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तरूण वैभव टेक्सी कार में बैठ चुका था और अब सुशीत काले का इंतजार कर रहा था। हां, वो हाईवे पर पेट्रोलिंग के लिये निकलने की तैयारी कर चुका था। क्योंकि’ सुशीत ने ही उसको सलाह दिया था कि” हाईवे की पेट्रोलिंग की जाये। फिर तो’ उसके द्वारा दिया गया दलील अकाट्य था। हां, उसने ही तो बतलाया था, वारदात को अंजाम देने बाली युवतियां हाईवे पर ही आकर मारी जाती हैं। इसका मतलब साफ हैं कि” शहर में घटित हो रहे वारदात से हाईवे का कोई न कोई संबंध तो जरूर हैं।

और बस’ उसके द्वारा कही गई बातें उसके दिमाग में बैठ गई थी। फिर तो’ घंटों उसने इस विषय पर मंथन किया था और इस निष्कर्ष पर पहुंचा था कि” इस पर जरूर अमल कर के देख लिया जाये। वैसे तो’ दूसरा कोई रास्ता भी तो नहीं बचा हुआ था। ऐसे में बस उसको यही सुझा था, सुशीत के बातों को अमल कर के देखा जाये। अब भले परिणाम शून्य ही निकले। क्योंकि’ अब तक दावे के साथ कुछ कहा नहीं जा सकता था कि” कौन हैं जो पर्दे के पीछे से खून की होली खेल रहा हैं?... वह कौन शातिर माईंड हैं, जो शहर को लाशों से पाट रहा हैं और उनके अंगों को निकाल कर व्यापार कर रहा हैं?

बस’ एक अनुमान और उसके सहारे ही उसको छानबीन करना था, कोशिश करना था अपराधी तक पहुंचने की। क्योंकि’ अपराधियों ने जिस तरह से लाश का अंबार लगा दिया था बीते तीन दिनों में, उसने शहर में भूचाल सा ला दिया था। उसपर आफत ये कि” मीडिया बालों के उलझे हुए सवाल और उनका प्रशासन पर कीचड़ उछालना, सच पुलिस विभाग की अजीब सी स्थिति होकर रह गई थी। ऐसे में अब भी अगर अपराधियों पर नकेल नहीं कसा गया, तो फिर आगे की स्थिति के बारे में कल्पना करना भी दुष्कर था। बस’ इतनी सी बात ही उसके रूह को कंपित करने के लिये काफी था।

तभी तो उसने भाड़े पर टेक्सी कार को बुलवा लिया था। जानता था, अपराधी बहुत ही चालाक हैं। ऐसे में उन्हें भनक भी लगी कि” पुलिस उसको ढ़ूंढ़ते- ढ़ूंढ़ते हाईवे पर पहुंच चुकी हैं, फिर तो हाथ लगने से रहे। ऐसे में वो कोई मूर्खता कर के अपराधियों को सचेत नहीं करना चाहता था। तभी तो’ उसने भाड़े पर टैक्सी बुलाया था और खुद सादे लिबास में सजा-धजा अंदर आकर बैठ गया था और अब बेचैनी से सुशीत काले का ही इंतजार कर रहा था कि” कब वह बाहर निकले।

एकटक पुलिस स्टेशन के गेट पर नजर टिकाये हुए तरूण वैभव, इस आशा के साथ गेट को देख रहा था कि” सुशीत काले अब निकल रहा होगा। किन्तु’ सुशीत काले तो अंदर से निकलने का नाम ही नहीं ले रहा था। लगता था, जैसे अंदर किसी महत्वपूर्ण काम में उलझा हुआ हो। बस’ यही बात और उसके हृदय में आक्रोश की चिंगारी सुलगने लगी थी। तभी तो बार-बार नजर नीची करके कलाईं घड़ी को भी देख लेता था। बढ़ते हुए समय के साथ उसके चेहरे पर बेचैनी का बढ़ता हुआ ग्राफ।

वैसे भी, शाम के पांच कब के बज चुके थे और अब समय आगे की ओर ही जा रहा था। ऐसे में अचानक ही उसके ऊपर उकताहट हावी होने लगी और फिर उसने फैसला कर लिया कि” कार से बाहर निकल कर अंदर जाकर देखता हूं कि” मामला क्या हैं?....बस फैसला किया और जैसे ही कार के दरवाजे को खोलने के लिये हाथ बढ़ाया, उसकी नजर गेट से निकल रहे सुशीत काले पर गई। फिर क्या था, एक मिनट में ही उसके चेहरे पर राहत का भाव उभड़ आया। लेकिन’ इंतजार जो करना पड़ा था, इसलिये चिढ़ा तो हुआ ही था, ऐसे में सुशीत काले जैसे ही कार के पास पहुंचा, वो तेज आवाज में बोला।

यार सुशीत!....तुम भी न, गजबे करते हो। जब तुम्हें मालूम था, हम लोग पेट्रोलिंग पर निकलने बाले हैं, जानबूझकर अंदर रुके रहे। कहीं यह इरादा तो नहीं बनाये हो कि” हम लोग लेट पहुंचे और अपराधी बचकर निकल जाये। कहा उसने फिर देखा उसकी ओर। जबकि’ उसकी बातों को सुनकर सुशीत काले एक पल के लिये सकपकाया, जान चुका था, बाँस नाराज हो चुका हैं। फिर उसने गेट खोला और अंदर बैठ गया, इसके बाद तरूण वैभव के चेहरे की ओर देख कर धीरे से बोला।

सर!....आप भी न, खामखा ही नाराज हो रहे हो। जबकि’ आपने ही तो कहा था, सिविल कपड़े में चलना हैं। बस’ तैयार हो रहा था और इसी में थोड़ा सा वक्त लग गया।

तुम खामखा की बात करते हो और थोड़ा वक्त कहते हो। अरे’ तुमने तो पुलिस स्टेशन से बाहर निकलने में बीस मिनट की देरी की हैं। अब भला, इतनी देर में कौन तैयार होता हैं?....इसका मतलब तो यही हुआ न कि” तुमने जानबूझकर देरी की। अथवा तो’ तुम लेडिज से भी गये-गुजरे हो, इसलिये तुम्हें तैयार होने के लिये काफी समय चाहिये होता हैं। उसकी बातों को सुनकर तरूण वैभव चिढ़कर बोला, फिर उसने अपनी नजर सुशीत काले के चेहरे पर टिका दी।

साँरी सर!...अगर आप हर्ट हो गये हैं, तो प्लीज माफी चाहता हूं। वैसे’ सच कहूं, तो मेरा कतई इरादा नहीं था कि” देरी हो और हमारी योजना को कोई नुकसान पहुंचे। बस’ समझिए कि” बिना कारण के ही लेट हो गया। बात खतम करने के उद्देश्य से बोला सुशीत काले। क्योंकि’ बाँस के नाराजगी को वह अच्छी तरह से भांप चुका था। बस’ नहीं चाहता था, खामखा ही डाँट सुनने को मिले।

इधर’ उसके अंदर बैठते ही ड्राइवर, जो कि” नेपाली था, उसने इंजन श्टार्ट किया और आगे बढ़ा दी। फिर तो’ पुलिस स्टेशन के कंपाउंड से निकलते ही कार ने रफ्तार पकड़ लिया और सड़कों पर सरपट दौड़ने लगी। साथ ही तरूण वैभव के दिमाग में विचार के घोड़े भी दौड़ने लगे, अति तीव्र गति से।

वैसे भी, जिस तरह के स्थिति का निर्माण हो चुका था, ऐसे में विचारों का जाल तो बनना स्वाभाविक ही था। क्योंकि’ अपने तीन वर्ष के कार्यकाल में उसका इस तरह के किसी भी स्थिति से सामना नहीं हुआ था। बस’ यही कारण था, उसके मस्तिष्क पर विचारों का तूफान हावी था। एक अंजाना सा भय कि” समय रहते अगर अपराधी को नियंत्रित नहीं किया गया, उसके बाद क्या होगा?....शायद कुछ हद तक इस प्रश्न के परिणाम से वो वाकिफ था, तभी तो भयभीत भी था।

लेकिन’ अचानक ही इस केस में सलिल के एंट्री होने से उसको राहत की अनुभूति हुई थी। वो सलिल के बारे में अच्छी तरह से जानता था और यह भी जानता था कि” ऐसे उलझे हुए मामले को सुलझाने में उसको महारत हासिल हैं। बस एक आशा और विश्वास, साथ ही खुद भी अनवरत प्रयास करने का मूड बना चुका था वो। क्योंकि’ उसके पास भी तो सुलझा हुआ असीस्टेंट हैं, जिसका दिमाग भी कंप्यूटर की तरह चलता हैं।

