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शाम का समय, सितम्बर महीना होने के कारण वातावरण में कुछ उमस थी। दूसरे दिल्ली शहर में प्रदूषण का भी प्रभाव होने के कारण कुछ अधिक ही उमस का आभास हो रहा था। परंतु… इससे शहर के जीवन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ने बाला था। हां, यह कहना सत्य होगा कि” दिल्ली शहर दिलवालों की हैं, जो हमेशा ही धड़कती रहती हैं, ठीक दिल की तरह।

सड़क पर दौड़ती हुई गाड़ियां, लग रहा था कि” जैसे सड़क पर गाड़ियों का समंदर तैर रहा हो। हां, किसी को घर जाने की जल्दी थी, तो कोई पार्टी में शामिल होने के लिये निकला था। वैसे भी, शहर में सुबह और शाम को सड़क पर ट्रैफिक कुछ अधिक होती हैं।

लेकिन’ इससे अलग वह युवती सड़क किनारे खड़ी वह युवती, जिसकी निगाह शायद शून्य में टिकी हुई थी। हां, स्पष्ट रूप से कहा जा सकता था कि” उसे जैसे किसी का इंतजार हो। ऐसे किसी का इंतजार, जो आयेगा और तब वह उसके साथ जायेगी। हां, वह इंतजार ही तो कर रही थी।

वो कमनीय सुंदरी, जिसकी आँखें कटार सी थी और उसपर काली-काली भँवें, नागिन से लंबे घने बाल और लंबा चेहरा। भरे हुए गाल और सुर्ख ओंठ, साथ ही सुराहीदार गर्दन। भरे हुए वक्ष स्थल और उभड़े हुए नितंब। उस पर नीली जिंस और ब्लैक टी-शर्ट पहने हुए वो युवती वास्तव में ही कमनीय सुंदरी थी।

जो किसी को भी अपनी ओर आकर्षित कर सकती थी। किसी के मन में भी कामनाओं की चिंगारी को भड़का सकती थी। किसी को भी संसर्ग करने के लिये उत्तेजित कर सकती थी। तभी तो कभी-कभी कोई मनचला जब कार लेकर सड़क पर गुजरता था, उसके करीब लाकर रोक देता था।

किन्तु’ वो युवती किसी की ओर पलट कर भी नहीं देखती थी, ऐसे में रुकी हुई कार आगे निकल जाती थी। परंतु…उस युवती के चेहरे पर कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा हो जैसे, वह तो मूर्तिवंत सी ही सड़क किनारे खड़ी रही। बीतता हुआ समय और वो युवती, न जाने उसके मन में क्या इरादा था। क्योंकि’ धीरे-धीरे शाम ढ़लता जा रहा था और लग रहा था, कभी भी दिन के उजाले को रात का अंधेरा अपने आंचल में समेट लेगा।

बीतता हुआ समय और अचानक ही उसके सामने मर्सिडीज कार आकर रुकी। ब्लैक रंग की कार, जिसके एक आकर्षक युवक ड्राइव कर रहा था। बीस वर्ष का युवक, जिसकी गहरी नीली आँखें, भूरे बाल और आकर्षक कद-काठी। गोरा रंग, जैसे दूध में हल्दी मिला हो, किन्तु’ होंठ काला था।

परंतु… उस युवती को तो जैसे अंदर बैठे शख्स से कोई मतलब नहीं था। उस की तो नजर जैसे ही कार के नंबर पर गई, उसके आँखों में चमक उभड़ आया। फिर वो कार के करीब पहुंची और उसका पहुंचना और कार का शीशा खुला और उस युवक ने सिर बाहर निकाला और तभी वो युवती बोल पड़ी।

स्कैच कार्ड लाये हो?

यश मैम!... युवती की बातें सुनने के बाद वह युवक बोला और फिर अपने पास से एक स्कैच कार्ड उस युवती की ओर बढ़ाया और जैसे ही युवती ने देखा, झपट कर थाम लिया और फिर स्कैच को खुरचा और मोबाइल निकाला और नंबर मिलाने लगी। करीब दो मिनट लगे उसको नंबर मिलाने में, तब तक वो युवक अपलक उसके चेहरे को देखता रहा। शायद अपने आँखों से उस युवती का सौंदर्य पान कर रहा था।

किधर चलना हैं?... अचानक ही उसने युवक को संबोधित करके बोला। जबकि’ उसकी बातों को सुनने के बाद वो युवक बोला।

सांभवी फार्म हाउस पर। उस युवक ने कहा और उस युवती के आँखों में देखने लगा। जबकि’ उस युवती ने उसकी बातें सुनते ही दूसरा प्रश्न दाग दिया।

वहां कितने रहोगे?

ज्यादा नहीं, केवल हम चार हैं।

चलो’ ठीक हैं, कोई बात नहीं। उस युवक की बातें सुनते ही उस युवती ने कहा और फिर दूसरी साइड आकर कार के दरवाजे को खोला, फिर अंदर बैठ गई। जबकि’ उसके अंदर बैठते ही उस युवक ने कार श्टार्ट की और फिर आगे बढ़ा दिया। फिर तो एक पल भी नहीं लगा और कार ने रफ्तार पकड़ लिया और सड़क पर सरपट दौड़ने लगी।

बीतता हुआ समय, और रोमांच की अनुभूति करता हुआ वो युवक। क्योंकि’ उसकी बगल में अप्सरा जैसी सुंदरी बैठी हुई थी। स्वाभाविक ही था कि” वो रोमांच की अनुभूति करें। जो कि” स्वाभाविक ही था। क्योंकि’ मानव मन की मूल प्रवृति ही यही है कि” जब दो विपरीत लिंगी एक स्थान पर हो, सहज ही उनके बीच आकर्षण का सेतु बन जाता हैं।

उसमें भी, उस युवक को मालूम था कि” कुछ देर बाद ही उस युवती के रूप सौंदर्य का रसपान करने को मिलेगा। ऐसे में उसके मन में रोमांच का एक अजीब लहर दौड़ने लगा था। बस’ इस बात को बार-बार सोचकर कि” आने बाला पल कितना हसीन होगा।

वैसे भी, जब समय अनुकूल हो, तो मानव मन कामनाओं के प्रति कुछ ज्यादा ही आकर्षित होता हैं। उसपर भी, उस युवक ने अब तक शारीरिक रूप से इन सुखों से अनभिज्ञ ही था। किन्तु’ वो उम्र के उस पायदान पर पहुंच चुका था, जहां पर शरीर में विभिन्न तरह के हार्मोंस का स्राव कुछ ज्यादा होने लगता हैं। ऐसे में शारीरिक संसर्ग के प्रति कुछ ज्यादा ही आकर्षण होता हैं। बस’ स्वाभाविक रूप से अब तक वीडियो देखकर उत्तेजित होने बाला वो युवक अब प्रेक्टिकल करने के लिये उतावला सा बन चुका था।

बस’ तभी तो उसके दिमाग में आने बाले पल को लेकर एक अलग प्रकार का रोमांच जगने लगा था। किन्तु’ वो युवती शायद इन बातों से अनभिज्ञ थी, अथवा अनभिज्ञ दिखने की कोशिश कर रही थी। तभी तो वो अपने मोबाइल में उलझी हुई थी। शायद इसलिये भी कि” यह तो उसका रोज का काम था। वो कामनाओं की तृप्ति ही करवाती थी और उसके बदले में मोटी कीमत वसूलती थी।

उसका तो पेशा ही था, कीमत के बदले में जीवन का आनंद देना। तो फिर रोमांच की बात उसके लिये तो थी ही नहीं। तभी तो एक तरह से वो उस युवक के भावनाओं से अंजान बनने की कोशिश कर रही थी। धीरे-धीरे आगे की ओर बढ़ता हुआ समय और आगे की ओर बढ़ती हुई कार।

आखिर वह भी समय आ गया, जब कार शहर से बाहर निकल आई और यमुना किनारे कच्ची सड़क पर उतर कर आगे बढ़ने लगी, जो कि” घने जंगल की ओर जाता था और शायद कार का लक्ष्य भी वही था। क्योंकि’ जिस फार्म हाउस पर उन्हें जाना था, वह घने जंगल के बीच था।

इसलिये कि” ज्यादातर फार्म हाउस का निर्माण शहर से दूर ही किया जाता हैं, घने जंगलों के बीच। क्योंकि’ फार्म हाउस ज्यादातर अमीर लोगों का ही होता है और वे लोग अपने अय्याशी को अंजाम देने के लिये ही इस तरह के हाउस का निर्माण करवाते हैं। हां, वह युवक भी तो अमीर बाप की बिगड़ी हुई औलाद लग रहा था। जिसने आज दोस्तों के साथ पार्टी मनाने की योजना बनाई थी और इसलिये ही इस समय युवती को कार में लेकर जा रहा था।

वैसे भी, अब उसके चेहरे पर बेसब्री का भाव झलकने लगा था। क्योंकि’ उसके बगल में यौवन से मदमाती हुई युवती बैठी हुई थी। जिसके जिस्म की गंध पा कर उसके मन में कामना उफान मारने लगा था। क्योंकि’ अब तक तो वो दोस्तों से ही सुनता आया था और वीडियो देखकर आधी-अधूरी जानकारी पाई थी। किन्तु’ वो समय अब नजदीक आ गया था, जब वो सुख के सागर में डुबकी लगा सकेगा।

* * * *

भाग - २

शुचिता बिला!....नाम के अनुरूप ही सुंदर और विशाल क्षेत्रफल में फैली हुई। जिसके अंदर विशाल लाँन, जिसमें देशी-विदेशी पौधे लगे हुए थे। साथ ही लाँन के बीचोबीच सुंदर सा स्वीमिंग पुल और उसके आगे विशाल बिल्डिंग, जिसके अहाते में एक पलंग लगा हुआ था और पलंग के चारों ओर सोफे को बिछाया गया था।

हां, यह बिला स्वास्थ्य विभाग के मंत्री जनार्दन गुरेज की थी, जो इस समय पलंग पर लेटा हुआ था। जनार्दन गुरेज, जिसके सिर पर बाल नाम मात्र के ही बचे हुए थे। बड़ी- बड़ी बिल्लौरी आँखें, लटके हुए कान, जिसमें बुंदे लटकी हुई थी। लंबी सुती हुई नाक और गोल-मटोल गौर वर्ण लिये चेहरा। थुलथुल शरीर का स्वामी जनार्दन वैसे तो भद्दी शक्ल-सूरत का था। किन्तु’ पैसे और पावर के कारण लोग उसकी ओर आकर्षित होते थे।

पचपन वर्षीय जनार्दन गुरेज तभी तो इस समय सिर्फ अंडर वियर पहने हुए पलंग पर लेटा हुआ था और चार-चार कमनीय बाला उसके बदन की मालिश कर रही थी। सुंदरी, जो कि” यौवन के भार से लदी हुई थी, जो फूल सी कोमल दिख रही थी, जो किसी भी पुरुष को अपनी ओर आकर्षित कर सकती थी। ऐसी वे चारों लड़कियां अपने कोमल हाथों से मंत्री साहब के बदन की मालिश कर रही थी।

शाम के पांच बजे, जब सूर्य देव अस्ताचल की ओर जा रहे थे। ऐसे में वातावरण में उमस और लालित्य, दोनों का प्रभाव नजर आ रहा था। ऐसे में मंत्री साहब आँखें बंद किए हुए मालिश का आनंद उठा रहे थे। क्योंकि’ यह उनका रोज का ही नियम था। शाम के समय युवती के कोमल हाथों की मालिश लेना, उसके बाद स्वीमिंग पुल में स्नान करना, इसके बाद उन चारों युवतियों के संग जाम को गले में उतारना।

यही मंत्री साहब का दैनिक कार्य था। कार्यालय से वापिस आने के बाद रोज ही उन चारों सुंदरी के हाथों से मालिश लेते थे और इस समय भी वही कर रहे थे। आँख बंद कर के नैसर्गिक सुख की अनुभूति करते हुए मंत्री साहब और उनकी सेवा में जी- जान से जुटी हुई युवतियां। क्योंकि’ मंत्री साहब के पास पैसे और पाँवर की कमी नहीं थी। दूसरे, इस मामले में वो दिलदार की प्रवृति थी और वे खुलकर ऐसे मामलों में पैसे लुटाते थे।

उनके इसी भंवरा प्रवृति के कारण मंत्री साहब की पत्नी निहारिका गुरेज बच्चे के साथ उनसे अलग रहती थी। किन्तु’ इस बात की तनिक भी चिंता नहीं थी मंत्री साहब को। उनको तो बस अय्याशी करना था और इस समय भी वे यही कर रहे थे। धीरे- धीरे बीतता हुआ पल और उन चारों सुंदरी के कोमल हाथों के स्पर्श की अनुभूति में डूबे हुए मंत्री साहब।

फिर वह भी समय आ गया, जब मंत्री साहब ने आँखें खोली और पलंग पर ही उठकर बैठ गये। बस’ वे चारों युवती उनसे अलग हुई और उसमें से एक ने जाकर अंदर से पीने का समान उठा लाया। इसके बाद’ चारों सुंदरी मंत्री साहब को घेरकर पलंग पर ही बैठ गई।

फिर तो’ उसमें से एक शराब को प्यालों में भरने लगी, बाकी की बची हुई तीन मंत्री साहब के शरीर पर अंगुलियों को फेरने लगी। मतलब कि’ उसके अंदर के कामनाओं को जागृत करने की कोशिश करने लगी। फिर’ वो भी समय आया, जब जाम उनके हलक में उतरने लगा। वे चारों युवती और मंत्री साहब, प्यासे हो जैसे, इस तरह से जाम को हलक में उतारने लगे।

