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शाम के छ बजने बाले थे।

हाईवे किनारे खड़ी वह युवती आने-जाने बाली कार को बस देखे जा रही थी। बीतता हुआ पल और उसकी आँखें, लगता था कि” उसे किसी की तलाश हो।

हां, उसके काले-काले नैन पर कमानी दार भँवें, गोरा रंग जैसे दूध में हल्दी मिला हुआ हो और रसीले ओंठ पर सफेद सी दंत पंक्ति। घने रेशमी बाल और उसपर पहने हुए जिंस-टाँप। वो युवती वास्तव में सुंदर थी, इतनी सुंदर थी कि” उसे देखकर कोई भी वास्तव में ही काम आसक्त हो सकता था।

वैसे भी, इस दुनिया में हुस्न का जादू सिर चढ़कर बोलता हैं। हमेशा ही यहां पर हुस्न का जादू कायम रहा हैं और इस हुस्न ने हमेशा ही बवाल ही किया हैं। हां, यह सदियों से होता चला आ रहा हैं, तभी तो विश्वामित्र जैसे ऋषि की भी तपस्या भंग हो गई। हां, इस हुस्न का ही कमाल हैं कि” इसपर कई-कई कथाएँ लिखी जा चुकी हैं। लाखों-लाखों कविताओं का सृजन हो चुका हैं। परंतु….अब तक यह हुस्न एक अबूझ पहेली ही बना हुआ हैं, जिसे आज तक समझा नहीं जा सका हैं।

हां, इतना जरूर हैं कि” इस हुस्न का गुलाम दुनिया बना हुआ हैं, सदियों से लेकर आज तक। तभी तो इसको पाने के लिये लालायित नजरें इसको घूरा करती हैं और इस समय भी यही हो रहा था। वहां से गुजरने बाली तमाम कार एक पल के लिये वहां जरूर रुकती, फिर उसमें बैठा हुआ अधेड़, वृद्ध या नौजवान, जो भी होता, उस युवती को लालच भरी नजरों से देखता और कार आगे बढ़ा लेता।

वैसे भी, आँख सेंकने की कला में पुरुष माहिर होते हैं। ऐसे में जहां भी उनको युवती या औरत दिखी नहीं कि” उनकी निगाह वहीं पर जाकर टिक जाती हैं। उसमें भी युवती सुंदर हो और अकेली हो, तो कहने की जरूरत ही नहीं पुरुष मन की। वहां पर तो भावों की क्यारी सजने लगती हैं, जिसमें इच्छाओं के फूल लद जाते हैं। फिर तो’ इच्छा का प्रबल वेग उठता हैं कि” काश वो मिल जाती।

मन में भावनाओं का एक विशेष तरंग चलने लगता हैं। इच्छा होती हैं कि” बस वो मिल जाये और कामनाओं की घोङ़े पर सवार हो जाऊँ। परंतु….जब उसे वो चीज उसे अप्राप्य लगती हैं, वो आगे बढ़ जाता हैं नि:साँसा लेते हुए। इस जीवंत आशा के साथ कि” आगे उससे भी कोई बेहतर हुस्न मिले आँखों को सेंकने के लिये। फिर संभव है कि” वहां पर दाल भी गल जाये इच्छाओं की।

ठीक यही तो हो रहा था यहां पर। हाईवे से गुजरने बाली तमाम वो गाड़ियां, जिसपर पुरुष मौजूद होता था, एक पल के लिये उस युवती के पास जरूर रुकता था। किन्तु’ वह युवती तो शांत चित होकर लगता था जैसे शून्य में देख रही हो। ऐसे में रुकने बाली कार भाव नहीं मिलने के कारण आगे बढ़ जाती थी। यही क्रम निरंतर ही चालू था।

इसका मतलब यह नहीं था कि” उस युवती को किसी का इंतजार नहीं था। हां, उसे इंतजार था एक विशेष कार का, जिसका नंबर उसको मिला हुआ था। हां, वो एक काँल गर्ल थी और इस समय ग्राहक के आने का इंतजार कर रही थी। उसकी चकोर सी आँखें बार-बार उधर ही देख रही थी अथवा टिकी हुई थी। हां, उसे इंतजार था निर्धारित कार का, जिसके लिये उसे कोड दिया गया था।

धीरे-धीरे आगे की ओर बढ़ता हुआ समय और अस्ताचल में पहुंचने को आतुर सूर्य देव। शाम की रक्ताभ लालिमा उस युवती के चेहरे पर पड़ रहा था, जिसके कारण उसका सौंदर्य और भी दमक रहा था। हां, उसका रूप लालित्य और भी दमक उठा था इस समय।

बीतता हुआ समय और अचानक ही एक इनोवा कार आकर उस युवती के पास रुका और उस युवती की नजर कार के नंबर प्लेट पर चली गई। साथ ही युवती के आँखों में चमक उभड़ आया, तब तक तो कार के ड्राइविंग साइड का सीसा खुल चुका था और उसमें से सुंदर नौजवान ने सिर बाहर निकाल लिया था। फिर तो’ उस नौजवान ने उस युवती को संबोधित करके बोला।

रूपाली मैम!

यश!...युवक का संबोधन सुनते ही युवती झट बोली। फिर पलक झपकते ही ड्राइविंग साइड पहुंच गई और युवक के करीब पहुंच कर उसने पहले तो युवक को ऊपर से नीचे तक देखा। नौजवान का आकर्षक व्यक्तित्व था, इतना कि” कोई भी उसकी ओर आकर्षित हो जाये। ऐसे में वो संतुष्ट सी हो गई, फिर युवक से बोली।

नंबर कोड लाये हो?

यश मैम!...उसकी बातें सुनते ही युवक बोला, फिर उसने अपनी जेब से एक कार्ड निकाला और उस युवक की ओर बढ़ा दिया। फिर तो’ उस युवती ने उस नंबर का अपने नंबर से मिलान किया और कार में बैठ गई। बस’ फिर क्या था, युवक ने इंजन श्टार्ट कर के आगे बढ़ा दिया। फिर तो’ कार हाईवे पर सरपट दौड़ने लगी और उसी रफ्तार से उस युवक की भावनाएँ भी दौड़ने लगी।

वह भले ही कार ड्राइव कर रहा था, लेकिन उसकी काम लोलुप नजर बार-बार युवती के उभाड़ पर चली जाती थी। हां, उसके हाव-भाव को देखकर तो यही लगता था कि” अगर उसे मौका मिलता, तो यहीं पर कार में शुरु हो जाता। लेकिन’ नहीं, उसके पूरे ग्रुप ने मिलकर बुकिंग की थी, ऐसे में उतावला बनना शायद ठीक नहीं था।

किन्तु’ वह अपने बहकते हुए मन को किस तरह से नियंत्रित करें। उसमें भी, जब उसे जिस्मानी सुख भोगने की आदत सी पड़ चुकी थी। उस परम सुख से वह भलीभांति परिचित था, ऐसे में खुद पर नियंत्रण नहीं रख पा रहा था। उसमें भी, जब सामने कामनाओं की मूर्ति हो, इंसान खुद पर नियंत्रण नहीं रख पाता।

उसमें भी उस युवक के बगल में बला सी खूबसूरत युवती बैठी हुई थी। उसके मद- मस्त अंगों से आता हुआ भीना-भीना खुशबू, उस युवक के मन मस्तिष्क में हलचल मचा रहा था। उसको विचलित कर रहा था और साथ ही प्रेरित भी कर रहा था कि” अभी कार रोक दे और उस युवती के संग सहवास में रत हो जाये। परंतु….फिलहाल तो वो ऐसा नहीं कर सकता था, क्योंकि’ इससे समय बीतता और गंतव्य पर उसके साथी इंतजार में होंगे।