हां, वो सुशीत काले पर आँख मुंद कर विश्वास करता था और सभी जानते थे कि” सुशीत उसका चहेता हैं। बस’ मन के भाव और तरूण वैभव ने सुशीत काले के चेहरे को देखा, फिर आगे देखने लगा। वैसे भी’ हाईवे पर टैक्सी आ चुकी थी, ऐसे में चौकन्नी निगाहों से चारों तरफ देखना जरूरी था। फिर तो’ सूर्य देव अस्ताचल में पहुंचने ही बाले थे, ऐसे में वातावरण बिल्कुल ही शांत हो चुका था। साथ ही हाईवे पर ट्रैफिक की संख्या भी बढ़ चुकी थी, जो रफ्तार के साथ इधर-उधर आ जा रही थी।

धीरे-धीरे आगे की ओर बढ़ता हुआ समय और उसकी नजर ने सलिल को देख लिया। हां, सलिल शांतनु देव की कार में सामने से आ रहा था, तभी तरूण वैभव की नजर उसपर गई और एक पल में ही वो हर्षित हो गया। साथ ही उसने देख लिया था, सलिल एवं रोमील सादे लिबास में थे। तो क्या वे लोग भी पेट्रोलिंग के लिये हाईवे पर आए हुए हैं?....यह प्रश्न भी उसके दिमाग में कौंध गया।

* * * *

प्रयाची गेस्ट हाउस, नाम के अनुरूप ही सुंदर और आधुनिक ढंग से सजाई गई। जिसके अंदर सुख-सुविधा की तमाम वस्तुएँ मौजूद थी। शाम का अंधेरा ढ़ल चुका था, जिसके कारण शहर का पूरा ही आवरण कृत्रिम रोशनी से नहा उठा था। इसके साथ ही यह गेस्ट हाउस भी दुधिया रोशनी से जगमग करने लगी थी। हां, यह गेस्ट हाउस जनार्दन गुरेज की संपत्ति थी, जिसे उन्होंने अपने बेटे को दे रखा था और यहां पर अधिकांशतः भानु गुरेज अपने दोस्तों के साथ मौज-मस्ती करने के लिये ही आता था। वरना तो यह गेस्ट हाउस अमूमन ही वीरान रहती थी और अभी भी गेस्ट हाउस में सन्नाटा पसरा हुआ था।

यमुना बिहार एरिया में पड़ने बाला यह गेस्ट हाउस ज्यादातर समय बंद ही रहता था। हां कुछेक चिड़ियों का झुंड इस बिल्डिंग के अंदर-बाहर करती रहती थी। लेकिन’ इस समय वह भी बंद हो चुका था, क्योंकि’ शाम के सात बज चुके थे और इस समय तक तो वायुमंडल पर अंधेरे का पूरी तरह से आधिपत्य हो जाता हैं। ऐसे में इस बिल्डिंग का सन्नाटा कुछ हद तक बढ़ गया था। लेकिन’ इस तरह की स्थिति ज्यादा देर तक नहीं रही, क्योंकि’ जैसे ही घड़ी की सुई ने शाम के सात बजने की घोषणा की, गेस्ट हाउस के गेट पर भानु गुरेज लेंम्बोर्गिनी कार को ड्राइव करते हुए पहुंचा और जैसे ही कार गेस्ट हाउस के गेट पर पहुंची, उसने तेजी से ब्रेक लगाये।

इसके साथ ही आगे का गेट खोलकर ललित परासर बाहर निकला और उसने गेस्ट हाउस के मुख्य द्वार को खोल दिया। फिर तो’ कार झटके लेकर हिली और तेजी से अंदर प्रवेश कर गई। इसके साथ ही पोर्च में जाकर खड़ी हो गई। तब तक’ ललित परासर भी गेट को खुला छोड़कर ही कार के पास पहुंच चुका था। इधर’ कार के खड़ी होते ही उसमें से भानु गुरेज निकला, उसके साथ ही वह युवती भी बाहर निकल आई, जो उसको हाईवे पर मिली थी। फिर क्या था, तीनों बिल्डिंग के अंदर प्रवेश कर गये और हाँल में पहुंचे।

जहां कदम रखते ही युवती की आँखें आश्चर्य से फैल गई, क्योंकि’ उसने अपने जीवन में इतने ऐश्वर्य से समृद्ध किसी बिल्डिंग को नहीं देखा था। हां, दुधिया रोशनी में नहाया हुआ हाँल, जहां सुविधा की तमाम वस्तुएँ मौजूद थी। हाश!...जीवन का ऐसा भी रंग होता होगा। युवती ने मन ही मन सोचा, फिर सोफे पर बैठ गई, जबकि’ भानु गुरेज उसके चेहरे की ओर देखा और प्यार से बोला।

माय स्वीट हार्ट!...कुछ लेना पसंद करोगी?....जैसे कि” स्काँच या फिर वियर।

कुछ भी चलेगा, जो तुम पिला दोगे। उसकी बातें सुनते ही युवती मादक अंदाज में बोली, फिर उसने अंगड़ाई ली और इतना ही काफी था। एक पल में ही भानु गुरेज और ललित परासर के हौसले पस्त हो गये। इसके साथ ही उन दोनों की भाव-भंगिमा बदल गई और लगा जैसे दोनों उस युवती को कच्चा ही चबा जाने का इरादा बना चुके हो। किन्तु’ नहीं, दूसरे ही पल उन्होंने इरादा बदल लिया हो जैसे।

तभी तो’ ललित परासर उस युवती के करीब सटकर बैठकर उसके कोमल अंगों पर अपने हाथ फेरने लगा, जबकि’ भानु गुरेज किचन की ओर चला गया। इधर’ ललित परासर युवती के मादक अंगों को सहला कर उसमें कामना की चिंगारी को भड़काना चाहता था। क्योंकि’ इस काम में तो उसे महारत हासिल था, क्योंकि’ यह तो उसका नित्य का ही काम था।

उसे मालूम था, कामनाओं के समंदर में अगर गहरे तक हिचकोले खाने हो, तो युवती के शरीर को उत्तेजना की भट्ठी में पूरी तरह तपा दो, फिर देखो मजा। बस’ वह अपने उसी काम में जुटा हुआ था, तभी हाँल के गेट से दो और युवक ने प्रवेश किया।

अतुल राजदान और राकेश मंटुक, दोनों ही उसकी तरह स्मार्ट और समान उम्र के थे। सुंदर व्यक्तित्व, लेकिन आँखों में वहशी पन और ऐसे में हाँल में कदम रखते ही उन दोनों की नजर जैसे ही युवती पर गई, उनके चाल में तेजी आ गई और दोनों आगे बढ़े। इधर’ पदचाप की आवाज सुनकर ललित परासर की एकाग्रता टूट गई। फिर तो उसने नजर उठाकर गेट की ओर देखा और जैसे ही उसकी नजर उन दोनों युवकों पर गई, उसके होंठों पर अर्थपूर्ण मुस्कान उभड़ आया।

तब तक दोनों युवक भी करीब पहुंच चुके थे और युवती से सटकर बैठ गये थे। इधर’ भानु गुरेज भी किचन से पीने का सामान लेकर लौट आया था और अब करीब ही सोफे पर बैठकर पैग बनाने में जुट गया था। धीरे-धीरे आगे की ओर बढ़ता हुआ समय और उन चारों की काम लोलुप नजरें, जो युवती के ही अंगों पर टिकी हुई थी। ऐसे में युवती आने बाले समय का मतलब समझ चुकी थी और शायद अपने-आप को तैयार भी कर रही थी। तभी जाम तैयार हो गया, जिसे सभी ने उठाया और आपस में टकराकर एक स्वर में बोले।

चियर्स!

इसके बाद उनके बीच पीने-पिलाने का दौर शुरु हुआ, जो करीब आधे घंटे तक चला। तब तक पांचों ही नशा में डूब चुके थे। तभी तो’ भानु के साथ मिलकर तीनों युवक पीने-पिलाने को भूलकर उस युवती के शरीर से खेलने लगे। धीरे-धीरे आगे की ओर बढ़ता हुआ समय और उन चारों की कामुक हरकतें। फिर तो’ उन्होंने युवती को भी पूर्ण नि:वस्त्र कर दिया और खुद भी आदम अवस्था में पहुँच गये।

फिर तो’ मिनट भी नहीं लगे और उस युवती के होंठों से निकलता हुआ मादक चीत्कार चीख में बदल गया। हां, वो युवती उन चार दानवों के बीच फंस कर पीड़ा से छटपटाने लगी थी और चीख-पुकार करने लगी थी, परंतु….वहां उनकी चीख सुनता भी कौन?...वे चारों जो इस समय काम वासना में अंधे हो चुके थे, उसकी दर्द भरी चीख सुनकर और भी उत्तेजित हो रहे थे और दुगुनी क्रूरता के साथ उसके शरीर को नोच-खसोट रहे थे, इस तरह से कि” अगर यहां की स्थिति को देखकर मानवता तो छोड़ो, दानवता भी शरमा जाये।

