमों से आकर वापस अपने शीट पर बैठ गए।
एस.पी साहब समझ रहे थे, उनके इस हालात को लेकर श्रुति माधव के मन-मस्तिष्क में कैसा हलचल चल रहा है। वो आज जरूर उनके ईमानदारी को लेकर दुविधा में होगा। आखिर परिस्थिति ही कुछ ऐसी हो गई है कि” आज उन्हें खुद को संभालना मुश्किल सा हो गया है। उफ यह समय है ना, ना जाने इंसान से क्या-क्या ना करवा दे। अगर आज उनके बस में रहता, तो वो समय की गति को खींच कर पीछे ले जाते, पर अफसोस ना ऐसा हो सकता है और ना ही ऐसा करना किसी के बस में है। उन्हें तो बिल्कुल भी अपेक्षा नहीं थी, कभी उनको भी ऐसा दिन देखना पड़ सकता है। वो सच्ची-सच्ची जानते है, आरव इस प्रकार का अपराध कदापि नहीं कर सकता। वो जानते है, आरव किसी का खून तो क्या, एक चींटी को भी नहीं मार सकता और तो और उसके साथ दूसरा लड़का वैभव, वैभव तो एक साफ नेक दिल लड़का था। ऐसे में दोनों का अपराधी होना उन्हें जंच नहीं रहा था।
लेकिन आज वो हकीकत जानते हुए भी कुछ कर नहीं सकते थे। विवश थे, आखिरकार परिस्थिति ऐसी बन गयी थी कि” उनके सोचने,उनके जानने से कोई फर्क नहीं पड़ने बाला था। हालात ही ऐसे हो गये थे, दोनों के खिलाफ पुख्ता सबूत थे और दोनों को मौका-ए-वारदात पर रंगे हाथों पकड़ा गया था। ऐसे में उनका जानना या मानना कोई मायने नहीं रखता। आखिरकार कानून तो सबूत की भाषा समझता है और वो जानते थे, उनका सोचना या समझना क्या कर पाता। लेकिन उन्हें इतना तो पता था, यह मामला जितना सीधा लगता है,उतना सीधा नहीं है। जरूर तो कोई बात है, कोई साजिश तो जरूर है इस अपराध के पीछे, लेकिन क्या? आखिर किस प्रकार की साजिश हो सकता है? यही सोच-सोच कर उनका दिमाग चकरा रहा था। तभी श्रुति माधव ने उन्हें धीरे से पुकारा।
सर! सर।
क्या है, क्या हुआ? एस पी साहब चौक कर बोले, फिर उन्हें समझ आ गया, उनका बात करने का तरीका सही नहीं है। वो तुरंत ही संभल गए, अपने लहजे को संभाला और फिर बोले। क्या बात है आँफिसर , मैं देख रहा हूं, कब से तुम मुझे शंका
भरी नजरों से देख रहे हो?
ऐसी बात बिल्कुल भी नहीं है सर! जैसा कि आप सोच रहे है। मैं तो बस यह सोच रहा हूं, वो बात कौन सी है, जिसने आपको इतना बेचैन कर दिया है। बोलते वक्त श्रुति माधव के आवाज में गंभीरता थी, उसकी बातों को सुन कर एस.पी. साहब एक पल को गंभीर मुद्रा में सोचते रहे। फिर जैसे उन्होंने निर्णय कर लिया हो, गंभीर होकर बोले।
देखो आँफिसर! तुम तो जान ही गए हो, रात को दोनों लड़कों जो गिरफ्तार किया गया था, उसमें से आरव नाम का लड़का मेरे शाली का बेटा है। साथ ही उसके साथ बाला दूसरा लड़का उसका दोस्त है।
तो फिर सर!..... इस केस में कमजोर क्लाँज डाल कर केस कमजोर कर देते है। आपकी दुविधा भी खतम हो जाएगी और वो लड़का भी बच जाएगा। श्रुति माधव पूर्ववत ही गंभीर होकर बोला। बोलने के साथ ही उसकी नजर एस.पी. साहब के चेहरे पर चिपक गई। वो देखना चाहता था, एस.पी. साहब के चेहरे पर उनकी बातों का कितना असर होता है और वो क्या प्रतिक्रिया देते है। जबकि उसकी बातों को सुन कर एस.पी. साहब फीकी मुस्कान मुस्कराए, फिर दूसरे ही पल उनके चेहरे पर गंभीरता फैल गई। वो अपनी कुर्सी से उठे और श्रुति माधव के करीब आ गए और उनके कंधे पर हाथ रख कर बोले।
आँफिसर! हम लोग कानून के रखवाले है और अगर हम ही कानून से छेड़छाड़ करेंगे, तो कानून पर विश्वास कौन करेगा? मैं ऐसा तो बिल्कुल भी नहीं चाहता कि” आरव के साथ नरमी बरती जाए। परंतु मैं दावे के साथ कह सकता हूं, वे दोनों लड़के ऐसा अपराध तो नहीं कर सकते। हां मैं मानता हूं, वे लोग जिस्म के लालच में फंसे होंगे और किसी ने उनकी कमजोरी का फायदा उठाया हो।
तो आपका मतलब यह है, किसी ने उनके साथ साजिश की है। श्रुति माधव गंभीर होकर बोला।
हां मैं यही तो बतला रहा हूं आँफिसर! मुझे इस प्रकरण में गहरी साजिश की बू आ रही है। अब बस इतना पता नहीं है, वो साजिश है क्या?
