रात के दस बजने को थे।
ऐसे में ज्यादातर मेहमान भोजन कर के जा चुके थे और जो थोड़े बहुत बचे थे, उनका ध्यान विभूति खन्ना रख रहे थे। ऐसे में सर्मिष्ठा हाँल से निकल कर अपने रूम में चली आई, विचारों की माला गूंथती हुई। क्योंकि’ भानु गुरेज जो अचानक ही पार्टी के बीच से चला गया था, जब वो केक काट रही थी और कमल नटराजन उसके बगल में था।
हलांकि’ भानु गुरेज ने एक-दो बार कोशिश की थी उसके करीब आने की, परंतु…उसने ही भाव नहीं दिया था। जानती थी उसके मानसिकता को और इस तरह के मानसिकता बाले लड़के को ज्यादा छूट देना हानिकारक हो सकता था। हां, वह फ्रेंड तक तो ठीक था, लेकिन उससे आगे बढ़े, यह हितकर नहीं था। वैसे भी वह कमल नटराजन के प्रेम में थी और जल्दी ही दोनों ब्याह के बंधन में भी बंधने बाले थे। ऐसे में अगर भानु गुरेज उसके छूट को गलत समझ ले तो, जानती थी उसके स्वभाव को और फैमली बैकग्राउण़्ड को भी।
परंतु….उसका अचानक ही पार्टी से चले जाना, वह समझ नहीं पा रही थी। वैसे भी, उसने भानु को पार्टी में बुलाया नहीं था, वह तो अपने-आप ही आया था और जैसे बिन बुलाए आया था, वैसे ही बिन बताए चला गया। किन्तु’ उसके मन में विचारों के प्रवाह ने गति पकड़ लिया। हां, वह चिंतित हो गई थी भानु गुरेज के स्वभाव को लेकर और इसलिये ही मन में विचारों की माला बनाती जा रही थी।
क्योंकि’ उसका मानना था और अनुभव भी था कि” भानु गुरेज का स्वभाव अच्छा नहीं हैं। हां, वह जिद्दी तो था ही, उसकी प्रवृति भी अपराधी टाइप थी। ऐसे में अगर उसने किसी प्रकार की खुन्नस मन में बिठा ली हो, तो?...यह प्रश्न स्वाभाविक था, जो उसके मन में जागृत हो चुका था। तभी तो’ बेडरूम में आते ही वह सोफे पर बैठ गई और गहरी सांस लेकर आक्सीजन फेफड़ों में भरने लगी। साथ ही उन विचारों को सिर झटक कर अपने से दूर करने की कोशिश किया, जो उसको डरा रहे थे।
परंतु….इसमें वह सफल नहीं हो सकी। हां, बार-बार उसके आँखों के सामने भानु गुरेज का चेहरा आ गया था और वो फिर से विचारों में उलझ गई थी। उन विचारों में उलझ गई थी, जो उसके मन के किसी कोने में भय के रुप में परिणत होने लगा था। आने बाले समय को लेकर भय, भानु गुरेज के स्वभाव को लेकर भय, जो कि” परिस्थिति- जण्य था।
धीरे-धीरे आगे की ओर बढ़ता हुआ समय और विचारों के लहर पर सवार वो, न जाने कब तक ऐसे ही रहती। तभी हाथों में खाने की थाली लिये कमल नटराजन ने रूम में प्रवेश किया और उसके पदचाप को सुनकर उसकी तंद्रा टूट गई। फिर तो’ उसने देखा, कमल नटराजन के पीछे घर के नौकर भी थे, जो खाने-पीने का समान उठाए हुए उसके पीछे-पीछे चल रहे थे। इसके बाद खाने-पीने के समान को सेंटर टेबुल पर सजा दिया गया, तब नौकर वापस लौट गए। तब सहज ही उसके मन में विचार आया, सच कमल उससे प्यार करता हैं, तभी तो हर पल उसका इतना खयाल रखता हैं।
यार सर्मिष्ठा!...तुम भी न, बिना बताए ही यहां पर चली आई। उधर मैं तुमको ही ढ़ूंढ़ रहा था और जब तुम कहीं नहीं मिली, समझ गया कि” यही पर होगी, बस यहां चला आया। कहा कमल नटराजन ने और एक पल के लिये चुप हुआ और उसके चेहरे की ओर देखा और गंभीर स्वर में बोला।
सर्मिष्ठा यार!...तुम्हारा इस तरह से बुझा हुआ चेहरा, लगता हैं किसी बात को लेकर तनाव में हो?...ऐसे में अगर बात बताने बाली हो, तो मुझे बतलाओ। इससे तुम्हारा मन भी हल्का हो जायेगा और हो सकता हैं, मैं तुम्हारी समस्या का समाधान भी ढूंढ़ दूं।
नहीं-नहीं, ऐसी कोई विशेष बात नहीं, जो तुम्हें नहीं बता सकूं। कमल नटराजन की बातें सुनते ही बोली सर्मिष्ठा, फिर एक पल के लिये रुककर उसकी आँखों में देखा और फिर आगे बोली।
वो हैं न, भानु गुरेज आया था न। एक तो मैंने उसे बुलाया नहीं था, दूसरे आने के बाद वह बीच पार्टी से अचानक ही बिना बतलाए चला गया। बस’ इसी बात को लेकर थोड़ा चिंतित हो गई थी। कहा उसने और कमल नटराजन के आँखों में देखने लगी। जबकि’ कमल नटराजन उसकी बातों को सुनकर मुस्कराया, फिर उसके करीब बैठ गया और वियर की बोतल खोल कर प्याले में भरने लगा। इसके बाद’ एक प्याला उसके हाथों में थमाया और दूसरा खुद ही थामकर उसकी आँखों में देखते हुए बोला।
सर्मिष्ठा यार!....तुम बर्थडे गर्ल हो, ऐसे में व्यर्थ की बातों का चिंतन नहीं करते। फिर तो’ भले ही वो भानु गुरेज होगा, हम लोग क्या कम हैं, जो उससे डरे। अब छोड़ो भी उसको और चलो, हम लोग आज की पार्टी का आनंद लेते हैं। कहा उसने और फिर प्याले को टकराने के लिये आगे बढ़ाया और दोनों प्याले को आपस में टकरा कर एक स्वर में बोल पड़े।
चियर्स!
इसके साथ ही दोनों खाने-पीने में जुट गए। साथ ही उनकी आँखें जो एक-दूसरे में डूबकर बातें कर रही थी। हां, आँखों की भाषा बहुत ही अजीब हैं। ऐसे में भले ही जुबान से एक शब्द भी नहीं निकले, आँखें अनेकों बातें बोल भी देती हैं और समझ भी जाती हैं। यह आँख ही तो हैं, जो प्रथम आकर्षण की सीढ़ी चढ़ती हैं और मन को समझाती हैं कि” फलाना व्यक्ति उपयुक्त हैं प्रेम करने के लिये, साथ निभाने के लिये। यह आँख का ही कमाल हैं, जो कोई इसके रास्ते उतर कर हृदय में समा जाता हैं। फिर तो’ हृदय में उसका छवि कुछ इस तरह से अंकित हो जाता हैं, जो लाख प्रयास के बाद भी मिटाया नहीं जा सकता।
अब भले ही, प्रेम का अंकुरन हो जाने के बाद हृदय अनुभूति के रंग रंगने लगता हैं। ख्वाब के आशियाने को सजाने लगता हैं और उसको संभालने की भी जिम्मेदारी उठा लेता हैं। परंतु…प्रेम के प्रथम सोपान की शुरुआत भी आँखों के द्वारा होती हैं और इसके बाद तृप्ति के भाव का संपादन भी आँखों के द्वारा ही होता हैं। वैसे भी, संसार में जितने रंग हैं, उनकी अनुभूति आँखों के द्वारा ही होती हैं, किन्तु’ प्रेम के माधुर्य रंग का अनुभव और भावनाओं के आदान-प्रदान का कार्य विशेष रुप से आँखों के द्वारा ही संपादित होता हैं।
साथ ही प्रेम पिपासा भी तो आँखों में ही जगती हैं, तभी तो’ दोनों एक-दूसरे की आँखों में डूबे हुए थे, शायद तृप्ति की तलाश कर रहे थे। किन्तु’ यह संभव ही नहीं, क्योंकि’ प्रेम में पूर्णता हो ही नहीं सकता और जब इसमें पूर्णता नहीं हैं तो फिर तृप्ति कैसे संभव हो सकता हैं?
