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इसके बाद मैं पूरी तरह से टूट चुकी थी। मेरा परिवार मुझसे छीन लिया गया था, जिसके कारण मैं दुनिया में बिल्कुल अकेली हो गई थी। बस’ दिमाग शून्य में खो गया था और मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि” क्या करूं?... एक प्रश्न चिन्ह सा बन गया था जिंदगी। किन्तु’ इस दु-श्चिंता के सागर में डूबने से बचाने के लिये कमल नटराजन आगे बढ़ा और उसने मुझे संभाल लिया। बोलते-बोलते भावुक हो गई थी क्रुमुदिका।

वह बीते दिनों की यादों से वापस आ चुकी थी। उन बीते दिनों की यादों से वापस आ चुकी थी, जो उसके लिये असह्य था। उसका बीता हुआ कल बरछी के समान था, जो याद आ जाने के बाद उसकी अंतरात्मा को लहूलुहान कर देता था। तभी तो’ उसके आँखों से गरम आँसुओं की धारा बह रही थी और वो मीटिंग रूम में मौजूद एस. पी. साहब के चेहरे को एकटक देखे जा रही थी। ऐसे में एस. पी. साहब का हौसला जबाव दे रहा था, वो क्रुमुदिका से आँखें मिलाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे। परंतु… इस तरह से भी तो काम नहीं चल सकता था, तभी तो उसके चेहरे की ओर देखकर धीरे से बोले।

क्रुमुदिका!.. यह तुम्हारा खुद का ओपिनियन हो सकता हैं, परंतु… यह पूर्ण सत्य नहीं। ऐसा तुम बेवजह ही आरोप लगा रही हो कि” प्रशासन ने तुम्हारा साथ नहीं दिया। जबकि’ कुछ को अगर छोड़ दिया जाए तो, अभी भी प्रशासन में ईमानदार आँफिसरों की भरमार हैं। बोला उन्होंने और एक पल के लिये रुके और क्रुमुदिका एवं सिद्धांत चतुर्वेदी के चेहरे को बारी-बारी से देखने लगे, शायद कुछ पढ़ना चाहते थे। इसके बाद उन्होंने लंबी सांस ली और गंभीर होकर आगे बोलने लगे।

हो सकता हैं कि” आपको लगा हो, प्रशासन आपके साथ नहीं हैं, लेकिन’ ऐसा कुछ नहीं था। हां, मुझे मालूम हैं, आज से तीन साल पहले इस घटना को अंजाम दिया गया था और प्रशासन के ऊपरी स्तर पर काफी कोशिश की गई थी कि” इस मामले में अपराधी को सजा हो। परंतु….अदालत में वकील साहब के बार-बार बदले जा रहे बयान के कारण ऐसा संभव नहीं हो सका था और अपराधी बा-इज्जत बरी हो गए थे।

सर!....आपने शायद सही से क्रुमुदिका के बातों को नहीं सुना, नहीं तो वकील पर दोषारोपण नहीं करते। जो कि” उस मामले में विक्टीम पक्ष से मैं ही वकील था। परंतु….बार-बार बयान बदलने के पीछे मेरी मजबूरी थी। मेरी बेटी को अपराधियों द्वारा अगवा कर लिया गया था। ऐसे में मैं मजबूर हो गया था, तभी तो इस केस के समाप्त होते ही उसे लंदन भेज दिया, जो आज तक नहीं लौटी हैं। एस. पी. साहब की बातों को सुनकर चोटिल हुए नाग की तरह बीच में ही बोले सिद्धांत चतुर्वेदी और उनकी बातों को सुनने के बाद एस. पी. साहब को लगा कि” बात अलग दिशा में जा रहा हैं, इसलिये बात बदल कर बोले।

अब छोड़िए भी उन बातों को वकील साहब और हमें बतलाइए कि” आप लोगों ने अपराध करने के किस तरह की तैयारी की। मसलन, अपने शिकार को टार्गेट करना और उनके अंगों की डिलिंग, इन तमाम बातों के बारे में बतलाइए, जिस से कि” हम लोगों की बातें आगे बढ़ सके।

सर!....अतुल्य बिला में वारदात को जब अंजाम दिया गया, उस समय सिक्युरिटी कैमरा काम कर रहा था। ऐसे में अपराधियों के अपराध की पूरी रिकार्डिंग हो गई थी। उनकी बातों को सुनने के बाद बीच में ही बोल पड़ा कमल नटराजन। फिर एक पल के लिये रुका वो और बारी-बारी से वहां मौजूद सभी के चेहरे को देखा और इसके बाद आगे धारा-प्रवाह बोलने लगा।

सर!...यह तो निश्चित हो चुका था कि” खन्ना परिवार को मारने बाले कौन थे, परंतु….हम लोग उस समय मौन हो गए। क्योंकि’ प्रशासन का रूख अच्छा या बुरा, हम लोग समझ चुके थे और अब इस मामले में रिश्क नहीं लेना चाहते थे। दूसरी बात कि” हम लोग भयभीत भी हो चुके थे और हमारे ऊपर गहरा आघात भी हुआ था। इसलिये हम लोगों ने फैसला कर लिया कि” फिलहाल तो इस आघात से उबरने की कोशिश करेंगे, जो कि” हम लोगों ने धैर्य दिखाया और किया।

इसके बाद जब चतुर्वेदी साहब हमारे पास पहुंचे और बच्चे की तरह रोने लगे, हम यह भी समझ गए कि” इनको भी मजबूर किया गया होगा। नहीं तो, इनके बारे में जो सुना था, वह गलत कैसे हो सकता हैं। कमल नटराजन की बातें खतम होते ही क्रुमुदिका आगे बोलने लगी। फिर वो एक पल के लिये रुकी और एस. पी. साहब के आँखों में झांकने के बाद आगे बोली।

बस’ वकील साहब की निर्दोषता को हम लोग समझ चुके थे, इसलिये इनको माफ कर दिया गया। इसके बाद ये हमारे साथी बन गए और हम लोगों से ज्यादा इस वारदात के लिये प्रतिशोध लेने के लिये उत्सुक दिखाई देने लगे। बस’ यह सारी योजना भी इन्होंने ही तैयार की और इस आपरेशन के लिये मिस्टर जेड बन गए। बस’ हम लोगों ने अपनी योजना को धरातल पर उतारने के लिये तीन वर्ष के लंबे अरसे का इंतजार किया। इसके बाद की कहानी तो आपको मालूम ही हैं।

नहीं, क्रुमुदिका’ मुझे आगे की कहानी बिल्कुल भी मालूम नहीं हैं। अब तुम नहीं बतलाओगी, तो कैसे जान सकूंगा कि” तुम वेपन किस तरह से तैयार करती थी?...मतलब समझ रही हो न?....इस मामले में अब तक तुमने ऐसी लड़कियों को इस्तेमाल किया हैं, जिसने वारदात को अंजाम दिया हैं। मतलब कि” तुम लोग कैसे शिकार को फंसाते थे, उसे जानना हैं हमें?... उसकी बातों को सुनने के बाद एस. पी. साहब बोले और उनकी बातों को सुनते ही कमल नटराजन मुस्करा कर बोल पड़ा।

सर!....इसके लिये पहले तो हमने तस्कर ढूंढ़ा, जो मानव अंगों की तस्करी करता हो। हम लोग जानते थे कि” हम जिन्हें शिकार बनना चाहते थे, वो कामुक प्रवृति के हैं और लड़की के सामने फिसल जाते हैं। बस’ हमने ऐसी युवतियों को ढ़ूंढ़ने की शुरुआत कर दी, जो लालची हो और पैसे के लिये वारदात को भी अंजाम दे सके। इसके लिये हमने कोर्ड वर्ड का इस्तेमाल किया और काम हो जाने के बाद उन लड़कियों को भी ठिकाने लगा दिया।

अच्छा!....तो फिर मंत्री जनार्दन गुरेज को क्यों छोड़ दिया?

