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धाराएँ हो प्रतिकूल तो क्या?
पथ पर बिछे हुए हो शूल तो क्या?
संभव हैं आगे ठोकर खाओ,
किन्तु तुम तनिक नहीं प्रिय घबराओ,
मनन करो जीवन का होकर निर्भय,
हे वीर शौर्य से तुम करना जीवन की जय।।
माना अब तक अंधकार का राज्य फैला,
हैं भ्रम का भाव भयाकूल करने को,
यह भी हैं सत्य, द्वंद्व अड़ा हैं लड़ने को,
तुम जो चूक गए, हैं घात भयंकर करने को,
तुम क्यों सोचे बैठे हो, होनी पहले से हैं तय,
हे वीर शौर्य से तुम करना जीवन की जय।।
माना अब तक हार-जीत में उलझे थे,
हृदय में वलय बनाए तुम बने थे मौन,
भ्रमणाएँ जो लिपट रही थी तुम से, प्रिय,
उलझन में लिपटे खुद को मान रहे थे गौण,
यह जो उलझे-सुलझे भाव, जगा रहा विस्मय,
हे वीर शौर्य से तुम करना जीवन की जय।।
माना यह भी, बाहर कोलाहल मचा अधिक हैं,
बाहर शोर, लोग लाभ को लिए तराजू तौले,
नितांत हो हित, वाणी को मिश्री के रस घोले,
पथ पर हैं भीड़, सभी व्यर्थ इधर-उधर को डोले,
किन्तु तुम लालायित हो करने को जीवन रसमय,
हे वीर शौर्य से तुम करना जीवन की जय।।
कहता हूं हैं सत्य, अब तुम पतवार उठा लो,
धाराएँ जो हैं प्रतिकूल, आगे नाव निकालो,
सुंदर हैं पथ का संघर्ष, तुम अपना धैर्य बढ़ा लो,
पाना निश्चित हो लक्ष्य, होंठों पर गीत सजा लो,
जीवन के संग पथिक भूलो भी व्यर्थ का भय,
हे वीर शौर्य से तुम करना जीवन की जय।।

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