बीतता हुआ पल, एक तो हलक में उतरता हुआ जाम, दूसरे हुस्न की तपिश, मंत्री साहब को लग रहा था कि” धरती पर अगर स्वर्ग हैं, तो यही पर हैं। हां, जिनके अंदर कामनाओं के प्रति ज्यादा लगाव होता हैं, उनके लिये यही संसार का सब से बड़ा सुख हैं। तभी तो’ मंत्री साहब बार-बार आँखें बंद करके उन लड़कियों के कोमल स्पर्श की अनुभूति करने में लग जाते थे। मानो कि” इस पल को अपने रूह में कैद कर लेना चाहते हो।

इधर’ सूर्य देव भी अस्ताचल को चले गये थे, जिसके कारण वातावरण में धुंधलका छाने लगा था। परंतु…इस बिला को इसकी चिंता बिल्कुल भी नहीं थी, क्योंकि’ अंधेरे की आहट पाते ही पूरा बिला रोशनी से नहा गया था और समय के इस बदलाव से मंत्री साहब के भी आँखों में चमक उभड़ आई थी। क्योंकि’ अब उनका रास रचाने का समय हो चला था।

तभी तो’ वे पलंग पर से उतर गये और उनका उतरना एवं वो चारों युवती उनके दोनों ओर खड़ी हो गई। फिर’ चारों ने ही मंत्री साहब के शरीर का भार संभाल लिया हो जैसे, इस तरह से उनको लेकर स्वीमिंग पुल की ओर बढ़ चली। इसके बाद’ स्वीमिंग पुल के करीब पहुंचकर मंत्री साहब ने अंदर छलांग लगा दी, साथ ही वे चारों सुंदर युवती भी अपने कपड़े उतार कर जल में प्रवेश कर गई।

इसके बाद शुरु हुआ मंत्री साहब का जल बिहार। उन कमनीय बाला के नग्न शरीर के साथ छेड़छाड़ करने लगा, बिहार करने लगा। इसके बाद शुरु हुआ कामनाओं के लहर में हिलोरे लेने की शुरुआत हुई। बीतता हुआ समय और स्वीमिंग पुल के अंदर कामनाओं का उठता हुआ तूफान। क्योंकि’ अब मंत्री साहब कामनाओं की प्राप्ति के लिये अग्रसर होने लगे थे।

वैसे भी, कामी पुरुष के लिये तब खुद पर नियंत्रण रखना अति दुष्कर होता हैं, जब वो शराब पी चुका हो, समय अनुकूल हो और फिर हुस्न का सैलाब भी उसके सामने उपलब्ध हो। उसमें भी मंत्री साहब की तो यह दैनिक क्रिया थी, फिर उससे खुद पर नियंत्रण किस प्रकार से होता। उसमें भी उम्र के इस पड़ाव पर उनके शरीर में खून लावा सा खौलने लगा था। ऐसे में बस, अब मंत्री साहब अपने मन की संतुष्टि के लिये प्रयासरत हो गये थे।

इधर’ शाम की बेला ने भी धीरे-धीरे ढ़लकर रात का रुप ले लिया था। इस कारण से आसमान के आंगन में तारों की बारात सज गई थी और चंदा मामा भी ऊपर की ओर चढ़ आए थे। परंतु…वह बिला प्रकृति के इस रुप से मरहूम थी। हां रोशनी से नहाई हुई बिला में मौजूद मंत्री साहब के पास इतना समय नहीं था कि” प्रकृति के इस मनोरम सौंदर्य को देखे।

उसके लिये तो बस’ महत्व पूर्ण था तो कामनाओं का सागर, जिसमें गोते खाने के लिये वो अपने-आप को मानसिक रूप से तैयार कर चुका था। तभी तो’ उन चारों नव यौवना के शरीर से हरकत करने लगा था। जो आग अब उसके शरीर में जागृत हो चुकी थी, उसकी चिंगारी को अब उन चारों सुंदरी के शरीर तक पहुंचाने के लिये व्याकुल हो चुका था वो।

जल क्रीड़ा करते-करते अब मंत्री जनार्दन गुरेज अब काम क्रीड़ा के लिये अग्रसर हो चुका था। जिसके कारण जल में रहने के बाद भी उसका जिस्म वासना की भट्टी में दहकने लगा था। फिर तो वही हुआ, जो उसकी इच्छा थी। मतलब कि” स्वीमिंग पुल के जल में वासना के ज्वार-भाटा उठने लगे।

हां, मंत्री जनार्दन गुरेज अब कामनाओं के लहर पर सवार हो चुका था। फिर तो कुछ पल और फिर सब कुछ पहले की तरह शांत हो गया और शांत तो मंत्री भी हो गया। तभी तो जल के बाहर निकल आया और भीगे वदन ही बंगले के अंदर प्रवेश कर गया और हाँल में पहुंचा।

तब तक वो चारों युवती भी हाँल में पहुंच चुकी थी। जिसमें से दो तो मंत्री को कपड़े पहनाने लगी, जबकि’ दो फिर से प्याले में शराब उड़ेलने लगी। क्योंकि’ अभी तो मंत्री के अय्याशी की शुरुआत थी। अभी तो देर रात गये तक वहां पर यही सब चलना था। लेकिन तभी मंत्री के मोबाइल ने वीप दी और उसने लपक कर मोबाइल उठा लिया। इसके साथ ही काँल रिसिव करते ही उधर से न जाने क्या कहा गया कि” उसके पूरे शरीर से ही अचानक पसीना छलकने लगा। साथ ही चेहरे पर आश्चर्य और अविश्वास के भाव दृष्टिगोचर होने लगे।

* * * *

भाग - ३

यमुना बिहार पुलिस स्टेशन।

शाम के आगमन के साथ ही पूरी तरह से रोशनी में नहा गया था। दूसरे, यमुना के करीब होने के कारण आती हुई ठंढी-ठंढी हवा, तन मन को पुलकित करने के लिये काफी था। काफी क्षेत्रफल में फैला हुआ पुलिस स्टेशन, जिसके अंदर अभी मौजूद स्टाफ अपने कार्य का संपादन करने में लगे हुए थे। धीरे-धीरे आगे की ओर बढ़ता हुआ समय, दूसरे दिनों की तुलना में आज पुलिस स्टेशन के अंदर शांति थी।

तभी तो इंस्पेक्टर तरूण वैभव अपने आँफिस में बैठा हुआ झपकी ले रहा था। जबकि’ उसके सामने टेबुल पर लैपटाँप खुला हुआ था। शायद काम करते-करते ही वो झपकी के आगोश में समा गया लगता था। क्योंकि’ उसकी आदत सी थी, जब काम नहीं के बराबर हो, तो मीठे-मीठे झपकी ले लो। वह इसलिये कि” अपार्ट मेंट पर पहुंचने के बाद देर रात तक वो नेट सर्फिंग करता था।

इंस्पेक्टर तरूण वैभव, जिसका लंबा गठा हुआ शरीर, पतली सुराहीदार गर्दन और सिर पर घने घुंघराले बाल। बड़ी- बड़ी काली आँखें और सुती हुई नाक। लंबा ललाट और गोल चेहरा, जिस पर पतली मूँछें अधिक ही जँचती थी। हां, कहने का मतलब था कि” तरूण वैभव आकर्षक व्यक्तित्व का स्वामी था। उसपर चौबीस-पच्चीस वर्ष का उम्र, स्वाभाविक रूप से किसी को भी आकर्षित करने के गुण उसमें विद्यमान थे।

उसपर उसका स्वभाव, जो कि” रंगीला प्रवृति का था। हां, हाँट फोटोज एवं वीडियोज देखना पसंद था उसे और जब निंद के आगोश में होता था, बस इन्हीं सब चीजों को देखता रहता था। तभी तो’ इस समय भी, उसके ख्वाब में मेनका सी अप्सरा आई हुई थी और वो एक टक उसके जिस्म को निहारे जा रहा था, अपलक। ख्वाब में ही सही, वह अपने मन में दबी हुई इच्छाओं की पूर्ति कर रहा था, क्योंकि’ वास्तविक जीवन में उसका स्वभाव ठीक इससे उलट था।

शर्मीले स्वभाव का तरुण वैभव कहने को तो इंस्पेक्टर था। उसमें भी प्रकृति से कड़क और ईमानदार, जिसकी परछाईं से भी अपराधी भय खाते थे और उसके सामने आना नहीं चाहते थे। इतना ही नहीं, वो अपने कर्तव्य का भलीभांति पालन करता था। परंतु…जैसे ही किसी सुंदर युवती से सामना हो जाता, उसके अंदर की हिम्मत कहीं खो जाती। भले ही फोटो एवं वीडियो में वो अप्सरा सी नव यौवना के जिस्म को देखकर आहें भरता, किन्तु’ अगर किसी युवती से सामना हो जाये, तो स्वाभाविक रूप से उसकी नजर झुक जाती।

ऐसे में उसके बस में एक ही चीज थी कि” ख्वाब में किसी अप्सरा का दीदार कर ले। उसके सुकोमल अंगों को देखकर आह भर ले और ऐसे ही देखता रहे, तब तक-जब तक कि” तृप्ति नहीं हो जाती। परंतु….ख्वाब तो मृग-मरिचका के समान हैं, जो आभासी होता हैं। बस, इससे सुषुप्त मन को शांत कराने की कोशिश ही की जा सकती हैं।

वैसे भी’ हम और आप जो दिन भर सोचते हैं, जिसका चिंतन दिमाग पर हावी रहता हैं। जब हम निंद के आगोश में समाते हैं, दिमाग उन्हीं चीजों को ख्वाब में बदल देता है। फिर हमारा अतृप्त मन, जो कि” यथार्थ में इन चीजों को करने की हिम्मत नहीं जुटा पाता, ख्वाब में उसे देखकर संतुष्ट होने की कोशिश करता हैं। लेकिन’ यह सिर्फ भ्रम होता हैं, जो ख्वाब के टूटते ही बिखर जाता हैं।

बस’ यही हो रहा था तरूण वैभव के साथ। क्योंकि’ ख्वाब का असर उसके चेहरे पर मुस्कराहट के रूप में दिख रहा था। भले ही उसकी आँखें बंद थी, किन्तु’ होंठों पर मधुर मंद-मंद मुस्कान सजा हुआ था और शायद यही स्थिति बहुत देर तक रहती, अगर वहां पर सुशीत काले नहीं आ जाता।

सब-इंस्पेक्टर सुशीत काले, बाईस वर्ष का गबरू जवान। जिसका गौर वर्ण लिए रंग और नीली आँखें, चेहरा पूरा क्लीन, क्योंकि’ मूँछ रखना उसे पसंद ही नहीं था। लंबा और गढ़ा हुआ शरीर, जिसपर पुलिस की वर्दी फव रही थी। साथ ही सिर पर घने काले बाल और आँखों पर ब्लू फ्रेम का चश्मा। सुशीत काले दबंग स्वभाव का था और सही अर्थ में इस पुलिस स्टेशन में उसकी ही चलती थी, जब तक कि” तरुण वैभव हर्ट नहीं हो। हां, तरूण वैभव ने उसको छूट दे रखा था। ऐसे में वहां के स्टाफ उससे ज्यादा सुशीत काले से डरते थे।

और इस सब की वजह तरूण वैभव और सुशीत काले के बीच की कैमेस्ट्री थी। दोनों में अच्छी पटती थी, तभी तो अपने काम को निपटा कर सुशीत काले ने आँफिस में कदम रखा और जैसे ही उसने तरूण वैभव के होंठों पर मंद-मंद मुस्कान देखा, सारा मामला समझ गया। फिर तो’ उसने तरूण वैभव के कंधे पर हाथ रखा और उसकी इतनी भर हरकत और तरुण वैभव चिहुंक कर उठ बैठा।

सर!....लगता हैं कि” आप खयालों की दुनिया में फिर से खो गये थे। कहा सुशीत काले ने और फिर उसके चेहरे पर नजर टिका कर कुछ पढ़ने की कोशिश करने लगा। लेकिन’ जब उसको इसमें सफलता नहीं मिली, तब वो आगे बोला।

सर!....वैसे, उम्मीद तो यही हैं कि” आपके खयाल में आज फिर से जरूर कोई मेनका आई होगी और उसने जरूर ही आपको मोहित कर लिया होगा? क्योंकि’ मैंने जैसे ही आँफिस में कदम रखा, देखा कि” आप निंद में थे और आपके होंठों पर मंद-मंद मुस्कान छाया हुआ था। कहा उसने और फिर चुप होकर तरुण वैभव की आँखों में देखने लगा। जबकि’ उसकी बातें सुनते ही तरुण वैभव शरम के भार से दब गया और धीरे से बोला।

सुशीत!.....तुम भी न, बिना मतलब की बातें करते हो। भला’ सपने में मेनका से मिलने की जरूरत ही क्या हैं?...जब कि” मैं हैंडसम हूं, पुलिस विभाग में हूं और अच्छे परिवार से भी हूं। ऐसे में जब चाहूं, किसी भी सुंदरी से मिल सकता हूं और उसे अपना बना सकता हूं।

हकीकत की तो बात रहने ही दीजिये सर!...क्योंकि’ मैं अच्छी तरह से जानता हूं कि” आपसे इस तरह का कार्य कभी हो ही नहीं सकता हैं। अभी तो तरूण वैभव ने बात खतम ही की थी कि” सुशीत काले झट बोल पड़ा। फिर एक पल के लिये अपने शब्दों को तौलने के लिये रुका, इसके बाद फिर आगे बोला।

सर!...आप तो किसी सुंदर युवती के सामने आते ही इस तरह से शर्माने लगते हैं कि” आपके सामने लड़की भी फेल हैं। ऐसे में प्रेम का इजहार करना आपके बस की बात ही नहीं। बस’ आपसे तो यही हो सकता है कि” खयालों में ही मेनका से मिलते रहो।