क्योंकि’ वह अपने पापों का बोझ उठा सके, वह महसूस कर सके कि” जब किसी का कोई अपना छीन जाता हैं, तो उसके साथ क्या बीतता हैं। अभी तो एस. पी. साहब ने प्रश्न ही किया था कि” सिद्धांत चतुर्वेदी बोल पड़े। तभी सलिल अपनी जगह से उठा और एस. पी. साहब के करीब पहुंच कर उनके कान में कुछ कहने लगा। जिसे सुनते ही उनके होंठों पर मुस्कान थिरक उठी। तभी तो’ जैसे ही सलिल अपनी जगह पर जाकर बैठा, उन्होंने कलाईं घड़ी पर नजर डाली, जो सुबह के तीन बजने की सूचना दे रही थी, फिर आगे बोले।

वैसे चतुर्वेदी साहब!....आप लोगों के लिये महत्वपूर्ण सूचना हैं और सूचना ये हैं कि” मंत्री जनार्दन गुरेज ने फांसी पर लटक कर जान दे चुका हैं।

ऐसा हो ही नहीं सकता हैं सर!....जनार्दन गुरेज डरपोक किस्म का इंसान था, वह अपनी जान खुद कभी नहीं ले सकता। उनकी बातों को सुनने के बाद तक्षण ही बोली क्रुमुदिका, फिर एक पल के लिये रुकी वो और उनकी ओर देखा, इसके बाद आगे बोली।

जरूर ही उसकी पत्नी ने उसको मार दिया होगा। क्योंकि’ वो जुर्म की दुनिया से नफरत करती थी और नहीं चाहती थी, उसका बेटा अपराधी बने। परंतु…बेटे को अपराधी बनाने की गुरेज की जिद्द थी। बस’ उसका बेटा मारा गया और इस कारण से ही उसने जनार्दन गुरेज को मार दिया होगा।

कहा क्रुमुदिका ने और उसके चेहरे की ओर देखने लगी। जबकि’ उसकी बातों को सुनने के बाद एस. पी. साहब के होंठों की मुस्कान और भी गहरी हो गई थी। परंतु….न जाने क्यों उनका अब फिलहाल तो बात करने का मूड नहीं था, तभी तो’ उठ खड़े हुए और मीटिंग रूम से बाहर निकल गए।

* * *

एस. पी. विनय त्यागी, स्वभाव से भले ही मृदुल दिखते हो, परंतु….प्रशासनिक स्तर पर बहुत ही कठोर थे। उनके पास प्रशासन का अच्छा-खासा अनुभव था, इसलिये सामने कोई भी हो, उनसे भय खाता था। तभी तो, राम माधवन करीब डेढ़ घंटे से उनके सामने खड़ा था। हैरान-परेशान बना हुआ राम माधवन, उनके चेहरे की ओर आशा भरी नजरों से देखते हुए।

रोहिणी पुलिस स्टेशन का आँफिस, कब से चेयर पर बैठे हुए एस. पी. साहब और उनके सामने खड़ा राम माधवन। हां, एस. पी. साहब ने मंत्री जनार्दन गुरेज के डेड बाँडी को पोस्टमार्टम के लिये हाँस्पिटल भिजवा दिया था और सुगंधा गुरेज को गिरफ्तार करवा कर पुलिस स्टेशन ले आए थे। तब से, आँफिस में बैठे हुए सलिल का इंतजार कर रहे थे, क्योंकि’ मामला गंभीर था और इस स्थिति में राम माधवन को अकेले छोड़ कर जाना उनको उचित नहीं लगा था, तभी तो यहां रुक गए थे।

ऐसे में उनका मन भी बोझिल हो रहा था। हां, अगर इस तरह की परिस्थिति अगर नहीं होती, तो वे किसी हालत में वहां पर नहीं रुकते। अगर ज्यादा ही जरूरी होता, तो पुलिस मूख्यालय में रुक जाते, परंतु…यहां तो हरगिज नहीं। उफ!....फिल्ड में काम करना कितना दुष्कर कार्य हैं, आज उनको समझ आ रहा था। तभी तो’ जब उनसे नहीं रहा गया, उनकी नजर कलाईं घड़ी पर चली गई। जो कि” सुबह के साढ़े तीन बजने की सूचना दे रही थी। ऐसे में सहसा ही उनके मुख से निकल गया।

यह सलिल भी न, न जाने कब तक आएगा?

सर!.....आपने कुछ कहा क्या?....कब से खड़े-खड़े बोर हो रहे राम माधवन ने जैसे ही उनकी आवाज सुनी, तत्परता के साथ बोला। जबकि’ उसकी तत्परता देखकर एस. पी. साहब मुस्कराये बिना नहीं रह सके। साथ ही उनका ध्यान भी चला गया। जब से घटना स्थल से लौटे हैं, राम माधवन ऐसे ही खड़ा हैं। तभी तो’ उन्होंने राम माधवन के चेहरे की ओर देखा और धीरे से बोले।

मैंने कुछ नहीं कहा राम माधवन!....वैसे, तुम कब तक खड़े रहोगे?....अब बैठ भी जाओ, क्योंकि’ फिलहाल तो नहीं लगता कि” सलिल लौटेगा। ऐसे में अगर ऐसे ही खड़े रहे, तो निश्चित ही थक जाओगे।…..कहा एस. पी. साहब ने और फिर उन्होंने चुप्पी साध ली।

जबकि’ आदेश मिलते ही राम माधवन बैठ गया। हाश!....अब आराम मिला, नहीं तो खड़े-खड़े लगने लगा था कि” जैसे अब टांग टूट जाएगा और कमर टेढ़ी हो जाएगी। लेकिन’ साहब लोगों को इससे क्या?...उन्हें तो साहब गिरि झाड़ना हैं, भले ही अधीनस्थ की जान ही क्यों न चली जाए। नहीं तो’ वह जब से घटनास्थल से लौटा था, ऐसे ही तो खड़ा रहा था, परंतु…तब साहब की नजर नहीं गई थी। वह तो भला हो, उनके मुख से शब्द निकले और उसने तत्परता दिखलाई, नहीं तो, न जाने कब तक ऐसे ही खड़ा रहना पड़ता।

परंतु….साहब लोग इस पीड़ा को नहीं समझ सकते। क्योंकि’ डायरेक्ट कमिशनिंग होकर आए रहते हैं न। ऐसे में निचले स्तर के अधिकारी और कर्मचारी को किन-किन मुसीबतों का सामना करना पड़ता हैं, भला वे क्या जाने। उस पीड़ा को तो उसके जैसा आँफिसर ही समझ सकता हैं, जो फिल्ड में काम करता हैं। उसे अच्छी तरह से मालूम हैं कि’ फिल्ड में किन-किन परिस्थितियों का सामना करना पड़ता हैं। उसपर आफत और ये कि” अगर सीनियर सामने हो, तो दो पल के लिये आराम भी नहीं कर सकते।

तभी तो’ जब से वह वारदात स्थल से लौटा था, ऐसे ही खंभे की तरह खड़ा रहा था। ऐसे में कुर्सी पर बैठते ही उसको राहत की अनुभूति होने लगी। इसलिये, वह उस पल का शुक्रगुजार होने लगा, जब साहब की नजर उसपर गई थी और उन्होंने उसके दर्द को समझा था। नहीं तो’ न जाने कब तक उसको ऐसे ही खड़ा रहना पड़ता और क्या पता सलिल साहब के आने के बाद भी आराम मिल पाता या नहीं?

