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रात के नौ बज चुके थे और इसके साथ ही रवाना वेअर हाउस को चारों तरफ से घेर लिया गया था। चारों तरफ सिर्फ हथियार बंद पुलिस फोर्स, जो मुस्तैद नजर आ रहे थे। ऐसे में लगता था कि” उनको इशारा मिलने की देर हैं और वे लोग इस वेअर हाउस पर अटैक कर देंगे। लेकिन’ अंदर ऐसी स्थिति थी और न ही प्रतिरोध होने बाली कोई बात थी। क्योंकि’ वे पांचों नकाब से बाहर आ चुके थे और उनमें से ज्यादातर को पुलिस अच्छे तरीके से जानती थी। तभी तो’ काँफी खतम होने के बावजूद भी सलिल हाथ में कप थामे हुए उन पांचों के चेहरे को ही देख रहा था, यह सोचते हुए कि” ऐसा भी होता हैं क्या?
जुर्म का ऐसा चेहरा, जो काँन्सेप्ट से बाहर की चीज हैं। क्योंकि’ उन पांचों में से तीन तो ऐसे थे, जिनका शहर के भद्र नागरिक में गिनती होता था। अब ऐसे लोग तो बिना कारण के जुर्म नहीं करते। जरूर कोई न कोई महत्वपूर्ण घटनायें होती हैं, जो उनके मस्तिष्क पर आघात करती हैं। तभी इस तरह के लोग जुर्म को अंजाम देते हैं और वह भी इस तरीके से कि” वह रेरर अपराध की श्रेणी में आता हैं। क्योंकि’ इस तरह के लोग परिस्थिति के निष्णात होते हैं। उनको अच्छी तरह से मालूम रहता हैं कि” वे कौन से कदम उठाएंगे, जो उनके अनुकूल होगा और उनका काम बिना बाधा के पूर्ण हो जायेगा।
उनको इस बात का न तो भय रहता हैं और न ही अफसोस होता हैं कि” वे जो काम करने जा रहे हैं, उसमें निर्दोष का भी बली चढ़ जायेगा। मतलब कि” उनको अपना ध्येय सिद्ध करना रहता हैं और इसके लिये वे किसी भी हद से गुजर जाने को तैयार रहते हैं। क्योंकि’ इस तरह के लोग तभी जुर्म को अंजाम देते हैं, जब स्थिति विकट बन जाती हैं। उनके दिमाग में प्रतिशोध की भावना तभी जागृत होती हैं, जब उनपर गहरा आघात हुआ रहता हैं। वे जुर्म के दलदल में तभी उतरते हैं, जब उनके लिये तमाम रास्ते बंद हो जाते हैं।
बस’ सलिल को उसी आघात के बारे में जानना था। उसे जानना था कि” इन लोगों ने आखिर जुर्म क्यों किया?..वह उन कारणों को जानना चाहता था, जिसके लिये इन लोगों ने जुर्म किया था और जुर्म भी ऐसा कि” उसको रेरर अपराध की श्रेणी में रखा जाये। बस’ वो सोचता जा रहा था और अपने विचारों की गोटी बिठाता जा रहा था कि” बातचीत की शुरुआत कहां से करें?
मिस्टर सलिल!....देख रहा हूं कि” तुम काफी देर से उलझे हुए हो। यहां तक कि” तुमने खाली कप को थाम रखा और उसको टेबुल पर रखना भूल चुके हो। लेकिन’ एक बात कि” तुम लगातार ही हम लोगों के चेहरे को ही देखे जा रहे हो। शायद किसी निष्कर्ष पर पहुंचना चाहते हो?.....वकील सिद्धांत चतुर्वेदी ने उसको इस तरह से उलझे हुए देखा, तो उनसे नहीं रहा गया। तभी तो’ उन्होंने मुस्करा कर अपनी बातों को कहा और एकटक उसके चेहरे को ही देखने लगे।
वकील साहब!....आपका सोचना बिल्कुल सत्य हैं। मैं आप लोग में ही उलझा हुआ हूं और कब से सोच रहा हूं कि” आप जैसे लोग भी जुर्म कर सकता हैं?....वह भी इस तरीके से कि” किसी की भी अंतरात्मा कांप उठे। उनकी बातों को सुनने के बाद सलिल ने शांत स्वर में प्रतिक्रिया दी, फिर एक पल के लिये रुककर उनके आँखों में देखने लगा। इस दरमियान उसने खाली कप को टेबुल पर टिका दिया था। बीतता हुआ पल और जब उससे नहीं रहा गया, तब आगे बोला।
शायद यही कारण हैं कि” कुछ पल के लिये मैं उलझ कर रह गया था। तभी तो काँफी का कप खाली होने के बाद भी हाथों में थामें रखा था। क्योंकि’ आप लोगों ने जिस अंदाज में जुर्म किया हैं न, वह तरीका क्रुअल कहा जा सकता हैं और इस तरह के अपराध को रेरर श्रेणी में रखा जाता हैं।
मिस्टर सलिल!....शायद तुम अभी भूल कर रहे हो। क्योंकि’ हम लोगों ने अपने अपराध को न तो कबूला हैं और न तुम हम लोगों को किसी भी अदालत में दोषी सिद्ध कर पाओगे। अगर विश्वास नहीं हो, तो आजमा कर देख सकते हो। ऐसे में बेहतर यही होगा कि” फिलहाल के लिये हम लोगों को अपराधी कहने की भूल मत करो। उसकी बातों को सुनते ही चतुर्वेदी साहब पूर्ववत बोले और बस, उनकी बातों पर तरुण वैभव ताव खा गया और तनिक तेज स्वर में बोला।
ठीक हैं, कोई बात नहीं। .सबूत तो हम लोग ढ़ूंढ़ ही लेंगे। फिलहाल तो हम लोग इस वेअर हाउस की तलाशी लेना चाहते हैं और उम्मीद हैं कि” आप लोग इस तलाशी में पूर्ण सहयोग करेंगे। कहा तरुण वैभव ने और फिर उन पाँचों के चेहरे को देखने लगा। जबकि’ उसकी बातें सुनकर क्रुमुदिका मुस्कराई। फिर उसने तरुण वैभव की आँखों में देखा और शांत स्वर में बोली।
आँफिसर!....शौक से आप इस वेअर हाउस की तलाशी कर सकते हैं। परंतु….आपके हाथ कुछ भी नहीं आएगा, क्योंकि’ यहां मेडिसिन के ड्रग्स को स्टोर किया जाता हैं और उसे संबंधित पार्टियों को भेजा जाता हैं। जो कि” कानूनी तौर पर जायज हैं और यह वेअर हाउस खन्ना इंडस्ट्रीज की संपत्ति हैं। ऐसे में यहां छानबीन में उलझ कर आप अपना समय ही बर्बाद करेंगे। कहा क्रुमुदिका ने और फिर तरूण वैभव के चेहरे को देखने लगी। जबकि’ सलिल को इस बात का एहसास हो चुका था कि” बातचीत गलत दिशा में जा रही हैं। इसलिये उसने बात को संभाला और झट बोल पड़ा।
मिस क्रुमुदिका!....लगता हैं, हम लोग बातचीत को गलत दिशा में ले जा रहे हैं। जबकि’ आप लोगों का और पुलिस का सामना किसी अलग उद्देश्य से हुआ हैं। ऐसे में उम्मीद करता हूं, आप लोग जाँच में पूर्ण सहयोग करेंगे। जिससे कि” इस केस को सुलझाया जा सके। कहा उसने और फिर बारी-बारी से उन पाँचों के चेहरे को देखने लगा। जबकि’ उसकी बातों को सुनने के बाद चतुर्वेदी साहब शांत स्वर में बोले।
यह आपने कायदे की बात कहा हैं मिस्टर सलिल!....फिर आपने जो कहा हैं, उसके लिये ही तो आपको बुलाकर लाया गया हैं यहां पर। कहा चतुर्वेदी साहब ने और सलिल के आँखों में देखने लगे। जबकि’ उनकी बातों को सुनकर सलिल जबाव देने के लिये अभी जुबान खोलने ही बाला था, तभी उसके मोबाइल ने वीप दी। फिर तो’ उसने मोबाइल निकाल कर देखा, सामने एस. पी. साहब थे।
फिर तो’ वो काँल रिसिव कर के करीब दस मिनट तक एस. पी. साहब के साथ बात करता रहा। इसके बाद फोन डिस्कनेक्ट किया और उन पांचों के चेहरे की ओर देखा, फिर गंभीर स्वर में बोला।
चतुर्वेदी साहब!....अभी आप पांचों को हम लोगों के साथ पुलिस स्टेशन चलना होगा। इसके आगे की कार्रवाई वहीं चल कर शुरु होगी।
तो फिर देर किस बात की?....चलिये, हम लोग चलते है। उसकी बातें सुनते ही चतुर्वेदी साहब मुस्करा कर बोले।
इसके साथ ही उन पांचों को सलिल ने हथकड़ी पहना दिया और उन के साथ वेअर हाउस से बाहर निकलने लगा। बस’ उसे वहां से निकलता हुआ देखकर तरुण वैभव और शांतनु देव भी उसके पीछे लपके। इसके बाद’ उन पांचों को पुलिस जिप्सी में बिठाया गया और उनको लेकर पुलिस काफिला यमुना बिहार पुलिस स्टेशन के लिये चल पड़ा। हाईवे पर सरपट दौड़ती हुई गाड़ियां और उसी रफ्तार से सलिल के दिमाग में दौड़ता हुआ विचार, वो विचार जो ताजा स्थिति के कारण बन चुका था।
हां, अभी तो उसका दिमाग बुरी तरह उलझा हुआ था इस केस को लेकर। क्योंकि’ अभी उसको बिल्कुल भी नहीं मालूम था, इस केस में आगे क्या होने बाला हैं। वैसे भी मामला इतना जटिल हो चुका था कि” जब तक इस मामले की परतों को खोला नहीं जाता, कुछ भी कहना असंभव था। खासकर तब, जब पुलिस के पास इस मामले में कोई सबूत नहीं था।
संवाददाता न्यूज आँफिस!
