सुबह के पांच बज चुके थे और इसके साथ ही चारों ओर अंधेरे का साम्राज्य छँट चुका था। जिसकी जगह अब प्रकाश ने ले लिया था। साथ ही समूह में चिड़ियों द्वारा समूह गान, बहुत ही सुमधुर लग रहा था। वैसे भी’ शहर में इस तरह प्रकृति का मनोरम दृश्य दिख पाना सौभाग्य ही होता हैं।
ऐसे नव प्रभात के आगमन होने पर भी यमुना बिहार पुलिस स्टेशन में कोई विशेष हलचल नहीं था। हां, इक्का-दुक्का स्टाफ इधर-से उधर कर रहे थे। उधर आँफिस में तरूण वैभव और सुशीत काले कुर्सी पर ही पसर कर गहरी निंद में सोए हुए थे। हां, दोनों दिन-दुनिया से बेखबर होकर गहरे निंद के आगोश में समाये हुए थे और ऐसा इसलिये हुआ था कि” बीते दो दिनों से उन्हें एक पल के लिये भी आराम नहीं मिला था।
परंतु….जीव सृष्टि का एक नियम बना हुआ हैं। आप भले ही कितनी भी मेहनत करें, किन्तु’ रात को जरूर ही आराम करें। रात को इसलिये ही ईश्वर ने डिजाइन किया हैं कि” काम की चिंता छोड़ कर हम शरीर को आराम दे सके। तभी तो’ अगले दिन की भागदौड़ के लिये हम उर्जा प्राप्त कर पाते हैं।
परंतु…आज की जिंदगी उपभोक्ता वाद को प्रोत्साहित करती हैं। जिसमें विशेष कर शहरी जीवन इस रात-दिन के भेद को भुला चुका हैं और निरंतर ही कार्यशील रहने का प्रयत्न करता हैं। परंतु….शरीर की भी एक हद तक क्षमता हैं। इसके बाद, यह अपने-आप ही आराम करने के मोड में चला जाता हैं।
बस यही हुआ था तरूण वैभव और सुशीत काले के साथ। दोनों सुबह तीन बजे तक जी-जान से काम में जुटे रहे थे। इसके बाद अचानक ही निंद के गोद में समा गये थे और अब तक सो रहे थे और शायद बहुत समय तक दोनों सोए ही रहते। तभी अचानक एस. पी. साहब ने आँफिस में प्रवेश किया। उन्होंने देखा कि” दोनों गहरी निंद में खोए हुए हैं और यह देखकर उनके होंठों पर मुस्कान फैल गई। एक पल के लिये उनका मन हुआ, दोनों को इसी तरह से छोड़ दे और गेस्ट रूम में जाकर बैठे। लेकिन’ दूसरे पल ही वे गंभीर हो गये और ऊँचे स्वर में बोले।
मिस्टर तरूण!
आवाज इतना ऊँचा था कि” एक साथ ही तरूण वैभव और सुशीत काले की आँख खुली और जैसे ही उनकी नजर एस. पी. साहब पर गई, दोनों उछल कर खड़े हो गये। परंतु…ऐसा करते हुए दोनों का बैलेंस एक पल के बिगड़ सा गया। लगा कि” दोनों कुर्सी के साथ ही उलट जायेंगे, किन्तु’ फिर दोनों ने अपने-आप को संभाला और सीधे खड़े हुए, साथ ही उन दोनों ने सैल्यूट दिया।
जय हिंद सर!
जय हिंद!...उन दोनों के सैल्यूट का जबाव देकर एस. पी. साहब मुस्कराये, फिर कुर्सी पर बैठ गये। साथ ही उन्होंने दोनों को बैठने के लिये इशारा किया। इस बीच उनकी नजर दोनों के चेहरे पर ही टिकी रही और जब दोनों बैठ गये, तब वे तरूण वैभव से मुखातिब होकर बोले।
तरूण!....तुम दोनों भी न, कितने गैर-जिम्मेदार हो, मुझे आज पता चला। कहा उन्होंने और एक पल के लिये रुके और दोनों के चेहरे को देखा, जो उनकी बातें सुनते ही झुक गई थी, फिर गंभीर हो कर बोले।
जानता हूं तरूण!....तुम दोनों लगातार दो तक भागदौड़ किए हो, ऐसे में स्वाभाविक रूप से थकावट होने के कारण निंद आना ही था। परंतु….आँखें बंद होने से पहले कम से कम आँफिस को अंदर से बंद तो कर लेना चाहिये था। कहीं मेरी जगह मीडिया बालों ने यहां एंट्री मारी होती तो?...वे लोग तो नहीं समझेंगे कि” तुम लोग काम के दबाव के कारण थके हुए हो। फिर तो’ एक नया ही बवाल उत्पन्न हो जायेगा।
साँरी सर!....एस. पी. साहब की बातें सुनकर तरूण वैभव शर्मिंदगी भरे स्वर में बोला।
कोई बात नहीं!...आगे से इसका ध्यान रखना और हां, मैं तुम्हारे पास अभी जरूरी काम से आया हूं। उसकी बातों को सुनते ही एस. पी. साहब गंभीर होकर बोले और अभी तो उनकी बात खतम भी नहीं हुई थी कि” तरूण वैभव जिज्ञासा भरे शब्दों में बोला।
सर!...मैं आपके कहने का मतलब नहीं समझ सका। वैसे’ ऐसी कौन सी जरूरत आ गई थी कि” आप दौड़े हुए चले आए। वैसे’ आपने फोन कर दिया होता, तो मैं दौड़कर चला आता।
हूं!...फोन कर दिया होता, अरे फोन तो किया था तुम दोनों के मोबाइल पर। परंतु…तुम दोनों में से किसी ने भी काँल रिसिव नहीं किया। उसकी बातें सुनकर एस. पी. साहब तनिक तीखे शब्दों में बोले। फिर एक पल के लिये रुककर दोनों के चेहरे को देखा, फिर आगे बोले।
बस’ समझ गया कि” तुम दोनों सो रहे होगे। अब काम महत्वपूर्ण था, इसलिये समय बीतने का इंतजार नहीं कर सकता था। यही कारण हैं कि” इतनी सुबह तुम दोनों के सामने बैठा हुआ हूं। कह कर उन्होंने अपनी बात पूरी की। जबकि’ उनकी बातों को सुनकर दोनों ने मोबाइल उठाकर देखा और मिस्ड काँल देखकर एक साथ बोल पड़े।
साँरी सर!