धीरे-धीरे आगे की ओर बढ़ता हुआ समय और उन दोनों के बीच छाई हुई चुप्पी के कारण आँफिस में पसरा हुआ सन्नाटा, माहौल को बोझिल कर रहा था। बीतता हुआ समय और जैसे ही घड़ी की सुई ने चार बजे को छूआ, सलिल और रोमील ने आँफिस में कदम रखा और आते ही दोनों ने एस. पी. साहब को सैल्यूट दिया। एस. पी. साहब ने भी सैल्यूट का जबाव दिया। वैसे भी, सलिल के वापस आ जाने के बाद उनके चेहरे पर प्रसन्नता लौट आई थी। जबकि’ सलिल ने कुर्सी संभालते ही राम माधवन की ओर देखा और राम माधवन समझ गया, बाँस काँफी लाने के लिये इशारा कर रहे हैं।

तभी तो’ वह उठ खड़ा हुआ और तेजी से आँफिस से बाहर निकल गया। इधर’ सलिल के बैठते ही एस. पी. साहब ने अपनी निगाह उसके चेहरे पर टिका दी, मानो कि” पुछना चाहते हो, यमुना बिहार पुलिस स्टेशन में क्या हुआ?...वैसे, उन जानकारियों को देने के लिये सलिल भी बेचैन था, परंतु….साहब की उत्सुकता देखकर मुस्कराए बिना नहीं रह सका। तभी तो’ उसने खंखार कर गला साफ किया और बोलने लगा।

सर!....वैसे तो’ आपको घटना के बारे में जानकारी होगा ही। मंत्री जनार्दन गुरेज के बेटे भानु गुरेज की हत्या होने के बाद हम लोगों ने अपराधियों का पीछा किया और रवाना वेअर हाउस पहुंच गए। फिर’ हम लोगों ने वेअर हाउस से क्रुमुदिका खन्ना, कमल नटराजन, वकील सिद्धांत चतुर्वेदी और उसके दो गुर्गों को गिरफ्तार किया और यमुना बिहार पुलिस स्टेशन लौट आए।

तुम भी न सलिल!....बेकार की बातों में वक्त जाया मत करो। जो मुझे मालूम हो चुका हैं, उसे मत दुहराओ, मुझे तो वह बताओ, जो वहां पर पूछताछ में तुम्हें जानकारी हुई। सलिल को यूं बातों को लंबा करता देखकर जब एस. पी. साहब से नहीं रहा गया, बीच में बोल पड़े, साथ ही उन्होंने अपनी नजर उसके चेहरे पर टिका दी। जबकि’ उनकी बातों को सुनकर सलिल एक पल के लिये हड़बड़ा गया। उसे समझ नहीं आया कि” गलती कहां हुई, फिर भी संभल कर बोला।

वही तो बतला रहा हूं सर!....बोलने के बाद एक पल के लिये रुका वो, फिर साहब को बतलाने लगा कि” यमुना बिहार पुलिस स्टेशन में आखिर क्या-क्या घटित हुआ। उसने एस. पी. साहब को बताया कि” किस तरह से मीटिंग रूम के अंदर घटना स्थल से लाई गई युवती से पूछताछ किया गया। इसके बाद’ क्रुमुदिका खन्ना के बीते दिनों की बातें, साथ ही सिद्धांत चतुर्वेदी के कड़वे बोल और कमल नटराजन की कहानी, सब कुछ क्रमबद्ध बतलाता चला गया और जब रुका, देखा कि” एस. पी. साहब आश्चर्य से उसके चेहरे को ही देख रहे थे।

वाकई काफी मजेदार स्टोरी हैं, उससे भी ज्यादा हृदय को चोट पहुंचाने बाला। बोला उन्होंने और फिर एक पल के लिये रुककर उसकी आँखों में देखा, इसके बाद आगे बोलने लगे।

सलिल!....तुम्हें नहीं लगता कि” खन्ना परिवार के साथ अन्याय हुआ हैं?

अन्याय तो जरूर हुआ हैं सर और आश्चर्य की बात ये हैं कि” खन्ना परिवार के साथ जुर्म करने बाले सभी किरदार सजा पा चुके हैं।

शायद तुम ठीक कह रहे हो सलिल!....क्योंकि’ इस मामले का अंतिम अपराधी जनार्दन गुरेज था। उसकी भी मृत्यु हो गई और शायद उसकी हत्या की गई हैं सुगंधा गुरेज के द्वारा। सलिल की बातें सुनकर एस. पी. साहब झट बोल पड़े। फिर उन्होंने गहरी सांस ली और उसके चेहरे की ओर देखा, इसके बाद आगे बोले।

वैसे, मैंने जनार्दन गुरेज के डेड बाँडी को पोस्टमार्टम के लिये भेज दिया हैं और सुगंधा गुरेज को गिरफ्तार कर के यहां ले आया हूं। बाकी के तुम देख लेना और रिपोर्ट बनाकर मुझे भेज देना। कहा उन्होंने, फिर चुप्पी साध ली, साथ ही उनकी नजर कलाईं घड़ी पर चली गई। सुबह के छ बजने बाले थे, बस वे अपनी जगह से उठने लगे, तभी राम माधवन ने काँफी लेकर आँफिस में प्रवेश किया। इसके साथ ही उसने सभी को कप परोसा और खुद भी कप थाम कप बैठ गया और गरमा-गरम काँफी की चुस्की लेने लगा।

* * *

अगले दिन सुबह से ही प्रशासन के शीर्ष अधिकारी तैयारियों में जुट गये थे।

उन्हें मालूम था कि” मामला गंभीर हैं। भले ही मंत्री जनार्दन गुरेज और उसके गुर्गे मारे गए थे, परंतु….एक बड़ा तबका था, जो मंत्री जनार्दन गुरेज का अनुसरण करता था। ऐसे में शहर में कभी भी स्थिति बिगड़ सकती थी, साथ ही पुलिस स्टेशन पर हमला कर के इस केस से ताल्लुक रखने बाले अपराधियों को नुकसान भी पहुंचाया जा सकता था। ऐसे में यमुना बिहार और रोहिणी पुलिस स्टेशन की सुरक्षा बढ़ा दी गई थी।

बस’ यही कारण था कि” तरूण वैभव और सुशीत काले तैयारियों में जुटे हुए थे। बस’ दोनों चाहते थे कि” पकड़े गए अपराधियों को कोर्ट में पेश करके उनका रिमांड ले-ले। फिर कोशिश करें कि” इस कार्रवाई को जल्द से जल्द निपटाया जा सके। इसके बाद’ इन लोगों को न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया जाए। वैसे’ कोर्ट की सुनवाई तो चलनी ही थी, परंतु…उन पांचों को पुलिस स्टेशन में रखना रिश्क लेने के समान था। क्योंकि’ अगर उनपर हमला किया गया और उन पांचों में से किसी को भी क्षति पहुंची, उसके बाद की स्थिति के बारे में कल्पना करना भी भयभीत करने बाला था।

हां, तरूण वैभव फिलहाल तो नहीं चाहता था कि” उसके वर्दी पर कोई प्रश्न चिन्ह लगे, अथवा उसको सस्पेंड होना पड़े। क्योंकि’ पाँवर छिन जाने के बाद जीवन जीने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता हैं, इस बात से वह भलीभांति परिचित था। अब भला, वर्दी के साथ वह जिस शान के साथ जीता था, उसके बिना जीवन की कल्पना करना भी कष्टकर था। वह जानता था, उसका जो रौब चलता था, उसे इस वर्दी के कारण ही मिलता था। ऐसे में वो नौकरी से बर-तरफ किए जाने की कल्पना भी कैसे कर सकता था?

