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हृदय कुंज में अतिशय हलचल,
घाट किनारे बैठा हूँ, हो मौन,
अजी, तेरी मंद-मधुर मुस्कान,
और कहूं, हां अधर में अटके प्राण।।
यादों का वह धुंधला सा आभा,
मिलन की वह प्रथम प्रिय रात,
और तो कंपित थे हम दोनों के गात,
आज फिर जो बनी हो तुम अंजान,
याद हैं तेरी मंद-मधुर मुस्कान।।
प्रेम से ओतप्रोत भेजे थे जो पाती,
आज हृदय में जमा धरोहर जैसे,
तुम बिन आज भ्रमित बना विस्मय से,
साँची थी जो प्रीति, लगा विरह के वाण,
आज फिर जो बनी हो तुम अंजान।।
सच प्रिय, कहूं सत्य बातों की बात,
हुआ है जीवन का पथ अब सूनसान,
तुम बिन जीवन बगिया हुई वीरान,
तेरी अट्टखेलियां जो आए मुझे ध्यान,
और कहूं, हां अधर में अटके प्राण।।
कुछ उदासीन पल जो मन को हैं घेरे,
यादों के झरोखे से तेरी छवि हैं उभड़ा,
सच, तेरी चाहत से हुआ मुक्त नहीं हूं,
तभी तो हूं उदासीन पतझड़ के समान,
आज फिर जो बनी हो तुम अंजान।।