अरे’ साँरी-वाँरी की बातें अब छोड़ो और तुम दोनों मेरी बात ध्यान से सुनो। वैसे भी, बीते दो दिनों में जिस तरह से शहर में वारदात घटित होने का सिलसिला शुरु हो चुका हैं, उसने कई मुश्किलें पैदा कर दी हैं। अचानक ही एस. पी. साहब गंभीर होकर बोले। फिर एक पल के लिये रुके और तरूण वैभव की आँखों में देखने लगे। जहां उनकी बातों ने जिज्ञासा उत्पन्न कर दिया था। इसके बाद उन्होंने लंबी सांस ली, फिर आगे बोले।
वैसे’ अपने लिये अच्छी बात यह हैं कि” जज साहब अपने बचपन के दोस्त हैं। बस’ उन्होंने सुबह के चार बजे फोन किया और चेतावनी भरे स्वर में बोले कि” तैयारी कर लो अपनी। आज कोर्ट पुलिस इस केस में संज्ञान की नोटिस भेजेगा।
मतलब नहीं समझा सर!...आप कहना क्या चाहते हैं?...कोर्ट, जज साहब, यह सब क्या हैं?...एस. पी. साहब की बातों को सुनकर तरूण वैभव विचलित होता हुआ बोला। जबकि’ उसका इतना बोलना और एस. पी. साहब के क्रोध का पाड़ा चढ़ गया, तभी तो चिढ़कर बोले।
तरूण!...तुम भी न, क्या मूर्खों जैसी बात कर रहे हो। अरे’…कोई भी मामले में जब पुलिस कोर्ट में फाइल दायर नहीं करती हैं, अथवा मुजरिम को पेश नहीं करती हैं। अथवा’ कोर्ट को लगता हैं कि” कहीं कानून के विरूद्ध काम हो रहा हैं। ऐसे में कोर्ट खुद उस मामले को संज्ञान ले कर नोटिस भेजता हैं। अथवा तो’ वादी पक्ष बनकर केस दायर करवाता हैं।
यश सर!...एस. पी. साहब की बातों को सुनने के बाद तरूण वैभव इतना ही बोल सका।
हां, तो तुम दोनों दिन के दस बजे तक इस मामले में पूरी रिपोर्ट तैयार कर लो। हो सकता हैं नोटिस मिलने के बाद कोर्ट को जबाव देना पड़े। तरूण वैभव की बातों पर ध्यान न देकर एस. पी. साहब आगे बोले।
यश सर!...उनकी बातों को सुनकर तरूण वैभव और सुशीत काले, दोनों एक साथ बोल पड़े। जबकि’ उनकी तत्परता को देख एस. पी. साहब मुस्करा पड़े। फिर उन्होंने दोनों की आँखों में देखा, इसके बाद आगे बोले।
और हां, कोर्ट से लौटने के बाद दो बजे इस मामले में प्रेस विज्ञप्ति जारी करूंगा। इसकी भी तैयारी कर लेना और इसके बाद पुलिस स्टेशन में ही शाम के चार बजे अधिकारियों की मीटिंग बुलाई हैं। इसकी भी तैयारी तुम दोनों ही करोगे। अपने अंतिम शब्दों पर भार देकर बोले एस. पी. साहब, इसके बाद मौन हो गये।
बस’ तरूण वैभव समझ गया कि” बाँस अब बोलने के मूड में नहीं हैं। वैसे भी उन्होंने आज के पूरे दिन की कार्य रूप रेखा बता दी थी। बस’ उसने सुशीत के चेहरे की ओर देखा और सुशीत समझ गया, बाँस लोगों के लिये काँफी लेकर आना हैं। इसलिये वो उठा और आँफिस से बाहर की ओर निकल गया। जबकि’ एस. पी. साहब और तरूण वैभव, दोनों ही आने बाले समय को लेकर विचार में डुब गये।
दिन के ग्यारह बजे।
कोर्ट परिसर के आस-पास हलचल था। क्योंकि’ शहर में बीते दो दिनों में शहर में जो हलचल मचा था, इसको लेकर कोर्ट ने पुलिस विभाग को नोटिस भेज दिया था। जिसकी जानकारी मीडिया बालों को हो गई थी। अब मीडिया बाले इस जुगत में लग गये थे कि” किसी भी तरह से कोर्ट रूम के अंदर प्रवेश मिल जाये। फिर तो उन्हें मालूम था कि” मिर्च-मसाला जरूर ही मिलेगा।
वैसे भी इस मामले में पुलिस विभाग की चुप्पी मीडिया बालों को खलने लगी थी। उन्हें तो शुरु में यही लगा था, इस मामले में पुलिस मीडिया बालों के दबाव में आ जायेगी। लेकिन हुआ ठीक इसके उलटा। ऐसे में मीडिया बाले इस केस में कोई भी लूज प्वाईंट चाहते थे, जिससे कि” पुलिस विभाग पर दबाव बनाया जा सके और अचानक ही परिस्थिति बन गई थी। अब उनको इस बात की आशा थी कि” कोर्ट रूम में अगर प्रवेश मिल जाये, तो कुछ जानकारी हाथ लगे।
तभी तो’ ग्यारह की सूचना घड़ी ने दी और पूरा कोर्ट परिसर मीडिया बालों से भर गया। स्वाभाविक रूप से सभी मीडिया हाउस के मीडिया कर्मी इस जुगत में लगे हुए थे, किसी भी तरह से कोर्ट रूम के अंदर प्रवेश करने का जुगाड़ लग जाये। बस’ इस कारण से ही कोर्ट परिसर के आस-पास का इलाका शोर से भर गया था। साथ ही इस तरह की स्थिति बनते ही कुछ आसामाजिक तत्व भी सक्रिय हो गये थे, इस इरादे के साथ कि” मौका मिलते ही स्थिति बिगाड़ देंगे।
धीरे-धीरे आगे की ओर बढ़ता हुआ समय और जैसे ही यहां के स्थिति के बारे में पुलिस के आला अधिकारियों को जानकारी मिली, उन्होंने त्वरित फैसला लेते हुए पूरे कोर्ट परिसर को पुलिस छावनी में बदल दिया। जिसके कारण करीब दस मिनट तक पुलिस बाले और मीडिया बालों के बीच झड़प होती रही, परंतु….पुलिस ने मीडिया बालों की एक नहीं चलने दी।
किन्तु’ फिर भी मीडिया बाले प्रयास में लगे रहे, जिसके कारण पुलिस के साथ उनका संघर्ष होता ही रहा। धीरे-धीरे बीतता हुआ समय और ठीक बारह बजे पुलिस की कार आकर कोर्ट परिसर में लगी। जिसके बाद मीडिया बालों ने अपने प्रयास को बढ़ा दिया। परंतु….इन बातों पर ध्यान न देकर एस. पी. साहब, तरूण वैभव और सुशीत काले कार से बाहर निकले और उन्होंने कोर्ट रूम की ओर कदम बढ़ा दिया।
उधर’ अंदर कोर्ट रूम में जज साहब अपनी शीट पर आ चुके थे। ऐसे में वकील सुमेर सिंह को पुलिस के अधिकारियों के आने का इंतजार था। क्योंकि’ एस. पी. साहब ने कोर्ट के नोटिस का जबाव देने के लिये वकील सुमेर सिंह को ही हायर किया था। ऐसे में वकील साहब की नजर कोर्ट रूम के गेट पर ही टिकी हुई थी। धीरे-धीरे आगे की ओर बढ़ता हुआ समय और जैसे ही वकील साहब की नजर कोर्ट रूम में दाखिल हो रहे एस. पी. साहब और तरूण पर गई, उन्होंने राहत की सांस ली।
इधर’ एस. पी. साहब और तरुण वैभव पलक झपकते ही वकील साहब के करीब पहुंच गये। फिर तो उन्होंने वकील साहब के हाथ में ब्लैक रंग की फाइल थमाई और फाइल देखते ही वकील साहब के आँखों में चमक उभड़ आया। फिर तो’ उन्होंने एक पल के लिये फाइल के पन्नों को पलट कर देखा और मुसकाये, इसके बाद अपनी जगह से उठकर आगे आए और जज साहब को संबोधित कर के गंभीर स्वर में बोले।
मिलार्ड!....बीते दो दिनों में सांभवी फार्म हाउस और अपराजिता बंग्लोज, इन दो जगहों पर भीषण वारदात को अंजाम दिया गया, जिसे रेरर अपराध की श्रेणी में रखा जाता हैं। बोलने के बाद एक पल के लिये रुके वकील साहब और उन्होंने जज साहब की ओर देखा। जबकि’ जज साहब तो उनकी ही ओर देख रहे थे, ऐसे में दोनों की नजर टकरा गई, तब वकील साहब ने आगे बोला।
मिलार्ड!....स्पष्ट रुप से इस तरह के वारदात को सामूहिक नर संहार का नाम दिया जा सकता हैं, जिसमें कुल आठ युवा लड़कों ने जान गंवाई। किन्तु’ अभी तक इस मामले में पुलिस को न तो ऐसा ठोस सबूत ही मिला और न ही पुलिस इन मामले के अपराधियों को ही ढ़ूंढ़ सकी हैं। यही कारण हैं कि” इस मामले को अभी तक कोर्ट में पेश नहीं किया गया हैं।