एस.पी. साहब की बातों से श्रुति माधव का चेहरा आश्चर्य से फैल चुका था। वो सोच ही रहा था, इसके जबाव में क्या बोले। तभी वहां पर सब-इंस्पेक्टर सदानंद ने वहां कदम रखा। इस वक्त वो काफी भयभीत था, जो उसके चेहरे से स्पष्ट झलक रहा था । उसे इस हालत में देख कर दोनों ही चौक पड़े, जबकि सदानंद ने एक ही सांस में बोल दिया।
सर! अस्पताल से उस लड़की का डेड बाँडी गायब है और अभी अस्पताल में हड़कंप मचा हुआ है। उसकी बातों का गहरा असर हुआ, दोनों के मुख से आश्चर्य भरी चीख निकली। क्या!..... फिर तो दोनों ही बाहर की ओर लपके, पीछे -पीछे सदानंद भी लपका।
लक्ष्मी निवास, सुबह हो चुकी थी, लेकिन लक्ष्मी निवास में हड़कंप मचा हुआ था। हाँल में इस वक्त मनोरमा देवी दहाड़े मार-मार कर रो रही थी। उसके शरीर पर सफेद साड़ी अस्त-व्यस्त हालत में लिपटा हुआ था। आँखें रोने से सूजी हुई थी, होंठों पर पपड़ी और बाल बेतरतीब बिखरे हुए थे। उसे देख कर ऐसा लग रहा था, जैसे बेटी के मौत का सदमा ने उन्हें तोड़ दिया हो और अब वो संभल नहीं पाएगी। बंगले में जगह-जगह प्राइवेट बाऊंसर तैनात थे, जिससे प्रतीत हो रहा था, बंगले को किले में तबदील कर दिया गया हो। बंगले पर आने-जाने बालों का तांता लगा हुआ था और हर एक आने-जाने बाला दिलाशा दे रहा था। लेकिन सेठानी बस रोए जा रही थी।
तभी बंगले के मेन गेट से इनोवा कार के काफिले ने प्रवेश किया और बंगले के अहाते में रुकी। कार के रुकते ही कार का अगला गेट खुला और उस में से लक्ष्मी विलास राय उतरे। इस वक्त उनका बाल बिखरा हुआ था, आँखों के नीचे स्याह परत पड़ गयी थी और कपड़े अस्त-व्यस्त थे। उम्र यही पचास के करीब होगा। आकर्षक व्यक्तित्व, लेकिन इस समय उनके चेहरे पर हवाईयां उड़ी हुई थी, ऐसे में उनको देख कर ऐसा लग रहा था, वो महीनों से बीमार हो। उन्होंने हाँल में कदम रखा और एक नजर पूरे हाँल को देखने के बाद वो अपने रूम की ओर बढ गए। उनको रूम की ओर जाता देख मनोरमा देवी उठी और उनके पीछे लपकी।
थोड़ी देर बाद ही मनोरमा देवी सेठ जी के पीछे-पीछे बेडरूम में पहुंच चुकी थी। सेठ जी जब बेडरूम में पहुंचे, तो तिपाई पर से पानी का जग उठा कर होंठों से लगाया और एक ही सांस में खाली कर गए। मनोरमा देवी बस उनके मनोभाव को पढने की कोशिश कर रही थी, जबकि सेठ जी ने पानी का जग खाली किया और वही सोफे पर ढेर हो गए। मनोरमा देवी तो बस इंतजार कर रही थी कि” वो कुछ बोले। परंतु उन्होंने तो चुप्पी साध ली थी। जो कि मनोरमा देवी के लिए असह थी। वो तो सोच रही थी कि” सेठ जी बोलेंगे। जब बहुत देर तक वहां चुप्पी छाई रही, तो मनोरमा देवी से नहीं रहा गया। वो फफक कर रो पड़ी ।
उसे इस प्रकार रोता देख कर सेठजी से नहीं रहा गया, वे उठे और मनोरमा देवी के पास आ गए और उसके कंधे पर अपने हाथों को रखा। फिर भी सेठजी मौन ही रहे। बस यही मौन मनोरमा देवी को खटक रहा था। वो सोच रही थी, किसी प्रकार से सेठ जी बोले। किन्तु सेठ जी ने तो मौन की चादर ओढ रखी थी। शायद सेठ जी उन शब्दों को ढूंढ रहे थे, जिसके द्वारा वो अपनी बात की शुरूआत कर सके। बहुत देर तक ऐसी ही स्थिति रही, जो मनोरमा देवी के लिए असह थी। इसी लिए वो दहाड़ें मार-मार कर रो रही थी।
तभी सेठजी ने अपनी चुप्पी तोड़ी और गंभीर स्वर में बोले। मनोरमा देवी! यह कैसे हुआ? उनके गंभीर प्रश्न को सुन कर सेठानी फिर रोने लगी, तो सेठजी ने उन्हें ढाढस बंधाया। थोड़ी देर तक रोने के बाद मनोरमा देवी चुप हुई, फिर एक-एक कर घटित हुए घटना क्रम को बतलाने लगी। सेठजी गौर से उनकी बात सुन रहे थे, जबकि मनोरमा देवी एक-एक कर घटना को बतलाती जा रही थी। जब सेठानी ने अपनी बात खतम की, तो सेठजी ने उन्हें देखा,मानों उसकी बातों में सच्चाई तलाश रहे हो। फिर सेठजी गंभीर होकर बोले।
कहीं ऐसा तो नहीं मनोरमा देवी!... तुमने जायदाद की लालच में मेरी बेटी के साथ साजिश की हो और उसे रास्ते से हटा दिया हो।
सेठजी की सर्द आवाज सुन कर मनोरमा देवी को लगा, एक साथ उसके शरीर में हजार चींटियों ने रेंगना शुरू कर दिया हो। परंतु वो दूसरे ही पल संभल गई और धीरे से बोली। हाय राम जी!.... आप कैसे इंसान है जो ऐसा सोचते है? अब भला मैं ऐसा क्यों करूंगी? मैं भी तो उसे अपनी बेटी मानती थी।
हां वही बोल रहा हूं, अगर मुझे थोड़ी भी भनक लगी, मेरी बेटी की हालत तुम्हारे कारण हुई है। तो मैं सारी मर्यादा भूल कर
तुमको वह पाठ पढाऊँगा कि” ना तुम जी सकोगी और ना मर सकोगी। सेठजी ने सपाट लहजे में बोला।
सेठजी की बात सुन कर मनोरमा देवी के रीढ की हड्डी में सिहरन दौड़ गई। लेकिन दूसरे ही पल उन्होंने खुद को संभाल लिया, जबकि सेठ जी बाहर निकल गए।
पटना गोलंबर, वहां इंदिरा मोरचरी में इस वक्त हरकंप मचा हुआ था। सुबह के आठ बज चुके थे और इसी के साथ ही मोरचरी में हरकंप मच गया था। बातें भी तो ऐसी ही थी, रातों-रात मोरचरी से लाश का गायब हो जाना, साधारण घटना तो नहीं था। जिसका कि” असर तो होना ही था और वही हो रहा था। मोरचरी के सारे कर्मचारी इधर-उधर भागदौड़ रहे थे। सुबह होते ही यहां लगता था, जैसे तूफान आ गया हो। यहां के सारे कर्मचारियों के चेहरे पर हवाईयां उड़ रही थी। सभी को ऐसा लग रहा था, ना जाने अगले पल यहां क्या होगा और उनके साथ कैसा बर्ताव किया जाएगा?
