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जीवन पथ पर जो शांति का उपवन चाहो,
कर्म-भाव का पूजक तुम श्रवण बन जाओ,
न्याय-नीति से युक्त तुम तो स्वाध्याय उठाओ,
जीवन से ताल मिलाकर अपना कदम बढ़ाओ।।
जो चाहो कर्तव्य भाव के ग्राहक बन निश्छल होना,
व्यर्थ लाभ की आशाओं को मन में नहीं संजोना,
होना जो हो अंकित पथ पर, नियम यही अपनाओ,
जीवन संग भाव जगाकर अपना कदम बढ़ाओ।।
तुम जो खिलना चाहो सोलह चंद्र कला से,
बच कर रहना फिर होगा उपजे हुए घृणा से,
तुम मानव जो बनना चाहो निर्मल मन हो जाओ,
जीवन से हाथ मिलाकर अपना कदम बढ़ाओ।।
जो पथिक कोमल पुष्प बन जाने की हो इच्छा,
अडिग भाव से रहना नहीं चाहना याचना-भिक्षा,
पथ पर तुम हो निर्भीक ऐसा ही ध्येय जताओ,
जीवन के संग-संग तुम सुस्वर एक राग में गाओ।।
जो मन तेरे हो जीवन रस से पूरित रस की आशा,
कोमल भाव हो मन में होंठों पर हो जीवन की भाषा,
तुम मानक नियमों को अपना कर मानव हो जाओ,
जीवन के संग चलने को सार्थक आतुरता दिखलाओ।।
जो तुम चाहो जीवन रस से भरा शांति-सौम्य उपवन,
मानो नहीं अहंकार-अंधकार से आच्छादित बंधन,
केशव का जो चाहो साथ पार्थ सा धैर्य दिखलाओ,
जीवन के संग उमंग भाव से पथिक का धर्म निभाओ।।