तो फिर पुलिस अपराधियों को पकड़ने के लिये प्रयास क्यों नहीं कर रही हैं?...क्या पुलिस यह चाहती हैं कि” शहर में लाशों का अंबार लग जाये। वकील साहब की बातें सुनते ही जज साहब ने चुभते हुए प्रश्नों को बोला।
जी नहीं मिलार्ड!...पुलिस ऐसा हरगिज भी नहीं चाहेगी कि” शहर की कानून व्यवस्था चरमरा जाये। इसलिये इस मामले में पुलिस ने शहर में कई संदिग्ध जगहों पर छापा मारा हैं, किन्तु’ पुलिस को अभी तक सफलता नहीं मिली हैं। जज साहब के प्रश्न सुनकर वकील साहब ने तुरंत ही प्रतिक्रिया दी, फिर एक पल के लिये रुके और जज साहब को देखा और आगे बोले।
मिलार्ड!...इस मामले में पुलिस की यही कोशिश हैं कि” जल्द से जल्द अपराधियों को दबोच लिया जाये। इस कारण से शहर में पुलिस चेक प्वाईंट की संख्या बढ़ा दी गई हैं।
खैर’ यह तो हुई इस मामले में पुलिस की सक्रियता, परंतु….इस मामले में अभी तक मीडिया बालों को ब्रीफ क्यों नहीं किया गया?....अभी तो वकील साहब ने अपनी बात खतम ही की थी कि” जज साहब ने दूसरा प्रश्न दाग दिया। जिसे सुनने के बाद वकील साहब के होंठों पर एक पल के लिये मुस्कान आ गई, फिर वे गंभीर होकर बोले।
मिलार्ड!....कभी-कभी ऐसे भी मामले होते हैं, जिसे आउट करना शायद न तो सिस्टम के लिये सही होता हैं और न ही समाज के लिये। वकील साहब ने कहा और एक पल के लिये रुके, फिर उन्होंने कोर्ट रूम में नजर घुमाया, फिर जज साहब को संबोधित कर के आगे बोले।
मिलार्ड!...फिर भी इस मामले में पुलिस विभाग ने फैसला किया हैं कि” आज प्रेस कांफ्रेंस आयोजित करके मीडिया को इस केस से संबंधित जानकारी दी जायेगी। वैसे’ इस फाइल में केस से संबंधित सभी रिपोर्ट मौजूद हैं, जिसे आप देख ले। कहा वकील साहब ने और फिर फाइल जज साहब के टेबुल की ओर बढ़ा दिया, फिर अपनी जगह पर आकर खड़े हो गये।
इसके बाद’ जज साहब ने फाइल को खोल कर करीब पांच मिनट तक देखा। बीतता हुआ पल और जज साहब और वकील साहब के बीच इस केस के संदर्भ में और भी बातें हुई। इसके बाद जज साहब ने नोट लिखे और पुलिस को आदेश दिया कि” इस मामले में जल्द से जल्द अपराधियों को पकड़ कर कोर्ट में पेश करें।
साथ ही, जज साहब ने पुलिस को कोट करके यह भी कहा कि” प्रशासन यह इंस्योर करें कि” इस तरह के मामले फिर से घटित नहीं हों। साथ ही शहर में कानून व्यवस्था को सुचारु रूप से सक्रिय रखे।
इसके बाद जज साहब उठकर अपने केबिन में चले गये। इधर’ जज साहब के जाते ही कोर्ट रूम में हलचल शुरु हो चुका था। परंतु….एस. पी. साहब को न तो इसकी चिंता थी और न ही इस मामले में वो फिलहाल उलझना चाहते थे। इसलिये वकील साहब से मिलने के बाद वे तरूण वैभव और सुशीत काले के साथ कोर्ट रूम से बाहर निकल गये। जहां पर मीडिया बालों का हलचल अभी भी जारी था।
परंतु….एस. पी. साहब इस बात को भलीभांति जानते थे, अगर यहां पर उलझ गये, तो खुद का ही नुकसान होगा। वैसे भी पुलिस स्टेशन पहुँचने के बाद कितनी ही तैयारियां करनी थी। साथ ही, पुलिस स्टेशन में शाम को सीनियर अधिकारियों का जमावड़ा होना था। इसलिये तीनों ही मीडिया बालों से खुद को बचाते हुए कार तक पहुंचे और अंदर बैठ गये। इसके साथ ही तरूण वैभव ने ड्राइविंग संभाल लिया। फिर तो कार श्टार्ट होते ही कोर्ट परिसर से बाहर निकली और सड़क पर आते ही सरपट दौड़ने लगी।
इसके बाद’ जब मीडिया बालों को सफलता नहीं मिली, मीडिया हाउस बौखला गई और आनन-फानन में शहर में बीते दो दिनों में हुए वारदात पर डिबेट शुरु करवा दिया। जिसके कारण शहर में अजीब से माहौल का निर्माण हो गया। एक भय का वातावरण, जो शहरी जनमानस के हृदय पर अंकित हो चुका था।
बस’ मीडिया हाउस ने मन बना लिया था, किसी भी तरह से प्रशासन बौखलाहट में आ जाये और इस तरह के बयान दे-दे, जिसे अच्छी तरह से भुनाया जा सके। इसकी जानकारी एस. पी. साहब को हो गई। वैसे, वे तरूण वैभव और सुशीत के साथ पुलिस स्टेशन में ही मौजूद थे और आगे निर्धारित कार्यक्रम की तैयारी करवा रहे थे। ऐसे में, मीडिया बालों की चालाकी के बारे में जैसे ही उन्हें जानकारी मिली, सहज ही उनके होंठों पर मुस्कान आ गई। साथ ही उन्होंने कलाईं घड़ी में देखा, दिन के एक बज चुके थे।
इसके साथ ही उन्होंने सभी मीडिया हाउस को प्रेस कांफ्रेंस की सूचना दे दी। इसके बाद’ फोन डिस्कनेक्ट कर के तरूण वैभव के चेहरे को देखने लगे। जबकि’ वे जब मीडिया हाउस को फोन कर रहे थे, तो तरूण वैभव कुछ उलझ सा गया था। तभी तो उसने उनकी आँखों में देखा और बोला।
सर!....आपको नहीं लगता कि” अभी मीडिया बालों को फोन करना कुछ जल्दबाजी था?...कहने के बाद एक पल के लिये रुका वो और एस. पी. साहब की आँखों में देखा, फिर सुशीत काले की ओर देखा। जबकि’ उसकी बातों को सुनकर एस. पी. साहब की भंवें टेढ़ी हो गई थी। जिसे भांपते ही वो कुछ सहम सा गया, लेकिन’ फिर हिम्मत जुटाकर आगे बोला।
सर!....इस स्थिति में जब मीडिया बालों ने प्रशासन को उलझाने के लिये चाल चला हो, उन्हें प्रेस कांफ्रेंस के लिये आमंत्रित करना, शायद उचित नहीं था। क्योंकि’ इससे मीडिया बाले तो यही समझेंगे कि” प्रशासन उनके दबाव में आ चुका हैं। फिर तो’ वे लोग नाहक ही पुलिस के काम में ज्यादा से ज्यादा टांग फंसाने की कोशिश करेंगे। जो कि” सर!...पुलिस के हितकर नहीं कहा जा सकता।
तो क्या तुम मुझे समझाओगे कि” क्या उचित है और क्या नहीं?....उसकी बातों को सुनकर एस. पी. साहब ने आवेश में आकर बोला और इतना ही काफी था, तरूण वैभव बुरी तरह से घबरा गया। तभी तो उसने एस. पी. साहब के चेहरे को देखा और सफाई देते हुए बोला।
साँरी सर!....मेरा उद्देश्य आपको हर्ट करना नहीं था। परंतु…आपके फोन काँल के बाद जो स्थिति बनेगी, उसे भी तो बताना था।
तरूण!...तुम आँफिसरों की यही कमजोरी हैं कि” न कोई बात समझना चाहते हो और न ही अपने सीनियर के किसी फैसले से जल्दी सहमत होते हो। परंतु…हकीकत की धरातल पर आँफिस के नियमों से अलग भी चलना पड़ता हैं कभी-कभी, तभी तो हम लोग बाँस होते हैं। तरूण वैभव की बातों को सुनकर एस. पी. साहब ने कहा, फिर एक पल के लिये मुस्कराये। जबकि’ उनकी बातों को सुनकर तरूण वैभव उनके ही चेहरे को देखने लगा। तब अचानक ही एस. पी. साहब गंभीर होकर आगे बोले।
अब ऐसा भी नहीं हैं कि” मैंने मीडिया बालों की हरकतों से बौखला कर उनको प्रेस कांफ्रेंस के लिये बुलाया हैं। भई, यह कार्यक्रम तो पहले से ही निर्धारित था, किन्तु’ मीडिया हाउस ने चालाकी दिखलाने की मूर्खता की। इसका यह मतलब कतई नहीं हो सकता कि” हम अपने निर्धारित वर्क के पैटर्ण को बदल दें। यह तो हमें करना ही था, सो मैंने मीडिया बालों को फोन करके बुला लिया।