किन्तु’ इसकी संभावना जरूर बन गई थी। हां, जब तक वे पांचों उसके पुलिस स्टेशन में थे, उनके नौकरी पर खतरा मंडरा ही तो रहा था। जानता था, उन पांचों के सुरक्षा की जिम्मेदारी उस पर थी, साथ ही यह भी जानता था कि” उन पांचों के अज्ञात दुश्मनों की संख्या भी कम नहीं हैं। ऐसे में अगर पुलिस स्टेशन पर धावा बोल दिया गया और वो उन पांचों के सुरक्षा में नाकाम साबित हुआ तो?...बस एक प्रश्न और उसके मन में भय की लहरें उठने लगी थी। क्योंकि’ अगर हमला पब्लिक के झुंड ने किया, तो पब्लिक मूवमेंट को संभालना इतना आसान नहीं होता। ऐसे में तो आफत दोनों तरफ से रहता हैं।

सुबह के सात बजे, खिड़की से ताजी-ताजा हवा छनकर आ रही थी। परंतु….उसके चेहरे पर प्रसन्नता नहीं थी। क्योंकि’ एक तो काम का बोझ, दूसरे मन में पनपते हुए उलटे-सीधे विचार। फिर तो’ वह जो सोच रहा था, पूरी तरह गलत भी तो नहीं था। हां, वो इस बात को तो भलीभांति जानता था, स्थिति गंभीर हैं। साथ ही वह स्वर्गवासी हो चुके मंत्री जनार्दन गुरेज के जीवन से भी भलीभांति परिचित था। जानता था कि” उसके समर्थकों की लंबी फौज रही हैं, तभी तो वो मनमानी करता रहा हैं।

सुशीत!....यार, जो मैं सोच रहा हूं, क्या तुम भी वही सोच रहे हो?....जब उससे नहीं रहा गया, लैपटाँप पर चल रहे अपने हाथ को रोक दिया और नजर उठाकर सुशीत काले के चेहरे की ओर देखता हुआ बोला। इसके बाद उसकी आँखों में देखने लगा। जबकि’ उसकी बातों को सुनने के बाद सुशीत काले चौंका। उसने तरूण वैभव की आँखों में देखा और गंभीर स्वर में बोला।

मैं समझा नहीं सर!....आप कहना क्या चाहते हैं और आपके मन में अभी चल क्या रहा हैं?....मुझे तो कुछ भी समझ में नहीं आ रहा हैं। कहा उसने और फिर एक पल के लिये रुककर वापस उसकी आँखों में देखा और उसके मन के भावों को पढ़ने की कोशिश करने लगा, परंतु….जब उसे इस काम में सफलता नहीं मिली, तब आगे पूर्ववत बोलने लगा।

कहीं ऐसा तो नहीं सर कि” आप वर्तमान परिस्थिति से घबरा रहे हैं? आपको यह लग रहा हो कि” मंत्री जनार्दन गुरेज के समर्थकों का अगर पुलिस स्टेशन पर हमला हो गया तो?....उस परिस्थिति में उन पांचों के सुरक्षा का क्या होगा और कहीं हम इस मामले में फंस तो नहीं जाएंगे?

बिल्कुल यही!....बस यही बातें कब से मेरे दिमाग में चक्कर काट रहा हैं सुशीत और जब मुझ से नहीं रहा गया, तो तुम से पुछ बैठा। सुशीत की बाते सुनते ही तरूण वैभव झट बोल पड़ा, फिर एक पल के लिये रुका और उसकी आँखों में देखा और आगे बोला।

तुम समझ तो रहे हो न, परिस्थिति ही कुछ ऐसी बन चुकी हैं कि” इन तमाम तरह के आशंकाओं का जन्म हृदय में होना स्वाभाविक ही हैं। बस’ इन्हीं गुत्थियों को कब से सुलझाने की कोशिश कर रहा था और जब नहीं रहा गया, तुम से पुछ बैठा।

तो’ आपके मन में यह भी विचार आ रहा होगा कि” आपके सस्पेंड हो जाने के बाद इस पुलिस स्टेशन का कार्यभार मुझे सौंप दिया जाएगा और आप सड़कों पर टल्लियां खाते फिरेंगे। उसकी बातों को सुनने के बाद सुशीत गंभीर स्वर में बोला और उसकी आँखों में देखने लगा। जबकि’ उसकी बातों को सुनकर तरूण वैभव तिलमिला गया। उसने सुशीत की आँखों में देखा और तनिक तेज स्वर में बोला।

तुम भी न सुशीत!...कभी-कभी तो बहकी-बहकी बातें सोचने लगते हो। भला’ मैं इस तरह से क्यों सोचने लगा?..क्या मैं जानता नहीं हूं कि” पुलिस विभाग में तुम मेरी परछाईं हो।

तो फिर इतना टेंशन लेने की जरूरत ही क्या हैं सर?....अगर मान लिया जाए कि” इस तरह की स्थिति आती भी हैं, तो मैं हूं न आपके पास। हम दोनों मिलकर डटकर किसी भी परिस्थिति का सामना करेंगे। फिर तो’ साहब लोग भी इस परिस्थिति से अवगत हैं। तो’ डाँट वरी सर!....वैसे तो कुछ घटित होगा नहीं, अगर फिर भी कुछ हुआ, तो तब की तब देख लेंगे। उसकी बातों को सुनते ही सुशीत मुस्करा कर बोला, फिर उसकी आँखों में देखने लगा। जबकि’ उसकी बातों को सुनने के बाद तरूण वैभव झेंप कर बोला।

अच्छा छोड़ो भी इन बातों को और काँफी लेकर आओ, जिससे हम लोगों की थकान मिटे।

तो सर!....आप लाँकअप में पहुँचिए, वहीं पर काँफी लेकर आता हूं। फिर हम लोग उन पांचों के साथ काँफी भी पीएंगे और उनसे बात भी करेंगे। उनसे पता करने की कोशिश करेंगे कि” उनका आगे का प्लान क्या हैं?....उसने जैसे ही काँफी की फरमाइश की, सुशीत बोल पड़ा। फिर वह तेजी से उठ खड़ा हुआ और आँफिस से बाहर निकल गया। वैसे तो’ उठ खड़ा तरूण वैभव भी हो गया था और लाँकअप की ओर जाने के लिये आँफिस से बाहर निकल पड़ा था, किन्तु’ उसका मन उलझा हुआ था।

फिर तो’ उसका मन कैसे नहीं उलझता?....आखिर सुशीत की योजना क्या थी?....वह क्यों लाँकअप में अपराधियों के साथ काँफी पीने पर जोर दे रहा था?

ऐसे बहुत से प्रश्न थे, जो उसके दिमाग में चक्कर काटने लगे थे। वैसे भी, तरूण वैभव स्वभाव से ही शंकालु था, कोई भी बात हो, वो हमेशा शंका की दृष्टि से ही देखता था। फिर भी, जब सुशीत ने कहा हैं, तो करना तो पड़ेगा ही। यही सोचकर वह लाँकअप के करीब पहुंचा और लाँकअप खोलकर जैसे ही उसने अंदर कदम रखा, सिद्धांत चतुर्वेदी ने उसकी ओर देखकर मुस्कराते हुए बोला।

मुझे यकीन था आँफिसर, तुम जरूर आओगे और देखो, तुम आ गये। कहने के बाद चतुर्वेदी साहब उसकी आँखों में देखने लगे। जबकि’ तरूण वैभव उनकी ओर आश्चर्य भरी नजरों से देखते हुए बोला।

वकील साहब!...आप कहना क्या चाहते हैं?... दरअसल मैं कुछ समझ नहीं पा रहा हूं।

कहा उसने और चतुर्वेदी साहब के आँखों में देखने लगा। जबकि’ उसकी बातों को सुनने के बाद चतुर्वेदी साहब जबाव देने के लिये मुंह खोलने ही बाले थे, तभी सुशीत काले ने काँफी का ट्रै लिये हुए लाँकअप में प्रवेश किया और धीमे कदमों से उनकी ओर बढ़ने लगा।

* * *

रोहिणी पुलिस स्टेशन!

