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रात के दस बज चुके थे और समय के इस पड़ाव पर पहुंचने के साथ ही शहर की गति कुछ-कुछ थमने लगी थी। फिर भी सड़कों पर अभी भी रस थी। परंतु…अभी ज्यादातर वाहन छोटे ही थे, जो इधर-उधर, दोनों ओर से अपने गंतव्य की ओर दौड़े जा रहे थे। हां जी, सभी को अपने गंतव्य तक पहुंचने की जल्दी थी। ऐसे में सड़क पर रफ्तार थमने का नाम ही नहीं ले रही थी।

बस’ उसी रफ्तार के बीच वह ब्लैक इनोवा भी सरपट भागी जा रही थी, अपने गंतव्य की ओर। हां, कार में बैठे हुए दो नकाबपोश और शीट पर रखा हुआ खून से सना हुआ बैग। उन नकाबपोश में से एक ड्राइव कर रहा था, जबकि’ दूसरा बगल में बैठा हुआ मोबाइल चला रहा था। धीरे-धीरे आगे की ओर बढ़ता हुआ समय और कार के अंदर पसरा हुआ सन्नाटा। इस सन्नाटे के बोझ को जब ड्राइव कर रहे नकाबपोश से नहीं सहा गया, तो उसने बगल बाले नकाबपोश की ओर देखकर धीरे से बोला।

मिस्टर एक्स!....इस तरह कब तक हम लोग ऐसे वारदात को अंजाम देते रहेंगे और दिलवाते रहेंगे?....कहीं ऐसा नहीं हो, हम लोग कानून के जाल में फंस जाये। फिर तो हम लोग बेमौत ही मारे जायेंगे। कहा ड्राइव कर रहे नकाबपोश ने, फिर दूसरे नकाबपोश के चेहरे की ओर देखा और फिर ड्राइव पर नजर जमा दिया। जबकि’ उसकी बातों को सुनने के बाद, दूसरे नकाबपोश की तंद्रा टूटी। फिर उसने ड्राइव कर रहे नकाबपोश की ओर देखा और बोला।

मिस्टर एक्स वन!....आपके दिमाग में यह बात आया कहां से?....आप जानते हैं न, इस तरह के नकारात्मक विचार का हमारे धंधे में कोई जगह नहीं। कहा उसने और फिर से ड्राइव कर रहे नकाबपोश की ओर देखा। जबकि’ उसके बातों की प्रतिक्रिया हुई और पहले नकाबपोश ने ड्राइव पर से नजर हटाया और उसके चेहरे की ओर देखा, फिर गंभीर स्वर में बोला।

मिस्टर एक्स!....आपके कहने भर से तो यथार्थ का कोई परिवर्तन नहीं हो सकता। इस बात को आप भी जानते हैं और मैं भी जानता हूं कि” जो सत्य हैं, उसे झुठलाना बेवकूफी होता हैं। कहा उसने और फिर एक पल के लिये रुका और दूसरे नकाबपोश के चेहरे को देखा, मानो कुछ समझने की कोशिश कर रहा हो। इसके बाद फिर से ड्राइव पर ध्यान केंद्रित किया और शांत स्वर में बोला।

मिस्टर एक्स!...आप या हम भले ही कितना ही इनकार करें, परंतु….सत्य तो यही हैं कि” हम और आप इस समय आग से खेल रहे हैं। या फिर यह भी कह सकते हैं कि” हमारी पूरी ही आँर्गेनाइजेशन इस समय आग के लपटों के बीच घिरी हुई हैं।

तो आप क्या चाहते हैं मिस्टर एक्स वन?....वैसे’ मुझे आपका इरादा बिल्कुल भी नेक नहीं लग रहा हैं। फिर भी, आप जो चाहते है, उस मंतव्य को बतलाने के लिये आप स्वतंत्र हैं। अभी तो पहले नकाबपोश ने अपनी बात पूरी भी नहीं की थी कि” दूसरा नकाबपोश बोल पड़ा। फिर वो एक पल के लिये रुका और ड्राइव कर रहे नकाबपोश के चेहरे की ओर देखा, फिर शांत स्वर में आगे बोला।

परंतु….सावधान मिस्टर एक्स वन!...आप आँर्गेनाइजेशन के नियमों को अच्छी तरह से जानते हैं। ऐसे में वर्तमान को लेकर अगर आप भय का वातावरण बनाने की कोशिश करते हैं, अथवा कंपनी से दगा करते हैं, तो अंजाम के लिये आप खुद ही जिम्मेदार होंगे।

मिस्टर एक्स!...आप मुझे आँर्गेनाइजेशन के रूल-रेगुलेशन ही समझाने लगे। वैसे’ आपको बतला दूं कि” फिलहाल तो मेरा ऐसा कोई भी इरादा नहीं हैं। फिर भी, फैक्ट तो कहना ही पड़ेगा। उसकी बातें सुनते ही ड्राइव कर रहे नकाबपोश ने बोला, फिर एक पल के लिये रुका और उसके चेहरे को देखा, फिर आगे देखते हुए बोला।

वैसे’ मिस्टर एक्स!...स्मगलिंग का धंधा इतना बुरा नहीं था। क्या भला हम लोग आराम से कमा-खा रहे थे। किन्तु’ मानव अंगों का कारोबार, उसमें भी सिर्फ एक व्यक्ति से संबंधित व्यक्तियों का शिकार करना, मुझे समझ नहीं आ रहा। फिर तो, ये इस तरह का वारदात हैं, जो कभी न कभी हम लोगों की लुटिया डुबोएगा ही।

मिस्टर एक्स वन!....लुटिया डुबेगा या नहीं, इसके बारे में तो नहीं, परंतु…आप ने जो कहा, सिर्फ एक व्यक्ति से संबद्ध शिकार किया जाना, तो इसकी चर्चा जरूर रवाना वेअर हाउस पहुंचकर मिस्टर वाई से करेंगे। पहले की बात खतम होते ही दूसरे ने बोला, फिर उसने चुप्पी साध ली। बस’ ड्राइव कर रहे नकाबपोश ने समझ लिया, अगला बोलने के मूड में नहीं हैं, इसलिये ड्राइव में तल्लीन हो गया।

फिर तो’ सड़क पर फूल रफ्तार में भागती हुई कार और धीरे-धीरे आगे की ओर बढ़ता हुआ समय। रात के ग्यारह बजे इनोवा रवाना वेअर हाउस गेट के सामने पहुंची और इधर कार पहुंची, उधर वेअर हाउस का सटर उठ गया। फिर तो’ कार सीधे वेअर हाउस के अंदर गोडाउन में जाकर लग गई। इसके साथ ही दोनों नकाबपोश कार से बाहर निकले और बैग लेकर आँफिस की ओर बढ़े।

उनके सधे हुए कदम और उन्होंने आँफिस में कदम रखते ही देखा, दो नकाबपोश सोफे पर बैठे हुए काँफी पी रहे थे। ऐसे में पदचाप सुनकर दोनों ने गेट की ओर देखा। जबकि’ आए हुए दोनों नकाबपोश आगे बढ़े, आँफिस में रखे बड़े से फ्रीजर को खोला और बैग को उसमें रखने के बाद वापस आकर नियत स्थान बैठ गये। तब उसमें से एक नकाबपोश बोला।

मिस्टर एक्स!...लगता हैं, आज का मिशन भी सफलता पूर्वक पूरा हुआ।

हां, मिस्टर वाई!...मिशन तो सक्सेसफूल रहा, किन्तु’ मिस्टर एक्स वन के दिमाग में इस मिशन को लेकर कुछ शंका पनप चुकी हैं। कहा मिस्टर एक्स ने, फिर बारी-बारी से तीनों के चेहरे को देखने लगा।

इसके बाद’ वो मिस्टर वाई को बतलाने लगा कि” उसके और एक्स वन के बीच रास्ते में किस तरह की बातचीत हुई। मिस्टर वाई उसकी बातों को सुन रहा था और मुस्करा भी रहा था। फिर तो’ जैसे ही मिस्टर एक्स ने अपनी बात खतम की, मिस्टर वाई एक्स वन से मुखातिब हुआ और शांत एवं सर्द लहजे में बोला।

मिस्टर एक्स वन!...आपकी शंका जायज हैं, क्योंकि’ खतरे की तलवार तो लटक ही रही हैं हम लोगों पर। परंतु….मिस्टर एक्स वन!....आप ही बताओ, रिश्क कहां नहीं हैं?...उसमें भी दो नंबर के धंधे में तो रिश्क होता ही हैं। कभी तो पुलिस के द्वारा पकड़े जाने का भय, तो कभी कहीं से चली गोली का शिकार हो जाने का भय। तो क्या हम लोग इसलिये आँर्गेनाइजेशन को बंद कर देंगे।

मिस्टर वाई!....मेरे कहने का मतलब यह नहीं था। लेकिन जिस रफ्तार से हम मानव अंगों को पाने के लिये शिकार कर रहे हैं। उसमें भी सिर्फ एक व्यक्ति विशेष से जुड़े लोगों का शिकार कर रहे हैं। उस स्थिति में हम लोग ज्यादा दिन तक नहीं बच पायेंगे। मिस्टर वाई की बातों को सुनकर सहम कर बोला मिस्टर एक्स वन। तभी चौथा नकाबपोश बोल पड़ा, जिसका नाम मिस्टर जेड था।

मिस्टर एक्स वन!....आपने जो अभी बोला, वो कुछ हद तक सही भी हैं। परंतु…फिलहाल हम लोगों को अपने टार्गेट पर ध्यान देना चाहिये। क्योंकि’ यही हम लोगों के लिये हमारे बाँस मिस्टर एल ने निर्धारित किया हुआ हैं। कहा मिस्टर जेड ने, फिर एक पल के लिये रुका और वहां मौजूद तीनों नकाबपोश के चेहरे को देखा। फिर एक बार में ही थामे हुए कप से काँफी को गटक लिया और खाली कप टेबुल पर टिकाकर बोला।

वैसे’ मिस्टर एक्स वन!....आप ने जो प्रस्ताव दिया हैं, इस बारे में बाँस से बात करूंगा। अब देखता हूं, बाँस क्या बोलते हैं, आपको गोली मारने का आदेश देते हैं, अथवा प्लान में चेंजिंग करते हैं। कहा मिस्टर जेड ने और फिर उसने चुप्पी साध ली। इसके साथ ही वहां पर सन्नाटा पसर गया, एक अजीब सा सन्नाटा, जो मन-मस्तिष्क को चुभे। साथ ही मिस्टर एक्स वन के चेहरे पर एक अजीब सी बेचैनी छा गई थी, जो कि” नकाब से ढ़ँका होने के कारण स्पष्ट नहीं दिखता था।

* * * *

मधु मालती वेअर हाउस से लौटते समय रोमील कार ड्राइव कर रहा था। जबकि’ सलिल राम माधवन के साथ पिछली शीट पर बैठा हुआ था। आगे बढ़ता हुआ समय और सड़क पर दौड़ती हुई कार। वैसे’ रात के ग्यारह बज जाने के कारण सड़क पर वाहन की रफ्तार कुछ थमा हुआ सा प्रतीत होता था। फिर भी, रोमील सजग होकर ड्राइव कर रहा था।

जबकि’ राम माधवन कब से मोबाइल में उलझा हुआ था। इन सब के बीच सलिल आँख मुंद कर सोने की कोशिश कर रहा था। जानता था, पुलिस स्टेशन पहुंचने के बाद आज रात आराम मिलने की संभावना नगण्य हैं। बस’ इसलिये ही चाह रहा था कि” जब तक सफर में हैं, थोड़ी देर के लिये आँखें बंद कर ले। किन्तु’ ऐसा संभव ही नहीं हो पा रहा था। हां, सलिल जब भी आँखों को बंद करता, सामने उन तीनों मृत युवक का चेहरा घूमने लगता।

बस’ विकल हो कर आँखें खोल लेता और एक बार इधर-उधर देखने के बाद फिर से आँखें बंद करता। फिर से वही हाल होता और इस कारण से वो बेचैन हो गया। साथ ही फैसला कर लिया कि” अब आँख बंद नहीं करेगा। वैसे’ भी उसने अभी-अभी जो दृश्य देखा था, उसमें इस तरह की बात स्वाभाविक ही थी। किन्तु’ उसकी बेचैनी का कारण था, इस तरह के वारदात का घटित होना।

वैसे’ उसे उम्मीद नहीं थी कि” इस तरह का वारदात उसके भी इलाके में घटित हो सकता हैं। ऐसे में स्वाभाविक रूप से उलझ गया था वो। या तो उसने एस. पी. साहब के चेतावनी को गंभीरता से नहीं लिया था। नहीं तो’ कम से कम इस वारदात को रोकने की कोशिश तो कर ही सकता था। परंतु….अब पछतावा करने से क्या फायदा होने बाला था?

