घनन- घनन, घन बरसे मेह’
त्यों बरसे रस लिए प्रेम परिधि रे।
हृदय उमंग-अनुराग लहर-लहर उठे'
छींटों परे स्नेह बूंद की, तन-मन भीगी रे।
उल्लास सहज लिए' तके नैन पिया को।
अजु प्रेम में भिंगूँ बढे अह्लाद हिया को।।
गगन में छाए झुंड ले ज्यों बदरा कारो।
बरसाये बूंदन मेह' बने हो जैसे मतवारो।
सहज सुलभ ऐसों ही प्रेम के पड़े फुहारों।
प्रेमन को पड़े मधुर छींटों, प्रिय संग हिया हारो।
अधर सहज मुसकाए गयो, देखत भाव पिया को।
अजु प्रेम में भिंगूँ' बढे अह्लाद हिया को।।
प्रेम रस को रिमझिम पड़ते सहज फुहारे।
हृदय में छवि प्रेम को रची बनाये लियो।
नैनन से बढे स्नेह' पिया को हिया बसाये लियो।
बरसे रस लिए प्रेम' तन-मन आज डुबाये लियो।
तुमुल स्वर बजे राग मल्हार' देखत भाव पिया को।
अजु प्रेम में भिंगूँ, बढे अह्लाद हिया को।।
प्रेमन रस पड़े फुहार' मन मोर बन करें किलोल।
चाहत की फुलवारी खिल गई, भइ भँवरा को शोर।
हृदय कुंज में संगीत के स्वर' गाए सहज विभोर।
मन के प्रिय प्रीतम मिले, पुलके रोम करोड़।
स्नेह सलिल लिपटाये गयो, देखत भाव पिया को।
अजु प्रेम में भिंगूँ, बढे अह्लाद हिया को।।
घनन-घनन घन शोर' बरखा के बूंदन की’
त्यों प्रेम परिधि कर के शोर हृदय में बरसे।
पुलकित हो गए रोम, भाव हृदय में हर्षे'
अब के स्नेह बदरिया छाए, नहीं बूंदन को तरशे।
स्नेह-स्निग्ध पहचान प्रेम की, देखत भाव पिया को।
अजु प्रेम में भिंगूँ, बढे अह्लाद हिया को।।