सुबह के सात बज चुके थे, इसके साथ ही सलिल ने अंगड़ाई ली। क्योंकि’ लैपटाँप पर अंगुली चलाते-चलाते उसके हाथ दुखने लगे थे और दिमाग पूरी तरह से थक चुका था। तभी तो’ अंगड़ाई लेने के बाद उसने रोमील की ओर देखा और रोमील जैसे उसका मंतव्य समझ गया हो, तभी तो अपनी जगह से उठ खड़ा हुआ और आँफिस से बाहर निकल गया काँफी लाने के लिये।

जबकि’ सलिल, उसे अभी जाकर सुगंधा गुरेज से पूछताछ भी तो करना था। इसके बाद उसको लेकर कोर्ट के लिये भी निकलना था। हां, उसके लिये आश्चर्य की बात थी कि” एक ही मामले में दो-दो पुलिस स्टेशन से कोर्ट में पेशी होनी थी, वह भी एक ही समय पर। अब भले ही, दोनों अलग-अलग मामला दिखता था, परंतु….यह तो कानून की नजर में स्पष्ट हो चुका था, अपने पुत्र की हत्या हो जाने के बाद बौखलाई हुई सुगंधा गुरेज ने मंत्री जनार्दन गुरेज को फाँसी पर लटका दिया।

परंतु….यह अब तक स्पष्ट नहीं हो सका था, क्योंकि’ सुगंधा गुरेज ने न तो अभी तक अपने अपराध की स्वीकृति की थी और न ही कारण ही ज्ञात हो सका था, आखिर सुगंधा गुरेज ने अपने ही पति को फाँसी पर क्यों लटका दिया था?....इसके उलट उसने एस. पी. साहब को बताया था, मंत्री साहब अपने पुत्र के जाने का सदमा नहीं बर्दाश्त कर सके और फांसी पर लटक गए।

किन्तु’ सुबह जब उसने पोस्टमार्टम मंगा कर देखा, बहुत सी स्थिति स्पष्ट हो गई थी। क्योंकि’ डाक्टर के द्वारा लिखे गए प्रारंभिक रिपोर्ट में स्पष्ट लिखा गया था कि” मंत्री जनार्दन गुरेज के पूरे शरीर पर गंभीर चोट के निशान थे। साथ ही उनके गले को नायलोन के तार से घोंटा गया था। ऐसे में एक बात तो स्पष्ट हो गया था कि” सुगंधा गुरेज ने ही मंत्री की हत्या की थी और अब झूठ बोल रही थी। साथ ही यह सवाल भी उत्पन्न हो गया कि” आखिर बात क्या हुई, जो उसने मंत्री की हत्या कर दी।

बस’ यही से कई सवाल भी उठ खड़े होते थे। मसलन, सुगंधा गुरेज ने आखिरकार मंत्री की हत्या क्यों की?...क्या वो मंत्री जनार्दन गुरेज से नफरत करती थी, अथवा कोई दूसरा ही मैटर हैं?....क्योंकि’ सामान्य स्थिति में कोई भी भारतीय नारी अपने सुहाग की हत्या तो नहीं करती हैं। मतलब साफ था, कोई न कोई बात तो जरूर था, नहीं तो ऐसा होना संभव नहीं था। लेकिन’ बात क्या हैं?....वह जब तक सुगंधा गुरेज नहीं बतलाती, तब तक समझ में नहीं आने बाला था।

सर!...लगता हैं, आप किसी गंभीर विषय पर उलझे हुए हैं?....जब सलिल विचारों के सागर में डूबा हुआ था, रोमील ने काँफी का कप थामें हुए आँफिस में प्रवेश किया और उसे उलझा हुआ देखकर बोल पड़ा। फिर एक कप उसके सामने टेबुल पर रखने के बाद दूसरा खुद पकड़े हुए बैठ गया और गरमा-गरम काँफी की चुस्की लेने लगा। जबकि’ उसकी बातों से सलिल की तंद्रा टूट गई। फिर तो’ उसने कप उठा लिया और उसके चेहरे की ओर देखकर गंभीर स्वर में बोला।

तुम्हारा अनुमान सही हैं, मैं अभी विचारों में ही खोया हुआ था और वह विचार हैं मंत्री जनार्दन गुरेज की हत्या। मैं समझने की कोशिश कर रहा था कि” ऐसी कौन सी परिस्थिति आई होगी, जो सुगंधा गुरेज ने अपने ही सुहाग की हत्या कर दी? कहा उसने फिर कप को होंठों से लगा लिया और काँफी पीने लगा, क्योंकि’ इस समय उसको इसकी ही जरूरत थी। जबकि’ रोमील ने अब काँफी खतम कर लिया था और कप टेबुल पर टिकाने के बाद लगातार उसके चेहरे की ओर देखे जा रहा था। यह समझने की कोशिश में कि” उसके बाँस इस समय क्या सोच रहे हैं?...परंतु…उसे बाँस के चेहरे को पढ़ने में सफलता नहीं मिली।

रोमील!....तुम एक काम करो कि” सुगंधा गुरेज को टाँर्चर रूम में लेकर आओ।

लेकिन’ सर!....उसे तो हम लोग घंटे भर बाद कोर्ट के लिये लेकर जाएंगे। तो इस समय उससे पूछताछ करना उचित होगा?...सलिल की बातें सुनते ही रोमील बोल पड़ा और उसकी बातों को सुनने के बाद सलिल के चेहरे पर नाराजगी के भाव प्रगट हो गए। तभी तो’ उसने रोमील की आँखों में देखा और तनिक तेज स्वर में बोला।

रोमील!...तुम भी न, बहुत सवाल खड़े करते रहते हो। जबकि’ तुम्हारा काम हैं, जो आदेश दूं, उसका पालन करो। अब क्या उचित हैं और क्या अनुचित, यह मुझ पर छोड़ दो। बाकी के तो मैं देख ही लूंगा और इसके लिये ही सरकार ने मुझे नौकरी पर रखा हुआ हैं। कहा सलिल ने और उसकी आँखों में देखने के बाद अपने पहलू को बदला। जबकि’ उसके मुंह से इतनी बात निकलने भर की देर थी, रोमील सहम गया। फिर तो’ वह झट उठ खड़ा हुआ और आँफिस से बाहर निकल गया।

फिर तो’ सलिल ने भी उठ खड़े होने में देरी नहीं की। फिर तो’ आँफिस से निकलने के पांच मिनट बाद ही वह टाँर्चर रूम में सुगंधा गुरेज के सामने बैठा हुआ था। साथ ही उसकी निगाह सुगंधा गुरेज के चेहरे पर ही टिकी हुई थी, शायद उसके मन के भावों को चेहरे पर पढ़ने की कोशिश कर रहा था। परंतु….उसे इस काम में सफलता नहीं मिली, क्योंकि’ सुगंधा गुरेज का चेहरा बिल्कुल भाव विहीन था, सपाट। ऐसा कि” यह भी पता करना मुश्किल था, मंत्री के मरने से उन्हें सदमा पहुंचा हैं, या खुशी।

सुगंधा गुरेज!....आपके चेहरे पर पसरा हुआ सन्नाटा, इस बात की तसदीक कर रहा हैं कि” जनार्दन गुरेज के मरने से आपको कोई तकलीफ नहीं पहुंचा हैं। आप सुन रही हैं न, मैं क्या कह रहा हूं?...आखिरकार टाँर्चर रूम में फैले हुए सन्नाटे से तंग आकर सलिल ने उसके चेहरे की ओर देखा और बोल पड़ा। फिर उत्तर की प्रतीक्षा करने लगा। जबकि’ उसकी बातों को सुनने के बाद पहली बार सुगंधा गुरेज के होंठ हिले, फिर वह तनिक ऊँचे आवाज में बोलने लगी।

आँफिसर!...मुझे खुशी नहीं हैं, क्योंकि’ मेरा सुहाग उजड़ चुका हैं। बस’ इसी तरह दु:खी नहीं हूं, क्योंकि’ वह कम से कम इंसान तो नहीं था, जिसके लिये दु:ख महसूस हो।