तो क्या सर!...आप इस केस से संबंधित सभी जानकारी मीडिया बालों को दे देंगे। उनकी बातों को सुनते ही तरण वैभव ने जिज्ञासा बस उनसे प्रश्न पुछ लिया। जिसे सुनते ही एस. पी. साहब के होंठों पर मुस्कान छा गई। फिर उन्होंने उसकी आँखों में झांका और ढ़ृढ़ता से बोले।
हरगिज नहीं!...तुम्हें किसने बोल दिया, प्रेस कांफ्रेंस आयोजित कर रहे हैं, तो मीडिया बालों को इस केस की पूरी जानकारी दे देंगे। तरुण!...इस केस में मीडिया बालों को उतना ही बताया जायेगा, जितनी हम जरूरत समझेंगे। इसके बाद उनके प्रश्नों को टाल देंगे। कहा उन्होंने और एक पल के लिये रुककर कुर्सी पर पहलू को बदला, फिर उसके चेहरे पर नजर गड़ा कर आगे बोले।
वैसे’ मेरा मानना हैं कि” जहां तक संभव हो सके, पुलिस को मीडिया बालों से उलझने से बचना चाहिये। नहीं तो’ वे लोग सांप को रस्सी साबित करने में माहिर होते हैं। ऐसे में आशा करता हूं कि” अब तुम सारी बातों को समझ गये होगे। कहा एस. पी. साहब ने और फिर चुप्पी साध ली। बस’ तरूण वैभव और सुशीत भलीभांति समझ गये, बाँस अब बोलने के मूड में नहीं हैं।
ऐसे में स्वाभाविक रूप से आँफिस में सन्नाटा पसर गया, जो दोनों को चुभने लगा था। किन्तु’ दोनों इस स्थिति में नहीं थे कि” कुछ कर सकें। धीरे-धीरे आगे की ओर बढ़ता हुआ समय और जैसे ही घड़ी ने दिन के दो बजने के संकेत दिए, तीनों आँफिस से निकले और हाँल में पहुंच गये।
जहां मीडिया बालों की तादाद अच्छी संख्या में जुटी हुई थी। तैयारी तो पहले ही पूरी कर ली गई थी, इसलिये एस. पी. साहब ने कुर्सी संभाल लिया। बस’ मीडिया बालों ने प्रश्नों के बौछार की शुरुआत कर दी। परंतु…एस. पी. साहब पर इसका कोई भी प्रभाव नहीं हुआ। उन्हें जिन प्रश्नों का जबाव लग रहा था, दिया जाये। शांत होकर जबाव देते जा रहे थे और बाकी के प्रश्नों को इग्नोर करते जा रहे थे।
धीरे-धीरे आगे बढ़ता हुआ समय और मीडिया बालों के प्रश्नों की बौछार। करीब एक घंटे तक वे उन प्रश्नों का जबाव देते रहे, इसके बाद उठकर आँफिस की ओर बढ़ गये। ऐसे में मीडिया बालों ने तरूण वैभव और सुशीत काले को घेरने की कोशिश की, परंतु…दोनों चालाकी से अपना पल्ला झाड़ कर एस. पी. साहब के पीछे-पीछे चल पड़े। वैसे’ भी अभी-अभी कुछ देर पहले बाँस ने नसीहत दी थी, उसको नहीं भूले थे दोनों।
इसके बाद मीटिंग की तैयारियां शुरु हो गई और वह भी समय आया, जब अधिकारियों की गाड़ियां आकर पुलिस स्टेशन के कंपाउंड में लगने लगी। फिर तो’ जैसे ही घड़ी ने शाम चार बजने की उद्घोषणा की, मीटिंग का दौर शुरु हो गया। परंतु…उन दोनों को बाँस से पहले ही इंस्ट्रक्सन मिला हुआ था, जब तक पुछा नहीं जाये, अपनी जुबान खोलने की हिमाकत नहीं करें।
ऐसे में दोनों मीटिंग रूम में मूक दर्शक ही बने हुए थे और देख रहे थे कि” कैसे बाँस अपने सीनियर के साथ इस केस के हरेक पहलू पर चर्चा कर रहे हैं। साथ ही, जब कोई प्रश्न उलझ सा जाता था, धैर्य के साथ जबाव देते जा रहे थे। साथ ही सीनियर के द्वारा दबाव बनाने की कोशिश कि” इस केस में इंवेस्टीगेशन आँफिसर को बदल दिया जाये, उसे बहुत ही खूबसूरती के साथ नकार दिया।
इसके बाद करीब घंटे भर तक इस केस के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा हुई। जिसके बाद यह तय हुआ कि” शहर में पुलिस दल की गश्ती बढ़ा दी जाये। क्योंकि’ यह मामला अंग तस्करी से जुड़ा हुआ हैं, इसलिये इस मामले में कई पुलिस स्टेशन को सम्मिलित किया जाये और इंस्पेक्टर और सब-इंस्पेक्टर की टास्क फोर्स बनाई जाये। साथ ही शाम होने के बाद हाईवे और नेशनल हाईवे, दोनों पर पुलिस टीम शाम से लेकर रात तक गश्ती करें।
मीटिंग में आगे का एजेंडा तय होने के बाद धीरे-धीरे सीनियर अधिकारी विदा होने लगे। बीतता हुआ पल, तरुण वैभव और सुशीत काले के लिये तनाव पूर्ण था। धीरे-धीरे आगे की ओर बढ़ता हुआ समय और फिर जब सभी सीनियर चले गये, तब एस. पी. साहब ने दोनों को समझाया कि” यह मामला बहुत ही उलझा हुआ हैं। ऐसे में जब तक इस अपराध को अंजाम देने बाले गिरोह को पकड़ा नहीं जाता, कोई भी चालाकी मत करना। इतनी बात कह कर एस. पी. साहब भी आँफिस से बाहर निकल गये, तब दोनों ने राहत की सांस ली।
वह फर्च्युनर कार थी ब्लैक रंग की, जो कि” इस समय हाईवे पर दौड़ती जा रही थी।
शाम के साढ़े पांच बजे, जब सूर्यदेव अस्ताचल में जाने की तैयारी में लगे हुए थे, हाईवे पर ट्रैफिक की संख्या बढ़ गई थी। जिसके बीच यह ब्लैक रंग की कार सरपट दौड़ती जा रही थी। स्वाभाविक रूप से कार का ड्राइवर, जो कि” एक खूबसूरत युवक था, चाहता था कि” जल्द से जल्द गंतव्य तक पहुंच जाये।
जबकि’ बगल में बैठा हुआ युवक मोबाइल चला रहा था। दोनों युवक सुंदर व्यक्तित्व के स्वामी, उम्र यही बाईस-तेईस के करीब होगा दोनों की। ऐसे में स्वाभाविक रूप से दोनों की आँखों में उभड़ते हुए सपने को देखा जा सकता था, जो अमूमन हरेक युवा के आँखों में होता हैं। बहुत कुछ पा लेने की ललक और समय से आगे बढ़ जाने की ढ़ृढ़ इच्छा, परंतु….इस समय कार के अंदर पसरे हुए सन्नाटे से लगता था, दोनों ही प्रभावित हो रहे थे और ऐसा होना भी स्वाभाविक ही था।
क्योंकि’ जब सफर का समय हो और साथ में कोई बैठा हो, ऐसे में संवाद की कमी हो, तो स्थिति असह्य सी हो जाती हैं। जबकि’ जब दो व्यक्ति साथ बैठे हो, आकांक्षा तो यही रहती है, बातचीत हो। क्योंकि’ बातचीत करने से मन लगा रहता हैं और सफर की थकावट भी महसूस नहीं होती। नहीं तो, अगर संवाद नहीं हो, तो एक अजीब सा तनाव व्याप्त हो जाता हैं।
कुछ यही स्थिति कार के अंदर हो रही थी। ड्राइव में तल्लीन युवक बगल में बैठे हुए युवक के इस तरह चुप्पी साधे रहने से परेशान हो चुका था। उसकी तो इच्छा थी, बातचीत का सिलसिला भी शुरु हो जाये, जिससे कि” सफर आसान हो जाये। परंतु….दूसरा युवक, जो कि” मोबाइल पर रील देखने में व्यस्त था, पगले युवक के मनोभाव से बिल्कुल ही अनभिज्ञ लग रहा था। ऐसे में जब पहले युवक से नहीं रहा गया, उसने तिरछी नजरों से दूसरे युवक के चेहरे को देखा, फिर बोला।
यार सम्यक!.....देख रहा हूं, कब से मोबाइल में इस तरह से उलझे हुए हो, जैसे इसमें ही तुम्हारी जान बस चुकी हो। परंतु….यार!....हम लोग अभी सफर पर हैं और मैं कार ड्राइव में लगा हुआ हूं। ऐसे में अगर संवाद नहीं करोगे, समझ सकते हो, कितना अकेला-पन महसूस होता हैं। ड्राइव कर रहे युवक ने कहा और फिर उसने अपनी नजर ड्राइव पर केंद्रित की। जबकि’ उसकी बातों को सुनकर पहले नौजवान से नहीं रहा गया, तभी तो उसने मोबाइल को शीट पर रखा और धीरे से बोला।
यार बलजीत!....तुम्हें तो मालूम ही होगा कि” मंत्री साहब ने खास इंस्ट्रक्सन दिया हैं, सफर में किसी से भी बात मत करना। उनका कहना हैं कि” अचानक ही उनके आदमियों को टार्गेट किया जा रहा है। सम्यक ने कहा और फिर एक पल के लिये रुककर ड्राइव कर रहे युवक के चेहरे को देखा। जबकि’ उसकी बातों को सुनने के बाद ड्राइव कर रहे युवक ने पलट कर मुस्कराते हुए उसके चेहरे को देखा, परंतु…..सम्यक ने उसकी मुस्कान पर ध्यान नहीं दिया और आगे बोला।