यार हैंडसम!....तुम तो बस मौन होकर ड्राइव में डुबे हुए हो। वैसे, देख रही हूं कि” बार-बार मुझे पलट कर देखते हो, लेकिन मौन होकर। ऐसे में सफर बोझिल सा हो जाता हैं। कार में फैले हुए सन्नाटे से तंग आकर अचानक ही युवती ने युवक को संबोधित करके बोला। फिर’ उसने तिरछी नजर से युवक के चेहरे को देखा, साथ ही मादक अंगड़ाई ली। बस’ इतना ही काफी था और युवक का मन मचल गया, तभी तो वो बोला।

नहीं मैम!...ऐसी कोई बात नहीं हैं। वैसे’ मैंने देखा कि” आप मोबाइल में उलझी हुई हैं, बस मैंने आपको नहीं टोका। फिर तो हम लोगों को मंजिल तक भी जल्द ही पहुंचना भी हैं। कहा उस युवक ने और फिर ड्राइव में नजर टिका दी। जबकि’ युवक की बातें सुनकर वह युवती फिर बोली।

हैंडसम!....वैसे’ नाम क्या हैं तुम्हारा?

मयूर सैनी!....युवक की बातें सुनकर युवक झट बोल पड़ा। साथ ही उसने कार की रफ्तार बढ़ा दी।

वैसे’ तुम बतला सकते हो, नई-नई च्वाइश हैं, या फिर इस क्षेत्र में अनुभवी हो। उस युवक की बातें सुनते ही युवती ने युवक को संबोधित कर के बोला, फिर मंद-मंद मुस्कराने लगी। जबकि’ उसकी बातें सुनकर युवक चहक कर बोला।

नहीं-नहीं, हम लोग बिल्कुल भी नया नहीं हैं। इस काम में तो हम लोगों को महारत हासिल हैं। कहने के बाद युवक रुका और युवती की ओर देखकर मुस्कराया, इसके बाद आगे बोला।

हम चार दोस्त हैं और अकसर ही इस तरह के ग्रुप एँज्वाय मेंट का आयोजन करते हैं।

इसके बाद’ उन दोनों के बीच बातचीत का दौर शुरु हो गया। धीरे-धीरे आगे की ओर बढ़ता हुआ समय और फूल रफ्तार से हाईवे पर दौड़ती हुई कार।

* * * *

पूरे दिन की भागदौड़ के बाद जब तरुण वैभव पुलिस स्टेशन पहुंचा, पूरी तरह से थका हुआ था। तभी तो’ लाचारगी से सुशीत काले की ओर देखा आँफिस में पहुंचते ही और सुशीत काले उसका मतलब समझ गया। उसे मालूम था कि” बाँस जब इस तरह से देखे, उसका मतलब उन्हें हाँट काँफी पीना होता हैं।

वैसे भी, सूर्य देव अस्ताचल की ओर पहुंच गये थे और लगता था कि” कभी भी विश्राम ले लेंगे। ऐसे में स्वाभाविक रूप से अंधकार के कदमों की आहट सी महसूस होने लगी थी। तभी तो’ काँफी पीने की तलब उसकी भी जगी हुई थी। बस’ बाँस का इशारा मिलते ही वो उलटे पाँव लौट गया, जबकि’ तरुण वैभव आगे बढा और अपने शीट पर बैठ गया। साथ ही उसने अपने शरीर को कुर्सी पर ढ़ीला छोड़ दिया।

इसके बाद’ बीते दिन से लेकर आज के पूरे दिन के कार्रवाई के तंतु मिलाने लगा। फिर गुणा-भाग के बाद जो फल निकला, वह शून्य ही था। क्योंकि’ इस केस में इधर-उधर भागदौड़ करने के अलावा वह कुछ भी तो नहीं कर सका था। कुछ करने की तो बात ही दूर हैं, इतना भी जानकारी नहीं जुटा सका था कि” हादसे का शिकार हुई वो युवती कौन थी?...या यूं कहा जाये कि” इस मामले में उसको समय ही नहीं मिला था कि” युवती के बारे में पता करने की कोशिश कर सकें।

स्वाभाविक रूप से ऐसे में उसको खुद पर ही खीज आ रहा था। परंतु….वह भी क्या करें?...इस मामले ने इस तरह से उलझा दिया था कि” उसकी बुद्धि कुंद होकर रह गई थी। भला, इस तरह के वारदात घटित होने के बाद बने हुए दबाव को झेल पाना इतना भी आसान नहीं होता। एक तो दबाव बनाती हुई मीडिया, दूजे पब्लिक के रोड पर आ जाने का डर और फिर सीनियर अधिकारियों का दबाव, इन तमाम परिबल के बीच काम करना होता हैं, वह भी बिल्कुल शांत दिखते हुए।

इस तमाम कठिनाइयों से इस समय उसको सामना करना पड़ रहा था। ऐसे में इतनी जल्दी परिणाम मिल जाने की आशा करना व्यर्थ ही तो था। किन्तु’ इसका मतलब यह भी नहीं था कि” वो हाथ पर हाथ धरे हुए बैठा हुआ था। उसने अपने तमाम सोर्श को काम पर लगा दिया था। फिर भी उसके मन को शांति नहीं मिल पा रही थी। हां, शांति मिलती भी कैसे?....उसके इलाके में बीती रात को सामूहिक नर-संहार हुआ था। साथ ही उसके मन में आशंका बलवती हो उठी थी कि” इस तरह के वारदात को और भी अंजाम दिया जा सकता हैं। बस’ इतना ही काफी था उसके मन को बेचैन करने के लिये।

सर!...काँफी पीजिये। अचानक ही सुशीत ने काँफी का कप थामे हुए प्रवेश किया और उसे इस तरह से विचारों में खोया हुआ देखकर बोला। फिर एक कप उसके सामने रख दिया और दूसरा खुद थामकर बैठ गया। जबकि’ उसकी बातों से तरूण वैभव की तंद्रा टूट गई। फिर तो दोनों काँफी पीने लगे, किन्तु’ मौन होकर। यह मौन रहने का सिलसिला शायद बहुत लंबा चलता, अगर तरूण वैभव के मोबाइल ने वीप नहीं दी होती।

फिर तो’ उसने मोबाइल उठाकर देखा, सामने अजय चतुर्वेदी थे। उसके बाँस और एस. पी, बस उनको लाइन पर जानकर तरूण वैभव तुरंत ही सावधान हो गया, साथ ही काँल रिसिव किया गया। फिर तो’ काँल रिसिव होते ही एस. पी. साहब ने तत्काल ही उसको पुलिस मूख्यालय आने को कहा और फोन काँल डिस्कनेक्ट कर दिया। बस’ इतना ही काफी था और तरूण वैभव की धिग्घी बंध गई।

इस समय अचानक ही बाँस का बुलाने का मकसद क्या हो सकता हैं?...सहसा ही यह प्रश्न उसके दिमाग में चुभने सा लगा। किन्तु’ आँडर हो चुका था, मतलब कि” अब इस विषय में विचार करने का कोई अर्थ ही नहीं रह गया था। इसलिये उसने फटाफट काँफी खतम किया और कप टेबुल पर टिका कर सुशीत काले के साथ आँफिस से बाहर निकल गया।