वहां के सभी कर्मचारी इसी उलझन में थे कि” अगले पल उनके साथ क्या होगा। तभी मोरचरी के कंपाउंण्ड में पुलिस की गाड़ियों के काफिले ने प्रवेश किया और पार्किंग में लग गई। इधर पुलिस को आया देख मोरचरी के हेड दीनानाथ वंसल लगभग दौड़ ही पड़े। तब तक श्रुति माधव और एस.पी. साहब अपने जीप से उतर चुके थे और मोरचरी के मेन गेट की ओर लपके थे। उन्होंने अपनी ओर लपके दीनानाथ वंसल की ओर कोई ध्यान नहीं दिया था और यही बात दीनानाथ वंसल को परेशान कर रही थी। वो इतना तो जानता ही था, पुलिस आँफिसर की बेरुखी उसके स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं है। वो भी उन दोनों के पीछे-पीछे लपका।
जबकि श्रुति माधव और एस पी साहब उसके आँफिस में पहुंच चुके थे। आँफिस में पहुंचने के बाद एस.पी.साहब दीनानाथ वंसल की ओर पलटे। उनकी चुभती हुई नजरों को अपनी ओर पाकर पहले तो दीनानाथ वंसल सकपका गया। उसे पहले तो समझ ही नहीं आया, वो क्या बोले। लेकिन उसने तुरंत ही खुद को संभाल लिया। वो यह जानता था, उसकी एक छोटी सी गलती उसे संदेह के घेरे में ला सकती है और उसका पूरा-का-पूरा लाइफ गर्त में डूब सकता है। ऐसे में वो ऐसी गलती नहीं करना चाहता था कि” परेशानी में फंस जाए। इसलिए उसने खुद को संभाला और अपने वाणी में माधुर्य घोल कर बोला।
सर! आप लोग ऐसे खड़े क्यों है, बैठिए ना प्लीज और बोलिए, आप लोगों के लिए क्या मंगाऊँ? ठंढा या गर्म?
नहीं श्रीमान! आपको ऐसा कष्ट करने की जरूरत नहीं, वैसे मैं आपका परिचय जान सकता हूं?
हां-हां क्यों नहीं, मैं दीनानाथ वंसल, इस मोरचरी का कार्यकारी हेड। वंसल तपाक से बोला।
उसकी बातों को सुनकर एस.पी. साहब के होंठों पर मुस्कान छा गई। उन्हें तो पहले ही अंदाजा लग गया था, वो जरूर ही इस मोरचरी का हेड होगा। वरना वो इस कदर उनके आगे-पीछे नहीं घूमता। हां, इतना तो तय था, वहां घटी घटना से वो घबरा गया था और उसे मालूम था, इस घटना का उसके कैरियर पर क्या प्रभाव पड़ेगा। शायद वो चालाक और काईंया भी था, तभी तो खुद को विनम्र दिखला रहा था और चापलूसी कर रहा था। बस यही बात थी, उनके होंठों पर मुस्कान छा गई थी। फिर तो वे वहां रखी चेयर पर बैठ गए और श्रुति माधव को बैठने का इशारा किया। श्रुति माधव के बैठते ही एस.पी.साहब दीनानाथ की ओर मुखातिब हुए।
हां तो श्रीमान! आप दो कप गर्म-गर्म काँफी और पानी का बोतल मंगवाए, उसके बाद हम आपसे आराम से बैठ कर बातें करते है।
ज-ज-जी सर!.... मैं अभी मंगवाता हूं। दीनानाथ मुस्तैदी से बोला और बाहर की ओर लपका। उसके बाहर जाते ही श्रुति माधव एस.पी.साहब की ओर मुखातिब हुआ।
सर!.... आप भी ना गजबे करते है। आपको उससे यहां के हालातों के बारे में पुछना चाहिए था, तो आपने उसे क्लीन चीट देकर काँफी लाने के लिए भेज दिया।
ऐसा नहीं है श्रुति माधव!.... एस.पी.साहब उसकी ओर देख कर बोले, उसके बाद मुस्कराए। उनके मुस्कान का मतलब श्रुति माधव समझ नहीं पा रहा था, इसलिए हक्का-बक्का होकर उनकी ओर देख रहा था। तब एस.पी.साहब गंभीर होकर बोले, शायद तुमने नोट नहीं किया, यह जो दीनानाथ वंसल है ना, बहुत ही काईंया किस्म का इंसान है। उससे हम सीधी अंगुली से घी नहीं निकाल सकते, साथ ही उससे सहयोग प्राप्त करना है, तो उसके साथ हमें अपना व्यवहार नार्मल रखना होगा। खैर तुम बताओ, फिंगर एक्सपर्ट एवं हैकर टीम कब तक आ रही है।
सर! उन लोगों को अब तक तो आ जाना चाहिए था। मैं अभी काँल करके पता करता हूं। बोलने के साथ ही श्रुति माधव मोबाइल से उलझ गया। तभी दीनानाथ ने वहां कदम रखा। उसके साथ एक कर्मचारी था, जो कि” काँफी का ट्रे और पानी का बोतल लिए था। वो यंत्रचालित सा आगे बढा और सेंटर टेबुल पर सारा समान सजा कर मुड़ा और बाहर निकल गया। तब एस.पी. साहब ने उसे इशारे से समझाया कि” वो भी बैठ जाए। फिर तो दीनानाथ उनके सामने बाली चेयर पर बैठ गया,फिर वे
लोग काँफी पीने में व्यस्त हो गए। काँफी खतम होने के बाद एस.पी.साहब वंसल से मुखातिब हुए।
अच्छा तो अब बताओ, कल रात से लेकर अभी तक यहां पर क्या-क्या घटना क्रम घटित हुआ?