बस’ ऐसे ही उन दोनों के द्वारा किया जा रहा प्रयास और हलक में जाम को उतारते दोनों। ऐसे ही करते-करते उन दोनों ने पूरी बोतल वियर की पी ली, परंतु…आँखों से आँखों का जुराब नहीं टूटा। वैसे भी समय का ग्राफ भी बढ़ता जा रहा था और कमल नटराजन को घर भी लौटना था। साथ ही मन में बढ़ते हुए भावनाओं के ग्राफ से वो कुछ विकल भी होने लगा था। उसे लगने-लगा था, कहीं भावनाएँ भड़क नहीं उठे और ब्याह से पहले ही वो कुछ गलती न कर दे, इसलिये नजर झुकाकर बोला।
सर्मिष्ठा यार!...तुम न, ऐसे ही समय व्यतीत कर रही हो, जबकि’ जानती हो, मुझे घर को लौटना हैं।
तो क्या तुम आज यहीं पर नहीं रुक सकते?...उसकी बातें सुनते ही सर्मिष्ठा मादक स्वर में बोली और कमल नटराजन का धैर्य जबाव दे गया, तभी तो वो बोला।
अभी नहीं यार!...अभी यहां रुकना उचित नहीं होगा।
तो फिर खाना-खा लो, इसके बाद चले जाना। उसके इनकार भरे स्वर को सुनकर मादक मुस्कान होंठों पर सजाकर बोली सर्मिष्ठा। इसके बाद दोनों भोजन करने में तल्लीन हो गए, किन्तु’ वे दोनों अपनी आँखों को नहीं रोक सके, जो आपस में फिर से जुड़ चुकी थी।
इसके बाद अगले दो दिनों तक भानु गुरेज और ललित परासर प्लानिंग ही करता रहा। साथ ही, उसने अपने इस प्लानिंग में दो और दोस्त को शामिल कर लिया। फिर चारों मिलकर गोटियां बिठाते रहे कि” किस तरह से सर्मिष्ठा के साथ बदला ले लिया जाए। वैसे भी अब’ जब भानु जान चुका था, सर्मिष्ठा उसकी नहीं होने बाली हैं, तो उसने तय कर लिया था कि” अब दोस्तों के साथ मिलकर उसके जिस्म का लूफ्त उठाएगा।
वैसे भी, उसके साथ उसके मन में खास कोई लगाव नहीं था। बस’ वो चाहता था कि” सर्मिष्ठा पर उसका एकाधिकार रहे। उसके सांसों पर उसका पूरी तरह से प्रभुत्व हो। लेकिन’ ऐसा हो नहीं सका था और भानु गुरेज इस बात को भलीभांति समझ गया था कि” इस बात के होने की संभावना भी अब नहिवत था। ऐसे में वह उन लड़कों में नहीं था, जो प्रेम की माला फेरता रहे और देवदास बन जाये। वह तो इस बात में विश्वास रखता था कि” जो वस्तु प्रेम से नहीं मिले, उसे जबरदस्ती हासिल कर लो और इस तरह से हासिल करो कि” वह पूरी तरह से बेकार हो जाए।
साथ ही वह नहीं चाहता था कि” प्लानिंग में कोई त्रुटि हो, जिससे शिकार हाथ से बचकर निकल जाए। तभी तो’ चारों मंथन करते रहे इस बात पर कि” सर्मिष्ठा को कहां पर ले कर जाया-जाए, जिससे उसके बचकर निकलने की संभावना शून्य हो जाए। इस बात पर मंथन और उन चारों की बैठकी, आज शाम वियर बार लियार्ड में उन चारों की बैठकी चल रही थी।
शाम सात बजे, जब पूरा शहर अंधेरे की आगोश मेम समा गया था, जिसके कारण शहर पूरा ही रोशनी से जगमगा उठा था। हां, वियर बार लियार्ड भी तो दुल्हन की तरह सजा हुआ था। पूरी तरह रोशनी के चादर में लिपटा हुआ। साथ ही अंदर हाँल में छलकते हुए जाम के बीच बजता हुआ पाँप म्यूजिक, उसपर अल्हड़ डांस करती हुई बार बाला।
वह आधे कपड़ों में डांस करके अपने जिस्म का इस तरह से नुमाइश कर रही थी कि” किसी के भी कामनाओं को भड़का दे। उसपर हाँल में छलकता हुआ जाम और इसके बीच उठता हुआ चरस का धुआँ, अजीब से स्वप्न लोक की रचना कर रहा था। साथ ही वे चारों, जिनकी नजर तो बार बाला के जिस्म पर ही टिकी हुई थी और हाथों में थामे हुए प्याले से हलक में शराब उड़ेलते जा रहे थे, साथ ही बार बाला के अधनंगे जिस्म को देखकर आह भी भर रहे थे।
भानु!....हम लोग प्लानिंग तो कर रहे हैं, लेकिन ऐसा नहीं हो, तुम मजा मार लो और हमें ठेंगा दिखा दो। वैसे भी, हमने सुना हैं, सर्मिष्ठा बहुत ही सुंदर और हसीन हैं। उसमें से एक लड़के ने अचानक ही भानु के आँखों में देखा और बोला, फिर एक पल के लिये रुककर वापस उसकी आँखों में देखा और कुछ पढ़ने की कोशिश करने लगा, लेकिन’ जब उसे इसमें सफलता नहीं मिली, तो आगे बोला।
अब तू तो जानता ही हैं कि” हम लोग न तो गद्दारी करते हैं और न ही चाहते हैं कि” कोई हमारे साथ ऐसा करें। बस’ जो भी हो, स्पष्ट हो, उसमें भी ऐसे मामलों में तो बिल्कुल भाग बराबर। अब जानता हूं कि” तुम ऐसा थोड़े ही न करोगे, फिर भी पहले ही स्पष्ट कर लेना सही होता हैं।
यार जतिन!....तुम भी न, खामखा ही शक कर रहे हो। जबकि’ ऐसा कुछ भी नहीं हैं, जो तुम सोच रहे हो। अब भानु ने हम लोगों को इस योजना में अपने साथ लिया हैं, तो कुछ तो इरादा कर के ही लिया होगा। फिर ऐसा भी नहीं हैं कि” अब तक भानु ने हम लोगों से छिपाकर कोई काम किया हो। तो भला, इस काम में वो हम लोगों से गद्दारी क्यों करने लगा?...फिर तो’ सर्मिष्ठा इसकी सगी बाली थो़ड़े ही न हैं, जो उसके लिये ये हम लोगों से गद्दारी करेगा। उसकी बातें सुनते ही ललित परासर गंभीर होकर बोला। बस’ इतना सुनना था कि” भानु गुरेज के होंठों पर मुस्कान छा गया, साथ ही उसने उन तीनों के चेहरे को देखकर बोला।
हां यार!....ललित का कहना बिल्कुल सत्य हैं। क्योंकि’ सर्मिष्ठा मुझे चाहती ही नहीं, इसलिये मैंने उसे अपने दिल से उतार दिया हैं। हां, अब उसके लिये मेरे मन के कोने में थोड़ा भी चाहत नहीं बचा हुआ हैं। अपनी बातों को ढ़ृढ़ता के साथ बोला वो और एक पल के लिये रुका और बारी-बारी से उन तीनों के चेहरे को देखने लगा। इसके बाद हाथ में थामें जाम को गटक लिया और आगे बोला।