आँफिस के अंदर हलचल था, क्योंकि’ अभी-अभी मृदुल सिंहा को ताजा-ताजा घटित हुए वारदात के बारे में जानकारी प्राप्त हुई थी। बस’ उसके मन में हलचल सा जागृत हो चुका था। तभी तो’ तक्षण ही उसने सभी स्टाफ को अपने आँफिस में बुला लिया था और अब मीटिंग में जुटा हुआ था। क्योंकि’ पिछले चार दिनों से जो घटित हो रहा था, आज उसकी इंतिहा हो गई थी।
हां, आज मंत्री जनार्दन गुरेज के बेटे भानु गुरेज को शिकार बनाया गया था। बस’ इस खबर के महत्व को मृदुल सिंहा बहुत अच्छी तरह से जानता था। उसे मालूम था, मंत्री जनार्दन गुरेज के समर्थकों की लिस्ट बहुत लंबी हैं। ऐसे में अगर इस खबर को अच्छी तरह से कवर किया गया, तो न्यूज के लिये अच्छा फिल्ड तैयार किया जा सकता हैं। किन्तु’ उसे यह भी मालूम था, पुलिस इस मामले में चुप्पी साधे हुए हैं। इस कारण से ही तो अभी तक मीडिया को मालूम नहीं चल सका हैं कि” वारदात को किस तरह से और किसलिये अंजाम दिया जा रहा हैं। बस’ उसे उन कारणों को जानना था, जिसके लिये इस तरह से लगातार ही वारदात घटित हो रहा था।
तभी तो मृदुल सिंहा इस बात पर अपने स्टाफ के साथ उलझे हुए थे कि” आखिर कौन से कदम उठाए जायें, जिससे अंदर की जानकारी मिल सके। वह जानकारी मिल सके, जिसे जनता के सामने परोस कर टी. आर. पी. का फायदा उठाया जा सके। किन्तु’ जितना बोलना आसान था, उतना करना नहीं। तभी तो’ वो अपने स्टाफ को समझा रहा था, किसी भी तरह से पुलिस के पास से जानकारी चुरा कर ले आओ।
लेकिन’ यह काम इतना आसान भी नहीं था, इसकी अनुभूति उसको भी थी। जानता था, इस मामले में पुलिस बाले चौकन्ने थे। ऐसे में उन लोग से गलती की अपेक्षा करना शायद उचित नहीं होता। किन्तु’ इस मामले में अगर फायदा उठाना था, तो मेहनत तो करना ही था। ऐसे ही हाथ पर हाथ धरे बैठे रहने से भी तो कुछ हासिल होने बाला नहीं था। तभी तो, वो अपने स्टाफ को गंभीर होकर समझा रहा था।
देखो’ इस मामले में पुलिस बालों ने चुप्पी साधी हुई हैं। लेकिन’ हम लोग चुप्पी साधे रहे, उससे कुछ भी हासिल होने बाला नहीं हैं। इसका मतलब हैं कि” हमें कोई न कोई ऐसा कदम उठाना होगा, जिससे हम पुलिस के मुंह से इस मामले में सच्ची बात उगलवा सकें। कहा उसने और फिर मीटिंग हाँल में मौजूद स्टाफ को चेहरे को देखने लगा। जबकि’ उसकी बातों को सुनने के बाद वहां मौजूद अधिकांश का चेहरा लटक गया। किन्तु’ न्यूज रिपोर्टर माधव और रघुवीर, भला वे दोनों चुप रहने बाले नहीं थे। तभी तो माधव ने उसके चेहरे को देखा और तनिक तेज स्वर में बोला।
सर!....आप भी न, बिना मतलब के पुलिस से उलझना और हम लोगों को उलझाना क्यों चाहते हैं?....जबकि’ आप भी जानते हैं, इस मामले में इंस्पेक्टर सलिल का एंट्री हो चुका हैं। वह इंस्पेक्टर सलिल, जो तमाम परिस्थितियों से निबटने में निष्णात हैं। अब अगर ऐसे में हमने कोई गलत हरकत की, तो आपको लगता हैं कि” वह हम लोगों को ऐसे ही छोड़ देगा। कहा उसने और फिर उनके चेहरे की ओर देखने लगा। जबकि’ उसकी बातों को सुनने के बाद मृदुल सिंहा आवेश में आ गये और तनिक तेज स्वर में बोले।
माधव!....तुम क्या बोल रहे हो, इसका अंदाजा हैं तुम्हें?....लगता हैं कि” तुम इस बात को भूल चुके हो, तुम लोग काँरपोरेट आँफिस में काम कर रहे हो। जहां पर इंपासिबल कुछ भी नहीं होता और नहीं शब्द कहने की स्पष्ट रुप से मनाही हैं। कहा मृदुल सिंहा ने और एक पल के लिये रुककर मीटिंग हाँल में नजर घुमाया, इसके बाद शांत स्वर में आगे बोला।
इसका मतलब बिल्कुल स्पष्ट हैं, चाहे जैसे भी हो, काम को अंजाम दो और काम अगर नहीं हो पा रहा, तो नौकरी छोड़ कर चले जाओ। इसके बाद तुम्हारी जगह पर कोई दूसरा आएगा, जो इस काम को पूर्ण कर देगा। बिल्कुल ही तल्ख लहजे में बोला उन्होंने, फिर नजर घुमाकर सभी के चेहरे को देखा। जबकि’ उसकी बातों को सुनने के बाद माधव सकपका गया और धीरे से बोला।
सर!...मेरा कहने का इरादा यह नहीं था कि” इस मामले में हम लोग काम ही नहीं करेंगे। मैं तो बस तथ्यों को देखकर बोल रहा था कि” अब पुलिस से उलझना उचित नहीं होगा। क्योंकि’ सलिल पुलिस विभाग का तेज-तर्रार आँफिसर हैं। ऐसे में अगर उसे भनक भी लग गई कि” हम लोग क्या चाहते हैं, वह सचेत हो जायेगा और हमारे मंसूबों पर पानी फेर देगा। ऐसे में तो उचित यही होगा न कि” हम लोग पुलिस के काम में दखलंदाजी नहीं करें। अपने अंतिम शब्दों पर जोर देकर बोला वो।
इसकी चिंता तो तुम लोग बिल्कुल भी नहीं करो। इसके लिये मैं हूं न, पुलिस बाले कोई जबावी कार्रवाई करते हैं, तो मैं उस स्थिति को संभाल लूंगा। तुम लोग तो बस’ इस केस में जानकारी जुटाओ। चाहे जैसे भी हो, पुलिस के पास से इस मामले की सूचना चुरा कर ले आओ। उसकी बातों को सुनने के बाद मृदुल सिंहा बोले। इसके बाद रुककर उन्होंने उन लोगों के चेहरे को देखा। परंतु…उनकी बातों का किसी ने जबाव नहीं दिया।
बस’ कुछ देर की चुप्पी, इसके बाद करीब आधे घंटे तक वे अपने अधीनस्थ को समझाते रहे कि” किस तरह से इस मामले में काम किया जाये, जिससे सफलता मिले। बीतता हुआ समय और उनके द्वारा कहे जा रहे शब्द, लग रहा था, जैसे अधीनस्थ को सफलता की घुट्टी पिला रहे हो।
इसके बाद माधव और रघुवीर को लेकर वे आँफिस से बाहर निकले। इरादा बिल्कुल ही साफ था, घटना स्थल पर जाएंगे और वहां से जानकारी को जुटाएंगे। तभी तो’ कार के करीब पहुंचने के बाद उन्होंने दोनों को कार में बिठाया और खुद ड्राइविंग शीट संभाल ली। इसके साथ ही कार श्टार्ट हुई और गेट से निकलने के बाद सड़क पर सरपट दौड़ने लगी।
इसके साथ ही मृदुल सिंहा के दिमाग में विचार भी दौड़ने लगा, वो विचार जो उसके मन में भ्रम पैदा कर रहा था। क्योंकि’ जानता था, परिस्थिति अनुकूल हैं और ऐसे में हाँट न्यूज की झड़ी लग जानी चाहिए थी। परंतु….ऐसा हो नहीं रहा था। क्योंकि’ इस केस में बहुत सी ऐसी बात थी, जिससे वो बिल्कुल ही अंजान था। ऊपर से पुलिस का इस मामले में चौकसी बरतना, उसे समझ ही नहीं आ रहा था, इस परिस्थिति से किस तरह से लाभ उठाये, किस तरह से इस मामले में न्यूज की बारिश कर सके?
उसका मन गुना-भाग बिठाने में मशगूल था, तभी तो’ प्रयाची गेस्ट हाउस पहुंचने के बाद उसकी तंद्रा टूटी। फिर तो’ उसके पांव ब्रेक पर कसते चले गये। इसके बाद वह कार से बाहर निकल कर गेस्ट हाउस के अंदर गया, किन्तु’ उसे निराशा ही हाथ लगी। क्योंकि’ लाश को पोस्टमार्टम के लिये भेजा जा चुका था और पुलिस बाले जा चुके थे। वहां खड़े सिपाही से जैसे ही उसे इस बात की जानकारी मिली, वह उलटे पांव कार के पास लौट आया। फिर तो’ अंदर में बैठा और कार आगे बढ़ा दी।
क्योंकि’ वह यमुना बिहार पुलिस स्टेशन जाने का इरादा बना चुका था। हां, वह चाहता था, होने बाली सुबह के साथ ही वह ऐसा न्यूज परोसे, जिससे शहर में तहलका मच जाये। ऐसे में उसके दिमाग में योजना का प्रारुप बनने लगा। बीतता हुआ समय और सड़क पर भागती हुई कार।
रात के बारह बजे वो यमुना बिहार पुलिस स्टेशन पहुंचा। फिर तो’ उसने कंपाउंड में कार को पार्क किया और जैसे ही माधव और रघुवीर के साथ बाहर निकलने को हुआ, उसकी आँखों में चमक उभड़ आया। क्योंकि’ उसने देख लिया था, पुलिस के गाड़ियों का काफिला पुलिस स्टेशन के अंदर प्रवेश कर रही हैं। मतलब साफ था, जरूर हाँट न्यूज मिलेगा।
रात के दस बजे, सड़क पर भागती हुई कार’ जिसे वो भद्र महिला ड्राइव कर रही थी।
चेहरे पर फैला हुआ सन्नाटा और स्टेयरिंग पर जमा हुआ हाथ, जबकि’ आँखें कभी-कभी बगल में बैठे हुए मंत्री साहब पर चला जाता। बस’ उस औरत को अपनी ओर देखते पाकर मंत्री जनार्दन गुरेज भय से सूखे पत्ते की मानिंद कांप जाते थे। बिल्कुल ऐसा लगता था कि” उस औरत की नजर में तेज तपिश हैं। तभी तो’ उनको लगने-लगता था, जैसे उनका हलक सूखता जा रहा हो।
वैसे भी, अभी जो स्थिति बनी थी, उसके बारे में उनसे बेहतर कौन समझ सकता था?...स्वाभाविक था कि” इस उत्पन्न हुए परिस्थिति के कारण उनका हृदय भय से अक्रांत हो रहा था। क्योंकि’ ड्राइविंग शीट पर बैठी हुई वो महिला उसकी पत्नी सुगंधा गुरेज थी, जो अभी अतिशय क्रोध में थी। बस, उनके हृदय में ग्रसित भय का कारण भी वही था। क्योंकि’ उनकी पत्नी ने उनको बोला हुआ था, जिस दिन भी आपके पाप की काली छाया आपके बेटे पर पड़ी और उसे कुछ हुआ, मैं आपको भी नहीं छोड़ूंगी।
बस’ आज वही घटित हुआ था, जिसका अंदेशा उनकी पत्नी को था और वे अपनी पत्नी को अच्छी तरह से जानते थे। क्योंकि’ वह जो कहती थी, उसे हर हाल में पूरा करना जानती थी। बस’ उनके हृदय में इसी बात को लेकर भय था कि” कहीं उनकी पत्नी ने उग्र रुप धर लिया तो?....इस प्रश्न का जबाव भी वे जानते थे। उनको मालूम था, अगर उसने मन में कोई निश्चय कर लिया होगा, तो किसी भी हालत में उनको जिंदा बचा नहीं रहने देगी। अगर उसने मन में प्रण कर लिया होगा, तो निश्चय ही उनके लिये जीवन जीने के लिये आखिरी दिन होगा।
वैसे तो, जवान पुत्र के अचानक ही मारे जाने का दु:ख उनके भी हृदय में था। उनका मन हो रहा था कि” कोई कंधा मिले, जिसपर सिर रखकर वो जार-जार रोये। लेकिन’ इसका मतलब यह नहीं था, उन्हें खुद के जीवन से प्यार नहीं था। हां, मंत्री जनार्दन गुरेज की इच्छा बिल्कुल भी नहीं थी, अभी उनकी सांस उनका साथ छोड़ दे। क्योंकि’ उन्हें अभी जीवन का भरपूर आनंद उठाना था। परंतु….उनको अपनी पत्नी का हाव-भाव ठीक नहीं लग रहा था। ऐसे में एक अंजाने से भय के कारण उनका तन-मन कांप रहा था।
हां, उनके मन में उत्पन्न हुआ भय बिल्कुल यथार्थ के करीब था। क्योंकि’ ड्राइविंग शीट पर बैठी हुई सुगंधा गुरेज अभी उसी मानसिक स्थिति में थी। अभी-अभी जो वह अपने हृदय के टुकड़े को लाश में तबदील हुआ देखकर आ रही थी। उसके कारण उनके मन में क्रोध और पीड़ा का मिला-जुला लहर चल रहा था। क्योंकि’ वह इस बात को अच्छी तरह से जानती थी कि” उनके बेटे का मौत साधारण स्थिति में तो बिल्कुल भी नहीं हुआ था।
वह जानती थी, उसके बेटे को उसके पति के काले साम्राज्य ने निगल लिया हैं। हां, उसके पति ने जो जुर्म की इमारत खड़ी की थी और बेटे को जिस तरह से इस दलदल में धकेल दिया था, ऐसे में एक न एक दिन तो यही होना था। बस’ इतनी बातें दिमाग में आते ही उनका तन-मन अंगारों पर लोटने लगा था। ऐसे में उनके मन में होने लगता था, अभी कार को तेज गति से खाई में उतार दे।
लेकिन’ नहीं, इस तरह से तो उसका पति सस्ते में छूट जायेगा, जो कि” शायद उचित नहीं होगा। हां, उस जैसे पापी को साधारण मौत दी जाये, तो गलत होगा। क्योंकि’ इस तरह से तो वो एक झटके में ही मुक्त हो जायेगा। तो फिर उसके द्वारा किए गए पापों का फल भोगेगा कौन?....जबकि’ उस जैसे पापी को तो तड़पा-तड़पा कर मारा जाना चाहिये, जिस से उसे भी पीड़ा का अनुभव हो।
हां, सुगंधा गुरेज ने मन ही मन फैसला कर लिया था, आज वो अपने पति को किसी हालत में जीवित नहीं छोड़ेगी। लेकिन’ इस तरह से साधारण मौत भी नहीं मारेगी। वह खुद ही उसको अनुभव करवाएगी कि” दूसरों पर किया गया जुर्म जब खुद पर भी ढ़ाया जाये, तो फिर कैसा लगता हैं। तभी तो’ वह जल्दी से जल्दी स्वाति बिला पहुंचना चाहती थी। ताकि’ वहां पहुंच कर जनार्दन गुरेज के पापों का हिसाब कर सके। उसे अनुभव करवा सके कि” पीड़ा जब खुद की होती हैं, तब उसका स्वाद कैसा होता हैं?
