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आरव,अठ्ठारह वर्ष का नौजवान,गठा हुआ शरीर और लंबाई लिए आकर्षक बदन। एक सुन्दर और गबरू नौजबान में जो चाहिए,वो सबकुछ था उसके व्यक्तित्व में।वो स्वभाव से भी नम्र था,तभी तो दोपहर के इस वक्त गाँव के बाहर इस अमराई में किसी का इंतजार कर रहा था।मानविय हृदय की संवेदना अजीब विघटनकारी और ताकतवर होती है। जब यह रचनात्मक होती है, तो श्रृष्टि करती है और जब यह रूप बदलती है तो विनासकारी हो जाती है।

यूं तो आरव बांका सजीला नौजवान था, स्वभाव में मधुरता थी। परंतु इंटरनेट के युग में उसे एक चीज की तलव जगी थी।अश्लील मुवी देख कर उसके मन के कोने-कोने में काम वासना की तीव्र लहङ उठती थी,जो आम बात है इस उम्र में ऐसा होना।पढने -लिखने में तेज-तर्रार आरव यूं तो सीधा-साधा ग्रामीण परिवेश का लगता था,लेकिन उसके भी दिल में उमंग थी और वो भी सोलहवें बसंत का उमंग।ऐसे में तो स्वभाविक ही है कि” जङा सा ध्यान भटका नहीं कि पैर फिशल गए। फिर तो वो जवानी के दहलीज पर अपना पहला कदम ही रखा था और जवानी के विपरीत आकर्षण ने आज यहां उसे खीच कर ले आया था।

उसके भोले-भाले मन में उत्सुकता थी कि आज क्या होगा ? कैसे शहर बाली मैडम से उसकी मुलाकात होगी और तनहाइयों में जब दोनों मिलेंगे तो वहां क्या गूल खिलेगा? वो रोमांचित था,उत्सुक था,उत्साहित था और साथ ही मन के किसी कोने में भयभीत भी था।वो सोच रहा था कि” ना जाने अगला पल क्या हो?मैडम उसके इच्छाओं को तबज्जो देगी,उसके प्रणय निवेदन को स्वीकार भी करेगी ? वो तो आधी-अधुरी सेक्स की किताबों से और कामोत्तेजक फिल्मों से जितना सीखा था,उसका एक्सपेरीमेंट करना चाहता था।

घर्र-र-र-घर्र।

हल्की सी टायरों की आवाज हुई और उसके विचार बिंदू पर विराम लग गए ।उसने नजर उठा कर देखा तो सामने इनोवा कार आकर खङी हो गई थी ।वो तो विचार में इस कदर खो गया था कि” जान ही नही पाया कि गाङी कब उसके सामने आ लगी। वो गाङी की तरफ लपका,नजदीक जाकर देखा तो मैडम गाङी में अकेली थी और ड्राईवर शीट पर विद्धमान थी। उसका मन बल्ले-बल्ले कर उठा, उसे यह एहसास होने लगा कि” आज उसके मन की मुराद बस पूरी होने बाली है। वो तो चहक कर गाङी के नजदीक पहुंच गया। उसके नजदीक पहुंचते ही ड्राइवर साईड का दरवाजा खुला और मैडम ने लपक कर अपने होंठ उसके गाल पर टिका दिए। बस बिजली कङकी,आरव के तो सुर्खाव के पंख लग गए, वो जल्दी में बोला।

तो चले मैडम।

कहां? तुम कहां ले जाना चाहते हो मुझे? वो मैडम हसीना अपने सुरीली अवाज में बोली। बस उसकी आवाज ही सुरीली नही थी,वो छङहरे बदन,तीखे नैन-नक्स,गोरा रंग और रूप सुन्दरी की स्वामिनी थी।हां उसे रूप सुन्दरी कहना अतिस्योक्ति ना होगा,बस फर्क इतना था कि” इतना सबकुछ होने के बाबजूद भी जो उसकी उम्र छुप नहीं पा रही थी। वो बत्तीस-तैतीस शाल की थी।लेकिन उससे क्या, आरव तो उस पर फिदा था,तब क्या मायने रखता है कि वो औरत शादी-शुदा थी।