फिर तो सड़क पर सरपट दौड़ती हुई कार और उसी रफ्तार से दौड़ते हुए उसके विचार। तरूण वैभव अपने बाँस के स्वभाव से अच्छी तरह परिचित था। बाँस की बिल्लौरी आँखें, जो सामने बाले को एक्स-रे की तरह घुरती रहती थी। उनकी लंबी-लंबी कड़क मूँछें और सिर के छोटे-छोटे बाल। उनका आकर्षक व्यक्तित्व और गढ़ा हुआ डील-डौल। स्वाभाविक रूप से ही सामने बाले के अंदर खौफ पैदा करता था।

तभी तो’ इतना सोचते ही उसका पूरा वदन सिहर उठा। एक खौफ जो उसके मन में ग्रसित कर गया था कि” आज जरूर ही उसकी शामत आने बाली हैं। साथ ही जानता था, परिस्थिति भी उसी तरह की बनी हुई हैं। वैसे’ बाँस की एक बात उसे बहुत अच्छी लगती थी कि” चाहे परिस्थिति कैसा भी बने, बाँस हमेशा अपने अधीनस्थ की सुनते थे और उसका ही पक्ष लेते थे।

खैर’ जो भी होगा, देख लेगा। यही सोचकर उसने अपना ध्यान ड्राइव में पिरोया। फिर तो कार की रफ्तार बढ़ाता चला गया, जिसके कारण कार हवा से बातें करने लगी। बीतता हुआ समय और उसके चेहरे पर बढ़ता हुआ तनाव, जब उसकी कार ने पुलिस मूख्यालय में प्रवेश किया, शाम के आठ बज चुके थे।

फिर तो उसने कार को मूख्यालय के ग्राउंड में पार्क किया और सुशीत के साथ बाहर निकले। इसके साथ ही दोनों आँफिस बिल्डिंग की ओर बढ़ गये और पांच मिनट में ही बाँस के आँफिस में पहुंच गये। इसके साथ ही दोनों ने एस. पी. साहब को सैल्यूट दिया, जिसका जबाव एस. पी. साहब ने दिया और फिर दोनों को ऊपर से नीचे तक घुरने के बाद बैठने के लिये इशारा किया।

बस’ इतना ही काफी था दोनों के अंदर खौफ पैदा करने के लिये, तभी तो दोनों सहमें से आगे बढ़े और कुर्सी पर बैठ गये। जबकि’ एस. पी. साहब ने इस दौरान दोनों के चेहरे से नजर हटाया ही नहीं। वे बस खूंखार नजरों से दोनों को घुरे जा रहे थे, मानो दोनों को निगल जाने का इरादा बना चुके हो। आधुनिक सुविधा से लैस इस आँफिस में अचानक ही तनाव बढ़ चुका था। परंतु…यह स्थिति ज्यादा देर तक नहीं रही, क्योंकि’ एस. पी. साहब ने तरूण वैभव को संबोधित किया।

तरुण!....तुम न, इस केस में अब तक कुछ भी नहीं कर पाये हो। कहा उन्होंने और एक पल के लिये रुककर उसकी आँखों में झाँकने लगे। जबकि’ उनके शब्दों का अर्थ नहीं समझ पाने के कारण और इस तरह से अपनी आँखों में देखते पाकर वो बुरी तरह घबरा गया। तब एस. पी. साहब आगे बोले।

तुम इस केस में इस तरह से लेजी बनोगे, तो किस तरह से चलेगा?..जबकि’ तुम्हें भी अच्छी तरह से मालूम हैं कि” मामला कितना गंभीर हैं। तुम जानते हो कि” इस तरह के अपराध घटित होने से समाज में गलत संदेश जाता हैं और इसके अपराधी को पकड़ा नहीं गया, वे अपराध पर अपराध करते चले जाते हैं।

जी सर!...इस बात को जानता हूं, इसलिये प्रयास तो कर रहा हूं। एस. पी. साहब की बातें सुनकर तरूण वैभव अपने अंदर की पूरी शक्ति जुटाकर बोला और इतना ही काफी था, एस. पी. साहब गरज कर बोले।

प्रयास नहीं, प्रयास की बात मत करो तरूण, मुझे तो रिजल्ट चाहिये।

कहा एस. पी. साहब ने और कुछ पल के लिये मौन हो गये। इसके बाद करीब आधे घंटे तक दोनों के बीच बातचीत होती रही। एस. पी. साहब तरूण वैभव को निर्देशित करते रहे कि” उसे क्या करना हैं। इस बीच सुशीत काले मौन हो कर दोनों के बीच की बातों को सुन रहा था, क्योंकि’ बीच में बोलकर डांट खाने की रिश्क वो नहीं ले सकता था।

ऐसे में धीरे-धीरे बीतता हुआ समय और अचानक ही तरूण वैभव के मोबाइल ने वीप दी। बस’ एस. पी. साहब ने इशारा किया और उसने फोन उठाया और जैसे ही काँल रिसिव हुई, उधर से न जाने क्या कहा गया कि” तरूण वैभव आश्चर्य के कारण शीट पर उछल पड़ा, साथ ही उसके हाथ से मोबाइल छूटते-छूटते बची।

* * * *

अपराजिता बंग्लोज!

संचिता सोसाइटी के अंदर तीसरे सेक्टर में मौजूद। जहां अभी-अभी पुलिस की गाड़ियाँ आ-आ कर रुकने लगी थी। रात के नौ बजे, जब पूरी सोसाइटी सोने की तैयारी में लगी हुई थी, अचानक से पुलिस का आना हलचल मचाने बाला था। तभी तो’ अपराजिता बंग्लोज के सामने मानव समूह जमा होने लगा था।

ऐसे में स्वाभाविक रूप से पुलिस बल चौकन्ने हो गये थे और उन्होंने मोर्चा संभाल लिया था। धीरे-धीरे बीतता हुआ पल अचानक ही से तनाव पूर्ण होने लगा था। परंतु….ऐसी स्थिति ज्यादा देर तक नहीं रही, क्योंकि’ तभी सोसाइटी के गेट से एस. पी. साहब की कार ने प्रवेश किया और अपराजिता बंग्लोज के सामने आकर खड़ी हो गई।

संचिता सोसाइटी, जो कि” रिहायशी इलाके में बना हुआ था। जहां पर ज्यादातर सरकारी नौकरी बालों का ही बसेरा था। सभी फैमली के साथ रहने बाले लोग, ज्यादातर अपने काम से काम रखने बाले। इस सोसाइटी की खासियत थी कि” यहां पर ज्यादातर बंग्लोज का ही निर्माण कराया गया था। खूबसूरत तरीके से बनाई गई बिल्डिंगे, साथ ही सोसाइटी के अंदर माँल, सिनेमा हाँल और बहुत बड़ा पार्क बनवाया गया था। परंतु….यहां के ज्यादातर बाशिंदे सुबह-शाम ही अपने बंग्लोज से निकलते थे।

किन्तु’ रात के इस वक्त सोसाइटी के अंदर पुलिस का काफिला का आना, सभी के अंदर जिज्ञासा उत्पन्न कर गया था। तभी तो’ सभी अपने-अपने बंग्लोज से निकल कर अपराजिता बंग्लोज के सामने जमा होने लगे थे। जिसके कारण स्वाभाविक रूप से बंग्लोज के आस-पास कोलाहल सा शुरु हो गया था, जिसका शोर धीरे-धीरे पूरे सोसाइटी में फैलने लगा था।

इस परिस्थिति में जैसे ही एस. पी. साहब कार से बाहर निकले, चौकें बिना नहीं रह सके। इसके साथ ही तरूण वैभव और सुशीत काले भी बाहर निकल आए। इसके बाद तीनों ने बिल्डिंग की ओर कदम बढ़ाया और जैसे ही दरवाजा खोलकर हाँल में कदम रखा, उनकी आँखें फैली की फैली रह गई।