तुम भी न सुशीत!....देख रहा हूं कि” आज-कल तुम बहुत जुबान चला रहे हो। उसकी बातों को सुनते ही तरुण वैभव चिढ़कर बोला। किन्तु’ दूसरे ही पल उसको लगा कि” कुछ अधिक बोल गया हैं, तो तुरंत ही बात के सिरे को ही बदल दिया।

सुशीत!...अब छोड़ो भी इन बातों को और चलो मेरे साथ। एक बार अपने एरिया में पेट्रोलिंग कर लेते हैं, उसके बाद घर के लिये निकल जायेंगे।

कहा तरूण वैभव ने और फिर उठ खड़ा हो गया। जबकि’ उसकी बातें सुनने के बाद सुशीत काले ने कोई जबाव नहीं दिया। क्योंकि’ तरूण वैभव की बातें सुनते ही उसका चेहरा लटक गया था। फिर तो दोनों आँफिस से बाहर निकले और पांच मिनट बाद ही कार में बैठे हुए थे। बगल में बैठा हुआ तरूण वैभव और ड्राइव कर रहा सुशीत काले।

कार सड़क पर भागती जा रही थी फूल रफ्तार से। धीरे-धीरे आगे की ओर बढ़ता हुआ समय, यमुना किनारे जाती हुई सड़क। तरूण वैभव के मन में हमेशा यही ध्येय रहता था कि” उसके इलाके में अपराध घटित नहीं हो और अपराध हो भी, तो सीमित मात्रा में।

बीतता हुआ समय, आसमान में अब तारों की बारात सज गई थी। अंधेरे का साम्राज्य भी स्थापित हो चुका था। किन्तु” शहर को इससे क्या, वह तो रोशनी का श्रृंगार किए हुए था। इस मनोरम वातावरण में प्रकृति का नजारा देखते हुए तरुण वैभव। तभी उसके मोबाइल ने वीप दी और जैसे ही उसने काँल रिसिव किया, उधर से न जाने क्या कहा गया कि” वो अपने शीट पर उछल पड़ा। साथ ही चेहरे पर आश्चर्य का समंदर लहराने लगा था और माथे पर पसीने की बूंद छलक आई थी।

* * * *

भाग - ४

सांभवी फार्म हाउस!....चारों तरफ ऊँचे बाऊँड्री बाल से घिरा हुआ, जिसके अंदर तमाम तरह की सुविधाएँ मौजूद थी। बाऊँड्री बाल के बीचोबीच विशाल और भव्य बिल्डिंग, जिसके आगे एक तरफ तो स्वीमिंग पुल था, तो दूसरी तरफ खूबसूरत लाँन। साथ ही इस फार्म हाउस की लाइटिंग इस तरह से की गई थी कि” इस सूनसान बियाबान जंगल में भी यह फार्म हाउस दूर से ही चमक रहा था।

रात के नौ बजे’ जबकि’ रात के अंधेरे ने पूरे इलाके को अपने आगोश में ले लिया था। साथ ही फार्म हाउस का खुला हुआ मेन गेट और पोर्च में लगी मर्सिडीज, किन्तु’ अंदर किसी के होने का एहसास नहीं हो रहा था। बस’ दूर जंगल में जंगली जानवर और निशाचर पंछियों के चिल्लाने का शोर जरूर इलाके को गुंजायमान कर रहा था और साथ ही भय के वातावरण का निर्माण भी कर रहा था।

बीतता हुआ समय और चारों ओर पसरा हुआ सन्नाटा, तभी दूर कार की हेडलाइट चमकी और फार्म हाउस के गेट से मंत्री जनार्दन गुरेज की कार ने प्रवेश किया। फिर तो’ मंत्री साहब ने कार को पार्क किया और लगभग बिल्डिंग की ओर दौड़ ही पड़े और जैसे ही उन्होंने हाँल के अंदर कदम रखा, उनके हलक से चीख निकल गई, साथ ही आँखों के आगे एक पल के लिये अंधेरा सा छा गया।

इतना ही नहीं, मंत्री साहब के शरीर में कंपन होने लगा, साथ ही भड़भड़ा कर उनके पूरे शरीर से पसीना छूटने लगा, जिसके कारण एक पल में ही उनका पूरा शरीर भीग गया। साथ ही, लगा कि” उनके शरीर से अचानक ही शक्ति का लोप हो चुका हो। तभी तो’ उन्होंने सोफे का सहारा लिया और उसपर बैठ गये और कुछ पल तक खुद पर नियंत्रण स्थापित करने की कोशिश करने लगे।

अब भला उनकी यह हालत ऐसे ही नहीं हुई थी। उन्होंने हाँल में कदम रखते ही जो देखा था, वह बहुत ही भयावना था। हां, उस सुविधा युक्त विशाल हाँल में चार युवकों का खून से लथपथ लाश पड़ा हुआ था। हां, वो युवक, जिसने हाईवे पर से उस युवती को साथ में लाया था और उसके तीन साथी। चारों खूबसूरत नौजवान, जिनकी उमर करीब बाईस-तेईस के करीब ही थी। किन्तु’ इस समय उनका चेहरा बहुत ही भयावह और बदसूरत लग रहा था।

खून से पूरी तरह नहाया हुआ उन चारों का शरीर, जो कि” बेजान होकर सोफे पर पड़ा हुआ था। बस’ यही कारण था कि” मंत्री साहब ने हाँल में कदम रखा और उन चारों के खून से सनी हुई लाश को देखकर होश खो बैठे। इसके बाद’ करीब दल मिनट तक उनको लगा खुद को संभालने में। इसके बाद’ जब उन्होंने बहुत हद तक खुद पर नियंत्रण कर लिया, तब उन्होंने फिर से चारों युवक की लाश को देखा।

इसके बाद’ उनको जो नजर आया, वह काफी भयावह था। क्योंकि’ उन चारों युवक का पेट से लेकर सीने तक फाड़ डाला गया था। साथ ही, उनके अंदर के अंग बाहर की ओर निकले हुए थे। जिस कारण से उनके डेड बाँडी को देखना बड़ा ही दुष्कर कार्य था। उसमें भी, जब कोई अकेला हो, उस स्थिति में वहां के नजारे को देखकर जरूर हार्ट अटैक से अपना जान गंवा देता।

परंतु….मंत्री साहब कमजोर दिल के नहीं थे। इसलिये कुछ ही पल में उन्होंने अपने-आप को पूरी तरह से संभाल लिया। फिर विचार करने लगे कि” ऐसा किस तरह से हो सकता हैं। वैसे तो’ चारों युवक उनके लिये ही काम करते थे। उनके गलत और सही, दोनों तरह के कामों को अंजाम देते थे। उसमें भी, उन चारों को कुछ दिन ही तो हुआ था उनकी टीम में शामिल हुए। ऐसे में उनके साथ ऐसा कैसे हो सकता हैं?...वह भी उनके फार्म हाउस में।

यहां जो उन्होंने स्थिति देखी थी, उससे उनका दिमाग पूरी तरह से फ्रीज होकर रह गया था। उन्होंने तो कल्पना भी नहीं की थी कि” इस तरह से उनके फार्म हाउस में ऐसा भी घटित हो सकता हैं। किन्तु’ अब तो जो उन्होंने सोचा भी नहीं था, वह उनके साथ घटित हो चुका था। ऐसे में उन्हें दो बात सोचना था। एक तो इस स्थिति में किस तरह से निपटा जाये और दूसरा, इस वारदात को अंजाम देने बाले के बारे में जानकारी जुटाना।

बस’ इन्हीं विचारों में डुबे हुए मंत्री साहब और अचानक ही उनके कान में गाड़ियों का शोर सुनाई दिया और अभी वे कुछ सोच पाते, तभी हाँल में तरुण वैभव और सुशीत काले ने सिपाहियों के साथ प्रवेश किया और वहां की स्थिति देखकर एक पल के लिये फ्रीज होकर रह गये।

जबकि’ पुलिस को देखते ही मंत्री साहब के मन में भय और सवाल, दोनों एक ही साथ कौंधा। क्योंकि’ घटना स्थल पर इस तरह से अचानक ही और इतनी जल्दी पुलिस बाले का आ जाना, बिना कारण के तो हो ही नहीं सकता था। इसका मतलब साफ था कि” जिस तरह से इस घटना की सूचना उन्हें मिली थी, जरूर ही पुलिस को भी उसने ही सूचित किया होगा।

और अभी तो वे इस आश्चर्य से उभड़ भी नहीं पाये थे, तभी उन्होंने देखा कि” पुलिस बालों के पीछे मीडिया बालों ने भी हाँल में कदम रखा और उन्होंने हाँल में कदम रखते ही वहां की स्थिति को कवर करने की शुरुआत कर दी और वहां की स्थिति को लाइव दिखाया जाने लगा। ऐसे में मंत्री साहब के अंदर बचा हुआ रहा-सहा हिम्मत भी जाता रहा।

इधर’ मीडिया बालों के अचानक आ जाने से और फिर लाइव रिपोर्टिंग की शुरुआत हो जाने से तरूण वैभव और सुशीत काले भी घबरा गये थे। इस तरह से अचानक मीडिया बालों का अचानक आ जाना और फिर वहां के स्थिति का लाइव रिपोर्टिंग होना, उनके भी दिमाग में खतरे की घंटी बज चुका था। विशेषकर तरूण वैभव इस घटना का लाइव रिपोर्टिंग होने के बाद के परिणाम को अच्छी तरह से जानता था।

परंतु….अब इस परिस्थिति में कुछ भी तो नहीं किया जा सकता था। वैसे’ उसको अगर मालूम होता कि” इस तरह की परिस्थिति का सामना भी करना पड़ सकता हैं, तो पूरी तैयारी के साथ आया होता। लेकिन’ अब इस हालात में मीडिया बालों से उलझने में बुद्धिमानी नहीं थी। इसलिये उसने सुशीत काले की ओर देखा और सुशीत काले जैसे उसका इशारा समझ गया हो, तभी तो वो फिंगरप्रींट एक्सपर्ट और डाँग स्क्वायड के साथ वहां की छानबीन में जुट गया।

जबकि’ तरूण वैभव बिल्डिंग के अंदर की ओर बढ़ गया, इस इरादे के साथ कि” कहीं कोई सबूत हाथ लग जाये। क्योंकि’ वह बखूबी जानता था, भले ही अपराध कैसा भी हो और अपराधी कितना भी शातिर हो, जरूर कोई न कोई भूल करता हैं। जिसके कारण वह अपराधी के गिरेवान तक पहुंच सकेगा।

किन्तु’ साथ ही उसके मन में शंका के बादल मंडरा रहे थे। क्योंकि’ यहां जिस तरह से हत्या की गई थी, वह विस्मित करने बाला था। साथ ही, उसके मन में बार-बार हो रहा था कि” हत्यारा बहुत ही चालाक होगा। क्योंकि’ इस तरह के वारदात को अंजाम देना इतना आसान नहीं होता। बल्कि’ कहा जाये, तो इस तरह के वारदात को अंजाम देने के लिये हिम्मत और ताकत की जरूरत होती हैं।

साथ ही अपराधी का स्वभाव क्रुअल होना चाहिये। क्योंकि’ इस तरह के अपराध रेरर अपराध की श्रेणी में आते हैं। ऐसे में कमजोर दिल का अपराधी इस तरह के अपराध को अंजाम दे ही नहीं सकता। बस’ उसे इसी बिंदुओं पर विचार करते हुए आगे बढ़ना था और वो वही कर रहा था।

एक-एक रूम की तलाशी लेते हुए आगे बढ़ रहा था वो, इस आशा में कि” कहीं पर काश कोई सबूत मिल जाये, जिससे अपराधी तक पहुंचने में सुविधा हो। तभी उसकी नजर सी. सी. टी. बी. रूम पर गई और उसकी बाछें खिल गई।

* * * *

भाग - ५

जो शाम को हाईवे पर खड़ी थी और फिर उस युवक के साथ सांभवी फार्म हाउस पर गई थी। इस समय वही युवती जंगल के रास्ते आगे की ओर बढ़ी जा रही थी। कंधे पर थैला, जो कि” खून से लथपथ था और हाथ में जलती हुई मोबाइल। जिसकी रोशनी में जंगल के रास्ते वो तेजी से आगे की ओर बढ़ती जा रही थी।

घना जंगल, पेड़-पौधे और जंगली लताओं से अटा हुआ। जिसकी गहनता इतनी थी कि” दिन में भी सूर्य का प्रकाश सही से अंदर नहीं पहुंच पाता था। ऐसे में स्पष्ट रूप से कहा जा सकता था कि” घना जंगल भयावह भी लग रहा था। किन्तु’ उस युवती पर तो जैसे इसका कोई प्रभाव ही नहीं पड़ रहा था। हां, इतना जरूर था कि” उस युवती के चेहरे पर बदहवासी का साम्राज्य फैला हुआ था।

ऊपर’ आसमान में चंदा मामा आ चुके थे और साथ ही तारों की महफिल भी सज गई थी। ऐसे में पूरा ही वातावरण मनमोहक एवं रहस्यमय लग रहा था। किन्तु’ युवती को तो इससे भी कोई मतलब नहीं था। वह तो बस तेजी से आगे की ओर बढ़ती चली जा रही थी, जैसे उसे कहीं पहुंचने की जल्दी हो। हां, उसे समय से कहीं पहुंचना था और कंधे पर लटके थैले की डिलीवरी देनी थी।

वह युवती, जो कि” खून से इस समय नहाई हुई थी, साथ ही उसका पूरा चेहरा खून से रंगा हुआ था। इस तरह से रंगा हुआ था कि” जैसे उसने ताजे-ताजे खून को जी भरकर पिया हो। ऐसे में अगर स्पष्ट कहा जाये तो, वह डायन सी लग रही थी, ऐसी डायन, जो किसी के सामने अचानक आ जाये, तो उसका हार्ट फेल हो जाये।

