जलज सा, कोमल हो जाओ'
हृदय में सहज प्रेम पधराओ'
मानक नियमों का साथ निभाओ'
मानव, यत्न करो, तृष्णा से बच पाओ'
भ्रमित मत हो, भाव-भंगिमा के बस'
मन में नहीं निराधार लालसा लाओ।।
जटिल आकांक्षाओं के द्वारा मन-द्वेष'
कहता हूं, लाभ नहीं करने बाला है'
जो लगे अगर हृदय पर कटुता का ठेस'
सत्य है, घाव कभी नहीं भरने बाला है
तुम खुद सतेज बनो, पाने को जीवन रस'
मन के बलात बहकावे में क्षणिक नहीं आओ।।
जाना पहचाना है डगर, राही पुनीत पथ के'
सत रंगी आभाओं में लिपटा हुआ भ्रम है'
तुम तो चलते जाओ, यही तुम्हारा धर्म है'
सलिल सा मंद-सुगंधित हो लो, यही मर्म है'
जग का वैभव, धरा रह जायेगा जस का तस'
तुम सतेज बनो, नहीं कटु वाक्य बरसाओ।।
जलज सा, कोमल बनकर' सुगंध बिखेरो'
जीवन पथ पर, नहीं व्यर्थ संताप सताये'
लोभ का बल, नहीं तुम्हें खींचने पाये'
जीवन के उपवन में, बस सुगंध छा जाये'
तुम उपमानों से अलग, खिलना अलग सरस'
बनो धैर्य का अनुगामी, शीतलता को पाओ।।
करने को किलोल' सहज निर्मलता के बल'
भाव हृदय में पालो, अति कोमल-अति निश्छल'
जीवन भाव, बहना सरिता जल सा कल-कल'
कोमल जलज बन बिहंस हे मन, प्रति पल'
हरना हृदय क्लेश, करने को खुद का उत्कर्ष'
अहं से दूर कहीं, अपना पर्णकुटी बनवाओ।।