उसके मन में ढ़ृढ़ होते हुए विचार और स्टेयरिंग पर चिपके हुए हाथ, वह हर बीतते क्षण के साथ ही कार के स्पीड को बढ़ाती जा रही थी। क्योंकि’ भानु गुरेज के द्वारा शांति से लिये जा रहे सांसों से उसके मन में चिढ़ सा उत्पन्न हो रहा था। हां, वह उसके मुख से निकलते हुए मार्मिक चीखों को सुनना चाहती थी। जिससे उसके तन-मन को शांति मिल सके।
आगे की ओर बढ़ता हुआ समय और सड़क पर सरपट दौड़ती हुई कार और दोनों के मन में उठते हुए विचार। रात के इस समय वैसे तो सड़कों पर ट्रैफिक कम हो जाती हैं। परंतु….उन दोनों के ही मन में विचारों का ट्रैफिक लगा हुआ था।
फिर तो’ वह भी समय आ गया, जब कार ने स्वाति बिला के गेट से अंदर प्रवेश किया। इसके साथ ही सुगंधा गुरेज ने कार को ले जाकर पोर्च में खड़ी किया और तेजी से बाहर निकली। इसके बाद उसने मंत्री जनार्दन गुरेज के हाथों को पकड़ा और खींच कर उनको बाहर निकाला। इसके बाद’ उनको घसीटती हुई अंदर ले जाने लगी। स्वाति बिला, जो रोशनी से नहाई हुई जगमग कर रही थी, मौन होकर इस दृश्य को देखे जा रही थी। जबकि’ सुगंधा गुरेज अपने पूरे ताकत से मंत्री जनार्दन गुरेज को घसीटते हुए अंदर ले जा रही थी।
दर्द से बिलबिलाते हुए मंत्री साहब। उनके आँखों से आँसू छलक आया था, परंतु…उनके दर्द को कोई समझने बाला नहीं था। इसलिये वो अपने होंठों को दांतों से दबाकर पीड़ा पीने की कोशिश कर रहे थे। किन्तु’ कब तक?..आखिर उनका धैर्य कब तक उनका साथ देता?
क्योंकि’ जैसे ही सुगंधा गुरेज हाँल में पहुंची, मंत्री को बोरी की तरह फर्श पर पटक दिया। इसके साथ ही मंत्री साहब के मुख से दर्द भरी चीख निकली। ऊई मां!...जो कि” उनके कंठ से निकली थी और दरों-दीवाल को बेधती चली गई थी। परंतु….सुगंधा गुरेज इतने पर ही नहीं रुकी। वह अंदर गई और मोटा रस्सा उठा लाई। इसके बाद’ उसने पांच मिनट भी नहीं लगाया और मंत्री साहब को उलटा बांध दिया, इसके बाद धक्का देकर उनको फर्श पर पलट दिया और अंदर जाकर हंटर उठा लाई।
तड़ाक-तड़ाक!
इसके बाद वह जनार्दन गुरेज के शरीर पर पूरे ताकत के साथ हंटर बरसाने लगी, जिसके कारण हाँल में तड़ाक की आवाज गुंजने लगी और साथ ही मंत्री साहब के होंठों से दर्द भरी चीत्कार भी निकलने लगा। वो चीत्कार’ जो दीवाल से टकरा कर बेकार साबित हो रहा था। हां, हंटर पड़ने से मंत्री साहब के शरीर पर जगह-जगह जख्मों का निशान बन गया था और उससे लहू रिसने लगा था।
किन्तु’ सुगंधा गुरेज के चेहरे पर शिकन तक नहीं आया। हां, आज लग रहा था जैसे वो रण चंडी बन गई हो और अब जनार्दन गुरेज के शरीर से प्राण निकाल कर ही मानेगी। तभी तो’ वह पूरे ताकत के साथ हंटर चला रही थी। यह जानने की कोशिश किए बिना कि” मंत्री साहब के किन अंगों पर हंटर की बौछार हो रही हैं और चोट सही से लग रहा हैं या नहीं।
क्योंकि’ वह जितने तेजी से प्रहार करती जा रही थी, उससे दुगुने तेजी से उसके हृदय में घृणा की अग्नि प्रज्वलित हो रहा था। कई वर्षों का दवा हुआ नफरत आज अचानक ही मुखरित हो चुका था, जिसकी ज्वाला में वो आज मंत्री साहब की आहूति देने को तत्पर हो गई थी। अपने साथ किए गए एक-एक जुल्म का हिसाब कर लेना चाहती थी वो। हां, आज उसने मन में फैसला कर लिया था कि” बीते दिनों के अध्याय को आज पूर्ण विराम लगाकर रहेगी।
यमुना बिहार पुलिस स्टेशन!
रात के बारह से ऊपर का समय हो चुका था। किन्तु’ मीटिंग रूम में अभी हलचल था, क्योंकि’ रवाना वेअर हाउस से लौटने के बाद उन पांचों को मीटिंग रूम में ही रखा गया था। क्योंकि’ एस. पी. साहब ने निर्देश दिया था, उन लोगों को मीटिंग रूम में ही रखे। उन्होंने कहा था कि” मैं आ रहा हूं, तब तक तुम वीडियो रिकार्डिंग करने की तैयारी करवाओ। फिर’ मैं आते ही पूछताछ करने की शुरुआत कर दूंगा।
बस’ तरुण वैभव और सुशीत काले तैयारियों में जुट गया था। क्योंकि’ बाँस ने आदेश दिया था, ऐसे में अगर त्रुटि हुई तो, जानता था खैर नहीं हैं। जबकि’ सलिल एवं रोमील उन पांचों के सामने चेयर पर बैठे हुए थे और उनकी निगाह उन पांचों पर टिकी हुई थी। हां, अपलक ही तो दोनों उन पांचों को देखते जा रहे थे और सोचते जा रहे थे कि” क्या ऐसा भी हो सकता हैं?