अब तो बस’ उसे सोचना था कि” अपराधी को कैसे पकड़ा जाये और घटित हो रहे वारदात को किस तरह से रोका जाये?....क्योंकि’ फिलहाल जिस तरह के वारदात को अंजाम दिया जा रहा था, उसे रेरर अपराध की सूची में रखा जा सकता था। अब ऐसे में इस तरह के वारदात पर अंकुश नहीं लगाया गया, तो समाज पर इसका विपरीत असर होगा। बस’ यही कारण था कि” वह चाहता था, इस तरह के नर संहार को रोका जाये।

परंतु….वह इस बात को भी जानता था, जितना सोच रहा हैं, यह काम उतना आसान नहीं हैं। उसे इस बात की अनुभूति थी कि” यह मामला और मामले से अलग हैं। ऐसे में उसे फूंक-फूंक कर कदम रखना होगा, अन्यथा तो हाथ कुछ भी नहीं लगेगा और वो उन आँफिसरों में से नहीं था, जो बिना तथ्यों के ही खोजबीन चालू कर दे।

बस’ उसने मन ही मन फैसला कर लिया कि” वह अभी जाकर तरूण वैभव से मिलेगा, इसके बाद ही कोई फैसला करेगा। वैसे भी, अब तो सब से पहले उसे तरूण वैभव से ही मिलना जरूरी था। तभी तो’ इस केस की कई चीज को वो जान सकता था। मसलन कि” इस वारदात की उसको किस तरह से जानकारी मिली?....अगर पिछले दो केस में कातिल का एक्सीडेंट हुआ, तो इस केस में अब तक ऐसी जानकारी क्यों नहीं मिली।

इस के साथ ही बहुत ऐसे प्रश्न थे, जो उसके दिमाग में गुंज रहे थे, जिसकी जानकारी उसको मिलना जरूरी था। तभी वो इस केस में आगे बढ़ सकता था। बस’ इतनी बात दिमाग में आते ही उसने मोबाइल निकाला और एस. पी. साहब को लगा दिया। फिर काँल रिसिव होते ही वो बात करने लगा और उन्हें बतलाने लगा कि” वो इंस्पेक्टर तरुण वैभव से मिलना चाहता है। बस’ एस. पी. साहब की ओर से उसे अनुमति मिल गई। इसके बाद फोन डिस्कनेक्ट कर के वो रोमील से मुखातिब हुआ।

रोमील!....तुम ऐसा करो कि” कार को सीधे यमुना बिहार पुलिस स्टेशन के लिये ले चलो।

लेकिन’ अचानक से ही यमुना बिहार पुलिस स्टेशन जाने का इरादा क्यों?.....सर!....क्या कोई बात हैं?....उसकी बात खतम होते ही रोमील बोल पड़ा। फिर पलट कर उसके चेहरे को देखा और फिर नजर ड्राइव में पिरोया। जबकि’ उसकी बात सुनने के बाद सलिल की भँवें टेढ़ी हो गई। तभी तो’ उसने रोमील की ओर देखा और तनिक ऊँचे स्वर में बोला।

यार रोमील!....तुम भी न, कभी-कभी बेतुके सवाल करने लगते हो। जबकि’ जानते हो, अभी जो वारदात घटित हुआ है, उसके ताड़ पिछले वारदात से जुड़े हुए हैं। ऐसे में स्वाभाविक रूप से इस केस का केंद्र यमुना बिहार पुलिस स्टेशन ही हैं। अब ऐसे में वहां पर गये बिना इस केस के छानबीन को आगे किस तरह से बढ़ाया जा सकता हैं। बस’ हमारा वहां पर जाना जरूरी हो जाता हैं।

साँरी सर!....उसकी क्रोध को भांपते ही बोला रोमील ने। समझ चुका था, बाँस को उसका प्रश्न करना नागवार गुजरा हैं। इसलिये क्षमा मांगने के बाद वो ड्राइव में जुट गया। जबकि’ सलिल, वह तो विचारों के मंथन में जुट गया। वैसे, उसको भी अच्छा नहीं लगा था रोमील को डाँटकर, परंतु…परिस्थिति में उलझा हुआ उसका मन और रोमील की बे सिर-पैर की बाते, वह अपने क्रोध पर काबू नहीं रख सका था। वैसे भी, जब वो उलझा हुआ हो, कोई बेतुकी बात करें, उसे बिल्कुल भी पसंद नहीं था।

खैर!...फिलहाल तो उसे इस वारे में सोचना था कि” इस वारदात को किस तरह से रोके?...कम से कम अपने एरिया में घटित होने से तो रोक ही सकता था। लेकिन’ इससे पहले उसके लिये यह समझना जरूरी था कि” इस वारदात का पैटर्ण क्या हैं?

दूसरी बात कि” उसे जो जानकारी थी और उसने जो देखा था, कत्ल करने के बाद मानव अंगों को निकाल लेना। इसका मतलब तो यही था, इस केस में मानव तस्करों का समूह काम कर रहा था और तस्करों का एक जाल सा बना होता हैं और इसे एक आँर्गेनाइजेशन के रुप में व्यापक स्तर पर संचालित किया जाता हैं, जो कि” विश्व स्तर पर होता हैं।

तो क्या इस वारदात को अंजाम देने में ऐसा ही कोई संगठन सक्रिय हैं?....अगर ऐसा हैं, वास्तव में बहुत चिंता की बात थी। क्योंकि’ इस स्थिति में अपराध पर नियंत्रण स्थापित कर पाना और भी कठिन हो जाने बाला था। क्योंकि’ इस तरह के संगठन वारदात को अंजाम देने के लिये स्लीपर सेल का उपयोग करते हैं। बस’ इतना ही काफी था उसको समझने के लिये, क्योंकि’ इस तरह से तो अपराधी तक पहुंचने की कल्पना करना भी व्यर्थ था।

खैर’ इस बात पर तो बाद में भी मंथन कर लेगा। पहले तो उसकी प्राथमिकता हैं कि” वो इंस्पेक्टर तरूण वैभव से मिले और इस केस के पैटर्ण को समझने की कोशिश करें। अगर इस केस के पैटर्ण को समझ लिया जाता हैं, तो फिर बहुत हद तक आगे की तस्वीर साफ हो जानी थी। हां, इसके बाद एक सफल रणनीति बनाकर अपराधियों तक पहुंचा जा सकता था।

वैसे भी, इस तरह के मामलों में अपराधी तक पहुंचने का एक ही तरीका हैं कि” पहले अपराधी के मानसिकता को समझने की कोशिश करो। इसके बाद यह समझने की कोशिश करो कि” अपराध को क्यों अंजाम दिया जा रहा हैं?...उसके बाद सफल रणनीति बनाओ और अपराधी तक पहुंच जाओ।

बस’ यही सोचकर उसने लंबी सांस लेकर आक्सीजन फेफड़ों में भरा, इसके बाद कलाईं घड़ी पर नजर डाला, रात के बारह बज चुके थे और अभी तो उसकी नजर कलाईं घड़ी पर से हटी ही थी कि” तभी कार झटके लेकर रुक गई। फिर तो’ उसने नजर उठाकर देखा, कार यमुना बिहार पुलिस स्टेशन में खड़ी थी।

फिर तो’ तीनों कार से बाहर निकले और पुलिस स्टेशन के अंदर की ओर बढ़े और जैसे ही हाँल में पहुंचे, उनको जानकारी मिली कि” हाईवे पर एक युवती का एक्सीडेंट हो गया हैं। वही पर तरूण वैभव गया हुआ हैं। बस’ सलिल ने गहरी सांस ली और रोमील एवं राम माधवन के साथ वही पर बैठकर तरूण वैभव का इंतजार करने लगा।

* * * *

अतुल्य बिला!

नाम के अनुरूप ही सुंदर और बेहतरीन ढंग से डिज़ाइन की हुई। विशाल क्षेत्रफल में फैली हुई यह बिला नाम के अनुरूप ही सुंदर और भव्य लग रही थी, जो इस समय रोशनी से जगमग कर रही थी। रात के दो बजे, जब पूरा शहर निंद के आगोश में समाया हुआ था। इस बिला के गेट से मर्सिडीज ने प्रवेश किया और बंगले के पोर्ट में जाकर लगी।

फिर दो मिनट बीता और कार के ड्राइवर साइड का दरवाजा खुला और उसमें से एक भद्र महिला निकली। साड़ी पहने हुए वो महिला, जिसकी उम्र यही कोई बाईस-तेईस वर्ष के करीब रहा होगा। बड़ी-बड़ी कजरारी आँखें, घने काले बाल, जो घुटनों तक फैले हुए थे। गुलाब के पंखुड़ी से कोमल और नाजुक ओंठ और सुती हुई नाक। देह लालित्य ऐसा कि” किसी का भी ध्यान अपनी ओर आकृष्ट कर ले।

हां, वह बहुत ही सुंदर थी, लेकिन आँखों के आस-पास उदासी की एक स्याह परत फैला हुआ था। जो कि” ध्यान से देखने पर ही पता चल सकता था। उसमें भी तब, जब उसके होंठों पर चिर-परिचित मुस्कान छाया हुआ था। ऐसी वो महिला कार से बाहर निकलते ही अपना बैग उठाया और बिल्डिंग की ओर बढ़ गई।

धीमे कदमों से चलती हुई वो औरत, मेन गेट पर पहुंचते ही उसने गेट खोला और हाँल में प्रवेश कर गई, फिर कंधे पर लटकाये हुए बैग को अलग फेंका और धम्म से सोफे पर बैठ गई। इसके साथ ही उसने अपने दोनों हथेली को चेहरे पर घुमाया और लंबी सांस लेने के बाद सोफे पर पसर गई। उफ!...जिंदगी की भागदौड़ भी न, कभी-कभी पूरी तरह परेशान करके रख देता हैं।