तो आपके कहने का मतलब हैं कि” वह अच्छा आदमी नहीं था और आप उससे नफरत करती थी?....सुगंधा गुरेज ने अभी तो अपनी बात पूरी ही की थी कि” सलिल ने झट दूसरा सवाल दाग दिया और उसकी आँखों में देखने लगा। जबकि’ उसके प्रश्न के जबाव में सुगंधा गुरेज ने मौन साध लिया। ऐसे में करीब घंटे भर तक सलिल ने कोशिश की कि” वह अपनी जुबान खोले। परंतु….उसके सारे प्रयास निष्फल साबित हो गए और सुगंधा गुरेज की चुप्पी नहीं टूटी।

बीतता हुआ समय और टाँर्चर रूम में पनपता हुआ तनाव, सलिल इस बात को अच्छी तरह से समझ चुका था कि” अब सुगंधा गुरेज जुबान नहीं खोलने बाली हैं। ऐसे में यहाँ व्यर्थ समय बिताने से अच्छा था कि” कोर्ट के लिये चला जाए।

फिर क्या था, पांच मिनट बाद ही उसका काफिला सड़क पर सरपट दौड़ता हुआ आगे बढ़ रहा था। आगे बाली कार, जिसको वो खुद ड्राइव कर रहा था और रोमील बगल में बैठा हुआ था। जबकि’ बीच बाले वान में सुगंधा गुरेज थी और पीछे पुलिस फोर्स।

कोर्ट के लिये जाता हुआ पुलिस काफिला और धीरे-धीरे आगे की ओर बढ़ता हुआ समय। ड्राइव करते हुए सलिल हृदय में विचारों को भी मथते जा रहा था, क्योंकि’ उसके दिमाग में कई प्रश्न कीड़े की मानिंद कुलबुला रहे थे। मसलन, सुगंधा गुरेज जनार्दन गुरेज से इतना नफरत क्यों करती थी?...क्योंकि’ उसने अपने ही मुख से स्पष्ट कहा था, मंत्री अच्छा इंसान नहीं था। तो क्या वह चाहती थी, मंत्री कोई गलत काम नहीं करें?

ऐसे में जब पानी उसके सिर से ऊपर हो गया होगा, उसने मंत्री को टपका दिया होगा। हां, यही बात होगा, नहीं तो सुगंधा गुरेज इस तरह से तो कभी नहीं बोलती। सोचा उसने और रोमील की ओर देखा, जो मोबाइल चलाने में तल्लीन था। फिर मुसकुराया और ध्यान ड्राइव में पिरोने की कोशिश करने लगा।

* * *

दिन के ग्यारह बजते ही कोर्ट रूम पूरी तरह से भर गया। जहां पर इस केस की सुनवाई सुनने के लिये सभी उत्सुक बैठे हुए थे। उनमें ज्यादातर शहर के वरिष्ठ नागरिक थे, परंतु….कुछ मीडिया हाउस के रिपोर्टर भी थे, जिन्होंने अपना नजर विटनेस बाक्स पर ही टिकाया हुआ था। क्योंकि’ कोर्ट के द्वारा आज तैयारी की गई थी कि” सभी अपराधी एक साथ हो सके। हां, आज कोर्ट ने विटनेस बाक्स की संख्या बढ़ा दी थी, जो सभी के लिये कौतूहल का विषय बना हुआ था।

धीरे-धीरे आगे की ओर बढ़ता हुआ समय और घड़ी ने जैसे ही दिन के ग्यारह बजने की घोषणा की, जज साहब ने कोर्ट रूम में प्रवेश किया और सभी का अभिवादन स्वीकार करने के बाद अपनी शीट पर बैठ गए। इसके बाद जज वाय. एस. सिन्हा ने कोर्ट में एक बार निगाह दौड़ाई और कोर्ट कार्रवाई शुरु करने के लिये आदेश दे दिया। इसके साथ ही सरकारी वकील एन. एस. दत्ता अपनी जगह से उठे और जज साहब के सामने पहुंचे, फिर उन्होंने जज साहब की ओर देखा और एक पल के लिये कुछ सोचते रहे।

मिलार्ड!....शहर में पिछले दिनों जिस तरह से जनार्दन गुरेज के आदमियों का शिकार किया गया और उनके अंगों को जिस क्रूरता के साथ निकाला गया, उसने पूरे शहर को दहला कर रख दिया। बोलने के बाद एक पल के लिये रुके ठिगने कद के वकील एन. एस. दत्ता। फिर उन्होंने जज साहब की आँखों में देखा और कुछ पढ़ने की कोशिश करने लगे, लेकिन जब सफलता नहीं मिली, धारा-प्रवाह बोलते चले गए।

मिलार्ड!...अगर कहा जाए तो इस घटना ने शहर को खौफजदा कर दिया था। जो कि” अपराधियों ने भानु गुरेज और उसके साथियों की हत्या की और पुलिस के चंगुल में फंस गए, नहीं तो’ अब तक और भी न जाने कितनी हत्याओं को अंजाम दिया जा सकता था। परंतु…हत्यारे अपनी मंशा को पूर्ण करने में सफल रहे और हत्यारे का एक साथी, जो कि” संयोग से जनार्दन गुरेज की पत्नी भी थी, उसने मंत्री की भी हत्या कर दी। मतलब कि” मंत्री की हत्या करने बाली सुगंधा गुरेज कातिलों का ही साथी हैं।

मिस्टर दत्ता!....आप भी न, सिर्फ दलील ही देते रहोगे, या अपराधी को भी कोर्ट में पेश किया जाएगा? साथ ही, आप दोनों मामले को एक कर रहे हैं, तो उसके बारे में भी स्पष्ट करना होगा। उसकी लंबी-चौड़ी दलील सुनकर जज साहब से नहीं रहा गया और उन्होंने दत्ता की आँखों में झांकते हुए बोला। बस’ दत्ता के होंठों पर मंद-मंद मुस्कान छा गया। इसके साथ ही उसने कोर्ट रूम में बैठे हुए तरूण वैभव एवं सलिल की ओर देखा। बस’ कुछ मिनट और सभी अपराधी को विटनेस बाक्स में खड़ा कर दिया गया। तब जज साहब ने सिद्धांत चतुर्वेदी की ओर देखा और शांत स्वर में बोले।

मिस्टर सिद्धांत!...आपकी ओर से कोई वकील हैं या नहीं?....नहीं तो, कोर्ट आपको वकील मुहैया करवाएगा।

धन्यवाद मिलार्ड!....आपने जो सहयोग की इच्छा जताई। किन्तु’ मैं खुद एक पेशेवर वकील हूं, इसलिये अपना केश खुद लड़ूंगा। जज साहब की बातों को सुनने के बाद सिद्धांत चतुर्वेदी ने कहा, इसके बाद वे कोर्ट रूम में देखने लगे। जबकि’ उनकी बातें खतम होते ही एन. एस. दत्ता बोल पड़ा।

मिलार्ड!....अभी जो आपके सामने विटनेस बाक्स में अपराधियों की फौज खड़ी हैं न, ये सभी के सभी शातिर अपराधी हैं और शायद सभी ने मिलकर ही टार्गेट किया था कि” जनार्दन गुरेज के अस्तित्व को मिटा दिया जाए और ये लोग अपने इरादे को पूरा करने में सफल भी हो गए।

लेकिन’ आप दावे के साथ कैसे कह सकते हैं कि” सभी के सभी जनार्दन गुरेज को खतम करना चाहते थे?...क्योंकि’ मिस्टर दत्ता, आप शायद यह भूल रहे हैं कि” इन अपराधियों के साथ सुगंधा गुरेज भी खड़ी हैं। दत्ता की दलील सुनकर जज साहब से नहीं रहा गया, तभी तो’ उन्होंने बोला। जिसे सुनने के बाद दत्ता मुसकुराया और एक बार कोर्ट रूम में नजर घुमाने के बाद बोला।