अब’ इससे ही सारी बातें समझ लो तुम लोग। मतलब साफ हैं, हम लोग साथ में मिलकर सर्मिष्ठा के हुस्न का जाम पीएंगे और इस तरह से पीएंगे कि” वो सदा के लिये बेकार हो जाए। अपने अंतिम शब्दों पर जोर देकर बोला वो, इसके बाद रुककर उन तीनों के चेहरे को देखने लगा।
इसके बाद’ फिर से जाम का दौर शुरु हो गया। साथ ही उन लोगों के बीच इस बात की सहमति बन गई कि” सर्मिष्ठा को घुमाने के बहाने से कल दोपहर को यमुना किनारे के जंगल में भानु गुरेज लेकर आएगा। जहां पर तीनों पहले से ही छिपे होंगे और मौका देखते ही सर्मिष्ठा को बंधक बना लेंगे। इसके बाद जंगल में जमकर शराब की पार्टी होगी और वे लोग बारी-बारी से सर्मिष्ठा का बलात्कार करेंगे। तब तक उसके साथ बलात्कार करते रहेंगे, जबतक कि” वह पूरी तरह से बेकार न हो जाए। हां, उसके हुस्न का सारा रस निचोड़ लेंगे, तब उसे वहीं जंगल में छोड़कर लौट आएंगे।
अब योजना का खाका तैयार हो चुका था, इसलिये उन चारों के चेहरे पर कमीनापन का चमक कुछ ज्यादा ही चढ़ गया था। बस’ इसके बाद उन लोगों के बीच और कोई बात नहीं हुई, बस वे चारों जाम का प्याला टकराते रहे देर रात तक। तब तक शराब को हलक में उतारते रहे वे चारों, जब तक कि” पूरी तरह से नशे में टल्ली नहीं हो गए वे चारों।
इसके अगले दिन दोपहर को भानु गुरेज ने सर्मिष्ठा को झांसे में लिया। उसे घुमाने के बहाने यमुना किनारे के घने जंगलों में ले आया, जहां पर उसके शातिर दोस्त छिपे हुए थे। बस’ उन्होंने अचानक ही सर्मिष्ठा पर धावा बोला और उसे कसकर रस्सियों में बांध दिया। ऐसे में अचानक ही हुए हमले से सर्मिष्ठा बौखला गई और जब तक वह स्थिति को समझ पाई, बुरी तरह से उन हैवानों के चंगुल में फंस चुकी थी।
इसके बाद’ उस जंगल के बीच दानवता का खुला नृत्य शुरु हुआ। वे चारों, जिनकी मंशा पहले से ही गलत करने की बन चुकी थी, अब तो हाथ में शिकार भी फंस चुका था। ऐसे में वे चारों आराम से जाम को आपस में टकराने लगे, सर्मिष्ठा के होंठों से निकलने बाली चीखों से बेखबर बनकर। हां, आज उन चारों के आत्मा पर हैवान का अधिकार हो चुका था, तभी तो उनको सर्मिष्ठा के द्वारा की जा रही विनती बिल्कुल ही सुनाई ही नहीं दे रही थी और सुनाई देता भी कैसे?....उन्होंने तो इरादा ही गलत करने का बना लिया था।
इसके बाद’ जब उनपर नशा पूरी तरह से हावी हो गया, वे चारों सर्मिष्ठा पर टूट पड़े। उसके वदन से नोच-नोच कर कपड़े को अलग कर दिया और कुछ पल तक उसके नंगे वदन को घूरते रहे। इसके बाद’ वहां पर दानवता का खेल शुरु हो गया। वे चारों, जो उसपर दानत खराब कर चुके थे, अब एक-एक करके उसके जिस्म को नोचने-खसोटने लगे। उसके शरीर को हैवान बनकर रौंदने लगे और अपने इस दानवी कृत्य से तृप्ति पाने की कोशिश करने लगे, इससे उनमें जनून बढ़ने लगा।
जंगल में वहां पर सर्मिष्ठा के जिस्म को उन दानवों के द्वारा रौंदा जा रहा था और वह चीखती- चिल्लाती जा रही थी। परंतु….उसकी चीख का उन दानवों पर कोई असर नहीं हो रहा था। उलटे उसके दर्द भरी चीख से उन चारों के उत्तेजना को बढ़ावा मिल रहा था।
नटराजन ग्रुप आँफ कंपनी के हेडआँफिस में इस समय काफी शोर था। क्योंकि’ शाम का समय होने को था और अभी आँफिस के बहुत से काम बाकी थे। ऐसे में स्टाफ दौड़-दौड़ कर अपने काम को निपटाने में लगे हुए थे। वैसे भी महीने का क्लोजिंग होने के कारण भी काम का प्रेसर कुछ ज्यादा ही था।
किन्तु’ अपने भव्य आँफिस में बैठा हुआ कमल नटराजन तो खयालों की दुनिया में खोया हुआ था। हां, उसके चेहरे पर काम के बोझ का कोई असर नहीं था। तभी तो’ वह चेयर पर जरूर बैठा था, परंतु….उसका मन कहीं दूर सर्मिष्ठा के पास था। हां, वह खयालों की दुनिया में खोया हुआ था, जहां सर्मिष्ठा थी और वो था। वह प्रेम के अंतरंग रंगों में भिंगा हुआ उसके जुल्फों को संवार रहा था। जबकि’ सर्मिष्ठा उसके चेहरे को बार-बार देखती थी और मुस्करा देती थी।
वैसे तो’ यह ख्वाब ही था, जो एक ही झटके में टूट कर बिखर जाना था। परंतु….अभी उसका मन इसी को यथार्थ समझ रहा था। तभी तो’ वह सर्मिष्ठा के संग प्रेम के सुखद अनुभूति को पाने में डूबा हुआ था। वह चाह रहा था, प्रेम के सागर में से अमृत छानकर पी ले, इतना छक कर पी ले कि” उसको तृप्ति मिल जाए। फिर उसका मन इस तरह से मिलन के लिये विकल नहीं हो।
किन्तु’ ऐसा कभी संभव ही नहीं हो सकता हैं कि” कोई प्रेम में तृप्ति पा ले, भले ही ख्वाब में ही सही। प्रेम में तृप्ति का एहसास हो जाना, मतलब कि” प्रेम हैं ही नहीं। मतलब साफ हैं, प्रेम में पड़ा हुआ व्यक्ति हमेशा ही अतृप्त रहता हैं, क्योंकि’ इसका रुप ही अधूरा हैं। जब यह अपने-आप में ही पूरा शब्द नहीं हैं, तो भला यह मानव के भावनाओं को पूर्ण रुप से अनुभूति कैसे करवा सकता हैं?...मतलब साफ हैं, प्रेम में पड़ा हुआ इंसान चाहे लाख कोशिश कर ले, वह कभी भी तृप्त नहीं हो सकता। तभी तो’ मिलन के तुरंत बाद ही उसको इस बात की अनुभूति होने लगता हैं कि” मिले हुए तो बहुत समय हो गया।