आरव तेजी से अपने तेज सांसों को नियंत्रित करता हुआ बोला। मैडम जंगल की तरफ,जहां हम दोनों आराम से बैठ कर बातें करेंगे।

लेकिन बातें तो हम यहां भी आराम से कर सकते है,इस गाङी में बैठ कर। वो औरत इम्तिनान से बोली।

लेकिन मैडम यहां तो-यहां तो।…..बोलते-बोलते आरव अटक गया।लगा जैसे कि” उसके भावनाओं पर तुसारापात हो गया हो। वो औरत बस समझ गई और बरी चालाकी से उसने बातों को पलट दिया। अरे मेरे राजा,हम जो जंगल में करेंगे, यहां भी कर सकते है,इस गाङी में। बोलने के साथ ही उस औरत ने उसे बांह पकर कर गाङी में खीच लिया,इसके बाद गाङी का दरवाजा लाँक हो गया। ब्लैक फिल्म गाङी की कांच पर चढा होने के कारण अंदर क्या हो रहा है,वो दिख तो नहीं रहा था,पर हिचकोले खाती गाङी अपनी कहानी खुद वयां कर रही थी कि” अंदर जोङो का तूफान आया हुआ है,जो सब बहा ले जाएगा।

जब अंदर का शैलाब थमा,तो गाङी का गेट खुला और आरव अपने कपङे सही करता हुआ गाङी से उतरा।इस वक्त उसके हालात से लग रहा था कि” वो मैराथन दौङ कर आ रहा हो। बाल बेतरतीब से उलझे हुए और पसीने से भीगा बदन ।गाङी से उतर कर वो चलने को ही हुआ कि” वो औरत अपना चेहरा बाहर निकाल कर उसे बोल उठी।

अजी राजा जी,तुम तो बरे स्वार्थी किस्म के हो जी।तुम्हारा काम हुआ नहीं कि चलते बने। अजी दो मिनट रूको,मिठी- मिठी बातें करों।

ज-ज-जी मैडम।आरव हकबका कर बोला। उसे उस औरत के बोलने के अंदाज से पता नहीं चल रहा था कि” वो अब क्या चाहती है। उसके अंदाज से तो काम हो चुका था और अब कुछ भी तो बाकी नहीं था। ऐसे में तो दोनों को अपने- अपने रास्ते चल देना चाहिए। वो मैडम की बातों को सुन कर थकमका कर रूक गया और गाङी की ओर पलटा।

तभी मैडम के हाथ में नोट की गड्डी चमका, वो नोट की गड्डी आरव की ओर बढाते हुए सुरीले आवाज में बोली। अभी जाने की इतनी जल्दी भी क्या है बलमा,हां बलमा कहना ठीक रहेगा,आज से मैं तुमको बलमा ही बोलूंगी।

मैं आपकी बातों को समझा नहीं मैडम?आरव हिचकिचाहट भङे शब्दों में बोला।

जबाव में वो औरत बस मुस्कराई और फिर उसकी बातों को नजर अंदाज करके उसके हाथों में नोटो की गड्डी थमाते हुए बोली। बलमा वो क्या है ना कि” तुम कङक मर्द हो और तुमने जो मेहनत किया है ना,उसका मेहनताना बनता है। मै तो बस तुम्हारी दिवानी हो गई हूं,इसलिए इस नोटो के बंडल को तुम पकङो,आज से यह तुम्हारे हुए।

लेकिन मैंडम!....वो सकुचाया।

लेकिन-वेकिन कुछ नहीं,बस तुम मुझे सेवाएँ देते रहो। मैं तुम्हे रूपयों से तौल दुंगी,तुम्हारे हुकम में एक से एक नाजुक कली को लाऊँगी। वो औरत इस बार गंभीर होकर बोली।