क्योंकि’ उन पांचों में से किसी के भी चेहरे को देखकर नहीं लगता था कि” इस तरह के अपराध को वे लोग अंजाम दे सकते हैं। उन पांचों का मासूम चेहरा, जो इस बात की पुष्टि करता था कि” वे लोग एक चींटी को भी नहीं मार सकते। किन्तु’ उनके चेहरे को देखकर भले ही कोई मात खा जाये, परंतु…उन पांचों ने जिस तरह से शहर को लाश से पाट दिया था, उससे उनकी क्रूर मानसिकता का पता चलता था। वे पांचों, जिन्होंने योजनाबद्ध तरीके से चार-चार जगह पर चार दिनों तक लगातार ही सामूहिक नरसंहार करवाया था और फिर सबूत भी मिटा दिए थे। उन्होंने जो किया था, उसे रेरर अपराध की श्रेणी में रखा जाता हैं।
हां, उन पांचों ने हत्याएँ करवाई थी और उन डेड बाँडी से मानव अंगों की चोरी भी की थी। इस तरह से उन्होंने मानव अंगों की तस्करी भी की थी। ऐसे में उनके चेहरे का भोलापन बस एक छलावा था, जो कि” अंजान व्यक्ति को जरूर प्रभावित कर सकता था, लेकिन उन्हें नहीं। क्योंकि’ वे दोनों पांचों की जुर्म करने की मानसिकता को अच्छी तरह से समझ चुके थे।
तभी तो’ दोनों उन पांचों के चेहरे पर नजर जमाये हुए थे और उनके चेहरे के भाव पढ़ने की कोशिश कर रहे थे। परंतु….उन्हें सफलता नहीं मिल पा रही थी, क्योंकि’ पांचों का चेहरा भले ही मासूम लग रहा था, किन्तु’ था भाव विहीन। ऐसे में उनके चेहरे को पढ़ पाना दुष्कर कार्य था।
इधर’ हाँल में बैठे हुए मृदुल सिंहा, बार-बार अपने मातहत के चेहरे को ही देख रहे थे और बोर हो रहे थे। क्योंकि’ उन्हें मीटिंग रूम में प्रवेश नहीं करने दिया गया था और उनकी आशाओं पर तुषार पात हो गया था। नहीं तो, जैसे ही उसने देखा था, पुलिस शहर के नामचीन व्यक्तियों को गिरफ्तार कर के ला रही हैं, उसकी बाछें खिल गई थी। लगा था, आज न्यूज के लिये खुब तरी-मसाला मिलेगा। परंतु….उसे मीटिंग रूम में जाने से रोक दिया गया और उसके सारे सपने धरे के धरे रह गये।
तभी तो’ हाँल में काम पर लगे हुए सिपाहियों को, तो कभी अपने मातहत को देखता था और मन की बेचैनी को कम करने की कोशिश करता था। इस आशा के साथ कि” इतना बड़ा मामला हैं, तो जरूर सीनियर अधिकारी का आगमन होगा। तब जरूर कोशिश करने पर अंदर जाने की अनुमति मिल जाये और वो अपने मन मुताबिक न्यूज को कवर कर सके। फिर उसमें अपने हिसाब से मसाला मिक्स करेगा और फिर जनता के सामने परोस देगा। इसके बाद तो उसकी बल्ले-बल्ले हैं।
हां, मृदुल सिंहा विचारों में उलझा हुआ था, तभी अचानक ही उसकी तंद्रा टूटी और नजर गेट पर गई। इसके साथ ही वो चौंक उठा, क्योंकि’ पुलिस कप्तान अजय चतुर्वेदी साहब गेट से प्रवेश कर रहे थे। सिंह चाल में आगे बढ़ते हुए अजय चतुर्वेदी साहब और मृदुल सिंहा संभल कर बैठ गया। इस आशा के साथ कि” अगर उनका रहमों-करम हो गया, तो उसको मीटिंग रूम में प्रवेश मिल सकता हैं।
लेकिन’ ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। क्योंकि’ चतुर्वेदी साहब ने अंदर कदम रखा और उसकी ओर देखे बिना ही मीटिंग रूम में प्रवेश कर गए। ऐसे में अपनी दाल गलती नहीं देखकर वो मन मसोस कर रह गया। उधर’ एस.. पी साहब ने जैसे ही मीटिंग रूम में कदम रखा, सलिल, रोमील, तरूण वैभव और सुशीत काले एक साथ खड़े हो गए। फिर उन चारों ने एस. पी. साहब को सैल्यूट दिया। जिसका जबाव देकर चतुर्वेदी साहब आगे बढ़े, फिर एक कुर्सी खींच कर उन पांचों के करीब जाकर सामने बैठ गए।
फिर उन्होंने अपनी नजर उन पांचों के चेहरे पर टिका दी। किन्तु’ उनके इस तरह देखने से उन पांचों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। वे पांचों भी एस. पी. साहब से आँखों से आँखें मिलाये बैठे रहे। ऐसे में एस. पी. साहब का धैर्य जबाव दे गया, तभी तो वे वकील साहब को संबोधित करके बोले।
सिद्धांत चतुर्वेदी साहब!....आपके नाम का भी सार्थक अर्थ हैं और आप पेशे से भी कानून के रक्षक हैं। ऐसे में आप जैसे लोग ही अगर जुर्म की राह पकड़ेंगे, तो फिर शहर का क्या होगा?....कहा उन्होंने, फिर एक टक वकील साहब के चेहरे को देखने लगे। इस आशय के साथ कि” उनके मन के भाव पढ़ सके, किन्तु’ उन्हें इस काम में सफलता नहीं मिली। जबकि’ उनकी बातों को सुनकर सिद्धांत चतुर्वेदी मुस्कराए, फिर उन्होंने हाँल में नजर घुमाया और शांत स्वर में बोले।
एस. पी. साहब!....आप इस तरह से हम लोगों पर इल्जाम नहीं लगा सकते। क्योंकि’ न तो अभी हम लोगों पर जुर्म साबित हुआ हैं और न ही आप साबित ही कर पाएंगे।
तो आप कहना चाहते हैं कि” आप लोग निर्दोष हैं। आपने कोई अपराध नहीं किया हैं, ऐसा कहना हैं आप लोगों का। वकील साहब की बातों को सुनकर एस. पी. साहब तनिक तेज आवाज में बोले। जबकि’ उनकी बातें सुनकर वकील साहब के चेहरे की मुस्कान और भी गहरी हो गई। फिर उन्होंने एस. पी. साहब की आँखों में देखा और पूर्ववत बोलने लगे।
आप भी खामखा नाराज हो रहे हैं सर!....मैंने तो यह नहीं कहा कि” हम लोग निर्दोष हैं। मैंने तो सिर्फ यही कहा कि” आप लोग चाहे जिस अदालत में चले जायें, पर हम लोगों के जुर्म को साबित नहीं कर पाएंगे। अब इसमें नाराज हो जाने बाली कोई बात नहीं हैं।
तो आप लोग कुछ भी बतलाने के मूड में नहीं हैं?....उनकी बातों को सुनकर एस. पी. साहब ने तत्काल ही दूसरा प्रश्न दाग दिया। जिसका जबाव वकील साहब ने नहीं दिया।
ऐसे में वहां पर अजीब सा सन्नाटा पसर गया, जो सब के मन को बेधने लगा। परंतु….उससे ज्यादा, सलिल, रोमील, तरूण वैभव और सुशीत काले उन लोगों के दिलचस्प होते बातचीत को सुन रहे थे। हां, उनके मन में उत्कंठा जागृत हो चुकी थी आने बाले समय को लेकर। ऐसे में उन्हें इंतजार था, वकील साहब अब क्या जबाव देंगे और उसके बाद एस. पी. साहब की क्या प्रतिक्रिया होगी।
धीरे-धीरे आगे की ओर बढ़ता हुआ समय और उसी अनुपात में मीटिंग रूम में बढ़ता हुआ तनाव। ऐसा लग रहा था, अब एस. पी. साहब का धैर्य जबाव दे देगा। किन्तु’ इस प्रकार की स्थिति नहीं आई। क्योंकि’ अचानक ही सिद्धांत चतुर्वेदी ने एस. पी. साहब की आँखों में देखा और धीरे से बोले।
एस. पी. साहब!....हम लोग पुलिस के साथ सहयोग करना चाहते हैं, तभी तो खुद को कानून के हवाले किया हैं। परंतु…इससे पहले आप उस युवती से पूछताछ करें, जिसे घटनास्थल पर पाया गया हैं, तो समझता हूं कि” इस केस को सुलझाने में आपको सहूलियत होगा।
वकील साहब का कहना और एस. पी. साहब के चेहरे पर तनाव की रेखा खींच गई। फिर तो उन्होंने पलट कर तरूण वैभव की ओर देखा और उनके देखने भर की देर थी, सुशीत काले तेजी से मीटिंग रूम से बाहर निकल गया।
रोहिणी पुलिस स्टेशन!
राम माधवन आँफिस में बैठा हुआ झपकी ले रहा था। हां, उसकी पलकें बोझिल हो चुकी थी, इसलिये वह निंद को पूरा करने के चक्कर में पड़ गया था। राम माधवन, जो कि” बलिष्ठ शरीर का स्वामी था। हट्टा- कट्ठा शरीर बाला राम माधवन, सिर्फ अपने रंग के कारण मात खा जाता था। परंतु….इसके लिये उसके मन में किसी प्रकार का क्षोभ कभी उत्पन्न नहीं हुआ था। तभी तो’ अपने श्यामल रंग के अनुरूप वो बड़ी-बड़ी मूंछें रखता था, जो उसपर फबती भी थी।
ऐसा राम माधवन जब शांत अवस्था में हो, थोड़ा आकर्षक भी लगता था। स्वाभाविक था, ऐसे में निंद के आगोश में समाया हुआ वो मासूम लग रहा था। नहीं तो’ अपराधी के लिये वो काल के समान था, परंतु….इस समय बिल्कुल शांत और सौम्य। क्योंकि’ इस समय उसके पास न तो कोई काम था और न ही सलिल एवं रोमील ही एरिया में मौजूद थे।
हां, शाम को ही सलिल ने उसको ताकीद की थी, रात को पुलिस स्टेशन में ही मौजूद रहे और कोई दिक्कत बाली बात होती हैं, तो संपर्क करें। बस’ उसपर बन आई थी। क्योंकि’ अकेले इस आँफिस में बैठे रहना कोई साधारण काम तो नहीं था, उसके जैसे हंसमुख व्यक्ति के लिये। शायद’ यही कारण भी था, न चाहकर भी वह धीरे-धीरे निंद के आगोश में समा गया था।
वैसे भी’ घंटा भर पहले उसकी सलिल के साथ बात हुई थी और सलिल ने उसको बताया था, शहर में हो रहे वारदात की अपराधी पकड़ा जा चुका हैं। बस’ वह बेफिक्र हो चुका था और यही कारण था, अभी वो झपकी का आनंद ले रहा था। क्योंकि’ जब अपराधी पकड़े जा चुके हैं, तो कोई भी वारदात घटित होने की संभावना नहिवत थी। तो फिर फिक्र करके वह अपनी रात क्यों खराब करें?
किन्तु’ ऐसी स्थिति ज्यादा देर तक नहीं रह सकी, क्योंकि’ आँफिस का लेंड-लाइन अचानक ही घनघना उठा। निशा रात्रि का पहर और फोन की घंटियों का शोर, राम माधवन की आँखें खुल गई। फिर तो’ उसने उचटती निगाहों से फोन को देखा, जैसे कोई अजायब हो। इसके बाद चोंगे को उठा लिया और कान से लगा लिया। इसके साथ ही काँल रिसिव होते ही न जाने उधर से क्या कहा गया, राम माधवन शीट पर उछल पड़ा। उसकी स्थिति को देखकर तो यही लगा कि” उसे एक साथ हजार बिछुओं ने काट खाया हो।
चेहरे पर छलक आई पसीने की बुंदे और बढ़ी हुई दिलों की धड़कन। आखिरकार कांपते हुए हाथों से उसने चोंगे को यथा- स्थान रखा और तेजी से उठ खड़ा हुआ। फिर तो’ तेजी से आँफिस से बाहर निकला और दो सिपाहियों को लेकर जिप्सी की ओर बढ़ा। साथ ही मोबाइल निकाल कर सलिल को फोन काँल मिलाया और काँल रिसिव होते ही आए हुए फोन काँल की उसको सूचना देने लगा।
इसके बाद सिपाहियों के साथ जिप्सी में बैठा और इंजन श्टार्ट करके आगे बढ़ा दी। इसके साथ ही जिप्सी पुलिस कंपाउंड से निकली और सड़कों पर सरपट दौड़ने लगी। इसके साथ ही उसके मन में विचार भी दौड़ने लगे, वे विचार जो उसको विकल कर रहे थे। रात के इस समय, जब शहर पूरी तरह से निंद के आगोश में समाया होता हैं, वह पागलों की तरह जिप्सी को भगाये जा रहा था।
क्योंकि’ फोन काँल से उसको जो सूचना दी गई थी, उससे उसके हाथ-पांव फूल गए थे। हां, जिस घटना के बारे में उसको जानकारी दी गई थी, वह साधारण नहीं कहा जा सकता था। ऐसे में अगर वहां पर मीडिया बाले पहुंच गए तो?....यह प्रश्न उसके दिमाग में कौंध रहा था।
और बहुत हद तक वह इस प्रश्न के उत्तर को भी जानता था। जानता था, इस स्थिति में शहर में आग लग जाये, यह तय हैं। क्योंकि’ जिस मामले के बारे में उसको जानकारी दी गई थी, वह हाई-प्रोफाईल था। बस’ उसे मालूम था कि” अगर मंत्री जनार्दन गुरेज के सपोर्टरों को इस बात की भनक लग गई, फिर तो स्थिति को संभालना मुश्किल हो जायेगा।
बस’ यही कारण था कि” वह जल्द से जल्द मंत्री साहब के निवास पर पहुंच जाना चाहता था और जैसे भी हो, मीडिया बाले के आने से पहले मामला निपटा देना चाहता था। क्योंकि’ वर्तमान परिस्थिति में उसके लिये यही हितकर था। नहीं तो, वह अकेले परिस्थिति से उलझ कर परेशान हो जायेगा। सोचा राम माधवन ने और सिर झटक कर खुद पर हावी हो रहे विचार को दूर फेंका और ड्राइव में ध्यान पिरोने की कोशिश करने लगा। परंतु….ऐसा संभव नहीं हो सका।
क्योंकि’ विचार जो मन पर हावी होने लगता हैं, वह परिस्थिति की उपज हैं। ऐसे में अचानक ही जब विपरीत परिस्थिति का आगमन हो जाता हैं, अथवा उसको इस तरह के किसी विकट घटना का सामना करना पड़ता हैं। उस समय स्वाभाविक रुप से उसके मनो-मस्तिष्क पर विचार हावी होने की कोशिश करने लगता हैं। ऐसे समय में इंसान लाख कोशिश करता हैं कि” इन विचारों से पीछा छुड़ा ले। परंतु….वह अपने कोशिश में नाकाम ही साबित होता हैं।
बस’ यही स्थिति राम माधवन के दिमाग की थी। क्योंकि’ इस तरह के स्थिति से उसका कभी भी अकेले सामना नहीं हुआ था। लेकिन’ आज वो अकेला था और ऐसे में थोड़ा घबराहट भी उसपर हावी होता जा रहा था। किन्तु’ राम माधवन ऐसा नहीं था, जो परिस्थिति से हार मान ले। वह तो अपने मन को ढ़ाढ़स बंधाने में जुटा हुआ था और बार-बार खुद को संबोधित करके बोल भी रहा था। परिस्थिति चाहे जो बने, परंतु घबराऊँगा नहीं और कोशिश करूंगा कि” मामला जल्दी निपट जाये।
धीरे-धीरे आगे की ओर बढ़ता हुआ समय और उसी रफ्तार में सड़क पर भागती हुई जिप्सी। रात के ठीक दो बजे जिप्सी ने मंत्री साहब के बिला में प्रवेश किया और राम माधवन ने राहत की अनुभूति की। क्योंकि’ बिला के अंदर निरव शांति व्याप्त थी। इसका मतलब था, पुलिस को छोड़ कर इस घटना के बारे में किसी को भी जानकारी नहीं दी गई थी।
हाश!....अब चिंता की कोई बात नहीं। राहत की अनुभूति करने से स्वतः ही उसके मुख से निकला। फिर तो’ उसने जिप्सी को पोर्च में खड़ा किया और नजर घुमाकर देखा। अति भव्य बिला, जो रोशनी में नहाई हुई थी। परंतु…इस शांति को देखकर वो चौंका भी। तो क्या मंत्री साहब के आवास पर नौकर-चाकर नहीं रहते?....उसने खुद से प्रश्न पुछा जैसे और फिर खुद ही बोल पड़ा। नहीं रहे नौकर-चाकर, मुझको इससे क्या?
