मजदूर हूं, श्रम को खींचता हूं दिन भर,
मेहनत का स्वाद और जीवन का संघर्ष,
मजदूर हूं, मैं भी इंसान हूं, चलता जाता हूं,
हर दिन की राह में, है जीवन की उड़ान"
श्रमिक हूं, माथे पर बोझ ही हैं पहचान।।
मैं हारता नहीं हूं संघर्ष के थपेड़ों से,
पेट भरने की खातिर निरंतर प्रयासरत,
कर्म गति के नियमों का बोझ उठाता हूं,
राष्ट्र के विकास गति का हूं अमिट प्राण,
हूं मेहनत-कश, माथे पर बोझ ही हैं पहचान।।
मैं निरंतरता के आवेग में चलता हुआ,
फावड़ा चलाता हूं और जमीन खोदता हूं,
श्रम का श्रृंगार कर पसीना अपना बहाता हूं,
आर्थिक गतिविधि का निरंतर रख के ध्यान,
मजदूर हूं मैं, माथे पर बोझ ही हैं पहचान।।
मैं जो बिना थके चलता हूं काम करने को,
दीपक के लौ सा जलता हूं, श्रमिक जो हूं,
श्रम- बोझ से दबकर भी देखो मैं मुस्कराता हूं,
दायित्व का जो हैं मुझ को सही-सही ज्ञान,
करता हूं काम, माथे पर बोझ ही हैं पहचान।।
"मजदूर हूं, श्रम को अपने पसीने से सींचता हूं,
कमाने की धून में निरंतर खुद को खींचता हूं,
थकान को भूल कर फिर जो जीत जाता हूं,
जीवन की राहों में चलते हुए होता हैं शाम,
श्रमिक हूं, माथे पर बोझ ही हैं मेरी पहचान।।