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हृदय के सागर में हिलोरे उठे'
तमाम वेदनाएँ, मन से निकाल फेंका’
खुशी के आईने में जो खुद को देखा।
मन मुक्त हो' सजाने लगा सपने'
चेतना रस भीग, बनाने लगा सपने।।

अब तो' बीता हुआ कल' भूल कर’
अंगड़ाइयां ले, चल पड़ा हूं आगे।
सुंदर सा गीत जीवन का गा के'
खुशियों की माला, गले से लगा के।
नयनों में जो छाये सपने, लगे अपने।।

धूल जो था' पड़ा हुआ बीता समय'
चलना है जो आगे, करूंगा नहीं भय।
मुक्त मन गाऊँगा, जीवन का हो जय'
तरंगित हो जाये भावनाएँ, जीत की।
अहो' जीवन, लगा तुझ को ही जपने।।

वह बीती हुई बात' जो रिक्त सा था'
स्वाद कसैला लिये कुछ तिक्त सा था’
वेदनाओं के दु: सह रस से सिक्त सा था।
छल के भंवर से निकल आया संभल कर'
मन" अब आनंद के भाव लगा पनपने।।

बीता हुआ पल' जो शून्यावकाश लिये था।
त्याज कर' आनंद भाव हृदय बसाऊँ'
पथ पर पथिक' कदम जीवन संग बढ़ाऊँ।
हृदय में आनंद की लहर वेगवान हो जाये’
हृदय कुंज में अनुराग छवि लगा छपने।।

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