बस’ यही हाल कमल नटराजन के मन का था। तभी तो’ आँफिस में बैठे होने के बाद भी उसका ध्यान काम में नहीं था। इसके विपरीत वह सर्मिष्ठा के खयालों में खोया हुआ था। उसे खयालों में अपने प्रेम के सागर रस से भीगो रहा था और खुद भी भीग रहा था और शायद ऐसा न जाने कब तक रहता, तभी अचानक उसके मोबाइल ने वीप दी और उसकी तंद्रा टूट गई।
फिर तो’ उसने फोन उठाया, देखा तो सामने विभूति खन्ना थे। बस’ उन्होंने काँल रिसिव किया और उधर से खन्ना साहब का घबराया हुआ स्वर उभड़ा। उन्होंने उसको बताया कि” सी. एल. के. हाँस्पिटल आ जाओ। वहां पर सर्मिष्ठा को भरती किया गया हैं और वो जीवन एवं मौत के बीच संघर्ष कर रही हैं।
बस’ इतनी बातें कहने के बाद उधर से फोन काँल डिस्कनेक्ट कर दिया गया। परंतु….तब तक तो कमल नटराजन के शरीर में शक्ति बचा ही नहीं था। उसका शरीर अजीब से भय से लिपट चुका था और कंपन कर रहा था। साथ ही मन में आ रहे बुरे-बुरे विचार, जो उसपर हावी हो रहे थे, जिसके कारण उसका हलक सूखता जा रहा था। ऐसे में उसके शरीर की पूरी शक्ति ही क्षीण हो चुकी थी और अब लगता था, हाथों में मौजूद मोबाइल छिटक कर दूर जा गिरेगा।
नहीं, इस तरह से हौसला खोने से भी तो काम नहीं चलने बाला हैं। यही सोचकर उसने अपने-आप को संभाला, फिर तेजी से उठ खड़ा हुआ और आँफिस से निकल पड़ा। फिर तो’ पांच मिनट ही लगा और अब वो अपने लेंबोर्गिनी कार में बैठा हुआ था। इसके साथ ही उसकी नजर कलाईं घड़ी पर गई, शाम के छ बजने बाले थे। बस’ उसने इंजन श्टार्ट किया और आगे बढ़ा दिया।
इसके साथ ही सड़क पर आते ही कार ने रफ्तार पकड़ लिया और सरपट दौड़ने लगी। इसके साथ ही उसके मन में विचार भी दौड़ने लगे, वे विचार जो उसको भयभीत कर रहे थे, साथ ही आक्रोशित भी कर रहे थे। इसके साथ ही उसके मन में ढ़ेरों सवाल भी जन्म लेने लगे थे। वे सवाल’ जिसने उसके मनो-मस्तिष्क को बुरी तरह से उलझा दिया था।
क्योंकि’ उसे मालूम नहीं था कि” सर्मिष्ठा को हुआ क्या था?...बस एक यही वाक्य कई प्रश्नों को एक साथ जन्म दे रहा था। क्योंकि’ सुबह दस बजे ही तो वो सर्मिष्ठा से मिलकर आया था। फिर तो’ दोनों ने साथ में ही नाश्ता किया था। उस समय तो वो बिल्कुल ही स्वस्थ थी और प्रसन्न भी, तो फिर अचानक ही ऐसा क्या हुआ होगा, जो वो जिंदगी और मौत के बीच संघर्ष कर रही हैं?....प्रश्न अधिक उलझा हुआ और कठिन था, जिसका उत्तर उसे हाँस्पिटल जाने के बाद ही मिलना था। परंतु….तब तक के लिये वह अपने अंदर धैर्य कहां से लाये?....किस तरह से अपने विकल मन को ढ़ाढ़स बंधाए?
क्योंकि’ अगर सर्मिष्ठा को भगवान न करें, कुछ हो गया तो?....इस प्रश्न का उत्तर वो अच्छी तरह से जानता था। जानता था, इसके बाद उसका जीवन पूरी तरह से वीरान हो जाएगा। इसके बाद तो, वह जीवन जीने की कल्पना भी नहीं कर सकता था। शायद यही कारण था, उसका शरीर सूखे पत्ते की मानिंद कांप रहा था और हलक सूख रहे थे। किन्तु’ इस तरह बेचैन होने से भी तो काम नहीं चलने बाली था, तभी तो’ बार-बार वो खुद को संभालने की कोशिश कर रहा था और ड्राइव में ध्यान पिरोना चाह रहा था।
शाम का धुंधलका अब वातावरण पर हावी हो चुका था, इसके साथ ही सड़क पर ट्रैफिक की संख्या भी बढ़ गई थी। इसके बीच ही दौड़ती हुई उसकी कार, शाम के साढ़े छ बजे हाँस्पिटल के प्रांगण में जा लगी। फिर तो’ वह तेजी से कार से बाहर निकला और हाँस्पिटल बिल्डिंग की ओर बढ़ गया। सी. एल. के. हाँस्पिटल का बहुमंजिला इमारत, आधुनिक सुविधाओं से लैस हाँस्पिटल। लेकिन’ इस समय हाँस्पिटल के गेट पर अजीब सा शोर मचा हुआ था और ऐसा हुआ था मीडिया बालों की तादाद के कारण।
हां, जैसे ही मीडिया बालों को मालूम चला कि” सर्मिष्ठा खन्ना के साथ यमुना किनारे जंगल में रेप किया गया और उसे अब इलाज के लिये इस हाँस्पिटल में लाया गया हैं, जहां वो जीवन और मौत के बीच झूल रही हैं। बस’ वे लोग न्यूज को कवर करने के लिये हाँस्पिटल दौड़ पड़े और अब हाँस्पिटल के अंदर जाने की कोशिश कर रहे थे, जिससे कि” सर्मिष्ठा के हालात को कवर किया जा सके।
मामला हाई-प्रोफाईल था, इसलिये प्रशासनिक अधिकारी भी हाँस्पिटल दौड़ आए थे और अब मीडिया बालों से उलझे हुए थे। परंतु….कमल नटराजन को इस झमेले से कोई लेना-देना नहीं था। उसकी तो दुनिया ही उजड़ गई थी, इसलिये वह भीड़ को चिड़ता हुआ अंदर प्रवेश कर गया और आई. सी. यु रूम की ओर बढ़ा, जिधर सर्मिष्ठा को इलाज के लिये रखा गया था।
और जैसे ही वह आई. सी. यु. रूम के पास पहुंचा, बाहर ही विभूति खन्ना दिख गए। लूटे-पिटे से और हताश, लगता था कि” वर्षों से मरीज हों। पीला पड़ा हुआ चेहरा और पथराई हुई आँखों से वह शीशे से उस पार भेंटीलेटर पर पड़े हुए सर्मिष्ठा को देख रहे थे, जिसका इलाज डाक्टरों के टीम के द्वारा किया जा रहा था। ऐसे में करीब आते पदचाप की आवाज सुनकर वो पलटे और जैसे ही उनकी नजर कमल नटराजन पर गई, उनके अंदर का सारा धैर्य जाता रहा।
फिर तो’ वे कमल नटराजन के हृदय से लग गए और बच्चे की मानिंद ध्रूसके-ध्रूसके रोने लगे। उनका करुण क्रंदन और कमल नटराजन कि-कर्तव्य बिमुढ़ हो गया। एक तो’ उसके हृदय में खुद ही गहरा जख्म लगा हुआ था और उसका पूरा ही अस्तित्व इस प्रहार से कंपित हो रहा था। ऐसे में खन्ना साहब का रुदन, अब वो खुद को संभालने का प्रयास करें, या उनको संभाले?