उनकी बातों को सुन कर दीनानाथ एक पल को घबराया, लेकिन दूसरे ही पल खुद को सामान्य कर लिया और गंभीर होकर बोला। सर!..... वैसे तो यहां पर अलग कुछ भी नहीं होता, सब रूटीन वर्क है जो पहले से ही निर्धारित होता है। जैसे कि” कोई भी शव आता है, तो उसे मोरचरी में पोस्टमार्टम के लिए लेकर जाते है और फिर उसे कोल्ड रूम में स्टोर कर देते है।
तो फिर क्या ऐसा हुआ कि” ऐसी घटना घट गई? एस.पी.साहब उसे बीच में ही टोककर बोले।
वही तो बतला रहा हूं सर!....अमूमन यहां दिन में ही पोस्टमार्टम किया जाता है, जब तक कोई इमरजेंसी नहीं हो। इस केस में भी ऐसा ही हुआ था। लाश को पोस्टमार्टम के लिए मोरचरी में रख दिया गया था । लेकिन सुबह जब पोस्टमार्टम के लिए डाक्टर की टीम आई,तो लाश गायब था।
तुमको मालूम है, वो लाश किसकी थी? श्रुति माधव इस बार गंभीर होकर बोला।
हां सर!..... हमें मालूम है, वो लाश यहां के बहुत बड़े बिजनेस मेन लक्ष्मी निवास की पुत्री श्रधा की थी।
तो फिर गलती कैसे हो गयी? इस बार बोलते वक्त श्रुति माधव की आवाज कर्कश हो चुकी थी, जिसे सुनते ही दीनानाथ वंसल के देवता कूच कर गए, वो हकला कर बोला।
सर!... मुझे मालूम था, यह हाई प्रोफाईल केस है। फिर भी ना जाने कैसे यह घटना घट गई। वैसे सर!.... मैं ने अपने तरफ से जितना हो सका, इंक्वायरी की, सी.सी. टी.वी. फुटेज देखे। लेकिन इस सब का नतीजा सिफर ही रहा। मैं दावे के साथ कह सकता हूं सर कि” कल रात से लेकर अभी तक इस मोरचरी में ना कोई आया है ना गया है।
तो फिर इतनी बरी घटना घटित कैसे हुई? श्रुति माधव आवेशित होकर बोला।
वहीं तो समझ में नहीं आ रहा है। दीनानाथ ऐसे बोला,मानो वो अभी रो देगा। उसकी बातों को सुन कर एस.पी.साहब को अंदाजा हो चुका था, वो सच बोल रहा है,इसलिए वे उससे मुखातिब हुए। अच्छा!.... तुम बस इतना बताओ, इस घटना की खबर मीडिया को तो नहीं लगी।
नहीं सर!.... वंसल खुद को सामान्य करता हुआ बोला।
ठीक है, तुम ऐसा करना भी नहीं, जब तक मैं ना कहूं तुम मीडिया के सामने आना भी मत। एस.पी.साहब गंभीर होकर बोले, उसके बाद एक पल को मौन हो गए। फिर बोले, क्या तुम मुझे इस मोरचरी को दिखला सकते हो।
हां-हां क्यों नहीं सर!..... दीनानाथ ने स्वीकृति में गरदन हिलाया। इसके बाद वे लोग अपनी शीट से उठे और मोरचरी के अंदर जाने बाले गलियारे की ओर बढ गए। उन दोनों को दीनानाथ मार्ग दर्शित करता जा रहा था। इसी बीच फिंगर एक्सपर्ट और साइबर हैकर आ चुके थे। श्रुति माधव उनके साथ लग गया था। जबकि एस.पी.साहब दीनानाथ के साथ लगे हुए थे। इस बीच एस.पी.साहब ने पूरे मोरचरी का एक चक्कर काट लिया था और वापस आकर दीनानाथ के आँफिस में बैठ गए थे।
दीनानाथ भी उनके सामने मौन बैठा था, मानो इंतजार कर रहा हो, वो कब अपना मुख खोले। पर एस. पी.साहब बोलने के मूड में नहीं थे। उन्हें मौन देख कर दीनानाथ की धिग्धी बंधी हुई थी। उसे समझ ही नहीं आ रहा था, वो क्या करें और क्या बोले। तभी मोरचरी के गेट पर हलचल शुरू हुई और धीरे-धीरे बढने लगी। एस.पी.साहब ने कौतूहल बस खिड़की से बाहर देखा। बाहर देखते ही उनके हौसले पस्त हो गए। सर्द मौसम होने के बावजूद भी वो एक मिनट में ही पसीने से तर-बतर हो गए थे। बाहर कारण ही ऐसी थी। मोरचरी के गेट पर सेठ लक्ष्मी निवास की इनोवा कार खड़ी थी और उनके साथ मीडिया बालों की पूरी फौज थी।
एस.पी.साहब ने आनन-फानन में श्रुति माधव को काँल करके अपने पास बुला लिया। तब तक सेठ लक्ष्मी निवास अंदर आ चुके थे और उनके साथ मीडिया की टीम भी अंदर आ गई थी। फिर तो वहां पर बबाल मच गया। जब सेठजी को मालूम चला, उनकी लड़की का लाश गायब हो चुका है, तो उन्होंने रोना-धोना शुरू कर दिया। बस मीडिया बालों को तो मसाला मिल गया था, बस उन लोगों ने नमक मिर्च लगा कर न्यूज को लाइव करना शुरू कर दिया। हलांकि श्रुति माधव ने कोशिश की कि” किसी तरह से मामले को दबाया जा सके, पर उन्हें सफलता नहीं मिली।
करोल बाग पटना, शहर से दूर वह विशाल फार्म हाउस, जो काफी क्षेत्रफल में फैला हुआ था। फार्म हाउस के चारों तरफ ऊँची-ऊँची बाउण्ड्री बाल थी। जिसके गेट पर दो गन मेन मुस्तैदी से अपनी डियूटी बजा रहे थे। फार्म हाउस के अंदर पोर्च में स्लेटी रंग की इनोवा कार खड़ी थी। फार्म हाउस के बीचों-बीच एक शानदार बंगला बना हुआ था। जिसके चारों तरफ इस तरह से गार्डेणिंग लगाई गयी थी कि” वहां के सुन्दरता में चार चांद लग रहे थे। बंगले के अंदर बेडरूम में इस वक्त एक सरदार लेटा हुआ था, शायद वो बेहोश था। उम्र यही कोई बीस वर्ष के करीब होगी।
सरदार के अलावा वहां पर कोई नजर नहीं आ रहा था। हां खिड़की पर बैठ कर गौरैया चहक जरूर रही थी। तभी रूम में उन दोनों लड़कों ने प्रवेश किया। इस वक्त दोनों के हाथ में काँफी की मग थी, जिसे वे चसक रहे थे। वे दोनों आराम से आगे बढ कर बेड के बगल में रखे सोफे पर बैठ गए, लेकिन उनकी नजर उस सरदार पर ही टिकी हुई थी। मानों इंतजार कर रहे हो कि” कब सरदार की बेहोशी टूटे। इस बीच एक लड़के ने अपनी कलाईं घड़ी पर नजर डाली, दिन के दस बज चुके थे। वो थोड़ा सा बेचैन हुआ और दूसरे लड़के को संबोधित करके बोला।
क्या बात है रोबीन!....इस सरदार को तो होश ही नहीं आ रहा। ऐसे में अब हम लोग क्या करेंगे?