सुनकर आरव के मन को तशल्ली हुई। उसने नोटों का बंडल लिया और अपने जेब के हवाले कर दिया। तभी वो औरत फिर बोली। बलमा मेरे, तुम बस एक बार शहर आना,मैं ना तुम्हें जन्नत के सैर करवाऊँगी। बोलने के साथ ही उस औरत के होंठ आरव के गाल पर चिपक गए। आरव के मन में अरमाण फिर से हिचकोले खाने लगे, लेकिन उससे पहले ही गाङी श्टार्ट हुई और मुङ कर शहर की तरफ जाने बाली सङक पर धूल उङाती हुई चली गई। आरव बस गाङी की तरफ देखता रहा,जब तक कि” वो नजरों से ओझल ना हो गई,उसके बाद अपने मन को मनाता,समझाता,दिलों में खयाली पुलाव पकाता गांव की ओर लौट चला।

* * * *

शाम होने को आई थी। हलांकि आज-कल गांव में भी बदलाव आ गया था। चौबीसों घंटे बिजली और गली-गली पक्की सङक,लगता था गांव शहर को टक्कर देने के लिए उतावला हो रहा था। वह हवेली नुमा मकान,जो उदय प्रताप सिंह का था। पेसे से जानवरों के डाँक्टर और स्वभाव से मिलन सार।अभी-अभी वे अपनी नौकरी पर से लौटे थे। उन्होंने बाइक पार्क की और घर में प्रवेश कर गए और अंदर जाते-जाते चिल्लाने लगे। अजी सुनती हो सुनीता देवी।….अरी भाग्यवान मेरी बातें सुनोगी भी,या मैं ऐसे ही चिल्लाता रहुंगा। वे आदत वस बोलते-बोलते हाँल तक आ गए। उनका यही आदत या यूं कहा जाए रिवायत था कि” पूरे सुभंकर पुर गांव में बङबोले चाचा के नाम से प्रख्यात थे।

उनके हाँल में पहुंचते ही वहां सुनीता देवी आ गई और अपने गीले हाधों को पोछती हुई बोली। अजी क्या हुआ कि” पूरा घर ही सिर पर उठाए आ रहे हो।

अजी हुआ कुछ नहीं,बस यूं कहें, जब तुम्हें देख लेते है ना,बस दिल को तसल्ली मिल जाती है। वैसे आरव नहीं दिख रहा,कही गया है? उदय प्रताप मुस्करा कर बोले।

अजी अब छोरो भी मस्का लगाना,अब तो कुछ शरम किया करो,घर में जवान बेटे है। सुनीता धीरे से बोली।

अजी ठकुराईन…..तुम भी गजब करती हो। अभी तो हमारी उम्र ही क्या है,अभी तो हम पैंतालीस भी पार नहीं किए है।उदय प्रताप ठसक के साथ बोले,फिर उन्होंने तुरंत ही बात को पलट दिया।वैसे ठकुराईन आरव नहीं दिख रहा,कहीं गया है का?

नहीं-नहीं वो कहीं नहीं गया,वो तो बस अपने रूम में सो रहा है। आप कहें तो मैं बुलाकर ले आती हूं। सुनीता देवी अपने आँचल संभालती हुई बोली।

क्यों नहीं ठकुराईन,जरूर बुलाईए। आखिर मालुम तो चले, काँलेज में उसके एडमिसन का क्या हुआ? बोलने के साथ ही ठाकुर साहब गंभीर हो गए।

जबकि इतना सुनते ही ठकुराईन हाँल से निकल कर आरव के रूम की ओर बढ चली। जब वे आरव के रूम में पहुंची, तो आरव घोङे बेच कर सो रहा था और सोए हुए में बहुत ही मासूम लग रहा था। उसे देख कर सुनीता देवी का जी ममता से भर आया। वो उसके मासुमियत में ही खो गई। जी तो कर रहा था उनका कि” अपने लाडले को नींद से ना उठाए। उसे बस ऐसे ही चैन से सोने दे। पर वो जानती थी कि” ठाकुर साहब है ना,बड़े कङक है। अगर वो आरव को जगा कर ना ले गई,तो वो पूरा घर सिर पर उठा लेंगे।