हां, वे चारों दानव ही तो थे और उनके इस तरह के आचरण से अब तक हजारों ही लड़कियां ऐसे ही उनके हवस की चक्की में पीश कर दम तोड़ चुकी थी। किन्तु’ शायद आज नियति को कुछ और ही मंजूर था। तभी तो’ वे चारों जब काम क्रीड़ा में डुबे थे, दो नकाब पोस ने हाँल में कदम रखा। दोनों के हाथों में कटार चमक रही थी और उनकी चमकती हुई नजर उन युवकों पर ही टिकी हुई थी।

तभी तो’ जैसे ही उन चारों के करीब पहुंचे, बिजली की फुर्ती से उन चारों युवकों पर टूट पड़े। ऐसे में उन चारों युवकों को संभलने का मौका नहीं मिला। बस’ पलक झपकते ही चारों बुरी तरह जख्मी होकर फर्श पर फैल गये और अब उन चारों युवकों के मुख से डकार निकलने लगी, जबकि’ वह युवती झट उठी और सहम कर कोने में जाकर दुबक कर बैठ गई।

इधर’ उन दोनों नकाब पोसो ने पल भर की भी देरी नहीं की और उन चारों के करीब बैठ कर ही उनके शरीर पर खंजर से वार करने लगे। बीतता हुआ पल और शरीर पर होते हुए अनगिनत प्रहार, आखिर कार उन युवकों के मुख से निकलने बाली डकार बिल्कुल ही शांत हो गई। परंतु….उन दोनों युवकों ने यह देखने की कोशिश नहीं की कि” उनके प्राण निकले हैं, या नहीं।

बस’ उन्होंने उन चारों युवकों के पेट को फाड़ा और इस तरह से फाड़ा कि” सीना तक दो भागों में बांट दिया। इसके बाद उन्होंने पीठ पर से आईश बैग को उतार कर उसमें उन युवकों के अंगों को निकाल-निकाल कर भरने लगे। किडनी, लीवर और फेफड़ा, हां इन तीनों अंगों को निकाल कर बैग में भर लिया उन दोनों नकाब पोसो ने, फिर लाश में बदल चुके उन चारों को हिकारत भरी नजरों से देखा। फिर’ उठ खड़े हुए और शांत कदमों से चलते हुए हाँल से बाहर निकल गये।

* * * *

दोनों टीम आपस में मिली, इसके बाद उनके बीच करीब आधे घंटे तक वर्तमान स्थिति पर चर्चा की। इसके बाद’ दोनों की ही कार हाईवे पर विपरीत दिशा में चल पड़ी। वैसे भी, बातचीत में बीत चुके आधे घंटे के नुकसान को सलिल अच्छी तरह से समझता था। इसलिये उसने शांतनु देव को समझाया कि” हाईवे पर कार की गति को उतना ही रखे, जिससे दोनों ओर के हरकत को स्पष्ट रुप से देखा जा सके।

हां, वो हाईवे पर चल रहे किसी भी गतिविधि को मिश नहीं करना चाहता था। क्योंकि’ अगर थोड़ी सी भी चूक हुई, तो अपराधी के बच निकलने की संभावना बहुत अधिक था। जिससे उसकी मुश्किलें बढ़ सकती थी। अब भला वो क्यों चाहता कि” अपराधी बचकर निकल जाये। इधर’ सलिल के द्वारा समझाए जाने के बाद शांतनु देव ने कार की रफ्तार सामान्य कर दी और सावधानी पूर्वक ड्राइव करने लगा। साथ ही वह हाईवे पर भी देखते जा रहा था कि” कहीं कोई असामान्य गतिविधि दिखे और तक्षण ही वो कार रोक दे।

ऐसे में अजीब से स्थिति का निर्माण हो गया था कार के अंदर। सलिल, रोमील और शांतनु देव, तीनों के चेहरे पर ही फैले हुए तनाव को स्पष्ट रुप से देखा जा सकता था। खासकर सलिल के चेहरे पर कुछ ज्यादा, उसके मन में एक अजीब सा भय भी तो ग्रसित हो चुका था। वो भय, जो आने बाले समय को लेकर था, क्योंकि’ बीते तीन दिनों से नियत समय पर ही लगातार वारदात को अंजाम दिया जा रहा था। बस’ कुछ समय बाद उस पल का फिर से पुनरावृति होने बाला था और अगर आज भी अपराधी अपराध करने में सफल हो जाते हैं तो?....यह प्रश्न उसके दिमाग में कौंध रहा था।

बस’ इसी बात का तो भय था’ जो उसके दिमाग पर हावी हो रहा था। बस’ एक आशा और आत्म विश्वास कि” हाईवे का पेट्रोलिंग करने से इस केस में कोई महत्वपूर्ण क्लू मिल जाये, अथवा तो अपराधी ग्रुप का कोई मेंबर ही हाथ लग जाये। बस’ इसी आशा के बल पर तो रोमील एवं शांतनु देव के साथ हाईवे पर आया था कि” कुछ तो क्लू हाथ लगे। क्योंकि’ घटित हो रहे अपराध को रोकना अब प्रशासन की प्राथमिकता बन चुकी थी। ऐसे में अगर फिर से वारदात घटित होता हैं तो, उसके बाद की स्थिति का अंदाजा था उसे।

फिर वो ही क्यों, पूरे दिल्ली के आँफिसर इस केस पर जुट चुके थे। क्योंकि’ ये कहना गलत था कि” वारदात एक इलाके विशेष में ही घटित होगा। इस बात को सलिल समझता था और कम से कम यह उसके लिये राहत की बात थी। फिर भी, टेंशन तो था ही, इसलिये नजर को इधर-उधर घुमाये जा रहा था। धीरे-धीरे आगे की ओर बढ़ती हुई कार और ऐसा भी समय आया, जब शांतनु देव ने कार घुमाकर वापस दिल्ली की ओर दौड़ा दिया। इसके साथ ही वे तीनों हाईवे पर नजर जमाये हुए देखने लगे और कार पुन: उधर की ओर चलने लगी, जिधर से उसने यात्रा की शुरुआत की थी।

धीरे-धीरे आगे की ओर बढ़ता हुआ समय और कार की वापसी, उस जगह के लिये, जहां से सफर की शुरुआत हुई थी। परंतु….अब तक उन तीनों ने ऐसी कोई भी गतिविधि नहीं देखी थी, जिसके लिये वे लोग हाईवे पर आए थे। ऐसे में सलिल ने कलाईं घड़ी पर नजर डाली, शाम के साढ़े सात बज चुके थे। फिर उसने शांतनु देव की ओर देख कर धीरे से बोला।

यार शांतनु!....लगता हैं, हम लोगों की कोशिश ही गलत दिशा में हैं। नहीं तो, अब तक तो कुछ न कुछ तो नजर जरूर आ जाना चाहिये था।

सर!....आप भी न, उकता रहे हैं, जबकि’ हाईवे पर एक्सीडेंट के टाईमिंग को देखें, तो तीनों दिन की अलग-अलग हैं। ऐसे में जरूरत हैं कि” हम लोग धैर्य के साथ अपने काम में लगे रहें। हो सकता हैं कि” जल्दी हो या देरी, किन्तु’ मुझे विश्वास हैं कि” आज हमें सफलता जरूर मिलेगी। सलिल ने तो अभी बात ही खतम की थी कि” बीच में ही रोमील टपक कर बोल पड़ा, फिर दोनों के चेहरे को देखने लगा, इस आशय के साथ कि” कहीं वो गलत तो नहीं बोल गया। जबकि’ उसकी बातों को सुनते ही सलिल और शांतनु देव, दोनों ही मुस्करा पड़े। साथ ही सलिल ने उसके चेहरे को देखा और गंभीर स्वर में बोला।

तुम भी न रोमील!....बात तो सही बोलते हो, लेकिन बिना पुछे ही बोलने लगते हो, जो कि” गलत हैं।

यार सलिल!....तुम भी न, खामखा ही रोमील को डांट की घुट्टी पिलाते रहते हो। उसकी बातों को सुनकर शांतनु देव बोला, फिर एक पल के लिये रुका और उसके चेहरे की ओर देखा। फिर गंभीर हो गया और ड्राइव पर नजर जमाने के बाद आगे बोला।

वैसे भी, विचारे ने जो कहा हैं, सही ही तो हैं, फिर इस तरह डांटने का मतलब क्या हुआ?....कहा उसने और फिर चुप्पी साथ कर ड्राइव में तल्लीन हो गया। जबकि’ सलिल, उसकी बातों को सुनने के बाद मुंह खोलने ही बाला था। तभी उसकी नजर सामने से आ रहे टैक्सी पर गई, इसलिये मौन रह गया।

