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हृदय कुंज में छवि' उपस आया,
मिलन के मधुर बेला की तस्वीर,
लिये हुए यादों का मधुर तासीर,
सहज प्रेम फिर नव-पल्लवित हुआ'
लगा, एहसास में किसी ने छूआ।।
चंद बिखरे हुए यादों का समूह,
जीवंत हो उठने का आकुल हुआ,
प्रेम फिर सजीव हो मन व्याकुल हुआ,
ध्रूमिल' रस भीगा प्रीत से हो ओतप्रोत,
लगा, एहसास में किसी ने छूआ।।
उर्मित मन के उपवन में, खिले पुष्प'
कोयल के गान का मधुर गुंज उभड़ा,
पाने और खोने की लालसा से परे'
स्नेह में लिपटा मधुर रस पुंज उभड़ा,
लगा, एहसास में किसी ने छूआ।।
रागिनी का शोर सा गुंज उठा' कहीं,
भावनाओं के समंदर में लहर तेज'
बनकर स्नेह का अतिशय भव्य वेग,
भीगा, रस ललित प्रेम से अंग-अंग,
लगा, एहसास में किसी ने छूआ।।
हृदय कुंज में, जो तस्वीर उपस आया'
यादों के खजाने का धरोहर, बीता कल,
मिलन का वह समय, वह मधुर पल'
उत्साहित हुआ मन विहंग बनने को'
लगा, एहसास में किसी ने छूआ।।