ठकुराईन ने बड़े ही प्यार से उसे जगाया। आरव ने जब अपनी आँखें खोली,तो माँ को सामने देख कर चौंका। कहां तो वो सपनें की दुनिया में हसीनाओं के बांहों में गोते लगा रहा था और कहां तो हकीकत के धरातल। उफ यह माँ भी है ना,चैन से सोने भी नहीं देती।आरव ने गुस्से में अपनी माँ को देखा और तुनक कर बोला। अरी माँ,तुम भी ना मुझे चैन से सोने नहीं देती। देखो ना मैं कितना थका-थका सा हूं।

सो लेना मेरा सोना राजा सो लेना। बाद में जितना सोना हो सो लेना,लेकिन अभी तो तुम्हारे बाबुजी बुला रहे है।सुनीता देवी उसे प्यार से पुचकारती हुई बोली।

सुन कर आरव को तीव्र झटका सा लगा। वो बोला कुछ भी नहीं,बस यंत्रवत बेड से उतरा और बाथरूम में चला गया। अभी तो उसकी स्पीड भी बढ गई थी। मानो कि” उसके बिजली के स्वचालित पँख लग गये हो। वो थोरी ही देर बाद ठाकुर साहब के सामने था और उसके हाथों में ब्लू रंग की फाईल थी। बंगले के बाहर अँधेरा घिर आया था,लेकिन बंगले के अँदर तेज लाईटों की रोशनी से अँधेरे का पता नहीं चल रहा था।

ठाकुर साहब ने गौर से उसका चेहरा देखा और बारिकी से उसका मुआयना करने लगे। बस यही एक्स-रे बाली आँखों से आरव को डर लगता था। वो अपने पापा से बहुत ही डरता था। ऐसा नहीं था कि” ठाकुर साहब उसे प्यार नहीं करते थे। बड़ा पुत्र धनंजय और आरव दोनों ही उनके आँखों के तारे थे। परंतु ठाकुर साहब का उसूल था कङक अनुसासन। वे ऐसा मानते थे कि” मर्यादायें जहां से गिरती हैं, वहीं से इन्सान का पतन होता है। वो कठोर पारिवारिक उसूलों के पुजारी थे,इसलिए आरव उनसे भय- भीत रहता था। खैर ठाकुर साहब उसके चेहरे पर नजर टिका कर बोले। अच्छा तो पुत्तर, तेरा काँलेज में एडमिसन हो गया ना।

जी पितीजी!आरव धीमी अवाज में बोला।

अरे जोर से बोला कर पुत्तर,मुझे तो लगता है तुने खाना नहीं खाया। जिससे तेरी आवाज नहीं आ रही। ठाकुर साहब गरज कर बोले।

बस फिर क्या था,आरव हिरण के सावक की मानिंद कांप गया। वो अपनी बची-खुची शक्ति को समेट कर बोला।…..जी पिताजी।

सुन कर एकपल को ठाकुर साहब चौंके,फिर वो गंभीर होकर बोले। देख आरव,…. मैं ने ना,तुम दोनों भाईयों के लिए ढेरों अरमाण सजा रखे है। बड़ा तो आई पी एस कंप्लीट करने बाला है। अब बारी तेरी है, तो बेटा जिन्दगी के कदम सोच-समझ कर उठाना।

जी पिताजी!आरव बस इतना ही बोल सका।

तो खङा-खङा अब यहां क्या कर रहा है। जा अपने रूम में और आगे की तैयारी कर। ठाकुर साहब गरजे। बस आरव के तो सुर्खाव के पंख लग गए और वो तेजी से वहां से निकल गया। तभी ठकुरानी वहां आई। उन्हें देखते ही ठाकुर साहब बङबङा पड़े। मुझे तो छोरे के लक्षण-करम ठीक नहीं लग रहे।