उसपर आलम ये कि” खौफनाक चेहरे पर बदहवासी का छाया हुआ मोटा आवरण, उसको और भी क्रुअल बना रहा था। शाम को वो जितनी खूबसूरत और हसीन लग रही थी, इस समय ठीक उसके विपरीत क्रुअल और भयावह लग रही थी। परंतु….उसे इस बात की चिंता नहीं थी कि” वो कैसा दिख रही हैं?....वह तो बस अपने मंजिल तक पहुंचना चाहती थी और इसलिये ही इस घनघोर बियाबान जंगल में तेजी से अपने कदम आगे की ओर बढ़ाती जा रही थी।

वैसे भी, अभी कुछ पल पहले वो जिस वारदात को अंजाम देकर आई थी, उसके बाद उसको भय भी तो था। पुलिस के द्वारा पकड़ लिये जाने का भय और वो नहीं चाहती थी, किसी भी हालत में पुलिस के हत्थे चढ़ जाये। वो तो चाहती थी कि” वह जो कंधे पर आईश-ट्यूब का थैला कंधे पर रखे हुए है, जिसमें मानव अंग हैं, उसे अगले व्यक्ति तक पहुंचा दे।

इसके लिये उसका सौदा तय हो चुका था और इसके बदले उसे मोटी रकम भी मिल चुका था। बस’ इस पार्शल को अगले व्यक्ति तक पहुंचा दे, उसके बाद उसकी बांकी रकम भी मिल जायेगी। फिर तो उसकी जिंदगी में मौज ही मौज हैं और अगर उसे किसी तरह की परेशानी हुई, तो वो विदेश भाग जायेगी।

वैसे भी, उसे इस काम को अंजाम देने के लिये पूरे पांच करोड़ का दाम मिलना था और उस युवती का मानना था कि” अगर मोटी कीमत मिले, तो आसानी से किसी की भी हत्या की जा सकती हैं। भई, पैसे का सवाल है और इसी पैसे के लिये ही तो पूरी दुनिया में चारों तरफ भागदौड़ मचा हुआ हैं। बस, इसी पैसे के लिये ही तो उसने आज सांभवी फार्म हाउस में वारदात को अंजाम दिया था।

हां, उसने आज उन चारों युवकों को पहले तो खुब जिस्म के सागर में डुबाती रही। फिर जैसे ही चारों बेहोश हुए, एक साथ ही उसने चारों को मौत के घाट उतार दिया और उनके शरीर के कीमती अंगों को इस सुरक्षित थैले में ले आई, जिसे अब उसे अगले व्यक्ति तक पहुंचना था। इसके बाद’ वो पूरी तरह से आजाद हो जायेगी और अपने जीवन को मस्त तरीके से जीयेगी।

बीतता हुआ समय और आगे बढ़ती हुई वो। खयाली पुलाव का तश्तरी चढ़ाये हुए आगे बढ़ती हुई वो। समय आगे की ओर बढ़ता जा रहा था और उसी रफ्तार से वो आगे की ओर बढ़ती जा रही थी। वैसे भी, उसने अपने जीवन में पहली बार ही अपराध किया था, इसलिये भयभीत हो चुकी थी। जानती थी कि! अगर अभी पुलिस के चंगुल में फंस गई, कोई भी बचाने बाला नहीं मिलेगा।

बस, इसलिये ही वो जल्दी से जल्दी मंजिल तक पहुंच जाना चाहती थी। उसके कदम इसलिये ही तो तेजी के साथ आगे की ओर बढ़ रहे थे। हां, वो जल्द से जल्द दूसरी तरफ हाईवे पर पहुंच जाना चाहती थी। क्योंकि’ डील के हिसाब से हाईवे पर ही उससे पार्शल लेने बाला मौजूद होगा। जो पार्शल मिलने के बाद उसको कूपन कोड देगा और तब उसको पेमेंट मिल पायेगा।

वैसे’ उसके मन में इस बात को लेकर जरूर प्रश्न उठा था कि” इन मानव अंगों को लेकर कोई करेगा क्या?...वैसे इस प्रश्न का जबाव उसके पास नहीं था। किन्तु’ इतना तो वो अच्छी तरह से जानती थी कि” मानव अंगों के तस्करी का बहुत बड़ा बाजार हैं, जहां पर रोज ही खरबों की डील होती हैं।

वैसे भी, मानव मन की स्थिति बहुत ही विचित्र होती हैं। उसमें भी, जब उसने कोई कांड किया हो, तब उसकी मानसिक स्थिति और भी विचित्र हो जाती हैं। ऐसे में उसके दिमाग में तरह-तरह के विचारों का प्रवाह अनवरत रूप से प्रवाहित होता रहता हैं। बस यही स्थिति उस युवती के मन की थी, जहां पर कभी तो अपने लिये रुपयों का अंबार दिखता था, तो कभी कानून के भय से वो कंपित होने लगती थी।

बीतता हुआ समय और फिर वो हाईवे पर ऊपर हुई। जंगल पीछे छूट गया और तब उस युवती ने राहत की सांस ली और तभी उसकी नजर हाईवे किनारे खड़ी स्कार्पियो पर गई। हां, उसे यही तो कहा गया था कि” हाईवे पर स्कार्पियो खड़ी होगी, जिसको उसे इस थैली को दे देना हैं। उसके बदले में उससे थैला लेने बाला व्यक्ति उसको कूपन देगा। जिसके बदले में उसे काम की कीमत मिल जायेगी।

बस’ उस युवती ने अपने कलाईं पर बंधे हुए रेडियम वाँच में देखा, रात के दस बज चुके थे। बस वो स्कार्पियो की ओर बढ़ी और दस फलांग में ही कार के पास पहुंच गई। इसके बाद उसने देखा, कार का दरवाजा खुला हुआ था और उसमें ड्राइविंग शीट पर एक नकाबपोश बैठा हुआ था।

बस’ उसने अपने कंधे पर से थैला उतारा और उस नकाबपोश की ओर बढ़ा दिया। इसके साथ ही नकाबपोश ने उसकी ओर कूपन बढ़ाया और अभी तो उसने कूपन थामा ही था कि” स्कार्पियो का दरवाजा बंद हुआ और एक पल में ही श्टार्ट हो कर उसके आँखों से दूर होती चली गई और कुछ मिनटों में ही उसके आँखों से ओझल हो गई।

ऐसे में युवती को समझ नहीं आया कि” ऐसा किसलिये?...परंतु…इससे उसको कोई लेना-देना भी नहीं था। उसके लिये तो अब प्राथमिकता यह थी कि” अपने शरीर पर लगे खून को साफ कर ले। क्योंकि’ इस हालत में पकड़े जाने का मतलब वो बहुत अच्छी तरह से समझती थी। वैसे’ उसे मालूम था कि” यहीं पर हाईवे के किनारे तालाब हैं, इसलिये अंधेरे का सहारा लेती हुई आगे बढ़ चली।

परंतु…उसे कहां पता था कि” आगे कुछ कदम की दूरी पर ही मौत उसका इंतजार कर रहा हैं। हां, वो अभी तो आगे दस कदम ही चल पाई थी कि” तभी हाईवे पर दूर से भारी वाहन का हेडलाइट आता हुआ दिखा और जब तक वो समझ पाती, या संभल पाती, वह वाहन उसको कुचलता हुआ निकल गया और एक मिनट तड़पने के बाद ही वो युवती शांत हो गई, सदा के लिये।

वैसे भी, यह ध्रुव सत्य हैं कि” बुरे का अंजाम हमेशा ही बुरा होता हैं। यही तो प्रकृति का न्याय है और यही उस युवती के साथ हुआ था। हां, उसने तो यह सोचा भी नहीं होगा कि” इस तरह लालच करने का कीमत उसको अपनी जान देकर चुकाना होगा। परंतु…यही हुआ था और उसके लालच ने उसके जीवन को लील लिया था।

* * * *

भाग - ६

तरूण वैभव ने पूरा फार्म हाउस छान मारा, किन्तु’ उसे ऐसी कोई भी चीज नहीं मिली,जिसे दावे के साथ कह सकता कि” यह रहा केस का सबूत। ऐसे में, जब उसके हाथ कुछ भी नहीं लगा, तो वापस हाँल में लौट आया, जहां पर वारदात घटित हुई थी। दिमाग में इस बात पर मंथन करते हुए कि” आखिर किस ने इस तरह के वारदात को अंजाम दिया होगा और क्यों?

उसके दिमाग में तमाम तरह के प्रश्नों का समूह गुच्छ के रूप में बन चुका था, जिसका उत्तर फिलहाल तो मिलने की संभावना नहीं दिख रही थी। तभी तो हाँल में कदम रखते ही वो मंत्री साहब की ओर बढ़ा। क्योंकि’ उसने देख लिया था कि” उसकी टीम काम निपटाने में लगी हुई हैं। बस’ अब मंत्री साहब के भी बयान ले लिया जाये, यही सोचकर वह उनके करीब पहुंचा और उनके सामने बाले सोफे पर बैठ गया। फिर उसने अपनी नजर मंत्री साहब के चेहरे पर टिका दी। जबकि’ उसके करीब आते ही मंत्री साहब की तंद्रा टूट चुकी थी, तभी तो उससे मुखातिब हो कर बोले।

आँफिसर!....लगता हैं, कुछ पुछने के इरादे से मेरे नजदीक आए हो?....वैसे भी, मैं यहां पर तुमको मिला हूं, तो स्वाभाविक रूप से तुम्हारे दिमाग में प्रश्न उठ रहा होगा। इसलिये’ जो भी पुछना चाहते हो, पुछ लो। मुझे जहां तक मालूम होगा, जरूर उत्तर दूंगा। मंत्री साहब ने कहा और उसके चेहरे पर नजर टिका दी। जबकि’ मंत्री साहब की बातें सुनकर उससे रहा नहीं गया, तभी तो बोला।

सर!....इस वारदात बाली जगह पर हम लोग जब आए, आप यहां पर पहले से ही मौजूद थे। ऐसे में स्वाभाविक रूप से आपको भी क्राइम सस्पेक्ट माना जायेगा। कहा उसने और एक पल के लिये रुका और मंत्री साहब के चेहरे को पढ़ने की कोशिश करने लगा। परंतु…उसे इस काम में सफलता नहीं मिली, तभी तो आगे बोला।

वैसे सर!....आप स्थिति की गंभीरता को अच्छी तरह से समझते होंगे। सर!...यहां पर रेरर अपराध को अंजाम दिया गया हैं और इस वक्त यहां पर चार-चार लाश मौजूद हैं, वह भी युवा लड़कों की। ऐसे में आपको इस प्रश्न का उत्तर तो देना ही पड़ेगा कि” आप यहां किसलिये और कैसे मौजूद थे?

जानता हूं इंस्पेक्टर!...इस बात को भलीभांति जानता हूं कि” क्राइम प्वाईंट पर मेरी मौजूदगी स्वाभाविक रूप से ही शक पैदा करता हैं। कहा मंत्री साहब ने और फिर एक पल के लिये रुककर उसकी आँखों में देखने लगे। इसके बाद वे आगे बोले।

परंतु….आँफिसर!...यह फार्म हाउस मेरा हैं। यह मेरी निजी संपत्ति हैं। अब कहोगे कि” यहां पर कैसे आया?...तो सुनो, मैं शाम आठ बजे बिला में था, तभी अननोन नंबर से मुझे सूचना मिली कि” यहां पर वारदात घटित होने बाला हैं। बस, मैं हैरान-परेशान बनकर सीधे यहीं पर दौड़ कर चला आया। कहा मंत्री साहब ने और फिर रुककर अपने फेफड़ों में सांस भरने लगे। जबकि’ तरूण वैभव उलझ सा गया। क्योंकि’ उसके पास भी तो इसी तरह का फोन आया था। बस’ उसे यह समझते देर नहीं लगी कि” मीडिया बालों के पास भी इसी तरह का काँल गया होगा। तभी तो वो बात बदलते हुए बोला।

सर!....यह सब तो ठीक हैं, किन्तु’ मैंने यहां सी. सी. टी. बी. रूम देखा, लेकिन अंदर जाने पर मुझे कोई इंस्ट्रूमेंट नहीं दिखा। इसका मतलब समझा सकते हैं सर?