क्योंकि’ हाँल पूरी तरह दुधिया रोशनी से जगमगा रहा था। साथ ही आधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित था हाँल। परंतु….इस समय हाँल की स्थिति ठीक नहीं थी, क्योंकि’ हाँल में रखे हुए कीमती सोफे पर चार-चार युवकों की लाश फैली हुई थी। उन युवकों की उलटी हुई आँखें और खून से लथपथ शरीर, साथ ही उन चारों के शरीर से निकलता हुआ ताजा खून सोफे से बहता हुआ फर्श को भीगो रहा था।

स्वाभाविक रूप से इस स्थिति में अंदर का दृश्य बहुत ही भयावह और हृदय विदारक लग रहा था। जो कि” किसी भी धैर्यशील इंसान के हौसले को परास्त कर सकता था। तभी तो’ अंदर की स्थिति देखकर एस. पी. साहब के साथ ही तरूण वैभव और सुशीत काले के चेहरे पर कई रंग एक साथ आकर चले गये। क्योंकि’ उन चारों युवकों के लाश को जिस तरह से पेट से लेकर सीने तक फाड़ डाला गया था, उससे उन चारों के शरीर का अंदरूनी अंग बाहर निकल आया था और भयावह लग रहा था।

लेकिन’ इस तरह घबराने से भी काम नहीं चलने बाला था। इसलिये तीनों ने अपने-आप को संभाला, फिर बारीकी से लाश का मुआयना करने लगे। साथ ही पुलिस की स्पेशल टीम भी हाँल के अंदर पहुंच चुकी थी। ऐसे में एस. पी. साहब उन लोगों को निर्देशित करने के बाद तरूण वैभव के साथ बंग्लोज के अंदर की तरफ बढ़ गये इस आशा में कि” कहीं से कोई सबूत हाथ लग जाये।

वैसे तो’ दोनों को ही इस बात की उम्मीद नहीं थी कि” यहां पर कोई खास ऐसा सबूत मिल पायेगा, जो उन्हें अपराधी के गर्दन तक पहुंचने में मदद कर सके, क्योंकि’ इस बार भी अपराधियों ने स्लीपर सेल की तरह ही इस अपराध को अंजाम देने के लिये किसी न किसी का सहारा लिया होगा। परंतु….आशा ही एक ऐसी चीज हैं, जिसके बल पर इंसान बड़ी से बड़ी मुसीबतों का सामना कर पाता हैं।

तभी तो’ दोनों ने पूरे बंग्लोज को दो-दो बार छान मारा, परंतु…उनके हाथ ऐसी कोई भी ऐसी वस्तु नहीं मिली, जिससे कि” वे कह पाते, हां अब अपराधी हमारे कब्जे में होगा। ऐसे में दोनों वापस हाँल में लौट आए और तभी हाँल में मंत्री जनार्दन गुरेज ने कदम रखा। ऐसे में उन लोगों की आँखें आपस में मिली और सहज ही एस. पी. साहब के होंठों पर मुस्कान उभड़ आया।

इधर’ मंत्री जनार्दन गुरेज ने हाँल में कदम रखा और हाँल की स्थिति को देखकर एक पल के लिये सकते में आ गये। लगा कि” एक पल के लिये उनके शरीर की ताकत किसी ने अचानक ही छीन ली हो। तभी तो’ उनसे रहा नहीं गया और किनारे रखे हुए सोफे पर बैठ गये। जबकि’ उनके बैठते ही एस. पी. साहब को न जाने क्या सुझा, आगे बढ़े और मंत्री साहब के करीब ही बैठ गये। साथ ही अपनी नजर उनके चेहरे पर टिका दी और शांत स्वर में बोले।

जनार्दन साहब!....आपका इस तरह से अचानक ही यहां पर आना, साबित करता हैं कि” हादसे के शिकार युवकों के साथ आपका कोई न कोई संबंध जरूर हैं?...कहा उन्होंने, फिर अपनी नजर उनके चेहरे पर टिका दी। जबकि’ उनकी बातों को सुनने के बाद मंत्री साहब ने अपने- आप को संभाला, फिर उनसे मुखातिब होकर बोला।

एस. पी. साहब!....आपका अनुमान बिल्कुल सही हैं। आप जो इस समय यहां मौजूद हैं, वह बंग्लोज मेरे नाम पर ही हैं। कहा उसने और एक पल के लिये रुका, फिर एस. पी. साहब के आँखों में देखकर उनके चेहरे के भावों को पढ़ने की कोशिश करने लगा। परंतु…जब उसे सफलता नहीं मिली, तब सोफे पर पहलू बदलने के बाद बोला।

सच कहूं तो एस. पी. साहब!...ये चारों युवक मेरे गुर्गे थे और मेरे लिये ही काम करते थे। ऐसे में स्वाभाविक रुप से जैसे ही मुझे इस वारदात की सूचना मिली, मैं दौर कर चला आया। मंत्री साहब ने कहा और फिर एस. पी. साहब के चेहरे को देखने लगा। जबकि’ मंत्री की बातों को सुनते ही एस. पी साहब झट गंभीर होकर बोल पड़े।

अजीब सा संयोग हैं मंत्री साहब!...सांभवी फार्म हाउस भी आपका ही था और यह बंग्लोज भी आपका ही हैं। उससे भी बड़ा संयोग हैं कि” दोनों जगह हादसे के शिकार होने बाले आपके ही गुर्गे है, उसमें भी सभी नौजवान।

तो आप कहना चाहते हैं कि” इन वारदात को अंजाम दिलवाने में मेरा हाथ हैं?..एस. पी. साहब की बातें सुनते ही जनार्दन गुरेज तनिक तल्ख अंदाज में बोला। जबकि’ उनके तल्ख आवाज सुनकर भी एस. पी. साहब पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। उन्होंने मंत्री साहब के आँखों में देखा और पूर्ववत ही बोले।

मंत्री साहब!....मैं ऐसा नहीं कह रहा कि” इस वारदात को अंजाम देने में आपका ही हाथ हैं। किन्तु’ इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि” इन दोनों वारदात का शिकार आपके ही गुर्गे हैं और जगह भी आपका ही हैं।

तो फिर आप मालूम कीजिये न कि” मामला आखिर क्या हैं?...वे कौन से लोग हैं, जो सिर्फ मेरे ही आदमियों का शिकार कर रहे हैं?

वो तो हम पता कर ही लेंगे, वैसे आप के पास यहां के सी. सी. टी. बी. का फूटेज होगा। तो आप उसे तरूण वैभव को दे देंगे। मंत्री साहब की बाते सुनते ही एस. पी. साहब ने बात की दिशा बदल दी और कहा। इसके बाद वे सोफे पर से उठे और तरूण वैभव की ओर बढ़े।

क्योंकि’ उनके मन में अंदेशा जन्म ले चुका था कि” जब मंत्री का आना हुआ हैं, तो जरूर ही मीडिया की टीम भी जरूर ही पहुंचने बाला होगा। ऐसे में तरूण वैभव के करीब पहुंच कर उसको निर्देशित करने लगे कि” जल्द से जल्द कार्रवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिये भिजवाये।

धीरे-धीरे आगे की ओर बढ़ता हुआ समय और अभी तो पोस्टमार्टम के लिये लाशों को शील ही किया गया था, तभी मीडिया बालों की फौज आ धमकी। ऐसे में एस. पी. साहब का अंदेशा सही साबित हुआ था, परंतु….तब तक तो काम निपट चुका था, इसलिये उनके होंठों पर मुस्कान उभड़ आया।