सुन कर ठकुरानी घबङाई,वो अपने पल्लु को संभालती हुई बोली। अब क्या कर दिया मेरे लाडले ने।

कुछ नही-कुछ नहीं ठकुरानी,आप तो खामखा परेशान हो रही है। आप तो बस मेरे लिये एक कप काँफी बना कर ले आईए।बोलने के साथ ही ठाकुर साहब मुस्करा पड़े।

* * * *

रात के दस बजने को आया था। शर्द मौसम होने के कारण पूरा का पूरा गांव नींद के आगोस में समा चुका था। हां गली में कुछ कुत्ते चिल्ला-चिल्ला कर एहसास करवा रहे थे कि” हां गांव में शांति नहीं है। तभी ठाकुर साहब के घर के पीछे साईड की खिड़की खुली और उसमें से एक साया गोरिल्ला की मानिंद दबे पांव बाहर की ओर कूद गया और गली की तरफ बढ गया। उसके चलने के अंदाज से प्रतीत हो रहा था, वो अपने गंतव्य से बिल्कुल अंजान नहीं है। उसे मालूम है, कहां पहुंचना है। वो साया गांव के चौक पर पहुंचा,तभी वहां दूसरी गली से दूसरा साया प्रगट हुआ। जब दोनों का चेहरा वहां लगी लाईट की रोशनी में आया तो वे दोनों ही चहके।

वे दोनों और कोई नहीं बल्कि आरव और उसका दोस्त वैभव साल्यान थे। आरव ने वैभव को देखते ही चहक कर बोला। यार, वो सारा इंतजाम हो चुका है। सुन कर वैभव नें सहमति में सिर को हिलाया। बस वे दोनों चौक के दांईं तरफ बढ चले। दांई तरफ एक खाली मकान था, बिल्कुल जर्जर हालात में। मानो उस बिल्डींग का एक अरसे से उपयोग नहीं किया गया हो। हां एक बात थी,वहां फैले कचरे एक बात की गवाही दे रहे थे कि” वो जगह गांव के बिगङे नबाव जादों के अय्यासी का अड्डा है।

उन दोनों ने मिल कर बंगले का एक कोना साफ किया और वहीं बैठ गये। तब आरव ने विभव की ओर ऐसे देखा, मानों बोल रहा हो कि” अब किस बात का इंतजार है,अब तो पार्टी सुरू करो। आरव के चेहरे से प्रतीत हो रहा था, उसे अगले पल का बेसब्री से इंतजार है। वैभव ने उसके चेहरे को देखकर उसके मनोभाव को पढ लिया और मुस्कराया। फिर अपने कमर में हाथ डाला। दूसरे ही पल उसके हाथ मे पूरी की पूरी रम की बोतल थी। शराब को देखते ही आरव अपने होश खो बैठा। तब तक वैभव दो ग्लास,पानी की बोतल और दोने में लाया चखना भी सामने रख चुका था।

बस फिर क्या था,आरव का हौसला जबाव दे गया। वो बाज की तरह दारू की बोतल पर लपका और पैग बनाने में जूट गया। थोड़ी देर तक वहां नितांत चुप्पी छाई रही,लेकिन जब दो-दो पैग दोनों के हलक से उतरा, तो आरव खुद पर नियंत्रण नहीं रख सका। वो अपने साथ दिन में गुजरे पूरे बाकया को बड़े चाव से वैभव को सुनाने लगा। वो क्या है ना, मित्रता बरी अजीब चीज है। उसमें भी अगर मित्र हम-उम्र क्लास साथी हो, तो इंसान उससे किसी भी राज को राज नहीं रखता। वो अच्छा करें या बुरा, हरेक वो बातें जो उसके जिन्दगी से ताल्लुक रखती है,वो अपने मित्र को जब तक बतला ना दे,उसके दिल को चैन नहीं मिलता। सच भी तो है,मित्रता की कसौटी यही है।