अभी चिन्ता की कोई बात नहीं है राहुल। ऐसा इसलिए हो सकता है, इसे हैवी ड्रग्स का डोज दिया गया हो। ऐसे में उस ड्रग्स का असर खतम होने में समय तो लगेगा ही। दूसरा लड़का जिसका नाम रोबीन था,ने राहुल नाम के लड़के को चिन्ता में डूबा देख कर गंभीर होकर बोला।
तो फिर हम लोग करें क्या? राहुल के स्वर पूर्ववत थे।
इंतजार! हम इंतजार करेंगे। इसके अलावा हमारे पास दूसरा कोई आँप्सन भी तो नहीं है। रोबीन गंभीर होकर बोला।
इसके बाद दोनों काँफी पीने में व्यस्त हो गए। बाहर खिली-खिली धूप से बहुत ही सुन्दर नजारा लग रहा था। परंतु उन दोनों के पास अभी प्रकृति का नजारा करने का ना तो समय था और ना ही वे ऐसा करना चाहते थे। उनकी नजर तो बस उस सरदार पर ही टिकी थी। तभी सरदार के शरीर में हलचल हुई और वो कुनमुनाया। उसे होश में आता देख कर दोनों लड़कों की बाँछे खिल गई। उसे होश में आता देख कर दोनों ने अपने-अपने कप तिपाई पर टिका दी, जबकि राहुल नाम का लड़का किचन की ओर दौड़ गया और पलक झपकते ही काँफी का मग ले आया।
वो जब किचन से लौटा, तो सरदार को पुर्ण रूप से होश आ चुका था और वो अपने चारों तरफ नजर फेर कर परिस्थिति का मुआयना कर रहा था। वे दोनों लड़के तत्परता से खड़े थे कि” वो कुछ तो बोले और वे दोनों मदद कर सकें।
किन्तु, वो सरदार अपने आस-पास बस नजर ही घुमाए जा रहा था। साथ ही उसकी नजरों से लग रहा था, वो थोड़ा बेचैन भी है। दोनों उसके मन स्थिति से अच्छी तरह वाकिफ थे, लेकिन वे कर भी क्या सकते थे, वक्त तो आगे निकल चुका था। राहुल ने इस स्थिति को सामान्य करने के लिए काँफी का मग उस सरदार की तरफ बढाया और गंभीर होकर बोला। तुम इस काँफी को पी लो, शायद तुमको राहत पहुंचे।
इतना सुनते ही वो सरदार गुस्से से बेकाबू हो गया और तकिया उठा कर खींच कर राहुल को मारा। राहुल इसके लिए मानो तैयार था, वो खुद को बचा गया। तब सरदार बिफर कर बोला। तुम लोग निकम्मे हो, तुम लोगों से एक भी काम सही से नहीं होता ।तुम लोगों को करना क्या चाहिए था और तुम लोगों ने कर क्या डाला।
उसकी बाते सुन कर रोबीन थोड़ा विचलित हुआ। वो सरदार को समझाने बाले लहजे में बोला। देखो, तुम हम लोगों को दोष मत दो। हम लोगों ने पूरी तत्परता से योजना को कार्यान्वित किया था। लेकिन वो लड़का इतना आक्रामक था, ऐसे में उसने हमारी अपेक्षा के विपरीत फुर्ती दिखलाई। ऐसे में हम लोग समझ ही नहीं पाए और गलती हो गई।
लेकिन इस गलती का परिणाम तुम लोग जानते हो ना?... तुम लोगों की एक छोटी सी भूल किस प्रकार शूल बन गया है। वो सरदार गुस्से में बिफर कर बोला। उसकी बातें सुन कर राहुल उसके पास बैठ गया और उसकी आँखों में आँखें डाल कर बोला । सरदार! अब जो होना था,वो हो चुका, अब तो पहले काँफी पी लो, फिर दिमाग ठंढा करके बतलाओ, अब आगे हम लोगों को क्या करना है?
उसकी बातों का शायद उस सरदार पर प्रभाव हुआ। वो शांत होकर काँफी पीने लगा। जबकि दोनों लड़के उसके चेहरे पर नजर टिकाए उसे ही देख रहे थे। मानो वो अभी मुंह खोले और दोनों ही सेवा में तत्पर हो जाए। बाहर खिड़की से ठंढी-ठंढी हवा आ रही थी, जो उनके चेहरे को छू जाती थी। इन्हीं हालातों में समय की सुई आगे की ओर खिसकने लगी। लेकिन उन लोगों के तत्परता में कोई कमी नहीं आई। तभी उस सरदार ने काँफी की प्याली को खाली करके तिपाई पर रखा और उन लोगों से मुखातिब होकर बोला।
आगे तुम लोग का इरादा क्या है? मेरा मतलब है, तुम लोग अब क्या करोगे?
करना क्या है, अभी सोचा ही नहीं है। वो तो तुम बतलाने बाले थे ना, आगे हमारा लक्ष क्या होगा? हमारे बीच यही तो डील हुई थी, फिर तुम ऐसे कैसे पुछ रहे हो? राहुल तनिक विचलित होकर बोला।
उसकी बाते सुन कर सरदार के चेहरे पर मुस्कान छा गई थी। वो परिस्थिति को समझता था और यह भी जानता था, बदले हुए हालात में दोनों अपनी तरफ से एक भी शब्द नहीं बोलेंगे। आखिरकार उनसे गलती हो चुकी है, ऐसे में वो बोल कर उसका नाराजगी नहीं झेलना चाहते। अतः सरदार गंभीर होकर बोला। देखो अब परिस्थिति बिल्कुल ही बदल चुकी है, जिससे हम लोग पूर्ण रूप से अवगत है। ऐसे में हमारी योजना का रूप बदल जाएगा। अब हमें नए सिरे से आगे के लिए योजना बनाना होगा और उस पर कार्य करना होगा।
वो तो ठीक है, लेकिन हमें करना क्या होगा? इस बार रोबीन गंभीर होकर बोला।
वही तो बोल रहा हूं। तुम लोग सबसे पहले उस लड़के के घर जाओगे। उसके बारे में जानकारी जुटा कर लाओगे और फिर हम लोग आगे निर्धारित करेंगे, हमें करना क्या है। सरदार गंभीर होकर बोला।
ठीक है तो,हम लोग अभी निकलते है!.....राहुल बोला।
वो तो ठीक है, लेकिन मेरा नाम नहीं बतलाओगे? सरदार उनकी तरफ देख कर बोला।
गुरुवंत सिंह! वैसे यहां जरूरत की सारी सुविधाएँ मौजूद है। ऐसे में जहां तक मेरा अनुमान है, तुम्हें किसी प्रकार का तकलीफ नहीं होगा। तो अब क्या बोलते हो गुरुवंत सिंह, हम लोग निकले? रोबीन बोला।
क्यों नहीं-क्यों नहीं, तुम लोग आराम से निकल सकते हो। सरदार बोला, बस इतना सुनते ही दोनों निकल गए। सरदार उन्हें जाते हुए देखता रहा। इस वक्त सरदार के होंठों पर रहस्यमय मुस्कान था।
पुलिस जीप पटना के सड़कों का हृदय रौंदती हुई आगे भागी जा रही थी। अभी दिन के ग्यारह बजे थे और ठंढ की धूप गुनगुनी होती है। जीप में इस वक्त एस.पी.साहब और श्रुति माधव थे। जीप को एस.पी.साहब खुद ही ड्राइव कर रहे थे, जबकि श्रुति माधव उनके बगल में बैठा था। इस वक्त पुलिस जीप जितनी रफ्तार से दौड़ रही थी, उसी रफ्तार से दोनों के विचार के घोड़े भी दौड़ रहे थे। आज दोनों की मोरचरी में जितनी फजीहत हुई थी, शायद ही उन दोनों ने अपने जीवन में इतनी जलालत झेली हो और यही कारण भी था, दोनों के दिमाग की बत्ती जली हुई थी। उन्हें समझ ही नहीं आ रहा था, यह किस प्रकार का केस है और इसमें उलझने कितनी है?...ऐसे में आखिरकार एस.पी.साहब को जीप में छाई चुप्पी बर्दाश्त नहीं हुई। वो गंभीर होकर श्रुति माधव से बोले।
क्या आँफिसर! इस केस में तुम्हारे पल्ले कुछ पड़ा?