हां, उसके चेहरे पर परेशानी का भाव उभड़ आया था। वैसे भी, उम्र के इस पड़ाव पर, जब जीवन का आनंद लेने के लिये हृदय में कई तरह के भाव का प्रस्फूटन होता हैं, उस समय जिम्मेदारी का बोझ अगर कंधे पर आ जाये, तो फिर विकट सा स्थिति बन जाता हैं। जबकि’ जीवन के इस मोड़ पर तो मन में अनेक प्रकार के रंगों का आभा मंडल छा जाना चाहिये।

मन में एक नई उम्मीद का आकाश जगमग करना चाहिये उम्र के इस पायदान पर। जहां पर जीवन में कई तरह के सतरंगी सपनों का निरंतर ही आवागमन होते रहना चाहिये। आनंद का एक प्रखर लहर निरंतर ही हृदय कुंज में उठते रहना चाहिये। उम्र के इस पड़ाव पर कुछ अलग एडवाँचर का अनुभूति करने गे लिये मन लालायित होता रहता हैं। जहां पर कोई ऐसा हो, जिसके साथ निरंतर ही संवाद होता रहे। एक अनंत प्रेम रस की अनुभूति होता रहे।

किन्तु’ उसके लिये यह तमाम भाव अछूता सा था। हां, वो इस जीवन रस की अनुभूति तो करना चाहती थी। परंतु…इस ओर कदम बढ़ाने के लिये उसके पास समय ही नहीं था। हां, उस जीवन रस को पाने के लिये उसका मन कभी-कभी तो जरूर तरश उठता था, किन्तु’ चाह कर भी वो इस रस को पाने के लिये अपने कदम को नहीं बढ़ा सकती थी।

क्योंकि’ जब वह उम्र के इक्कीसवें वसंत में ही थी, तभी उसके कंधे पर इस विशाल “खन्ना एंपायर” को संभालने की जिम्मेदारी आ गई थी। तब से लेकर अब तक, उसने पलट कर पीछे नहीं देखा था और अपने इस विशाल एंपायर के देखभाल में जी-जान से जुट गई थी। हां, इस बीच इतना जरूर हुआ था कि” उसे कई तरह के परेशानियों का सामना करना पड़ा था, तो कभी-कभी जीवन का आनंद पाने के लिये मन भी मचला था।

परंतु….वह इन तमाम भावनाओं का दमन करते हुए आगे बढ़ती चली आ रही थी। हां, उसे अच्छी तरह से याद हैं, वह समय, जब उसका परिवार बुरी तरह से टूट कर बिखर गया था। इस स्थिति में उसको धैर्य बंधाने बाला भी कोई नहीं था। कोई ऐसा नहीं था, जो आगे आकर कहे कि” हां, तुम घबराना नहीं। तुम जहां तक चलोगी, मैं तुम्हारे साथ हूं और जब तुम लड़खड़ा कर गिरने लगोगी, तो मैं तुम्हें अपनी मजबूत बांहों में संभाल लूंगा।

बस’ इस कमी का भार उठाते हुए वो अब तक आगे बढ़ती आई थी, अपने-आप पर भरोसा करते हुए और अपने कदमों को बढ़ाते हुए। इस बात का गांठ बांधकर कि” जीवन पथ पर ऐसा भी समय आता ही हैं, जब रास्ता अंधेरों से भरा हो और कोई साथ में कोई चलने बाला नहीं हो। ऐसे में मनुष्य को खुद के ही सामर्थ्य पर भरोसा करना चाहिये और खुद को ही थामे हुए आगे बढ़ना चाहिये।

उफ!....जिंदगी भी कभी-कभी न, कितना हैरान करने लगती हैं। सोचा उस युवती ने, फिर लंबी सांस लेकर आक्सीजन फेफड़ों में भरा और उठ खड़ी हुई, इसके बाद किचन की ओर बढ़ गई। क्योंकि’ उसका मन हो चुका था, स्काँच के दो घूंट लगा ले। हां, इस समय शराब ही एक ऐसा साधन था, जिससे उसके संतप्त हृदय को शांति मिल सकता था।

तभी तो वो किचन से स्काँच की बोतल और खाने का समान लेकर लौटी, फिर सोफे पर बैठकर अपने लिये जाम तैयार करने लगी। वैसे भी, उसके लिये शराब से अच्छा कोई साथी नहीं था। जानती थी, शराब ही एक हैं, जो तमाम तरह के टेंशन और हृदय की वेदनाओं से फौरी तौर पर राहत दे-देता हैं। जब कोई साथ नहीं हो, शराब ही एक ऐसी चीज हैं, जो कोई साथ निभाये या नहीं, वह साथ जरूर निभाता हैं।

बस’ उसके होंठों से ठंढ़ी आह निकला, साथ ही जाम भी तैयार हो चुका था, जिसे उसने उठाया और होंठों से लगाकर गटक गई। परम तृप्ति का एहसास, एक सुखद अनुभूति ने उसके मन को आनंद भर दिया। फिर तो’ लगातार ही वो एक-एक करके तीन पैग हलक में उतार लिया और फिर शांत चित होकर हाँल के छत को एकटक देखने लगी।

हां, उसका भी भरा-पूरा परिवार था। उसके परिवार में न तो धन की कमी थी और न प्रेम की। हरेक समय प्रेम की कल्लोल लेता हुआ उसका परिवार, जहां एक-एक पल आनंद के लहरों को अनुभूति करवाने बाला होता था। उसके पिता अनुज खन्ना और मां ललिता खन्ना। बड़ी बहन और एक भाई, उसका परिवार भरा-पूरा था, उसपर इतना विशाल एंपायर।

लेकिन’ एक ही झटके में उसका परिवार टूटकर बिखर गया और ऐसा बिखरा कि” वो अवाक ही रह गई। समझ ही नहीं सकी कि” अचानक ही क्या हो गया? बस’ अचानक ही आए हुए इस झंझावात ने उसके आँखों के आँसुओं को सुखा दिया। हां, वह इतना बड़ा आघात था कि” महीनों तक तो वह बेसुध ही रही थी।

हां, अगर कमल नटराजन नहीं आया होता, तो न तो कभी वो संभल पाती और न ही इस विशाल एंपायर को ही संभाल पाती। लेकिन’ कमल नटराजन ने आते ही एक कुशल योद्धा की तरह परिस्थिति को संभाल लिया। नटराजन ने उसको भी संभला और इस विशाल एंपायर को भी। इसके बाद’ निरंतर ही उसके अंदर हौसला को बढ़ाता रहा और अब, अब वो इतनी सुढ़ृढ़ हो गई हैं कि” किसी भी परिस्थिति का डट कर सामना कर सकती हैं।

उफ!....यादें भी कभी-कभी शूल की भांति हृदय में चुभने लगती हैं। यही सोचकर उसने अपने मन से विचारो के तूफान को सिर झटक कर दूर फेंका और संभल कर बैठ गई। इसके साथ ही वह प्याले में जाम को भरने लगी, क्योंकि’ उसे यही सही लग रहा था। हां, इस समय, रात के जब ढ़ाई बजने को थे, जब तक नशा का असर नहीं होगा, वह सो नहीं पायेगी। यही सोच कर उसने तैयार जाम को एक ही सांस में गटक लिया।

तभी उसकी नजर दीवाल के बाई ओर जाकर एक तस्वीर पर स्थिर होकर रह गई। हां, यह तस्वीर उसके परिवार की थी, जिसमें यादों के रुप में उसका पूरा परिवार एक याद के रूप में समाया हुआ था, भीगे एहसास की तरह। बस’ एक ही पल में वो भावुक हो गई वो। लगा कि” अभी उसके आँख छलक पड़ेंगे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। क्योंकि’ उसके आँखों के आँसू के सागर बहुत पहले सूख चुके थे।

* * * *

रात के एक बजे से ऊपर हो गया था, किन्तु’ अभी तक तरूण वैभव का अता-पता नहीं था। ऐसे में सलिल और रोमील की पलकें बोझिल होने लगी थी। वैसे भी, दोनों को आदत ही नहीं था कि” किसी का इंतजार करें। ऐसे में इस तरह से पलकों का बोझिल होना स्वाभाविक ही था। क्योंकि’ दोनों इस बात को अच्छी तरह से जानते थे, यह उनका अपना पुलिस स्टेशन नहीं था, जहां पर उनके हुक्म का पालन होता।

लेकिन’ इस तरह से समय का बर्बाद होना सलिल को बिल्कुल भी रास नहीं आ रहा था। जानता था, उसे रोहिणी लौटकर बहुत से कामों को निपटाना था। किन्तु’ यहां तक आ जाने के बाद खाली लौटकर जाना, यह भी तो उचित नहीं था। मतलब कि” जब यहां तक आ ही गया हैं, तो तरुण वैभव से मिलकर ही जायेगा। फिर तो’ केस का छानबीन शुरु करने से पहले तरुण वैभव से उसे कई जानकारी चाहिये थी। तभी तो, वो केस पर सही से काम कर पायेगा और अपराधियों तक पहुंच पायेगा।

इसलिये ही तो उसके मन में ढ़ेरों प्रश्न ने जन्म ले लिया था और सब से बड़ी बात कि” अभी तक तरूण वैभव का नहीं लौटना, यह भी उसके नजर में खटक रहा था। साथ ही दिमाग में यह विचार भी आ रहा था, कही ऐसा तो नहीं कि” तरुण वैभव घटना स्थल से सीधे अपने घर पर चला गया हो। ऐसे में वो गहरी निंद में सो रहा होगा और मैं यहां पर उसके इंतजार में मच्छर मार रहा हूं। हां, यह विचार जो उसके मन में बलवती होने लगा था बीतते समय के साथ।

क्योंकि’ उसकी आदत बिल्कुल भी नहीं थी, किसी का भी इंतजार करें। उसका तो जब भी किसी से मिलने का मन होता, सीधे जाकर मिल लेता। परंतु….आज उसे इंतजार करना पर रहा था और इसके साथ ही उसको अनुभूति भी हो गई थी कि” किसी का इंतजार करना भी कितना दुष्कर कार्य होता हैं। तभी तो’ उसको लग रहा था, उसका तन- मन दोनों ही थकता जा रहा हैं। मन पर एक अतिरिक्त दबाव और अनिश्चितता की आशंका, जिसने उसके मस्तिष्क को बेचैन कर दिया था।

अब ऐसी भी बात नहीं थी कि” रोमील की मन-स्थिति उससे कुछ अलग थी। परेशान तो वो भी था और इसलिये ही कभी तो सलिल के चेहरे को, तो कभी पुलिस स्टेशन के मुख्य द्वार की ओर देख रहा था, लगातार ही। शायद इस आशा से कि” अभी तरुण वैभव गेट से अंदर कदम रखेगा, नहीं तो साहब ही कहेंगे, चलो आज। फिर कभी उससे मिलने के लिये आ जायेंगे।

धीरे-धीरे आगे की ओर बढ़ता हुआ समय और परेशान हो रहे दोनों। उनकी परेशानी चरम पर ही पहुंचने बाली थी, तभी उनके कानों में इंजन की आवाज उभड़ी और धीरे-धीरे सुनाई देनी बंद हो गई। मतलब साफ था, जरूर ही तरुण वैभव आया होगा, क्योंकि’ इस समय किसी दूसरे के आने की संभावना बिल्कुल ही नगण्य थी। उनका सोचना और तभी पुलिस स्टेशन के अंदर तरुण वैभव और सुशीत काले ने कदम रखा और उनको आता देखकर सलिल एवं रोमील का चेहरा खिल उठा।

इधर’ तरुण वैभव और सुशीत ने जैसे ही सलिल एवं रोमील को देखा, दोनों भी खुश हो गये। खासकर तरुण वैभव, क्योंकि’ वो सलिल को अपना आईडल मानता था। ऐसे में रात के इस समय उसको पुलिस स्टेशन में देखना, खुशी तो होनी ही थी।

तभी तो’ वो आगे बढ़ा और गर्मजोशी के साथ सलिल से हाथ मिलाया। फिर अपनी नजर उसके चेहरे पर टिका दी और मंद-मंद मुस्कराता हुआ बोला।

सर!....आप इस तरह से यहां पर, वह भी इस समय, मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा हैं।

इसमें इतना आश्चर्य करने बाली बात क्या हैं तरूण?....हम दोनों अलग- अलग पुलिस स्टेशन के इंचार्ज हैं। ऐसे में केस के सिलसिले में मिलना तो स्वाभाविक ही हैं। तरूण वैभव की बातें सुनते ही सलिल ने मुस्करा कर कहा।

तो आप यहां पर केस के सिलसिले में ही आए हैं?