आरव शराब की चुस्कियों के साथ ही बरे तल्लीनता से उस सारे घटनाक्रम को क्रमवार तरीके से वैभव को बतला रहा था और वैभव उसकी बातों को सुन कर उत्तेजीत हो रहा था। समय धीरे-धीरे आगे बढ रही थी और बढ रहा था उन पर चढता हुआ नशा। इस बीच दोनों ने ही मिल कर पूरी बोतल खाली कर दी थी, तो यह तो होना ही था। वे दोनों शराब के नशे में पूरी तरह डूब चुके थे और अब इधर-उधर की बातों में मशगूल हो गये थे। रात का आलम गहरता ही जा रहा था और गहराता जा रहा था दोनों के मन में लालसाओं का ज्वार। आरव को दुख था तो इस बात का कि” जब वो जिन्दगी के मजे लूट रहा था, तो उसका मित्र उसके पास नहीं था और वैभव सोच रहा था, आज का मौका उसके हाथ आते-आते रह गया।

* * * *

पटना शहर, शाम के समय में ही रोशनी में नहा कर दूल्हन की तरह सज गया था। यह शहर ही तो है जो लगता है, जिन्दगी यहीं पर है। बिल्कुल जागती हुई आवोहाव की प्रतिमा सी,शहर के जीवंत सुन्दरता से तो यही एहसास होता है, जिन्दगी खुबशुरत है तो यही पर। पर शहर बास्तव में ऐसा होता नहीं है। शहर में वैभव तो बहुत है, पर वो उल्लास, वो आनंद,वो अपनापन,वो स्नेह नहीं होता जो गांव में पाया जाता है। शहर में पैसा बहुत है,तो छल-कपट भी बहुत है। धन का अंबार है,तो रिस्तों की दरकती दीवार है।

अब जो भी हो, है तो यह शहर ही ना। यहां जिन्दगी सरपट दौरती है, बिना रूके,बिना किसी बाधाओं के। बाहर रात ढलने को आतूर था और उस बंगले के अंदर उस हाँल में वो औरत शोफे पर आराम से बैठी थी और उसके सामने इक पच्चीस शाल का नौजवान खड़ा था। वो दिखने में तो श्मार्ट था ही,चेहरे से मक्कार भी प्रतीत हो रहा था। उसकी आँखों से ही लग रहा था, कमीनापन बूंद-बूंद करके टपक रहा हो। दोनों ही विचारनीय मुद्रा में थे। उनके चेहरे से ही प्रतीत हो रहा था, दोनों ही किसी गंभीर बिषय पर चिंतन रत है और जल्द ही किसी षडयंत्र का सुत्रपात करेंगे, जो काफी भयावह होगा।

कमरें में जीड़ो वाँट की ब्लू लाईट जल रही थी। जो कि स्वयं ही उद्दघोषित कर रही थी, माहोल काफी तनावपुर्ण है और रहस्यों से भरा है। समय की सुई टीक-टीक कर के आगे की ओर निरंतर बढता ही जा रहा था। ऐसे में आखिर उस लङके से रहा नहीं गया, वो अपनी हिम्मत जूटा कर बोला।

दीदी!...आपको पुर्ण विश्वास है ना कि” आरव आएगा।

वो आएगा से मतलब?....तुम कहना क्या चाहते हो दीप्तेश। वो औरत अपनी आँखें उसके चेहरे पर टिका कर बोली। ना जाने उन आँखों में ऐसा क्या था, वो लङका,जिसका नाम दीप्तेश था, ने अपने शरीर की हड्डियों में शर्द सिहरण सा दौरता हुआ महसूस किया। वो बा-मुस्किल खुद को संभाल कर बोला। मेरा कहने का मतलब था कि” वो लङका,जिसका नाम आपने आरव बतलाया था, वो आएगा तो?....