बस’ इतनी बातें बोलने के बाद वह सिपाहियों के साथ जिप्सी से बाहर निकला और हाँल की ओर बढ़ गया। धीमे कदमों से बढ़ता हुआ वो, चारों तरफ नजर घुमाते हुए। लेकिन’ जैसे ही उसने हाँल में कदम रखा, उसकी आँखें आश्चर्य से फैल गई। क्योंकि’ अभी जो उसकी आँखों ने देखा था, सामान्य स्थिति में विश्वास करने योग्य कदापि भी नहीं था।
उसने जो देखा, मंत्री जनार्दन गुरेज के गले में फंदा कसा हुआ था और रस्सी छत के हूक से बंधा हुआ था। हवा में झुलता हुआ मंत्री साहब का शरीर इस बात की पुष्टि कर रहा था कि” उनके शरीर से कब का प्राण निकल चुका हैं। हां, गर्दन में रस्सी कसा होने के कारण उनकी जिह्वा बाहर को लटक गई थी और आँखें उलटी हुई थी। साथ ही ऐंठ चुका शरीर हवा में झूल रहा था।
जबकि’ सुगंधा गुरेज, वह सोफे पर बैठी हुई उदास आँखों से मंत्री साहब के शरीर को ही एकटक देखे जा रही थी। ऐसे में राम माधवन को समझ ही नहीं आ रहा था कि” वो क्या करें?....अजीब सी स्थिति उत्पन्न हो गई थी उसके लिये और शायद वह इसी स्थिति में न जाने कब तक रहता। तभी अचानक ही उसको पदचाप की आवाज सुनाई दी, पलट कर देखा तो एस. पी. साहब एक्सपर्ट टीम के साथ हाँल में प्रवेश कर रहे थे। बस’ एस. पी. साहब को देखते ही वह राहत की अनुभूति करने लगा।
मीटिंग रूम में इस समय पूर्ण रुप से शांति पसरा हुआ था और उस का कारण उस युवती के द्वारा कहा गया वृतांत। उसने एस. पी. साहब को बतलाया था, जब वो भानु गुरेज के साथ उस गेस्ट हाउस पर पहुंची थी, उसके बाद वहां क्या-क्या घटित हुआ था। उसने बतलाया कि” किस तरह से चारों लड़के मानव से दानव बन गए थे और उसके कोमल अंगों को नोचने-खसोटने लगे थे। हां, उन चारों की दानवता इस कदर बढ़ गई थी कि” अगर उनपर हमला नहीं होता, तो हमारी सांस मुझसे छीन लेते।
बोलकर रुकी वह युवती और फिर करुण क्रंदन करने लगी। ऐसे में एस. पी. साहब को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। किन्तु’ कोशिश करके युवती को वहां से बाहर भेज दिया और अब अपनी निगाह उन पांचों के चेहरे पर जमाये हुए एकटक देख रहे थे, परंतु….मौन होकर।
क्योंकि’ युवती की बातों ने उनके दिमाग में घमासान मचा दिया था। हां, उन्हें यह समझ ही नहीं आ रहा था, कोई इतना क्रूर भी हो सकता हैं। इस तरह से क्रूर हो सकता हैं कि” अपनी हवस की आग मिटाने के लिये किसी की जान लेने पर तुल जाये। परंतु….इस बात को झुठलाया भी तो नहीं जा सकता था। मतलब कि” वे चारों प्रथम तो मानवता के गुनहगार थे। वो भी इस तरह के कि” उनसे अच्छा तो सांप होता हैं। सांप तो छेरने पर ही काटता हैं और सांस छीनने की कोशिश करता हैं।
परंतु…..उन चारों युवकों का कुकृत्य तो सांप से भी अधिक विषैला और घातक था। मतलब कि” जब उन चारों की ऐसी आदत थी, तो उन चारों ने न जाने कितने ही युवतियों को अपने हवस की अग्नि में जला डाला होगा। उफ!.... समाज में इस तरह के लोग भी रहते हैं क्या?....आखिर आज के युवक इस तरह के घृणित मानसिकता सीखते कहां से हैं और उनमें इतनी क्रूरता कहां से आती हैं? मतलब कि” इस तरह से कोई भी अचानक ही तो हैवान नहीं बन जाता होगा।
फिर इन पांचों का, जो हमारे सामने बैठे हैं, इन का उन युवकों से किस तरह का संबंध हैं?....अचानक ही यह प्रश्न एस. पी. साहब के दिमाग में कौंधने लगा। क्योंकि’ आज चार दिनों से जितनी भी हत्याएँ हुई थी, सीधे तौर पर जनार्दन गुरेज से संबंधित था। उसमें भी आज, जो भानु गुरेज को मारा गया था, उनका ही बेटा था। मतलब साफ था, यह मामला प्रतिशोध का था। लेकिन’ इतने लोगों के साथ प्रतिशोध?....यह माजरा उनको समझ ही नहीं आ रहा था, तभी तो दिमाग में प्रश्न का गुच्छ बनता जा रहा था।
सर!...लगता हैं कि” आप कुछ उलझ गए हैं?...अगर ऐसी बात हैं, तो फिर आपस में संवाद करने की जरूरत हैं। अन्यथा तो’ आप और भी अधिक उलझते चले जायेंगे। जो कि” न तो आप लोगों को चैन देगा और न ही हमारे हित में हैं। उन्हें इस तरह से विचारों में उलझा हुआ देखकर सिद्धांत चतुर्वेदी ने उनके चेहरे की ओर देखा और धीरे से बोला। जबकि’ उसकी बातों को सुनने के बाद एस. पी. साहब की तंद्रा टूट गई। फिर उन्होंने वकील साहब के चेहरे को देखा और शांत स्वर में बोले।
चतुर्वेदी साहब!....आपका अनुमान बिल्कुल सत्य हैं। बस’ समझिए कि” इस मामले में मेरा दिमाग पूरी तरह से उलझ चुका हैं। यहां तक कि” जहां सोचता हूं और अधिक उलझ जाता हूं। कहा उन्होंने और एक पल के लिये रुके, फिर उन पांचों के चेहरे को देखा, जैसे उनके भावों को पढ़ना चाहते हो। परंतु….इस काम में सफलता नहीं मिली, तो गंभीर स्वर में आगे बोले।
अब उम्मीद करता हूं, आप लोग इस उलझन को सुलझाने में सहयोग करेंगे। क्योंकि’ मैं भलीभांति समझ चुका हूं, इस उलझन को आप लोगों के अलावा कोई नहीं सुलझा सकता। कहा उन्होंने और फिर अपनी निगाह उन पांचों के चेहरे पर टिका दी। जबकि’ उनकी बातें सुनकर सिद्धांत चतुर्वेदी मुस्कराने लगे। बस एक पल और उन्होंने एस. पी. साहब के आँखों में देखा और शांत स्वर में बोले।
सर!....हम लोग यहां पर उसी उलझन को सुलझाने के लिये। ऐसे में आप विश्वास रखिये, आपके साथ हम लोगों का सहयोग पूर्ण रवैया रहेगा। हम लोग उन तमाम गुत्थियों को सुलझाएंगे, आपके तमाम प्रश्नों का उत्तर देंगे, जो अब तक आप लोगों को परेशान करता रहा हैं। बोले सिद्धांत चतुर्वेदी, फिर एक पल के लिये रुके और एस. पी. साहब को देखा, फिर खंखार कर गला साफ किया और आगे बोले।
किन्तु’ उससे पहले आपको मेरे प्रश्न का जबाव देना होगा। वे प्रश्न’ जिससे हम लोग बहुत दिनों से दो-चार होते रहे हैं, किन्तु’ अब तक उत्तर ढ़ूंढ़ने में सफलता नहीं मिली हैं। क्योंकि’ वह प्रश्न जटिल नहीं होते हुए भी अतिशय जटिल बना हुआ हैं।
आप पुछिए तो चतुर्वेदी साहब, अगर मुझे उत्तर मालूम रहा, तो आपको निराश नहीं करूंगा। वकील साहब की बातें सुनकर एस. पी. साहब बोल पड़े।
सर!....वे चारों युवक की प्रकृति आपको कैसी लगी?...फिर खुदा न खस्ता उन चारों युवक ने आपके किसी स्वजन के साथ इस तरह के अपराध को अंजाम दिया होता, तो आप क्या करते?....साथ ही उनको अगर मार डाला गया हैं, तो वह समाज हित में हैं, या नहीं?....एस. पी. साहब के हामी भरते ही बोले वकील साहब, फिर रुके और उनकी आँखों में देखने लगे। जबकि’ उनके प्रश्न सुनकर एस. पी. साहब एक पल के लिये अवाक रह गये। हां, उन्हें बिल्कुल भी समझ नहीं आ रहा था, इस प्रश्न का उत्तर क्या दें?