हां यार बलजीत!....बीते पिछले दो दिनों में मंत्री साहब के कुल आठ आदमियों की बली ले ली गई हैं। अब तुम तो जानते ही हो कि” हम दोनों मंत्री साहब के लिये कितना महत्व रखते हैं। बस’ उन्होंने मना कर दिया हैं कि” सफर में किसी से भी बात मत करना।
हा-हा-हा-हा!....सम्यक की बातों को सुनते ही दूसरा युवक ठठाकर हंसा। फिर उसने उसके चेहरे को देखा और एक को कुछ सोचने के बाद आगे बोला। यार सम्यक!...तुम भी न, कभी-कभी बेतुकी बातें किया करते हो। भला मंत्री साहब ने कब कहा था कि” आपस में भी बात मत करना। उनका तो कहना था, किसी बाहरी या अंजान व्यक्ति से बात मत करना। परंतु….तुम भी न यार!...शब्दों के क्या से क्या अर्थ निकाल लेते हो। कहा बलजीत नाम के युवक ने और फिर ड्राइव में ध्यान पिरोया। जबकि’ उसकी बातों को सुनकर सम्यक ने जैसे ही जबाव देने के लिये मुंह खोला, उसकी नजर आगे हाईवे किनारे खड़ी सुंदर युवती पर गई।
बलजीत यार!...कार रोकना तो।
उसने इतनी तेजी से और ऊँची आवाज में कहा कि” ड्राइव कर रहे नौजवान के पांव ब्रेक पर कसते चले गये। फिर तो कार की टायर सड़क पर घिसटती चली गई और कार सीधे युवती के पास जाकर रुकी। तब उन दोनों ने युवती को देखा और मोहित हुए बिना नहीं रह सके।
क्या गजब की सुंदरता थी युवती की, नख से सिख तक रुप माधुर्य टपकता हुआ। काले-कजरारे नैन, घनी काली जुल्फें और रसीले ओंठ। गुलाबी गाल, जो कि” गुलाब के पंखुड़ी की तरह लग रगे थे। सुराहीदार गर्दन और उभड़ा हुआ वक्ष स्थल और नितंब। उसपर ब्लू रंग की जिंस और ब्लैक टाँप पहने हुए वो युवती बला की खूबसूरत लग रही थी। ऐसे में स्वाभाविक रूप से दोनों के होंठ से ठंढ़ी आह निकली। जबकि’ कार के रुकते ही युवती उनके करीब पहुंच चुकी थी। फिर तो’ युवती ने दोनों के चेहरे को देखा और अपने शब्दों में माधुर्यता को घोलकर धीरे से उनसे बोली।
आप लोग लगता हैं लंबे सफर में हैं?....फिर भी अगर मुझे आप लोग लिफ्ट दे दे, तो आपकी कृपा होगी।
नहीं-नहीं, इसमें कृपा करने बाली बात कहां से आ गई। वैसे भी, आप जैसे हसीनाओं का मदद अगर नहीं कर सकूं, तो फिर जवानी किस काम की?...उस युवती की बातें सुनते ही सम्यक नाम के युवक ने बोला। क्योंकि’ युवती के संबोधन और इस अनुभव से उसका हृदय रोमांचित हो चुका था कि” उस बला की खूबसूरत युवती के साथ सफर करने का मौका मिलेगा। हलांकि’ बलजीत की इच्छा थी, युवती को मना कर दे, परंतु….वो ऐसा नहीं कर सका और युवती कार का दरवाजा खोलकर अंदर बैठ गई।
फिर तो’ कार का दरवाजा बंद होते ही बलजीत ने इंजन श्टार्ट किया और आगे बढ़ा दिया। इसके साथ ही कार ने झटके लिया और हाईवे पर सरपट दौड़ने लगी। तब’ सम्यक ने पीछे मुड़ कर युवती के चेहरे पर नजर टिकाया और एक पल को उसके सौंदर्य का पान करता रहा, उसके बाद बोला।
वाऊ!....सच में आप इतनी खूबसूरत हो कि” किसी की भी निगाह आपके चेहरे से हटे ही नहीं। बोलने के बाद एक पल के लिये रुका सम्यक और युवती की आँखों में झांकने लगा। जबकि’ युवती उसकी बातों को सुनकर मुस्कराई और उसकी ये मादक हंसी, वह अपनी भावना पर नियंत्रण नहीं रख पा रहा था। फिर भी, उसने अपने-आप को संभला और बोला।
हे भामिनी!...आप वास्तव में बहुत सुंदर हैं, इतना सुंदर कि” आपको बाँहों में भर ले। खैर’ इन बातों को छोड़िये और आप अपना नाम बताए?
सुलेखा पालीवाल!...मुझे इसी नाम से जानते हैं। मैं यही पर मेडिकल काँलेज में नर्श की ट्रेनिंग कर रही हूं। उसकी बातों को सुनने के बाद युवती ने खनकती हुई आवाज में कहा और लगा कि” कहीं मंदिर का घंटा बजा हो जैसे। जिसकी अनुभूति बलजीत को भी हुई थी। तभी तो’ वो चोर निगाहों से युवती के सुंदरता को देखने लगा था और अघाने की कोशिश करने लगा था।
जबकि’ उस युवती के साथ सम्यक अलक-मलक की बातें करने में जुट गया था। वैसे’ उसकी कोशिश यही थी, अगर युवती सांचे में ढ़ल जाती हैं, तो रात रंगीन करने की व्यवस्था कर ली जाये। तभी तो’ जहां तक संभव हो रहा था, अपनी बातों में युवती के रूप सौंदर्य की ही चर्चा कर रहा था। इस आशय के साथ कि” प्रयास ही तो करना हैं। अगर दाल गल जाती हैं, तो आज की बल्ले-बल्ले।
धीरे-धीरे आगे की ओर बढ़ता हुआ समय और आगे को सरपट दौड़ती हुई कार। बलजीत की भी तो यही इच्छा हो चुकी थी, तभी तो कार की स्पीड बढ़ाये जा रहा था। वैसे भी, बाहर अब हल्का धुंधलका घिरने लगा था और लग रहा था, कभी भी रात की स्याह चादर शहर पर फैल सकती हैं।
रात का अंधेरा ढ़़लने लगा था, इसके साथ ही शहर का आँचल रोशनी से जगमग करने लगा था। भागता-दौड़ता हुआ शहर, इसके बीच अपने आँफिस में बैठे हुए तरुण वैभव और सुशीत काले। दोनों गहन विचार में डूबे हुए थे, क्योंकि’ वारदात का सिलसिला जो शुरु हो चुका था, आज उसका तीसरा दिन था और उन्हें इसका ही भय सता रहा था, कि” वारदात घटित होने का समय हो चुका था।
और बीते दो दिनों में अपराध घटित होने का जो पैटर्ण रहा था, उससे सहज में ही अंदाजा लगाया जा सकता था कि” कभी भी वारदात घटित होने की सूचना मिल सकती हैं। बस’ यही कारण था उन दोनों के उलझन का। जानते थे, इसके बाद उन्हें किस तरह के परेशानी का सामना करना पड़ सकता था। उन्हें इस बात की अनुभूति थी, जैसे-जैसे इस तरह के वारदात में इजाफा होता जायेगा, उनके लिये मुश्किलें बढ़ती जायेगी।
वैसे भी, आज मीटिंग में सीनियर आँफिसरों के रूख को देखकर उन दोनों की अंतरात्मा सहम सी गई थी। परंतु…दोनों इस बात को भलीभांति जानते थे, उनके पास जादू की छड़ी तो बिल्कुल भी नहीं हैं कि” घुमाया और अपराधी उनके चंगुल में फंस गया। किन्तु’ इस तरह निष्कृय रहने से भी तो समस्या का समाधान नहीं होने बाला था।
उन्हें यह भी पता था, अगर अपराधियों पर जल्दी ही नकेल नहीं कसा गया, एक बहुत बड़ी समस्या का निर्माण हो जायेगा। साथ ही, स्थिति यहां तक भी पहुंच सकती हैं कि” उनके नौकरी पर ही संकट न आ जाये। ऐसे में उनके सामने करो या मरो बाली स्थिति आ गई थी। मतलब कि” किसी भी तरह से अपराध को रोककर अपराधी पर कानूनी शिकंजा कसना था। परंतु…किस तरह से?...यह तो उन्हें भी पता नहीं था।
धीरे-धीरे आगे की ओर बढ़ता हुआ समय और उलझन में डूबे हुए दोनों। आँफिस में जल रही बल्ब की रोशनी उन दोनों के चेहरे पर पड़ रही थी। उस रोशनी में स्पष्ट रूप से दोनों के चेहरे पर अवसाद की मोटी परत को देखा जा सकता था। हां, वे दोनों अपने कैरियर के ऐसे संक्रमण काल से गुजर रहे थे, जहां पर उन्हें लगने लगा था कि” संकट से घिर चुके हैं।