इसके बाद रात होते-होते शहर में हलचल सा मच गया। उसमें भी मीडिया बालों को जो मालूम था, उसी को आधार बनाकर वे न्यूज का प्रसारण करने लगे। फिर तो’ मामला खन्ना एंपायर से जुड़ा हुआ था, तो हलचल होना स्वाभाविक ही था।
ऐसे में प्रशासनिक अधिकारियों के द्वारा त्वरित कार्रवाई की गई और मीटिंग का दौर शुरु हो गया। इस बात पर पुलिस के आला-अधिकारी मंथन करने लगे कि” इस मामले में ऐसा क्या किया जाए, जिससे पब्लिक मूवमेंट शांत हो जाए। क्योंकि’ मामला ही इस तरह का था कि” जनता कभी भी सड़क पर उतर सकती थी और अगर ऐसा हो जाता, तो प्रशासन के लिये स्थिति को नियंत्रित कर पाना अतिशय दुष्कर हो जाता। जो कि” प्रशासन नहीं चाहती थी, इस तरह के परिस्थिति का निर्माण हो।
इसलिये आनन-फानन में सर्मिष्ठा खन्ना के बयान को रिकार्ड किया गया। फिर तो’ संशय की बात ही नहीं बची थी, इसलिये रात को ही भानु गुरेज, ललित परासर और उसके दोनों साथियों को गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें थाने लाकर उनके साथ पूछताछ की शुरुआत हो गई। उनके निशानदेही पर उस स्थान को भी चिंहित कर लिया गया, जहां पर उन लोगों ने वारदात को अंजाम दिया था।
लेकिन’ इस क्रिया की प्रतिक्रिया तुरंत ही हो गई। क्योंकि’ जनार्दन गुरेज नहीं चाहता था, उसके बेटे को किसी भी तरह से क्षति पहुंचाई जाए। वैसे तो वह जान चुका था, उसके लाल ने जो वारदात को अंजाम दिया हैं, वह समाज और कानून, दोनों तरफ से निंदनीय हैं। फिर भी नहीं चाहता था, उसके बेटे को किसी भी तरह से नुकसान पहुंचे, अथवा उसको सजा हो। क्योंकि’ जैसे ही उसके बेटे ने वारदात को अंजाम दिया, उसका मन प्रमुदित हो चुका था। वह समझ चुका था कि” उसका बेटा उसके नक्शे-कदम पर चलने के लिये पूरी तरह से तैयार हो चुका हैं और यह उसके लिये खुशी की बात थी।
तभी तो’ उसने अपने तंत्र को सक्रिय कर दिया, जिससे वे सड़क पर उतर आए और प्रशासन के विरोध में प्रदर्शन करने लगे। जगह-जगह पर धरना दिया जाने लगा और वे लोग जैसे ही प्रशासन के किसी अधिकारी को देखते थे, उसपर प्रहार करने को दौड़ते थे। ऐसे में शहर में अजब सी स्थिति बन गई, जहां पर मंत्री जनार्दन गुरेज के समर्थक और प्रशासन के बीच संघर्ष शुरु हो गई। पूरी रात ही यही स्थिति बनी रही शहर की और इसके कारण सुबह होते-होते शहर पूरी तरह से अस्त-व्यस्त हो गया।
परंतु….प्रशासन ने भी जिद्द ठान लिया था कि” इस मामले में अपराधियों को सजा जरूर दिलवाया जाएगा। क्योंकि’ इस मामले के कारण पूरे शहर में सन्नाटा पसर चुका था। इतना ही नहीं प्रशासन पर सवालिया निशान भी उठने लगे थे। ऐसे में मंत्री साहब के समर्थकों को पुलिस दौड़ा-दौड़ा कर पीटने लगी। उन्हें गिरफ्तार कर-कर के अंजान जगहों पर भेजा जाने लगा। साथ ही शहर में धारा एक सौ चौवालीस लगा दिया गया, जिससे कोई भी आसामाजिक तत्व अपराध नहीं कर सके।
साथ ही भानु गुरेज एवं उसके साथियों को दिन के दस बजते ही कोर्ट में पेश किया गया। जहां पर वकील सिद्धांत चतुर्वेदी ने अदालत को बताया, सर्मिष्ठा, जो कि” हाँस्पिटल में जीवन और मौत से जुझ रही हैं, उसका इन दूर्दांत अपराधियों ने रेप किया और वह भी इस बहसी तरीके से कि” अदालत को बतलायी भी नहीं जा सकता। लेकिन’ इनके वहशीपने के कारण आज सर्मिष्ठा हाँस्पिटल के आई. सी. यु. रुम में जिंदगी और मौत के बीच झोले खा रही है, संघर्ष कर रही हैं वो जीने के लिये।
फिर सिद्धांत चतुर्वेदी ने अदालत को बतलाया कि” किस तरह से भानु गुरेज सर्मिष्ठा पर पहले से ही दानत बिगाड़ चुका था। उससे हमेशा ही मिलने की कोशिश करना और उसे एहसास कराते रहना कि” मेरे जिंदगी में तुम्हारी खास अहमियत हैं। तभी तो’ बिना बुलाए ही सर्मिष्ठा के इस जन्मदिन पर उसके घर पर महंगे उपहार लेकर पहुंच गया था। लेकिन’ जैसे ही उसको मालूम हुआ , सर्मिष्ठा कमल नटराजन से प्रेम करती हैं और दोनों निकट भविष्य में शादी करने बाले हैं, वह पूरी तरह से बौखला गया। फिर तो’ इसने बिना बतलाए ही बीच पार्टी से रुखसत कर लिया, हृदय पर अनजाने अपमान का भार उठाए हुए।
इसके बाद इस दूर्दांत अपराधी ने अपने मन में बदला लेने की ठान ली। यह चाहता था, सर्मिष्ठा को ऐसा सबक सिखाए, जिससे कोई भी लड़की इसके गंदे इरादे को मना नहीं कर सके। बस’ वह अपने दोस्तों के साथ प्लानिंग करने में जुट गया। फिर जैसे ही इसकी योजना तैयार हो गई, यह सर्मिष्ठा को बहला-फुसला कर यमुना किनारे के जंगलों में ले गया। जहां पर इसने अपने दोस्तों के साथ उस मासूम लड़की के साथ गेंगरेप किया, वह भी इतने बर्बर तरीके से कि” वह लड़की अब जीवन और मौत के बीच झूल रही हैं।
इसके बाद सिद्धांत चतुर्वेदी ने अदालत को बतलाया कि” इस तरह के अपराधी मन वृति बाले युवा किस तरह से समाज के लिये घातक हैं। अतः इस मामले में कोई कोताही नहीं बरती जाए और इस मामले की सुनवाई फास्ट्रेक पर हो, जिससे पीड़िता को न्याय मिल सके और इस तरह के मानसिकता बाले अपराधी पर अंकुश लगाया जा सके। नहीं तो’ अगर ये लोग बच गए तो, अपराधियों का मनोबल बढ़ेगा और निकट भविष्य में इस तरह के अपराध को फिर दुहराया जाएगा।
इसके बाद जगत सक्सेना नाम के वकील ने बचाव पक्ष में दलील देने की शुरुआत की। वह उन तमाम कोशिशों को आजमाने लगा, जिससे भानु गुरेज एंड मंडली को जमानत मिल जाए। परंतु…ऐसा हो नहीं सका और अदालत ने भानु गुरेज एंड कंपनी को ट्रायल के लिये पुलिस कस्टडी में भेज दिया, साथ ही इस केस की सुनवाई फास्ट्रेक पर करने के लिए पुलिस को निर्देशित कर दिया।
इसके बाद अदालत की सुनवाई खतम हो गई और भानु गुरेज एंड कंपनी को पुलिस के द्वारा ले जाया गया। इधर सिद्धांत चतुर्वेदी मन में शांति का अनुभव कर रहे थे, क्योंकि’ उनका मानना था कि” अपराधियों को बख्शा नहीं जाए। हां, उनके मत से अपराधी मतलब अपराधी ही होता था, जिसके साथ सहानुभूति करना, मतलब समाज के लिये विष बेल बोना। जो कि” वह नहीं चाहते थे। वे चाहते थे, अपराधियों को कड़ी से कड़ी सजा मिले, जिससे कि” समाज में आदर्श स्थापित किया जा सके। साथ