इधर’ शांतनु देव ने भी कार में बैठे तरूण वैभव को देख लिया था। तभी तो, उसने कार को किनारे कर के रोक दिया। उधर’ तरुण वैभव ने भी इन लोगों को देख लिया था, इसलिये वहीं पर कार घूम गई और उनके पीछे आकर खड़ी हो गई। साथ ही उन लोगों की नजर हाईवे किनारे बने रेस्टोरेंट पर भी चली गई। फिर तो’ जैसे उन लोगों ने फैसला कर लिया हो कि” भोजन कर लिया जाये। तभी तो वे लोग रेस्टोरेंट की ओर बढ़े और अंदर जाकर टेबुल संभाल लिया।

इसके बाद भोजन और बातचीत, उन लोगों के बीच शुरु हो गई। खासकर रोमील और तरुण वैभव के बीच, बाकी के बचे उन दोनों के चेहरे की ओर ही देख रहे थे। धीरे-धीरे आगे की ओर बढ़ता हुआ समय और अभी तो उन्होंने थाली से आधा ही खाना खाया था, तभी तरुण वैभव और सलिल, दोनों के मोबाइल ने एक साथ ही वीप दिया, जिसे लपक कर उन्होंने उठाया और काँल रिसिव किया।

इसके साथ ही उधर से न जाने क्या कहा गया कि” दोनों अपनी शीट पर उछल पड़े। उन्होंने जो हाथ में निवाला उठाया हुआ था, वह हाथों से छूट गया और पलक झपकते ही दोनों के अंग-प्रत्यंग से पसीने की धारा बह निकली। साथ ही चेहरे पर आश्चर्य और अविश्वास की रेखाएँ खिंच गई। बस’ इतना ही काफी था रोमील, शांतनु देव और सुशीत काले को समझने के लिये। वे समझ चुके थे, जरूर अघटित बात हो गई हैं, जो कि” नहीं होना चाहिये था। परंतु….इस संदेह पर तो सलिल एवं तरूण वैभव ही पुष्टि की मुहर लगा सकते थे। किन्तु’ दोनों ही फोन काँल डिस्कनेक्ट होते ही तेजी से उठ खड़े हुए।

इसके बाद दोनों तेजी से रेस्टोरेंट से बाहर की ओर निकलने लगे। इसके साथ ही तीनों उठ खड़े हुए और उनके पीछे लपके। हां, इस बीच जरूर रोमील तेजी से कैश काउंटर की ओर बढ़ा और बील पेमेंट किया, इसके बाद बाहर आया। तब तक तो सभी अपनी-अपनी कार में बैठ चुके थे और सिर्फ उसका ही इंतजार किया जा रहा था। तभी तो’ जैसे ही रोमील कार में बैठा, दोनों ही कार एक सीध में सरपट दौड़ने लगी।

उलझन, जो कि” शांतनु देव, सुशीत काले और रोमील के चेहरे पर था। क्योंकि’ उन्हें मालूम नहीं था कि” आखिर क्या बात हो गई?...जो दोनों इस तरह से बाहर निकले और हम लोग अभी जा कहां पर रहे हैं?...इधर अपनी- अपनी कार में बैठे हुए तरुण वैभव और सलिल बेचैन थे और ऐसा हुआ था उस फोन काँल के कारण। हां, उस फोन काँल ने उनके दिलों के धड़कने की रफ्तार को बढ़ा दिया था और ऐसे में बीतता हुआ एक-एक पल उनको युगों की तरह प्रतीत हो रहा था।

* * * *

रात के सवा आठ की सूचना जैसे ही घड़ी ने दी, वे दोनों नकाब पोस प्रयाची गेस्ट हाउस के गेट से निकले। तभी तीसरा नकाब पोस, जो कि” बाईक पर खड़ा होकर उनका ही इंतजार कर रहा था, उनको देखकर उनकी ओर लपका। बस’ दोनों नकाब पोस ने अपने हाथों में थाम रखे आईश बैग को तीसरे नकाब पोस को थमाया और तीसरा नकाब पोस ने बाईक श्टार्ट की, उसपर बैठा और तेजी से वहां से निकल गया।

बस’ बैग को लेकर तीसरे नकाब पोस के निकलते ही दोनों नकाब पोस ने राहत की सांस ली। वैसे भी, उन्होंने खंजर को गटर में डाल दिया था और कपड़ों पर के खून को पूरी तरह से साफ कर लिया था। इसलिये वे दोनों अब पूरी तरह से निश्चिंत थे, तभी तो धीमे कदमों से चलते हुए कार की ओर बढ़ रहे थे। वे दोनों इस तरह से अपने कदम बढ़ा रहे थे कि” लगता था, यहां से उनको जल्दी जाने की इच्छा नहीं हो। अथवा तो, वे किसी के आने का बेसब्री से इंतजार कर रहे हो।

धीरे-धीरे आगे की ओर बढ़ता हुआ समय और वे दोनों कार के पास पहुंचे और अंदर बैठ गये। तब उसमें से एक ने, जिसने ड्राइव संभाल रखी थी, उसने इंजन श्टार्ट की और आगे बढ़ा दिया। फिर तो’ कार जैसे ही सड़क पर आई, फूल रफ्तार पकड़ लिया और सरपट दौड़ने लगी। इसके साथ ही, जो बगल में बैठा हुआ नकाब पोस था, उसने दूसरे नकाब पोस की ओर देखा और धीरे से बोला।

मिस्टर वाई!....लगता हैं शहर की पुलिस निकम्मी हैं। फिर तो, प्रशासन की लेट-लतीफा पन जग जाहिर हैं। नहीं तो, उनको तो सूचना समय से ही दी गई होगी, परंतु….उन लोगों का तो कहीं अता-पता ही नहीं हैं। कहां उसने और एक पल के लिये रुककर दूसरे नकाब पोस की आँखों में देखा, जैसे कुछ पढ़ लेने की इच्छा रखता हो। इसके बाद लंबी सांस ली, फिर आगे बोला।

वैसे हमको क्या?....हमारा तो काम पूरा हो ही गया। मैंने पुलिस को हिंट दे दिया था, अब वो नहीं पहुंच पाई, तो उसकी गलती। अब हम लोगों को ढ़ूंढ़ने के लिये माथा पच्ची करता रहे।

मिस्टर एल!....फिलहाल तो हमें इस बारे में चर्चा करने की जरूरत नहीं हैं। आपने और मैंने, हमने जो करना था, कर दिया। अब यह पुलिस की माथापच्ची हैं कि” वो हमारे पास किस तरह से पहुंचती हैं। उसकी बातों को सुनने के बाद ड्राइव कर रहे नकाब पोस ने कहा। फिर एक पल के लिये रुका और पहले नकाब पोस की आँखों में झांककर देखा, फिर ड्राइव पर नजर जमाकर सर्द लहजे में बोला।

मिस्टर एल!....अब भला हम लोग पुलिस बाले को निमंत्रण देकर तो नहीं बुलाने जायेंगे। यह नहीं कहने जायेंगे कि” भाया, चलो हमारे अड्डे पर छापा डाल दो। चलो, हम लोगों को पकड़ लो, क्योंकि’ वर्तमान में शहर में जितने भी वारदात घटित हुए हैं न, उसके मास्टर माईंड हम लोग ही हैं। बस’ समझो मिस्टर एल!....यह काम पुलिस का हैं और पुलिस हमारे पास पहुंच पाती हैं या नहीं, यह उनको निर्धारित करना हैं।

परंतु….मिस्टर वाई!....यह तो आपकी ही योजना थी कि” पुलिस को अब अपने अड्डे पर बुला लिया जाये। फिर इस तरह के रुख का मतलब?....कहीं ऐसा तो नहीं कि” आपने कानून को चकमा देने का इरादा बना लिया हो। उसकी बात सुनते ही पहले नकाब पोस ने शांत स्वर में बोला।

बिल्कुल भी नहीं मिस्टर एल!....मेरा इरादा बिल्कुल भी नहीं बदला हैं। आप विश्वास रखे, हम लोगों ने जो प्लानिंग की हुई हैं, ठीक ऐसा ही होगा। किन्तु’ फिलहाल हम लोग शांत रहेंगे, तो वो ज्यादा बेहतर होगा। क्योंकि’ कभी-कभी ज्यादा बोलना भी उचित नहीं होता हैं। तो’ उम्मीद करता हूं, आप अब शांत रहेंगे। उस नकाब पोस की बातें सुनकर ड्राइव कर रहे नकाब पोस ने बोला।

तभी उसकी नजर ने देखा, दो कार बराबर में उसके कार के पीछे आ रहा हैं। वैसे भी हाईवे पर रात के इस समय ट्रैफिक कुछ ज्यादा होती हैं, तो हो सकता हैं कोई दूसरी कार हो। परंतु….कुछ पलो बाद ही वह आश्वस्त हो गया था, क्योंकि’ उसने सलिल एवं रोमील को जो देख लिया था। हां, उसकी आँख की रोशनी इतनी तेज थी कि” बहुत पीछे होने के बाद भी उसने मिरर में उन दोनों के चेहरे को देख लिया था। मतलब साफ था, उन लोगों का पीछा करते हुए पुलिस आ पहुंची थी।