हां-हां जरूर, क्यों नहीं आँफिसर!...तुमने जो देखा, बिल्कुल सही देखा। परंतु…इसका मतलब यह नहीं हैं कि” यहां पर सी. सी. टी. बी. कैमरा नहीं लगा हैं। उसकी बात खतम होते ही मंत्री साहब बोले। इसके बाद एक पल के लिये रुके और उसकी आँखों में देखा, इसके बाद आगे बोले।

आँफिसर!....यह पूरा फार्म हाउस ही पूरे चौबीस घंटे सर्विलांश पर लगा रहता हैं, जो मेरे मोबाइल और मेरे बिला के सर्वर से कनेक्टेड हैं। तभी तो, मैं अपने फार्म हाउस की सुरक्षा कर पाता हूं और मुझे यहां के पल-पल की जानकारी मिलती रहती हैं।

तो फिर सर!...आपके पास यहां का वीडियो जरूर होगा, जिसे आप देने का कष्ट करें। क्योंकि’ आप अच्छी तरह से जानते होंगे कि” यह जांच का एक अंग हैं। अभी मंत्री साहब की बातें खतम ही हुई थी कि” तरूण वैभव बोल पड़ा। फिर उसने मंत्री साहब की आँखों में देखा और फिर आगे बोला।

वैसे सर!...जब यह आपका फार्म हाउस हैं, तो स्वाभाविक रूप से मरने बाले चारों युवा आपसे किसी न किसी तरह से कनेक्ट तो जरूर होगा। अन्यथा तो’ इस भव्य फार्म हाउस के अंदर बिना इजाजत के आना, मुझे तो संभव नहीं लगता।

कहा उसने और मंत्री साहब के चेहरे को देखने लगा। जबकि’ उसकी बातों को सुनकर मंत्री साहब ने कोई जबाव नहीं दिया। हां, इतना जरूर हुआ कि” उन्होंने इस बीच अपने आई फोन के लाँक को खोलकर उसकी ओर बढा दिया था। साथ ही उसके चेहरे पर अपनी नजर टिका दी। जबकि’ मोबाइल हाथ में आते ही तरण वैभव ने एक पल के लिये रुककर हाँल में देखा। वैसे’ सुशीत काले ने मीडिया बालों को समझा-बुझा कर हाँल से बाहर भेज दिया था।

तभी तो’ उसने मोबाइल पर नजर टिकाई और छेड़छाड़ करने लगा। बीतता हुआ समय और फिर मोबाइल स्क्रीन पर सी. सी. टी. बी. लाँग इन हुआ। इसके बाद’ उसने शाम छ बजे के बाद का वीडियो देखने लगा। बीतता हुआ समय और अचानक ही मोबाइल पर वीडियो प्ले शुरु हो गया।

फिर तो, उसके चेहरे पर आश्चर्य के सागर हिचकोले खाने लगे। क्योंकि’ स्क्रीन पर फ्रंट गेट का हिस्सा दिखने लगा था। जहां पर मर्सिडीज से वह सुंदर युवती और मृत युवक बाहर निकले, फिर दोनों हाँल में पहुंचे, जहां पर पहले से ही तीन युवक मौजूद थे, पीने का समान टेबुल पर सजाये हुए। फिर देर किस बात की थी, उन पांचों के बीच पीने-पिलाने का दौर शुरु हो चुका था।

इसके बाद’ तरूण वैभव ने देखा कि” वो युवती बहुत ही चालाकी से उन चारों के प्याले में सफेद पाउडर जैसी चीज मिला रही हैं। इसके बाद’ उन लोगों के बीच बनता हुआ जिस्मानी संबंध और अचानक ही उन चारों युवक का बेहोश हो जाना।

इसके बाद का दृश्य बहुत ही भयावह था, क्योंकि’ अचानक ही उस सुंदर युवती के हाथ में तेज कटार चमकने लगा। फिर तो, पलक झपकते ही उस युवती ने बेहोश हो चुके चारों युवकों को मौत के घाट उतार दिया और उनके पेट से हृदय तक फाड़कर मानव अंगों को निकालने लगी। ऐसे में आश्चर्य में डूबे हुए तरूण वैभव ने देखा कि” वो युवती किसी एक्सपर्ट की तरह उन चारों के शरीर से अंगों को निकाल रही थी। इस काम को करते हुए उस युवती का पूरा शरीर खून से नहा चुका था। परंतु…लगता नहीं था कि” उसे इस बात की चिंता हो।

उसने तो इत्मीनान से उन अंगों को निकाल कर आईश ट्यूब में रखा, फिर थैले में रखने के बाद वहां से निकल गई। ऐसे में अब आगे का वीडियो देखने का कोई मतलब ही नहीं था और वैसे भी वो क्रोध, घृणा, आश्चर्य और आवेश से पूरी तरह भर चुका था। इसलिये उसने वीडियो प्ले को रोक दिया और इस वीडियो को अपने मोबाइल में एसेस कर लिया।

वैसे भी उसने देख लिया था, उसकी टीम अपना काम निपटा चुकी हैं और लाश को पोस्टमार्टम के लिये भेज दिया गया हैं। इसलिये अब यहां से निकलने का इरादा बनाकर वो उठ खड़ा हुआ और अभी तो उसने पहला ही कदम उठाया था कि” उसके मोबाइल ने वीप दी।

बस’ एक पल में ही उसके मन में आशंका के बादल मँडराने लगे। क्योंकि’ आज का दिन उसके हिसाब से बहुत ही खराब था। परंतु…फोन तो उठाना ही था, क्योंकि’ ऐसा नहीं करना भी नुकसानदेह हो सकता था। इसलिये उसने मोबाइल निकाल कर काँल रिसिव किया और उधर से न जाने क्या कहा गया कि” वह आश्चर्य से उछल पड़ा, साथ ही उसके मुंह से आश्चर्य जनक शब्द निकला।

उफ!

* * * *

भाग - ७

संवाददाता न्यूज चैनल का आँफिस, नई दिल्ली। विशाल और भव्य बहुमंजिला इमारत, जिसके अंदर संवाददाता न्यूज चैनल का आँफिस था। पूरी तरह आधुनिक रंग-रूप में रंगा हुआ, रोशनी में नहाया हुआ। इस इमारत की खासियत थी कि” बाहर से यह अपारदर्शी था, किन्तु’ अंदर से बाहर का पूरा नजारा दिखता था।

हां, तभी तो बाहर से ऐसा लग रहा था कि” अभी यहां कोई नहीं हो, बिल्कुल शांत वातावरण। किन्तु’ अंदर अभी हलचल था, क्योंकि’ अभी तो इस न्यूज चैनल के संवाददाता सांभवी फार्म हाउस से लौट कर आए थे और अब चीफ एडिटर मृदुल सिंहा को रिपोर्ट कर रहे थे।

वैसे भी, सांभवी फार्म हाउस में जो घटित हुआ था, उसने तहलका मचा दिया था। हां, इस घटना ने शहर ने शहर में तहलका मचा दिया था और इसी कारण से मृदुल सिंहा ने अपने सभी स्टाफ को रोक के रखा हुआ था और अभी मीटिंग रूम में सभी को जमा किए हुए थे।

हां, मृदुल सिंहा, लंबा और छरहरा शरीर, नीली आँखें और सिर पर घने बाल। गौर वर्ण लिये चेहरा और सुती हुई लंबी नाक। मृदुल सिंहा का आकर्षक व्यक्तित्व था और उससे भी ज्यादा आकर्षक उसकी बोली थी। तीस वर्ष के मृदुल सिंहा, वैसे तो मधुर बोलते थे और उनका व्यवहार अपने स्टाफ के प्रति सौहार्दपूर्ण था। किन्तु’ काम के मामले में वो अपने स्टाफ को कोई छूट नहीं देता था, तभी तो मीटिंग रूम में स्टाफ के साथ जमा हुआ था।

हां, इस समय वो अपने स्टाफ के साथ सांभवी फार्म हाउस में घटे हुए घटना पर ही चर्चा कर रहा था। क्योंकि’ वारदात बाली जगह के स्थिति और लाशों को देख कर उसे अंदेशा था, इस वारदात को मानव अंगों के तस्करी के लिये अंजाम दिया गया होगा। हां, उसके दिमाग में इसी बात को लेकर घमासान मचा हुआ था और इसलिये ही वो अपने स्टाफ के साथ ताजा बने हालात पर चर्चा कर रहा था।

बीतता हुआ समय और उन सभी के चेहरे पर छाई हुई गंभीरता। संवाददाता न्यूज का वो मीटिंग रूम, जिसकी सजावट आधुनिक तरीके से की गई थी। रूम में जल रहा पीले रंग का बल्ब, साथ ही आगे लगा हुआ एल. इ. डी. का बड़ा सा स्क्रीन, जिसपर न्यूज चल रहा था। किन्तु’ अभी मृदुल सिंहा की नजर स्क्रीन पर न होकर अपने स्टाफ पर ही टिकी हुई थी, तभी तो बोला।

मेरे साथियों!....आज जो शहर में वारदात घटित हुआ हैं, उसे आप साधारण समझ लेने की भूल नहीं करें। कोशिश करें कि” इस मामले में ज्यादा से ज्यादा जानकारी जुटाई जा सकें। कहा उसने और फिर अपने स्टाफ पर नजर टिका दिया। जबकि’ उसकी बातों को सुनकर उसमें से एक स्टाफ बोला, जिसका नाम अमित था।

सर!...मैं समझ नहीं पाया कि” आप किस ओर इशारा कर रहे हैं?...वैसे सर, वारदात तो वारदात ही होता हैं, उसमें अलग-अलग वर्गीकरण का मतलब क्या हुआ और आप किस विशेष बात की जानकारी चाहतें हैं? कहा उसने और एक पल के लिये चुप हुआ और हाँल में नजर घुमाकर देखने लगा। जहां पर उसकी बातें सुनने के बाद सभी की नजर उसपर ही टिक गई थी। तभी तो वो आगे बोला।

वैसे सर!....सांभवी फार्म हाउस में सब से पहले हम लोग ही पहुंचे थे और पुलिस के दबाव को दरकिनार करते हुए वारदात की घटना को कवर किया था। फिर आप किस तरह की विशेष जानकारी चाहतें हैं?...कहा उसने और फिर मौन होकर मृदुल सिंहा के चेहरे को देखने लगा। जहां पर उसकी बात सुनने के बाद मुस्कान उभड़ आया था। तभी तो, मृदुल सिंहा ने उसकी बातों को सुनने के बाद गंभीर होकर बोला।

अमित!...शायद तुम मेरी बातों का आशय नहीं समझ पाये, इसलिये ही ऐसा बोल रहे हो। कहा उसने और फिर अपने पैनी नजर को मीटिंग रूम में घुमाया, जहां उसकी बात सुनने के बाद सभी के चेहरे पर सन्नाटा पसर गया था। परंतु…उसे इस से कोई मतलब नहीं था, वह तो अपने टोन में ही बोला।

वैसे’ तुम लोग सांभवी फार्म हाउस गये जरूर थे, परंतु….पूरी जानकारी जुटाने में असफल होकर लौट आए। क्योंकि’ मेरा मानना हैं कि” यह वारदात मानव अंगों के तस्करी से जुड़ा हुआ हैं। वैसे, तुम लोगों को तो मालूम होगा ही कि” मैं कभी भी हवा में बात नहीं करता। मैं जब भी कुछ बोलता हूं, तथ्य आधारित ही बोलता हूं।

सर!...आप किस बिना पर ऐसा बोल सकते हैं?...जबकि’ आप और हम जानते हैं कि” यह सिर्फ वारदात हैं। वह वारदात, जिसमें सामूहिक रूप से चार युवकों की हत्या की गई हैं। ऐसे में स्पष्ट रुप से कहा जा सकता हैं कि” इस वारदात को आपसी रंजिश के कारण ही अंजाम दिया गया होगा। उसकी बातें सुनकर दूसरा स्टाफ, जिसका नाम सौरभ था, झट बोल पड़ा। जबकि’ उसकी बातों को सुनने के बाद मृदुल सिंहा के होंठों की मुस्कान और भी गहरी हो गई और तब वो बोला।

सौरभ!....मैं ऐसा नहीं कह रहा हूं कि” तुम गलत हो, या गलत कह रहे हो। तुम तो वही कहोगे न, जो तुम्हारी आँखों ने देखा। बस’ सामने दिख रहे हालात को देखकर ही तुम लोग सत्य मान बैठे हो। कहा उसने और फिर एक पल के लिये रुका और उन लोगों के चेहरे पर देखने लगा। जहां पर उसकी बातों को सुनने के बाद आश्चर्य फैल गया था। बस’ वह उन लोगों के चेहरे के भावों को देखकर मजे लेता हुआ आगे बोला।

वैसे’ तुम लोगों के जानकारी के लिये बता दूं कि” हमेशा आँखों से देखी हुई बाते ही सत्य नहीं होती। ऐसे में हमें परिस्थिति को देखकर समझने की जरूरत होती हैं और तुम लोगों ने देखा होगा कि” चारों युवकों के पेट से लेकर सीने तक फाड़ डाला गया था। अब, इससे ही समझ लो, साधारण परिस्थिति में ऐसा कभी नहीं होता। कहने के बाद फिर से एक पल के लिये सांस लेने के लिये रुका वो, फिर आगे बोला।

अब’ बस पता करने की जरूरत है कि” हत्यारे ने उन चारों युवकों का पेट से लेकर सीने तक फाड़ा क्यों?....यह प्रश्न इसलिये भी महत्वपूर्ण हैं कि” हत्या के इरादे से अगर वारदात को किया गया होता, जख्म के अनेकों निशान हो सकते थे, किन्तु’ इस तरह से हृदय को विदीर्ण नहीं किया गया होता। कहा उसने और फिर वहां मौजूद अपने स्टाफ के चेहरे को देखा।

जहां पर आश्चर्य का सागर हिलोरे ले रहा था। परंतु…साथ ही उन सभी के चेहरे पर सहमति के भाव को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता था। ऐसे में करीब दस मिनट तक वो अपने स्टाफ को आगे की योजना के बारे में समझाता रहा, फिर अपनी जगह से उठ खड़ा हुआ।

वैसे भी, उसने इरादा बना लिया था कि” अपार्ट मेंट पर जाने से पहले एक बार शहर में जरूर पेट्रोलिंग कर लेगा। तभी तो, पांच मिनट में ही बिल्डिंग से बाहर आ गया वो। फिर कार में बैठते ही इंजन श्टार्ट किया और आगे बढ़ा दिया। इस के साथ ही कार हिचकोले लेकर आगे बढ़ी और सड़क पर आते ही रफ्तार पकड़ लिया।

ठीक’ उसी रफ्तार से उसके मन में विचारों का प्रवाह भी दौड़ने लगा। क्योंकि’ शहर में शाम के बाद जिस तरह से अचानक ही स्थिति बनी थी, उसने उसके मन में कई शंकाओं को जन्म दे दिया था। लेकिन’ वे शंकाएँ कितनी सत्य होती हैं, वह तो आने बाला समय ही बता सकता था।

लेकिन’ इसका मतलब यह बिल्कुल भी नहीं था कि” उसके मन में उत्पन्न हुई शंका ऐसे ही थी। जानता था मृदुल सिंहा कि” परिस्थिति किस ओर इशारा कर रही हैं। हां, उसके अनुसार परिस्थिति चीख- चीख कर कह रहा था कि” यह वारदात साधारण नहीं हैं। इस सामूहिक नर संहार को ऐसे ही अंजाम नहीं दिया गया हैं। मतलब कि” उसे लग रहा था, इस वारदात को अंजाम देने बाले जरूर ही मानव तस्कर होंगे।