हां, अभी शाम को हमारे इलाके में ठीक उसी तरह से हत्या को अंजाम दिया गया हैं, जिस प्रकार की घटना आपके इलाके में घटित हुई हैं। तरूण के प्रश्न का जबाव देता हुआ बोला सलिल और इसके साथ ही तरूण के होंठों की मुस्कान और भी गहरी हो गई। तभी तो सलिल के चेहरे की ओर देखा और बोला।

सर!....आप भी न, कब तक यही पर बातें करेंगे?....चलिये, आँफिस में चलकर बात करते हैं।

उसने कहा और इसके साथ ही सलिल और रोमील उठकर खड़े हो गये। फिर चारों आँफिस में पहुंचे और शीट संभालते ही उन चारों की नजर आपस में मिली और तरुण वैभव ने उत्सुकता भरे शब्दों में बोला।

हां तो सलिल साहब!....आप इस केस में मुझसे किस तरह की जानकारी चाहते हैं?...जबकि’ मुझे जहां तक मालूम हैं, इस केस में करीब-करीब हरेक पुलिस स्टेशन को पूरी जानकारी भेज दी गई हैं।

तरूण!....यह तो हुई आँफिसियल बातें। बाकी तो, कुछ ऐसी भी चीजें होगी, जो आपको मालूम होगी, परंतु….आपने उसे नोट नहीं किया होगा। जबाव में बोला सलिल, फिर एक पल के लिये रुककर तरुण की आँखों में देखा, उसके बाद आगे बोला।

वैसे, मुझे आप बतला सकते हैं, अभी आप कहां से आ रहे हैं?

हां सलिल साहब!....अभी हम लोग हाईवे से लौट रहे हैं। वहां पर एक युवती को किसी वाहन ने कुचल कर मार दिया था। परंतु….मीडिया बालों की भीड़ जुट जाने के कारण मामले को सुलझाने में देर हो गई।

तो क्या यही युवती थी?....उसकी बातों को सुनने के बाद सलिल ने मोबाइल निकाला और उसको दिखाते हुए पुछा। जबाव में तरूण वैभव ने सहमति में सिर को हिलाया, जबकि’ बोला कुछ भी नहीं। ऐसे में सलिल का चेहरा अचानक ही गंभीर हो गया, इसके साथ ही वो आगे बोला।

मिस्टर तरूण!....बीते तीनों केस में जिस तरह से सबूत को मिटा दिया गया हैं, उससे एक बात तो बिल्कुल ही स्पष्ट हैं कि” इन वारदातों को अंजाम दिलवाने के पीछे किसी आँर्गेनाइजेशन का हाथ हैं। जो मानव अंगों का डिलीवरी होने के बाद सबूत को भी मिटा देती हैं।

बस’ इसके साथ ही उन लोगों के बीच चर्चा की शुरुआत हो गई। जबकि’ सुशीत काले उठा और काँफी लेकर आने के लिये आँफिस से बाहर निकल गया। इधर’ सलिल और तरूण वैभव, दोनों ही इस केस से संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करते जा रहे थे। बीतता हुआ समय और उन दोनों के बीच होती हुई चर्चा।

इस बीच सुशीत काले काँफी लेकर लौट भी आया और उन चारों ने पी भी ली। वैसे भी, रात के तीन बजने बाले थे और सलिल को लौटना भी था। इसलिये उसने तरूण वैभव के चेहरे को देखा और गंभीर स्वर में बोला।

मिस्टर तरुण!....अभी तक की घटना से एक बात तो बिल्कुल भी स्पष्ट हो जाता हैं कि” इस अपराध को अंजाम देने के लिये स्लीपर सेल का प्रयोग किया जाता हैं, ठीक आतंकवादी संगठन की तरह। बोलने के बाद एक पल के लिये रुका वो, फिर आगे बोला।

परंतु….इसमें विरोधाभास बाली बात यह हैं कि” पुलिस को अब तक एक नंबर से ही सूचना दी गई हैं, मतलब कि” वह नंबर संगठन का ही होगा और दूसरी बात कि” मंत्री जनार्दन गुरेज के आदमियों को ही शिकार बनाया जा रहा। कहकर वो चुप हुआ और बारी-बारी से वहां पर मौजूद सभी के चेहरे को देखा। जहां पर सहमति के भाव थे।

फिर तो, रोमील के साथ वो उठ खड़ा हुआ, क्योंकि’ उसे रोहिणी के लिये लौटना भी था। इसके साथ ही उसने तरूण वैभव से चलने के लिये अनुमति मांगी और रोमील के साथ आँफिस से बाहर निकल आया। फिर तो’ पांच मिनट लगे और दोनों कार में बैठ चुके थे। इसके साथ ही रोमील ने इंजन को श्टार्ट किया और आगे बढ़ा दी। जिसके साथ ही कार प्रांगण से निकल कर सड़क पर सरपट दौड़ने लगी।

* * * *

जनार्दन गुरेज!

जब से मधु मालती वेअर हाउस से लौटे थे, पूरी तरह से बेचैन थे। हां, अगर यह कहा जाये कि” उनके हृदय में एक अजीब से सन्नाटे ने घर बना लिया था। तभी तो’ जब से वे लौटे थे, सोफे पर आँखें बंद कर के पीठ टिकाये हुए बैठे थे। उनके चेहरे पर चिंतन की रेखा खिंची हुई थी, जो इस बात की तसदीक कर रही थी कि” उनके मन को एक अंजाने भय ने ग्रसित कर लिया था। उनकी अंतरात्मा जो कुहुक रही थी, भले ही वो नहीं रो रहे थे, अथवा तो आँखों से आँसू नहीं गिर रहे थे।

एक अजीब सी बेचैनी, जो उनके मस्तिष्क पर हावी होती जा रही थी और ऐसा वर्तमान परिस्थिति बनने के कारण हुआ था। हां, आज जो उनके तीन प्यादे को शिकारी द्वारा मार दिया गया था, उसने उनके सल्तनत को हिलाकर रख दिया था। लगता था कि” उनके वर्चस्व की मीनार को ही धरासाई करने का इरादा बना लिया हो किसी ने। बस’ यही कारण था कि” उनका मन आने बाले समय को लेकर भय क्रांत हो चुका था।

हां, एक अजीब से खौफ ने उनके सोचने की शक्ति को ही कुंद करके रख दिया था। कहां तो उन्होंने सोच रखा था कि” उनका साम्राज्य ऐसे ही निरंतर ही गति करते हुए आगे बढ़ता रहेगा। उनकी छवि जो बांहुबली बाली थी, उसको कभी भी कोई चुनौती नहीं दे पायेगा। सच!....यही तो होता आ रहा था अब तक, क्योंकि’ जिसने भी उसको चुनौती देने की कोशिश की, उसके अस्तित्व को ही उन्होंने मिटा दिया था।

परंतु….अचानक ही कहां से उनका दुश्मन पैदा हो गया?...जो एक-एक करके उनके विश्वास पात्र को ही ठिकाने लगाता जा रहा था। वह भी इस तरीके से कि” पीछे कोई सुराग ही नहीं छोड़ता था। मतलब साफ था, एक-एक करके उनके खास आदमियों का शिकार कर लेगा। जिस कारण से उनकी शक्ति पूरी तरह छीन हो जायेगी। फिर समय पाकर उनको भी ठिकाने लगा देगा।

नहीं-नहीं, अभी तो मेरा मरने का इरादा बिल्कुल भी नहीं हैं। सहसा ही उनके मुख से तेज स्वर में निकला और फिर वो संभल कर बैठ गये। बीता हुआ एक पल और अचानक ही उनके शरीर से पसीने की धारा बहने लगी। चेहरा, जो इतनी बातें सोचते ही सफेद पड़ गया और सांसे तेज-तेज चलने लगी, लोहार के धौंकनी की तरह। क्योंकि’ खुद के मौत की कल्पना भी करना कितना कष्टप्रद होता हैं।

बस’ इस भय के लहर को कम करने के लिये वे उठे और किचन से शराब की बोतल उठाकर ले आए। फिर बैठकर अपने लिये पैग बनाने लगे। साथ ही उनकी नजर कलाईं घड़ी पर गई,रात के दो बज रहे थे। मतलब कि” वेअर हाउस से लौटने के बाद लगातार ही तीन घंटे तक एक मुद्रा में बैठे रहे थे, सोच में डूबे हुए। इतनी बात ध्यान में आते ही उनका मन कसैला हो गया। तभी तो’ तैयार हो चुके जाम को उठाया और एक ही सांस में गटक लिया और फिर प्याले को शराब से भरने लगे।

ऐसे में बीतता हुआ पल और बोझिल होता हुआ माहौल। क्योंकि’ इस समय जो भी घटित हो रहा था, उनके स्वभाव से उलटा था। हां, उन्होंने तो सपने में भी नहीं सोचा था, इस तरह से अचानक ही उनको चुनौती मिलने लगेगा। वह भी उनके खास- खास सिपहसालारों का शिकार करके। बस’ इतना विचार आना और उनकी आँखों के आगे एक चेहरा घूमने लगा। हां, वह चेहरा था भानु गुरेज का, उनके साम्राज्य के असल दावेदार का। उन का बेटा था भानु गुरेज, जो पच्चीस वर्षीय नौजवान था।

ठीक उनके स्वभाव की तरह स्वभाव बाला, अय्याश एवं क्रूर। किन्तु’ उन्हें अपने बेटे के इन दुर्गुणों से कोई भी परहेज नहीं था। इसके उलट, उन्हें अपने बेटे के इन दुर्गुणों पर नाज होता था। हां,वो चाहते थे कि” उनकी औलाद उनके द्वारा आबाद जुर्म की इमारत को अच्छे तरीके से संभाले। परंतु….उनकी पत्नी रत्ना गुरेज ऐसा बिल्कुल भी नहीं चाहती थी। इसलिये वर्ष भर पहले पुत्र को लेकर उनसे अलग रहने के लिये चली गई थी।