बस’ उनके मन में ढ़ृढ़ निश्चय ने आकार ले लिया कि” चाहे जो हो जाए, परंतु….भानु गुरेज एवं उसके साथियों को सजा दिलवाकर रहेंगे। फिर क्या था, दिमाग में इतनी बात आते ही वो कोर्ट रूम से बाहर निकले और अपने कार की ओर बढ़ चले। क्योंकि’ इस केस में विभूति खन्ना और कमल नटराजन से मिलना जरूरी हो गया था। तभी वे अगली सुनवाई के लिये अपनी योजना को फूल प्रूफ बना सकते थे। तभी तो’ कार के करीब पहुंचते ही उन्होंने ड्राइविंग शीट संभाला और कार आगे बढ़ा दिया।
मन में चलते हुए ढ़ेरों विचार, क्योंकि’ इस तरह के हादसे को सुनकर उनका खून खौलने लगता था। फिर तो’ उनकी भी बेटी थी, जो मेडिकल की पढ़ाई कर रही थी। ऐसे में अगर अपराधियों में कानून का खौफ नहीं रहा, तो कोई भी सुरक्षित नहीं रह सकता था। नहीं-नहीं, समाज में इस तरह के हालात पैदा हो, यह कतई भी उचित नहीं। ऐसे में वो कानून के मुलाजिम हैं, तो जरूर ही उनको कदम उठाना चाहिये, नहीं तो समय उन्हें कभी भी माफ नहीं करेगा और न ही यह समाज के हित में होगा।
ये विचार जो उनके मन में अचानक ही प्रगट हुआ था, उसे उन्होंने अपने-आप से कहा। फिर अपने हाथ को कसकर स्टेयरिंग पर जमा दिया और कार की रफ्तार बढ़ाने लगे। धीरे-धीरे आगे की ओर बढ़ता हुआ समय और सड़क पर दौड़ती हुई ट्रैफिक, उसके बीच उनकी कार दौड़ती जा रही थी, निरंतर ही अपने लक्ष्य की ओर बढ़ती हुई। साथ ही उनके मन में विचार भी दौड़ते जा रहे थे।
इसके बाद’ सिद्धांत चतुर्वेदी का विभूति खन्ना एवं कमल नटराजन से मिलना हुआ। फिर तो’ तीनों की इस केस में मंत्रणा कि” कोई लूप होल नहीं रह जाए, जिससे अपराधी के बच निकलने के चाँस बचे। वैसे भी, विभूति खन्ना के पास पैसा और पहुंच दोनों था। इसलिये वो जाल बिछाने में जुट गए। जानते थे, जनार्दन गुरेज गुंडा टाइप का होने के साथ ही राजनीति में हैं और मंत्री भी हैं। ऐसे में वो अपने बेटे को बचाने की भरपूर कोशिश करेगा। वह कोशिश करेगा कि” इस केस को किसी तरह से प्रभावित किया जाए।
तभी तो’ विभूति खन्ना इस मामले में मीडिया बालों से मिला और उन्हें पैसे के बल पर तैयार कर लिया कि” इस मामले में प्रशासन और सरकार, दोनों की निंद हराम कर दे। साथ ही उन्होंने गृह मंत्रालय पर दबाव बनाने की शुरुआत कर दी, जिस से इस मामले को सी. बी. आई. को सौंप दिया जाए। स्वाभाविक रुप से उनके प्रयासों ने रंग लाया था और अब प्रशासन पर गृह मंत्रालय के द्वारा दबाव बनाया जाने लगा था कि” इस मामले में कोई कोताही नहीं बरती जाए।
इस मामले में तेज-तर्रार आँफिसरों को लगाया जाए। जो इस मामले में सबूत जुटा सके, जिससे भानु गुरेज एवं उसके साथियों को सजा मिल सके। गृह मंत्रालय का दबाव बनते ही सीनियर अधिकारी का जीना हराम हो गया। या यूं कहा जाए कि” उनका मिशन ही बन गया, किसी भी तरह से भानु गुरेज एवं उसके साथियों को सजा दिलवाई जाए। परिणाम स्वरूप वे युद्ध स्तर पर कार्य करने लगे और सबूत जुटाने लगे।
ऐसे में जनार्दन गुरेज बुरी तरह बौखला गया। हां, कहां तो वो चाहता था, अपने बेटे को कानून के फंदे से बचा ले, उसका रोम भी भंग नहीं होने दे और कहां तो पुलिस बाले उसको सजा दिलवाने की तैयारी कर रहे थे। ऐसे में उसे मालूम था, अगर उसने कोशिश नहीं की, तो निश्चित तौर पर उसके बेटे को फाँसी हो जाएगा। जो कि” उसे किसी भी हालत में मंजूर नहीं था। हां, वो अपने बेटे से बहुत प्यार करता था, साथ ही चाहता भी था, उसके जुर्म के विरासत को बाद में वही संभाले।
भले ही अपराधी ही सही, भानु उसका बेटा था। ऐसे में खुद शातिर होते हुए, वह कैसे चुप बैठ सकता था?....जबकि’ उसके पास न तो पैसे की कमी थी और न ही पहुंच की कमी। फिर तो’ समर्थकों का एक विशाल फौज उसके पास था, जो उसके एक इशारे पर शहर में जलजला ला सकते थे। परंतु…इस मामले में उसकी बुद्धि कुंद होकर रह गई थी। ऐसे में वह जितना अधिक हाथ-पांव भांजता था अपने बेटे को बचाने के लिये, उसे लगता था कि” उसका बेटा कानून के गिरफ्त में और भी उलझता जा रहा हैं।
ऐसे में उसके ऊपर स्वाभाविक रूप से बौखलाहट हावी होता चला गया। इधर’ बीतते दिनों की सुनवाई के साथ ही सिद्धांत चतुर्वेदी आक्रामक होते जा रहे थे। उनका कोर्ट में दिया गया दलील, प्रत्येक सुनवाई के बाद भानु गुरेज और उसके साथियों को सजा के और भी करीब ला रहा था। हां, चतुर्वेदी साहब ने इरादा बना लिया था कि” भानु गुरेज एंड टीम को फांसी से कम सजा नहीं होने देंगे। बस’ वे इस केस में जी-जान से लगे हुए थे और निरंतर ही प्रयास कर रहे थे।
फिर तो’ मीडिया बाले भी इस मामले को उछालने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रहे थे। प्रशासन के एक-एक मूवमेंट को कवर करना और उसे न्यूज बनाकर जनता के सामने परोस देना, वह भी इस तरीके से कि” जनता बीती हुई घटना को भूलने ही नहीं पाए। साथ ही इस मामले में न्यूज चैनल बाले डिबेट का आयोजन करने लगे थे, जिससे इस मामले में आम जन की दिलचस्पी बढ़ गई थी।
उधर’ विभूति खन्ना और कमल नटराजन ने भी अपने प्रयास को बढ़ा दिया था। बराबर ही सीनियर अधिकारियों से मिलना और मंत्रालय में जाकर मिलना। अब उनको उम्मीद होने लगा था कि” सर्मिष्ठा को न्याय मिल जाएगा। हां, वे दोनों भी तो यही चाहते थे, सर्मिष्ठा को न्याय मिले। क्योंकि’ जिस तरह से भानु गुरेज और उनके साथियों ने सर्मिष्ठा के हंसते-खेलते जीवन को तबाह कर दिया था, दोनों का हृदय इस आघात से टूट चुका था। बस’ अब दोनों ही चाहते थे कि” अपराधियों को जल्द से जल्द शूली पर चढ़ा दिया जाए। तभी तो उनके घायल मन को थोड़ा सा राहत मिलता।
