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जब से, माना हैं तुम्हें अपना,
जब से, जाना हैं तुम्हें अपना,
कह दूं सांवरिया, तेरा होने लगा,
सखा मेरे श्याम, तुम में खोने लगा।।

जाना हैं जब से, सखा हो हमारे'
हे राधा के मोहन, यशोदा दुलारे'
लगाई हैं नेह, मन तुम में पिरोने लगा,
सखा मेरे श्याम, तुम में खोने लगा।।

तेरी मुरलियाँ, बजे पनघट पे संवरिया'
मिलाई मैंने श्याम, जब तो से नजरिया,
तुम्हारा हूं मोहन, सपने संजोने लगा,
सखा मेरे श्याम, तुम में खोने लगा।।

तेरी छटा श्याम, कहूं मन मेरा चुराये'
पनघट पे मोहन' तुमने मो कूं बुलाये,
तेरे लिये भोग, माखन बिलोने लगा,
सखा मेरे श्याम, तुम में खोने लगा।।

जब से बुलाया हैं तू ने, बंसी बजा के,
मन बलिहारी जाऊँ तो पे, नैना मिला के,
मुरली मनोहर मेरे, तेरे लिये रोने लगा,
सखा मेरे श्याम, तुम में खोने लगा।।

जब से जाना हैं, तुम निज जन के कहाते,
 है गीता का वचन, श्याम तुम अपना बनाते,
रटना लगी नाम, भजन में डुबोने लगा,
सखा मेरे श्याम, तुम में खोने लगा।।

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