वही तो मिलार्ड!...इस केस में इतनी उलझन हैं कि” एक पल के लिये मैं भी उलझ कर रह गया। क्योंकि’ सुगंधा गुरेज कमल नटराजन की बुआ हैं। बस’ इसी बात से समझा जा सकता हैं कि” वह किस हद तक अपराधियों की सहयोग करती रही होगी। कहा दत्ता ने और एक पल के लिये रुककर जज साहब की ओर देखा और अपने द्वारा दिए गए दलील का असर देखने की कोशिश करने लगा। लेकिन’ जब उसने जज साहब के चेहरे पर आश्चर्य के भाव को नहीं देखा, तनिक संभल कर बोला।

मिलार्ड!...जब खन्ना फैमली के साथ हादसा घटित हुआ था, उस प्रकरण में जनार्दन गुरेज का नाम खुब उछला था। बस’ उस वारदात ने कमल नटराजन को बुरी तरह से प्रभावित किया था। बस’ उसी प्रकरण के बाद इन लोगों ने गुट बना लिया और अवसर की ताक में रहने लगे। फिर जब’ अवसर मिला, इन्होंने एक-एक कर के जनार्दन गुरेज के सल्तनत को ढ़हा दिया और उसमें सुगंधा गुरेज ने बराबर का साथ दिया। कहा दत्ता ने और फिर जज साहब की ओर देखने लगा। जबकि’ उसकी बातों को सुनने के बाद सुगंधा गुरेज बुरी तरह से बौखला गई और जज साहब की ओर देखकर बोलने लगी।

मिलार्ड!...माना कि” मैं कमल नटराजन की बुआ हूं, परंतु…मैंने इन लोगों का न तो साथ दिया और न ही चाहती थी कि” जनार्दन गुरेज ही कोई अपराध करें। बस’ मैं चाहती थी, हम लोग शांति पूर्वक जीवन निर्वाह करें। किन्तु’ ऐसा हो नहीं सका।

मिसेज सुगंधा गुरेज!....आप का इस तरह से इनकार का मतलब नहीं समझा जा सकता। आप कोर्ट को यह तो बतला ही सकती हैं कि” आपने जनार्दन गुरेज को क्यों मारा?....उसकी बातों को सुनने के बाद जज साहब ने उसकी आँखों में देखा और धीरे से बोल पड़े। जबकि’ उनकी बातों को सुनने के बाद सुगंधा गुरेज पूरी तरह से बौखला गई और तनिक तेज स्वर में बोला।

मिलार्ड!...आपने सही कहा कि” मैंने ही जनार्दन गुरेज की हत्या की हैं। पहले तो मैंने उसे हंटर से मारा और तब तक मारती रही, जब तक कि” वह बेसुध नहीं हो गया। इसके बाद उसको फाँसी पर लटका दिया, क्योंकि’ वह इसी के लायक था। क्योंकि’ वो चाहता था, उसका बेटा उसकी ही राह पर चले, परंतु….मैं ऐसा नहीं चाहती थी। बस’ उसकी गलत चाहत ने ही मेरे बेटे की जान ली, तभी तो उसे मैंने फाँसी पर लटका दिया।

इसके बाद सुगंधा गुरेज रोने लगी। ऐसे में सिद्धांत चतुर्वेदी उसको संभालने लगे। इधर दत्ता दलील देने में जुट गया। उसकी यही कोशिश थी कि” किसी भी तरह से इन लोगों को अपराधी साबित कर दिया जाए। परंतु…जब बचाव में सिद्धांत चतुर्वेदी दलील देने लगे, उन्होंने एक पल में ही दत्ता के दलील की धज्जियां उड़ा दिया। फिर तो’ दोनों ओर से दलील दिया जाने लगा।

बीतता हुआ समय और कोर्ट में चलता हुआ सुनवाई। इसके बाद’ जज साहब ने केस की सुनवाई को रोक दिया और सभी के लिये पुलिस रिमांड को स्वीकृति दे दी। इसके बाद जज साहब अपने केबिन में चले गए। इधर’ जज साहब के जाते ही सिद्धांत चतुर्वेदी ने मुस्करा कर दत्ता को देखा और दत्ता जल-भून कर रह गया और शायद आपे से भी बाहर हो जाता, अगर उन लोगों को पुलिस बाले नहीं ले गए होते।

साथ ही उसके आँखों के सामने आज से तीन वर्ष पहले का दृश्य सजीव हो उठा। तब यही कोर्ट रूम था और सर्मिष्ठा खन्ना केस की सुनवाई चल रही थी। तब’ इसी कोर्ट रूम में सिद्धांत चतुर्वेदी के काबिलीयत को पाँवर के बल पर रौंदा गया था। सब कुछ तो सजीव हो चुका था उसकी आँखों के सामने। तभी तो’ उसने गहरी सांस लेकर आक्सीजन को फेफड़ों में भरा और खुद को नियंत्रित करने की कोशिश करने लगा। तभी उसने देखा, कुछ मीडिया बाले उसकी ओर ही बढ़ रहे थे, शायद अपने प्रश्नों का उत्तर पाने की आशा में। ऐसे में वह बुरी तरह से घबरा गया, क्योंकि’ फिलहाल कोई भी बयान देकर वो मुसीबत मोल नहीं लेना चाहता था।

* * *

इसके बाद ठीक एक महीने तक लगातार ही केस की सुनवाई चलती रही।

हलांकि’ सरकारी वकील एस. एस. दत्ता पूरी तैयारी के साथ कोर्ट रूम पहुंचते थे और दलील के द्वारा उन पांचों को घेरने की कोशिश करते थे। उनका तो जैसे उद्देश्य बन गया था, शहर में घटित हुए वारदात में सभी अपराधियों को फांसी की सजा दिला दे। साथ ही, सुगंधा गुरेज को मंत्री की हत्या करने के जुर्म में कम से कम उम्रकैद की सजा हो, क्योंकि’ उनका मानना था कि” उन लोगों ने जुर्म किया हैं और जुर्म भी ऐसा कि” उसे रेरर अपराध के श्रेणी में रखा जाए।

परंतु….यह उनका निजी सोच था, जो अदालत में नहीं चल सकता। अदालत में तो सबूत की बाते सुनी जाती हैं। वहां पर सिर्फ दलील के आधार पर किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। यह भारत के कानून की सब से बड़ी खूबसूरती भी हैं और अवगुण भी। क्योंकि’ इस छटक वारी का प्रयोग करके गंभीर से गंभीर अपराधी भी कानून के चंगुल से छूट जाते हैं और फिर अपराध करते हैं।

बस’ यही तो हो रहा था रोज अदालत में। दत्ता जब भी दलील देकर अपराधियों पर हावी होने की कोशिश करते थे, सिद्धांत चतुर्वेदी के काउंटर दलील में पस्त हो जाते थे। हां, सिद्धांत चतुर्वेदी इस तरह से दलील देते थे कि” कानून के पास फिर तो जबाव ही नहीं होता था।

इस तरह से इस सुनवाई ने शहर के जिज्ञासा को बढ़ा दिया था। हां, अब तो शहर वासी इंतजार करने लगे थे कि” इस केस में किस तरह का फैसला आता हैं?....साथ ही इस सुनवाई ने प्रशासन के निंद को भी उड़ा दिया। एक तरह से कहा जाए, तो उनके विभाग पर प्रश्न चिन्ह सा लग गया था और इसका ज्यादा श्रेय मीडिया बाले को जाता था। हां, मीडिया बाले मान रहे थे कि” प्रशासन जानबूझकर इस मामले में ढ़ील दे रहा हैं, नहीं तो’ इस मामले में सबूत जुटाया जा सकता था।