बस’ होते हुए इन सारी कार्रवाइयों से जनार्दन गुरेज अपने-आपे से बाहर होने लगा। उसे अब लगने लगा था, भानु गुरेज को कानून के चंगुल से बचा पाना मुमकिन नहीं। समझ चुका था जनार्दन गुरेज कि” अब उसके बेटे को सजा जरूर हो जाएगा और समय रहते उसने कोशिश नहीं की, तो निश्चित ही उसके बेटे को शूली पर चढ़ा दिया जाएगा। जो कि” वह किसी हालत में नहीं होने देना चाहता था। तभी तो’ उसने मन ही मन में फैसला कर लिया कि” अब वो मौत का तांडव खेलेगा।
बस’ एक फैसला और उसने पूरी तैयारी कर ली। फिर पांच सितंबर की वो स्याह रात, जब उसने हाँस्पिटल पर धावा बोला और सर्मिष्ठा की हत्या करने के बाद उसके अंगों को बाहर निकाल लिया। साथ ही इसकी सूचना गुप्त रूप से पुलिस और मीडिया को दे दी गई। अब मीडिया बाले और प्रशासन जैसे ही हाँस्पिटल पहुंचे, उसने अतुल्य बिला पर धावा बोल दिया।
फिर तो’ अतुल्य बिला के अंदर खूनी-खेल खेला जाने लगा। हां, विभूति खन्ना, उनके बेटे और श्रीमति खन्ना को मौत के आगोश में सुला दिया गया। वहां पर अतुल्य बिला में जनार्दन गुरेज एवं उसके गुर्गे के द्वारा खन्ना दंपति को तड़पा-तड़पा कर मार डाला गया। इसके बाद उनके शरीर से महत्वपूर्ण अंगों को निकाल लिया गया। जिससे कि” प्रशासन को यह मामला मानव अंग तस्करों का लगे।
इसके बाद कमल नटराजन को भी रास्ते से हटाने की कोशिश की गई। परंतु….संयोग से उस दिन कमल नटराजन शहर में नहीं था, इसलिये उसकी जान बच गई। परंतु….जनार्दन गुरेज ने सिद्धांत चतुर्वेदी के बेटी को अपहरण करवा लिया और फिर वापस लौट आया।
इधर’ शहर में लगातार दो-दो जगहों पर वारदात होना, उसमें भी खन्ना एंपायर के साथ इस तरह का हादसा होना, एक अजीब तरह का हलचल मच गया। जिसने प्रशासन के हाथ-पांव फूला दिए। साथ ही मीडिया बालों ने भी मोर्चा खोल लिया और इस मामले में पुलिस को जिम्मेदार ठहराने लगे। फिर तो’ मामला हाई-प्रोफाईल था, इसलिये गृह मंत्रालय भी हरकत में आ गया। जिसके कारण शहर में पुलिस की पेट्रोलिंग बढ़ा दी गई और अंजान हत्यारे को पकड़ने की कोशिश की जाने लगी।
परंतु….पुलिस के इस कार्रवाई से जनता को संतुष्टि नहीं मिल रही थी, इसलिये वे लोग सड़क पर उतर आए और धरना-प्रदर्शन करने लगे।। एक अजीब तरह का दबाव, प्रशासन के आला-अधिकारी समझ नहीं पा रहे थे, इस मामले को किस तरह हैंडल करें। क्योंकि’ ’इतना तो वे समझ ही चुके थे कि” इस मामले को रंजिश के कारण जनार्दन गुरेज के द्वारा अंजाम दिया गया हैं। साथ ही वे इस बात को भी समझ चुके थे कि” अगर उसपर हाथ डालने की कोशिश की गई, तो वो एक और वारदात को अंजाम देने में नहीं हिचकेगा।
अब भला, जीवन किस को प्यारी नहीं, जो उससे पंगा लेने की सोचता। ऐसे में इस मामले में लीपा-पोती का प्रयास किया जाने लगा। परंतु….जनता इस बात से संतुष्ट नहीं थी, उनका धरना- प्रदर्शन जारी था। किन्तु’ उनका विरोध नक्कार खाने में तूती बोलने के समान था।
इधर’ सिद्धांत चतुर्वेदी को जैसे ही मालूम हुआ कि” उनके बेटी को अपराधियों द्वारा अपहरण कर लिया गया हैं, उनके हाथों के तोते उड़ गए। अब इस मामले में पुलिस के रवैया को देखकर इतना तो वे समझ ही चुके थे, अभी प्रशासन से मदद की उम्मीद बेकार हैं। ऐसे में उनका हिम्मती मन घबराने लगा और उनका सारा धैर्य जाता रहा।
छ सितंबर की सुबह!
जैसे ही कमल नटराजन अपने बिजनेस टूर से लौटा, सीधे कार लेकर अतुल्य बिला पहुंचा। वैसे भी, रात को ही उसको शहर में घटे हुए घटना की सूचना मिल गई थी, इसलिये वह अपने बिजनेस टूर को कैंसल कर के लौट आया था और अब अतुल्य बिला जा रहा था। पूरी तरह से बदहवास बना हुआ कमल नटराजन, क्योंकि’ उसकी दुनिया बसने से पहले ही उजड़ गई थी। ऐसे में उसको सब से पहले हाँस्पिटल ही जाना था, परंतु….वह हाँस्पिटल जाने का हिम्मत नहीं जुटा सका था, इसलिये अतुल्य बिला जा रहा था। दूसरी बात कि” क्रुमुदिका खन्ना भी तो लंदन से लौटने बाली होगी, उसको भी तो संभालना पड़ेगा।
तभी तो’ वह अपने पिता रघु नटराजन से बात की थी और रघु नटराजन ने उसको हौसला बंधाया था। उससे कहा था कि” जाओ बेटा, जाकर स्थिति को देखो, बाकी की बातें छोड़ दो। वो सब मैं देख लूंगा। बस पिता का प्यार भरा हूंफ पाकर उसके अंदर फिर से हिम्मत जागृत हुआ था और अब वो अपनी कार को अतुल्य बिला की ओर भगाए जा रहा था।
वैसे भी, शहर में जिस तरह के घटनाओं को अंजाम दिया गया था, उसने उसके दिमाग को फ्रीज करके रख दिया था। भला’ इंसान इतना क्रूर कैसे हो सकता हैं?....जो इस भीषण नर-संहार को अंजाम दिया गया। बस’ एक रात और उसके सपने को बुरी तरह से रौंद डाला गया। ऐसे में उसके मन में इच्छा हो रही थी, दहाड़ मार कर रोए। लेकिन’ नहीं, अगर वो ही इस तरह से टूट गया, तो क्रुमुदिका को कौन ढ़ाढ़स बंधाएगा।
तभी तो’ बार-बार अपने-आप को समझा रहा था कमल नटराजन और इस कोशिश में बार-बार उसके आँख छलक उठते थे, जिसे वह आस्तीन के कोर से पोंछ लेता था। सुबह का समय, वैसे तो ज्यादा ट्रैफिक नहीं होती हैं, लेकिन’ रात की घटना के बाद प्रशासन के द्वारा पुलिस बल की गश्ती जरूर बढ़ा दी गई थी। परंतु…न जाने क्यों, पुलिस बल को देखकर उसके मन में कुढ़न सी हो रही थी। हां, वह इस बात को अच्छी तरह से समझ रहा था, पुलिस बाले सिर्फ अपना बचाव कर रहे हैं। नहीं तो, अगर ये लोग इतने ही मुस्तैद होते, तो अपराधियों की हिम्मत नहीं थी, रात को इस तरह की घटना को अंजाम देकर निकल जाते।
मन के भाव, जो उसको विकल कर रहे थे। फिर तो’ जीवन में अंधकार का भी आवरण सा छा गया था उसके। ऐसे में वो जिधर देखता था, बस सन्नाटा सा महसूस होता था। जो उसका जीवन कुछ दिनों पहले खुशियों से गुलजार था, अचानक ही दु:खो का तेजाब गिरने से पूरी तरह से झुलस गया था। ऐसे में अब उसके पास सिर्फ वेदना ही तो बचता था, जिसके साथ पूरी जिंदगी गुजारना था। तो फिर मन विकल कैसे नहीं होता?
