Photo by KAL VISUALS on Unsplash

मानूंगा अब तो' आनंद हृदय में,
बीत चुका अँधियारे का वह पल,
जो बातों से करते रहते थे छल,
उफान वेग लिये, विषमता का हलचल,
बीता जो बीत चुका, होगा नहीं अब भय।।

बन कर सभान, नियमों का धरूं ध्यान,
जीवन के संग चलूं, उचित करूं अनुमान,
पथ का पथिक हूं, नहीं रहूं भ्रम से अंजान,
विषम भाव जो बने, उचित निकालूं हल,
बीता जो बीत चुका, किंचित हो नहीं विस्मय ।।

जो अहं का, हृदय पर घात हो गहरा,
कर लूं निर्धारित नियमों से बंध धैर्य लेप,
वाहक बन जाऊँ सत्य गुणों का, मानव बन,
कर्म का ध्येय हो सत्य, हो चाहे जो प्रतिफल,
जीवन का संग मिले, उन्मुख हो पाऊँ जीवन जय।।

मानूं आनंद अब, समता का पाठ पढ़ूं,
छोड़कर द्वेष, स्वाभिमान हृदय में पालूं,
जीवंत भाव का गीत, मंत्रमुग्ध हो गा लूं,
वाहक बनूं कर्म भाव का, बन मानव निश्छल,
किंचित नहीं हो अवकाश, चलूं कर्म के लय ।।

मानूंगा आनंद, निहित जो धर्म निभाता जाऊँ,
हो पथ पर उत्कर्ष, ऐसे ध्येय बढ़ाता जाऊँ,
तनिक नहीं हो भ्रम, तनिक नहीं उकताऊँ,
उचित वही व्यवहार करूं, जो दे मानवता को बल,
नित-नवीन प्रयोग करूं, हो मानवता का जय।।

.    .    .

Discus