लेकिन’ अब, जब परिस्थिति बिल्कुल ही बदल गई थी, उनके जुर्म के इमारत को कोई धीरे-धीरे ढाह रहा था, तब उनके मन में भय का स्याह आवरण सा फैलने लगा था। एक अंजानी सी आशंका ने उन्हें बिकल कर दिया था। तभी तो’ प्याले में भरे हुए शराब को उन्होंने उठाया और एक ही सांस में गटक गये। फिर होंठों को आस्तीन से पोंछते हुए बड़बड़ा उठे।

नहीं-नहीं, ऐसा तो मैं हरगिज भी होने नहीं दूंगा। भला, मेरे कुल का दीपक बुझ जाये, ऐसा मैं कैसे होने दे सकता हूं। इसके लिये तो मैं मौत से भी टकरा जाऊँगा। क्योंकि’ एक वही हैं, जो मेरे इस विशाल साम्राज्य को संभाल सकता हैं।

इतनी बात बोलने के बाद मंत्री साहब चुप हुए और तेज-तेज सांस लेने लगे। लगा कि” उनके अंदर आक्सीजन की कमी हो गई हैं और उस कमी की पूर्ति कर लेना चाहते हैं। फिर तो, पांच मिनट लगा उनको खुद को संभालने में, इसके बाद, एक-एक करके पूरी बोतल जाम बनाकर पी गये वो। इसके बाद लंबी डकार ली और सोचने लगे कि” ऐसा क्या किया जाये?...जिससे वर्तमान परिस्थिति की आँच उनके बेटे तक नहीं पहुंचे।

जानते थे, उनका लड़का जितना देखने में सुंदर था, उतना ही कमीना था, बिल्कुल ही उनकी तरह। कमनीय बालाओं के हुस्न में गोते लगाने की चाहत रखने बाला। शायद, उनसे भी दो कदम आगे था उनका लड़का विलासिता में। तभी तो, न तो परिस्थिति देखता था, न ही समय और न ही स्थान। बस’ जिस युवती पर दिल आ जाये, उसे साम, दाम, दंड या भेद, किसी भी तरीके से हासिल कर लेता था।

बस’ यही कमजोरी उनके बेटे की उनके मन में अशांति का कारण बन चुका था। क्योंकि’ अब तक जितना भी वारदात घटित हुआ था। शिकारी रूप में युवती ही तो थी, जिसने उसके आदमियों को अपने रुप जाल में फंसाया था और फिर मौत के घाट उतार दिया था। हां, यही तो उनके चिंता का कारण भी था। कहीं, कोई युवती अपने रुप जाल में उनके बेटे को भी फंसा न ले और उसका काम न तमाम कर दे।

नहीं, यह हादसा घटित होने से पहले ही उनको कदम उठाना होगा, नहीं तो फिर पछताने के अलावा कोई चारा नहीं बचेगा। वह इस बात को अच्छी तरह से जानते थे, जब समय आगे निकल जायेगा, उनके हाथ कुछ भी तो नहीं लगेगा। यही सोचकर वह उठ खड़े हुए और हाँल से बाहर निकल गये।

वैसे भी, फिलहाल तो उनको अपना यह आलीशान बिला, यह सुख-सुविधा बेमानी सा लगने लगा था, क्योंकि’ उनके मन में भय समा चुका था, आने बाले समय को लेकर। उन्हें लगने लगा था, अगला शिकार उनका लड़का नहीं हो जाये। कहीं ऐसा हो गया, तो उनकी लुटिया ही डूब जायेगी, जो कि” वो नहीं चाहते थे।

तभी तो अपने बिला से निकल पड़े थे। उन्हें अपने बेटे को समझाना था, आने बाली विपदा से सावधान रहने के लिये। बस’ हाँल से निकल कर कार के पास पहुंचे, ड्राइविंग शीट संभाली और इंजन श्टार्ट करके आगे बढ़ा दिया। इसके साथ ही कार बिला के गेट से निकली और सड़क पर सरपट दौड़ने लगी। उसी रफ्तार से उनके मन में विचार भी दौड़ने लगे।

वे विचार’ जिससे कुछ देर पहले पीछा छुड़ाकर आए थे। मन ही मन में खुद को समझा कर आए थे कि” अपने बेटे को इस तरह से समझा देंगे, जिससे वो शिकारी के ट्रेप में फंसेगा ही नहीं। किन्तु’ फिर भी उनका मन संतुष्ट नहीं हुआ था और वे विचार फिर से उनके मन मस्तिष्क पर हावी होने लगे थे।

इधर’ दौड़ती हुई कार गंतव्य की ओर निरंतर ही बढ़ती जा रही थी, बढ़ते हुए समय के साथ। दिल्ली की सड़क, जो रात के इस समय अमूमन ही शांत रहती हैं। इसलिये अभी सड़क पर ट्रैफिक नहीं के बराबर थी।

* * * *

सुबह के चार बजे सलिल रोहिणी पुलिस स्टेशन पहुंचा। बिल्कुल थका हुआ, क्योंकि’ पूरी रात जागकर जो बिताना पड़ा था। उसमें भी दिमाग में टेंशन की बौछार, विचार के रूप में निरंतर ही जारी था। ऐसे में कार से बाहर निकलते ही उसने आँफिस की ओर कदम बढ़ा दिया। साथ ही, रोमील को काँफी लाने के लिये भेज दिया। हां, इस समय उसे गरमा-गरम काँफी की जरूरत थी, जिससे दिमाग को तरोताजा किया जा सके।

वैसे भी, आज की रात भागदौड़ बाली रही थी। बस, वह भागता ही रह गया था पूरी रात, जिसके कारण उसे महसूस हो रहा था, जैसे उसका वदन टूट रहा हो। क्योंकि’ काफी दिनों बाद इस तरह की स्थिति आई थी कि” उसको इस तरह से हैरान-परेशान होना पड़े। दूसरे, तरूण वैभव की बातों ने उसके दिमाग का बोझ बढ़ा दिया था। बस दो बात और उसकी सारी थ्योरी फेल सी हो गई थी। हां, पहले तो वो यही समझता था, यह काम मानव अंगों के तस्कर का होगा। जो समूह बनाकर वारदात को अंजाम देते हैं और मोटा मुनाफा कमाते हैं।

लेकिन अब, जब वह कंफर्म हो चुका था, वारदात की सूचना पुलिस को आँर्गेनाइजेशन की ओर से ही दिया जाता हैं। साथ ही मंत्री जनार्दन गुरेज के आदमियों का ही शिकार किया जाता हैं। न जाने क्यों, यह मामला ही उसे कुछ अलग लगने लगा था। उसे लगने लगा था, जैसे इस पूरी वारदात को प्रतिशोध के लिये अंजाम दिया जाता हो। परंतु….जब तक मामला कंफर्म नहीं हो जाता, स्पष्ट रुप से कुछ भी नहीं कहा जा सकता था। हां, यह भी तो हो सकता था, अपराधी ने पुलिस की आँखों में धूल झोंकने के लिये ऐसा किया हो। लेकिन’ इस तरह के मामलों में ऐसे चांसेज बहुत ही कम होते हैं।

खैर’ जब तक मामले की छानबीन नहीं हो जाता हैं और अपराधियों को नहीं पकड़ लिया जाता, कुछ भी अनुमान लगाना गलत होता। बस’ अब किसी तरह से उसके हाथ में कोई सूत्र आ जाये, जिससे अपराधी तक पहुंचा जा सके, इसके बाद तो अपने-आप ही सभी राज खुल जाने थे। यही कारण था कि” आँफिस में पहुंचते ही वह कुर्सी पर आराम करने की मुद्रा में बैठ गया। साथ ही सिर को कुर्सी के पुस्त से टिका दी और आँखें बंद करके सोचने लगा। सोचने लगा कि” किस तरह से सामने आई हुई परिस्थिति से निपटा जाये और अपराधी पर नकेल कसी जाये, जिससे यह अपराधों का सिलसिला रुक सके।

वैसे भी, अब अगर फिर से यही वारदात घटित होता, तो यह निश्चित था कि” पब्लिक सड़क पर उतर आती। इस स्थिति में उत्पन्न होने बाली परेशानी को वो समझ सकता था। मतलब साफ था, अगर पब्लिक सड़क पर उतर आती हैं, तो न ही प्रशासन और न ही सरकार के लिये अच्छी बात हो सकती थी। क्योंकि’ इस स्थिति में स्पष्ट रुप से आसामाजिक तत्व सक्रिय हो जाते हैं। फिर तो’ यह कहना ज्यादा उचित होगा, वारदात को अब रोकने की जरूरत थी।

लेकिन’ किस तरह से?...यह भी तो गंभीर प्रश्न था और वो अच्छी तरह से जानता था कि” उसके पास तो क्या, उसके आला अधिकारियों के पास भी इस प्रश्न का जबाव नहीं था। हां, यह मामला इतना उलझा हुआ था कि” जब तक अपराधी में से कोई एक पकड़ नहीं लिया जाता, इस मामले को सुलझाया नहीं जा सकता था। बस’ इसलिये अब जरूरत इस बात की थी कि” ध्यान अपराधी को पकड़ लेने पर केंद्रित किया जाये। लेकिन’ किस तरह से? ....यह भी तो गंभीर प्रश्न था।

लेकिन’ इतना भी गंभीर नहीं कि” सुलझ ही नहीं सके। बस’ अब जरूरत था तो, योजनाबद्ध तरीके से काम करने का। क्योंकि’ जब तक जाल नहीं बुना जायेगा, शिकारी तो फंसने से रहा। बस इसी कारण से वो मंथन करने लगा था वर्तमान परिस्थिति को लेकर।

सर काँफी!...सलिल जब विचारों के जाले में उलझा हुआ था, तभी रोमील ने काँफी का कप थामे हुए आँफिस में कदम रखा और उसको इस तरह से विचारो में उलझा हुआ देखकर बोला। जबकि’ उसकी आवाज सुनकर सलिल की तंद्रा टूट गई। तभी तो’ उसने पलट कर रोमील की ओर देखा और उसे अपनी ओर देखते पाकर रोमील ने झट उसके हाथों में काँफी के कप को थमा दिया और उसके सामने बैठकर काँफी के घूंट भरने लगा। साथ ही अपनी नजर उसके चेहरे पर टिका दी।

लगता हैं तुम मुझ से कोई प्रश्न पुछना चाहते हो?....उसे इस तरह से एकटक अपने चेहरे की ओर देखते पाकर सलिल से नहीं रहा गया, तभी तो रोमील को संबोधित करके बोला। जबकि’ उसकी बातों को सुनने के बाद रोमील ने दो घूंट में ही काँफी गटक लिया, फिर उसकी ओर मुखातिब होकर बोला।

सर!...मैंने आँफिस में कदम रखा और देखा, आप गहरे विचारो में खोये हुए हैं। इस तरह से कि” जब मैंने आँफिस में कदम रखा, आप जान ही नहीं पाये। ऐसे में आप बतला सकते हैं, किस विचार में खोये हुए थे?...पुछा उसने और मौन होकर उत्तर की प्रतीक्षा करने लगा। जबकि’ उसकी बातों को सुनकर सलिल मुस्कराया और उसकी आँखों में झांकते हुए बोला।