* * * *

संवाददाता न्यूज’ का आँफिस!...रात के ग्यारह बजे, आज कुछ अधिक ही हलचल था। क्योंकि’ अपने स्वभाव के विरूद्ध मृदुल सिंहा अपने स्टाफ पर गरज रहा था, उन पर गुस्सा उतार रहा था। रोशनी से जगमग कर रहे बिल्डिंग में अभी उसके जुबान से निकले हुए अपशब्द के अंगारे बरस रहे थे। हां, मृदुल सिंहा, जो किसी भी स्थिति में इस तरह से न तो गुस्सा होता था और न ही अपने स्टाफ पर इस तरह से गरजता था। किन्तु’ आज तो लगता था कि” जैसे उसे अपनी वाणी पर नियंत्रण ही नहीं हो।

उसके मुंह से निकल रहे बेतुके बोल और गंदी-गंदी गालियां, लगता था कि” आज सारे तट बंध को तोड़ कर आगे निकल जाने को उद्धत हो। आवेश के कारण उसका बदन कंपित हो रहा था और तेजी से बोलने के कारण उसका मुख कुछ सूखने सा लगा था, साथ ही सफेद गाज सा उसके होंठों के चारों ओर जमा हो गया था। परंतु...क्या मजाल कि” उसके स्टाफ में से किसी ने अपनी जुबान खोलने की हिम्मत दिखलाई हो। अजी, जुबान खोलने की बात तो बहुत दूर की थी, उनमें से कोई भी उनसे नजर मिलाने की हिम्मत भी नहीं जुटा पा रहा था।

ऐसे में स्वाभाविक रूप से कहा जा सकता था कि” आँफिस का तापमान बहुत अधिक बढ़ा हुआ था और ऐसा इस कारण से हुआ था कि” उसके रिपोर्टर सही समय से संचिता सोसाइटी में नहीं जा सके थे और अपराजिता बंग्लोज की घटना को कवर नहीं कर पाये थे। बस’ मृदुल सिंहा के क्रोध का बम फूट गया था।

भला’ वे किस तरह से बर्दाश्त कर सकते थे कि” उनके स्टाफ की गलती के कारण उनके हाथ हाँट-न्यूज आते-आते रह गया हो। उन्हें तो उम्मीद थी कि” आज शहर में हुए नरसंहार का न्यूज चलाकर खूब टी. आर. पी. बटोर लेंगे। लेकिन, उनके स्टाफ समय पर संचिता सोसाइटी में समय पर नहीं पहुंच सके, जिस कारण से अपराजिता बंग्लोज में हुए वारदात को कवर नहीं किया जा सका।

बस’ मृदुल सिंहा के क्रोध का प्याली उबल पड़ा। फिर तो’ काँरपोरेट आँफिस का यही नियम होता हैं। भले ही आपने लाख अच्छे काम किए हो, परंतु….एक काम में आप से चूक हुई नहीं कि” आपको वह भी सुनना पड़ेगा, जिसके लिये आपका जमीर कभी भी राजी नहीं हो सकता। किन्तु’ काँरपोरेट आँफिस तो लाभ के सिद्धांत पर ही चलता हैं, जहां पर ज्यादातर मानवीय मूल्यों से ज्यादा लाभ-हानि पर बल दिया जाता हैं।

तभी तो मृदुल सिंहा उन लोगों के ऊपर अपशब्दों की बौछार कर रहा था और आँफिस के स्टाफ और रिपोर्टर उसके बेतुकी बातों को सिर झुकाकर सुन रहे थे। धीरे-धीरे आगे की ओर बढ़ता हुआ समय और इसके साथ ही लग रहा था, जैसे मृदुल सिंहा के क्रोध का ग्राफ बढ़ता ही जा रहा हो और शायद यह स्थिति और भी विकट होती, तभी मृदुल सिंहा के मोबाइल ने वीप दी।

अचानक ही किसने फोन किया होगा?..इस प्रश्न को सोचते हुए उसने काँल को रिसिव किया और उधर से न जाने क्या कहा गया कि” अचानक ही उसके चेहरे पर चमक आ गई। होंठों पर मधुर मुस्कान की रेखा खिच गई और पल में ही चेहरे की भाव-भंगिमा भी बदल गई। बस’ एक पल में ही क्रोध का आवरण उसके चेहरे से छँट गया और उसकी जगह आत्म-विश्वास ने ले लिया।

तभी तो’ फोन काँल डिस्कनेक्ट करने के बाद उन्होंने अपनी टीम को साथ में लिया और आँफिस से निकल गये। इसके पांच मिनट बाद ही उसकी कार सड़क पर सरपट दौड़ती चली जा रही थी। कार ड्राइव करते हुए मृदुल सिंहा, उसके मन में अभी यही विचार चल रहा था कि” अगर फोन काँल की बातें सही हुई, उसके हाथ हाँट न्यूज लग जायेगा, जिससे शहर में तहलका मचाया जा सकता हैं।

फिर तो’ सड़क पर सरपट दौड़ती हुई कार हाईवे पर आ गई और वह भी समय आ गया, जब उसकी कार हाईवे के उस जगह पर पहुंच चुकी थी, जहां पर एक्सीडेंट हुआ था। हां, वह युवती जो उस युवक के साथ अपराजिता बंग्लोज में गई थी, इस समय खून से लथपथ होकर हाईवे के किनारे पड़ी हुई थी।

हां, मृदुल सिंहा की नजर सब से पहले लाश पर ही गई। बुरी तरह से कुचली हुई लाश, जैसे जानबूझकर उसे ठिकाने लगाया गया हो। साथ ही, उसने देखा कि” पुलिस की टीम भी वहां पहुंच गई हैं और वे अपने काम में लग चुके हैं। ऐसे में विलंब करना शायद फायदेमंद नहीं होता। इसलिये उसने सब से पहले कलाईं घड़ी में देखा, रात के बारह बजने बाले थे। फिर अपने रिपोर्टरों की ओर देखा और इतना ही काफी था, उसके स्टाफ काम में जुट गये।

इधर’ मीडिया टीम के पहुंचते ही तरूण वैभव की भँवें टेढ़ी हो गई। वैसे चिंता की कोई विशेष बात नहीं थी, फिर भी इस तरह से मीडिया बालों का इस तरह से पुलिस के हरेक काम में दखल देना उसे फूटी आँख नहीं सुहाता था। जानता था, मीडिया बाले किसी भी घटना को सुलझाने की बजाये इस कदर उलझा देंगे कि” फिर पुछो ही मत।

उनके नजर में न तो अपराध का महत्व हैं और न ही अपराधी का महत्व। उन्हें इस बात से कोई लेना-देना नहीं, वो जो कर रहे हैं, उसका समाज पर किस तरह का असर होगा। उन्हें तो अपने टी. आर. पी. से मतलब होता हैं और इसके लिये हाँट और ब्रेकिंग न्यूज के नाम पर जनता के सामने कुछ भी परोस देंगे।

बस’ इसके बाद की स्थिति से तरूण वैभव अंजान नहीं था। जानता था कि” इस के बाद किस तरह से कानून व्यवस्था पर अंगुली उठाये जाते हैं और किस तरह से वर्दी पर कीचड़ उछाला जाता हैं। तभी तो मीडिया बालों को देखते ही उसकी भँवें सिकुड़ गई थी। परंतु…वह मजबूर था, जानता था मीडिया से पंगा लेने के बाद किस तरह के परिणामों का सामना करना पड़ सकता हैं।