* * * *

भाग - ८

रात के साढ़े ग्यारह बज चुका था, जिस कारण से अब हाईवे पर छोटी गाड़ियों का काफिला थम सा गया था। उसके स्थान पर अब बड़ी गाड़ियों का काफिला गुजर रहा था। किन्तु’ इस समय यमुना किनारे हाईवे पर हलचल मचा हुआ था। क्योंकि’ उस युवती की कुचली हुई लाश सड़क पर फैली हुई थी, जिसके कारण उधर से गुजरने बाली गाड़ियां रुकने लगी थी।

बस’ जिसे देखो, वही तरह की बातें बोलने लगा था। वैसे भी, लाश इस तरह से कुचला हुआ था कि” पहली नजर में ही देखकर मन में बौखलाहट उभड़ आए। ऐसे में वहां पर अजीब से स्थिति का निर्माण हो गया था और शायद यह स्थिति और भी विकट बन जाती, अगर पुलिस वहां पर नहीं आ गई होती।

हां, अचानक ही वहां पर पुलिस के काफिले का आना हुआ और गाड़ियों से निकलते ही पुलिस बल ने स्थिति को संभाल लिया। फिर तो’ मिनट भी नहीं लगा और भीड़ छँट गई। इसके बाद पुलिस की कार वहां पर आकर लगी और उसमें से तरूण वैभव और सुशीत काले उतरे।

फिर तो उन्होंने लाश को देखा और सहज ही तरूण वैभव की आँखें सिकुड़ गई। क्योंकि’ पूरा शरीर भले ही पूरी तरह कुचला जा चुका था, परंतु…चेहरा बचा हुआ था और कार की रोशनी में जैसे ही उसने युवती के चेहरे को देखा, आश्चर्य के सागर में डूब गया।

क्योंकि’ यह वही युवती थी, जिसने सांभवी फार्म हाउस में वारदात को अंजाम दिया था। हां, उस युवती का खून से सना हुआ चेहरा और फैली हुई आँखें, लगता था कि” मरने से पहले आश्चर्य के सागर में डूब गई हो जैसे। शायद उसे विश्वास नहीं रहा होगा, वह मौत का खेल-खेल कर आ रही हैं और अचानक ही इस तरह से काल का ग्रास बन जायेगी। परंतु…हुआ यही था, वह मौत का तांडव खेलकर आई थी और यहां हाईवे पर आकर खुद मौत का शिकार हो गई थी।

किन्तु’ तरूण वैभव की आँखें इस से कुछ अलग ही ढ़ूंढ़ रही थी। हां, उसने जो वीडियो में देखा था, युवती मानव अंगों को थैले में डालकर निकल रही हैं। बस’ वो विकल होकर थैले को ढ़ूंढ़ने में लगा हुआ था। परंतु….उसे इस काम में सफलता नहीं मिली। उसने आस-पास के पूरे इलाके को छान मारा, परंतु…उसे थैला कहीं भी नजर नहीं आया।

अब उसे थैला मिलता भी तो कैसे?...वहां थैला तो था ही नहीं। मरने से पहले ही तो युवती ने उस थैले को अंजान नकाबपोश को सुपुर्द कर दिया था। किन्तु’ तरुण वैभव इस बात से बिल्कुल भी अंजान था। ऐसे में करीब आधा घंटे तक उसने थैले को ढ़ूंढ़ा। इस दरमियान उसने पूरे इलाके को छान मारा, परंतु….नतीजा सिफर ही रहा।

इधर’ एक्सपर्ट टीम अपने काम में जुटी हुई थी और अब लाश को पोस्टमार्टम के लिये भेजा जा रहा था। वैसे’ तरूण वैभव के लिये राहत की बात थी, अभी तक वहां पर मीडिया बालों का आगमन नहीं हुआ था। नहीं तो दिमाग पर खामखा ही एक और टेंशन हावी रहता। ऐसे में उसके लिये इसे अच्छा ही कहा जा सकता था। दूसरी बात कि” उसका मानना था, पुलिस को मीडिया बालों से दूरी बनाकर ही रखना चाहिये, अन्यथा तो वो परेशानी में घिर सकता हैं।

वैसे भी, यहां पर अब उसका काम खतम हो चुका था। फिर तो’ आँफिस जाकर के रिपोर्ट तैयार करना होगा और अपने सीनियर को भेजना होगा। हां, तरूण वैभव इस बात को बहुत अच्छी तरह से समझ चुका था कि” मामला काफी उलझा हुआ हैं और आज जो भी घटना घटी हैं, अप्रत्याशित नहीं हैं।

तभी तो उसने सुशीत काले की ओर देखा और सुशीत काले जैसे उसका मतलब समझ गया हो। फिर दोनों कार की ओर बढ़े, अंदर बैठे और इसके साथ ही सुशीत काले ने इंजन श्टार्ट किया और गाड़ी आगे बढ़ा दी। साथ ही तरुण वैभव के मन में विचारों का प्रवाह भी शुरु हो गया, जो फिलहाल तो अंतहीन और अति वेगवान था।

हां, क्योंकि’ सांभवी फार्म हाउस की हृदय विदारक घटना, उसके बाद उस युवती का एक्सीडेंट। उसे मामला कुछ अटपटा सा लग रहा था, क्योंकि’ अगर एक्सीडेंट ऐसे ही हुआ होता, तो मानव अंगों से भरा हुआ वह थैला जरूर ही उस युवती के आस-पास ही पड़ा होता। परंतु….उसने काफी ढ़ूंढ़ा, किन्तु’ वो थैला नदारद ही थी। जिसके कारण उसके दिमाग में कई तरह के प्रश्नों ने जन्म ले लिया था।

वैसे भी सांभवी फार्म हाउस की घटना साधारण नहीं थी। इस तरह के वारदात को रेरर अपराध के श्रेणी में रखा जाता हैं, क्योंकि’ यह सामूहिक नर-संहार हैं, वह भी क्रुअल तरीके से। दूसरी बात कि” उसके दिमाग में यह बात ढ़ृढ़ बन चुका था कि” इस अपराध को मानव अंग के तस्करों ने ही अंजाम दिलवाया हैं।

साथ ही उन लोगों ने क्राइम सस्पेक्ट को भी रास्ते से हटा दिया। क्योंकि’ उसके पकड़े जाने के बाद उन लोगों का भेद खुल सकता था। ऐसे में सहज ही तरुण वैभव के मन में प्रश्न का अंबार सा लगने लगा था। वे प्रश्न, जो चुनौती बन कर उसके सामने आने बाला था और फिलहाल तो वह जितना समझता था, उसके लिये सारे रास्ते बंद हो चुके थे।

हां, इस मामले में सिर्फ एक क्राइम सस्पेक्ट थी वो युवती, जिसे कि” अंजान अपराधियों ने ठिकाने लगा दिया था। ऐसे में अब उसके पास अंधेरे में हाथ-पांव भांजने के अलावा कोई चारा नहीं था। हां, उसके लिये आने वाला समय मुसीबतों से भरा हुआ होने बाला था। ऐसे में उसने अपने मन में चल रहे विचारों पर ब्रेक लगाया और फिर सुशीत काले की ओर देखा। जो कि” ड्राइव करने में तल्लीन था।

सड़क पर भागती हुई कार, रात के इस समय, जब सड़क पर गाड़ियां कम ही गुजर रही थी, ऐसे में सरपट भागती जा रही थी। ऐसे में तरूण वैभव को लगा कि” असली सुखी जीवन तो सुशीत काले का ही हैं। न ही विशेष टेंशन और न ही कोई चिंता। ऐसे में उससे नहीं रहा गया, तभी तो बोला।

सुशीत!....तुम भी न, देख रहा हूं, तुम जब से चले हो, मौन ही हो। अरे भई, जानते हो, इस तरह मौन रहने से सफर कटना मुश्किल होता हैं। कहा उसने और फिर सुशीत काले के चेहरे पर टिका दी। जबकि’ उसकी बातों को सुनने के बाद सुशीत ने पलट कर उसकी ओर देखा और धीरे से बोला।

सर!...आप भी न, खुद ही तो मौन होकर विचार में खोए हुए थे और मुझे ही कह रहें हैं कि” मौन हूं। कहा उसने और फिर एक पल के लिये रुककर उसके चेहरे को पलट कर देखा और फिर ड्राइव पर नजर टिकाते हुए बोला।

वैसे सर!...आप कहना क्या चाहते हैं?

बस यही कि” इस मामले में तुम्हें कुछ समझ आया?...मतलब कि” इस मामले में तुम्हारी क्या राय हैं?

सर!...राय से मतलब तो नहीं समझा, किन्तु’ मुझे यह बतलाये कि” आप ऐसा क्यों पुछ रहे हैं?...जबकि’ आपको अच्छी तरह से मालूम हैं, इस मामले में अभी तक मैं पूरी स्थिति नहीं जान सका हूं। तो फिर आपको किस तरह से कोई राय’ दूं। उसकी बातों को सुनते ही सुशीत काले बोल पड़ा और फिर ड्राइव में तल्लीन हो गया।

जबकि’ उसकी बातों को सुनने के बाद तरूण वैभव को अपने भूल का एहसास हुआ था। क्योंकि’ उसने अभी तक सुशीत को वीडियो के बारे में जानकारी नहीं दी थी। ऐसे में भला, वह बतलाता भी तो क्या?...इसलिये उसने चुप्पी साध ली।

साथ ही, कार पुलिस स्टेशन पहुंच चुकी थी, इसलिये कार से बाहर निकला और आँफिस में पहुंच गया। साथ ही सुशीत काले भी उसके पीछे-पीछे आँफिस में कदम रख चुका था। तभी तो उसने सुशीत के चेहरे को देखा और उसे गरमा- गरम काँफी लाने के लिये बोल दिया और खुद कुर्सी पर पसर गया। साथ ही अपनी आँखें बंद कर ली और आने बाले समय के लिये गहन चिंतन में डूब गया।

* * * *

भाग - ९

नई दिल्ली!

रवाना वेअर हाउस, बहुत बड़े क्षेत्रफल में फैला हुआ टीन के सेड का बना हुआ। जिसके मुख्य द्वार पर दो गोरखा आटोमैटिक गन थामे हुए चौकस नजर आ रहे थे। उन दोनों की छोटी-छोटी आँखें बराबर ही इधर से उधर घूम रही थी। शायद’ यहां की स्थिति और सुरक्षा के दृष्टि से ही वे चौकस नजर आ रहे थे।

हाईवे के किनारे मौजूद यह वेअर हाउस, लेकिन एक भी गाड़ी इसके आस-पास मौजूद नहीं था। हां, गेट के अंदर पोर्च में जरूर दो इनोवा कार और एक ब्लैक रंग की स्कार्पियो मौजूद थी। सुबह के तीन बजे, जब पूरा शहर अलसाया हुआ था, वेअर हाउस के अंदर काँफी चहल-पहल था। क्योंकि’ सौ के करीब मजदूर वहां पर काम कर रहे थे और साथ ही बने हुए लाइनों में गुंडा टाइप के नौजवान हथियार थामे इधर-से उधर घूम रहे थे।

साथ ही वेअर हाउस के दूसरे सेक्सन में आटोमैटिक मशीन चल रही थी और वहां पर सफेद पाउडर जैसा पदार्थ तैयार हो रहा था। जिसे वहां पर मौजूद नौजवान तौल-तौल कर पैक किए जा रहे थे। किन्तु’ वहां की खासियत थी कि” सभी का चेहरा काले नकाब में ढँका हुआ था। हां, वेअर हाउस के अंदर मौजूद ऐसा एक भी शख्स नहीं था, जिसका चेहरा ढ़ँका हुआ नहीं हो।

ऐसे में स्वाभाविक रूप से अंदर का वातावरण अजीब और रहस्यमय प्रतीत हो रहा था, अंजाना और अजीब सा। लेकिन’ एक बात जरूर थी कि” अंदर वेअर हाउस में रोशनी और हवा की भरपूर व्यवस्था की गई थी। साथ ही, जगह-जगह पर लगे हुए चाय और काँफी की मशीन, साथ ही कार्टेन में रखा हुआ ड्राई नास्ते का पैकेट, लगता था, यहां पर काम करने बालों का भरपूर ध्यान रखा जाता हो।

उधर’ इसी वेअर हाउस के अंतिम छोर पर आँफिस जैसा बना हुआ था। जिसमें छोटे-छोटे केबिन बने हुए थे और हरेक केबिन में नकाबपोश मौजूद थे और सभी लैपटाँप पर काम करने में उलझे हुए थे। धीरे-धीरे आगे की ओर बढ़ता हुआ समय, लेकिन’ लगता नहीं था कि” उन लोगों पर बढ़ रहे समय का कोई प्रभाव हो। सभी अपने-अपने काम में तन्मयता के साथ जुटे हुए थे और उनकी तन्मयता देख कर यह प्रतीत सा हो रहा था कि” वहां पर मौजूद काम करने बाले सभी इंसान नहीं होकर रोबोट हो।

अंदर की स्थिति अजीब थी और शायद कोई अंजान व्यक्ति यहां पर आ जाता, तो शायद इस स्थिति से घबरा कर ही दम तोड़ देता। दूसरी बात कि” अंदर किसी को आने की भी शायद इजाजत नहीं थी और वहां के स्थिति को देखकर तो यही लगता था कि” अंजान कोई भी वहां आ जाता, शायद यहां से जिंदा वापस नहीं जाने दिया जाता। क्योंकि’ वहां की सुरक्षा ही इस तरह से की गई थी, जिससे यही आभास होता था और जब ऐसी स्थिति हो, सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता था कि” वहां पर दो नंबर के काम को अंजाम दिया जाता था।

