मन अब लागे मेरो हरि भजन में,
दास श्री चरण कमल का हो जाऊँ,
शरणागत बनूं श्री राघव का,
मन रमूं, राम भजन में खो जाऊँ।।
रघुपति श्री के सेवा का सुख लाभ लहूं,
भजन में रमूं, छिन-छिन भोग लगाऊँ,
मन रमें हरि कीर्तन में, सीताराम को गाऊँ,
राघव का बनूं, नाम पदों के धुन गाऊँ।।
बने हृदय में झलक राम की, करूं सेवा,
चिंतन हो श्री राम, लहूं सुख नाम की मेवा,
जगत की मोह, हृदय से अनख अब मिटे,
राघव की छवि धरूं हृदय, रस नाम का पाऊँ।।
सीताराम सीताराम, सीताराम जै सीताराम,
नाम मधुमय अमी संजीवनी, नाम हैं पूरणकाम,
अभी जो विषम विष छाया हुआ कलिकाल,
मिटे सकल कलि के दोष, छाया नाम की पाऊँ।।
रघुवर श्री बाल किशोर, बन जाऊँ भाव विभोर,
छोड़ूं जगत की दौड़, पाऊँ श्री चरणों में ठौर,
माया की छूटे फंद, मन रमें भजन की ओर,
मिटे जगत संताप, भजन में भाव जगाऊँ।।
सीताराम सीताराम, सीताराम जै सीताराम,
संग श्री हनुमान, रघुपति सुख के धाम,
जगत पति अवधेश, पाऊँ चरणों में विश्राम,
अब नहीं चले लोभ का दाव, मन हरिदास कहाऊँ।।