परंतु….इस बात को प्रशासन के शीर्ष अधिकारी समझ रहे थे। निरंतर मीटिंग का दौर और सबूत जुटाने के लिये आँफिसरों द्वारा किया जा रहा मेहनत, लेकिन’ सबूत के नाम पर पुलिस के हाथ में ऐसा कुछ भी नहीं आया था, जिसे अदालत को देकर कह सके कि” पिछले दिनों जो शहर में सामूहिक नर संहार किया गया, वह इन पांचों के ही इशारे पर किया गया। पुलिस इस बात को भलीभांति जानती थी, किन्तु’ इसी बात को कोर्ट को समझा पाना मुश्किल था, क्योंकि’ अदालत सिर्फ सबूत की भाषा जानता हैं।

ऐसे में इंस्पेक्टर तरूण वैभव, सलिल, रोमील और सुशीत काले सामूहिक रूप से प्रयास कर रहे थे। भागदौड़ कर रहे थे, जिससे उन अपराधियों के खिलाफ कोई सबूत मिल जाए। जिसे अदालत को बतला कर कहा जा सके, मिलार्ड!...ये लोग खूंखार मुजरिम हैं। इन्होंने शहर में चार दिनों तक वारदात को अंजाम दिलवाया, इसके बाद सबूत को भी रास्ते से हटा दिया। मिलार्ड!...इन लोगों ने तो पेशेवर अपराधी को भी मात दे दिया और सामूहिक नर संहार के बाद विक्टीम के शरीर के कीमती अंगों को भी गायब करवा दिया।

बस’ यह प्रशासन के मन की भावना थी, जो भागदौड़ कर रहे आँफिसरों के मन में प्रगट हो जाता था। खासकर सलिल के दिमाग में तो विशेष, क्योंकि’ वह बुरी तरह से उलझ गया था। हां, यह केस उसके जीवन का पहला ऐसा केस था, जिसमें अपराधी ही कानून पर हावी हो रहा था। ऐसे में उसको समझ नहीं आ रहा था, ऐसा क्या करें, जो अपराधियों को सजा दिलवाने में कारगर हो।

हां, उसका मानना था, भले ही जनार्दन गुरेज और उसके गुर्गे अमानुष अपराधी थे। इसका मतलब तो यह कदापि भी नहीं हो सकता कि” कोई भी जज बन जाए और सजा सुनाने लगे। क्योंकि’ यह समाज के लिये कतई हितकर नहीं था। हां, अगर वो छहों कानून के चंगुल से बा-इज्जत बरी होकर निकल जाते हैं, तो इसे समाज के लिये कतई भी हितकर नहीं होगा।

हां, ऐसे में तो कोई भी अपराध के रास्ते पर निकल पड़ेगा और अपने साथ किए हुए अन्याय का बदला ले लेगा। जिसका परिणाम यह होगा कि” कानून का भय बिल्कुल भी नहीं रहेगा। तभी तो’ वह टीम बनाकर इस प्रयास में जुटा हुआ था कि” इस मामले में कोई तो सबूत हाथ लग जाए। परंतु….ऐसा संभव नहीं हो सका, हां पुलिस को कोई सबूत ही जुटाने में सफलता नहीं मिली।

इधर’ केस में कोर्ट के अंतिम दिन का सुनवाई शुरु हो गया। हलांकि’ वकील दत्ता ने अपनी तरफ से भरपूर कोशिश की कि” उन लोगों को अपराधी साबित कर दे। साथ ही, दत्ता के आँखों के आगे बार-बार वह दृश्य उभड़ आता था, जब उन्होंने इसी कोर्ट रूम में ताकत के बल पर सिद्धांत चतुर्वेदी को शिकस्त दिया था। आज वही शिकस्त वापस मिलने के डर से वो बुरी तरह भयाक्रांत हो उठे थे। तभी तो’ दलील देने में जी-जान से जुटे हुए थे। परंतु….जैसे ही सिद्धांत चतुर्वेदी के दलील की शुरुआत हुई, उनकी धज्जियां उर गई।

फिर तो सिद्धांत चतुर्वेदी ने साबित कर दिया कि” वे लोग निर्दोष हैं। हां, शहर में वारदात को अंजाम दिया गया हैं, लेकिन’ वे लोग अंजान अपराधी रहे होंगे, शायद मानव अंगों के तस्कर। इसके बाद सिद्धांत चतुर्वेदी ने सुगंधा गुरेज को भी निर्दोष बतलाया और अदालत में साबित कर दिया कि” लगातार अपने आदमियों की हत्या से मंत्री जनार्दन गुरेज डिप्रेशन में चले गए थे। इसके बाद’ जैसे ही उनके पुत्र भानु गुरेज की हत्या हुई, वे पूरी तरह से टूट गए। फिर वे सदमा नहीं बर्दाश्त कर सके और आत्म हत्या कर ली।

सिद्धांत चतुर्वेदी के द्वारा दिए गए दलील और सबूत, अदालत ने पुलिस को कोट करके आदेश सुनाया कि” इन सारे मामलों के अपराधी को अदालत में पेश किया जाए। साथ ही छहों अपराधियों को संदेह का फायदा देकर बा-इज्जत बरी कर दिया गया।

इसके साथ ही सिद्धांत चतुर्वेदी के चेहरे पर प्रसन्नता फैल गई। फिर तो’ विटनेस बाक्स से निकल कर वे वकील दत्ता के करीब पहुंचे, उसकी आँखों में देखा और शांत स्वर में बोले।

देख लो मिस्टर दत्ता!...इतिहास किस तरह से अपने आप को दुहराता हैं। तभी तो’ आज से तीन वर्ष पहले तुम्हारी जगह पर मैं था और तुमने जबरदस्ती मुझे गलत साबित कर दिया था। कहने के बाद एक पल के लिये रुके वो और दत्ता की आँखों में देखा, फिर मुस्करा कर आगे बोले।

आज तुम मेरी जगह पर हो और सही रहते हुए भी गलत साबित हो गए हो, हैं न कमाल की बात। इसलिये ही कहते हैं कि” कभी भी किसी को दबाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। क्या पता, कल किस तरह का हो और हमें ही न दबा डाले।

य…यश सर!....सिद्धांत चतुर्वेदी के बातों को सुनने के बाद उसके मुंह से इतना भर निकल सका। परंतु…तब तक सिद्धांत चतुर्वेदी वहां से आगे बढ़ चुके थे। हां, वे भावुक बन चुके क्रुमुदिका और कमल नटराजन के करीब पहुंच चुके थे और जैसे ही दोनों ने उनको देखा, उनसे लिपट गए।

हां, उनके लिये सुखद पल था, क्योंकि’ एक लंबे अंतराल के बाद उन्हें इस बात की अनुभूति हुई थी कि” खन्ना परिवार को अब जाकर न्याय मिला हैं। तभी तो’ दोनों वकील सिद्धांत चतुर्वेदी से लिपट कर बच्चे की मानिंद रोने लगे।

कुछ पल, लगा कि” कोर्ट रूम पूरा ही भावुक हो गया हो जैसे। हां, कोर्ट रूप में मौजूद सभी गणमान्य उन लोगों को ही स्थिर नजरों से देख रहे थे। धीरे-धीरे आगे की ओर बढ़ता हुआ समय, लगा कि” कोर्ट रूम में रुक गया हो जैसे। परंतु….मीडिया बाले, वे लोग स्थिर नहीं रह सके। तभी तो’ वे लोग सिद्धांत चतुर्वेदी की ओर बढ़ने लगे। लेकिन’ उनकी मंशा पूरी नहीं हो सकी। क्योंकि’ सिद्धांत चतुर्वेदी उन पांचों को लेकर विटनेस बाक्स से बाहर निकले और तेजी से कोर्ट रूम से बाहर निकलने लगे, तेज कदमों से चलते हुए।

समाप्त।

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