हां, तभी तो वेअर हाउस के दूसरे छोर पर बने हुए बिल्डिंग नूमा आँफिस में अभी मीटिंग चल रही थी। हां, वे कुल पांच थे, दो अंग्रेज और तीन नकाबपोश, हां पांचों सोफे पर बैठे हुए थे और उनके सामने टेबुल पर काँफी का कप रखा हुआ था। परंतु….पांचों में से किसी ने भी अभी तक कप को हाथ भी नहीं लगाया था।

आँफिस’ जो कि” आधुनिक ढ़ंग से सजाया गया था। वहां पर मौजूद हरेक चीज इंपोर्टेड था। विशाल हाँल में व्यवस्था की गई भरपूर रोशनी, साथ ही दीवाल पर लगी हुई विशाल एल. इ. डी., जिस पर अभी न्यूज चल रहा था और उन पांचों की नजर न्यूज पर ही टिकी हुई थी। उनके चेहरे पर छाया हुआ गंभीरता का आवरण, उन तीनों नकाबपोश का चेहरा ढ़ँका हुआ था, इस कारण से पता नहीं चलता था। परंतु..वे दो अंग्रेज, जिनके चेहरे से स्पष्ट पता चलता था कि” वो गंभीर हैं।

मिस्टर रिचर्ड!....आपने कहा था कि” आप मानव अंगों की सप्लाई करने में सहयोग करेंगे। बस, आपकी बातों को सुनने के बाद ही मैंने मानव अंगों की व्यवस्था कर दी। अचानक ही उसमें से एक नकाबपोश ने रिचर्ड नाम के अंग्रेज के चेहरे को देखा, फिर गंभीर स्वर में बोला। इसके बाद एक पल के लिये रुककर उन दोनों अंग्रेजों की आँखों में देखा, इसके बाद आगे बोला।

किन्तु’ अब अचानक ही आपका कहना कि” आप उन मानव अंगों की डिलीवरी नहीं ले सकते। जानते हैं न आप कि” इस एक वाक्य से कई समस्या पैदा हो जायेगा। क्योंकि’ मानव अंग मेरे पास आ चुका हैं और ज्यादा समय तक इस तरह का मटेरियल नहीं टिकता हैं। इस बात से आप भलीभांति परिचित हैं, तो फिर आप इनकार कैसे कर सकते हैं?...कहा उस नकाबपोश ने और फिर नजर उन दोनों अंग्रेजों पर टिका दी। जबकि’ इतनी बातें सुनते ही रिचर्ड नाम का अंग्रेज बोल पड़ा।

मिस्टर एक्स!....मैंने तो आपको बोला था जरूर, लेकिन आपने गलती की। आपने इस तरह से इस काम को अंजाम दिया कि” पूरे शहर में शोर सा मच गया। जो कि” ऐसा होना हमारे लिये फायदे का सौदा नहीं होता हैं। कहा उस अंग्रेज ने और एक पल के लिये रुका और नकाबपोश की आँखों में देखा, इसके बाद आगे बोला।

आप तो जानते ही हो मिस्टर एक्स!....इस तरह के धंधे में कानून से बचने की सबसे पहली प्राथमिकता होती हैं, परंतु…आपने इस बात से अलग इस मामले की सूचना पुलिस को दे-दी। आपने इस मामले में डायरेक्ट ही पुलिस को इन्वाँल्व कर लिया। अब ऐसे में मानव अंगों को इस देश की सीमा से बाहर लेकर जाना, चुनौती जैसा हैं। बस’ आप भी इस बात को अच्छी तरह से समझते हैं। कहा उस अंग्रेज ने, फिर मौन होकर उन तीनों नकाबपोश के चेहरे को देखने लगा। जबकि’ अंग्रेज की बात सुनने के बाद दूसरा नकाबपोश बोला।

मिस्टर रिचर्ड!...आप भी न, खामखा ही टेंशन ले रहे हैं। आपको तो मालूम हैं कि” अपना नेटवर्क इतना तगड़ा हैं कि” आप को कभी भी अब तक परेशानी नहीं हुई। अब ऐसे में भला आज क्या परेशानी आ गई हैं। दूसरे नकाबपोश ने बोला और एक पल के लिये रुककर फिर से रिचर्ड के चेहरे को देखा, इसके बाद बोला।

मिस्टर रिचर्ड!....आप पार्शल की तो बिल्कुल भी चिंता नहीं करें। वह आपको डायरेक्ट एयरपोर्ट के अंदर के अंदर तक पहुंचा दिया जायेगा। आप तो बस, पेमेंट कर दीजिये, जिससे कि” दूसरे खेप की तैयारी की जा सके।

मिस्टर रिचर्ड!....हम लोग बात में ही इस तरह से उलझे हुए हैं कि” काँफी को तो बिल्कुल भूल ही गये हैं। अब भला, काँफी को ज्यादा देर तक ठंढा मत होने देना चाहिये। तभी तीसरे नकाबपोश ने बोला और फिर जैसे सभी को याद आया हो, उन पांचों ने कप उठा लिया। इसके बाद रिचर्ड मुस्करा कर बोला।

मिस्टर वाई!...आप ने कहा कि” आप पार्शल हमें हवाई जहाज के अंदर देंगे, तब तो ठीक हैं। आप इतना करते हैं तो मैं इस पार्शल का डिलीवरी ले लूंगा और रही बात पैसे की, तो जैसे ही पार्शल डिलीवरी हो जायेगा, आपके पास पहुंच जायेगा।

कहा उसने और फिर काँफी पीने में बीजी हो गया। इसके बाद’ उनके बीच चुप्पी छा गई, जिसके कारण वहां पर सन्नाटा सा पसर गया। धीरे-धीरे आगे की ओर बढ़ता हुआ समय, लेकिन उन पांचों के चेहरे से नहीं लगता था कि” अभी उनमें से कोई भी बात करने के मूड में हो। हां, इतना जरूर था कि” उन पांचों की नजर टी. बी. स्क्रीन पर ही टिकी हुई थी।

हां, क्योंकि’ स्क्रीन पर अभी भी शहर में घटित हुए अपराध के बारे में ही दिखाया जा रहा था। परंतु…वे पांचों, बस इसलिये ही न्यूज देख रहे थे कि” कुछ विशेष जानकारी प्राप्त हो सके। क्योंकि’ उन्हें मालूम था, अगर मीडिया को कोई भी जानकारी मिलती हैं, टी. आर. पी. के लिये उसे न्यूज में परोस दिया जाता हैं।

* * * *

भाग - १०

अगली सुबह पांच सेप्टेंबर!

शहर में हलचल का बाजार गरम हो गया था। जितने मुंह, उतनी बात, हां यही हो रहा था गली के हर नुक्कड़ पर। सुबह-सुबह, पान की दुकान और चाय की टपरी, दोनों ही जगह चर्चा का केंद्र बन गया था। क्योंकि’ शहर सुबह जगने के बाद इन्हीं दो मुख्य जगहों पर जमा होती हैं और वैसे भी आम पब्लिक का एक विशेष गुण हैं कि” जहां दो चार जमा हुए, वर्तमान मुद्दे पर विशेषज्ञ बन गये। खासकर शहर में इस तरह की मानसिकता कुछ ज्यादा ही होती हैं, तभी तो, जहां देखो’ रात बाले वारदात पर विश्लेषण किया जा रहा था।

दूसरी ओर मीडिया बाले भी जी-जान से जुटे हुए थे इस मसले को उछालने में। उन्हें अपने टी. आर. पी. की चिंता थी और इसलिये वो अपनी तरफ से भरपूर कोशिश कर रहे थे कि” इस मामले में ज्यादा से ज्यादा मिर्च-मसाला मिलाई जाये, ताकी ज्यादा से ज्यादा फायदा उठाया जा सके। हां, यही मीडिया हाउस की आज की मानसिकता हो गई हैं। मतलब स्पष्ट हैं कि” उनको बस अपने फायदे को ही कैश करना हैं।

उन्हें इस से कोई मतलब नहीं कि” वे जो दिखला रहे हैं, उससे समाज पर क्या असर होगा?...शायद वे इस बात को जानना ही नहीं चाहते, अथवा जानकर भी अपने स्वार्थ के लिये अंजान बन जाते हैं। किन्तु’ न्यूज में परोसा गया बहुत कुछ बहुत हद तक उत्तेजना बढ़ाने के लिये होता हैं। जिसके कारण दर्शक का एक खास वर्ग उसके चैनल की ओर आकर्षित होता हैं, जिससे चैनल की टी. आर. पी. बढ़ती हैं।

बस यही कारण हैं कि” शहर में कोई घटना घटी नहीं कि” प्रशासन की निंद हराम हो जाती हैं। उन्हें हमेशा एक अजीब सा भय अपने आगोश में समेटे रहता हैं। उन्हें हर पल यही चिंता सताती रहती हैं कि” वर्तमान परिस्थिति को लेकर शहर का माहौल नहीं बिगड़ जाये। क्योंकि’ उन्हें अच्छी तरह से पता होता हैं, शहर का माहौल बिगड़ते ही आसामाजिक तत्व सक्रिय हो जाते हैं। जिस से शहर के जनमानस को कई परेशानियों का सामना करना पड़ता हैं।

किन्तु’ इस बात की चिंता मीडिया हाउस को कभी भी नहीं होती हैं। प्रशासन अथवा जनता, दोनों में से किसी को भी परेशानी हो, उससे मीडिया बालों को कोई लेना-देना नहीं होता। उनके लिये तो टी. आर. पी. महत्व रखता हैं और इसके लिये वे जी-जान से कोशिश करते हैं। जरूरत पड़ने पर मानक नियमों को भुलाकर भी वो न्यूज में इस तरह के कांटेंट परोस देते हैं, जो समाज पर गहरा असर अथवा आघात करता हैं।

तभी तो’ संवाददाता न्यूज चैनल के आँफिस में हलचल मचा हुआ था। हां, अंदर मीटिंग रूम में इस समय मृदुल सिंहा स्टाफ के साथ चर्चा में जुटे हुए थे। हां, वो अपने स्टाफ को समझा रहा था कि” आगे क्या करना हैं। क्योंकि’ उसके दिमाग में शक का कीड़ा जन्म ले चुका था। उसका मानना था, यह मामला जितना सीधा दिखता हैं, उतना हैं नहीं। तभी तो वो अपने स्टाफ को समझा रहा था कि” इस मामले में जी-जान लगाकर जानकारी जुटाये।

उसका स्पष्ट मानना था कि” इस वारदात में कुछ ऐसी विशेष बात हैं, जिसकी जानकारी हो जाये, तो शहर में तहलका मच सकता हैं और उसका न्यूज चैनल टी. आर. पी. के नई ऊँचाई को छू सकता हैं। बस’ यही कारण था कि” आज सुबह- सुबह ही वो आँफिस आ पहुंचा था, जिसके बाद मीटिंग की दौर शुरु हो गई थी।

इससे इतर’ प्रशासन ने भी कुछ ठोस कदम उठाये थे। शहर में जगह-जगह पर चेक पोस्ट बढ़ा दी गई थी और ट्रैफिक पुलिस को आगाह कर दिया गया था कि” एक भी वाहन बिना पुलिस चैंकिंग के आगे नहीं बढ़ने पाये। साथ ही जगह-जगह पर अर्ध-सैनिक बल को तैनात कर दिया गया था। साथ ही शहर में सीनियर अधिकारी माईक लेकर फ्लैग-मार्च कर रहे थे।

क्योंकि’ प्रशासनिक अधिकारी इस बात को लेकर चिंतित हो चुके थे कि” कहीं शहर में इस मामले को लेकर उत्तेजना नहीं फैल जाये और जनसमूह सड़कों पर न उतर आए। क्योंकि’ जनसमूह का मूवमेंट बनना, कहीं से भी हितकर नहीं हो सकता था। इसलिये आला अधिकारियों की कोशिश यही थी कि” शहर में कानून व्यवस्था को सुचारु रूप से चलाया जाये।

साथ ही प्रशासन को इस बात की भी उम्मीद थी कि” पुलिस के एक्टीव हो जाने से कम से कम अपराधियों को भय तो होगा। वे अपराध करने से पहले कम से कम एक बार सोचेंगे तो जरूर। बस’ इतना ही काफी होगा और पुलिस को कुछ समय मिल जायेगा। फिर’ इस केस में छानबीन को सुचारु रूप से चलाया जा सकेगा।

तभी तो’ तरूण वैभव सुबह-सुबह ही पुलिस स्टेशन पहुंच गया था और अब फाइलों के संपादन में लगा हुआ था। साथ ही, उसने सुशीत काले को काँफी लाने के लिये भेज दिया था। हां, उसे ताजगी की जरूरत थी, क्योंकि’ देर रात तक काम करने के कारण उसके बाँडी में अकड़ सी महसूस हो रही थी।

दूसरे, इस मामले ने उसके मस्तिष्क को उलझा दिया था। क्योंकि’ उसके पास जो वीडियो फूटेज थी, उसमें स्पष्ट दिख रहा था कि” उस युवती ने उन चारों युवकों के अंगों को निकाला था और थैले में भरकर निकली थी। परंतु…यह पुलिस का दुर्भाग्य कहें, अथवा अपराधी की चालाकी, बड़ी सफाई से उस युवती को रास्ते से हटाकर मानव अंगों को ले लिया गया था।