बस’ इतनी सी बात उसके दिमाग में आई और उसने पहले नकाब पोस की ओर देखा और मुस्करा दिया। जबकि’ उसको मुस्कराते हुए देखकर पहले नकाब पोस के समझ में कुछ भी नहीं आया। परंतु…वह बिना कारण जाने चैन से रह ले, यह भी तो नहीं हो सकता था। तभी तो’ उसने दूसरे नकाब पोस की आँखों में देखा और गंभीर होकर बोल पड़ा।

क्या कोई बात हो गई हैं मिस्टर वाई!....जो इस तरह से मंद-मंद मुस्करा रहे हो।

बस’ ऐसा ही हुआ समझ लो मिस्टर एल!....हम लोगों को जिसका इंतजार था, वे लोग हमारे पीछे-पीछे आ रहे हैं। पहले नकाब पोस की बातें सुनकर दूसरे नकाब पोस ने तत्काल ही बोला। जिसको सुनने के बाद पहले नकाब पोस के होंठों पर भी मुस्कान छा गई। फिर तो’ उसने दूसरे नकाब पोस की आँखों में आँखों को पिरोया और शरारती शब्दों में बोला।

तो फिर इंतजार किस बात का?....अब वे लोग आ ही गये हैं, तो कार की रफ्तार बढ़ाओ। जिससे उनको अंदाजा हो जाये, हम लोग इसी कार में हैं।

पहले नकाब पोस का कहना और दूसरे के पांव एक्सीलेटर पर कसते चले गये। इसके साथ ही उनकी कार सड़क पर लहरा कर दौड़ने लगी और इधर इनकी कार ने रफ्तार पकड़ा, उधर सलिल चौंक उठा। फिर तो उसने शांतनु देव की ओर देखा और उत्तेजित होकर बोला।

यार शांतनु!....लगता हैं अपराधियों की कार वही हैं। देखो न, लगता हैं उन्होंने हम लोगों की मौजूदगी को भाँप लिया हैं, तभी तो कार को फूल रफ्तार में भगाये जा रहे हैं। कहा उसने फिर एक पल के लिये रुककर फेफड़ों में आक्सीजन को भरने लगा। जबकि’ अभी तो उसकी बात खतम भी नहीं हुई थी कि” शांतनु देव ने कार की रफ्तार बढ़ा दी। इधर’ सलिल कुछ हद तक खुद को नियंत्रित कर चुका था, इसलिये दुबारा उसने शांतनु देव की ओर देखा और धीरे से बोला।

यार शांतनु!....चाहे जो हो जाये, किन्तु’ आगे बाली कार बचकर नहीं निकलना चाहिये। अन्यथा तो’ अभी नहीं तो कभी नहीं। आज अगर अपराधी बचकर निकल गये न, तो फिर उनको पकड़ना आसान नहीं होगा।

तुम भी न यार सलिल!...थोड़ा तो धैर्य रखो। वैसे भी, न तो यह स्पोर्ट कार हैं और न ही मैं रेसलर हूं। फिर भी, कोशिश करता हूं कि” उनके कार को टेक ओवर कर सकूं। उसकी बातों को सुनकर शांतनु देव तनिक चिढ़कर बोला। जबकि’ उनकी बातों को सुनने के बाद पीछे बैठा हुआ रोमील अपने-आप को नहीं रोक सका और गंभीर होकर बीच में बोल पड़ा।

सर!...मुझे विश्वास हैं कि” वे लोग बचकर भाग निकलना नहीं चाहते। नहीं तो’ वे लोग सामने से फोन नहीं करते कि” आओ और मुझे पकड़ लो।

रोमील ने अपनी बात खतम की और बारी-बारी से सलिल और शांतनु देव के चेहरे को देखा। जबकि’ उसकी बातों को सुनने के बाद सलिल की इच्छा हुई, उसको डाँट की घुट्टी पिला दे, किन्तु’ फिलहाल तो उसने अपने विचार को त्याग दिया और आगे देखने लगा।

इधर’ शांतनु देव तन्मयता के साथ ड्राइव करने में जुट गया था। इसके साथ ही उसने देख लिया था, पीछे आ रही कार की भी गति बढ़ चुकी थी। इसके साथ ही हाईवे पर रात के इस समय कारों के बीच रेस प्रारंभ हो चुका था। हां, आगे-आगे नकाब पोस की कार और पीछे-पीछे वे दो कार, जिसमें सलिल एवं तरुण वैभव बैठे हुए थे। बीतते समय के साथ ही उन कारों के बीच घटती दूरियां।

* * * *

रवाना वेअर हाउस के पास कार के खड़ी होते ही सलिल तेजी से बाहर निकला और नजर उठाकर गेट पर देखा। जहां पर रोशनी में दो गोरखा जवान मशीन गन उठाये हुए पहरा दे रहे थे। उनकी मुस्तैदी बतला रही थी, अंदर उनकी इजाजत के बिना परिंदा भी पर नहीं मार सकता। साथ ही उसने देखा, वेअर हाउस का पूरा एरिया दुधिया रोशनी से नहाया हुआ हैं। बस’ उसे अंदाजा हो गया, अंदर काफी लोगों की मौजूदगी होगी और शायद उसमें से अधिकांश के पास लोडेड हथियार भी होगा।

इस परिस्थिति में अकेले अंदर जाकर खुद ही आत्म हत्या करने का इरादा तो फिलहाल नहीं था उसके मन में। तभी तो’ उसने मोबाइल निकाला और पुलिस मूख्यालय फोन लगाने लगा। तभी उसको महसूस हुआ कि” कोई पीछे आकर खड़ा हुआ हो जैसे। बस’ चौंककर उसने नजर घुमाकर देखा और उसकी नजर शांतनु देव और तरूण वैभव पर पड़ी, जो उसकी ओर ही देख रहे थे। शायद आँखों में इस प्रश्न को लिये हुए कि” अब तो हम लोग यहां तक पहुंच चुके हैं, अब तुम बताओ कि” आगे क्या करना हैं?

सलिल, जो इस प्रश्न को भलीभांति समझता था, लेकिन पहले जरूरत इस बात की थी कि” पुलिस मूख्यालय फोन कर के यहां के बारे में जानकारी दे दी जाये। बस’ उसने फोन मिलाया और यहां के स्थिति के बारे में बतलाने लगा। फिर पुलिस फोर्स की पूरी कंपनी को यहां भेजने के लिये बोलकर फोन डिस्कनेक्ट किया। फिर उन दोनों की ओर मुखातिब होकर शांत स्वर में बोला।

शांतनु देव एवं तरूण वैभव!...जानता हूं तुम दोनों क्या पुछना चाहते हो और इस समय तुम दोनों के मन में क्या चल रहा हैं। खासकर उस समय, जब तुमको मालूम हैं कि” अपराधी की कार इसी वेअर हाउस में गई हैं। बोलने के बाद एक पल के लिये रुका वो और फिर उन दोनों के चेहरे के देखने लगा। शायद उन दोनों के चेहरे के भाव पढ़ना चाहता था, किन्तु’ जब उसे इस काम में सफलता नहीं मिली, दोनों के चेहरे को देखा और गंभीर होकर उनको संबोधित करके आगे बोला।

किन्तु’ इस समय हम लोग सीधे ही इस वेअर हाउस में प्रवेश कर जाये, शायद उचित नहीं होगा। क्योंकि’ जिस तरह से गेट पर गनमैन की मौजूदगी हैं, निश्चित ही अंदर हथियार धारी गुंडे मौजूद होंगे। ऐसे में अगर हम लोग सीधे ही वेअर हाउस के अंदर प्रवेश कर जाते हैं, तो यह आत्म हत्या करना ही कहलायेगा। बस’ समझो इस स्थिति को और थोड़ा धैर्य धारण करो। बस’ कुछ पल बाद ही पुलिस फोर्स आ जायेगी, उसके बाद हम लोग इस वेअर हाउस के अंदर चलेंगे।

लेकिन यार सलिल!....पुलिस फोर्स का इंतजार क्यों?....क्योंकि’ जहां तक मेरा अनुमान हैं, वे लोग हम लोगों का इंतजार ही कर रहे हैं। ऐसे में हम लोगों को समय बर्बाद किए बिना ही अंदर चलना चाहिये और अंदर जाकर देखना चाहिये कि” स्थिति किस प्रकार की हैं?....सलिल की बात खतम होते ही शांतनु देन बोल पड़ा, फिर उसके चेहरे की ओर देखने लगा। जबकि’ उसकी बातों को सुनकर सलिल मुस्कराया और उन दोनों के चेहरे की ओर देखा, फिर धीरे से आगे बोलने लगा।

यार शांतनु!....यह कोर्ट नहीं, जबकि फिल्ड हैं। ऐसे में तुम इस बात को समझ नहीं सकते। फिर भी’ इतना समझ लो कि” फिल्ड में जिरह नहीं होता,सिर्फ परिस्थिति होती हैं। बस’ इस समय हम लोगों ने भूल से भी अंदर जाने की कोशिश की, तो इसका कोई मतलब नहीं निकलेगा और बिना मतलब के हम उलझ जायेंगे। इसलिये बेहतर यही होगा कि” हम लोग फोर्स के आने का इंतजार करें।

