लिख दूं' प्रेम की पाती, प्यारो'
लिख दूं' भाव हृदय के, न्यारो'
हम और तुम' जहां मिलते थे घंटों'
करते थे बातें, प्रीति के राग भरे'
प्रिय कहूं' नैनन से नैना मिलते ही'
हृदय में भाव वह' उठते अनुराग भरे।।
लिख दूं' बीती बाते मिलन की वो'
हम दोनों ने प्रेम डगर पर खाई थी कसमें'
निभाने को प्रतिबद्ध बने थे, जीवन की रस्में'
वही अनुराग अभी भी, प्रिय मेरे नस-नस में'
वो बाते' जो होती थी चांद के खिलते ही'
वह नयनों की चाह' चाहत ने आग भरे।।
दिख दूं' प्रेम पथिक, थे पथ पर दो हमजोली'
तेरे नैना-मेरे नैना, वो प्यार की मीठी बोली'
तुम और हम' दोनों थे एक हृदय प्रेम में डुबे'
गलियों में फिर' खेले थे जो आँख-मिचौली'
मैंने जो समझा था प्रेम' अधर तेरे हिलते ही'
हम दोनों प्रेम के राही, चले फूलों के राह भरे ।।
अब' लिख डालूं, प्रेम सरस भीगे भाव'
अब भी प्रिय' हृदय तेरे लिए चाह भरा है'
तुम जो समझो" प्रेम विशुद्ध अथाह भरा है'
कहता हूं, तेरे लिए चाहत बेपनाह भरा है'
मन मेरे मोती बिखर पड़े, ओंठ तेरे हिलते ही'
मन प्रेम रंग-रंग जाऊँ, जीवन हो फाग भरे।।
मन सुलभ चंचल हो' खत लिखने को कहता'
लिख डालूं वह बात' प्रिय आज जो रूठे हो'
जीवन पथ पर हम है, तुम दूर कहीं छूटे हो'
सहज हृदय जगा भाव' तुम प्रिय इतने अनूठे हो'
मिलना नैनों से नैना की, होंगी बातें दिल के ही'
बंधन जो हृदय को बांधे, हो प्रेम के भाव भरे।।