तुम मेरे बाँस हो?....जो तुम्हें हरेक बात की जानकारी देता रहूं।

नहीं तो सर!...मैंने ऐसा तो नहीं बोला। सलिल की बातें सुनकर रोमील सिटपिटा कर बोला। हां, उसकी बातों को सुनने के बाद रोमील पूरी तरह से भयभीत हो चुका था। जानता था, बाँस अगर नाराज हो गये, तो खामखा ही परेशान कर देंगे और उसमें इतनी हिम्मत नहीं थी, बाँस के आक्रोश का सामना कर सके। इसलिये इतनी बातें बोलने के बाद उसने चुप्पी साध ली।

हां-हां, कोई बात नहीं, जब तुमने बाँस की तरह पुछ ही लिया हैं, तो अब बता ही देता हूं। वैसे भी, तुम बाँस हो ही गये हो!....उसके चेहरे पर घबराहट के लक्षण देखकर मुस्करा कर बोला सलिल। उसके बाद’ एक पल के लिये रुका और उसकी आँखों में देखा, फिर धीरे से बोला।

वैसे, तुम भी जानते हो, हम लोग किस मामले में उलझे हुए हैं। बस’ उसको लेकर ही मैं उलझा हुआ था। सोच रहा था कि” ऐसा क्या किया जाये, जिससे हम लोग अपराधी को पकड़ सकें। क्योंकि’ जब तक हम अपराधी को नहीं पकड़ते, वारदात को रोक पाना लगभग नामुमकिन हैं। बस’ इसलिये ही मंथन कर रहा था, क्या योजना बनाया जाये? जिससे अपराधी तक हम लोग पहुंच पाये।

सर!....इसमें कौन सी बड़ी बात हैं?....हम लोग उस हाईवे पर चक्कर लगाये, जहां पर शिकारी युवतियों को एक्सीडेंट करके मार दिया जाता हैं।

मतलब क्या हैं तुम्हारा?....तुम आखिर कहना क्या चाहते हो, स्पष्ट कहो। रोमील की बातें सुनते ही सलिल ने चौंक कर प्रश्न पुछा, फिर अपनी निगाह उसके चेहरे पर टिका दी। जबकि’ सलिल के इस तरह प्रश्न पुछते ही रोमील उत्साहित होकर बोला।

सर!....मेरा मतलब था, वारदात को अंजाम देने के बाद शिकारी युवतियां हाईवे पर ही जाती हैं और वहां संभवतः कोई तीसरा ही उसका शिकार कर लेता हैं। लेकिन’ उससे पहले कोई लेन-देन तो जरूर होता होगा, क्योंकि’ युवती का बैग एक्सीडेंट के बाद गायब मिलता हैं, जिसमें वो मानव अंगों को लेकर जाती हैं। मतलब साफ हैं, इस मामले का ताल्लुकात हाईवे से जरूर हैं।

बात तो तुमने पते की-की हैं। ठीक हैं, इस पर ही योजना बनाकर आगे बढ़ेंगे, जिससे हमें जल्द से जल्द सफलता मिले। रोमील की बातें सुनकर सलिल गंभीर होकर बोला। फिर एक पल के लिये रुका, फिर रोमील के चेहरे को देखा, फिर आगे बोला।

वैसे तो’ अभी हम लोग डाक्टर तनेजा के पास चलते हैं और उनसे जानने की कोशिश करते हैं, पोस्टमार्टम में क्या कोई खास बात हैं।

कहा सलिल ने, फिर उठ खड़ा हो गया। वैसे भी’ सुबह हो गया था और अब कभी भी सूर्य उदित हो सकते थे। ऐसे में उसने कलाईं घड़ी पर नजर डाली, सुबह के छ बज चुके थे। बस’ उसने आँफिस से बाहर की ओर कदम बढ़ाया। फिर क्या था, रोमील भी उठ खड़ा हुआ और उसके पीछे लपका।

* * * *

इसके बाद पूरा दिन हलचल भरा रहा।

उधर मीडिया हाउस बाले इस उलझे हुए मामले को लेकर अग्रेसिव हो गये थे। उन्हें लगने लगा था, पुलिस उनसे कुछ तो छिपा रही हैं, जो कि” इस केस की महत्वपूर्ण कड़ी हैं। बस’ वे उस कड़ी को जानना चाहते थे, जिससे न्यूज को अधिक हाँट बनाकर परोसा जाये और टी. आर. पी. के द्वारा मोटी कमाई की जाये। किन्तु’ ऐसा संभव नहीं हो पा रहा था इस मामले में पुलिस बाले के चुप्पी के कारण। लेकिन’ इस तरह से चुप बैठे रहने से भी उनको कुछ हासिल होने बाला नहीं था।

इसलिये उन्होंने परोक्ष रूप से इस मामले में पुलिस से संघर्ष सा छेड़ दिया था। उनकी इच्छा थी, प्रशासन उनके इस हरकत से बौखला जाये और कोई ऐसा बयान दे-दे, जिसका तिल का ताड़ बनाया जा सके। बाकी तो मीडिया बालों को महारत हासिल था किसी भी मामले में नमक-मिर्च मिलाने में। वो जो कर सकते थे, उसको झेलना इतना तो आसान नहीं था, इसकी अनुभूति थी उनको।

फिर तो’ टी. आर. पी. का भी मामला था, इसलिये इस केस को संदेहास्पद बनाने में जुट गये मीडिया बाले। अब वो’ इस मामले में एक तरह से ऐसा जाल बुनने लगे कि” जनता को लगे, पुलिस उनसे कुछ छिपा रही हैं। या तो फिर’ पुलिस अपराधियों को बचाने की कोशिश कर रही हैं। बस’ अजीब से स्थिति का निर्माण होने लगा, जहां पर जनता न्यूज देखने के बाद इस निर्णय पर नहीं पहुंच पा रही थी कि” सही क्या हैं और गलत क्या हैं।

वैसे भी, जन संहार बाली कोई घटना घटित होती हैं, तो जनमानस पर इसका प्रतिकूल असर पड़ता हैं। हां, जनमानस का हृदय इस तरह की घटनाओं से छुब्ध सा हो जाता हैं। उनके हृदय में भ्रामक स्थिति का निर्माण होने लगता हैं, जहां पर उनको लगता हैं, कहीं अपराधियों के अगले शिकार वही तो नहीं बनने बाले?....ऐसा होना भी स्वाभाविक ही हैं, क्योंकि’ स्थिति कुछ स्पष्ट नहीं होती। उसमें भी, इस मामले में तो लगातार तीन दिनों तक नरसंहार हो चुका था और अभी भी स्थिति स्पष्ट नहीं थी, क्योंकि’ अब तक अपराधी को पकड़ा नहीं जा सका था।

परिणाम स्वरूप हरेक गली-मोहल्ले के नुक्कड़ पर, जहां पब्लिक का मूवमेंट अधिक होता था, वहां चर्चा का बाजार गरम हो गया। साथ ही, हरेक दुकान, जहां पर ग्राहकों की संख्या जुटती थी, वहां पर भी चर्चाओं ने जोर पकड़ लिया और वह चर्चा था शहर में घटित हो रहे अपराध की। ऐसे में जनता कानून का विशेषज्ञ बन कर इस बात पर मंथन करने लगी थी कि” आगे क्या हो सकता हैं और पुलिस बाले को इस स्थिति में क्या करना चाहिये।

बस’ इस मामले में पुलिस क्या कर रही हैं?....यह प्रश्न जनता को चुभने सा लगा था। उनके मत से तो पुलिस को कब का अपराधी को पकड़ लेना चाहिये था, परंतु….अब तक वो अपने काम में नाकाम रही थी। जो कि” जनता को चुभ सी रही थी। उन्हें तो अब बस यही लगने लगा था, कहीं अपराधियों के अगले शिकार वे न बन जायें। उसपर विभिन्न संगठनों का सक्रिय हो जाना और तो आसामाजिक तत्व भी इस मामले में हाथ सेंकने के जुगाड़ में लग गये थे।

जिससे सत्ता पक्ष की भरपूर बदनामी हो सकें और वो अपनी राजनीतिक रोटियां सेंक सके। बस’ इसकी जानकारी गृह विभाग को हो गई और उन्होंने शीर्ष अधिकारियों को बुलाकर इस मामले में उचित कदम उठाने की तैयारी करने लगे। साथ ही, शहर में अर्ध-सैनिक बल के तैनाती को बढ़ा दिया गया। साथ ही, प्रशासन ने फ्लैग मार्च की भी शुरुआत कर दी। जिससे आसामाजिक तत्वों को मौका नहीं मिले और वे ऐसी हरकत नहीं करें, जिससे शहर की शांति भंग हो।

जिसके कारण दिन के ग्यारह बजते-बजते शहर की स्थिति तनाव पूर्ण हो चुका था। हां, अघोषित रुप से अगर कहा जाये, तो शहर में कार्फ्यु बाली स्थिति बन गई थी। इसका मतलब यह नहीं था, इस स्थिति से मीडिया बालों पर कोई प्रभाव पड़ा हो, उनके रिपोर्टिंग करने के टून में कोई भी बदलाव नहीं हुआ था। बस’ वो तो अपने काम में लगा हुआ था। अब उनके रिपोर्टिंग से शहर में आग लगती हैं, उनसे उनका क्या बिगड़ जाने बाला था, जो अपने काम से पीछे की ओर कदम हटाते।

इधर’ सलिल डाक्टर के पास से लौटकर आँफिस के काम को निपटा चुका था। वैसे भी, शहर के ताजा हालात से उसके धड़कन की गति बढ़ी हुई थी। इसलिये अब वो शांतनु देव के पास जा रहा था। किन्तु’ इस समय उसके साथ रोमील की जगह राम माधवन था, जो कि” सावधानी पूर्वक कार को ड्राइव कर रहा था। आगे की ओर जाती हुई सड़क, जिस पर कार सरपट दौड़ती जा रही थी, उसी रफ्तार से उसके विचार भी भागे जा रहे थे। जो ताजा बन चुके हालात से और भी उलझ गये थे।

हां, एक मानसिक दबाव, जो उसके मन-मस्तिष्क पर हावी हो चुका था। हां, उसे इस बात का अंदेशा तो पहले से ही था कि” इस तरह के मामलों में पब्लिक सहज ही बौखला उठती हैं, क्योंकि’ इस तरह के मामले सहज नहीं होते हैं। हां, समूह में नरसंहार की घटना होना, इसे रेरर अपराध की श्रेणी में रखा जाता हैं। इस पर खाज ये कि” लगातार ही तीन दिनों से इस नरसंहार को अंजाम दिया जा रहा था और अभी स्पष्ट नहीं था, कब तक इस तरह के वारदात को अंजाम दिया जाता रहेगा।

ऐसे में एक तरह का दबाव उसपर हावी होता जा रहा था और उसपर ही क्यों?...उसका पूरा विभाग ही इस मामले में उलझ चुका था। क्योंकि’ यह विदित नहीं था, अगला वारदात कौन से पुलिस स्टेशन के इलाके में घटित होगा?..ऐसे में सीनियर अधिकारियों द्वारा भी दबाव बनाया जा रहा था कि” किसी भी तरह से अपराधियों पर नकेल कसो।