सर!...इस तरह से तो कब तक चल पायेगा?....अपराधी अपराध पर अपराध को अंजाम देते जाये और हम लोग आँफिस में इस तरह से हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे। इस स्थिति में तो हमें कुछ भी हासिल नहीं होने बाला। आँफिस में पसरे हुए सन्नाटे से तंग आकर जब सुशीत काले से नहीं रहा गया, तब बोल पड़ा। जबकि’ उसकी बातों को सुनकर तरुण वैभव ने उसकी आँखों में देखा और सर्द लहजे में जबाव दिया।
सुशीत!...तुमने जो प्रश्न पुछा हैं। शायद उसका जबाव मेरे पास फिलहाल तो नहीं हैं। किन्तु’ हां, अगर इस बारे में तुम कोई सहायता कर सकते हो, अथवा रास्ता दिखा सकते हो, तो तुम्हारा स्वागत हैं। कहा उसने और फिर सुशीत काले की आँखों में झांकने लगा, इस आशय के साथ कि” उसके मन के भावों को पढ़ सके। इधर’ उसकी बातों को सुनकर सुशीत काले एक पल के लिये हड़बड़ा सा गया, फिर उसने अपने-आप को संभाला और धीरे से बोला।
सर!....आप भी न, छोटी-छोटी बातों पर नाराज हो जाते हो। कहने के बाद एक पल के लिये रुका वो और तरूण वैभव के चेहरे को देखने लगा। लेकिन’ जब वहां के भावों को पढ़ने में उसे सफलता नहीं मिली, तब आगे बोला।
सर!...आपने जैसा समझा, मेरे कहने का आशय वह था ही नहीं। मैंने तो बस यही कहा था, आँफिस में हम लोग बैठे रहेंगे, तो अपराधी किसी भी हालत में नहीं मिल पायेगा। ऐसे में जरूरत हैं, हम लोग आँफिस से निकले और सड़कों पर ढ़ूंढ़ें, शायद सफलता हाथ लग जाये।
शायद तुम ठीक कह रहे हो। उसकी बातें सुनकर तरूण वैभव सहमति में सिर को हिलाता हुआ बोला। फिर एक पल के लिये रुका और उसके चेहरे को देखा, फिर कुछ सोचकर आगे बोला।
तो फिर इंतजार किस बात की हैं?...चलो, बाहर, हम लोग पेट्रोलिंग पर चलते हैं। वैसे भी डिनर का समय हो चुका हैं, तो बाहर ही किसी रेस्टोरेंट में पेट-पुजा भी कर लेंगे। कहा उसने और फिर उठ खड़ा हो गया, फिर आँफिस से बाहर की ओर निकल पड़ा। फिर तो’ सुशीत काले भी झट उठ खड़ा हुआ और उसके पीछे लपका।
बस पांच मिनट और दोनों कार में बैठ चुके थे। इसके साथ ही सुशीत काले ने इंजन को श्टार्ट किया और आगे बढ़ा दिया। फिर तो’ कार पुलिस स्टेशन के कंपाउंड से निकली और सड़क पर सरपट दौड़ने लगी। इसके साथ ही दोनों के मन में विचारों का तूफान भी दौड़ने लगा।
वैसे भी, परिस्थिति जिस तरह की बन रही थी, ऐसे में उलझन ही तो बढ़ना था। इस तरह के उलझन, जो तन और मन, दोनों को ही कुंद करके रख दे। शारीरिक और मानसिक, दोनों स्तर पर थकावट को बढ़ाने बाला परिस्थिति बन चुका था। जिसके कारण मन विचारों की शृंखला बनाकर इस विषम परिस्थिति से बाहर निकलने के लिये छटपटा रहा था।
ऐसे में स्वाभाविक रूप से ऐसे-ऐसे विचार उनके मन में पनप रहे थे, जो बे सिर-पैर के थे। उन विचारों के मंथन से कुछ भी तो हासिल नहीं होने बाला था, फिर भी वे विचार थे, जो उन दोनों के मन में पनप रहे थे। ऐसे में स्वाभाविक रूप से उनकी सोच बार-बार दिशाहीन हो जाती थी। बस’ अजीब से उलझन की स्थिति थी उन दोनों के मन की।
किन्तु’ इस तरह उलझ जाने से भी तो समस्या का समाधान नहीं मिलने बाला था। इस बात से दोनों अच्छी तरह से वाकिफ थे, इसलिये अपने विचारों पर नियंत्रण करना चाहते थे। लेकिन’ किस तरह से?....यह भी तो गंभीर प्रश्न था। क्योंकि’ जब परिस्थिति विपरीत बनी हुई हो, मन अपने-आप ही इस तरह के विचारों के जाले को बुनने लगती हैं। ऐसे में इन विचार जाले से मुक्त होना, इतना आसान नहीं होता। फिर भी उन्हें फिलहाल तो विचार के भंवर से बाहर निकलना था, तभी तो तरूण वैभव बोला।
यार सुशीत!...इन अपराध करने बालों की मानसिकता किस तरह की होती हैं?..मतलब कि” वे इतने क्रूर किस तरह से हो जाते हैं?....जो एक ही झटके में किसी का भी जान ले लेते हैं।….कहा उसने और फिर सुशीत काले की आँखों में देखा, जहां पर उसकी बातों को सुनने के बाद चमक सी आ गई थी। तभी तो’ उसने एक पल के लिये ड्राइव से नजर को हटाया और उसके चेहरे को देखा। फिर वापस ड्राइव पर नजर टिकाता हुआ बोला।
सर!...आप भी न, गजबे बात करते हैं। भला अपराधी की मानसिकता किस तरह की होगी। सर!...जिसे वारदात को अंजाम देना होता हैं, बस वो अपने लाभ को ही देखता हैं। बस’ दौलत एक ऐसा परिबल हैं कि” आपो-आप ही किसी भी इंसान में क्रूरता भर देता हैं। कहा उसने और फिर ड्राइविंग में तल्लीन हो गया। जबकि’ तरूण वैभव ने फिलहाल तो बोलने की इच्छा को त्याग दिया।
वैसे भी, सुशीत काले ने जो बात कही थी, सत-प्रतिशत सही था। क्योंकि’ वह जानता था, अपराध या तो राजनीति से प्रेरित होता हैं, या तो पाँवर पाने के लिये अंजाम दिया जाता हैं, अथवा तो प्रतिशोध के लिये ही किया जाता हैं। ऐसे में इन्हीं मूल बिंदुओं पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत थी अब, तभी शायद सफलता के नजदीक पहुंचने की संभावना बन पायेगी।
बस’ दिमाग में इतनी बातें आते ही उसने लंबी सांस ली और फेफड़ों में आक्सीजन भरने लगा। साथ ही उसकी नजर कलाईं घड़ी पर गई, रात के दस बजने बाले थे। मतलब कि” आज वारदात टल गया था, बस उसने राहत की सांस ली और सुशीत काले की ओर देखा। वैसे भी, रात बहुत ज्यादा हो गई थी, इसलिये उसने सुशीत को कहा कि” कार को किसी रेस्टोरेंट की ओर ले चले, जिससे पेट-पुजा की जा सके।
रात के आठ बजे।
रोहिणी पुलिस स्टेशन, जहां शिफ्ट बदल चुका था। परंतु….आँफिस में अभी भी सलिल और रोमील बैठे हुए थे। उनके सुंदर चेहरे पर चमक और आत्म विश्वास झलक रहा था। साथ ही सामने टेबुल पर काँफी का कप रखा हुआ था, जिसे दोनों ही उत्सुकता भरी नजरों से घूर रहे थे।
शायद इस इरादे के साथ कि” काँफी पीने के बाद सीधे ही अपार्ट मेंट के लिये निकलना हैं। वैसे भी’ आजकल उनके इलाके में शांति थी, इसलिये वर्क लोड नहीं के बराबर रहता था। इसका फायदा दोनों ही उठाते थे। यहां से निकलने के बाद फ्लैट पर जाकर कपड़े चेंज करना और फिर वियर बार के लिये निकल जाना। फिलहाल तो यही रुटेशन बना हुआ था उनका और इस कारण से ही उनके चेहरे पर प्रसन्नता रहती थी। शायद’ आज भी उनका यही इरादा था, तभी तो काँफी के कप को घूरे जा रहे थे, मानो कभी भी उसपर झपट पड़ेंगे।
सर!....आज जो एस. पी. साहब ने पुलिस मूख्यालय बुला कर इंस्ट्रक्सन दिया, उसका मतलब समझ नहीं आया। अचानक ही बोला रोमील ने, फिर सलिल के चेहरे पर नजर टिका दी, साथ ही काँफी का कप उठा लिया। जबकि’ उसकी बातों को सुनकर सलिल मुस्करा कर बोला।
रोमील!...तुम भी न, लगता हैं न्यूज नहीं देखते हो, नहीं तो इस तरह की बेवकूफी भरी बातें नहीं करते। कहा उसने और एक पल के लिये रुका, साथ ही रोमिल के आँखों में आँखों को पिरोया। फिर काँफी का कप उठा लिया और घूंट भरते हुए आगे बोला।