अभी बोलकर सलिल चुप ही हुआ था, तभी रवाना वेअर हाउस के गेट पर लगी माईक से आवाज उभड़ा, जिससे तीनों की तंद्रा भंग हुई और तीनों ही वेअर हाउस के गेट को देखने लगे और आती हुई आवाज को सुनने लगे। जो कि” उनको ही संबोधित करके कहा जा रहा था। हां, माईक से कहा जा रहा था कि” आँफिसर!....आप लोग गेट पर ही नहीं खड़े रहे और अंदर आ जाइए।

अंदर आपको किसी भी तरह से नुकसान नहीं पहुंचाया जाएगा। क्योंकि’ हम लोग भी आप लोगों का ही इंतजार कर रहे हैं, वह भी बेसब्री से। कहा गया माईक से और फिर आवाज आनी बंद हो गई। बस’ तीनों ने आब देखा न ताब, तुरंत ही कदम आगे की ओर बढ़ा दिया और तेज कदमों से चलते हुए गेट से प्रवेश कर गये। इसके बाद उन्होंने वेअर हाउस के अंदर कदम रखा और उनकी आँखें आश्चर्य से फैल गई।

क्योंकि’ अंदर अभी भी काम चल रहा था। किन्तु’ आश्चर्य की बात वो नहीं थी। आश्चर्य तो उन्हें इसलिये हुआ था कि” वहां पर बेहतर सुविधा और आधुनिक ढंग से साज-सज्जा की गई थी। बस’ तीनों ने अंदर कदम रखा और आश्चर्य में डुबे हुए चारों ओर देखने लगे। तभी, फिर से वही स्वर वेअर हाउस के अंदर गुंजने लगा, जिससे उनकी तंद्रा टूट गई।

आँफिसर!....आप लोग वहीं पर मत खड़े रहे, आगे बढ़े। हम लोग आपका इंतजार आँफिस सेक्सन में कर रहे हैं, इसलिये आप लोग इधर आए। कहा गया और फिर आवाज आनी बंद हो गई। तब उनकी नजर आँफिस सेक्सन की ओर गई और वे लोग उधर ही कदम बढ़ाने बाले थे। तभी सलिल के मोबाइल ने वीप दी और उसने मोबाइल निकाल कर देखा, सामने रोमील था।

फिर तो’ रोमील उसे बतलाने लगा कि” किस तरह से वो जब गेस्ट हाउस पर पहुंचा, लाशों के ढेर को देखा। साथ ही उसने बतलाया कि” घटना स्थल से बिल्कुल ही नंगी अवस्था में एक युवती भी मिली हैं। बस’ सलिल उसको समझाने लगा कि” अब उसको क्या करना चाहिए?....इसके बाद उसने फोन काँल को डिस्कनेक्ट कर दिया और तरुण वैभव एवं शांतनु देव के साथ आँफिस सेक्सन की ओर तेजी से बढ़ा, मन में आशंकाओं का तूफान समेटे हुए, आगे आने बाले पल के बारे में विचार करते हुए।

फिर तो’ उन्होंने आँफिस सेक्सन के अंदर जैसे ही कदम रखा, उनकी आँखें और भी आश्चर्य से फैल गई। हां, आधुनिक सुविधा से लैस आँफिस में इस समय पांच नकाब पोस रिबाल्विंग चेयर पर बैठे हुए थे और उनकी नजर आँफिस के गेट पर ही टिकी हुई थी। ऐसे में जैसे ही तीनों ने आँफिस में कदम रखा, पांचों नकाब पोस उठकर खड़े हो गये।

जबकि’ सलिल, विशेष कर उसकी नजर आँफिस को ही देख रही थी। वाह!...क्या शानदार आँफिस था। इस सेक्सन में फैली हुई दुधिया रोशनी, आँफिस के अंदर बने हुए छोटे-छोटे केबिन और आँफिस का यह विशाल भाग। शायद इसका गेस्ट रूम के तौर पर इस्तेमाल किया जाता होगा।

मिस्टर सलिल!....आप इस तरह से इस आँफिस को देख रहे हैं, जैसे कोई अजूबा देख रहे हो। जबकि’ ऐसी कोई विशेष बात नहीं हैं। हां, मिस्टर सलिल!....यह अपराध का अड्डा तो बिल्कुल भी नहीं हैं। बस’ यूं समझ लीजिये कि” यह काँरपोरेट आँफिस हैं। ऐसे में यहां तमाम सुविधाओं का होना लाजिमी हो जाता हैं। सलिल को इस तरह से आश्चर्य चकित होकर चारों ओर देखते पाकर उसमें से एक नकाब पोस बोला। फिर एक पल के लिये रुककर उसके चेहरे को देखा, उसके बाद आगे बोला।

वैसे’ बेहतर यही होगा कि” आप लोग बैठ जायें। हम लोग बैठ जाते हैं, उसके बाद आपस में बात करेंगे।

लेकिन कैसे?...आप लोगों ने बीच में नकाब की दीवाल खड़ी की हुई हैं। ऐसे में जब तक हम लोग एक-दूसरे को देख नहीं लेते, बातचीत किस तरह से शुरु हो। उस नकाब पोस की बातें सुनते ही सलिल तनिक तल्ख स्वर में बोला। जबकि’ उसकी बातों को सुनकर उन पांचों नकाब पोस के होंठों पर मुस्कान थिरक उठा। फिर’ उसमें से एक बोला।

आँफिसर!....आप लोग विश्वास रखे, जब आपको यहाँ तक बुलाया हैं, तो हम लोग नकाब भी हटा देंगे। अभी तो फिलहाल आप लोग बैठ जाये।

कहा उसने और फिर पांचों ही नकाब पोस बैठ गए। तब सलिल भी तरूण वैभव और शांतनु देव के साथ सोफे पर बैठ गया। लेकिन’ उसकी नजर उन नकाब पोसो पर ही टिकी रही।

* * * *

सोफे पर बैठने के साथ ही तीनों की नजर उन पांचों नकाब पोस पर जाकर चिपक गई। खासकर सलिल की तो विशेष, क्योंकि’ उसके मन में कुतूहल जाग चुका था। बस’ अब उसे जानना था कि” मामला क्या हैं और वे पांचों नकाब पोस कौन हैं?

लेकिन किस तरह से?....जब तक वे पांचों जानकारी नहीं देते, अथवा तो उनको कानून के गिरफ्त में नहीं लिया जाता। उनके बारे में जानना बिल्कुल भी असंभव था। इस समय वैसे भी उसकी इच्छा नहीं थी, उन लोगों पर दबाव बनाये और उनसे बलपूर्वक जानकारी लेने की कोशिश करें। क्योंकि’ एक तो परिस्थिति अनुकूल नहीं थी, दूसरे उसको लगता नहीं था, नकाब पोस विरोध करने के मूड में हैं।

क्योंकि’ उनको विरोध ही करना होता, अथवा कानून से ही बचना चाह रहे होते, तो किसी भी हालत में पुलिस बाले को यहां तक नहीं लेकर आते। उन्होंने जो सामने से निमंत्रण देकर पुलिस बालों को यहां तक बुलाया था, इससे एक बात तो स्पष्ट हो गई थी कि” वे लोग अब कानून के सामने आने का इरादा बना चुके थे। लेकिन’ उन लोगों का अचानक ही चुप्पी साध लेना, उसके मन में उलझन का सृजन कर रहा था और उसको सोचने पर विवश कर रहा था कि” मामला क्या हैं?

