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नयन मेरे निरखो केवल रूप हरि को,
छोड़ जगत की मृग तृष्णा, ये झूठा हैं,
विषम व्याल जगत को हरि जड़ी बूटी हैं,
बांकी तो सांसे चलती हैं छनिक घड़ी को।।
नयन मेरे मन को हरि रुप दिखलाओ,
है झूठा जग इससे अवगत करवाओ,
धन के वैभव का कुछ चाल अनुठा हैं,
तू बस जपना मीठो-मीठो नाम हरि को।।
नयन मेरे तुम अब चंचलता को छोड़ो,
छोड़ो जगत के काम हरि दर्शन को दौड़ो,
बाकी सब वृथा भाव जगत का ठूंठा हैं,
ऐसा ही हैं सत्य आएगा काल घड़ी को।।
नयन मेरे तुम उपजे सकल कामना त्याजो,
लगन लगी श्री चरणन में नित्य विराजो,
ये तेरो सांस चले, कबहूं तो निश्चित खूंटे हैं,
प्रिय जल जाये तू पड़ते धार घड़ा से घी को।।
नयन मेरे हरि संग नित्य ही स्नेह बढ़ाओ,
चेतो प्रिय काल से तनिक न समय गंवाओ,
समझो सत्य जगत प्रिय स्वार्थ का भूखा हैं,
इसलिए प्रिय रस पी छक हरि नाम झड़ी को।।
नयन मेरे पीयो छक हरि दर्शन का प्याला,
जपो नित नाम हरि को प्रिय तुलसी-माला,
जगत जो पद नाम उसका व्यंजना रुखा हैं,
इसलिए प्यारे रसिक बन नाम रसभरी को।।