Image by Sambeet D from Pixabay

हे भारती, दस-दिशा में गुंजित तेरा यशगान,
वीरों के हृदय में बसी तू अमिट तेज-प्राण,
धरते हैं ऋषि-मुनि सदा तुझको ही ध्यान,
तेरा ये रज-कण भारती हो रहा दैदीप्यमान।।

तू सलिल सी सुकोमल हृदय में लिए प्रेम,
सिंह वाहिनी हे भवानी मधुर-भाव से हैं बोलती,
हे धरा अति तेजोमय समाहित किए वेद-ज्ञान,
तेरा ये रज-कण अलौकिक हो रहा दैदीप्यमान।।

हे कर्म-योग को पोषित करने वाली वरदानी भूमि,
जीवन के भावों में तत्व-सुधा दिखलाने वाली,
वेदों के ऋचाओं में हे जननी तुम हो मूर्तमान,
तेरा रज-कण प्रेम से पोषित हो रहा दैदीप्यमान।।

हे धरा-खंड, हे ज्ञान पुंज, लिए मन में दिव्य-भाव,
हे शांत-सौम्य, करुणा बरसाने वाली मातृ-भूमि,
गूंजित काव्य के स्वर-लहरी का हो तुम्ही प्राण,
तेरा रज-कण अमृत-तुल्य, हो रहा दैदीप्यमान।।

हे भारती, गूंजित नभ-मंडल में तेरा ही जय नाद,
धवल वस्त्र से शोभित तेरा रुप भव्य हैं माता,
तुमुल-निनाद स्वर वीरों का गुंजित मधुर तान,
तेरा रज-कण दिव्य-अलौकिक हो रहा दैदीप्यमान।।

.    .    .

Discus