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ओह… अवनी! तुम भी न, इस तरह से जज्बातों को भड़का कर फिर इनकार मत करो। कहा अखिल ने और फिर अवनी को अपनी बांहों में भर लिया और उसके रसीले अधर पर अपने अधर टिका दिया। जबकि अवनी, उसके इस हरकत से कसमसा उठी।
ऊँ…हू..! फिर इस कसमसाहट ने विरोध का रुप लिया और फिर वह अखिल से खुद को आजाद कराने में सफल हो गई। इसके बाद’ होटल के उस रुम में वो बेड पर बैठ गई और अपने सांसों को नियंत्रित करने लगी। जबकि” अखिल, वह हैरान-परेशान होकर अवनी की ओर देख रहा था। उसकी आँखों में अवनी को पा लेने का सपना, जो अब धूमिल होने लगा था।
नहीं अखिल!... अभी यह सब कुछ नहीं, जो तुम चाहते हो। हां, हम दोनों का ब्याह हो जाए, उसके बाद मैं तुम्हारी हो जाऊँगी। यह शरीर तुम्हारा हो जाएगा। फिर तुम जो चाहो, जैसे चाहो, कर सकते हो। परंतु… अभी मैं इन चीजों का इजाजत नहीं दूंगी। जब उसने अपने सांसों को नियंत्रित कर लिया, तब ढ़ृढ़ता के साथ बोल पड़ी। फिर अखिल के चेहरे पर अपनी नजर को गड़ा दिया।
परंतु… अवनी!.. हम दोनों प्रेम में हैं और प्रेम में यह सब बातें तो साधारण हैं। इन सब चीजों का अनुभव करने से ही तो आपस में प्रेम बढ़ता हैं और हम एक-दूसरे के करीब होते जाते हैं। कहा उसने, फिर एक पल के लिए मौन हो कर अवनी की आँखों में देखने लगा। शायद अपने कहे हुए बातों का असर देखना चाहता था। किन्तु, वहां तो कोई भाव था ही नहीं, इसलिए विचलित होकर बोल पड़ा।
अमा यार!.. तुम भी न, अब अपनी जिद्द छोड़ो और आ जाओ मेरी बांहों में। हां, हम लोग एकाकार हो जाते हैं और जीवन का आनंद उठाते हैं। हम लोग अपने उस भावनाओं को चरम पर पहुंचा देते हैं, जिसके लिए हम लोग यहां पर इस होटल में आए हैं।
नहीं अखिल!.. यह तो अब किसी भी हालत में नहीं होगा। क्योंकि” शादी से पहले यह सब ठीक नहीं हैं और न ही हमारा समाज इसकी इजाजत देता हैं। वह अखिल की बातों को सुनकर ढ़ृढ़ता से बोल पड़ी। फिर उसकी ओर अपलक देखने लगी। जबकि” उसकी बातों को सुनने के बाद अखिल पूरी तरह से बौखला गया और उसकी ओर देखते हुए चिढ़कर बोला।
क्या यार तुम भी!.. जब यह सब नहीं करना था, तो होटल ओयो में मेरे साथ क्यों आई। बोलने के बाद एक पल के लिए रुका वो, फिर तनिक रुष्ट होकर बोला। तुम भी न, सहमति के बाद ही हम लोग यहां आए थे। ऐसे में यहां आकर नाटक कर रही हैं।
अखिल!.. इसे तुम नाटक समझो, अथवा मेरी मर्जी, परंतु.. मैं ऐसा कुछ भी करने की अनुमति नहीं दूंगी, जो सामाजिक रूप से निषेध हैं। उसकी बातों को बीच में ही काटकर बोल पड़ी अवनी। फिर उसने अपना हैंड बैग उठाया और तेजी से होटल के उस रुम से बाहर निकल गई।
