मुश्किल भरे इस दौर से, निकल’
आगे कांटों को बिछते हुए चल’
तूफान से टकरा भी जाना, हौसला से’
लगाकर धैर्य का हृदय से बल’
राही’ दौर ये बीतेगा, तुम जीत जाना’
सफर पर चलते हुए, जरा तो मुस्कराना।।
अभी जो आँधियों का दौर है, पांव जमाये रहो’
लक्ष्य हासिल कर सको, नजर टिकाये रहो’
नीति का लिये हुए बल, बने रहो निश्छल’
पथिक का धर्म, डगर पर बने रहो अटल’
उत्साह के रंग-रंगे हुए, कदम आगे बढ़ाना’
सफर पर चलते हुए, जरा तो मुस्कराना।।
हुआ कुछ अभी यूं है, कुछ बंदिशों का है दौर’
कठिनाइयाँ है राह में, रोड़े बने हुए चट्टान से’
तभी तो तुम, लगते हो’ बहुत हो हैरान से’
मुश्किलों के इस दौर से, हो थोड़े परेशान से’
अभी फैला धुंध काला, कदम नहीं डगमगाना’
सफर में चलते हुए, जरा तो मुस्कराना।।
बेहिसाब उठते हुए विचारों के लहर से'
बच कर निकल भी जाना, टेढ़ी नजर से'
बचाये रखना हौसले, जज्बाती असर से'
जीत के रथ पर सवार हो निकलना डगर से’
तनिक थपेड़े जो हो द्वंद्व का, नहीं हड़बड़ाना’
सफर में चलते हुए, जरा तो मुस्कराना।।
उम्मीद के नींव पर, हर्ष का बल लगाये हुए'
पथिक का धर्म निभाते हुए बढ़ते चले जाना'
धैर्य का दामन थामे हुए, कदम अपने बढ़ाना’
निर्मलता की चादर ओढ़े हुए सत्य गीत गाना'
बाज सा नजर कर के, पंख को फड़फड़ाना’
सफर में चलते हुए, जरा तो मुस्कराना।।