हां-हां,वो जरूर आएगा।…तुम जानते नहीं, उम्र का अठ्ठारहवां बसंत क्या होता है?....यह उम्र की वो पगदंडी है,जहां से एकबार फिसला नहीं कि” दुबारा संभल पाना असंभव है। ऐसे में मैं ने उसे अपने प्यार की ऐसी चटनी चटाई है कि” वो मेरे हुस्न का गूलाम हो चुका है। अब तो मैं उसे जो कहुंगी,वो वही करेगा। आखिर मैं भी तो मनोरमा देवी हूं,बस जहां जी चाहा,मन में रम जाने बाली।

ज-जी दीदी!.....दीप्तेश धीरे से बोला।

लेकिन शायद मनोरमा ने उसकी बातों को सुना-अनसुना कर दिया।….वो तो बस अपनी ही रौ में बोलती चली गई।….दीप्तेश!.....मैं धीरे-धीरे उस लङके को अपने शीशे में उतार रही हूं। तब तक तुम आगे की तैयारी करो। बस तुम ध्यान रखना, कोई भी भूल-चूक ना होने पाए। क्योंकि भूल होने पर मैं रिस्तों की अहमियत नहीं रखती। मैं बस इतना जानती हूं, यह मैं जो कर रही हूं,वो पहला और आखिरी प्रयाश है।

ज-जी दीदी!....दीप्तेश कांपते स्वर में बोला। उसके शब्दों से ऐसा प्रतीत हो रहा था, वो भयभीत है और अपने भय को छुपाने की जी-तोर कोशिश कर रहा है।

ऐसे में थोड़ी देर तक उसके बाद वहां पर चुप्पी छाई रही। लेकिन फिर मनोरमा ने इशारा किया। दीप्तेश उसके इशारे को बखुबी समझता था। वो तुरंत ही किचन की ओर बढ गया और जब वो लौटा,तो उसके हाथ में ट्रे थी। जिसमें विदेशी स्काँच की बोतल,ग्लास और स्नैक्स की प्लेट थी। जिसे टेबुल पर रखने के बाद वो मनोरमा देवी के सामने बाली शोफे पर बैठ गया। उसके बाद तो दोनों के बीच जो पीने का दौर सुरू हुआ, समय बीतने के साथ बढता ही चला गया।

* * * *

रात के बारह बज चुके थे। अमुमन तो पूरा का पूरा शहर नींद के आगोस में समा चुका था। लेकिन वो गोरा-चिट्टा सा लङका अंधाधूंध अपनी इनोवा कार को पटना की सड़कों पर दौड़ाए जा रहा था। वो सुन्दर था,आकर्षक व्यक्तित्व का था और सबसे बड़ी बात थी उसकी बिल्लोरी आँखें। उम्र बीस के करीब। उसके होंठ इम्तिनान से मुहम्मद रफी के पुराने गाने गुणगुणा रहे थे। जिससे प्रतीत होता था, उसे मालूम है कि” उसे कहां जाना है और वो अपने मंजिल के प्रति निश्चिंत है।

मध्य रात में उसकी गाड़ी सड़क का सीना चीर कर भागती जा रही थी। ऐसा भी नहीं था कि” वो अपराधी था। वो अपने पहनावे एवं व्यक्तित्व से सभ्रांत घर का लग रहा था। खैर जो भी हो,पंद्रह मिनट के जर्नी के बाद इनोवा कार मोर्चरी के गेट पर रूकी। उसने गाड़ी को साईड में पार्क किया और अंदर से निले रंग का सुटकेश निकाल कर गेट के अंदर प्रवेस कर गया। उसके चाल और व्यवहार से ऐसा प्रतीत हो रहा था, आने बाले वक्त के बारे में काफी आस्वस्त था। तभी तो उसने कार का गेट भी लाँक नहीं किया।