वैसे, तुम्हारी जानकारी के लिये बता दूं, यमुना बिहार इलाके में बीते दो दिनों में जिस तरह के वारदात को अंजाम दिया गया हैं, उसने पूरे शहर की अंतरात्मा को हिलाकर रख दिया हैं। मतलब कि” जिस चीज का अंदाजा भी कोई नहीं लगा सकता, वहां पर घटित हो रहा हैं।
मैं समझा नहीं सर!...आप कहना क्या चाहते हैं?....ऐसा क्या घटित हो रहा हैं, जिसने शहर की आत्मा तक को हिलाकर रख दिया हैं। अभी तो सलिल की बातें पूरी भी नहीं हुई थी कि” रोमील बीच में टपक कर बोला और लगा जैसे उसका इस तरह से बीच में बोलना सलिल को नागवार गुजरा हो। तभी तो’ उसके चेहरे पर आवेश के लक्षण आ गये। परंतु….तत्काल ही उसने अपने-आप को संभाल लिया, फिर कप के काँफी को समाप्त किया और खाली कप टेबुल पर टिकाता हुआ बोला।
तुम भी न रोमील!....कभी-कभी बचकानी हरकत करते हो। मतलब कि” तुम्हारे अंदर धैर्य की कमी हैं, नहीं तो पूरी बात सुनने के बाद ही बोलते। कहा उसने और एक पल के लिये रुका, फिर रोमील के आँखों में देखा, जहां उत्पन्न हुए भय को स्पष्ट रुप से देखा जा सकता था। मतलब साफ था, उसके क्रोध को देखकर रोमील सहम सा गया था और उसके आँखों में भय को देखकर सलिल को संतुष्टि सी हुई। फिर तो’ अपने आगे के शब्दों पर अधिक जोर देता हुआ बोला।
रोमील!...यमुना बिहार इलाके में न पिछले दो दिनों से अजीब तरह के वारदात को अंजाम दिया जा रहा हैं, जिसने पुलिस महकमे के दिमाग को ही चकरा कर रख दिया हैं। मतलब कि” वारदात को अंजाम देने बाला अपराधी विक्टीम के शरीर से पूरे अंगों को निकाल लेता हैं। इतना ही नहीं, कुछ घंटे बाद उसकी भी मौत हो जाती हैं और कोई दूसरा उन मानव अंगों को ले उड़ता हैं।
ओह!....आई सी, आपका कहने का मतलब हैं कि” इन वारदातों को अंजाम दिलवाने के पीछे मानव अंगों के तस्कर का हाथ हैं?....जैसे ही उसकी बात खतम हुई, रोमील ने प्रश्न पुछ लिया, साथ ही अपनी निगाह उसके चेहरे पर टिका दी। जबकि’ उसकी बातें सुनते ही सलिल के होंठों पर मुस्कान छा गई। फिर तो’ वो थोड़ा आगे झुका और शांत स्वर में बोला।
भले ही तुम कभी-कभी मूर्खों जैसी बात कर देते हो, लेकिन सच कहूं, तो तुम जिनियस हो। कहा उसने और एक पल के लिये रुका, विचार करने के लिये कि” आगे क्या बोला जाये?....इस बीच रोमील की जिज्ञासु नजर उसके चेहरे पर ही टिकी रही। जिसकी अनुभूति उसको हो गई,, तभी तो आगे बोला।
सच कहूं तो रोमील!....वैसे अपने लिये शांति की बात हैं कि” इस बार अपने इलाके में वारदात घटित नहीं हो रहा हैं। नहीं तो, बहुत ही मुश्किल हो जाता इस बार मामले को संभालने के लिये। क्योंकि’ इस बार मामला कुछ अलग और उलझा हुआ हैं। कहा उसने और फिर रुककर लंबी सांस लेने लगा, मानो फेफड़े में आक्सीजन भर रहा हो। जबकि’ उसकी बातों को सुनते ही रोमील चिढ़कर बोला।
सर!....आप भी न, न जाने चाहते रहते हैं कि” अपने इलाके में भी वारदात घटित हो। तभी तो’ अपने अभिशप्त मुख से अपने इलाके में शांति की बातें करने लगते हैं। फिर तो सर!...सच कहूं तो, आपने कहा नहीं और अपने इलाके में वारदातों का सिलसिला सा शुरु हो जाता हैं। कहा उसने और एक पल के लिये रुक कर सलिल की आँखों में देखा, जहां उसकी बातों को सुनने के बाद अजीब सा भाव उभड़ आया था। फिर अपने शब्दों को संतुलित किया और आगे बोला।
सर!....आपको कितनी वारदात गिनवाऊँ, जब आपने कहा और वारदात शुरु हो गई। आप भी इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं, रति संवाद’, आथर्व खेमका और रजौली” इसके उदाहरण हैं। अपने अंतिम शब्दों पर जोर देकर बोला वो, फिर सलिल के चेहरे को देखने लगा। इस आशय के साथ कि” कहीं उसकी बातों को सुनने के बाद बाँस गुस्सा तो नहीं हो गये।
परंतु….उसकी शंका निराधार ही साबित हुई। क्योंकि’ उसने जो बोला था, सलिल को उसकी अनुभूति थी। वह जानता था कि” उसने जब भी अपने इलाके में छाई हुई शांति को लेकर चर्चा की हैं, जरूर ही कोई न कोई वारदात घटित हुआ हैं। फिर तो घटने बाली वारदात ने इस तरह का रुप ले लिया करता था कि” उसके रातों की निंद और दिन का चैन खो जाता था।
ऐसे में रोमील के द्वारा कही जाने बाली बातों का बुरा मानने का कोई मतलब ही नहीं था। इसलिये उसने जबाव देना टाल दिया और चुप्पी साध ली। वैसे भी, अपार्ट मेंट के लिये निकलने का समय हो चुका था, इसलिये उसने रोमील के आँखों में देखा, मानो पुछ रहा हो, चलें?
और अभी तो रोमील उसके इस इशारे का कोई जबाव देता, तभी उसके मोबाइल ने वीप दी। धक से रह गया उसका हृदय, क्योंकि’ अचानक ही इस समय फोन काँल आना। अभी तो उसने अपने इलाके में शांति की चर्चा की थी और अभी फोन काँल आ गया।
ऐसे में स्वाभाविक रूप से उसके ऊपर एक अंजाना सा भय हावी हो गया। फिर तो उसने डरते-डरते फोन काँल को उठाया और जैसे ही काँल रिसिव हुआ, वह अपनी जगह पर से उछल पड़ा। अचानक ही चेहरे पर आश्चर्य के सागर हिलोरे लेने लगे और एक पल में ही वो पसीने से पूरी तरह भीग गया। इधर उसके शरीर से अचानक ही छलकते हुए पसीने और चेहरे पर आश्चर्य के भाव देखकर रोमील भी शंकित हो चुका था।
तब तक तो सलिल ने फोन काँल डिस्कनेक्ट कर दिया था और तेजी से उठ खड़ा हुआ था आँफिस से बाहर निकलने के लिये। ऐसे में रोमील ने अपनी प्रश्न भरी निगाहें उसके चेहरे पर टिका दी, मानो पुछ रहा हो कि” क्या हुआ?...बस सलिल का धैर्य जाता रहा और वो उत्तेजित होकर बोला।
रोमील!....मधु मालती गोडाउन में वारदात घटित हो गया हैं। वहां पर किसी ने समूह में हत्या जैसे वारदात को अंजाम दिया हैं। कहा उसने और आँफिस से बाहर निकलने के लिये जैसे ही अपने कदम को उठाया, रोमील झट बोल पड़ा।
और चर्चा कीजिये अपने इलाके में शांति की। देख लिया न, सिर मुराते ही ओले पड़े। कहा उसने और सलिल के चेहरे की ओर देखा, जहां उसकी बात सुनने के बाद मुस्कान की रेखा खिंच गई थी। परंतु…सलिल रुका नहीं, वो तेजी से आँफिस से बाहर निकल गया। ऐसे में रोमील भी तेजी से उठ खड़ा हुआ और उसके पीछे लपका।
रोहिणी दक्षिणी! जो कि” रेसीडेंसियल इलाका था। फिर भी, इलाके में कुछ अमीरों ने पैसे के बल पर बड़े- बड़े गोडाउन का निर्माण करवाया था। उसमें ही एक था मधु मालती वेअर हाउस। दरअसल यह संपत्ति मंत्री साहब की था। जहां पर उनका दो नंबर का धंधा बड़े आराम से चलता था।
किन्तु’ आज यहां पर हलचल सा था। रात के साढ़े आठ बज चुके थे और इसके साथ ही यहां पर पुलिस की गाड़ियां आकर लगने लगी थी। साथ ही मीडिया बालों के आने की भी शुरुआत हो गई थी। परंतु….अब तक वेअर हाउस के गेट को खोला नहीं गया था। ऐसे में सड़क पर गुजरने बाली गाड़ियां एक पल के लिये उसके सामने रुकती थी, यह जानने के लिये कि” आखिर वहां पर हुआ क्या हैं?
