हे जातक' चलो उठो, अधिक निंद हैं घातक,
कर्मवीर का धर्म यही, बने जीवन का आराधक,
पथ पर चलो ढ़ृढ़ता के बल, लिये धैर्य संबल,
नहीं तो भ्रम की आभा, बन जायेगा पथ का बाधक।।
निज मन का दर्प मिटा, देख जरा तो दर्पण,
पथ के पथिक, सही से होना जीवन को अर्पण,
क्षणिक लाभ के गुण से लिपट, नहीं खेलना छल,
जीवंत भाव धारण करने को, बनना भाव संपादक।।
चलो धैर्य को धारण कर, पुरुषार्थ जरा दिखलाओ,
छोड़ो निंद का यह आवरण, अब सचेत हो जाओ,
जीवन का रंग कुछ अजीब, जीना बनकर निश्छल,
तुम पुरुषार्थ के संवाहक बन, बन जाओ साधक।।
हे जातक' चलो उठो, चिंहित पद चिन्हों पर चलने को,
खुद सहर्ष तत्पर रहना, निर्धारित नियमों में ढ़़लने को,
जो चुक गये कर्म भूमि पर, पा जाओगे भी प्रतिफल,
तुम समझो, बनकर जीवन के नियमों का अनुवादक।।
भाव जो, विकल करें हृदय को, लालसा का हो अंकुरन,
तुम फिर उलझ पड़ोगे, भ्रम का विकट हैं निर्जन वन,
बीते को अब भूल चलो, नहीं तो होगा भीषण हलचल,
अहं का भाव तुष्टि कर है, बना हुआ जहर सा मादक।।
हे जातक' उठो चलो, नभ के आँगन में रश्मि फैला,
हो कर्म वीर तुम पथ, नाहक ही करते हो मन मैला,
तुम सहृदय बनो, पीने को जीवन सरिता का जल,
बनना मानव श्रेष्ठ, जीवन तत्व का बनकर आराधक।।