समझ तो वहां पर बैठे हुए सलिल, रोमील, तरुण वैभव और सुशीत काले को भी कुछ नहीं आ रहा था। तभी तो वे लोग उन पांचों के चेहरे को आश्चर्य भरी नजरों से देख रहे थे। परंतु…एस. पी. साहब, उन्होंने तो वचन दिया था, इस कारण से चुप नहीं रह सकते थे, तभी तो बोले।
अगर ऐसा होता, तो निश्चित रुप से मैं उनको अपने गोलियों का शिकार बना लेता। क्योंकि’ निश्चित रूप से वे दानव थे और इस तरह के व्यक्ति के लिये समाज में कोई स्थान नहीं। ऐसे में यह कहा जा सकता हैं, उनका जीवित रहना समाज के लिये भार के समान था। परंतु….कानून इसकी इजाजत नहीं देता, भले ही वे चारों कैसे भी थे, परंतु…उन्हें सजा देने का अधिकार कानून के पास था।
सर!....आप भूल कर रहे हैं, दानव वे चार ही नहीं, अपितु अभी तक मारे गए सभी थे। रही कानून की बात, तो ऐसे मामलों में कानून बौना ही साबित होता हैं। क्रुमुदिका, जो कि” अब तक चुप थी, उनकी बातें सुनकर अचानक ही बोल पड़ी।
क्रुमुदिका!....वह तो ठीक हैं, परंतु…तुम लोगों ने जो अपराध किया हैं, उसके बारे में बतलाओ। क्योंकि’ इस तरह के मामले बिना कारण के अंजाम नहीं दिए जाते। मतलब साफ हैं, कोई न कोई बात हैं, तभी तो तुम लोगों ने इस तरह के वारदात को अंजाम दिया। क्रुमुदिका की बातें सुनकर एस. पी. साहब मुस्कराए, फिर मुख्य बिंदु पर आते हुए बोले। साथ ही उन्होंने अपनी निगाह क्रुमुदिका के चेहरे पर टिका दी।
सर!...पूरा मामला समझने के लिये आपको अतीत के पन्नों में जाना होगा। जो कि” अतिशय ही भयावह हैं और शायद पूरे मामले का केंद्र बिंदु भी। एस. पी. साहब की बातों को सुनकर क्रुमुदिका ने गहरा सांस लिया, फिर गंभीर स्वर में बोली।
इसके बाद वह एक पल के लिये रुकी और बारी-बारी से सभी के चेहरे को देखा। इसके बाद वह अपने अतीत के स्याह पन्नों में खोती चली गई। वह पन्ना, जो अधिक ही भयावह और हृदय को पीड़ा देने बाला था। उन बीते दिनों की यादें, जो रक्त-रंजित था। फिर तो’ अपने बीते दिनों के अध्याय को एक-एक करके पलटने लगी और वहां मौजूद एस. पी. साहब के साथ सभी ध्यान पूर्वक उन बातों को सुनने लगे और समझने की कोशिश करने लगे। उस स्याह अतीत को, जो अपने अंदर कई राज दफन किए हुए था।
सर्मिष्ठा खन्ना!
नाम के ही अनुरूप सुंदर और चंचल। उसकी हिरणी सी आँखें, जो किसी को भी अपनी ओर ललचा ले। उसपर कमानीदार भँवें और ऊँचे ललाट। मांसल गुलाबी गाल, जो हंसने पर खंजन बनाते थे और गुलाब के पंखुड़ी से रसीले ओंठ।
घने काले स्याह बाल, जो घुटनों तक लटके हुए थे और बादल का रुप धारण कर रहे थे। उसपर लंबी गरदन और लंबा कद, साथ ही उभड़े हुए वक्ष स्थल और आकर्षक नितंब। हां, कमायनी सी सुंदर थी सर्मिष्ठा खन्ना। उसपर इस समय उसके होंठों पर खिलखिलाहट भरी हंसी, लग रहा था सफेद बादलों के बीच बिजली चमक रहा हो जैसे। हां, इस समय वो अपने सखियों समेत अपने कार की ओर बढ़ रही थी, तभी उसकी सखी नंदा ने मजाक कर दिया था और वो खिलखिला कर हंस पड़ी थी।
वैसे भी, हंसमुख स्वभाव की थी वो, उसपर आज उसका जन्मदिन था। ऐसे में उसके सखियों ने, जो कि” उसकी खास थी, पार्टी देने के लिये कहा था और वो अब काँलेज से निकल रही थी उन सभी को लेकर। हां, वे लड़कियां चार थी और एक सर्मिष्ठा, कुल पांच। दोपहर के एक बजे, काँलेज का क्लास छोड़कर किसी वियर बार में जा रही थी, आज का दिन एँज्वाय करने के लिये।
ऐसे में स्वाभाविक रुप से उन लोगों के बीच चुहल बाजी चलने लगा था। उसकी सहेलियां, जो अकसर ही इसी ताक में रहती थी, सर्मिष्ठा को किस तरह से छेड़ा जाये, आज फिर उन सभी को मौका मिल चुका था, तो भला वे लोग मौका क्यों चुकती?....उसमें भी सर्मिष्ठा खन्ना का आज जन्मदिन था, उसके लिये खुशी का पल। तभी तो’ उसको भी इस चुहल बाजी में आनंद आ रहा था।
धीरे-धीरे कार की ओर बढ़ते हुए उन पांचों के कदम और उनके बाच होती हुई हंसी-ठिठोली। काँलेज के ज्यादातर लड़के उन्हें देख रहे थे, खासकर सर्मिष्ठा खन्ना को। फिर तो’ उनके मुख से ठंढ़ी आह निकल जाती थी, क्योंकि’ जानते थे, वो उनके पहुंच से बहुत दूर की चीज हैं। बस’ उन लड़कों के हृदय में एक कचोट सा उठता था और फिर लंबी सांस लेकर वे लोग निराश हो जाते थे।
अब भला उन आशिक मिजाज लड़कों के मन की स्थिति उसको पता न हो, ऐसी बात बिल्कुल भी नहीं थी। सर्मिष्ठा उन तमाम लड़कों के मन के हालात को समझती थी और शायद इसलिये ही उसे अपने इस रुप सौंदर्य पर गर्व होता था। तभी तो’ वो इस समय भी कटाक्ष नजरों से चारों ओर देखती हुई आगे बढ़ रही थी, अपने उन तमाम आशिकों के मन स्थिति का आनंद लेते हुए।
फिर तो’ यह क्रम टूट सा गया, क्योंकि’ वे सभी कार के पास पहुंच चुकी थी। इसके साथ ही सभी ने दरवाजा खोला और अंदर बैठ गई। जबकि’ सर्मिष्ठा ने ड्राइविंग शीट संभाला, इंजन श्टार्ट किया और आगे बढ़ा दी। इसके साथ ही कार ने रफ्तार पकड़ा और काँलेज गेट से बाहर निकलते ही सरपट दौड़ने लगी। साथ ही, सर्मिष्ठा के मन में आनंद की लहरों के बीच विचार ने भी गति पकड़ लिया।
हां, आज उसका जन्मदिन था और शाम को बिला पर इसके लिये शानदार आयोजन था। फिर भी, सहेलियों के कहने पर वो पार्टी देने के लिये वो निकल पड़ी थी। ऐसे में उसके मन में हो रहा था, इस पार्टी में एक-दो दोस्त को शामिल कर लिया जाये। खासकर भानु गुरेज को, क्योंकि’ शाम की पार्टी में उसको बुलाने के मूड में नहीं थी वो। हां, क्योंकि’ शाम की पार्टी उसके लिये खास था।
ऐसे में शाम को जब कमल नटराजन उसकी पार्टी में उसके पास मौजूद होगा, वह नहीं चाहती थी, कोई दूसरा वहां पर मौजूद रहे। क्योंकि’ भानु गुरेज उसका सिर्फ मित्र था, काँलेज के कारण उनमें दोस्ती थी। जबकि’ कमल नटराजन उसके लिये बहुत महत्व रखता था। हां, उसके सपनों का राजकुमार था कमल नटराजन और वो नहीं चाहती थी, जब वो उसके पास मौजूद हो, भानु गुरेज वहां पर आए।
क्योंकि’ भानु गुरेज की आँखों में उसने अपने लिये आकर्षण देखा था और इसका मतलब भी खूब समझती थी। परंतु….वह नहीं चाहती थी कि” भानु गुरेज से दूरी बनाये। वैसे भी, उसके काँलेज का अंतिम वर्ष चल रहा था, फिर तो उससे पीछा छूट ही जाना था। तो क्यों खामखा ही उसको नाराज किया जाये।
बस’ उसको गिल्ट-फील नहीं हो, इसलिये वह मन ही मन इरादा बनाने लगी थी पार्टी में भानु गुरेज को बुलाने के लिये। क्योंकि’ अभी वो सहेलियों के साथ थी, उनको पार्टी देने के लिये निकली थी। साथ में भानु गुरेज को अगर शामिल कर लेगी, तो उसका भी मन रह जायेगा। यही सोचकर उसने मोबाइल उठाया और भानु गुरेज को फोन लगाने लगी।
स्टेयरिंग पर हाथों को जमाये हुए, आगे की ओर देखती हुई वो। फोन काँल रिसिव होते ही उसने भानु गुरेज को आहना वियर बार आने के लिये बोला और फोन डिस्कनेक्ट कर दिया। इसके बाद तन्मय होकर ड्राइव में जुट गई। वैसे भी दोपहर के इस समय सड़क पर ट्रैफिक कम होता हैं, इसलिये वो कार को भगाये जा रही थी। क्योंकि’ इस पार्टी को निपटाने के बाद उसे बिला पर भी पहुंचना था, जहां पर उसके पापा कब से उसका बेसब्री से इंतजार कर रहे होंगे।
फिर तो’ कमल नटराजन भी पहुंच चुका होगा, उसके बर्थडे को विशेष बनाने के लिये। हां, कमल नटराजन उसके छोटी-छोटी खुशियों का भी खयाल रखता था, तो आज वैसे भी उसका जन्मदिन था। ऐसे में वो अपने-आप को रोक नहीं पाया होगा और उसके बिला पर पहुंच कर पार्टी की तैयारियों में जुट गया होगा। लेकिन’ इन बातों से कोई मतलब नहीं था सर्मिष्ठा को। वह तो बस’ उसके नजदीक आने भर से रोमांचित हो जाती थी। उसके लिये इतना एहसास कि” उसका प्राण-प्रीतम उसके पास हैं, उसको कोमल भावनाओं के लहर में बहा ले जाने को बेताब सा हो जाता था जैसे।
हां, अभी भी तो वह इन्हीं भीगे हुए एहसास में डूबी हुई थी और कमल नटराजन को अपने करीब महसूस सी कर रही थी। तभी तो’ उसको पता नहीं चला कि” उसकी कार आहना वियर बार पहुंच चुकी हैं। ऐसे में उसकी सहेलियों ने उसको चिकोटी काटा और उसकी तंद्रा टूट गई। फिर तो’ उसके पांव तेजी से ब्रेक पर कसते चले गए, जिसके कारण कार कुछ दूर तक घिसटती चली गई।
फिर उसने कार को वियर बार के कंपाउंड में पार्क किया और सहेलियों के साथ बाहर निकली। इसके साथ ही उसने वहां पर पहले से लगे हुए भानु गुरेज के कार को देख लिया और मन ही मन मुस्कराती हुई आगे बढ़ी। बीतता हुआ समय और उन पांचों ने हाँल में कदम रखा। जहां पर भानु गुरेज पहले से ही मौजूद था, कोने में बैठा हुआ, हाथों में गुलदस्ता थामे हुए।
फिर तो’ वे पांचों जैसे ही उस टेबुल के पास पहुंची, वह उठा और सर्मिष्ठा को बर्थडे विश किया। इसके बाद पांचों बैठ गये, तब सर्मिष्ठा ने वेटर को बुलाकर आँडर दिया और वेटर के जाने के बाद उन लोगों के चेहरे की ओर देखने लगी।
सर्मिष्ठा!....तुम भी न, मुझे पार्टी में नहीं बुलाया और यहां पर बुलाकर सस्ते में निपट जाना चाहती हो। उसे अपनी ओर देखता पाकर भानु गुरेज से जब नहीं रहा गया, वो बोल पड़ा। जबकि’ उसकी बातों को सुनकर सर्मिष्ठा सहज ही मुस्करा कर बोल पड़ी।
ऐसी कोई बात नहीं हैं भानु!...तुम मेरे अच्छे दोस्त हो और हम लोग यहां पार्टी करने के लिये आने बाले थे। तो सोचा, अगर तुम भी शामिल हो जाओ, तो अच्छा हो। कहा उसने और फिर चुप्पी साध लिया। ऐसे में भानु गुरेज समझ गया, सर्मिष्ठा इस विषय पर आगे बात नहीं करना चाहती, इसलिये वह भी मौन हो गया।
इसके बाद’ आँडर सर्व हो गया, इसके साथ ही भानु गुरेज ने जिम्मेदारी संभाल ली और पैग बनाने में जुट गया। इसके साथ ही हंसी-मजाक और पीने का दौर शुरु हो गया। फिर तो बीतते समय के साथ ही उन लोगों पर पार्टी का रंग चढ़ने लगा।
अतुल्य बिला!