परंतु….जब उन्हें अपने प्रश्न का जबाव नहीं मिलता था, वे गाड़ी को आगे बढ़ा लेते थे। ऐसे में बीतता हुआ पल बोझिल होता जा रहा था। वैसे भी रात का समय और रिहायशी इलाका, हलचल तो बढ़ना ही था। चारों ओर रोशनी से जगमग करती बिल्डिंगे और सड़क किनारे लगी स्ट्रीट लाइट।
किन्तु’ पुलिस दल और मीडिया बाले के अचानक आने से अजीब से स्थिति का निर्माण होने लगा था। हां, स्वाभाविक रुप से मधु मालती वेअर हाउस के कंपाउंड में पुलिस और मीडिया बालों का काफिला जुटता हुआ देखकर आस-पास के लोग भी वेअर हाउस के आस-पास जमा होने लगे थे।
और शायद यह स्थिति और भी विकट होने बाली थी, तभी सलिल की कार आकर वेअर हाउस के गेट पर आकर रुकी और जैसे ही सलिल ने वहां की स्थिति को देखा, पूरा मामला समझ गया। फिर तो’ उसने पुलिस मूख्यालय फोन लगाकर यहां के हालात के बारे में जानकारी दी। साथ ही पुलिस फोर्स की टुकड़ी को भेजने के लिये बोला।
फिर’ एस. पी. साहब को फोन लगा कर यहां के हालात के बारे में जानकारी देने लगा। इसके बाद फोन काँल डिस्कनेक्ट होते ही रोमील के साथ बाहर निकला। तब तक राम माधवन, जो कि” पहले ही आकर के मोर्चा संभाले हुए था, उसको देखते ही लगभग दौड़कर करीब पहुंचा।
फिर तो’ उसको देखते ही सलिल ने राहत की सांस ली। फिर उसे समझाने लगा कि” किसी भी हालत में मीडिया बाले को वेअर हाउस के अंदर मत आने देना। इसके बाद’ सलिल ने वेअर हाउस के मेन गेट के ताले को तुड़वा कर गेट खुलवाया और रोमील के साथ अंदर कदम रखा।
विशाल वेअर हाउस, जिसके अंदर चारों ओर रोशनी की भरपूर व्यवस्था की गई थी। साथ ही पूरा ही गोडाउन कार्टेन बाक्स से भरा हुआ था और जिस तरह से बक्से की पैकिंग की गई थी, लगता था, उसमें कीमती समान होगा। जबकि’ गोडाउन के दूसरी छोर पर आँफिस एरिया जैसा दिखता था।
बस’ सलिल उधर ही बढ़ गया और जैसे ही वह आँफिस एरिया में पहुंचा, आश्चर्य से उसकी आँखें फटी रह गई। क्योंकि’ आधुनिक ढंग से बनाई हुई आँफिस में इस समय फर्श पर तीन युवकों की खून से सनी हुई लाश पड़ी हुई थी। साथ ही फर्श पर बहता हुआ ताजा खून, लगता था, कुछ देर पहले ही हत्या को अंजाम दिया गया था।
ऐसे में सलिल ने साथ में आए हुए एक्सपर्ट टीम को निर्देशित किया कि” वो अपने काम में लग जाये। फिर अपनी आँखों को आँफिस में घुमाने लगा, शायद उसे किसी चीज की तलाश थी और उसे सफलता भी मिली। उसने देखा, उस आँफिस के कोने में एक छोटा सा गेट था, बस वो उस ओर बढ़ गया।
और जैसे ही उसने गेट के बाहर कदम रखा, वेअर हाउस के पीछे बाले भाग में निकल चुका था। जिसके आगे से होकर एक गली नूमा सड़क जाती थी, जो शायद मेन सड़क से मिल जाती होगी। इसका मतलब हैं, हत्यारा चाहे जो कोई भी हो, उसने हत्या को अंजाम दिया और इधर से ही निकल गया।
किन्तु’ इस समय इन बातों में माथा पच्ची करने से कुछ हासिल नहीं होने बाला था। इसलिये वो वापस वेअर हाउस के अंदर वहां पर लौट आया, जहां पर वारदात घटित हुआ था। इसके बाद बारीकी से लाश का मुआयना करने लगा। वे तीनों युवक, जो कि” तेईस-चौबीस के करीब के लगते थे, उनकी आँखें मुंदी हुई थी।
मतलब साफ था, हत्या के समय तीनों होश में नहीं रहे होंगे, नहीं तो इस तरह से आँखें मुंदी नहीं रह सकती, उस स्थिति में तो कभी नहीं, जब खुद पर जानलेवा हमला किया जा रहा हो। इतनी बात सोचने के बाद उसने फिर से लाश पर नजर घुमाया और उसकी आँखें आश्चर्य से फटी रह गई। क्योंकि’ तीनों को ही पेट से लेकर सीने तक फाड़ डाला गया था। जिसके कारण उनकी अंतड़ियां बाहर को निकली हुई थी।
मतलब कि” इन तीनों के शरीर से कीमती अंगों को निकाल लिया गया होगा। सलिल ने अचानक ही अपने-आप से कहा और फिर उठ खड़ा हुआ। तब तक रोमील उसके करीब पहुंच चुका था। ऐसे में उसने रोमील के चेहरे को देखा, फिर उसे समझाने लगा कि” लाश का जल्द से जल्द पंच नामा भरवा कर पोस्टमार्टम के लिये भेजने की व्यवस्था करो।
रोमील को निर्देशित करने के बाद वो जैसे ही गोडाउन की तलाशी लेने के लिये आगे बढ़ने को हुआ, उसकी नजर गोडाउन के गेट पर गई और वो चौंका। क्योंकि’ गेट से मंत्री जनार्दन गुरेज प्रवेश कर रहे थे। थके कदमों से चलते हुए मंत्री साहब, लगता था कि” महीनों से बीमार हो। ऐसे में मंत्री साहब को देखते ही उसने तलाशी लेने के इरादे को त्याग दिया और खड़ा रहकर अपनी नजर मंत्री साहब पर टिका दी।
इधर’ मंत्री साहब ने वेअर हाउस के अंदर कदम रखा और थके हुए कदमों से आगे बढ़ने लगे। बिल्कुल ही बेजान और शक्तिहीन बनकर। उनके कदमों की गति को देखकर सलिल को सहज ही अंदाज हो गया कि” इस मामले में मंत्री साहब को गहरा आघात लगा हैं। वैसे, उसने नजर मंत्री साहब पर ही टिकाया हुआ था और उनके एक-एक गतिविधि को नोट कर रहा था।
उसने देखा, मंत्री साहब आगे बढे और तीनों युवकों के लाश के करीब पहुंचे और जैसे ही उनकी नजर उन तीनों युवकों के लाश पर गई, लगा कि” उनको चक्कर आ गया हो। हां, उन्हें चक्कर ही आया था और शायद फर्श पर धड़ाम से गिर ही पड़ते। परंतु….अचानक ही उन्होंने अपने-आप को संभाला और सोफे का सहारा लेकर बैठ गये।
बस एक मिनट और मंत्री साहब बच्चे की मानिंद फफक-फफक कर रोने लगे। उनके आँखों से बहता हुआ आँसुओं का सैलाब, लगता था, उनके अंदर दबी हुई वेदना आज ही पूरे वेग से बहकर बाहर निकल जाना चाहती हो। ऐसे में सलिल को इस समय कुछ अटपटा सा लगने लगा था। इसलिये नहीं कि” उसे मंत्री साहब के साथ सहानुभूति उपज आई थी, परंतु….वो किसी को इस तरह से रोते हुए नहीं देख सकता था। इसलिये आगे बढा और मंत्री साहब के करीब जाकर बैठ गया और बोला।
सर!....लगता हैं ये तीनों आपके रिलेशन बाले थे, तभी तो आप बच्चे की मानिंद रोये जा रहे हैं।
नहीं आँफिसर!...ऐसा कुछ भी नहीं हैं, फिर भी ये तीनों मुझे बहुत अजीज थे। उसकी बातों को सुनते ही मंत्री साहब रोना भूल गये। फिर उन्होंने दोनों हथेली से अपने आँसुओं को पोंछा और उसकी ओर देखकर बोले। इसके बाद एक पल के लिये रुककर उसकी आँखों में देखा, फिर आगे बोले।
आँफिसर!...न तो तुम समझ पाओगे और न ही मैं तुम्हें समझा सकता हूं कि” इन तीनों की हत्या से मुझे कितना बड़ा क्षति पहुंचा हैं। बस’ इतना ही समझो कि” मैं पूरी तरह से लूट गया हूं। कहा उन्होंने और वापस फिर से रोने लगे।
जबकि’ सलिल एक पल के लिये उलझकर रह गया था। अब वो इतना तो जान ही गया था कि” मरने बाले तीनों युवक मंत्री साहब के लिये काम करते थे और यह वेअर हाउस उनका ही हैं। ऐसे में उनके साथ बातचीत करना बहुत जरूरी था, लेकिन कैसे?...वह इसी प्रश्न पर आकर उलझ गया था।