फिर एक तरह का आक्रोश भी कि” सर्मिष्ठा एवं उसके परिवार पर मौत का तांडव खेलने बाले को वो फिलहाल कुछ कर भी नहीं सकता। क्योंकि’ इतना तो समझ ही गया था वो, मंत्री जनार्दन गुरेज की प्रशासन में अच्छी घुसपैठ हैं, तभी तो’ वो इतने बड़े वारदात को अंजाम देने में सफल हुआ। वह समझ चुका था कि” यह कारनामा जनार्दन गुरेज का ही हैं, किन्तु’ जानते हुए भी वह कुछ भी तो नहीं कर सकता था। इस बात का भी मलाल उसके मन को सालता था, इसलिये मन की वेदना और भी बढ़ी हुई थी।
तभी तो’ कार को अतुल्य बिला में प्रवेश करते ही उसने पोर्च में रोका और तेजी से उतर कर अंदर गया। अंदर हाँल में क्रुमुदिका आ चुकी थी और सोफे पर गुमसुम बैठी हुई थी। ऐसे में जैसे ही उसने हाँल में कदम रखा, क्रुमुदिका की नजर उस पर गई और वह बिजली की फुर्ती से उठ खड़ी हुई और दौड़कर उससे लिपट गई। इसके बाद उसका करुण क्रंदन और कि-कर्तव्य बिमुढ़ बना हुआ कमल नटराजन।
उसको समझ ही नहीं आ रहा था कि” क्रुमुदिका को किन शब्दों के द्वारा सांत्वना दें? उसे ऐसा क्या कहे कि” उसके जख्मों पर मरहम लग जाए?....क्योंकि’ जख्मी तो वह खुद भी था, वह भी बुरी तरह से। ऐसे में, जब खुद जख्म गहरा हो, तो दूसरे को सांत्वना देना बहुत ही कठिन होता हैं। तभी तो’ वह खंभे सा स्थिर और निष्प्राण खड़ा रहा और क्रुमुदिका उससे लिपट कर करुण विलाप करती रही। धीरे-धीरे आगे की ओर बढ़ता हुआ समय और गम में बोझिल होता हुआ अतुल्य बिला।
बस’ ऐसे ही विलाप और संताप के बीच पूरा दिन गुजर गया। वैसे तो, कहने के लिये दिन का प्रकाश में डूबा हुआ समय था। लेकिन’ अतुल्य बिला के साथ स्नेह रखने बालों के लिये यह समय अंधकार में डूबी हुई काली रात के समान था। तभी तो’ शाम को जैसे ही खन्ना परिवार के लोगों का पार्थिव शरीर बिला के अंदर लाया गया, कोहराम सा मच गया। बस’ विकट परिस्थिति और विलाप करते हुए लोग, वहां कोई ऐसा नहीं था, जो दूसरे को संभाल सके। अजीब सी स्थिति का निर्माण हो गया था वहाँ।
तभी वहां पर रघु नटराजन का आगमन हुआ। उन्होंने स्थिति को समझा और पार्थिव शरीर को श्मशान ले जाने की तैयारी करने लगे। इसके बाद देर रात गए खन्ना परिवार के लोगों का अंतिम संस्कार हो सका। इसके साथ ही दिन बीतने लगे।
इधर’ सिद्धांत चतुर्वेदी पर अपराधियों द्वारा दबाव बनाया जाने लगा कि” वे भानु गुरेज मामले में गलती करें। हलांकि’ उनका हृदय राजी नहीं हो रहा था इस मामले में। वह नहीं चाहते थे, इस मामले में अपराधी कानून के चंगुल से बचकर निकल जाए। परंतु…उनके लिये अब मजबूरी सा बन चुका था। जानते थे, इस मामले में प्रशासन से सहयोग की अपेक्षा करना बेवकूफी हैं। हां, इतना तो वे समझ ही चुके थे, जनार्दन गुरेज की पहुंच बहुत अंदर तक हैं और वो प्रशासन के कुछ लोगों का सहयोग लेकर कुछ भी करवा सकता हैं।
बस’ वे अपनी प्यारी बेटी को खोना नहीं चाहते थे, क्योंकि’ एक वही तो थी जो उसकी दुनिया थी। ऐसे में कुछ अनाम लोगों के द्वारा उनका मंत्री जनार्दन गुरेज से समझौता करवा दिया गया। फिर क्या था, सर्मिष्ठा मामले में वे जानबूझकर गलती करने लगे। जिसका असर हुआ कि” “ बचाव पक्ष का वकील इस केस में हावी होने लगा और एक दिन ऐसा भी हुआ, जब भानु गुरेज एवं उसके साथियों को सबूत के अभाव में बा-इज्जत बरी कर दिया गया और लाचार कानून व्यवस्था यह होते हुए देखती रही।
वह काला दिन के समान था सिद्धांत चतुर्वेदी के लिये, क्योंकि’ शक्ति के बल पर उनके सिद्धांत का जबरन खून कर दिया गया था। ऐसे में बेटी वापस मिली और उसी शाम को उन्होंने उसे लंदन भेज दिया पढ़ने के लिये, फिर रात को जम कर शराब पी और जार-जार रोते रहे। क्योंकि’ जो कभी नहीं संभव था, वह आज अदालत में घटित हो गया था। ऐसे में उनको अपना जीवन भार रुप लगने-लगा था। हां, उन्हें समझ ही नहीं आ रहा था कि” इस स्थिति में क्या करें?...
एक अपराध बोध, अपने स्वाभिमान से समझौता करने का। फिर तो’ उनका मन खुद को अतुल्य बिला का गुनाहगार समझ रहा था। तभी तो’ अगली शाम वे अतुल्य बिला पहुंच गए और क्रुमुदिका के चरण के पास बैठकर बच्चे की मानिंद रोने लगे। हां, सिद्धांत चतुर्वेदी आज बिलकुल ही बच्चा बन गए थे और रो रहे थे। इसलिये नहीं रो रहे थे कि” क्रुमुदिका उसको क्षमा कर दे और वो अपराध बोध से मुक्त हो जाए। वह तो इसलिये रो रहे थे कि” मन की वेदना बाहर निकल जाए।
ताकी आने बाले समय के लिये खुद को तैयार कर सके। उनके स्वाभिमान का जो खून किया गया हैं, उसका बदला ले सके। हां, वे चाहते थे कि” सर्मिष्ठा को न्याय मिले, जिससे उसकी भटकती हुई आत्मा को शांति मिले। लेकिन’ इसके लिये खुद को तैयार करना जरूरी था, इसलिये ही तो वो करुण क्रंदन कर रहे थे।