समय यूं ही अपनी रफ्तार से भागता रहा क्रमश:…. और ठीक बीस मिनट बाद वो लङका मोर्चरी से निकला। बिल्कुल आस्वस्त….! उसके होठों पर कायम विजयी मुस्कान बतला रही थी, वो जिस काम के लिए मोर्चरी में गया था, उसमें सफल हो चुका था। तभी तो सधे कदमों से बढता हुआ ड्रायविंग साईड पहुंचा और शीट पर बैठ गया और अंदर बैठते ही उसने इंजन श्टार्ट की और कार को विपरीत दिशा में दौड़ा दिया। फिर से वही रफ्तार- फिर से वही अंदाज,हां एक बात तो जरूर हुई थी कि” लड़के के चेहरे पर गंभीरता आ गई थी।

समय को क्या!....वो अपने क्रम में आगे को बढता ही रहता है।….ठीक थोड़ी देर बाद उसकी कार बाजार के बीचोबीच पहुंच कर रूक गई थी। उसने गाड़ी साईड करने की कोशिश ना की, बस अंदर से एक बैग को उठा कर नीचे उतरा और दुकान के जीने की तरफ बढ गया। बाहर सुनसान सड़क होने के कारण उसे देखने बाला कोई भी तो नहीं था। ठीक वहां से भी वो पंद्रह मिनट बाद ही लौटा और एक बारगी को दुकान के वोर्ड पर नजर डाली। उस पर लिखा था,अब्दुल अजीज,मेकअप आर्टिश्ट। उसने अपने सिर को हल्की सी जुंबीस दी और कार की ओर बढ गया। थोड़ी देर बाद ही उसकी कार हवा से बातें कर रही थी। ऐसा नहीं कि वो अनाड़ी ड्रायवर था,वो बड़ी तल्लीनता से कार को ड्राईव कर रहा था।

ऐसे में थोड़ी देर बाद ही उसकी कार शहर से बाहर आ गई और एक सुनसान से फार्महाऊस के गेट में प्रवेश करके बिल्डींग के अहाते में रूकी। उसने गाड़ी लाँक की और बंगले के इंट्रेंस द्वार पर हल्की दस्तक दी और चुपचाप खड़ा हो गया। उसके द्वारा दिए गए दस्तक की प्रतिक्रिया हुई। एक लङके ने दरवाजा खोला और साईड में हो गया। बस फिर क्या,वो अंदर प्रवेश कर गया। वो लङका जिसने दरवाजा खोला था, आगन्तुक से भली-भाति परिचित था। उसने दरवाजा अंदर से लाँक किया और पलट कर सामने बाले लङके की आँखों में देख कर बोला।

तुम्हारी आँखों की विजयी चमक बतला रही है, तुम अपने काम में सफल होकर लौटे हो?

यकीनन!....तुम्हारा सोचना सही है। मैं जिस काम के लिए गया था,उन काम को निपटा कर ही आया हूं। सामने बाला लङका इत्मिनान से बोला। इतना सुनते ही दोनों के सुन्दर चेहरे पर मुस्कान फैल गई। तब वो लङका गेट से आगे बढा और किचन की ओर बढता हुआ बोला। यकीनन यह काम बहुत ही मुस्किल था। तुम उसको निपटा कर लौटे हो, तो काफी थक गये होगे। मैं अभी जाम का इंतजाम करता हूं,इससे तुम्हारी हरारत भी उतर जाएगी और हम अपने पहले कदम का सैलीब्रेट भी करेंगे।

सुन कर आने बाला लङका कुछ नहीं बोला,बस वहां रखे शोफे पर पसर गया। थोड़ी देर बाद दूसरा लङका किचन से आ चुका था और ट्रे सेंटर टेबुल पर रख चुका था। जिसमें शराब की बोतल,ग्लास और नमकीन की प्लेट करीने से सजी हुई थी। बस फिर क्या था,दोनों की आँखों में चमक आ गई और दोनों पैग बना कर पीने में ब्यस्त हो गये।

क्रमश..

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