परंतु….उसका हृदय इस बात को अच्छी तरह से जानता था, यह काम इतना आसान नहीं। क्योंकि’ उसके पास तो क्या, किसी के पास भी जादू की छड़ी नहीं हैं। जिसे घुमाने भर से अपराधी पकड़ में आ जाये और घटित हो रहे अपराध पर ब्रेक लग जाये। वो अच्छी तरह से जानता था, जब तक कोई क्लू नहीं मिलेगा, अपराधियों पर नकेल नहीं कसा जा सकता। लेकिन’ इस तरह विचारों में उलझ कर अपना दिमाग खराब करना भी तो ठीक नहीं, इसलिये अपने पर हावी हो रहे विचार को उसने झटक कर दूर फेंका और राम माधवन के चेहरे की ओर देखकर धीरे से गंभीर स्वर में बोला।

राम माधवन।

यश सर!....उसकी बात को सुनकर राम माधवन का ध्यान ड्राइव से भंग हुआ। फिर तो’ उसने सलिल की ओर देखा और तत्परता से जबाव दिया।

तुम्हें क्या लगता हैं?....इस मामले में मानव अंगों के तस्कर सक्रिय हैं, या फिर कोई दूसरा मामला हैं। प्रश्न पुछा सलिल ने, फिर अपनी निगाह राम माधवन के चेहरे पर टिका दी। इस उद्देश्य से कि” उसके मनोभाव को पढ़ सके। जबकि’ उसे इस तरह अपनी ओर देखते पाकर राम माधवन एक पल के लिये विचलित हुआ। उसने एक बार सलिल के चेहरे की ओर देखा, फिर गंभीर स्वर में बोला।

सर!....यह मामला किसी तस्कर का नहीं हो सकता। क्योंकि’ अगर यह काम अगर किसी तस्कर का होता, तो इस तरह से सिर्फ एक व्यक्तित्व से रिलेटेड आदमियों का शिकार नहीं किया जाता। इसका मतलब स्पष्ट हैं कि” इस मामले को प्रतिशोध लेने के लिये अंजाम दिया जा रहा हैं। कहा राम माधवन ने और फिर अपनी नजर ड्राइव पर जमा दी। जबकि’ उसके उत्तर को सुनकर सलिल पूरी तरह संतुष्ट हो चुका था।

हूं!...तभी तो उसने हुंकार भरी और आराम से शीट पर पीठ को टिका दिया।

धीरे-धीरे आगे की ओर बढ़ता हुआ समय और उसी रफ्तार से सड़क पर भागती हुई कार। अब सलिल कुछ हद तक निश्चिंत हो चुका था और अब सोच रहा था, जल्द से जल्द शांतनु देव के पास पहुंच जाये।

* * * *

शाम का समय होने लगा था।

सूर्य देव अब थक कर अस्ताचल की ओर जाने की तैयारी कर रहे थे। ऐसे में सड़क पर ट्रैफिक की संख्या भी बढ़ गई थी। सड़क पर भागता हुआ वाहनों का काफिला, सभी को अपने गंतव्य तक पहुंचने की जल्दी थी। इसी वाहनों के बीच एक लाल रंग की लेंम्बोर्गिनी कार भी फूल रफ्तार से भागी जा रही थी। जिसे ड्राइव करने बाला युवक भानु गुरेज था, मंत्री जनार्दन गुरेज का लड़का। जो अभी ललित परासर के साथ कार में शहर घूमने के लिये निकला था। साथ ही, उनके अंदर जो विलासिता का जो गुण था, उसे भी तो पूरा करना था। तभी तो’ दोनों कार में निकले थे, कहीं कोई मिल जाये, तो शाम रंगीन करने के लिये।

दोनों युवक, जो कि” स्मार्ट थे। उनका व्यक्तित्व सुंदर और आकर्षक था। बड़ी-बड़ी आँखें और ऊँचा ललाट, उसपर तीखे नैन-नक्श। साथ ही गोल चेहरा और लंबी गर्दन, उसपर गौर वर्ण। वे दोनों इतने सुंदर थे कि” कोई भी उनकी ओर आकर्षित हो सकता था। परंतु…उन दोनों का आचरण बहुत गंदा था, या यूं कहा जाये, तो वे जिस भी युवती को एक बार गहरी नजरों से देख लेते थे, उसे हासिल कर के रहते थे।

अब इतनी ही बात होती, तो कोई बात नहीं, परंतु…वे हासिल होने बाली लड़कियों में से अधिकांश को मौत के घाट उतार देते थे। लेकिन’ बाप के रसूख के कारण अब तक उन दोनों का किसी ने भी कुछ बिगाड़ नहीं पाया था। शायद यही कारण भी था कि” भानु गुरेज का मनोबल बढ़ा हुआ था। उसपर अलग से पिता के द्वारा मिलने बाला सह, उनके अंदर मक्कारी की लहरें उठती रहती थी।

इसपर बवाल ये कि” भानु के सारे दोस्त उसी प्रकृति के थे और हमेशा ही उसको जुर्म करने के लिये उकसाते रहते थे। तभी तो’ वह ललित परासर के साथ शिकार की तलाश में निकला था। फूल रफ्तार से भागती हुई कार और ड्राइव में तल्लीन भानु गुरेज। लेकिन’ उसकी शातिर आँखें सड़क के दोनों किनारों को भी देखती जा रही थी। काश, कोई हसीन बाला उसकी नजर में चढ़ जाये, जिसके साथ वह अपनी शाम रंगीन कर सकें और अपने दोस्तों को भी जन्नत की सैर करवा सके।

वैसे तो’ भानु को उसके पिता ने सतेज कर दिया था और उसे सख्त हिदायत दी थी कि” कुछ दिनों के लिये शिकार पर निकलना छोड़ दो, क्योंकि’ तुम्हारी जान को खतरा हैं। परंतु….उसका चंचल मन इन हिदायतों को माने, तब न। वह ऐसा धूर्त और मक्कार बन चुका था कि” इन बातों को समझना भी अब उसके बस में नहीं रहा था। हां, यह अलग बात थी कि” उसे मौत से बहुत भय लगता था। परंतु….उसके मक्कार दोस्त, जो उसके संग मुफ्त की मौज- मस्ती करते थे। वे भला कब चाहते कि” भानु कुछ दिनों के लिये भी सादगी भरा जीवन गुजारे। ऐसे में कहीं उसके अंदर सात्विक गुणों का विकास हो गया तो?

यह प्रश्न बहुत ही गंभीर था और इस कारण से ही उसके दोस्त नहीं चाहते थे, वह शिकार करना छोड़ दे। वैसे भी, शेर के मुख में अगर मानव का खून लग जाता है, तो वह आदम खोर बन जाता हैं। बस’ यही स्थिति थी उन लोगों की। तभी तो’ भानु गुरेज को उसके दोस्त ने चढ़ाया-बढ़ाया और वो ललित परासर के साथ निकल पड़ा शिकार पर, जो कि” उसकी रोज की आदत थी।

फिर तो’ उसकी नजर बस शिकार के तलाश में ही भटक रही थी। बस’ कोई ऐसा शिकार मिले, जिसपर जाकर नजर स्थिर हो जाये। जिसके सानीध्य को पाकर उसका और उसके दोस्तों का मन प्रमुदित हो जाये। जिसके साथ बर्बरता के तमाम सीमा को पार करने में अनोखे सुख की अनुभूति हो। जिसको भोग लेने के बाद कम से कम आज की भूख का समन हो जाये।

वैसे’ उसके अंतर्मन में द्वंद्व भी चल रहा था। हां, भानु गुरेज अपने पिता के द्वारा दिए गये हिदायत को भी तो नहीं भूल पा रहा था। उसके हृदय में आभास सा हो रहा था कि” कहीं आज का दिन उसके लिये अंतिम दिन ना हो जाये। क्योंकि’ वो भलीभांति जानता था, उसके पिता बहुत ही अनुभवी थे। भले ही वो क्रूर और मक्कार थे, लेकिन’ जीवन का उनको अच्छा-खासा अनुभव था। ऐसे में उनके द्वारा कही गई बातें भी तो गलत नहीं हो सकती थी, जो उन्होंने सुबह-सुबह ही आकर उसको कहा था।

बस’ एक खटका, जो उसके मन-मस्तिष्क पर हावी हो चुका था। वैसे भी, जिनका आचरण सही नहीं होता, उनको मौत का भय कुछ अधिक ही रहता हैं। उनके दिमाग में हमेशा ही इस बात पर संघर्ष होता रहता हैं कि” न जाने किधर से कौन सा दुश्मन आ जाये और उसकी जान ले-ले। उसमें भी उसके पिता ने स्पष्ट ही कहा था, अभी अगर कोई गलती करोगे, तो मारे जाओगे।

लेकिन’ वो अपने विलासी मन को किस तरह से समझाये, जो हमेशा ही उग्र बना रहता था, उसे उकसाता रहता था। उसपर उसके दोस्त, जो हमेशा ही उसको गलत करने के लिये उत्प्रेरित करते रहते थे। उफ!....जिंदगी भी कभी-कभी इतनी उलझ जाती हैं कि” खुद को संभालना मुश्किल होता हैं। उसके मुख से अचानक ही निकल पड़ा, फिर उसने ललित परासर की ओर देखा, फिर आगे देखने लगा।

वैसे भी उसकी कार अब हाईवे पर आ गई थी और सरपट दौड़ती जा रही थी। बस, उसे उम्मीद था, यहां पर कम से कम कोई शिकार तो जरूर ही नजर आ जायेगा। क्योंकि’ जब घर से निकला हैं, तो बिना शिकार किए लौटना उसके शान के खिलाफ था। जबकि’ ललित परासर, जो बहुत देर से मोबाइल में उलझा हुआ था, उसने अचानक ही भानु गुरेज के चेहरे को देखा और बोल पड़ा।

यार भानु!....देख रहा हूं, तुम कब से उलझे हुए हो और विचारों के जाले बना रहे हो। कहा उसने और एक पल के लिये रुका, फिर भानु गुरेज के आँखों में देखने लगा। जहां पर उसे भय का आवरण दिखा, तभी तो तनिक तेज स्वर में आगे बोला।

लगता हैं, जैसे तुम्हारा शरीर भले ही ड्राइव कर रहा हैं, लेकिन मन तुम्हारा कहीं और विचरण कर रहा हैं। हां, तुम मन से इस समय कार में मौजूद नहीं हो। अब तुम बताओ कि” आखिर क्या बात हैं, जो तुम इतने उलझे हुए हो। ताकि’ तुम्हारे मन की शंकाओं को दूर किया जा सके।

तुम भी न ललित!....जानकर भी अंजान बनने की कोशिश कर रहे हो। जबकि’ तुम अच्छी तरह से जानते हो, सुबह पापा आए थे और उन्होंने घर से नहीं निकलने के लिये हिदायत दिया था। बस’ यार उसी बात को लेकर उलझा हुआ हूं और भय भी महसूस कर रहा हूं।

तुम भी न यार!....खामखा ही टेंशन ले रहे हो। अब अगर ऐसी बात होती भी हैं, तो हम लोग चार हैं, उसे आसानी नियंत्रण में ले लेंगे। भानु गुरेज की बातें सुनकर बोला ललित परासर ने, लेकिन आगे एक भी शब्द नहीं बोल सका। क्योंकि’ उसकी नजर हाईवे किनारे खड़ी युवती पर चली गई थी। उस सुंदर नवयौवना पर, जिसके नख से सिख तक रुप- लावण्य का प्रवाह हो रहा था।