इसलिये वो सुशीत काले को समझाने लगा कि” जल्द से जल्द यहां की कार्रवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिये भेजने की व्यवस्था करें। वैसे भी, हाईवे पर अभी जाम जैसी स्थिति बनी हुई थी। चारों ओर अंधकार और हाईवे पर जलती हुई स्ट्रीट लाइटों के बीच अजीब सा माहौल बना हुआ था। हां, हाईवे के दोनों ओर, जहां तक नजर जाती थी, गाड़ियां ही गाड़ियां नजर आ रही थी।

रात के मध्य में बोझिल सा होता हुआ समय, तभी तरूण वैभव ने देखा कि” मृदुल सिंहा उसकी ओर ही बढ़ा चला आ रहा हैं और उसके मन में आशंकाओं का तूफान चलने लगा। साथ ही एक अंजाना सा भय कि” न जाने यह उलटी खोपड़ी का इंसान कौन सा प्रश्न पुछ दे।

सर!....आपको नहीं लगता कि” शहर में कुछ अजीब सा हो रहा हैं? जो तरूण वैभव ने सोचा था, ठीक उसके अनुरूप ही मृदुल सिंहा उसके करीब पहुंचते ही प्रश्न पुछा और फिर एक पल के लिये रुककर उसकी आँखों में देखा, उसके बाद आगे बोला।

सर!...शहर में बीते दिनों में दो सामूहिक नरसंहार और साथ ही दो एक्सीडेंट भी। कुछ-कुछ साम्यता नहीं लगता आपको इस घटनाक्रम में?

नहीं, फिलहाल तो नहीं!....मृदुल सिंहा की बात सुनते ही तरूण वैभव ने शांत स्वर में कहा। इसके बाद एक पल के लिये रुका, जैसे कुछ सोच रहा हो, इसके बाद आगे बोला।

वैसे’ अभी इस मामले में मुझे कोई जानकारी नहीं हैं। हां, हम लोग इस मामले की छानबीन कर रहे हैं और जैसे ही इस मामले में मुझे कोई जानकारी मिली, आप लोगों को जरूर ब्रीफ करूंगा।

कहा तरुण वैभव ने और फिर उससे पिंड छुड़ाने के लिये एक ओर को बढ़ गया। जबकि’ उसे इस तरह से दूर जाते देखकर मृदुल सिंहा के होंठों पर मुस्कान उभड़ आई। फिर तो’ वह भी ढ़ीढ़ था, इसलिये तरूण वैभव के पीछे-पीछे लपका। इस उद्देश्य के साथ कि” कहीं कोई जानकारी हाथ लग जाये।

* * * *

रात के बारह बजे जनार्दन गुरेज अपने बिला पर लौटा। फिर तो बिला के गेट से जैसे ही कार ने अंदर प्रवेश किया, मंत्री साहब के पांव ब्रेक पर कसते चले गये और जैसे ही कार रुकी, वह बाहर निकला। फिर धीमे कदमों से चलता हुआ बिल्डिंग की ओर बढ़ा। वैसे भी उनके चेहरे पर इस समय तनाव को स्पष्ट रूप से महसूस किया जा सकता था।

उनके कदमों की चाल इस तरह की थी कि” कोई भी सहज ही अंदाजा लगा सकता था कि” इस समय वे बुरी तरह थके हुए हैं, शारीरिक रूप से भी और मानसिक रूप से भी। तभी तो’ उनका यह आलीशान बिला, जिसकी सुंदरता आँखों को सुकून देने बाली थी, परंतु…उनके चेहरे पर इस भव्यता का कोई असर नहीं हो रहा था।

दूसरी बात कि” इस बिला में एक अजीब सा सन्नाटा पसरा हुआ था। वैसे भी, मंत्री साहब की जिस तरह की आदत थी, उसको पोषित करने के लिये इस बिला में वे नौकर नहीं के बराबर ही रखते थे। इस भय से कि” कहीं उनके रासलीला का कोई रील नहीं बना ले, इस बिला में इंसान के मूवमेंट को उन्होंने सीमित कर रखा हुआ था।

किन्तु’ आज न जाने क्यों उनको यह पसरा हुआ सन्नाटा चुभ सा रहा था। उन्हें लग रहा था कि” काश इस बिला में नौकरों की फौज होती और शायद यह विचार उनके मन में इसलिये भी करवटें लेने लगा था कि” अब उन्हें भय सा लगने लगा था। एक अंजाना सा भय कि” कही उनकी भी हत्या न कर दी जाये और उनके शरीर से उनके अंगों को निकाल न लिया जाये।

अब यह भय जो उनके अंतर्मन में जागृत हुआ था, वह ऐसे ही तो नहीं था। उसके आधार बन चुके थे और उस तथ्यों के आधार पर ही उनके मन-मस्तिष्क में एक अंजाना सा खौफ करवटें लेने लगा था। क्योंकि’ अब तक शहर में घटित वारदात में उनके ही गुर्गे को शिकार बनाया गया था। वह भी आश्चर्य-जनक तरीके से और उनके सभी तरह से सुरक्षित कहे जाने बाले अभेद्य किलों पर।

भला’ ऐसे में उनके हृदय में भय कुंडली नहीं मारता, तो और क्या होता?...चलते हुए जनार्दन गुरेज, जिनकी आँखें शून्य में टिकी हुई थी और दिमाग पर भय का छाया पर चुका था। ऐसे में चलते हुए उन्होंने अपने भव्य हाँल में कदम रखा और उनकी आँखें आश्चर्य से फैल गई। क्योंकि’ हाँल में पहले ही एक पहलवान टाइप शख्स बैठा हुआ था।

जिसकी बिल्लौरी आँखें शून्य में टिकी हुई थी। सिर पर नाम मात्र के बाल, सफाचट चेहरा और काली एवं मोटी भँवें। तवे जैसा स्याह रंग का मालिक वह शख्स कद्दावर डीलडौल का था। जिसके फड़कते हुए मसल्स और गोल-मटोल चेहरा और कानों में लटकी हुई सोने की बालियां। वह शख्स कहीं से भी आकर्षक व्यक्तित्व का स्वामी नहीं था।

फिर भी, उसको देखते ही मंत्री साहब के चेहरे पर आश्चर्य के भाव और आँखों में चमक उभड़ आई। स्वाभाविक रूप से ही एक तरह से उन्हें हर्ष की भी अनुभूति हुई, क्योंकि’ उन्होंने तो कल्पना भी नहीं की थी, इस तरह से जिसके बारे में सोच रहे होंगे, अचानक ही उनके ही बिला पर उन्हें मिल जायेगा। हां, परंतु….यही सत्य था, क्योंकि’ उनकी आँखें उस शख्स को अभी हाँल में सोफे पर बैठे हुए देख रही थी।

यकीनन यह उनका भ्रम नहीं था, तभी तो’ उनके होंठों पर अचानक ही मुस्कान की रेखा खिंच गई और बेजान हो चुके कदमों में अचानक ही ताकत लौट आई। तभी तो’ तेज कदमों से चलते हुए वे उस जगह पहुंचे, जहां पर वह शख्स बैठा हुआ था। तभी तो’ पदचाप की आवाज सुनकर उस शख्स की तंद्रा टूट गई और उसने पलट कर मंत्री साहब के चेहरे की ओर देखा। जबकि’ उसे अपनी ओर देखते पाकर मंत्री साहब के होंठों पर मुस्कान की रेखा खिंच आई और वे धीरे से बोले।

वीर भद्र!...बहुत दिनों बाद याद आई!

