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फिर प्रखर किरण लौट आया,
बीता दुःख का विषम वह अंधकार,
हृदय में जो बनाए हुए था तीव्र भार'
धूमिल सा अंधकार में लिपटी वो रात'
जो बीता, उसका ही करता हूं बात,
विस्मय के परतों में लिपटा, बीत गया वो छाया।।

अब निरभ्र आकाश का आंगन गुंज उठा,
चिड़ियां मिल कलरव करते, हुआ शोर,
निशा रात जो बीत गया, अब हुआ भोर,
आनंद शिखाओं से लिपटा जीवन का डोर,
बीते का जो भय था, बीत चुका मलिन दौर,
विस्मय के परतों में लिपटा, बीत गया वो छाया।।

प्रमुदित हुआ हृदय, टूटा जो दुःख का वलय,
उम्मीदों के जल उठे दीप, हुआ प्रकार,
जीवन पथ पर बढ़ने को लिए नव विश्वास,
बीते का भय छोड़, चलूं लिए नवीन आश,
अह्लादित किरणों से जगमग करता हुआ भोर,
अब नितांत ही जीतूंगा, विश्वास हृदय में आया।।

अब गगन का स्वच्छ आंगन, मिट चुका तिमिर,
मन हुआ प्रमुदित, बीता जो दुःख का अंधकार,
अभ्युदय हुआ जो जैसे पुण्य, मिला सुख माल,
किंचित भी नहीं रहे अवशेष, बीता जो काल,
मन के आँगन में जले खुशियों के दीप, हुआ विभोर,
अब नितांत ही जीतूंगा, विश्वास हृदय में आया।।

जीवन के पथ पर, बढ़ता चलूं धामे हुए धैर्य,
दु:ख के सागर से निकल कर, लिए आनंद भाव,
मानक बिंदु पर अब तो किंचित नहीं डालूं दबाव,
निर्झर झरना सा हो जीवन का निर्मल बहाव,
भ्रम के बीते हुए उन आवरण पर करूँ गौर,
अब नितांत ही जीतूंगा, विश्वास हृदय में आया।।

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