इसके साथ ही अखिल की बौखलाहट झल्लाहट में बदल गई। कहां तो उसने सोचा था, आज अवनी के रुप-सौंदर्य का रसपान करेगा। उसकी लावण्यता, उसके नाजुक जिस्म और रुप माधुरी को मसल कर रख देगा। आज उसे कली से फूल बना देगा और कहां उसके सपनों पर पानी फीर गया था।
हां, अवनी पर उसकी दानत कई महीनों से बिगड़ी हुई थी। इसलिए ही तो उसके करीब आया था, अपने प्रेम-पास में फंसाया था और अपने इरादे पर आगे बढ़ते हुए आज उसे इस होटल में आने के लिए राजी किया था। जानता था, जब होटल में दोनों अकेले होंगे, अवनी खुद पर ज्यादा देर तक नियंत्रण नहीं रख सकेगी और उसके आगोश में समा जाएगी।
तभी तो उसने इस महंगे होटल के डिलक्स रूम को बुक किया था। जहां पर तमाम तरह की सुविधाएँ थी, साथ ही दीवालों पर टंगी हुई महंगी तस्वीरें, जो मन की भावनाओं को बहकाने के लिए काफी था। परंतु.. अवनी उसके जाल में फंसने से पहले ही उसे चकमा देकर निकल गई।
बस” झल्लाहट और उसके जिस्म को न पा सकने की हताशा, जो उसके आकर्षक व्यक्तित्व को क्रूर बना रहा था। तभी तो गुस्से में वो अपने बालों को नोचने लगा। उधर” होटल कंपाउंड से बाहर निकलते ही अवनी ने अपने कदमों की रफ्तार बढ़ा दी। उसे लग रहा था, जैसे वासना में डूबी हुई अखिल की आँखें उसका पीछा कर रही हैं। एक अजीब सा खौफ, जो उसके तन-मन पर हावी हो गया था।
उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि” कैसे अखिल के जाल में फंसकर इस होटल रुम तक पहुंच गई?...वह तो अखिल से मुहब्बत करती थी, इतना मुहब्बत करती थी कि” उसके मांगने पर अपनी सांसों को भी न्योछावर करने को एक पल में ही तैयार हो जाती। परंतु… उसने तो चाहत के रंग को जिस्मानी जरूरतों में ढ़ालना चाहना। उसके यौवन की पंखुड़ियों को मसलने की तैयारी कर बैठा था वो आज।
उसे याद हैं, आज से चार-पांच महीने पहले ही उसकी पहली मुलाकात हुई थी अखिल के साथ। वैसे तो वह जिस काँलेज में पढ़ती थी, अखिल भी उसी काँलेज का स्टुडेंट था। फिर भी दोनों में इससे पहले कोई पहचान नहीं थी। परंतु….पूरे काँलेज में ब्युटी क्वीन के नाम से मशहूर अवनी, जिसकी एक झलक पाने के लिए पूरा काँलेज तलबगार रहता था। ऐसे में एक दिन अखिल की नजर उसपर पड़ी, फिर तो वो बेचैन हो उठा और उससे नजदीकी बढ़ाने की कोशिशों में जूट गया।
अब अखिल भी कम स्मार्ट नहीं था, तो वह उसको नजर-अंदाज नहीं कर सकी और धीरे-धीरे उसके करीब होती चली गई। उसके अजीब से प्रेम-पाश में फंसती चली गई। स्थिति यहां तक पहुंच गई कि” पूरे काँलेज में उन दोनों के प्रेम-चर्चे होने लगे। परंतु… उन दोनों को इन बातों का कतई परवाह नहीं था। खासकर अवनी को, वह तो उसके लिए अब जमाने से टकराने के लिए भी तैयार हो गई थी।
घर्रर!...