नहीं सर! मैं तो समझ ही नहीं पा रहा हूं, इस केस का सिरा कहां पर शुरू है। लगता तो है, हम इस केस को सुलझाने के चक्कर में कहीं खुद उलझ कर ना रह जाए। श्रुति माधव गंभीर होकर बोला, जिसकी प्रतिक्रिया हुई। एस.पी.साहब के होंठों पर फीकी मुस्कान छा गई। उन्होंने श्रुति माधव के चेहरे पर नजर टिका कर बोला।
लाश के बारे में कोई जानकारी हासिल हुई। मेरा मतलब है, कोई सुराग मिला?
नहीं सर! यह समझ ही नहीं आ रहा कि” वह लाश कहां गई। उसे धरती निगल गई या आसमान खा गया। क्योंकि हमारे एक्सपर्ट ने पूरी कोशिश की और इस निष्कर्ष पर पहुंचे। उस मोरचरी में रात से लेकर सुबह तक ना कोई अंदर गया और ना कोई बाहर निकला। ऐसे में यह सवाल उठता है, लाश गया तो गया कहां? श्रुति माधव पूर्ववत ही गंभीर होकर बोला।
बात तो तुम्हारा सही ही है। परिस्थितियां हमारे विपरीत है और ऐसे में हमें इस केस को शाँल्व करना है। एस.पी.साहब बोले, तभी श्रुति माधव ने उन्हें टोका। सर!.... पुलिस स्टेशन आ चुका है, अब जीप को कही दूर ले जाना है।
सुनते ही एस.पी.साहब ने बाहर देखा और चौंके। पुलिस स्टेशन का गेट आ चुका था। उन्होंने जीप की स्टेयरिंग तेजी से घुमाई और जीप को थाने के कंपाउंण्ड में ले लिया और जीप को पार्क करके उतरे। श्रुति माधव तो फुर्ती से पहले ही उतर चुका था। एस.पी.साहब उसके करीब पहुंचे और बुदबुदाए । आ गया होगा खबीस, अब वो दिमाग का दही करेगा।
आपने हमें कुछ बोला सर! श्रुति माधव गंभीर होकर बोला।
नहीं-नहीं आँफिसर! मैंने तुम्हें नहीं बोला। मैं तो बस अपने बाँस अनमोल सिन्हा की बात कर रहा था। एस.पी.साहब अपने शब्दों को चबा-चबा कर बोले।
तो क्या डी.जी.पी. साहब आ चुके होंगे। श्रुति माधव आश्चर्य चकित होकर बोला।
अरे आया होगा क्या!.... कब से आकर मेरे आँफिस में बैठा होगा और हमें कच्चा चबा जाने का इरादा लिए होगा। आखिरकार इतना बड़ा बम जो फटा है। उसकी पूरी भड़ास निकालेगा। एस.पी.साहब पूर्ववत बोले।
तो हम लोग क्या करें? श्रुति माधव बोला।
करेंगे क्या! कुछ भी नहीं कर सकते। वो पूरा का पूरा घाघ है, हमारी एक नहीं चलने देगा। अब हमारे पास कोई दूसरा आँप्सन नहीं है, सिवा उसको झेलने के। बोलने के साथ ही एस.पी.साहब अपने आँफिस की ओर बढ गए। फिर तो, श्रुति माधव भी उनके पीछे-पीछे लपका। वे दोनों पुलिस स्टेशन के लंबे गलियारों को पार करके आगे बढे। साथ ही दोनों की नजरें नोट कर रही थी, वहां पर अभी हरकंप मचा हुआ था। बड़े बाँस के आने के कारण सभी स्टाफ पूरी तन्मयता से अपने काम में जुटे थे। उन लोगों को काम में इस प्रकार उलझा देख कर दोनों के होंठों पर मुस्कराहट छा गई।
वे दोनों जब एस.पी.साहब के आँफिस में पहुंचे तो चौंकने का अभिनय किया। साथ ही सैल्यूट भी किया। उन लोगों के वहां पर पहुंचते ही कुर्सी पर बैठा शख्स मुस्कराया। इस वक्त उसका मुंह पान के बीड़े से भरा था, जिसे वो पूरी तन्मयता से चबा रहा था। कसा हुआ शरीर,लंबी हाइट और टकला सिर, हां वो अनमोल सिन्हा थे। डी.जी.पी. पटना सीटी, उम्र करीब पचास होगा। स्वभाव से मृदुल, लेकिन बहुत ही काईंया, उनके बारे में कहावत थी कि” कोई उन्हें बेवकूफ नहीं बना सकता था। उन्हें चापलूसी भी पसंद नहीं थी, ऐसे में कोई भी उनके सामने आना नहीं चाहता था।
इस वक्त वो पान खाने में इस कदर व्यस्त थे, मानो इसके अलावा उन्हें और कोई काम प्रिय ना हो। परंतु एस.पी.साहब और श्रुति माधव अच्छी तरह से जानते थे, बाँस काईंया किस्म का इंसान है। बाँस जो दिखता है, दरअसल वो है ही नहीं, अपितु इतना खूंखार है कि” किसी के भी रूह को कंपा दे। वो अच्छी तरह से अपने बाँस को जानते थे, इसलिए सावधान खड़े थे कि” बाँस कब क्या बोल दे।
जबकि अनमोल सिन्हा ने पान खाते-खाते तिरछी नजर से उन लोगों की तरफ देखा। उनकी दयनीय हालत देख कर उनको दया आ गई। आखिर जो भी हो, यह दोनों आँफिसर उन्हें अतिशय प्यारा था। वो उन दोनों के कार्य शैली से काफी प्रभावित रहते थे। अतः उन्होंने आँखों से दोनों को बैठने का इशारा किया। उनकी इजाजत मिलते ही दोनों के जान में जान लौटी। वे दोनों उनके सामने बाली चेयर पर बैठ गए। लेकिन क्या मजाल, जो अनमोल सिन्हा के हरकत में कोई फर्क आया हो। वो तो अपनी मस्ती में पान को चबाए जा रहे थे और यही बात दोनों को चिन्ता में डाले हुए थी। वे चाहते थे, बाँस बोले, चाहे चिल्लाना हो चिल्लाए, परंतु उनका यह मौन उन को चुभ रही थी। ऐसी परिस्थिति ज्यादा देर तक कायम नहीं रह सकी, एस.पी. साहब से नहीं रहा गया और बोल पड़े ।