शाम का अंधेरा ढलते ही रोशनी से जगमग करने लगा था। उसमें भी आज विशेष, क्योंकि’ आज सर्मिष्ठा खन्ना का जन्मदिन था। तभी तो’ विभूति खन्ना कोट-पैंट में सजे-धजे किए जा रहे तैयारियों को देखते जा रहे थे। क्योंकि’ आज उनकी लाडली बेटी का जन्मदिन था और वो नहीं चाहते थे, पार्टी की तैयारियों में कोई कमी रह जाये।
विभूति खन्ना, आकर्षक व्यक्तित्व के स्वामी, लंबा कद और गठा हुआ कद-काठी। उसपर उनकी बड़ी-बड़ी मूँछें उनके व्यक्तित्व को प्रभावी बना रही थी। लेकिन’ बिजनेस मैन होने के कारण उनमें विनम्रता कूट-कूट कर भरा हुआ था। तभी तो’ आ रहे मेहमानों का भी वे शालीनता के साथ स्वागत करते जा रहे थे, साथ ही तैयारियों का भी अवलोकन कर रहे थे।
उधर’ गेट पर मेहमानों के स्वागत के लिये खड़ा कमल नटराजन काफी प्रसन्न नजर आ था। कमल नटराजन, जो कि” सुंदर था, स्मार्ट था और इस समय उसने जो सेरवानी पहना हुआ था, उसमें बिल्कुल ही राजकुमार लग रहा था। हां, आज वो बहुत खुश था, क्योंकि’ आज सर्मिष्ठा का जन्मदिन था। उस सर्मिष्ठा खन्ना का जन्मदिन था, जिसे वो दिली हद तक चाहता था। जिसकी सेवा में वह खड़े पग हमेशा लगे रहने को तत्पर रहता था।
जो उसके सांसों की डोर थी। मतलब कि’ दिन में एक बार कम से कम उसके अगर दीदार नहीं कर ले, उसे चैन ही नहीं पड़ता था। मतलब साफ था, दोनों के बीच मुहब्बत के अंकुर फूट चुके थे और तो प्रेम में कमल नटराजन कुछ ज्यादा ही अट्रैक्टिव हो चुका था। हां, उसे हमेशा लगता रहता था, सर्मिष्ठा खन्ना उसके सांसों में समाई हुई हैं। वह एक पल भी सर्मिष्ठा से अब दूरी गवारा नहीं कर पा रहा था। बस’ यही चाहता रहता था, सर्मिष्ठा उसके करीब ही बैठी रहे और वो बस अपलक उसके चेहरे को ही देखता रहे, बस यूं ही।
तभी तो आज उसके मन में बेचैनी थी, क्योंकि’ अभी तक सर्मिष्ठा काँलेज से नहीं लौटी थी। ऐसे में स्वाभाविक रुप से उसके मन-मस्तिष्क में अनेकों विचार हावी होने लगे थे। वैसे भी, आज उसका जन्मदिन था, तो उसे काँलेज जाने की क्या जरूरत थी। फिर भी’ अगर चली ही गई, तो सवेरे ही आ जाती। अब इस तरह से अपनी ही पार्टी से नदारद रहने का क्या मतलब?....फिर तो’ उसको मालूम हैं कि” मैं यहां मौजूद हूं, तो कम से कम मेरा ही खयाल करके समय से आ जाती और अपने रूप सौंदर्य का दीदार करवा देती।
लेकिन’ नहीं, उसे इससे क्या मतलब?....भला, वो इंतजार करने का दर्द क्या जाने। इंतजार का दर्द कितना तकलीफ देने बाला होता हैं, कोई उससे पुछे, तो पूरा वृतांत सुना सकता हैं। उफ!...इतना सोचकर उसने निसाँस लिया और आते हुए मेहमानों के चेहरे को देखने लगा। वैसे भी, अभी कुछ देर पहले उसने सर्मिष्ठा को फोन किया था और वो बोली थी, कुछ देर में पहुंच जाऊँगी। ऐसे में उसे लग रहा था, अब इंतजार का यह तकलीफ देय लमहा खतम हो और अपने प्रिय का दीदार हो जाये।
बीतता हुआ समय और इसके साथ ही बिला में जश्न का माहौल जमने लगा था। हां, आते हुए मेहमान के स्वागत में बिला के नौकर-चाकर तन-मन से जुट गए थे। ऐसे में चारों ओर जाम छलकाया जाने लगा था। जिधर देखो, सभी शराब की चुस्कियां लेने में व्यस्त हो गए थे। खुशी का माहौल था और सभी इस खुशी को कैश करने में जुट गए थे। परंतु…कमल नटराजन, उसको बोरिंग का एहसास हो रहा था। साथ ही एक अजब सी बेचैनी, जो उसके मनो-मस्तिष्क पर हावी हो रही थी।
क्योंकि’ उसके लिये खुशी की शुरुआत सर्मिष्ठा खन्ना से थी। ऐसे में, जब वो यहां से नदारद थी, भला वो कैसे खुश रह सकता था और इस खुशी भरे माहौल का लूफ्त उठा सकता था। वैसे भी, अब मेहमानों के आने का सिलसिला कुछ थम सा गया था, इसलिये उसके मन की उलझन कुछ अधिक बढ़ गई थी और शायद वह निराश भी हो चुका था। तभी तो’ हाँल के कोने में जाकर बैठ जाने के इरादे से वह पलटा और जैसे ही कदम उठाया।
कमल!...
मधुर सुरीला स्वर उसके कानों से टकराया और उसका रोम-रोम पुलकित हो उठा। हां, सर्मिष्ठा आ चुकी थी और उसने ही पुकारा था। बस’ पुकारे गए कोमल शब्दों ने जैसे ही हृदय पर टकोर मारा, कमल नटराजन खुद को नहीं रोक सका और सर्मिष्ठा की ओर पलट गया। नहीं तो, उसका मन हो रहा था, थोड़ी नाराजगी दिखाए, जो कि” उसका हक बनता हैं, परंतु….वह ऐसा नहीं कर सका।
और जैसे ही पलटा, उसकी नजर सर्मिष्ठा पर गई और पलक झपकते ही उसका रोम-रोम पुलकित हो उठा। बस’ एक पल और उसके चेहरे पर नजर पड़ते ही उसके मन की सारी नाराजगी धुएँ की तरह उड़ गई। फिर तो’ वो सर्मिष्ठा के रुप सौंदर्य को देखने लगा और आँखों से माधुर्य प्रेम का रसपान करने लगा। जबकि’ सर्मिष्ठा, उसने कमल नटराजन के चेहरे को देखा और उसके मन के भावों को समझ गई। इसके साथ ही वो तेजी से आगे बढ़ी और उसके हृदय से लिपट गई।
अह्लादित प्रेम का भीगा हुआ एहसास, जो कि” सांसों के माध्यम से दोनों के अंग-प्रत्यंग में उतरने लगा। प्रेम के उस माधुर्य रस का दोनों छक कर पान करने लगे। लगा कि” बहुत दिनों बाद मिले हों, तभी तो दोनों ने एक-दूसरे को अपने अंक पाश में इस तरह से जकड़ लिया, मानो’ अब एक दूसरे से जुदा होने का इरादा ही नहीं हो। जैसे कि” अब वे दोनों एक-दूसरे के रूह तक उतर जाएंगे, अब प्रेम के मधुर भीने एहसास में डूब कर एकाकार हो जाएंगे पूरी तरह से।
वैसे भी, प्रेम की रीति गजब हैं, इसका एहसास गजब हैं और इसका प्रभाव भी गजबे हैं। जो कि” एहसासों का स्पंदन हैं। ऐसे में, जो भी इसका अनुयायी बन जाता हैं, उसको ये अपने जैसा ही बना लेता हैं, जो कि” इसका मौलिक गुण-धर्म हैं। मतलब साफ हैं, इसका आस्वादन करने बाले आज तक न तो पूर्ण रुप से तृप्त ही हो पाये हैं और न ही इसके रुप-गुण को समझ पाये हैं।
बस’ यही हाल सर्मिष्ठा और कमल नटराजन का था। दोनों एक-दूसरे से लिपटे हुए थे और न जाने कब तक ऐसे ही रहते। तभी विभूति खन्ना उनके पास पहुंच गए और उनके पदचाप की आवाज सुनकर दोनों की तंद्रा टूट गई। फिर तो’ दोनों अलग हो गए। तब खन्ना साहब ने सर्मिष्ठा से कहा कि” वो जाकर फटाफट तैयार हो जाए। क्योंकि’ मेहमान आ चुके हैं और ऐसे में उनको इंतजार करवाना ठीक नहीं।
वैसे भी, शाम के आठ बज चुका था, ऐसे में बर्थडे केक कट जाए, तो प्रोग्राम को आगे बढ़ाया जाए, ऐसी उनकी इच्छा थी। फिर क्या था, सर्मिष्ठा तैयार होने के लिये अंदर चली गई। इधर’ बीतते समय के साथ पार्टी में रंग जमने लगा। फिर तो’ सर्मिष्ठा के आ जाने के कारण कमल नटराजन भी उत्साहित हो चुका था। इसलिये वह भी मेहमानों के स्वागत में जुट गया।
और वह भी समय आ गया, जब सर्मिष्ठा तैयार होकर अंदर से निकली। हां, इस समय उसने बनारसी लहंगा पहना हुआ था, जिसमें वो बिल्कुल गुड़िया सी लग रही थी। तभी तो’ हाँल में मौजूद सभी मेहमानों की नजर उसपर ही जाकर स्थिर हो गई, खासकर कमल नटराजन की विशेष। क्योंकि’ उसकी तो जान ही सर्मिष्ठा में बसता था। ऐसे में वह आगे बढ़ा और उसके हाथों को थामकर उधर बढ़ने लगा, जिधर केक सजाया गया था।
लेकिन’ तभी, हाँल में भानु गुरेज ने हाँल में कदम रखा, हाथों में उपहार का भार उठाए हुए। जबकि’ उसके आने से एक पल के लिये हाँल में सन्नाटा पसर गया। क्योंकि’ उसके पिता जनार्दन गुरेज को लेकर वहां मौजूद किसी के मन में भी अच्छे विचार नहीं थे। ऐसे में उसका अचानक ही वहां पर आना, किसी को भी अच्छा नहीं लगा। परंतु… अब वो आ ही गया था, इसलिये विभूति खन्ना उसके स्वागत के लिये आगे बढ़े।
रात के नौ बजे!