विचारों में डूबी हुई वो सड़क पर आगे की ओर बढ़ती जा रही थी। तभी अचानक ही उसके पास तेजी से टेक्सी रुकी, जिसके कारण टायर के घिसटने की आवाज उसके कानों में टकराया। फिर तो उसकी तंद्रा टूट गई और वो घर जाने के लिए टेक्सी में बैठ गई।
वैसे भी दोपहर हो चला था। ऐसे में उसके मन में इस बात का अंदेशा भी होने लगा था कि” पापा क्लिनिक से लौट आए होंगे और अब उसको ही ढ़ूंढ़ रहे होंगे। क्योंकि” वह अपने कार को बंगले पर ही छोड़ आई थी। बस, अब किसी तरह से जल्द से जल्द घर पहुंचना हैं और पापा के हृदय से लग जाना हैं। इसलिए उनके हृदय से लग जाना हैं कि” आज वह उनके द्वारा दिए गए संस्कारों के कारण ही बच पाई हैं।
उसके पापा डा. बद्रीनाथ, जो कि डाक्टर होने के साथ ही एक कुशल नागरिक भी थे, हमेशा ही उसे सही और गलत के बारे में समझाते रहते थे। उसे बतलाते रहते थे, इस समाज में सिर ऊँचा करके जीने के लिए हमें क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए। उनकी सीख कि” समय पर उठाया गया सही या गलत किस तरह से हमारे जीवन को संवार सकता हैं, अथवा तो बर्बादी के दलदल में धकेल सकता हैं।
यह उनके द्वारा दिए गए सीख का ही असर था जो वह अखिल के साथ भावनाओं के प्रवाह में बह जाने के बाद भी संभल गई। उफ!... एक पल को तो यही लगा था, दोनों के बीच की दूरियां सिमट कर रह गई हो। दोनों की सांसे तेज गति से चलकर एक-दूसरे से टकराने लगी थी। साथ ही अखिल अपने कामुक हरकतों को बढ़ाने लगा था, जिससे वो खुद पर नियंत्रण खोती जा रही थी। तभी जेहन में पापा के द्वारा कही हुई बातें उभड़ आई और वो संभल गई और अब घर जा रही हैं।
मैडम!... आपका बंगला आ गया। अचानक ही ड्राइवर ने कहा और उसने ब्रेक लगा दिया। जिससे हिचकोले खाती हुई टेक्सी रुक गई और अवनी की तंद्रा भी टूट गई। फिर तो उसने ड्राइवर को भाड़ा चुकाया और गाड़ी से बाहर निकल गई और बंगले की ओर बढ़ गई। उसका बंगला, जो आधुनिक सुविधाओं से लैस था और शहर में अपना एक अलग रुतबा रखता था।
उसी रुतबे को वो संभाल कर ले आई थी, इसलिए उसके होंठों पर अचानक ही मुस्कान बिखर गया। बंगले का गेट खुला हुआ था, तो वह अंदर प्रवेश कर गई। अंदर हाँल में डाक्टर बद्रीनाथ सोफे पर बैठे हुए अखबार के पन्नों को पलट रहे थे। किन्तु” उनके आँखों में बेचैनी थी, जिसे कोई भी देख कर समझ सकता था। ऐसे में अवनी के पदचाप से उनकी तंद्रा टूट गई, फिर उन्होंने सिर उठाकर शांत स्वर में बोला।
आ गई बेटा!
हां पापा!
तो फिर हम लोग लंच के टेबुल पर चले। उठते हुए उन्होंने कहा और उसकी ओर देख कर मुस्करा पड़े। फिर तो दोनों ने लंच लिया और अपने-अपने रुम की ओर बढ़ गए। हां, अवनी के हृदय पर से बोझ हट चुका था, इसलिए वो खुद को हल्का महसूस कर रही थी। तभी तो, रुम में पहुंचते ही मोबाइल को किनारे फेंका और चैन की नींद लेने के लिए सो गई।
इसके बाद’ पूरे एक महीने हो गए। इस बीच न तो अखिल ने उससे संपर्क करने की कोशिश की और न ही वह हिम्मत जुटा सकी। हलांकि” उसके हृदय के कोने में दबा हुआ प्रेम कभी-कभी उसे बेचैन करने लगता था। इच्छा होती थी कि” उसको फोन मिला दे। परंतु….उसने मन की भावनाओं को दबाया और नियंत्रित रही। फिर महीनों बाद जब वह काँलेज गई, खबर सुनकर हैरान-परेशान हो गई।
हां, कालेज की ही लड़की श्रेया पांच महीने की प्रेगनेंट थी और उसका नाम अखिल के साथ जुड़ रहा था। इतना ही नहीं, अखिल मामले को तूल पकड़ता हुआ देखकर रफूचक्कर हो गया था और श्रेया मदद के लिए कानून के शरण में पहुंच गई थी।
हाश!...वह अपने आप को अखिल के चंगुल से बचा पाने में सफल हुई। नहीं तो, जो स्थिति श्रेया की हैं, उससे अछूती नहीं रह पाती। खबर सुनते ही सहसा उसके मुख से निकल गया। इसके साथ ही मुस्कान ने उसके होंठों को घेर लिया। साथ ही वह मन ही मन प्रतिज्ञा भी लेने लगी कि” अब कभी प्रेम पाश में नहीं फँसेगी। अब तो बस पापा जिसके साथ ब्याह के बंधन में बांध देंगे, उसको ही अपने सपनों का राजकुमार बनाएगी।