हां!....ऐसा ही समझ लीजिये जनार्दन साहब। जैसे ही सुना कि” आप मुसीबत में फंसे हुए हैं, अपने-आप को रोक नहीं पाया और आपसे मिलने के लिये दौड़ा हुआ चला आया। मंत्री साहब की बातें सुनते ही उस शख्स से नहीं रहा गया और उसने शालीनता से उनके प्रश्नों का उत्तर दिया और उनके चेहरे को देखने लगा। जबकि’ उसकी बातें सुनकर लगा कि” मंत्री साहब का खोया हुआ आत्म विश्वास लौट आया हो, तभी तो उन्होंने बोला।

अच्छा!...जब तुम आ ही गये हो, तो रुको, मैं अभी किचन से जाकर पीने का समान लेकर आता हूं, फिर हम लोग बैठकर साथ में पीयेंगे भी और आपस में बातें भी करेंगे। कहा मंत्री साहब ने और फिर तेजी से किचन की ओर बढ़ गये। वैसे भी, इस समय उनके चेहरे पर से तनाव गायब हो चुका था और उसकी जगह खुशी ने ले लिया था। क्योंकि’ वीरभद्र नाम का यह शख्स उनके लिये बहुत काम का था।

उनके हरेक गलत-सही कामों में परामर्श दाता और उनके गलत कामों का एक तरह से प्रोटेक्टर। उनके द्वारा कमाये गये ज्यादातर गलत धन का हिसाब यही तो रखता था। ऐसे में इस मुसीबत के समय उसका आना मंत्री साहब को बहुत ही अच्छा लगा था। उन्हें लगा था कि” उनके दग्ध हृदय को सुकून पहुंचा हो जैसे। तभी तो किचन में पहुंचकर उन्होंने ट्रे में स्काँच की बोतल, आईश बाऊल और खाने का समान सजाया और वापस हाँल में लोट आए।

फिर तो’ मंत्री साहब वीरभद्र के करीब ही बैठ गये और जाम बनाने में जुट गये। किन्तु’ उनकी तिरछी निगाह वीरभद्र के चेहरे पर ही टिकी रही। शायद उसके चेहरे के भावों को पढ़ना चाहते थे। परंतु…वीरभद्र का सपाट चेहरा, जहां पर कोई भाव नजर ही नहीं आ सकता था, ऐसे में उसके चेहरे को कोई भी नहीं पढ़ सकता था। किन्तु’ ऐसा भी नहीं था कि” वीरभद्र भावना विहीन था, हां उसके हृदय में भी हलचल था, तभी तो मंत्री साहब को अपनी ओर चोर निगाहों से देखते पाकर वो धीरे से बोला।

जनार्दन साहब!...देख रहा हूं कि” आप कब से चोर निगाहों से मेरे चेहरे को देख कर कुछ जानने की कोशिश कर रहे हैं।

हां, ऐसा ही समझ लो वीरभद्र!...मैं यह जानने की कोशिश कर रहा हूं कि” मेरे साथ जो हादसा घटित हो रहा हैं, उसका तुम पर क्या प्रभाव हुआ हैं?

वीरभद्र की बातें सुनते ही मंत्री साहब अचानक ही गंभीर होकर बोले। फिर तैयार हो चुके जाम को उठाया और एक उसकी ओर बढ़ाया और एक खुद थाम लिया। फिर दोनों ने चियर्स!...बोलकर जाम को टकराया। इसके साथ ही दोनों ने जाम हलक में उतार लिया। इस दरमियान मंत्री साहब की नजर वीरभद्र के चेहरे पर ही टिकी रही। जबकि’ मंत्री साहब के प्रश्न सुनकर वीरभद्र शालीन शब्दों में बोला।

जनार्दन साहब!...आप का इस तरह से प्रश्न करना, मतलब नहीं समझ पा रहा हूं। जबकि’ आप तो अच्छी तरह से समझते हैं कि” मेरा हित आपसे पूरी तरह से जुड़ा हुआ हैं। कहा वीरभद्र ने और एक पल के लिये रुककर मंत्री साहब के चेहरे को देखने लगा। जबकि’ मंत्री साहब खाली प्यालों में फिर से शराब भरने लगे, तब वो आगे बोला।

ऐसे में स्वाभाविक रूप से ही अगर आप पर कोई मुसीबत आता हैं, तो हम लोग भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकेंगे।

तो फिर पता करने की कोशिश करो कि” वे कौन लोग हैं, जो मुझे मिट्टी में मिलाने की उम्मीद पाले हुए बैठे हैं। उसकी बातें सुनते ही मंत्री साहब तनिक आवेश में आकर बोले।

इसके बाद’ उन लोगों के बीच कुछ पल के लिये चुप्पी छा गई। परंतु….इस बीच उनके बीच पीने-पिलाने का दौर चलता ही रहा। धीरे-धीरे बीतता हुआ पल और फिर दोनों इस बात के मंथन में जुट गये कि” ताजा उत्पन्न हुए परिस्थिति से किस तरह से निपटा जाये। क्योंकि’ दुश्मन अंजान था, ऐसे में बिना योजना बनाये सफलता नहीं मिल सकती थी, इस हकीकत से दोनों अच्छी तरह से वाकिफ थे।

* * * *

रात के एक बजे!

शहर का हलचल पूरी तरह से थम चुका था। हां, इतना जरूर था कि” सड़क पर गाड़ियां गुजर रही थी। बस गाड़ियों के शोर के अलावा चारों ओर शांति का ही साम्राज्य था। सड़क के दोनों ओर बनी हुई बहुमंजिला इमारत, जिसके आगे दुकान का शक्ल दिया जा चुका था और उसमें से कुछ खाने-पीने की दुकान खुली हुई थी। परंतु….रात का समय होने के कारण दुकान पर ग्राहकों की मौजूदगी नहीं के बराबर थी।

वैसे भी, बड़े शहरों की एक खासियत रहती हैं कि” वह हमेशा सजीव रहता हैं। किन्तु’ फिर भी शहर की एक बहुत बड़ी आबादी निंद के आगोश में समाई हुई थी। ऐसे में स्वाभाविक रूप से चारों ओर सन्नाटा फैला हुआ था। हां, ये अलग बात थी कि” शहर के आवारा कुत्ते बीच-बीच में भौक-भौक कर इस सन्नाटे को तोड़ देते थे। परंतु…कब तक? जब तक वे भौकते थे, तभी तक, इसके बाद फिर से सन्नाटा पसर जाता था।

इन्हीं सन्नाटों के बीच सड़क पर एक पदचाप भी उभड़ रहा था, भारी बूट की आवाज। हां, वो शहर के प्रतिष्ठित वकील सिद्धांत चतुर्वेदी थे, जो सड़क पर आगे की ओर चलते जा रहे थे। चालीस वर्ष के सिद्धांत चतुर्वेदी, जिनकी नीली आँखें सड़क पर लगे हुए स्ट्रीट लाइट की रोशनी में चमक रहा था। काले घने बाल और सुती हुई नाक एवं कद्दावर शरीर, उसपर गौर वर्ण।

आँखों पर लगा हुआ काले रंग का चश्मा और कड़क मूँछें। आकर्षक व्यक्तित्व था वकील साहब का, साथ ही उनकी मर्दाना चाल, उनके कदम चाप से आवाज सा निकल रहा था। लेकिन उनको लगता था, जैसे इससे कोई मतलब नहीं हो। हां, उन्हें अपने लक्ष्य तक पहुंचना था, जहां के लिये रात के इस समय वो निकल पड़े थे, वो भी पैदल ही। परंतु…उनके चेहरे पर इन सब चीजों के लिये कोई भाव नहीं था। उनका चेहरा तो पूरे आत्मविश्वास से भरा हुआ था, जैसे कि” जिस काम के लिये जा रहे हैं, वो हो ही जायेगा।