धीरे-धीरे आगे की ओर बढ़ता हुआ समय और उन लोगों के बीच छाई हुई चुप्पी। हाँल में अजीब से सन्नाटे को फैला दिया था, जो उसके साथ ही शांतनु देव और तरूण वैभव को भी चुभने लगी थी। तभी तो’ दोनों कभी नकाब पोस के चेहरे की ओर, तो कभी उसके चेहरे की ओर देख रहे थे। बस’ सलिल के अंदर का धैर्य जाता रहा और उसने मन ही मन फैसला कर लिया कि” बातों की शुरुआत की जाये। क्योंकि’ इस तरह मौन धारण किए रहने से भी मामला सुलझने बाला नहीं था। तभी तो’ वह नकाब पोसो की ओर मुखातिब हुआ और जैसे ही मुंह खोलने की कोशिश की, उसमें से एक नकाब पोस बोल पड़ा।

मिस्टर एक्स!...हम लोग भी न, कब से ऐसे ही बैठे हुए हैं और साहब लोगों को भी बिठाए हुए हैं। जबकि’ हमें तो इनका स्वागत करना चाहिए। फिर तो’ हम लोगों ने अभी तक इनको परिचय भी नहीं दिया हैं। ऐसा करना बिल्कुल भी उचित नहीं हैं। इसलिये तुम जाकर पेंट्री से इनके लिये काँफी लेकर आओ। तब तक हम लोग इनके साथ बातचीत की शुरुआत करते हैं। कहा उस नकाब पोस ने, फिर एक पल के लिये रुका और अपनी निगाह सलिल के चेहरे पर टिका दी। जबकि’ उसकी बातों को सुनकर एक नकाब पोस उठा और अंदर की ओर चला गया। तब वह नकाब पोस सलिल को संबोधित कर के बोला।

मिस्टर सलिल!....दुनिया में रोज ही अनगिनत वारदातों को अंजाम दिया जाता हैं। जिसके कई कारण होते हैं, जो परिस्थिति के अनुसार निर्माण होते हैं। इसका मतलब यही हुआ कि” कहीं तो स्वार्थ के लिये, कहीं पर वर्चस्व के लिये, तो कहीं पर प्रतिशोध के लिये इसको अंजाम दिया जाता हैं। परंतु….अपराध तो अपराध ही होता हैं, जो समाज और देश, दोनों के लिये घातक हैं। क्योंकि’ क्रिया के बाद प्रतिक्रिया होती हैं, जो कि” कभी भी लाभदायक नहीं हो सकता, किसी के भी हित में।

श्रीमान!....आप चाहे जो भी हैं, बातें तो तथ्यों की करते हैं। लेकिन’ इस तरह से बात का कोई फायदा नहीं होगा, जब तक हम लोग एक-दूसरे को जान नहीं ले। बस’ अब आप इस बात को समझिए और अपने चेहरे से नकाब के पड़े हुए आवरण को हटाइए, ताकि’ मैं जान सकूं, आप लोग कौन हैं?....उस नकाब पोस की बातें सुनते ही सलिल झट बोल पड़ा। फिर’ वह नकाब पोसो की ओर देखने लगा। जबकि’ उसकी बात अभी तो खतम ही हुई थी कि” उस आँफिस में जोरदार ठहाका गुंज उठा।

हा-हा-हा-हा-हा!....हंसने के बाद वो नकाब पोस एक पल के लिये रुका और सलिल के चेहरे की ओर देखा। फिर गंभीर स्वर में बोला। मिस्टर सलिल!...इस बात को अच्छी तरह से जानता हूं, आप जब तक हम लोगों के चेहरे को नहीं देख लेते, आपको चैन नहीं मिलेगा। फिर तो’ हम लोगों ने भी इरादा बना ही लिया हैं कि” परिचय हो जाये। वैसे भी, अब छिपाने जैसा कुछ नहीं बचा हैं।

कहा नकाब पोस ने, फिर उसने अपने चेहरे से नकाब को हटा दिया। फिर जो चेहरा सामने आया, उससे सलिल और शांतनु देव, दोनों ही चौंक पड़े। उनके चेहरे पर आश्चर्य की लहरें हिलोरे लेने लगी। क्योंकि’ जो चेहरा उनके सामने आया था, उसके बारे में उन्होंने कल्पना भी नहीं की थी। ऐसे में आश्चर्य में डूबे हुए वो आश्चर्य से अभी उभड़ भी नहीं पाये थे, तभी बाकी के तीनों नकाब पोस ने भी अपने नकाब को हटा दिया। आश्चर्य पर आश्चर्य, तभी तो सलिल के मुख से आश्चर्य में डूबा हुआ स्वर निकला।

सिद्धांत चतुर्वेदी साहब..आप?...वह भी अपराधियों के भेस में, वह भी अपराधियों के साथ। मुझे तो बिल्कुल भी विश्वास नहीं हो रहा हैं।

अब इसमें विश्वास नहीं करने जैसी बात क्या हैं?....क्या तुम्हें लगता हैं कि” वकील अपराधी नहीं हो सकते, अथवा अपराध नहीं कर सकते?....अगर ऐसा कुछ लगता हैं, तो अपने दिमाग से निकाल दो। क्योंकि’ परिस्थिति अगर बन जाये, तो कोई भी अपराध करने पर उतारू हो जाता हैं। सलिल के आश्चर्य भरी बातों को सुनकर सिद्धांत चतुर्वेदी साहब बिल्कुल शांत स्वर में बोले। इसके बाद एक पल के लिये रुके और बारी-बारी से सलिल, तरूण वैभव और शांतनु देव के चेहरे की ओर देखा। इसके बाद उन तीनों चेहरे की ओर देखकर बोले।

सलिल!....इन दो चेहरे से तो तुम अच्छी तरह वाकिफ होगे?....क्रुमुदिका खन्ना, जो कि” खन्ना एंपायर की कर्ता- धर्ता हैं और ये हैं कमल नटराजन, नटराजन ग्रुप के सर्वेसर्वा। अब बाकी के बचे दो, तो दोनों ही खन्ना ग्रुप में काम करते हैं और स्वेच्छा से हमारे साथ जुर्म में शामिल हुए हैं।

वह सब तो ठीक हैं सर!....लेकिन’ अभी तक मैं यह समझ ही नहीं पाया हूं कि” ऐसी क्या परिस्थिति आ गई, जो आप जैसे लोगों ने वारदात को अंजाम देने का फैसला कर लिया? वकील साहब की बातों को सुनने के बाद इस बार शांतनु देव गंभीर होकर बोला। फिर एक पल के लिये रुका और वहां पर मौजूद सभी के चेहरे को गंभीरता पूर्वक देखा, इसके बाद आगे बोला।

क्योंकि’ आप जैसे लोग बिना कारण के अपराध के दलदल में फंसने बाले नहीं हैं। क्योंकि’ न तो कोई बिजनेस मेन ही और न ही कोई संभ्रांत नागरिक जुर्म करना चाहता हैं। जहां तक संभव हो, ऐसे लोग इस परिस्थिति से बचने की कोशिश करते हैं। परंतु….आप लोगों ने वारदात को अंजाम दिया हैं, मतलब यही हुआ कि” कोई न कोई ठोस कारण हैं, जिसके कारण आप लोगों को ऐसा करना पड़ा हैं। अब बस’ आप उस ठोस कारण को बतलाइए, जिससे कि” हम लोग मामले को समझ सकें?

मिस्टर शांतनु!...आप भी न, अधीर बन रहे हैं। जबकि’ आपको मालूम हैं, जब हम लोगों ने सामने से आप लोगों को बुलाया हैं, तो निश्चित रुप से आपको जानकारी देंगे। वरना तो’ हम लोग चाहते, तो कानून हमें कभी भी नहीं ढ़ूंढ़ पाती। शांतनु देव की बातें अभी खतम ही हुई थी कि” क्रुमुदिका खन्ना मधुर स्वर में बोल पड़ी। फिर उन तीनों के चेहरे को देखने लगी।

वह तो ठीक हैं, परंतु….आप लोगों को अब हमारे साथ चलना होगा। ताकि’ आगे के कानूनी प्रक्रिया को पूरी की जा सके। अचानक ही तरुण वैभव गंभीर स्वर में बोल पड़ा। जबकि’ उसकी बात सुनकर सिद्धांत चतुर्वेदी साहब मुस्करा कर बोले।

जरूर चलेंगे हम लोग आपके साथ। लेकिन उससे पहले हम लोग एक-एक कप काँफी पी ले।

कहा उन्होंने, फिर मौन हो गये। तभी अंदर से आकर्षक नौजवान निकला, हाथों में काँफी का ट्रे लिये हुए। फिर वो’ धीरे-धीरे चलते हुए सभी को काँफी का मग सर्व करने लगा। इसके बाद खुद भी बैठकर काँफी पीने लगा।

* * * *

अयाची गेस्ट हाउस!