सड़क पर ट्रैफिक की भरमार थी। उसी ट्रैफिक के बीच वह काले रंग की मर्सिडीज फूल रफ्तार से आगे की ओर भागी जा रही थी। क्योंकि’ ड्राइविंग शीट पर बैठा हुआ भानु गुरेज पूरी तरह से भन्नाया हुआ था, तभी तो लगातार ही कार के रफ्तार को बढ़ाए जा रहा था। वैसे भी, अभी वह फूल नशे में था और इस स्थिति में उसके मन मस्तिष्क पर आवेश का प्रभाव कुछ ज्यादा ही था। जो कि” सर्मिष्ठा के जन्मदिन पर जाने के कारण उसके मन पर हावी हुआ था।
हां, अभी वह पार्टी से ही लौट रहा था, शराब के कई पैग गटक कर और वह ऐसे ही नहीं इतना शराब पी रखा था। इसके कारण भी तो थे, क्योंकि’ आज उसका दिल टूट गया था। दूसरे, पार्टी में मौजूद हर किसी ने उसे हेय दृष्टि से देखा था, जो कि” उसके मन को नागवार गुजरा था। फिर तो, सर्मिष्ठा और कमल नटराजन का प्रेम और उनका एक-दूसरे के प्रति समर्पण, उसके तो अरमानों पर ही वज्रपात हो गया था जैसे, तभी तो वो बौखलाया हुआ था।
भला, जिस सर्मिष्ठा को वो चाहता था, जिसपर उसकी दानत बिगड़ी हुई थी, उसे कोई दूसरा ले उड़ा था। अब, उसका मन इस स्थिति को किस प्रकार से सहन करता, क्योंकि’ सर्मिष्ठा पर वो अपना एकल अधिकार समझता था। जानता था, सर्मिष्ठा जब भी मिलेगी, उसको ही मिलेगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ और आज उसकी आँखों ने देख लिया कि” सर्मिष्ठा और कमल नटराजन एक-दूसरे के हो चुके हैं। ऐसे में उसके तन-वदन में आग लग गया और वो बाच पार्टी से ही लौट आया।
और अब कार ड्राइव कर के सड़क पर भगाये जा रहा था, साथ ही मन में विचारे जा रहा था कि” ऐसा कैसे हो सकता है?....परंतु…हुआ तो यही था। उसने जो सोचा था, सर्मिष्ठा को पा लेगा और अपनी जिंदगी आराम से गुजारेगा। उसके संग में सपनों का शहर बसा लेगा, जिसमें वो राजा होगा और सर्मिष्ठा रानी कहलाएगी। किन्तु’ ऐसा हो नहीं सका।
आज उसको स्पष्ट रुप से पता चल चुका था, सर्मिष्ठा उससे प्यार नहीं करती थी। लेकिन’ इससे क्या होता हैं?...वह तो सर्मिष्ठा से प्यार करता था और उससे भी ज्यादा बहुत हद तक उसके हुस्न का दीवाना था। उसका देह लालित्य हमेशा ही उसके मन को आकर्षित करता रहता था। उसके मन की भावनाएँ हमेशा ही प्रबल होती रहती थी कि” किसी भी तरह से सर्मिष्ठा के रुप-सौंदर्य का रसपान कर ले।
लेकिन’ अब उसके मन की इच्छाओं पर ब्रेक लग गए थे। उसने जो सोचा था, सर्मिष्ठा के हुस्न में गोते खाएगा और आनंद को पाएगा, वह संभावना ही समाप्त हो गई थी। बस’ उसके मन में इसी बात को लेकर बौखलाहट थी। प्रेम से ज्यादा उसके तन को पाने की इच्छा, ऐसे में अचानक ही उसके भावनाओं पर तुषारापात हुआ था। ऐसे में एक अजीब सी बेचैनी, जो उसके मनो-मस्तिष्क पर हावी हो चुकी थी।
उसके मन में अजीब-अजीब से खयालात जन्म लेने लगे थे। तभी तो’ उसके चेहरे पर आवेश का भाव परिलक्षित होने लगा था। हां, उसका बस चलता, तो इसी समय शहर में आग लगा देता। लेकिन’ ऐसा करना मुमकिन नहीं था, तभी तो, निरंतर ही कार के रफ्तार को ही बढ़ाए जा रहा था, मानो अपने मन का सारा का सारा गुस्सा कार पर ही उतार देना चाहता हो।
हां, उसके कुंठित इच्छाओं पर आज जैसे आघात किया गया था। हां, उसने तो यही सोचा था, सर्मिष्ठा उसकी ही हैं। परंतु….उसके मन की यह धारणा सिरे से खारिज हो गई थी। ऐसे में उसको लग रहा था, ऐसा क्या करें, जिससे शहर में भूचाल आ जाए। क्योंकि’ उसका मन आहत हुआ था, तो वो चाहता था, इसका बदला ले-ले। लेकिन’ ऐसा वो कर नहीं पा रहा था, इसलिये बौखलाया हुआ था।
बीतता हुआ समय और सड़क पर भागती हुई कार, तभी उसकी नजर अंग्रेजी शराब की दुकान पर गई। हां, इस समय उसे शराब से भरे प्यालों की जरूरत हैं, तभी उसके मन-मस्तिष्क को आराम मिल सकेगा, नहीं तो बेचैनी पीछा नहीं छोड़ने बाली। शराब के दुकान पर नजर जाते ही उसने अपने-आप से कहा और पांव ब्रेक पर कस दिए। लिहाजा, कार के टायर कुछ दूर घिसटने के बाद सड़क किनारे जाकर जाम हो गए और इससे उत्पन्न हुआ तेज आवाज इलाके में गुंज उठा।
परंतु….भानु गुरेज को इससे कोई लेना-देना नहीं था। वह तो जाकर शराब की दुकान से बोतल उठा लाया और फिर इंजन श्टार्ट कर के आगे बढ़ा दिया। इसके साथ ही उसके मस्तिष्क में वे विचार भी गतिमान हो उठे, जो वर्तमान परिस्थिति से बना था और उसके मन-मस्तिष्क को विकल कर रहा था। स्वाभाविक था, इस स्थिति में उसके मन में प्रतिशोध की भावना भी अंकुर लेने लगा था।
तभी तो’ वो अपने सब से प्रिय दोस्त ललित परासर को फोन लगाने लगा और फोन काँल रिसिव होते ही प्रयाची गेस्ट हाउस में तक्षण मिलने के लिये बुलाया। फिर’ फोन काँल डिस्कनेक्ट करके मोबाइल शीट पर फेंक दिया और ड्राइव में ध्यान पिरोने की कोशिश करने लगा, परंतु….ऐसा कर नहीं सका। क्योंकि’ जब भी वो अपने मन को एकाग्र- चित करने की कोशिश करता, सर्मिष्ठा खन्ना उसके खयालों में आ जाती। फिर तो’ वह अपने भावनाओं पर नियंत्रण नहीं रख पाता और विकल हो जाता।
वैसे भी, प्रेम और वासना दो अलग भिन्न वस्तु हैं, परंतु….दोनों आकर्षण से ही शुरु होता हैं। किन्तु’ जहां प्रेम यथार्थ -परक हैं, उसमें त्याग हैं, तपस्या हैं और पाने की अपेक्षा अपना सब कुछ लूटा देने की भावना हैं। वही पर वासना का भाव ही दूषित हैं। इसमें भले ही प्रेम का दावा किया जाता हो, परंतु….प्रेम का अंश रत्ती मात्र भी नहीं रहता। हां, इसके उलट इसमें पा लेने की भावना प्रबल होती हैं। इसमें एक प्रकार का दावा होता हैं कि” हम जिसको चाहते हैं, वह सिर्फ हमारा हो। ऐसे में अगर ऐसा नहीं हो पाता, फिर तो स्थिति के विकटता का अंदाजा लगाना भी बहुत मुश्किल काम हैं।
तभी तो’ बेचैन भानु गुरेज जैसे ही अयाची गेस्ट हाउस पहुंचा, उसने कार को पार्क किया और शराब की बोतल उठाए हुए हाँल की ओर तेजी से बढ़ा और जैसे ही उसने हाँल में कदम रखा, उसके तन-मन को सुकून मिला हो जैसे। क्योंकि’ ललित परासर वहां पर पहले से मौजूद था।
फिर तो’ दोनों बहीं सोफे पर बैठकर आपस में जाम टकराने लगे। इसके साथ ही भानु गुरेज उसको अपने साथ हुए आघात को बतलाने लगा। वह ललित परासर को बतलाने लगा कि” वह किस कदर सर्मिष्ठा को चाहता था और अब वह किस तरह से दूसरे की हो गई हैं। इसके बाद भानु गुरेज उससे लिपट गया और खुब रोया। हां, वह ललित परासर को विश्वास दिलाना चाहता था, कि” वह किस हद तक सर्मिष्ठा को चाहता हैं और अगर वह उसको नहीं मिली, तो उसपर क्या बीतेगा। उसकी किस तरह से दुनिया वीरान हो गई हैं सर्मिष्ठा के बिना, वह उसको बतला रहा था, विश्वास दिला रहा था।
अब ललित परासर भी तो दूध का धुला नहीं था। ऐसे में उसे समझते देर नहीं लगी, आखिर भानु गुरेज चाहता क्या हैं?...वैसे भी, वह भी तो ऐसी ही भावनाओं से रंगा हुआ था, वासना से लबरेज। ऐसे में वह अनेकों प्रकार से भानु गुरेज को दिलासा दिलाने लगा। इसके बाद दोनों जाम प्याले में उड़ेलने लगे और उसे हलक में उतारने लगे, साथ ही एक-दूसरे की आँखों में देखने लगे।
बीतता हुआ समय और धीरे-धीरे होता हुआ शराब का असर, आखिर दोनों इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि” सर्मिष्ठा को सबक सिखाया जाए। फिर तो’ छलकते हुए जाम के बीच दोनों योजना बनाने लगे कि” किस तरह से सर्मिष्ठा के जिस्म को हासिल किया जाए। इधर ललित परासर भी तो कब से चाहता था, सर्मिष्ठा के हुस्न में डुबकी लगा ले। बस’ आज मौका मिला था, इसलिये जाल बिछाने लगा। फिर तो’ भानु गुरेज को सर्मिष्ठा से प्रेम तो था नहीं, इसलिये वह भी सहर्ष तैयार हो गया।
क्रमश...