ऐसे में तरूण वैभव समझ गया था कि” उसके लिये चुनौती बढ़ गई हैं। हां, अंधेरे में ही हाथ-पांव भांजकर उसे अपराधियों तर पहुंचना था। साथ ही इस बात का भी ध्यान रखना था कि” इस तरह के वारदात दुबारा घटित नहीं हो पाये। लेकिन’ कैसे?...यह भी तो यक्ष प्रश्न था उसके सामने। क्योंकि’ ऐसे मामलों में एक पूरा आँर्गेनाइजेशन सक्रिय होता हैं। ऐसे में जब तक पुलिस को महत्वपूर्ण कड़ी नहीं मिले, इस तरह के वारदात को रोकना लगभग नामुमकिन ही हैं।

किन्तु’ ऐसे मामलों में कड़ी मिलने का इंतजार भी तो नहीं किया जा सकता हैं। क्योंकि’ इस तरह के वारदात को नरसंहार की उपमा दी जाती हैं और इसका जनसमूह पर व्यापक असर पड़ता हैं। ऐसे में अगर इस तरह के वारदात का सिलसिला सा शुरु हो गया, तब पब्लिक को सड़क पर आने से कोई नहीं रोक सकता। ऐसे में आगे की स्थिति के बारे में सोचना भी रूह कंपाने बाला था।

सर काँफी!....जब वह विचार में डुबा हुआ था, तभी सुशीत काले ने काँफी लेकर आँफिस में कदम रखा और उसे इस तरह से विचारों में खोया हुआ देखकर बोला। फिर उसने कप को टेबुल पर टिकाया और कुर्सी पर बैठकर अपना कप उठाकर काँफी पीने लगा। जबकि’ उसकी आवाज सुनकर तरूण वैभव की तंद्रा टूटी। इसके बाद दोनों काँफी पीने में बीजी हो गये।

सर!....मैंने आँफिस में कदम रखा, तो देखा, आप विचारों में उलझे हुए थे। अगर मुझे बतलाने बाली बात हो, तो जरूर बतलाये, ताकी मैं इस मसले पर कुछ बका सकूं। अचानक ही काँफी पीते हुए सुशीत काले ने तरूण वैभव की आँखों में झांककर बोला, फिर उसकी आँखों में देखने लगा।

सुशीत!...शायद तुम सही बोल रहे हो। इस केस ने मेरे दिमाग को चक्कर-घिन्नी बना दिया हैं। बस’ समझो कि” इसी मसले पर उलझा हुआ हूं।

तो सर!...आगे का प्लान क्या हैं?...अभी तो तरूण वैभव ने अपनी बात खतम ही की थी कि” सुशीत काले ने दूसरा प्रश्न दाग दिया और उसके प्रश्न सुनकर तरूण वैभव जबरन मुस्करा कर बोला।

यार सुशीत!...तुम भी न, बहुत प्रश्न करते हो। वैसे, अभी हम लोग सिविल हाँस्पिटल चल रहे हैं। जहां पर जाकर डाक्टर जडेजा से मिलेंगे और पोस्टमार्टम रिपोर्ट की जानकारी लेंगे। कहा उसने और फिर मौन साध लिया।

बस’ इसके बाद सुशीत काले समझ गया, बाँस आगे बात करने के मूड में नहीं हैं। इसलिये उसने फटाफट काँफी खतम किया। उधर तरूण वैभव ने भी काँफी खतम कर लिया था। इसलिये दोनों उठ कर खड़े हुए और आँफिस से बाहर निकल गये।

* * * *

भाग - ११

सुबह के नौ बजे ही पुलिस की कार सिविल हाँस्पिटल के प्रांगण में जा लगी। इसके बाद तरूण वैभव और सुशीत काले बाहर निकले और आँफिस बिल्डिंग की ओर बढ़ गये। सिविल हाँस्पिटल, जो चारों ओर ऊँचे बाऊँड्री वाँल से घिरा हुआ था। जिसके अंदर सेक्सन में बिल्डिंगे बँटी हुई थी। परंतु…फिलहाल तरूण वैभव को डाक्टर जडेजा से मिलना था, इसलिये आँफिस बिल्डिंग की ओर कदम बढ़ाये जा रहा था।

उसके पीछे-पीछे चलता हुआ सुशीत काले, इस समय उसका मूड बिल्कुल भी नहीं था कि” आँफिस से बाहर कहीं निकले। परंतु…वह करता भी क्या?...जब बाँस भागदौड़ कर रहे हों, तब वह आँफिस में तो बैठा नहीं रह सकता था। इसलिये बे-मन से ही तरूण वैभव के पीछे-पीछे अपने कदमों को घसीट रहा था। नहीं तो’ इस समय वो आँफिस में बैठ कर मोबाइल चला रहा होता। हां, बारह बजे से पहले वो अपनी शीट से हिलता भी नहीं था, यही उसकी दिनचर्या थी।

सुशीत!....देख रहा हूं कि” तुम्हारे कदमों में जैसे जान ही नहीं हो। लगता हैं कि” तुम्हें कोई धक्का दे रहा हो और मेरे पीछे मजबूरी में तुम बढ़े आ रहे हो। अचानक ही चलते हुए तरूण वैभव ने पीछे मुड़ कर देखा और सुशीत को संबोधित कर के बोला। फिर एक पल के लिये रुका और वापस पलट कर उसके चेहरे को देखा और आगे बोला।

अगर कोई बात हैं, तो बतला दो?

नहीं-नहीं सर!...शायद आपको भ्रम हुआ हैं, जबकि’ ऐसी कोई बात नहीं हैं। जैसे ही उसकी बातों को सुशीत काले ने सुना, तुरंत ही संभल कर बोला। फिर तो उसने अपने कदमों की गति बढ़ा दिया। जबकि’ उसकी बातों को सुनने के बाद तरूण वैभव ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।

वैसे भी, दोनों डाक्टर जडेजा के आँफिस में पहुंच चुके थे। आधुनिक सुविधा से युक्त आँफिस में डाक्टर जडेजा अपने शीट पर बैठे हुए लैपटाँप पर उलझे हुए थे। ऐसे में जैसे ही उन्होंने आँफिस में कदम रखा, डाक्टर ने नजर उठाकर देखा और मुस्करा कर उनका स्वागत किया। फिर अपने काम में उलझ गये।

जबकि’ दोनों आगे बढे और बैठ गये, साथ ही नजर डाक्टर के चेहरे पर टिका दी। ऐसे में धीरे-धीरे आगे की ओर बढ़ता हुआ समय, थोड़ा सा बोझिल सा होने लगा था। साथ ही, इस तरह से समय बिताना तरूण वैभव के स्वभाव के विरूद्ध था। तभी तो’ जब उससे नहीं रहा गया, डाक्टर को संबोधित कर के बोल पड़ा।

सर!....देख रहा हूं कि” आप अभी बीजी हैं। अगर अभी आपके पास समय नहीं हो, तो कोई बात नहीं, मैं शाम को आ जाता हूं आप से मिलने के लिये। कहा उसने और फिर अपनी नजर डाक्टर के ऊपर टिका दी। जबकि’ उसकी बातों को सुनने के बाद डाक्टर जडेजा ने सिर उठाया और उसको संबोधित कर के मधुर स्वर में बोला।

ऐसी कोई बात नहीं हैं इंस्पेक्टर साहब!... वह कुछ जरूरी काम था, इसलिये उलझा हुआ था। वैसे’ आप बोलिये, क्या सेवा करूं?

सेवा करने की जरूरत नहीं हैं सर!...आप तो सिर्फ रात बाले वारदात के बारे में जानकारी चाहिये। डाक्टर की बातें सुनते ही तरूण वैभव झट बोल पड़ा। फिर एक पल के लिये रुका और डाक्टर साहब के चेहरे को देखने लगा। इस उम्मीद में कि” उनके चेहरे के भावों को पढ़ सके। परंतु… जब उसे इसमें सफलता नहीं मिली, तो आगे बोला।

सर!...मुझे उन चारों युवकों के पोस्टमार्टम के बारे में जानकारी लेनी हैं। बस’ इस केस में महत्वपूर्ण प्वाईंट के बारे में बतलाये।

इंस्पेक्टर साहब!...वैसे तो अभी बिसरा रिपोर्ट नहीं आया हैं, इसलिये ज्यादा कुछ तो नहीं बतला सकता हूं। परंतु…इतना जरूर बतला सकता हूं कि” उन चारों डेड बाँडी” के अंदर से मानव अंगों की चोरी की गई हैं।

मतलब कि” शरीर के पूरे अंग ही निकाल लिये गये हैं?...डाक्टर साहब की बातें सुनकर आश्चर्य में डूबे हुए तरूण वैभव ने कहा, फिर अपनी नजर डाक्टर साहब के चेहरे पर टिका दी। जबकि’ उसकी बातों को सुनने के बाद डाक्टर जडेजा के होंठों पर मुस्कराहट उभड़ा। साथ ही वो शांत स्वर में बोले।

इंस्पेक्टर साहब!....सारे अंगों से मतलब कि” किडनी, भाल्व, फेफड़ा और हार्ट, हां इन चीजों की ही चोरी की गई हैं डेड बाँडी से। वह भी एक्सपर्ट तरीके से। ऐसे में मैं स्पष्ट रूप से कह सकता हूं कि” इस वारदात को अंजाम देने बाला जरूर ही मेडिकल लाइन का जानकार रहा होगा। क्योंकि’ इस तरह के काम सिर्फ डायरेक्सन दे कर अंजाम नहीं दिया जा सकता।

कहा डाक्टर साहब ने और फिर चुप्पी साध ली। बस’ तरूण वैभव समझ गया कि” अब डाक्टर साहब बात करने के मूड में नहीं हैं। इसलिये सुशीत काले के साथ उठा और आँफिस से बाहर निकल गया। फिर तो’ दोनों कार के पास पहुंचे और अंदर बैठे, इसके साथ ही तरुण वैभव ने कार श्टार्ट की और आगे बढा दिया। फिर तो’ हाँस्पिटल गेट से बाहर निकलते ही कार ने स्पीड पकड़ लिया।

बस’ उसी रफ्तार से तरूण वैभव के दिमाग में विचार ने गति पकड़ लिया। हां, सांभवी फार्म हाउस में घटी वारदात वे उसके दिमाग के कल पुर्जे को हिला दिया था। साथ ही डाक्टर साहब की कही हुई एक बात से तो वह और भी उलझ गया था। हां, डाक्टर जडेजा ने जो कहा था कि” इस वारदात को अंजाम देने बाले को मेडिकल क्षेत्र का अच्छा अनुभव रहा होगा।

बस’ यहीं पर आकर वो उलझ सा गया था। क्योंकि’ उसने वीडियो में स्पष्ट देखा था कि” उस युवती ने उन चारों युवकों से जिस्मानी संबंध बनाये थे। मतलब स्पष्ट था कि” वो युवती काँल गर्ल थी। उसके हाव-भाव बतला रहे थे कि” वह उन युवकों के साथ स्वेच्छा से आई थी। साथ ही उसका रति क्रिया के दौरान भाव प्रदर्शन इस बात की पुष्टि करता था कि” वो इस धंधे में लंबे समय से होगी।

फिर उसका मेडिकल क्षेत्र से जुड़ा होना, अथवा इसकी जानकारी होना, उसके गले नहीं उतर रहा था। किन्तु’ डाक्टर जडेजा ने कहा हैं, तो गलत नहीं हो सकता हैं। मतलब कि” उसके दिमाग में उलझन की गुत्थी सी बनती जा रही थी, जिसे खुद उसको ही सुलझाना था और वो जानता था इस बात को कि” इसके लिये युवती के बारे में जानकारी जुटानी पड़ेगी।

वह इस बात से इनकार नहीं कर सकता था कि” आने बाला समय चुनौती पूर्ण होगा। फिर तो’ अगर इस तरह की वारदात दुबारा घटित हो गई, उसके बाद की स्थिति की कल्पना भी हृदय को कंपित करने बाला था। ऐसे में उसे यह भी सोचना था कि” जो वारदात घटित हो चुका हैं, उसके पुनरावृति को किस तरह से रोके?

प्रश्न उलझा हुआ और जटिल था, जिसका उत्तर फिलहाल तो उसके पास नहीं था। तभी तो’ उसने सुशीत काले की ओर देखा, फिर वापस नजर ड्राइव पर टिका दी। जबकि’ उसे इस तरह से अपनी ओर देखता हुआ पाकर सुशीत काले से नहीं रहा गया, तभी तो वो बोल पड़ा।

लगता हैं सर!...आप या तो मुझ से कुछ पुछना चाहते हैं, या फिर कुछ बतलाना चाहते हैं?

नहीं-नहीं, ऐसी कोई बात नहीं हैं सुशीत!.. मैंने तो बस ऐसे ही तुम्हारी ओर देखा था। उसकी बातों को सुनते ही तरूण वैभव बोला। फिर’ उसने ड्राइव पर नजर टिका दी। ऐसे में सुशीत काले समझ गया कि” बाँस अभी बात करने के मूड में नहीं हैं, इसलिये मोबाइल निकाल कर चलाने लगा।

धीरे-धीरे आगे की ओर बढ़ता हुआ समय और बढ़ते समय के साथ ही सड़क पर ट्रैफिक की बढ़ती हुई रफ्तार। हां, दिन के दस बज चुका था और यह समय आँफिस का होता हैं। ऐसे में स्वाभाविक रूप से ही सड़क पर ट्रैफिक की तादाद निरंतर ही बढ़ती ही जा रही थी। इसलिये तरूण वैभव सावधान होकर ड्राइव में जुटा हुआ था। इस बात से बिल्कुल बेखबर होकर कि” आने बाला समय उसके लिये परेशानी बढ़ाने बाला था।

हां, यह तो समय ही निर्धारित कर सकता था कि” आगे क्या घटित होगा। किन्तु’ इतना तो तय ही था, यह वारदात का सिलसिला अभी फिलहाल तो थमने बाला नहीं था। लेकिन’ अभी यह स्पष्ट भी नहीं था कि” आगे होगा क्या?... यह तो समय के गर्भ में छिपा हुआ था।

क्रमश...

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