रात के नौ बज चुका था, किन्तु’ अभी तक लाश का पंच नामा नहीं भरा जा सका था। क्योंकि’ अभी तक एक्सपर्ट टीम का अता-पता नहीं था। ऐसे में रोमील एवं सुशीत काले का मन-मस्तिष्क बोझिल सा होने लगा था। साथ ही दिमाग में एक प्रकार का संदेह भी उत्पन्न हो रहा था।

हलांकि’ दोनों ने उस युवती से पूछताछ कर लिया था और जो जानकारी उन्हें युवती ने दिया था। उससे उन दोनों की अंतरात्मा तक हिल गई थी। तभी तो’ उन चारों की लाश देखकर उन दोनों के मन में नफरत की लहर सी उठने लगती थी। भला’ कोई युवक इतने विकृत काम वृति का और कलुषित मानसिकता का कैसे हो सकता हैं?...जो पार्टनर के दर्द और चीख पर उत्तेजित हो। जो यह नहीं सोचे कि” उसके दरिंदगी भरे हरकत से किसी की जान जा सकती हैं। बस’ वो अपने शारीरिक सुखों की पूर्ति के लिये अमानुषी व्यवहार करें, इस हद तक कि” अगले के जान पर बन आए।

भला ऐसा कैसे हो सकता हैं कि” कोई इंसान दानव बन जाये और राक्षसी व्यवहार करें?....यह प्रश्न उन दोनों के मन में उठ रहा था। परंतु….यह उनके मन की बात थी। जबकि’ युवती ने खुद पर बीता हुआ बताया था और इस मामले में कोई गलत तो नहीं बोल सकता। फिर तो’ दोनों ने युवती को जिस हालात में देखा था, उसमें शंका का कोई स्थान ही नहीं बचता था। फिर तो’ चारों युवकों की लाश नंगी अवस्था में ही फर्श पर पड़ा हुआ था। मतलब साफ था, चारों काम वासना में लिप्त थे, तभी उन पर हमला किया गया होगा। जिससे अपनी जान बचाने के लिये वे चारों सामान्य संघर्ष भी नहीं कर सके।

अब क्या किया जाये सुशीत?....परिस्थिति से ऊबकर बोल पड़ा रोमील। क्योंकि’ उसमें अब इतना धैर्य नहीं बचा था कि” ऐसे ही बिछे हुए लाश के बीच टकटकी लगाये बैठा रहे। वैसे भी ऐसे परिस्थिति में मौन रहना बहुत मुश्किल काम होता हैं। इसलिये, बातचीत की शुरुआत हो जाये, इस उद्देश्य से उसने सुशीत काले को संबोधित करके बोला। इसके बाद उसके चेहरे को देखने लगा। जबकि’ उसकी बातें सुनकर सुशीत काले की तंद्रा भंग हो गई। फिर उसने रोमील की ओर देखा और धीरे से बोला।

फिलहाल तो हम लोग कुछ करें, इस स्थिति में नहीं हैं। हां, एक्सपर्ट टीम के आने के बाद ही कार्रवाई संभव हैं।

तो क्यों नहीं हम दोनों एक बार इस गेस्ट हाउस के चक्कर लगा ले। हो सकता हैं, हमारे हाथ कोई ऐसी चीज लग जाये, जो केस में आगे काम आए। क्या बोलते हो?....सुशीत काले ने अभी बात खतम ही की थी कि” रोमील बोल पड़ा। फिर चुप होकर वह एक टक उसकी आँखों में देखने लगा। जबकि’ उसकी बातों को सुनने के बाद सुशीत काले ने सहमति में सिर को हिलाया और बोला।

इरादा तो गलत नहीं हैं। फिर हमारे पास अभी कोई काम भी नहीं हैं। तो फिर हम लोग चलते हैं और इस पूरे बिल्डिंग की छानबीन करते हैं।

उसकी बातों का समर्थन करने के बाद सुशीत काले उसके चेहरे की ओर देखने लगा। जबकि’ इतना सुनते ही रोमील ने अंदर की ओर कदम बढ़ा दिया। इसके साथ ही दोनों इस बिल्डिंग के अंदर और बाहर चक्कर लगाने लगे। वैसे भी, रोशनी की व्यवस्था पर्याप्त थी, इसलिये दिक्कत जैसी कोई बात नहीं थी। परंतु….चक्कर लगाने के बावजूद भी उनके नजर में ऐसी कोई भी चीज नहीं चढ़ी, जिसे सबूत कहा जा सके, अथवा उनके काम आए। ऐसे में निराश हो कर दोनों वापस हाँल में लौट आए। जहां पर एक्सपर्ट टीम आकर अपने काम में जुट चुकी थी। जिसके कारण उनके मन पर पड़ा हुआ बोझ कम हो गया।

किन्तु’ अभी तो दो मिनट भी नहीं गुजरा होगा कि” उनकी आँखें आश्चर्य से सिकुड़ गई। क्योंकि’ गेट से मंत्री जनार्दन गुरेज ने प्रवेश किया। उनके चेहरे पर हताशा, निराशा और पीड़ा का गहरा भाव फैला हुआ था। उनकी आँखें, जो सुर्ख लाल-लाल हो रही थी और होंठ पर पपड़ी पड़ चुका था। बस’ यही कारण था कि” रोमील और सुशीत काले चौंक उठे थे और अभी वे दोनों कुछ और समझते, मंत्री साहब आगे की ओर लपके और दो फलांग में ही लाश के पास पहुंच गये। फिर भानु गुरेज के डेड बाँडी के पास बैठ गये और उसके चेहरे को अजीब नजरों से अपलक देखने लगे।

करीब पांच मिनट और मंत्री साहब के सब्र का बांध टूट गया। फिर तो उन्होंने भानु गुरेज के लाश को बांहों में भर लिया और बच्चे की मानिंद करुण क्रंदन करने लगे। लगा कि” उनके आँखों से आँसू का समंदर लहर लेकर बाहर निकल रहा हो। उनके होंठों से निकला हुआ करुण पुकार और बार-बार यह कहना कि” मैंने तो पहले ही मना किया था बेटा। परंतु….तुम नहीं माने, तुमने जानते हुए भी गलती की और आज लाश के रुप में यहां पड़े हो। परंतु….मेरा क्या होगा बेटा?........मेरी तो दुनिया ही उजड़ गई। अब तुम्हारे बिना मैं किस तरह से जी पाऊँगा और मेरे इस विशाल साम्राज्य को कौन संभालेगा?

मंत्री साहब के द्वारा किए जा रहे करुण क्रंदन से रोमील एवं सुशीत काले का मन द्रवीभूत हो चुका था। परंतु…इस तरह से उनका लाश से चिपकना, जांच में बाधा पहुंचा सकता था। इसलिये दोनों ने मंत्री साहब को समझा-बुझा कर लाश से अलग किया। फिर उनको लाकर सोफे पर बिठाया और किचन से पानी की बोतल लाकर उनको पिलाने लगे, इस आशय से कि” उनका मन थोड़ा तो शांत हो।

तभी हाँल के गेट से एक भद्र महिला ने प्रवेश किया। लंबा कद, गठा हुआ शरीर और आकर्षक व्यक्तित्व। उनकी कंधे तक लटकी हुई हिप्पी कट भूरे बाल, बड़ी-बड़ी कजरारी आँखें, जिस पर चश्मा लगा हुआ था। तीखे नैन-नक्श और लंबी गर्दन, जिसमें कीमती आभूषण पहने हुई थी वो महिला। उसके सुर्ख होंठों पर उदासी की गहरी परत फैली हुई थी। हां, रेशमी साड़ी पहने हुए वो महिला भद्र परिवार की प्रतीत होती थी, तभी तो दोनों की नजर उस महिला पर ही टिकी रह गई।

जबकि’ वो महिला आगे बढ़ी और मंत्री साहब के करीब पहुंची। इसके बाद उसने मंत्री साहब की आँखों में देखा और मंत्री साहब का पूरा वदन भय से कांपने लगा। उनके होंठ फड़कने लगे और हाथ अचानक ही प्रणाम की मुद्रा में जुड़ गये।

तड़ाक!

तभी जोरदार स्वर गुंजा वहां पर और वह इसलिये कि” महिला के हाथ मंत्री साहब के गालों पर थप्पड़ के रुप में पड़ चुके थे। इसके बाद’ वह महिला मंत्री साहब के गालों पर अनगिनत थप्पड़ बरसाती रही, जब तक कि” वो थक नहीं गई। इसके बाद मंत्री साहब को काँलर पकड़ कर उठाया और घसीटते हुए हाँल से बाहर ले गई।

बस’ उस महिला के रौद्र रुप को देखकर रोमील एवं सुशीत काले स्तंभित होकर रह गये। उन्हें तो समझ ही नहीं आ रहा था कि” अचानक ऐसा क्या हुआ, जो शेर से दिखने बाले मंत्री साहब भीगी बिल्ली बन गये और वो औरत कौन हैं?....जिसके सामने मंत्री साहब की एक नहीं चली और वो उनको घसीटते हुए हाँल से बाहर ले गई, बिल्कुल पालतू जानवर की तरह।

कुछ पल और जब दोनों की तंद्रा टूटी, दोनों बीच-बचाव करने के लिये बाहर लपके। परंतु….तब तक बहुत देर हो चुकी थी और वो महिला मंत्री साहब को कार में बिठाकर वहां से जा चुकी थी। ऐसे में दोनों कि-कर्तव्य बिमुढ़ बनकर हाँल में वापस लौट आए, इस बात पर मनो-मंथन करते हुए कि” अभी कुछ देर पहले हाँल में जो हुआ, वह सही था, या गलत।

लेकिन’ अब वो पल बीत चुका था, जिसपर मंथन करने से भी कुछ हासिल नहीं होने बाला था। इसलिये हाँल में पहुंचते ही दोनों ने मोबाइल निकाला और अपने सीनियर को यहां घटित हुए घटना की जानकारी देने लगे। वैसे’ भी कुछ पल पहले वहां जो घटित हुआ था, उससे उन दोनों का मन विचलित हो चुका था।

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