सर!.... गरमागरम काँफी मंगवाते है।
लेकिन क्यों? मुझको गर्म करने के लिए या खुद का दिमाग गर्म करने के लिए। एस.पी.साहब की बातें सुनते ही सिन्हा साहब बरस पड़े। अभी उनकी आवाज इतनी खुरदरी थी कि” दोनों के होश फाख्ता हो गए। जबकि सिन्हा साहब अपनी रौ में बोलते चले गए। तुम लोग आखिर पुलिस विभाग को समझते क्या हो, जब जी में आए, नाक कटवा दी। तुम लोगों को इतना भी समझ नहीं है, किस परिस्थिति में क्या करना चाहिए और क्या बोलना चाहिए?
लेकिन सर! परिस्थिति ऐसी बन गयी थी कि हमें समझ ही नहीं आया कि हम क्या करें। श्रुति माधव हिम्मत कर के बोला। उसकी बातों ने आग में घी का काम किया,सिन्हा साहब क्रुद्ध होकर बोले।
तुम तो बस चुप ही रहो श्रुति माधव, मैं तुमसे बात नहीं कर रहा और तुम्हारा बाँस तुम्हारे साथ में है। बोलने के बाद वे एस.पी. साहब की ओर मुखातिब हुए। हां तो राजन मिश्रा।
यश सर! एस.पी.साहब तत्परता से बोला।
राजन! इस तरह यश-यश बोलने से क्या होता है। जब परिस्थिति विपरीत हो गयी थी, तो मुझे काँल करके बुला लिया होता। मैं चांद पर था नहीं कि पहुंच नहीं पाता। मैं पहुंच जाता तो शायद परिस्थिति इतनी विपरीत ना होती और ना ही पुलिस महकमे की इस तरह सरे राह नाक कट पाती।
गलती हो गयी सर! इसके लिए क्षमा चाहते है, लेकिन विश्वास करें सर कि इसके पीछे हम लोगों का इरादा गलत ना था। परिस्थिति ही इतनी विपरीत हो गयी थी कि हमें समझ ही नहीं आ रहा था कि हम क्या करें। एस.पी.साहब गंभीर होकर बोले। उनकी बाते सुन कर सिन्हा साहब के होंठों पर मुस्कान छा गयी। एक पल तो वो मौन रहे, लेकिन दूसरे ही पल गंभीर होकर बोले।
देखो राजन! अब जो हुआ सो हुआ,तुम एक काम करो कि बीस कप स्पेसल काँफी और बीस लज्जतदार पान की व्यवस्था करो। वो भी जितनी जल्दी हो सके।
लेकिन सर! इतना कप काँफी का क्या करेंगे। एस.पी.साहब गंभीर होकर बोले।
शरबत बनाएंगे! चिढ कर बोले अनमोल सिन्हा,लेकिन दूसरे ही पल अपने शब्दों में मधुरता घोल कर बोले। राजन! तुम लोगों ने जो रायता फैलाई है ना,उसे समेटना भी तो होगा। इसलिए हमने प्रेस नोट का आयोजन किया है अभी, अभी मीडिया बाले आते ही होंगे। इसलिए तुम जितनी जल्दी हो सके सारे अरेजमेंट कर दो।
यश सर! एस.पी.साहब तत्परता से बोले।
और हां,इन सारी चीजों का बिल बनवा कर ले आना, रुपये मैं पेड कर दूंगा,साथ ही खयाल रखना कि तुम सीनियर आँफिसर हो,खुद से ही यह काम मत करना। सिन्हा साहब गंभीर होकर बोले, उनकी बातें सुन कर एस.पी.साहब वहां से निकल गए, तब सिन्हा साहब श्रुति माधव की ओर मुड़े। क्या बात है श्रुति माधव, लगता है तुम मुझ से नाराज हो गए हो।
नहीं-नहीं सर! ऐसा तो बिल्कुल भी नहीं है, आखिरकार मैं नाराज क्यों होने लगा। आप भी ना सर! ऐसे ही किसी बात को बोल देते है। श्रुति माधव सिन्हा साहब के अप्रत्याशित सवाल से इस तरह हकबका गया था कि एक ही सांस में बोल गया।
उसकी बातों को सुन कर सिन्हा साहब के होंठों पर मुस्कराहट छा गयी। वो तो बस वहां के माहौल को सामान्य करना चाहते थे,इसलिए उन्होंने ऐसा बोल दिया था और इसका सुखद परिणाम निकला। श्रुति माधव पहले की अपेक्षा सामान्य हो चुका था। तब सिन्हा साहब ने इस केस से संबंधित फाइल मंगवाई और पढने लगे। श्रुति माधव पहले की ही तरह सावधान मुद्रा में उनके सामने बैठा रहा कि कब सनकी बाँस क्या बोल दे। वैसे तो सिन्हा साहब के स्वभाव से सभी डरते थे,लेकिन उनकी दयालुता और ईमानदारी मशहूर थी।
तभी सब-इंस्पेक्टर सदानंद सहाय ने वहां कदन रखा और सिन्हा साहब को जोरदार सैल्यूट दिया और सावधान मुद्रा में ही उनको बतलाया कि मीडिया बाले आ चुके है और मैसेज पास करने के बाद पलटा और बाहर निकल गया । उसके बाहर निकलते ही सिन्हा साहब ने श्रुति माधव की तरफ देखा, मानो बोल रहे हो कि चलो अब,किस बात का इंतजार कर रहे हो। श्रुति माधव अपने शीट से उठा और बाहर की ओर बढा। उसे बाहर जाता देख कर सिन्हा साहब भी उठे और बाहर की ओर निकल गए।