वैसे भी शहर में लगातार दो दिनों से हो रहे वारदात ने उनके मस्तिष्क को हिला कर रख दिया था। भला’ इस तरह से शहर में अगर वारदात घटित होता रहा तो’ तो फिर शहर में लाशों का अंबार लग जायेगा। अब भला, वो भी इस बात को समझते थे कि” शहर का आँचल विशाल हैं, ऐसे में वारदात तो घटित होते ही रहेंगे और कानून का काम हैं उसको संभलाना।

परंतु….शहर में बीते दो दिनों से जिस तरह से नरसंहार हो रहा था, उसने उनके मन-मस्तिष्क को कुंद करके रख दिया था। तभी तो कानून के क्षेत्र में नामचीन हस्ती, ऐसे सिद्धांत चतुर्वेदी पैदल ही निकल पड़े थे, दिमाग में किसी ठोस निर्णय को कर के। क्योंकि’ उन्हें पुलिस का रवैया कुछ ठीक नहीं लग रहा था। उन्हें लग रहा था कि” पुलिस इस मामले में कुछ तो छिपा रही हैं।

कानून के निष्णात, ऐसे सिद्धांत चतुर्वेदी के दिमाग में इस मामले को लेकर शक का कीड़ा जन्म ले चुका था। क्योंकि’ वह भी इस बात को समझते थे, इस तरह के बड़े अपराध ऐसे ही बिना कारण के अंजाम नहीं दिए जाते। मतलब कि” स्पष्ट रूप से इस मामले में कोई न कोई झोल था। फिर तो पुलिस का रवैया भी संदेहास्पद था। आज लगा कर दो दिन से लगातार इस नरसंहार को अंजाम दिया जा रहा था, परंतु…न तो पुलिस अपराधी को ही पकड़ पाई थी और न ही उनकी ओर से स्पष्ट आधिकारिक बयान ही आया था।

परंतु….वे भला इस मामले में कैसे चुप रह सकते हैं?....क्योंकि’ वकील तो वे बाद में है, पहले तो शहर के संभ्रांत नागरिक हैं। ऐसे में उनका फर्ज हो जाता हैं कि” इस तरह के मामले में हस्तक्षेप करें। सोचते हुए उन्होंने माथे के हैट को सीधा किया। तभी उनकी निगाह सड़क किनारे चाय की दुकान पर गई, जहां पर अभी पतीली में चाय उबल रही थी।

अब भला’ पतीली में चाय उबल रही हो और उनसे रहा जाये, ऐसा हो ही नहीं सकता था। दूसरे, मध्यरात्रि के इस समय अचानक ही उनके अंदर चाय की तलब जग गई थी, तभी तो उनके कदम चाय दुकान की ओर बढ़ गये। हां, उन्होंने इरादा बना लिया था, पहले गरमा-गरम चाय पीते हैं, उसके बाद ही आगे का सफर तय करेंगे।

फिर तो पलक झपकते ही वो दुकान पर पहुंच गये और वहां रखी हुई टूल पर बैठ गये। इसके साथ ही दुकानदार, जो कि” बीस वर्ष का लड़का था, शालीनता के साथ उनकी ओर चाय की प्याली लेकर बढ़ा और उनसे नहीं रहा गया। उन्होंने उस युवक को देखा, औसत कद-काठी और साधारण रंग-रूप, लेकिन आँखों में सपने जरूर थे। ऐसे में उन्होंने चाय के कप को थाम लिया और बोले।

यंग मैन!...तुम इस तरह से जो रात को चाय बेचते हो, पढ़ाई नहीं करते हो क्या?

करता हूं न साहब!...वैसे पढ़ाई में बहुत खर्च होता हैं और हमारा परिवार बड़ा हैं। ऐसे में दिन में पापा दुकान चलाते हैं और रात को मैं चलाता हूं। उनकी बातें सुनकर युवक ने तुरंत ही उत्तर दिया और तब उन्होंने देखा, दुकान साधारण ही थी। ऐसे में उसकी मजबूरी को समझ कर उन्होंने बात की दिशा ही बदल दी।

वैसे’ शहर में जो वारदात घटित हो रहा हैं, उसके बारे में क्या सोचते हो।

सोचना क्या है साहब?...न्यूज में जरूर देखा हैं, परंतु…मुझे तो लगता हैं, यह हाई-सोसाइटी का मामला हैं और हम जैसे गरीब का इससे कोई लेना-देना नहीं। उनकी बातें सुनते ही वह युवक बोला, फिर एक पल के लिये रुककर उनके चेहरे को देखा, इसके बाद आगे बोला।

वैसे साहब!...हम लोग न तो कालगर्ल को अफोर्ड कर सकते हैं और न ही इस तरह के हादसे के शिकार होंगे। कहा युवक ने और फिर दुकान के अंदर की तरफ बढ़ गया, जबकि’ वे भौचक्के होकर उस युवक को जाते हुए देखते रहे। क्योंकि’ युवक ने जो कहा था, शत-प्रतिशत सत्य ही तो था। ऐसे में उन्होंने अपने ध्यान को उधर से हटाया और चाय पीने लगे।

वैसे भी उन्हें वैभव बंगला” पहुंचना था, जहां पर वह जज वाय. एस. सिंहा से मिलना था। वैसे भी, शहर की जिस तरह की स्थिति बन चुकी थी, ऐसे में वे सुबह का इंतजार नहीं कर सकते थे, इसलिये रात के इस समय ही निकल पड़े थे मिलने के लिये।

खैर’ उनका बंगला अब नजदीक ही हैं, यही सोचकर उन्होंने जल्दी-जल्दी प्याले से चाय को गटका, फिर उठ खड़े हुए। इसके बाद चाय की कीमत चुकाकर फिर से गंतव्य की ओर चल पड़े। मन में विचारों की गुत्थियां सुलझाते हुए। क्योंकि’ बीते दो दिनों में जिस तरह से वारदात घटित हो रहा था, वह भयभीत करने बाला था।

इस तरह से तो’ अगर लगातार नरसंहार होता रहा, तो शहरी जीवन पूरी तरह से अस्त-व्यस्त हो जायेगा और प्रशासनिक व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा जायेगी। नहीं-नहीं, वे कानून का सिपाही होने के नाते ऐसा नहीं होने दे सकते। उनका भी आम शहरी होने के नाते कुछ दायित्व हैं और वे अपने दायित्व का निर्वहन करेंगे।

सोचते हुए उन्होंने सिर को उठाया और सिर झटक कर विचारों को अपने से दूर फेंका। तभी उनकी नजर वैभव बंगला” पर गई। उनका लक्ष्य आ चुका था, इसलिये सड़क से उतर कर बंगले के गेट पर पहुंच गये। गेट पर मौजूद सिपाही ने उन्हें देखा और गेट खोल दिया। फिर तो’ राहदारी पार कर के वे बिल्डिंग के पास पहुंच गये और उन्होंने बेल” बजा दी।

सुमधुर संगीत की लहर पूरे बिल्डिंग में गुंज उठी। जबकि’ वकील साहब गेट खुलने का इंतजार करने लगे। ऐसे में बीतता हुआ एक-एक पल उन्हें बोझिल सा लगने लगा था। तभी गेट खुला और जज साहब का चेहरा चमका। उनिंदी आँखें और चेहरे पर आलस के भाव। लेकिन’ जैसे ही उनकी नजर सिद्धांत चतुर्वेदी पर गई, उनके चेहरे पर तुरंत ही मुस्कान चमक उठी। फिर तो’ उन्होंने वकील साहब को अंदर ले लिया और अंदर से दरवाजा बंद कर लिया।

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क्रमश...

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