उस सुंदर युवती ने काली जिंस और ब्लू टी-शर्ट पहना हुआ था, जिसमें वो और भी कातिल लग रही थी। उसके कातिल नैन-नक्श और घने काले बाल, साथ ही रसीले अधर, जो किसी को भी अभिसार करने के लिये आमंत्रित कर सकता था। उसकी रुप-लावण्यता ऐसी थी कि” एक बार उसे कोई देख ले, तो खुद पक नियंत्रण नहीं रख सकता था, किसी भी हालत में।

ऐसे में सहज ही भानु गुरेज के पांव ब्रेक पर कसते चले गये। फिर तो’ उसने कार को उस युवती के पास ले जाकर खड़ा कर दिया और काम लोलुप नजरों से अपलक ही उस युवती को देखने लगा। उधर’ युवती ने जैसे ही देखा, कार उसके पास रुकी हैं, वह प्रसन्न होकर उनकी ओर लपकी।

* * * *

काम तो कब का निपटा चुका था सलिल ने और अब मौन बैठा हुआ था। बस’ इस इंतजार में कि” कब शाम के पांच बजता हैं। क्योंकि’ उसको हाईवे के पेट्रोलिंग के लिये निकलना था और इस कारण से ही उसके चेहरे पर उकताहट के भाव थे। जिसे सामने बैठा हुआ रोमील अच्छी तरह से समझ रहा था, लेकिन बोलना नहीं चाहता। हां, खामखा ही बाँस के डाँट को सुनने की उसकी इच्छा फिलहाल तो बिल्कुल भी नहीं था। वैसे भी, जानता था, बाँस जब उलझे होते हैं, किसी की भी दखलंदाजी को पसंद नहीं करते।

ठीक ऐसा ही सलिल का स्वभाव भी था। जब वो उलझन में हो, किसी के द्वारा हस्तक्षेप किया जाना उसे रास नहीं आता था और इस समय वो विचार में ही तो उलझा हुआ था। आने बाले पल के तमाम आशंकाओं को लेकर, उसके मन में गहन मंथन चल रहा था। हां, आने बाला वो पल, जिसके बारे में वो कंफर्म नहीं था, उसे जानकारी नहीं थी, आने बाला पल उसके लिये किस तरह के संदेश को लेकर आता हैं। बस’ एक अंदाजा और वो प्रयास कर लेना चाहता था। अब सफलता मिलती हैं या नहीं, इसकी गारंटी कौन देता?

वैसे, एक तुक्का था और उसी के आधार पर हाईवे पर जाना चाहता था। अब अपराधी पकड़े जाएंगे या नहीं, यह तो समय ही निर्धारित कर सकता था और अगर आज भी अपराधी नहीं पकड़े जाते, उसके बाद की कल्पना भी तो उसके आँखों में सजीव हो चुका था। जो कि” काफी भयावह और डराने बाला था। जानता था, अगर आज भी अपराधी अगर नहीं पकड़े जाते, तो उसका मतलब एक वारदात और भी घटित होगा। जो शहर के शांत हृदय में उथल-पूथल मचा देगा।

बस’ यही कारण था, वो चाहता था, किसी भी स्थिति में अपराधी को पकड़ लिया जाये। लेकिन कैसे?...यही तो प्रश्न था, जिसका जबाव फिलहाल तो वो नहीं जानता था। नहीं तो’ अब तक अपराधी को पकड़ लिया गया होता। परंतु ….हल भी तो उसको ही निकालना था, चाहे जिस तरह से हो, अपराधियों पर शिकंजा कसना था, नहीं तो, फिर पुलिस विभाग को जलालत भरे हालात से गुजरना पड़ता। शायद इसलिये ही वो अपने दिमाग को कसरत करवा रहा था, ताकि’ कोई रास्ता तो दिखे।

फिर तो’ सीनियर अधिकारियों का दबाव, जो दिमाग को हिलाने के लिये काफी था। वैसे भी, सीनियर का तो काम ही होता हैं दबाव बनाये रखना। अब जो फिल्ड में काम करता हैं, उसे ही पता होता हैं कि” किन-किन हालातों का सामना करना पड़ता हैं। हर पल आशंकाओं के बीच गोते खाते हुए अपने काम को अंजाम देना होता हैं। लेकिन’ इन तकलीफों से साहब को कोई लेना-देना नहीं होता, उन्हें तो किसी भी हालत में काम पूरा मिलना चाहिये। बस’ इसी कारण से उसके दिमाग पर एक तरह का दबाव बन चुका था।

परंतु….समझ नहीं आ रहा था, इस दबाव से बाहर किस तरह से निकले। बस’ एक उधेड़बुन और उलझन, लेकिन रास्ता नजर नहीं आ रहा था। ऐसे में बस एक ही आश था, हाईवे पर पेट्रोलिंग किया जाये। क्योंकि’ रोमील और राम माधवन ने जो तथ्य दिया था, उसमें दम था। बस’ एक ही उम्मीद और अगर उसका यह प्रयास चूक जाता, तो फिर नए सिरे से कार्य करने की कोशिश।

सर!....आप उलझे हुए हैं, लगता हैं कोई बड़ी बात हैं?...उसे इस तरह कब से उलझा हुआ देखकर रोमील से नहीं रहा गया। तब वो सलिल को संबोधित करके बोल पड़ा। इसके बाद अपनी निगाह उसके चेहरे पर टिका दी, उसके चेहरे के भावों को पढ़ने के लिये। परंतु….उसको इसमें सफलता नहीं मिली, जबकि’ उसके टोकने से सलिल की तंद्रा जरूर भंग हो गई। फिर उसने रोमील की ओर देखा और हुंकार भरा।

हूं!....तुमने कुछ बोला क्या?...बोला उसने और फिर कलाईं घड़ी पर नजर डाली, पांच बजने में दस मिनट बाकी था। फिर क्या था, वह उठ खड़ा हुआ और तेजी से आँफिस के बाहर निकल गया। जिसके कारण रोमील भी तेजी से उठ खड़ा हुआ और उसके पीछे लपका। फिर तो’ दोनों पांच मिनट बाद ही कार में बैठे हुए थे और अब रोमील कार को श्टार्ट कर रहा था, जबकि’ सलिल मौन बैठा हुआ था।

बस’ एक पल और कार श्टार्ट होकर कैंपस से बाहर निकली और सड़क पर आते ही सरपट दौड़ने लगी। इसके साथ ही सलिल के दिमाग में विचार भी दौड़ने लगा, वह भी द्रुत गति से। जिसका कोई ओर-छोड़ नहीं था, बस विचार थे, जो दिमाग में दौड़ लगा रहे थे। इधर रोमील असमंजस में था, क्योंकि’ कार तो निकाल लाया था, किन्तु’ उसे मालूम नहीं था कि” जाना किधर हैं?.....तभी तो’ जब उससे नहीं रहा गया, सलिल के चेहरे की ओर देखा और गंभीर स्वर में बोल पड़ा।

सर!....कार को किधर लेकर चलना हैं?

तुम भी न रोमील!....गजबे सवाल करते हो। अब, तुमने और राम माधवन ने ही तो कहा था, अपराधी का लिंक हाईवे से जुड़ा हुआ हैं, फिर प्रश्न पुछ रहे हो। अब’ बस कार को दौड़ाते रहो और हाईवे पर लेकर चलो। बस’ आज हम लोग हाईवे पर ही पेट्रोलिंग करेंगे। रोमील के प्रश्न पुछते ही सलिल तेज स्वर में बोला। इसके बाद’ उसने अपनी नजर उसके चेहरे पर टिका दी।

परंतु….सर!...इस तरह से हम लोग पुलिस की वर्दी में हाईवे पर पेट्रोलिंग करेंगे, तो सफलता मिलेगी?....आपको नहीं लगता, हम लोग अगर ऐसा करते हैं, तो अपराधी चौकन्ना हो जायेंगे। कहीं ऐसा नहीं हो, हम लोग चले हैं अपराधी को पकड़ने के लिये और खुद ही उलझकर न रह जाये। वैसे’ मैंने अगर ज्यादा बोल दिया हो, तो माफी चाहता हूं सर!.....उसकी बात अभी खतम ही हुई थी कि” रोमील बोल पड़ा। जबकि’ उसकी बातों को सुनने के बाद सलिल के होंठों पर सहज ही मुस्कान थिरक उठा।

चिंता करने की कोई जरूरत नहीं हैं रोमील!....जानता हूं इस बात को और इसलिये इसकी तैयारी पहले ही कर चुका हूं। अब तो तुम बस कार को जल्द से जल्द हाईवे के करीब ले लो। वहीं पर शांतनु देव मौजूद हैं अपनी कार लेकर। बस’ हम लोग वहीं पर कपड़ा चेंज करेंगे, उसके बाद आगे की कार्रवाई को अंजाम देंगे। जिससे अपराधी को बच निकलने का मौका ही नहीं मिले। कहा उसने और फिर रोमील के चेहरे की ओर देख कर मुस्कराने लगा, मानो कह रहा हो, देखो’ मैं कितना जिनियस हूं।

जबकि’ उसके इस मुस्कान को देखकर रोमील बल खाकर रह गया। वैसे तो’ उसकी इच्छा हुई कि” जबाव दें, परंतु…हिम्मत नहीं जुटा सका। वैसे भी हाईवे आने बाला ही था, इसलिये उसने अपनी नजर को ड्राइव पर टिकाया। उधर’ सूर्य देव अस्ताचल को जाने की तैयारी में लग चुके थे, जिसके कारण सड़क पर ट्रैफिक की संख्या बढ़ गई थी। ऐसे में वो कोई गलती नहीं करना चाहता था, जिससे नुकसान उठाना पड़े।

धीरे-धीरे आगे की ओर बढ़ता हुआ समय और अचानक ही रोमील को शांतनु देव की कार दिखी। बस’ उसके पांव ब्रेक पर कसते चले गये और कार झटके लेकर रुक गई। इसके बाद दोनों को मुश्किल से पांच मिनट लगा कपड़े चेंज करने में। इस दरमियान शांतनु देव की नजर उन दोनों पर ही टिकी रही। इसके बाद फिर से एक नए सफर का शुरुआत हुआ, किन्तु’ अभी भी ड्राइविंग रोमील के ही हाथ में थी। जबकि’ सलिल और शांतनु देव बीच बाली शीट पर बैठे हुए थे, गहरे विचारों में खोए हुए।

धीरे-धीरे आगे की ओर बढ़ता हुआ समय और तीनों के मन में एक ही विचार कि”:आगे क्या होगा?.....क्योंकि’ अभी कुछ भी स्पष्ट नहीं था। ऐसे में यह कहना कि” सफलता मिल ही जायेगा, भ्रम जैसा था। किन्तु’ प्रयास तो करना ही था, अब भले ही परिणाम मिले, या नहीं। वैसे भी, इस केस में प्रशासन इस तरह से उलझ चुका था कि” योजना बनाकर काम किया जाये, इतना समय ही नहीं बचा था। ऐसे में उनके हृदय में बस एक ही उद्देश्य कि” किसी भी तरह से अपराधी पर नकेल कसा जाये।

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क्रमश...

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