पुलिस स्टेशन के ग्राऊण्ड में प्रेस नोट रखा गया था, जहां पर लगी कुर्सियों पर विभिन्न मीडिया हाउस बाले बैठे हुए थे। तभी अनमोल सिन्हा ने वहां पर कदम रखा, उनके साथ एस.पी.साहब और श्रुति माधव था। वो आगे बढे और अपने निर्धारित जगह पर बैठ गए,फिर शुरू हुआ मीडिया बालों के सवालों के बौछार । सिन्हा साहब ने मीडिया बालों के सारे शंकाओं का समाधान किया, बीना उत्तेजित हुए। इस बीच सदानंद सहाय ने काँफी और पान मीडिया बालों को सर्व किया। जब मीडिया बालों के सारे शंकाओं के समाधान हो गए, तो सिन्हा साहब उठे और अपने इनोवा कार की तरफ बढ गए। उनके पीछे-पीछे एस.पी.साहब और श्रुति माधव लपके।
सिन्हा साहब जा चुके थे,साथ ही मीडिया बाले भी चले गए थे। अब एस.पी.साहब ने राहत की सांस ली और श्रुति माधव का हाथ पकड़ कर अपने आँफिस की ओर बढ चले। श्रुति माधव यह तो समझ नहीं पाया कि उसका बाँस क्या सोचता है,बस वो डोर से बंधा हो जैसे खिचता चला गया। आँफिस में पहुंचने पर एस.पी.साहब ने उसे बैठने का इशारा किया और खुद बैठ गए। जब दोनों बैठ गए, तो एस.पी.साहब ने बेल बजाई, बेल बजते ही सदानंद सहाय लगभग दौड़ा हुआ आया। उसे आया देख कर एस.पी.साहब ने उसे समझाया कि तीन कप करक काँफी बनवा कर ले आए। आदेश सुनते ही सदानंद लौट गया, तब एस.पी.साहब श्रुति माधव की तरफ मूड कर बोले।
श्रुति माधव।
यश सर! श्रुति माधव तत्परता से बोला।
अब जान में जान आई,खूसट बाँस अब जा चुका है, अब हमें इस केस के विभिन्न पहलू को फिर से स्टडी करना है। एस.पी. साहब आप गंभीर होकर बोले।
तो सर! आप अपने बाँस से इतना डरते हो। श्रुति माधव ने चुटकी ली।
मैं डरता हूं! अरे यह बोलो कि उससे कौन नहीं डरता, वैसे बाँस में सारे गुण अच्छे है,एक गुण को छोर कर। एस.पी.साहब बोलने के बाद लंबी सांस लेने लगे,मानो मैराथन दौड़ कर आए हो। उनकी बातों को सुन कर श्रुति माधव के होंठों पर मुस्कान आ गई, लेकिन दूसरे ही पल उसने अपने चेहरे के भाव को बदल लिया। तभी सदानंद सहाय काँफी का ट्रे लेकर आया और मेज पर टिका दिया और खुद भी बैठ गया। फिर तीनों आराम से काँफी पीने लगे, इस बीच उन लोगों में कोई बात नहीं हुई। समय आगे बढता हुआ दिन के दो बजने की घोषणा कर चुका था। इस बीच वे लोग काँफी पी चुके थे और अब श्रुति माधव एस.पी.साहब के चेहरे की ओर देख रहा था,मानो पुछ रहा हो कि अब क्या करना है।
एस.पी.साहब उसका आशय समझ चुके थे, अतएव मुस्करा कर बोले। अब हमें अपने मिशन पर निकल
जाना है। जहां तक मैं समझता हूं कि इस केस में उलझनें बहुत है और उन उलझनों को सुलझाना भी बहुत जरूरी है। इसलिए हम लोग अभी सेठ लक्ष्मी निवास के बिला पर चलेंगे। शायद हमें वहां ऐसा कोई क्लू मिल जाए, जो हमें आगे का रास्ता दिखा सके।
तो फिर देर किस बात की सर! हमें अभी के अभी वहां के लिए निकलना चाहिए। सदानंद तपाक से बोला, लेकिन उसका यूं बोलना श्रुति माधव को नागवार गुजरा। उसने इस तरह से सदानंद को देखा कि सदानंद की रूह कांप गई। वो अच्छी तरह से श्रुति माधव को जानता था, जो कि छने रूष्टा-छने त्रुष्टा था। अगर उसे कोई भी बात नागवार गुजरे तो वो उस समय तो नहीं बोलता था, परन्तु उसका खामियाजा अगले को भुगतना परता था। एस.पी.साहब परिस्थिति को समझ गए थे और यह भी समझ गए थे कि श्रुति माधव सदानंद पर नाराज हो चुका है और इसका खामियाजा सदानंद को कभी ना कभी भुगतना परेगा । अतः परिस्थिति को सामान्य करने के लिए बोले।
श्रुति माधव ऐसे किसी पर नाराज नहीं होते, अरे उसका भी अधिकार है बोलने का। वो भी तो पुलिस आँफिसर है और इस नाते वो भी अपनी बातें रख सकता है।
स्योर सर! मैं कहां बोलता हूं कि उसका अधिकार नहीं है, उसे जितना भी बोलना है बोले। वैसे सर! हमें इन बेकार की बातों में ध्यान न देकर अपने मिशन पर निकलना चाहिए। श्रुति माधव सपाट लहजे में बोला, जिसे समझ कर सदानंद अंदर तक हिल गया। वो तो इतना जरूर समझ गया था कि आने बाले दिन उसके लिए कठिन होने बाले है। जबकि एस.पी.साहब ने समझ लिया कि अभी और रुके,तो रूष्टता बढ सकती है, इसलिए उन्होंने अपनी कुर्सी छोर दिया और बाहर निकल गए। उन्हें बाहर जाता देख कर श्रुति माधव फुर्ती से उठा और उनके पीछे लपका और उसके पीछे सदानंद लपका।