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यूं तो अतुल शांत स्वभाव का लड़का था। हंसमुख और मिलनसार, साथ ही किसी के भी दु:ख में शामिल हो जाने वाला। वैसे भी उसका आकर्षक व्यक्तित्व था। घुंघराले काले बाल और तीखे नैन-नक्श, उसपर नीली आँखें, सुर्ख लाल होंठ और गौर वर्ण, उसपर गठा हुआ मांसल शरीर।

हां, वह आकर्षक था, उसका व्यक्तित्व आकर्षक था, इतना कि” कोई भी उसकी ओर सहज ही आकर्षित हो जाता था। पूरे काँलेज में ही उसके करीब आने के लिए खासकर लड़कियों में होड़ मची रहती थी। परंतु….वह, जिसे अपनी पढ़ाई से ज्यादा कुछ नहीं दिखता था, अमूमन वह झुंड में रहने की जगह एकांत में रहना ज्यादा पसंद करता था। इसलिए मिलनसार स्वभाव होने के बाद भी लोग उसे मगरूर कहने लगे थे।

किन्तु” इन बातों से वह बिल्कुल भी परेशान नहीं होता था। बस, जिस उद्देश्य के लिए उसने इस काँलेज में दाखिला लिया हैं, उस लक्ष्य को पा लेने की वह अपनी जिम्मेदारी समझता था। शायद यही कारण था, किसी भी समूह में शामिल होकर मटरगश्ती करने की जगह वह अपने किताबों को ज्यादा वक्त देता था। तब भी, जब क्लास रुम की ब्रेक होती थी, वह अपने लिए नोट बनाने में लगा रहता था।

परंतु….उसके हृदय का एक कोमल कोना, जिसमें एक एहसास छिपा हुआ था, तब से, जब से उसने काँलेज के अंदर कदम रखा था। एक सुंदर-सुकोमल चंचला की तस्वीर जो उसके हृदय में आकर बसी हुई थी। इस तरह से रच-बस सी गई थी कि” कभी-कभी उसका अचेतन मन सहज ही उसके अंदर कोमल भावों को जागृत करने लगता। उसे प्रेम-सागर में डूबने के लिए उत्प्रेरित करने लगता।

हृदय के अंदर एक अदम्य सी लालसा जागृत होने लगती। इच्छा” होती, मन में बसी हुई प्रेयसी के चेहरे पर ही नजर टिका दे और निरंतर ही उसको देखता रहे। उसके रुप-माधुरी को आँखों के रास्ते रसपान करता रहे और प्रेम की वह सरस माधुर्य का, उस स्नेहिल स्पंदन का अनुभव कर सके। जिसको वो चाहता हैं और जो उसके हृदय में बसी हुई हैं, उसके दीदार में ही लग जाए, सारे जग को भूल कर।

भीगे-भीगे प्रेम का कोमल एहसास उसके मन को विचलित करने लगता था। तब तो और भी अधिक, जब उसकी प्रेयसी उसके आस-पास होती और उसके दिल को आभास हो जाता। उसका मन मचल उठता, उसका मन चाहता कि” भले ही चोर की ही भांति सही, परंतु…अपने प्रियतम का दीदार कर ले। उसके सुंदर-सुकोमल अक्श को आँखों के रास्ते से फिर से हृदय में छिपा ले।

अपने प्रियतमा की उस तस्वीर को, जो उसके हृदय में बसी हुई हैं। फिर से देख कर उस तस्वीर के रंगों को और भी गहरा कर ले। प्रिय के मधुर भावों को करीब से महसूस कर ले। उसका चोर मन बार-बार अपने पिया की झलक पाने को लालायित हो उठता था। परंतु….वह, अपने अंदर हिम्मत नहीं जुटा पाता था। हंसमुख स्वभाव का और मिलनसार होने के बावजूद भी प्रियतमा के करीब महसूस करने के बाद वह नजर नहीं उठा पाता था। जिसके कारण उसका मन मचल कर रह जाता था।

वह जो, अपने एकांत प्रिय स्वभाव के कारण काँलेज कैंपस के अंदर मगरूर के नाम से मशहूर हो चुका था, लोगों द्वारा अकारण ही बना दिए गए खुद के लिए उस कठोर आवृति को तोड़ पाने का हौसला नहीं जुटा पाता था। ऐसे में अचानक ही उसके अंदर बेचैनी बढ़ने लगती थी। इच्छा” होती थी, अब लोक-लाज को त्याग भी दिया जाए और अपने मन की कर ले। हां, कही ऐसा नहीं हो कि” अवसर हाथों से निकल जाए और बाद में पछतावा करने के सिवा कुछ भी नहीं बचे।

वैसे भी, जब हृदय कुंज में किसी की तस्वीर बस जाए और लगे कि” यह एहसास बस एक-तरफा हैं। उसके बाद की स्थिति का अंदाजा लगाना इतना आसान नहीं होता। मन में हमेशा एक आशंका बनी रहती हैं कि” अगर उसने पहल की और अगले ने उसे अस्वीकार कर दिया तो?....अगर प्रेम का इजहार किया और तिरस्कार मिला तो?....साथ ही यह भी डर कि” अगर समय हाथों से निकल गया और जिसे वो चाहता हैं, वह किसी और की हो गई तो?..जो कि” गंभीर प्रश्न हैं।

जिससे अतुल का अंतर्मन भी अछूता नहीं था। उसके मन में भी तमाम यही प्रश्न बारंबार आकर खड़े हो जाते थे। जिससे उसके अंदर की बेचैनी और भी बढ़ जाती थी। हां, वह काँलेज की सब से हसीन कली सर्मिष्ठा को पा लेना चाहता था। उसके करीब पहुंच जाना चाहता था। उसे अपना बना लेना चाहता था और उसके संग जीवन के सप्तपदी पर चलना चाहता था।

किन्तु कैसे?...कालेज में आने के बाद जिस तरह से उसके व्यक्तित्व का निर्माण कर दिया गया था, उस आवृति से सहज ही बाहर निकल पाना आसान नहीं था। तभी तो, जिसको चाहता था, उसके रूप-सौंदर्य का दीदार करने के लिए मन तरशता रहता था।

चोर निगाहें चाहती थी, भले ही जो हो जाए, परंतु….छिपकर ही सही, महबूब के अक्श को देख ले। किन्तु’ हिम्मत नहीं जुटा पाता था। जिसके कारण एक अजीब सी बेचैनी, गजब की तड़प उसके हृदय में घर कर गई थी। ऐसा महीनों तक चला। अतुल खुद से जद्दोजहद करता रहा, हृदय के अंदर हौसला जुटाने की कोशिश करता रहा। परंतु…यह इतना आसान भी तो नहीं था।

किन्तु” करना तो उसे ही था और अगर समय रहते प्रयास नहीं किया, तो पछतावा करने के सिवा कुछ भी बचेगा नहीं, इस बात से भली-भांति वाकिफ था वो। तभी तो, आखिरकार एक दिन उसने फैसला कर लिया, चाहे जो भी परिणाम निकले, परंतु….वह इजहार कर के ही रहेगा।

आखिर इश्क का मतलब ही तो मुकाम तक पहुंचना हैं। बस’ मन ने ढ़ृढ़ता के साथ फैसला किया और वो क्लास रुम का ब्रेक होते ही कैंटिन रुम की ओर चल पड़ा, सर्मिष्ठा से मिलने के लिए। उससे अपने दिल का हाल बताने के लिए और उसका इरादा जानने के लिए। तभी तो, वह अपने आगे की जिंदगी के लिए प्लानिंग कर सकता था और खुशियों को महसूस कर सकता था।

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